नबी मोहम्मद ने अपनी पत्नी और इरफान के संबंधों को स्वीकार ही नहीं कर लिया बल्कि दोनों का निकाह भी करा दिया. लेकिन परेशानी तब खड़ी हो गई, जब वह इरफान से इस की कीमत वसूलने लगा. दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को दोपहर 3 बजे के आसपास सूचना मिली कि मदनपुर खादर के श्रीराम चौक से आगे
यमुना खादर की झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. चूंकि यह इलाका दक्षिणपूर्वी जिले के थाना जैतपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना जैतपुर को दे दी. इसी के साथ पीसीआर वैन भी सूचना में बताए पते पर रवाना कर दी गई. यह 10 दिसंबर, 2013 की बात है. थाने में उस समय इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर मौजूद थे. जैसे ही उन्हें थानाक्षेत्र में लाश पड़ी होने की सूचना मिली,

वह सबइंसपेक्टर नरेंद्र, हेमंत कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर को ले कर श्रीराम चौक के लिए रवाना हो गए. श्रीराम चौकथाने से करीब 200 मीटर दूर था, इसलिए 5 मिनट में ही सभी वहां पहुंच गए. वहां उन्हें पता चला कि लाश पुश्ता से करीब 500 मीटर दूर यमुना खादर की झाडि़यों में पड़ी है. वहीं से झाडि़यों के पास कुछ लोग खड़े दिखाई दिए तो इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर साथियों के साथ उसी जगह पहुंच गए. वहां पीसीआर वैन भी खड़ी थी. झाडि़यों के बीच में एक युवक की लाश पड़ी थी. उस की उम्र 25-30 साल रही होगी. वह युवक जींस और गुलाबी रंग का स्वेटर पहने था. उस का सिर और चेहरा कुचला हुआ था. पास ही एक ईंट पड़ी थी, जिस पर खून लगा था. उस में कुछ बाल भी चिपके हुए थे.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने इसी ईंट से इस का चेहरा इसलिए कुचला होगा, ताकि लाश की शिनाख्त न हो सके. लाश देख कर ही लग रहा था कि चेहरे और गरदन का मांस किसी जानवर ने खाया है. चेहरा कुचला होने की वजह से वहां मौजूद कोई भी आदमी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका. तलाशी लेने पर उस की जेब से एक पर्स मिला, जिस में 6 फोटोग्राफ्स थे. उन में से 2 फोटोग्राफ्स पुरुष के थे और 4 किसी महिला के. इस के अलावा पर्स में कुछ विजिटिंग कार्ड्स भी थे. वे सभी एसी, कूलर की सर्विस आदि से संबंधित थे. जेब में 1400 रुपए नकद के अलावा बैंक में पैसे जमा करने की एक स्लिप भी थी. वह स्लिप जामिया कोऔपरेटिव बैंक मदनपुर खादर की थी, जिस से नबी मोहम्मद ने शहनाज के खाते में जुलाई महीने में 40 हजार रुपए जमा किए थे. मृतक की जेब से नकदी मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी.

हत्या क्यों की गई और किस ने की, यह जांच का विषय बाद का था. सब से पहला काम लाश की शिनाख्त कराना था. उस की जेब से जो विजिटिंग कार्ड्स मिले थे, पुलिस ने उन में लिखे फोन नंबरों पर संपर्क किया तो उन में से किसी से मृतक के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. अब पुलिस के पास केवल बैंक पर्ची बची थी. इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने आगे की जांच के लिए 2 कांस्टेबलों को जामिया कोऔपरेटिव बैंक भेज दिया. वहां से पता चला कि वह एकाउंट जिस शहनाज के नाम था, वह शाहीन बाग में रहती थी. वहां से शहनाज का मोबाइल नंबर भी मिल गया था.

घटनास्थल पर पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया. इस ब्लाइंड मर्डर को सुलझाने के लिए डीसीपी डा. पी. करुणाकरन ने सरिता विहार के एसीपी विपिन कुमार नायर की देखरेख में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी अरविंद कुमार, इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर, एसआई नरेंद्र, हेमंत कुमार, रोहित कुमार, हेडकांस्टेबल बलिंदर, रविंदर, कांस्टेबल विकास, कुलदीप, निरंजन, मामचंद, बृजपाल, हवा सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को बैंक से शहनाज का जो फोन नंबर मिला था, उसे अपने फोन से मिलाया. फोन इरफान नाम के किसी आदमी ने उठाया. इंसपेक्टर तोमर ने कहा, ‘‘हमें यमुना खादर की झाडि़यों से एक युवक की लाश मिली है. मरने वाले की जेब से कुछ फोटो भी मिले हैं. उन फोटोग्राफ्स को पहचानने के लिए तुम थाना जैतपुर आ जाओ.’’

‘‘सर, मैं तो इस समय बाहर हूं, लेकिन अपने छोटे भाई को थाने भेज रहा हूं.’’ इरफान ने जवाब दिया.
आधे घंटे बाद ही इरफान का भाई थाने आ गया. पुलिस ने जब उसे वे फोटो दिखाए तो उस ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. इंसपेक्टर तोमर ने अपने मोबाइल फोन से लाश के कुछ फोटो खींच लिए थे. खींचे गए वे फोटो जब उसे दिखाए गए तो वह लाश को भी नहीं पहचान सका. इस के 2 घंटे बाद इरफान भी थाने आ गया. इंसपेक्टर तोमर ने जब पर्स में मिले फोटो उसे दिखाए तो फोटो देखते ही वह बोला, ‘‘ये फोटो तो नबी मोहम्मद के हैं.’’

यह जरूरी नहीं था कि पर्स में नबी मोहम्मद के फोटो मिले थे तो लाश भी उसी की रही हो. इसलिए उन्होंने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो इरफान को दिखाए तो उस ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. इरफान से पूछताछ में पता चला कि नबी मोहम्मद नोएडा के गांव कुलेसरा का रहने वाला था. चूंकि उस दिन अंधेरा घिर चुका था, इसलिए पुलिस ने अगले दिन नोएडा जाने का कार्यक्रम बनाया.

11 दिसंबर, 2013 को एक पुलिस टीम नोएडा के कुलेसरा स्थित नबी मोहम्मद के घर पहुंची. वहां नबी मोहम्मद की बीवी नूर फातिमा मिली. पुलिस ने जब उस से उस के पति के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘वह कल से कहीं गए हुए हैं. लेकिन मुझे बता नहीं गए कि वह कहां गए हैं? वैसे भी वह अकसर घर से बिना बताए 2-3 दिनों के लिए गायब हो जाते हैं. आज या कल लौट आएंगे. मगर आप लोग उन के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘दरअसल कल दिल्ली के यमुना खादर में एक लाश मिली है. थाने चल कर तुम लाश के फोटो और सामान देख लो.’’ पुलिस वालों ने कहा तो नूर फातिमा उन के साथ थाना जैतपुर आ गई. इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने अपने मोबाइल फोन से खींचे गए लाश के फोटो पर फातिमा को दिखाए तो वह बोली,

‘‘वह कपड़े तो इसी तरह के पहने हुए थे, लेकिन चेहरा कुचला होने की वजह से पहचान में नहीं आ रहा है.’’
मृतक के पर्स से जो फोटो मिले थे, पुलिस ने उन्हें भी नूर फातिमा को दिखाए. पता चला कि उन में से 2 फोटो नबी मोहम्मद के थे और 4 नूर फातिमा के. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस नूर फातिमा को एम्स की मोर्चरी ले गई. लाश का चेहरा भले ही कुचला हुआ था, मगर कपड़े और कदकाठी से उस ने तुरंत पहचान लिया. लाश उस के पति नबी मोहम्मद की ही थी. फातिमा फफकफफक कर रोने लगी.

लाश की शिनाख्त होने पर पुलिस ने राहत की सांस ली. अब पुलिस का अगला काम हत्यारों का पता लगाना था. पुलिस ने सब से पहले नूर फातिमा से नबी मोहम्मद के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘वह मारुति कार सड़क के किनारे लगा कर कपड़ों की सेल लगाते थे. यह कार इरफान की थी और कपड़े भी इरफान ही बिकवाता था. उन्हें तो केवल मजदूरी मिलती थी. कभीकभी वह 1-2 दिनों बाद घर लौटते थे. इस के अलावा उन की रोजाना शराब पीने की आदत थी.

‘‘कल शाम को भी वह कार ले कर घर से निकले थे. रात को जब वह घर नहीं लौटे तो मैं ने सोचा कि कहीं चले गए होंगे. आज इरफान ने मारुति की चाबी और उन का मोबाइल फोन मुझे देते हुए कहा था कि नबी जरूरी काम से कहीं गया है. 1-2 दिन में आ जाएगा. लेकिन अब मुझे पता चल रहा है कि किसी ने उन की हत्या कर दी है.’’

कोई न कोई वजह जरूर रही होगी, जिस से उसे जान से हाथ धोना पड़ा. वह किनकिन लोगों के साथ शराब पीता था और उस की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं थी, इस बारे में पुलिस ने फातिमा से पूछा तो उस ने बताया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी रही हो, ऐसी जानकारी उसे नहीं है. उसे यह भी पता नहीं कि वह किसकिस के साथ शराब पीते थे.

पुलिस को फातिमा की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए पुलिस ने नबी मोहम्मद, नूर फातिमा और इरफान के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स से पुलिस को चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. पुलिस को पता चला कि 9 दिसंबर की शाम साढ़े 9 बजे इरफान और नबी मोहम्मद के फोनों की लोकेशन कालिंदी कुंज की जेजे कालोनी, पुस्ता रोड के पास थी और पुश्ते से थोड़ी दूर आगे ही यमुना खादर में नबी मोहम्मद की लाश मिली थी. इस का मतलब यह था कि उस रात दोनों साथसाथ थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने इरफान को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. पुलिस ने इरफान से पूछा, ‘‘9 दिसंबर की शाम को तुम कहां थे?’’
‘‘मैं शाम को अपने घर पर था. रात को भी मैं घर पर ही था.’’
‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो. घर के बजाय तुम कहीं और थे?’’ इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर ने कहा.
‘‘सर, मैं सच बोल रहा हूं. उस रात मैं घर पर ही था. चाहें तो आप मेरे घर वालों से पूछ लें कि मैं कहां था.’’

इंसपेक्टर तोमर के पास इस बात के पुख्ता सुबूत थे कि इरफान और नबी मोहम्मद के फोन की लोकेशन पुश्ता रोड की थी. वह जान रहे थे कि इरफान झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में वह सच उगलने को मजबूर हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि नबी मोहम्मद ने उस का जीना हराम कर दिया था, इसलिए मजबूरी में उसे उस की हत्या करनी पड़ी. उस ने बताया कि उसे मारने में उस के साथ उस के 2 दोस्त भी थे. इस के बाद उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

नबी मोहम्मद मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गजरौला का रहने वाला था. उस की शादी नूर फातिमा से हुई थी. नबी मोहम्मद मेहनतमजदूरी करता था. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली, नोएडा में काम करते थे. उन लड़कों के पहनावे और खानपान में काफी अंतर था. उन के ठाठबाट देख कर नबी मोहम्मद के मन में भी घर से बाहर जा कर काम करने की इच्छा हुई. करीब 15 साल पहले काम की तलाश में वह नोएडा आ गया. क्योंकि नोएडा में उस का एक करीबी दोस्त रहता था. यहां वह एक ठेकेदार के साथ मकानों की पुताई का काम करने लगा.

नबी ठीकठाक कमाने लगा तो गांव से पत्नी नूर फातिमा को भी नोएडा ले आया और कुलेसरा गांव में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. करीब 3 साल पहले की बात है. नबी मोहम्मद दिल्ली के मदनपुर खादर एक्सटेंशन की कच्ची कालोनी में रहने वाले मोहम्मद इरफान उर्फ फुरकान के यहां पुताई करने गया. मोहम्मद इरफान भी मूलरूप से मुरादाबाद के गजरौला कस्बे का रहने वाला था. उस के परिवार में पत्नी शहनाज के अलावा 4 बच्चे थे. वह अलगअलग इलाकों में सड़क किनारे कार खड़ी कर के कपड़ों की सेल लगाता था. इस के अलावा वह प्रौपर्टी डीलिंग का भी काम करता था. उस के यहां कूलर का भी काम होता था. कुल मिला कर उस की अच्छीखासी आमदनी थी.

घर पर काम करते समय उस की नबी मोहम्मद से बात हुई तो पता चला कि वह भी गजरौला का ही रहने वाला है. इरफान को उस से सहानुभूति हो गई. नबी मोहम्मद अपने काम से परेशान था, इसलिए उस ने इरफान से अपने लिए कोई दूसरा काम बताने को कहा. इरफान के कई तरह के काम थे. उसे अपने साथ काम करने के लिए एक विश्वसनीय आदमी की जरूरत थी. इसलिए उस ने नबी मोहम्मद को अपने साथ काम करने को कहा. नबी मोहम्मद तैयार हो गया और फिर वह उस के साथ काम करने लगा. नबी इरफान के साथ सेल लगा कर कपड़े बेचने लगा. इरफान के साथ नबी मोहम्मद के अलावा 2 अन्य लड़के भी काम करते थे.

चूंकि इरफान और नबी मोहम्मद एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन की आपस में अच्छी पटने लगी थी. इरफान का नबी मोहम्मद के घर भी आनाजाना हो गया. इरफान के ठाठबाट देख कर नबी मोहम्मद की बीवी नूर फातिमा उस से काफी प्रभावित हुई. वह बहुत महत्वाकांक्षी थी. पति की जो आमदनी थी, उस से उस की महत्वाकांक्षाएं पूरी होनी तो दूर, घर का खर्च तक नहीं चलता था. नूर फातिमा का अपनी ओर होने वाला झुकाव 4 बच्चों का बाप इरफान समझ गया था. वह भी खुद को रोक नहीं सका और उसे चाहने लगा. वह नूर फातिमा की आर्थिक मदद भी करने लगा. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध भी कायम हो गए. लेकिन इस बात का नबी मोहम्मद को पता नहीं चला. करीब 1 साल तक उन के बीच इसी तरह का खेल चलता रहा.

इरफान नबी मोहम्मद को अकसर शराब पीने के लिए पैसे देता रहता था, इसलिए उस का इरफान पर विश्वास बना रहा. उसे पता नहीं था कि दोस्ती की आड़ में इरफान उस की पत्नी के साथ क्या गुल खिला रहा है. कहते हैं, गलत काम की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती. एक न एक दिन उस की पोल खुल ही जाती है. इरफान के साथ भी यही हुआ. एक दिन नबी मोहम्मद ने अपनी बीवी और इरफान को अपने ही कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. पोल खुलने पर इरफान और नूर फातिमा के चेहरों के रंग उड़ गए. वे घबरा उठे कि पता नहीं अब क्या होगा?

लेकिन नबी मोहम्मद ने उस समय उन दोनों से कुछ नहीं कहा. कोई भी मर्द अपनी पत्नी को किसी गैर की बांहों में देखेगा तो जाहिर है, उस का खून खौल उठेगा. मर्द भले ही बाहर गुलछर्रे उड़ाता फिरे, लेकिन अपनी पत्नी को वह खुद के साथ वफादार बनी रहने की उम्मीद रखता है. लेकिन पत्नी के बेवफा होने पर भी नबी मोहम्मद चुप रहा. उस के चुप रहने की वजह क्या थी, इस बात को न तो नूर फातिमा समझ सकी और न ही इरफान. इरफान के जाने के बाद नूर फातिमा के मन में डर बना था कि कहीं पति उस की पिटाई न करे. लेकिन नबी ने ऐसा भी नहीं किया, बल्कि उस ने पत्नी से साफ कहा, ‘‘तू एक बात कान खोल कर सुन ले, इरफान तेरे साथ जो कुछ कर रहा है, वह मैं फ्री में हरगिज नहीं होने दूंगा. उस ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है क्या. उस से कहना कि उसे मेरा रोजाना का खर्च पूरा करना होगा, वरना वह यहां न आए.’’

पति की बात सुन कर नूर फातिमा मन ही मन खुश तो हुई, लेकिन वह अचंभे में भी पड़ गई कि यह क्या कह रहा है. उस ने सोचा कि इरफान तो वैसे भी उस का आर्थिक सहयोग करता रहता है. उस के कहने पर वह थोड़ेबहुत पैसे पति के ऊपर भी खर्च कर देगा. यानी अब वह इरफान के साथ खुलेआम मौजमस्ती कर सकेगी. नूर फातिमा ने यह बात इरफान को बताई तो वह भी खुश हुआ. क्योंकि अब वह बेधड़क हो कर नूर फातिमा से मिल सकेगा. इस के बाद इरफान नूर फातिमा के लिए खानेपीने का इंतजाम करने और बिना किसी डर के उस से मिलने लगा. नबी मोहम्मद को उन दोनों के संबंधों पर कोई ऐतराज नहीं था.

इरफान की पत्नी को पता नहीं था कि पति के किसी दूसरी औरत से भी संबंध हैं. पत्नी के इसी विश्वास का इरफान फायदा उठा रहा था. यही नहीं, अब वह नूर फातिमा से निकाह करने की भी सोचने लगा था. उस ने इस बारे में उस से बात की तो वह भी तैयार हो गई. रही बात नबी मोहम्मद की तो उस ने भी सहमति जता दी. इस के बाद इरफान ने नबी मोहम्मद की मौजूदगी में नूर फातिमा से निकाह कर लिया. यह एक साल पहले की बात है. नूर फातिमा ने इरफान से निकाह जरूर कर लिया था, लेकिन रहती वह नबी मोहम्मद के साथ ही थी. इरफान 1-2 दिन के अंतर पर फातिमा के पास आता रहता था. इस तरह इरफान की 2 नावों की सवारी चलती रही.

चूंकि इरफान का कपड़ों की सेल का काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उस ने मारुति कार नबी मोहम्मद को दे दी और अपने लिए सेंट्रो कार खरीद ली. दोनों ही अलगअलग जगहों पर सेल लगाने लगे. कपड़ों की सेल से जो पैसे आते थे, नबी उन्हें इरफान को दे देता था. बदले में इरफान उसे उस की मजदूरी दे देता था. धीरेधीरे नबी मोहम्मद का स्वभाव बदलने लगा. वह चिड़चिड़ा हो गया. इरफान उस के यहां आता तो वह शराब के नशे में उसे गालियां देता और मारपीट करने पर उतारू हो जाता. इस के अलावा वह इरफान से पैसे ऐंठता. इरफान उस के मुताबिक पैसे देने में आनाकानी करता तो वह उस की पत्नी शहनाज के सामने उस की पोल खोलने की धमकी देता. मजबूरी में इरफान को उस के द्वारा मांगे गए पैसे देने के लिए मजबूर होना पड़ता.

इरफान की इसी कमजोरी का नबी मोहम्मद फायदा उठा रहा था. आए दिन की इस ब्लैकमेलिंग से इरफान परेशान रहने लगा था. उस ने नबी को कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. इरफान को डर लगा रहता था कि कहीं नबी मोहम्मद शहनाज को फातिमा के बारे में बता न दे.
यही वजह थी कि वह इस डर को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता था. इस के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह हमेशा के लिए फातिमा से संबंध खत्म कर ले और दूसरा यह कि नबी मोहम्मद का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दे.

नबी मोहम्मद को पैसे देने के बाद भी उसे इस बात का विश्वास नहीं था कि वह अपना मुंह बंद रखेगा. इस के लिए उस के दिमाग में एक ही आइडिया आया कि वह नबी मोहम्मद को ठिकाने लगा दे. ऐसा करने से उस की परेशानी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने वाली बात उस ने नूर फातिमा को भी नहीं बताई. इस काम को वह अकेला अंजाम नहीं दे सकता था, इसलिए उस ने अपने साथ काम करने वाले राकेश और सूरज हाशमी से बात की. राकेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के नगला भवानी गांव का रहने वाला था और दिल्ली में कच्ची कालोनी, मदनपुर खादर में रहता था. जबकि सूरज हाशमी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शुक्लागंज का रहने वाला था. वह भी दिल्ली में रह कर इरफान के साथ कपड़ों की सेल लगाता था.

इरफान ने दोनों साथियों के साथ नबी मोहम्मद को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजनानुसार इरफान ने 9 दिसंबर की शाम को नबी मोहम्मद को फोन कर के दिल्ली में जैतपुर के पुश्ते पर बुलाया. नबी मोहम्मद शराब के नशे में था. नबी मोहम्मद इस से पहले भी इरफान के बताए गए पते पर पहुंचता रहता था. इसलिए फोन आने पर 9 दिसंबर की रात करीब साढे़ 9 बजे मारुति कार नंबर डीएल 2सी आर 5093 से नोएडा से वह दिल्ली के लिए चल पड़ा.

उधर इरफान भी राकेश और सूरज हाशमी को अपनी सेंट्रो कार नंबर एचआर 26पी 6738 में बिठा कर जैतपुर पुश्ता की तरफ चल पड़ा. श्रीराम चौक से निकलने के बाद यमुना खादर में उन्होंने कार एक किनारे खड़ी कर दी और नबी मोहम्मद का इंतजार करने लगे. नबी मोहम्मद की गाड़ी दिखते ही इरफान ने उसे रुकवा लिया. फिर वे उसे यमुना खादर की तरफ ले गए. नबी मोहम्मद कुछ समझ पाता, तीनों ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी.

नबी मोहम्मद ने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन 3 लोगों के बीच वह अकेलानिहत्था क्या कर सकता था. तीनों उसे पीटते हुए झाडि़यों में ले गए. पिटतेपिटते नबी लगभग अधमरा हो गया तो उसे जमीन पर गिरा कर वहीं पड़ी ईंट से उस के सिर और चेहरे को कुचलने लगे. थोड़ी देर में नबी मोहम्मद की मौत हो गई. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए इरफान ने साथ लाए छुरे से उस का गला भी काट दिया. इरफान ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन निकाल लिया. काम हो जाने के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

लाश खादर में पड़ी थी, इसलिए जंगली जानवरों ने उस की गरदन और चेहरे का मांस खा लिया. अगले दिन इरफान मारुति कार से कुलेसरा नूर फातिमा के पास गया और उस ने नबी मोहम्मद का मोबाइल फोन उसे देते हुए कहा कि वह किसी काम से 2-3 दिनों के लिए बाहर गया है. मारुति कार फातिमा के यहां खड़ी कर के वह दिल्ली वापस आ गया.

पुलिस ने 11 दिसंबर की रात को ही इरफान के साथियों राकेश और सूरज हाशमी को भी गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने मारुति कार और सेंट्रो कार के अलावा मृतक और उन के मोबाइल फोन, छुरा आदि बरामद कर लिए. इस के बाद सभी को साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर रविंद्र कुमार तोमर कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

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