सरदार अमरजीत की करोड़ों की दौलत हथियाने के लिए रोहित चोपड़ा और स्वर्ण सिंह ने ऐसा षडयंत्र रचा था कि अगर वे अपनी योजना में सफल हो जाते तो आज उन की जगह अमरजीत (मृतक) के बेटे सलाखों के पीछे होते.  

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरेधीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था. वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में आने की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि वह खाना समय पर ही खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गईं तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आएकई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर आने की सूचना दे दीगुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरण सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया. गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था.

वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर इस के बदले बरनाला में उन्होंने दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया. अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरण सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठनाबैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था. जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला.

उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा. उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता था. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता था.अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ कमाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी. बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था.

उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे. उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे. कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

 इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद ही इस की जांच शुरू कर दी. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया.

अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन के घर छोड़ दिया था. पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19-2277 था.

उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और अंत में उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार.स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरन सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने यूपी पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी. इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा. एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था किमेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’ अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’  लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

 किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिलखारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिलखारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिलखारिज. पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिलखारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा. उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 -2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी गई है.’’ नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के साथ जाते देख लिया था. अंबालादिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया. शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्होंने उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. वहीं लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए. 

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरन और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना गया.

  पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरन सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

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