डैम से बरामद लाशें और काररवाई करती पुलिस आशीष धस्माना चाहता था कि उस के अस्पताल में जो भी हो, उस की मरजी से हो. नर्स निशा भी उस की चाहत में शामिल थी. जबकि निशा का प्रेमिल संबंध डा. एच.पी. सिंह से था. जब कई कारण एक साथ जुड़ गए तो आशीष ने एच.पी. सिंह को मारने की योजना बनाईएच.पी. सिंह तो बच गए, लेकिन निशा और विजय बेमौत मारे गए.   

उत्तराखंड स्थित सिखों का ऐतिहासिक गुरुद्वारा नानकमत्ता किसी बड़े तीर्थस्थल से कम नहीं है. यहीं पर नानकसागर डैम भी है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां लोगों की आवाजाही लगी रहती है. 8 सितंबर, 2014 सोमवार की शाम को नानकसागर बिजली कालोनी के कुछ युवक बनबसा में होने वाली सेना की भरती की तैयारी करने के लिए नानकसागर डैम के किनारे दौड़ लगा रहे थे. उसी दौरान उन की नजर झाड़ी में पड़े 2 मानव धड़ों पर पड़ी. इन में एक धड़ युवती का था और दूसरा युवक का. दोनों के ही सिर और हाथपांव गायब थे. मानव धड़ों को देख कर लड़के घबरा गए. उन्होंने लौट कर यह बात कालोनी वालों को बताई. इस बात को ले कर कालोनी में तहलका मच गया, लेकिन तब तक रात हो चुकी थी. 

सुबह को कालोनी के लोगों ने यह बात प्रतापपुर के प्रधान को बताई. ग्रामप्रधान उन लड़कों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. वहां वाकई 2 धड़ पड़े थे. ग्रामप्रधान ने यह सूचना प्रतापपुर पुलिस चौकीइंचार्ज डी.एस. बिष्ट और थाना नानकमत्ता को दी. खबर मिलते ही डी.एस. बिष्ट और थानाप्रभारी अरुण कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने इस घटना की सूचना डीआईजी अनंतराम चौहान, एसएसपी रिद्विम अग्रवाल, सीओ रामेश्वर डिमरी और सितारगंज के कोतवाल राजनलाल आर्य को भी दे दी थी. मामला गंभीर था, सूचना मिलने पर सारे पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जा पहुंचे

घटनास्थल पर झाड़ी में नग्नावस्था में पड़े युवती के धड़ के हाथपांव और सिर गायब थे. उस धड़ के पास ही 2 बोरे और पड़े थे, जिन में से एक बोरे में एक युवक का धड़ था, जबकि दूसरे में युवक और युवती के कटे हुए हाथपैर थे. सिर दोनों के ही गायब थे. धड़ और कटे अंगों को देख कर लग रहा था कि हत्यारों ने उन दोनो को मारने में कू्ररता की सारी हदें पार कर दी थीं. जिस झाड़ी में धड़ पड़े थे. वहीं पास में युवक का लोअर (पाजामा) टीशर्ट और युवती के कपड़े और चप्पलें भी पड़ी मिलीं. मृतकों के कपड़ों की तलाशी ली गई तो युवती के कपड़ों से एक चाबी के अलावा कुछ नहीं मिला.

पुलिस ने लाशों की शिनाख्त के लिए काफी कोशिश की, लेकिन लाशें चूंकि सिरविहीन थीं, इसलिए कोई भी उन्हें नहीं पहचान पाया. स्थानीय लोगों से पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय उधमसिंह नगर भिजवा दिया. इस के साथ ही थाना नानकमत्ता में दोहरी हत्या का केस दर्ज कर लिया गया. लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस ने आसपास के सभी थानाक्षेत्रों से उन के इलाके से गुमशुदा लोगों की जानकारी ली. लेकिन कहीं से भी किसी के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने आसपास के गांवों में भी मृतकों के बारे में पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.

जिन बोरों में लाशें मिली थीं, वह शंकर ब्रांड चोकर के थे. पशुओं के लिए सप्लाई किए जाने वाला यह चोकर इलाके के ही एक फ्लोर मिल द्वारा तैयार किया जाता था. पुलिस ने फ्लोर मिल मालिक से बात की तो पता चला कि उन का यह प्रोडक्ट खटीमा, बनबसा, टनकपुर, सितारगंज और नानकमत्ता के अलावा बरेली, पीलीभीत और रामपुर में भी सप्लाई होता है. चूंकि इस बात की पूरी संभावना थी कि जहांजहां शंकर ब्रांड चोकर सप्लाई होता है, वहीं कहीं युवक और युवती की हत्या की गई होगी. पुलिस ने उत्तराखंड से सटे उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, पीलीभीत और रामपुर जिलों में भी अपनी टीमें भेज कर मृतकों के बारे में पता लगाने का प्रयास किया, पर नतीजा कोई नहीं निकला. कहीं से किसी युवकयुवती के गायब होने की जानकारी नहीं मिली.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने लाशों के टुकड़ों को 72 घंटे के लिए मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. अगले दिन यानी 9 सितंबर को पुलिस ने नानकसागर डैम में नाव से मृतकों के सिरों की खोज की, लेकिन एक भी सिर नहीं मिल सकापुलिस अभी मृतकों के सिरों की तलाश कर ही रही थी कि मंगलवार को शाम 5 बजे विडौरा मझौला गांव के चरवाहे जागीर सिंह ने खकरा नदी के किनारे एक कुत्ते को नदी से काली पौलीथिन खींचते हुए देखा, जिस में से तेज दुर्गंध आ रही थी. जागीर सिंह ने यह बात गांव के प्रधान बलवंत सिंह को बताई. 

प्रधान बलवंत की सूचना पर सीओ जे.आर. जोशी और थानाप्रभारी अरुण कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने खकरा पुल से 5 सौ मीटर की दूरी पर काले रंग की पौलीथिन में पड़ा युवती का सिर बरामद किया. थोड़ी कोशिश के बाद युवक का सिर भी उसी नदी में मिल गया. उस के चेहरे पर चोट के निशान थे. हत्यारों ने निस्संदेह लाशों की पहचान छिपाने के लिए दोनों के सिरों को नानकसागर डैम से 4 किलोमीटर दूर विडौरा मंझोला के पास खकरा नदी के पास फेंका था

पुलिस ने बरामद सिरों की पड़ताल की तो युवक के चेहरे पर मुर्गे के पंख चिपके मिले. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवक और युवती की हत्या किसी ऐसे स्थान पर की गई होगी, जहां पर या तो मुर्गी पालन होता होगा या फिर उस जगह मुर्गे काटे जाते होंगे. पुलिस को जिस बोरे में बाकी अंग मिले थे, प्लास्टिक का वह बोरा भी मुर्गियों के दाने का ही था. पुलिस ने उसी दिन खकरा नाले में मिले दोनों सिरों का पोस्टमार्टम कराया और उन्हें भी 72 घंटे के लिए मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. न्यायालय के आदेश पर पुलिस द्वारा सिरों को डीएनए जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया, ताकि फोरेंसिक जांच से ये पता चल सके कि वे सिर नानकसागर डैम क्षेत्र से बरामद लाशों के ही हैं या नहीं

दोनों लाशों की शिनाख्त हो पाना पुलिस के लिए परेशानी का सबब बना हुआ था. उन की शिनाख्त के बिना जांच आगे बढ़ना संभव नहीं लग रहा था, क्योंकि लाशों के पास से ऐसी कोई भी चीज बरामद नहीं हुई थी, जिस के सहारे उन की पहचान हो पाती. कोई रास्ता देख पुलिस ने खकरा नाले से बरामद युवक के सिर का स्कैच बनवाया. युवती का चेहरा चूंकि क्षतविक्षत था, इसलिए उस के चेहरे का स्कैच बनना संभव नहीं थास्कैच बनवाने के बाद पुलिस ने युवक की पहचान हेतु उस के चेहरे के पोस्टर छपवा कर ऊधमसिंहनगर और चंपावत जिले के साथसाथ नेपाल बार्डर पर कई जगहों पर लगवा दिए. साथ ही इस स्कैच को सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी डाल दिया गया

पुलिस ने लापता लोगों की जानकारी जुटाने के लिए दिनरात एक कर रखा था. लापता लोगों का डाटा कलेक्ट करने के लिए एसओजी समेत 4 पुलिस टीमें उत्तर प्रदेश के बरेली, रामपुर और पीलीभीत जिले की खाक छान रही थीं. लेकिन कहीं कोई सफलता हाथ नहीं लगी. पुलिस अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही थी. कई जगह पुलिस टीमें भेजी गई थीं, पर नतीजा शून्य ही था. इसी बीच 15 सितंबर 2014 को बालकराम नाम के एक व्यक्ति ने बरेली के थाना प्रेमनगर में अपने बेटे विजय के गायब होने की लिखित तहरीर दी. 

बरेली के न्यू सिद्धार्थनगर, सैदपुर निवासी बालकराम ने अपनी तहरीर में लिखा था कि उन का बेटा विजय गंगवार बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में काम करता था. उसी अस्पताल में उस के साथ हरचुईया, जहानाबाद निवासी नर्स निशा भी काम करती थी. आशीर्वाद अस्पताल के बंद होने के कारण करीब 2 माह पहले एक डाक्टर विजय और निशा को बनबसा के अस्पताल में काम दिलाने की बात कह कर साथ ले गया था. बालकराम ने बताया कि विजय से उन की 5 सितंबर को मोबाइल पर आखिरी बार बात हुई थी. उस वक्त विजय ने बताया था कि वह बनबसा के धस्माना अस्पताल में काम कर रहा है. उस दिन के बाद विजय से घर वालों की कोई बात नहीं हो पाई तो वह बनबसा जा कर धस्माना अस्पताल के प्रबंधक से मिले. पता चला कि विजय और निशा 5 सितंबर की शाम को वहां से काम छोड़ कर चले गए थे

बरेली पुसिल को नानकमत्ता में 2 शव मिलने की बात पता थी. बालकराम की इस तहरीर से पुलिस को शक हुआ तो उस ने उन्हें नानकमत्ता में 2 लाशें मिलने वाली बात बता कर शवों को देखने की बात कही. इस पर बालकराम अपने परिवार के साथ थाना नानकमत्ता जा कर थानाप्रभारी से मिले. थानाप्रभारी अरुण कुमार ने बालकराम और उन के घर वालों को युवक के कटे अंग दिखाए तो उन्होंने पहचान कर बताया कि मृतक उन का बेटा विजयपाल ही था. बालकराम से निशा का पता भी मिल गया. युवक की शिनाख्त विजयपाल के रूप में हो जाने के बाद पुलिस ने युवती की शिनाख्त के लिए निशा के घर वालों से संपर्क किया, तो पता चला कि निशा भी गायब थी. उस के मातापिता की काफी समय से उस से बात नहीं हो पाई थी.

उस की संभावित हत्या की जानकारी मिलते ही उस के पिता पोशाकी लाल शर्मा और मां कलावती ने भी नानकमत्ता पहुंच कर कपड़ों और अन्य सामान के आधार पर युवती की लाश की शिनाख्त अपनी बेटी निशा शर्मा के रूप में कर दी. युवती की शिनाख्त निशा के रूप में हो गई थी. यह भी पता चल गया था कि वह बनबसा के धस्माना अस्पताल में केवल काम करती थी, बल्कि रहती भी वहीं थी. पुलिस ने बनबसा के धस्माना अस्पताल जा कर पूछताछ की तो इस बात की पुष्टि हो गई. पुलिस ने उस के कपड़ों से मिली ताले की चाबी से उस कमरे का ताला खोला, जिस में वह रहती थी तो वह आसानी से खुल गया

इस से पुलिस को भरोसा हो गया कि मृतक विजयपाल और मृतका निशा ही थे. इसी बीच निशा के मातापिता ने पुलिस को कुछ ऐसी बातें बताईं, जिन से लगता था कि निशा को कुछ ऐसे राज पता थे, जिन के खुलने के डर से उस की हत्या की गई थी. दरअसल, 6 सितंबर के बाद से बेटी से संपर्क होने के बाद निशा के आशंकित मातापिता ने उस की 4 वर्षीय बेटी रिया के साथ बनबसा स्थित धस्माना अस्पताल जा कर उस के बारे में पूछताछ की थी. लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया था कि वह नौकरी छोड़ कर जा चुकी है और उन्हें उस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. पोशाकीलाल द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर पुलिस ने अस्पताल के प्रबंधक आशीष धस्माना से पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

विजय और निशा के घर वाले धस्माना अस्पताल पर तरहतरह के आरोप लगा रहे थे. साथ ही वे उन दोनों की हत्या के लिए डा. एच.पी. सिंह को दोषी भी ठहरा रहे थे. क्योंकि डा. एच.पी. सिंह ही निशा और विजय को बरेली से धस्माना अस्पताल लाया था. 10 सितंबर की रात ऊधमसिंह नगर जिले की एएसपी टी.डी. वेला पुलिस टीम के साथ मृतक विजय गंगवार और निशा शर्मा के घर वालों के साथ धस्माना अस्पताल पहुंचीं. उन्होंने अस्पताल के कमरों की जांचपड़ताल की, साथ ही वहां के दस्तावेज भी देखे. लेकिन कोई भी काम की जानकारी नहीं मिली

मृतकों के मांबाप धस्माना अस्पताल के डा. एच.पी. सिंह को मुख्य हत्यारोपी बता रहे थे. लेकिन उन दोनों की हत्या किस ने और कहां की, इसे ले कर पुलिस कोई पुख्ता सुबूत नहीं जुटा पाई थी. ऐसी स्थिति में पुलिस जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी. क्योंकि ऐसा करने से केस कमजोर होने की संभावना थी. हालांकि इस डबल मर्डर केस के सूत्र धस्माना अस्पताल के इर्दगिर्द घूम रहे थे. जिस से इस बात को बल मिल रहा था कि विजय और निशा की हत्या की कोई कोई कड़ी धस्माना अस्पताल से ही जुड़ी है. पूरे मामले में डा. एच.पी. सिंह का नाम विशेष रूप से उभर कर रहा था. लेकिन पुलिस के सामने मजबूरी यह थी कि बिना किसी सुबूत के वह सफेदपोश लोगों पर हाथ नहीं डाल सकती थी

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रिद्धिमा अग्रवाल इस दोहरे हत्याकांड के शीघ्र खुलासे को ले कर बेहद गंभीर थीं. इसलिए उन्होंने इस केस की कमान खुद ही संभाल रखी थी. उन के साथ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक टी.डी. वेला के निर्देशन में नानकमत्ता पुलिस, एसटीएफ और एसओजी की टीमें जांच में जुटी थीं. 8 बेड और 22 कमरों वाले धस्माना अस्पताल के बारे में पता चला कि राजमार्ग पर बना यह अस्पताल 4 महीने पहले ही शुरू हुआ था. अस्पताल का इंचार्ज बरेली के डा. एच.पी. सिंह को बनाया गया था. निशा और विजय को भी डा. एच.पी. सिंह ही लाए थे. यह भी पता चला कि आशीश धस्माना, डा. एच.पी. सिंह, विजय और निशा अस्पताल में ही रहते थे.

पुलिस जांच के दौरान जानकारी मिली कि 6 सितंबर को विजय और निशा अस्पताल के मेडिकल स्टोर में मौजूद कर्मचारी से अपना हिसाब ले कर चले गए थे. यह भी पता चला कि इस के बाद अस्पताल परिसर में ही निशा की डा. एच.पी. सिंह से बात भी हुई थी. अपनी जांच में पुलिस धस्माना अस्पताल के संचालक डा. आशीश धस्माना और डा. एच.पी. सिंह सहित एक दर्जन से अधिक लोगों से पूछताछ कर चुकी थी. इस पूछताछ से पता चला कि डा. एच.पी. सिंह और निशा के बीच केवल अकसर बातचीत होती थी, बल्कि तथाकथित रूप से दोनों के बीच अवैध संबंध भी थे

इस जानकारी के बाद पुलिस को लगा कि यह प्रेमत्रिकोण में हुई हत्या का मामला हो सकता है. दरअसल पुलिस को शक था कि निशा और विजय के बीच अवैधसंबंध रहे होंगे और डा. एच.पी. सिंह के बीच में जाने की वजह से यह मामला इस अंजाम तक पहुंच गया होगालेकिन निशा के घर वालों ने बताया कि विजय निशा का प्रेमी नहीं, बल्कि भाई था. उन के अनुसार निशा की विजय से 3 साल पहले मुलाकात हुई थी. उस का चूंकि कोई भाई नहीं था, इसलिए विजय ने तभी उसे अपनी बहन बना लिया था. निशा उसे न केवल अपना भाई मानती थी, बल्कि पिछले 3 सालों से उसे राखी भी बांध रही थी. इस बार भी रक्षाबंधन पर विजय घर आया था और निशा ने उसे राखी बांधी थी. पुलिस को विजय के कटे हाथ की कलाई पर भी राखी बंधी मिली थी.

इस जानकारी के बाद शक की सुई घूम कर एक बार फिर से डा. एच.पी. सिंह और अस्पताल के संचालक आशीष धस्माना पर टिक गई. हकीकत जानने के लिए पुलिस ने अस्पताल से जुड़े कई लोगों के साथसाथ डा. एच.पी. सिंह से भी कड़ी पूछताछ की. लेकिन कोई खास जानकारी मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया. इस के बाद पुलिस ने लोहाघाट के एक फार्मासिस्ट को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. दरअसल धस्माना अस्पताल में जो मेडिकल स्टोर था, वह लोहाघाट के इसी फार्मासिस्ट के लाइसेंस पर चल रहा था. लेकिन उस से पूछताछ से भी कोई नतीजा नहीं निकला

आखिर एएसपी और एसओजी प्रभारी ने एक बार फिर डा. एच.पी. सिंह और आशीष धस्माना को हिरासत में ले कर दोनों से करीब 5 घंटे तक गहन पूछताछ की. लेकिन दोनों से कोई खास जानकारी नहीं मिल पाई. जब कहीं कोई सूत्र हाथ नहीं लगा तो पुलिस का ध्यान निशा के पति विनोद की तरफ गया. दरअसल, निशा काफी दिनों से अपने पति विनोद से अलग रह रही थी. उस ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करा रखा था. कहीं परेशान हो कर विनोद ने ही तो निशा और विजय की हत्या नहीं कर दी हो, यह सोच कर पुलिस ने पूछताछ के लिए विनोद को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में विनोद ने बताया कि वह स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस का कर्मचारी था और तीन दिन की छुट्टी ले कर पुलिस के डर से इधरउधर छिपता फिर रहा था. दरअसल, निशा ने उस के खिलाफ बरेली में मुकदमा दर्ज कराया था. जिस की तारीख पर हाजिर होने पर कोर्ट ने उस के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह गांव रिछोला, थाना नबाबगंज में अपने फुफेरे भाई सोमपाल के घर रह रहा था. निशा की हत्या की बात उसे 16 सितंबर के बाद पता चली थी. विनोद शर्मा ने बताया कि वह निशा को अपने साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने उस से शपथ पत्र पर तलाक ले लिया था. विनोद से पूछताछ में भी पुलिस के हाथ निराशा ही लगी. इस के बावजूद पुलिस ने केस खुलने तक उसे हिरासत में रखने का निर्णय लिया.

इस मामले की जांच 2 राज्यों में चल रही थी. पुलिस ने इस केस की तह तक जाने के लिए दिनरात एक कर दिया था, लेकिन उसे कहीं भी आशा की कोई किरण नजर नहीं रही थी. तहकीकात के दौरान पुलिस को बनबसा नानकमत्ता रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरे में 6 सितंबर की रात एक अर्टिगा कार के आनेजाने की फुटेज भी मिली थीपुलिस ने पता किया तो जानकारी मिली कि धस्माना अस्पताल के संचालक आशीष धस्माना के पास अर्टिगा कार है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस ने यह भी पता लगा लिया कि आशीष धस्माना के फार्महाउस में पोल्ट्री फार्म भी है. इस जानकारी के बाद पुलिस के शक की सुई आशीष धस्माना और उस के फार्महाउस की ओर घूम गई. अब पुलिस ने अपना ध्यान पूरी तरह उसी पर केंद्रित कर के आगे की जांच बढ़ाने का फैसला किया.

जांच के दौरान पुलिस ने गुप्त रूप से धस्माना अस्पताल जा कर छानबीन की. इस छानबीन में पुलिस को अस्पताल में एक ऐसा कमरा मिला, जो हर वक्त बंद रहता था. पुलिस ने उस कमरे में जा कर जांचपड़ताल की तो वहां से काफी मात्रा में बीयर की खाली बोतलें और केन मिलीं. अनुमान लगाया गया कि वहां पर कोई कोई आए दिन बीयर पीता था. लेकिन वहां ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस के तार इस केस से जुड़ पाते. अलबत्ता पुलिस को पूरी तरह यकीन जरूर हो गया कि इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाला धस्माना अस्पताल का मालिक ही हो सकता है. इसी के मद्देनजर पुलिस ने धस्माना को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की.

धस्माना ने पुलिस को चकमा देने की काफी कोशिश की, लेकिन जब उसे लगने लगा कि वह पुलिस के जाल में बुरी तरह से फंस चुका है, तो उस ने सब कुछ उगल दिया. उस ने पुलिस को बताया कि डा. एच.पी. सिंह की वजह से उस का अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच चुका था. उस ने यह भी स्वीकार किया कि विजय और निशा की हत्या उस ने अपने ड्राइवर इदरीस अहमद के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने आशीष धस्माना के ड्राइवर इदरीस अहमद को अस्पताल से ही गिरफ्तार कर लिया. इदरीस कानुपर का रहने वाला था. पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर विजय और निशा की हत्या से पहले उन्हें बेहोश करने के लिए इस्तेमाल की गई सिरिंज और इंजेक्शन के अलावा वह छुरा और चापड़ भी बरामद कर लिए, जिन से उन के शरीर के टुकड़े किए गए थे.

आशीष धस्माना ने पुलिस को बताया कि डा. एच.पी. सिंह, विजय और निशा की वजह से उस की और उस के अस्पताल की बहुत बदनामी हुई थी. उस का अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच गया था. इसलिए उस ने उन तीनों को मौत के घाट उतारने का फैसला किया था. सब से पहले वह डा. एच.पी. सिंह को मारना चाहता था, लेकिन घटना वाले दिन वह थोड़ी देर पहले अस्पताल से निकल गया थाइसी बीच निशा और विजय उस के सामने गए. निशा और विजय अधिकांशत: डा. एच.पी. सिंह के संपर्क में रहते थे और उसी की बात मानते थे. इसलिए धस्माना को इन दोनों पर भी गुस्सा था. इसी लिए उस ने पहले इन्हीं दोनों को अपना शिकार बना दिया

आशीष धस्माना का परिवार मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था. वर्षों पहले उस के दादा पौड़ी गढ़वाल छोड़ कर बनबसा चले आए थे. वह आस्ट्रेलिया में ईएनटी सर्जन रह चुके थेउन्होंने 2002 में बनबसा से करीब 5 किलोमीटर दूर देवीपुरा (गढ़ीगोठ) में जमीन खरीद कर हरिराम धस्माना बरुश मैकुली मेमोरियल हास्पिटल के नाम से अस्पताल की स्थापना की थी. इस अस्पताल को आस्ट्रेलिया के एक ट्रस्ट द्वारा स्थापित किया गया था. आस्ट्रेलिया के उस ट्रस्ट के माध्यम से अस्पताल के नाम पर काफी पैसा आने लगा था. उस अस्पताल को भी आशीष धस्माना ही चलाता था. आशीष धस्माना के पिता शैलेंद्र धस्माना कानपुर में सरकारी नौकरी में थे. उन्होंने कानपुर के किदवईनगर में अपना मकान बनवा रखा था. वहीं पर आशीष और इदरीस की मुलाकात हुई थी और उस ने इदरीस को अपना ड्राइवर रख लिया था.

कुछ समय बाद आशीष धस्माना ने पुराने अस्पताल की जगह पर होटल मैनेजमेंट का कोर्स कराने वाला इंस्टीट्यूट खोल दिया था. उसी समय आशीष ने सूखीढांग के धूरा पाताल में काफी जमीन खरीद ली थी. ट्रस्ट के नाम पर आस्ट्रेलिया से आए पैसे का उस ने भरपूर लाभ उठाया और उसी पैसे से उस ने एक शानदार कोठी भी बनवाईलेकिन कोठी बनवाने के बावजूद वह ज्यादातर बनबसा में ही रहता था. कोठी पर वह कभीकभार दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने जाया करता था. आशीष धस्माना ने लखनऊ में भी एक मकान खरीद लिया था. फिलहाल उस के पिता शैलेंद्र धस्माना और उस की पत्नी बच्चे लखनऊ के उसी मकान में रह रहे थे.

साल भर पहले आशीष ने स्ट्रांग फार्म गेट के पास राजमार्ग पर अपना नया अस्पताल बनाया, जो 4 महीने पहले ही शुरू हुआ था. आशीष धस्माना शुरू से ही पैसे में खेलता आया था. पैसे के बल पर उस ने क्षेत्र के कई नेताओं से अच्छे संबंध बना लिए थे. उन्हीं नेताओं की बदौलत आशीष ने अपना करोबार बढ़ाया और लकड़ी की कालाबाजारी शुरू कर दीकुछ समय पहले उस के अस्पताल से बेशकीमती लकड़ी भी पकड़ी गई थी. आशीष आए दिन अस्पताल में बनबसा के पुलिस अफसरों और नेताओं को पार्टी दिया करता था. यह सब अस्पताल के स्टाफ के सामने ही होता था और पार्टी में डा. एच.पी. सिंह भी शामिल होते थे. वहीं से उन्होंने आशीष धस्माना की कमजोरी पकड़ ली थी

जांच में यह बात भी सामने आई कि धस्माना के अस्पताल में मरीजों का उपचार कम और अय्याशी ज्यादा होती थी. इस की तसदीक अस्पताल के आसपास रहने वाले लोगों ने भी की. पुलिस संरक्षण प्राप्त होने के कारण धस्माना को किसी बात का डर नहीं थाआशीष धस्माना शराब और शबाब का शौकीन था. वह अपने अस्पताल में आई सुंदर नर्सों को पैसे के बल पर फंसा कर उन के साथ अय्याशी करने लगा था. जिस की वजह से उस के अस्पताल का कामकाज ठप होने लगा था.

डा. एच.पी. सिंह ने धस्माना अस्पताल में कामकाज संभालते ही अपना पूरा ध्यान अस्पताल के मरीजों की देखरेख पर केंद्रित कर दिया था. उन के काम को देख कर आशीष धस्माना भी काफी खुश था. इसलिए उस ने अस्पताल की पूरी देखरेख का जिम्मा उन्हीं को सौंप दिया थाइसी बीच डा. एच.पी. सिंह ने अपनी कार का लोन चुकाने के लिए धस्माना से साढ़े 12 लाख रुपए उधार लिए और साथ ही अस्पताल के लिए स्टाफ बढ़ाने की बात की. डा. एच.पी. सिंह बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में काम कर चुके थे और निशा विजय को पहले से ही जानते थे. निशा देखनेभालने में जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार और मिलनसार स्वभाव की थी. वह डा. एच.पी. सिंह की नजरों में पहले से ही चढ़ी हुई थी.

निशा ग्राम हरचुईया, थाना जहानाबाद, पीलीभीत निवासी पोशाकीलाल की बेटी थी. उन की 2 ही बेटिया थीं. उन के पास गांव में जुतासे की मात्र 4 बीघा जमीन थी. उसी के सहारे उन्होंने अपनी बेटियों का पालनपोषण किया था. पोशाकीलाल की बड़ी बेटी राजेश्वरी विकलांग थी. उन की छोटी बेटी निशा ने जैसेतैसे हाईस्कूल पास कर लिया था. निशा देखनेभालने में खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह घर के बाहर लोगों से अपने पिता को बैंक मैनेजर बताती थी. जबकि हकीकत में उस के पिता पोशाकीलाल बरेली के एक बैंक में चौकीदार की नौकरी करते थे.

3 साल पहले निशा की मुलाकात विजय से हो गई थी. विजय तब बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में वार्डबौय की नौकरी करता था. विजय से पहली मुलाकात के बाद निशा काम की तलाश में उस के पास जाने लगी थी. विजय से जानपहचान बढ़ने के बाद निशा ने उसी के साथ अस्पताल में नौकरी कर ली और गांव से ही अस्पताल जाने लगी. उसी दौरान उस ने विजय को अपने मातापिता से भी मिलवाया. विजय न्यू सिद्धार्थनगर, सैदपुर, बरेली निवासी बालकराम का बेटा था. हंसमुख और मिलनसार विजय ने बरेली के आदर्श निकेतन इंटर कालेज से 10वीं तक पढ़ाई की थी. वह शादीशुदा और 3 बेटियों का बाप था

इसी दौरान निशा की शादी जिला पीलीभीत, थाना गजरौला के गांव प्रेमशंकर नवदीप निवासी तुलसीराम के बेटे विनोद से हो गई. निशा से शादी के बाद विनोद खुश था. क्योंकि निशा देखनेभालने में काफी सुंदर थी. लेकिन शादी के बाद निशा केवल 15 दिन ही अपनी ससुराल में रही. इस के बाद वह न तो दोबारा अपनी ससुराल गई और न ही उस ने विनोद को अपने यहां बुलाया. इसी बात को ले कर दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव बढ़ा और मामला तलाक तक पहुंच गया. निशा भले ही विनोद के साथ 15 दिन ही रही थी, इस के बावजूद वह एक लड़की की मां बन गई थी. उस के मां बनने से विनोद हैरत में था. उसे लगता था कि शादी से पहले ही निशा का किसी युवक के साथ चक्कर चल रहा था, जिस से वह गर्भवती हो गई थी. अपनी बेटी के इसी पाप को छिपाने के लिए पोशाकी लाल ने आननफानन में निशा की शादी उस के साथ कर दी थी, ताकि समाज में किरकिरी न हो. 

बहरहाल, जब निशा ससुराल नहीं गई तो उस के पिता पोशाकीलाल ने शिवपुरिया, जहानाबाद, जिला पीलीभीत का घर और जुतासे की 4 बीघा जमीन बेच दी और वह बरेली में किराए का मकान ले कर सपरिवार रहने लगे थे. पुलिस पूछताछ में धस्माना अस्पताल के मालिक आशीष धस्माना ने बताया कि डा. एच.पी. सिंह निशा और विजय को जब पहली बार अस्पताल में नौकरी के लिए लाया था तो उस ने दोनों को पतिपत्नी बताया था. निशा को शादीशुदा जान कर अस्पताल स्टाफ के लोग निशा की तरफ आंख उठा कर नहीं देखते थे. इसी वजह से अस्पताल के किसी भी कर्मचारी को डा. एच.पी. सिंह और निशा के बीच संबंधों का पता नहीं चल सका था.

धस्माना ने बताया कि उसी की तरह डा. एच.पी. सिंह भी शराब और शबाब का शौकीन था. इस बात की जानकारी उसे तब हुई, जब उसे पता चला कि डा. एच.पी. सिंह के अस्पताल की एक पूर्व नर्स और निशा के साथ अवैधसंबंध थे. उस की हकीकत जानने के लिए वह चोरीछिपे डा. एच.पी. सिंह के पीछे लग गया था. उसी दौरान उसे निशा और विजय की हकीकत भी पता चली. उन दोनों के बीच पत्नीपति का रिश्ता नहीं था, बल्कि डा. एच.पी. सिंह के काफी समय से निशा के साथ अवैधसंबंध थे. इसी सच्चाई को उजागर करने के लिए धस्माना इन दोनों के पीछे पड़ गया था, ताकि निशा और एच.पी. सिंह को रंगेहाथों पकड़ कर उन की सच्चाई को उजागर कर सके.

धस्माना के अनुसार डा. एच.पी. सिंह ने अस्पताल को केवल अय्याशी का अड्डा बना दिया था, बल्कि शराब और शबाब के चक्कर में उस ने कई केस भी बिगाड़ दिए थे. जिस की वजह से अस्पताल की छवि धूमिल होती जा रही थी. निशा चूंकि देखनेभालने में खूबसूरत थी, इसलिए वह उसे डा. एच.पी. सिंह से अलग कर के अपने चंगुल में फंसाना चाहता था. इस के लिए आशीष धस्माना ने निशा के साथ नजदीकियां बढ़ाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस के पास तक नहीं फटकती थी. जिस की वजह से वह उस से चिढ़ने लगा था. इसी दौरान आशीष ने डा. एच.पी. सिंह को औपरेशन थिएटर में निशा के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था

रंगहाथों पकड़े जाने के बाद डा. एच.पी. सिंह ने आशीष से माफी मांगी और भविष्य में ऐसा काम करने की कसम भी खाई थी. लेकिन डा. एच.पी. सिंह धस्माना से कहीं ज्यादा तेजतर्रार थे. वह आशीष की हकीकत से पहले से ही वाकिफ थे. उन्होंने अस्पताल के पूर्व स्टाफ से मिल कर उस की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली थी. आशीष धस्माना को अपने इशारों पर चलाने के लिए डा. एच.पी. सिंह ने एक गहरी चाल चली. उन्होंने निशा और विजय के सहयोग से एक दिन धस्माना की अय्याशी की मोबाइल क्लिपिंग बनवा ली, ताकि उसे ब्लैकमेल किया जा सके. इस बात की जानकारी आशीष धस्माना को हो भी गई थी. आशीष की क्लिपिंग बनाने के बाद तो डा. एच.पी. सिंह पूरी तरह से लापरवाह हो गए थे. वह सुबह को ही शराब पी लेते और मरीजों की ओर से लापरवाह हो कर मौजमस्ती में डूब जाते. कार लोन चुकाने का बहाना कर के वह आशीष धस्माना के साढ़े 12 लाख रुपए पहले ही हड़प चुके थे.

पुलिस पूछताछ के दौरान धस्माना ने बताया कि उस ने डा. एच.पी. सिंह को विजय और निशा से यह कहते हुए सुन लिया था कि हमें यहां की नौकरी छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि यह अस्पताल जल्दी ही बंद होने वाला है. इस बात से धस्माना को जबरदस्त झटका लगा. केवल इतना ही नहीं, डा. एच.पी. सिंह ने धस्माना को उस की बीवी की नजरों में गिराने के लिए उस की अय्याशी की मोबाइल क्लिपिंग उस की पत्नी तक पहुंचा दी थीजिस के बाद धस्माना और उस की पत्नी के बीच मनमुटाव हो गया था. इस के बाद धस्माना दिन में कईकई बोतल बीयर पीने लगा था. उसे लगने लगा था कि उस की बरबादी का कारण डा. एच.पी. सिंह ही है. उस ने फैसला कर लिया था कि वह डा. एच.पी. सिंह को मार डालेगा. इस के साथ ही उसे निशा और विजय पर भी गुस्सा आता था, क्योंकि वे दोनों डा. एच.पी. सिंह का साथ दे रहे थे.

धस्माना और उस के ड्राइवर इदरीस के बीच काफी घनिष्ठ संबंध थे. दोनों साथसाथ बैठ कर शराब पीते थे. इदरीस को अपना खास मान कर धस्माना ने उसे डा. एच.पी. सिंह की सारी काली करतूत बताई और साथ ही उस की हत्या की भी बात की. धस्माना की वजह से इदरीस को किसी बात की कमी नहीं थी. अच्छा खानापीना, पहनना, रहना, सब कुछ आशीष की जिम्मेदारी थी. इसी वजह से इदरीस उस का मुरीद था. धस्माना ने इदरीस के साथ मिल कर डा. एच.पी. सिंह को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. डा. एच.पी. सिंह धस्माना से किए वादे के अनुसार तो कोई नया डाक्टर लाए थे और ही उन्होंने उधार के साढ़े 12 लाख रुपए वापस किए थे. साथ ही वह निशा और विजय को भी नौकरी छोड़ने के लिए कह रहे थे. इन बातों ने आशीष के गुस्से को और भी बढ़ा दिया.

पुलिस पूछताछ में आशीष धस्माना ने बताया कि डा. एच.पी. सिंह की वजह से उस के अस्पताल की साख खराब हो रही थी. वह मरीजों का इलाज गंभीरता से नहीं करते थे, जिस से उसे अपना पैसा खर्च कर के बिगड़े हुए केस वाले मरीजों को दूसरे अस्पतालों में भेजना पड़ता था. इन सब बातों ने उसे मानसिक रूप से परेशान कर दिया थाडा. एच.पी. सिंह को मारे की योजना 6 सितंबर की थी, लेकिन उन्हें कुछ शक हो गया और वह बरेली चले गए. धस्माना और इदरीस हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सके. डा. एच.पी. सिंह के बरेली जाने के बाद निशा और विजय ने भी छुट्टी पर जाने की बात कह कर पैसे मांगे. इस पर धस्माना ने दोनों को 5 सौ और 3 सौ रुपए दिलवा दिए.

धस्माना ने बताया कि वह डा. एच.पी. सिंह को मारना चाहता था, लेकिन शक होने की वजह से वह निकल गया था. जब निशा और विजय भी जाने लगे तो उसे झटका लगा. वे दोनों अपने कमरों से बैग ले कर निकले तो आशीष ड्राइवर इदरीस की मदद से बहाना कर के निशा और विजय को अपने साथ अस्पताल से डेढ़ किलोमीटर दूर अपने पेंटर फार्म पर ले गया. वहां जा कर दोनों ने पहले शराब पीनशे में डूब कर आशीष और इदरीस ने निशा से पूछताछ की तो पता चला कि डा. एच.पी. सिंह का इरादा आशीष धस्माना के अस्पताल को नुकसान पहुंचाने का था. यही नहीं, वह उस के साढ़े 12 लाख रुपए भी हड़प लेना चाहता था. उन्होंने बताया कि डा. एच.पी. सिंह जानबूझ कर मरीजों के इलाज में लापरवाही कर रहे हैं, जिस में निशा उन की प्रेमिका होने के नाते और विजय पैसे के लालच में उन का साथ दे रहे थे.

धस्माना निशा के पीछे पड़ा था, लेकिन वह डा. एच.पी. सिंह के प्यार में पागल थी. नशे की हालत में धस्माना के गुस्से का बांध टूट गया. गुस्से के आवेग में उस ने पास पड़ा डंडा उठा कर निशा के सिर पर मार दिया. जिस से वह गिर कर बेहोश हो गई. निशा के बेहोश होते ही धस्माना ने अपना बाकी गुस्सा विजय पर उतारते हुए उसे खूब मारापीटा, जिस से वह भी अधमरा हो गयाइस के बाद आशीष धस्माना ने इदरीस के साथ मिल कर पहले निशा और फिर विजय को जबरन फिनार्गन और फोर्टविन के इंजेक्शन लगाए. कुछ देर बाद दोनों पूरी तरह बेहोश हो गए. उन के बेहोश होते ही धस्माना ने इदरीस के सहयोग से दोनों की गला दबा कर हत्या कर दी. पुलिस पूछताछ में धस्माना ने बताया कि पहले उस ने और इदरीस ने दोनों को बोरों में भर कर ले जाने की कोशिश की, लेकिन दोनों की लाशें बोरों में नहीं आईं.

इस के बाद दोनों बाजार जा कर चिकन और बीयर की बोतलें खरीद कर लाए. बाजार से आने के बाद दोनों ने साथसाथ बैठ कर बीयर पी. जब दिमाग पर नशे का सुरूर चढ़ने लगा तो दोनों ने एक बड़े छुरे और चापड़ से पहले दोनों की गर्दन काट दी. बाद में इदरीस ने शवों को ठिकाने लगाने के लिए उन के हाथपैर काट कर टुकड़े कर दिए. पलभर में आशीष धस्माना और इदरीस कसाई बन बैठे थे. दोनों शवों के टुकड़ेटुकड़े कर बोरों में भर कर बोरे धस्माना की कार में रखे और उन्हें ठिकाने लगाने के लिए बरेली की तरफ चल दिए. दरअसल आशीष धस्माना ने अब इस हत्याकांड का रुख मोड़ कर डा. एच.पी. सिंह को फंसाने के लिए फूलप्रूफ योजना बना ली थी. इसी योजना के तहत उन दोनों की लाशें बरेली क्षेत्र में फेंकने की थी, ताकि पुलिस उन की हत्याओं का शक डा. एच.पी. सिंह पर करे और उसे गिरफ्तार कर ले

लेकिन डा. एच.पी. सिंह की किस्मत अच्छी थी. जैसे ही आशीष और इदरीस दोनों लाशों को गाड़ी में डाल कर बरेली जाने के लिए निकले. रास्ते में पता चला कि सत्रहमील पुलिस चौकी पर पुलिस की चैकिंग चल रही है. धस्माना किसी भी कीमत पर रिस्क नहीं लेना चाहता था. इसलिए उस ने इदरीस से गाड़ी को सितारगंज मार्ग पर ले चलने को कहा. जब दोनों गाड़ी ले कर नानकसागर डैम पर पहुंचे तो वहां ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों ने उन की कार पर टार्च की लाइट मारी. इस से धस्माना और इदरीस बुरी तरह घबरा गए. उन्होंने तुरंत लाश वाले बोरों को वहीं पर रास्ते के किनारे झाड़ी में फेंक दिए और आगे बढ़ गए. वहां से 4 किलोमीटर आगे जा कर उन्होंने सितारगंज रोड पर खकरा नदी के पुल से पहले विजय और निशा के बैग फेंक दिए

पुल पर जा कर उन्होंने दोनों काली पौलीथिन भी नीचे फेंक दी, जिन में निशा और विजय के सिर थे. बाद में पुलिस ने उन की निशानदेही पर जगपुड़ा पुल के नीचे से हत्या में प्रयुक्त खून से सना चापड़ और चाकू भी बरामद कर लिया था. धस्माना अस्पताल से वह अर्टिगा कार, जिस में दोनों लाशों को डाल कर ले जाया गया था, पुलिस ने कब्जे में ले ली थी. कार की डिग्गी में खून के दाग भी मिले. यही नहीं, पेंटर फार्म जहां पर दोनों हत्याएं की गईं, की तलाशी लेने पर घटनास्थल के नीचे के कमरे से फिनार्गन और फोर्टविन के 2 इंजेक्शन, एक प्रयोग की गई सीरिंज और फोर्टविन और फिनार्गन के टूटे हुए2 एंपुल भी मिले. इस के अलावा, शंकर ब्रांड चोकर का एक प्लास्टिक का बैग और चार काले पौलीथिन भी बरामद हुए.

आशीष धस्माना को विजय और निशा की हत्या करने का कोई अफसोस नहीं था. उस ने पुलिस के सामने ही कहा, ‘‘अगर मैं छूट कर आया तो 3 दिन के अंदर डा. एच.पी. सिंह को भी मार दूंगा.’’ 

पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत दर्ज किए गए मुकदमे को आशीष धस्माना और इदरीस के खिलाफ नामजद कर दिया था. दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इस तरह यह ब्लाइंड डबल मर्डर 15 दिनों में जा कर खुला.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

  

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