आशीष अपने घर में सब से छोटा था, इसलिए उसे मम्मीपापा का ही नहीं, बल्कि बड़े भाई का भी भरपूर प्यार मिला. लेकिन 18 साल का होने के बाद एक दिन आशीष ने न सिर्फ मम्मीपापा बल्कि बड़े भाई का भी कत्ल कर दिया. परिवार का दुलारा आखिर क्यों बन गया क्रूर हत्यारा?

घर में मौजूद तमाम लोग खड़ेखड़े यही सोच रहे थे कि आखिर इन तीनों की किसी से क्या दुश्मनी रही  होगी, जो तीनों को इतनी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था. मुंशी बिंद और पत्नी देवंती देवी की खून से लथपथ लाशें कमरे में फर्श पर आड़ीतिरछी पड़ी हुई थीं, जबकि रामाशीष की लाश घर के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. तीनों की गला रेत कर हत्या की गई थी. शादी कार्यक्रम में दोबारा आ जाने से आशीष बच गया था. सब की जुबान पर यही चर्चा थी कि अगर आशीष भी घर पर रहा होता तो हत्यारे उसे भी नहीं बख्शते, बेरहमी से उस की भी जान ले लेते.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के थाना नंदगंज के अंतर्गत एक गांव कुसुम्ही कला खिलवा पड़ता है. इसी गांव में 45 वर्षीय मुंशी बिंद अपनी पत्नी देवंती देवी और 2 बेटों रामाशीष (20 साल) और आशीष (18 साल) के साथ हंसीखुशी से रहता था. मुंशी बिंद का परिवार छोटा था, जिस में सब हंसीखुशी से रहते थे. मुंशी बिंद मुंबई में रह कर टाइल्स लगाने का काम करता था. इस काम से उसे अच्छा मुनाफा होता था. 6 जून, 2024 को वह एक जरूरी काम की वजह से मुंबई से घर आया था, लेकिन कुछ परेशानी की वजह से वह काम पूरा नहीं हो पाया था, इसलिए उसे कुछ दिनों तक गांव में ही रुकना पड़ा. 

बात 8 जुलाई, 2024 की थी. इस दिन गांव में मुंशी बिंद के पट्टीदार के घर शादी थी. शादी में मुंशी बिंद के परिवार को भी आमंत्रित किया गया था. पत्नी और दोनों बेटों के साथ वह शादी में शामिल हुआ और देर रात तक पार्टी का आनंद लिया. उसे अब थकान हो रही थी सो रात 11 बजे के करीब परिवार सहित वह घर लौट आया. उस के बाद बाहर के कमरे में मुंशी बिंद पत्नी के साथ सो गया और दोनों भाई रामाशीष और आशीष अंदर के कमरे में सो गए थे. 

पता नहीं छोटे बेटे आशीष को नींद क्यों नहीं आ रही थी. वह बिस्तर पर उधरइधर करवटें बदलता रहा. बेचैनी काफी बढ़ गई तो आशीष बिस्तर से नीचे उतरा और बिना किसी से कुछ बताए फिर शादी वाले कार्यक्रम में चला गया. वहां डीजे का कार्यक्रम चल रहा था. लोग संगीत पर थिरक रहे थे. आशीष भी उन्हीं के बीच हो लिया और कार्यक्रम का लुत्फ ले रहा था. पता नहीं क्यों उस का मन अभी भी बेचैन और परेशान सा लग रहा था.

खैर, देर रात 2 बजे तक डीजे पर डांस चलता रहा. आशीष जब खुद को थका हुआ महसूस करने लगा तो वह उस कार्यक्रम को बीच में छोड़ कर वापस घर लौट गया और फिर थोड़ी ही देर में दौड़ता भागता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां अभी भी डीजे बज रहा था. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. चेहरे पर घबराहट और परेशानियों की लकीरें स्पष्ट उभरी हुई नजर आ रही थीं. जब उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने डीजे को बंद करा दिया और हांफते हुए हाथ का इशारा अपने घर की तरफ किया और बोला, ”वहां…वहां…किसी ने मेरे मम्मीपापा और भाई को मार डाला है.’’ इतना कह कर दहाड़ मार कर वह रोने लगा. 

किस ने किए 3 मर्डर

आशीष के रोने की आवाज सुन कर शादी वाली जगह पर सन्नाटा छा गया और जो जहां था, उस के पांव वहीं थम गए. वे दौड़तेभागते आशीष के घर पहुंच गए. घर पर आशीष के मम्मीपापा और भाई की खून से सनी लाशें पड़ी थीं. रात में ही तीनों की हत्या की खबर पूरे गांव में फैल गई थी. यह खबर जैसे ही उस के बड़े भाई रामप्रकाश बिंद को मिली, उस की आंखों से नींद ओझल हो गई. वह जिस हाल में था, मौके पर जा पहुंचा. इतना ही नहीं, घरपरिवार के लोग मौके पर जा पहुंचे थे. 

बड़ा भाई रामप्रकाश और उस की मां यही सोचसोच कर परेशान हुए जा रहे थे कि आखिर किस ने और क्यों तीनों के कत्ल किए होंगे. जबकि वे ऐसे नेचर के नहीं थे. उसी रात गांव के चौकीदार रामनयन ने नंदगंज थाने के एसएचओ शमसुद्ïदीन अहमद को इस घटना की सूचना फोन द्वारा दे दी. उस समय घड़ी में साढ़े 4 बजे के करीब का टाइम हो रहा था और एसएचओ गश्त से कुछ देर पहले ही लौटे थे. वह सोने की तैयारी कर रहे थे. 

चौकीदार की बात सुन कर एसएचओ चौंक पड़े, ”3-3 कत्ल हुए हैं, लेकिन क्यों? किस ने किए ये सारे कत्ल?’’ एक साथ कई सवाल उन के मुंह से निकल गए. यही नहीं, इतना सुनते ही एसएचओ अहमद की आंखों से नींद छूमंतर हो गई. वह उसी समय आननफानन में कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. थाने से घटनास्थल करीब 5 किलोमीटर दूर था. थोड़ी देर में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएचओ अहमद ने दिल दहला देने वाली घटना की जानकारी एसपी (गाजीपुर) ओमवीर सिंह को भी दे दी. 

सूचना पाते ही फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस टीम जांच में जुटी हुई थी. यही नहीं, दिल दहला देने वाली इस घटना की जानकारी वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक पीयूष मोर्डिया तक जा पहुंची थी. उन्होंने एसपी ओमवीर सिंह को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द घटना का खुलासा कर आरोपियों को जेल के पीछे भेजें. पुलिस ने सब से पहले लाशों का मुआयना किया. मौकामुआयना से पता चला कि हत्यारों ने किसी धारदार हथियार से गले पर वार कर तीनों की हत्या की थी. हत्यारों का मकसद सिर्फ उन की हत्या करना था, क्योंकि अगर उन्होंने लूटपाट करने के उद्ïदेश्य से घटना को अंजाम दिया होता तो घर का सामान तितरबितर होता, जबकि घर का सारा सामान अपनी जगह पर था.

आशीष ने उगली चौंकाने वाली सच्चाई

बहरहाल, पुलिस ने लाशों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बारे में मृतक के बड़े भाई रामप्रकाश से पूछताछ की तो पता चला कि एक महीने पहले पड़ोसी राधे बिंद ने फोन पर मुंशी को जान से मारने की धमकी दी थी. एक पंचायत में हुए फैसले को ले कर राधे बिंद उस से काफी नाराज था. रामप्रकाश बिंद के बयान के आधार पर पुलिस ने राधे बिंद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वह एक ही बात रटता रहा कि वह निर्दोष है, उस ने किसी का कत्ल नहीं किया. रंजिशन रामप्रकाश और उस के घर वाले उसे फंसा रहे हैं.

लाश का पोस्टमार्टम करवा कर दोपहर बाद पुलिस ने उसे रामप्रकाश को अंतिम संस्कार के लिए सुपुर्द कर दिया. जांचपड़ताल के दौरान एक ऐसा सुराग पुलिस के हाथ लगा, जिस ने घटना का रुख मोड़ दिया और बिना समय गंवाए पुलिस की एक टीम श्मशान घाट जा पहुंची. वहां तीनों लाशों का अंतिम संस्कार किया जा चुका था और लोग अपने घरों को लौट रहे थे, तभी पुलिस वहां आ धमकी थी. फिर पुलिस बड़ी चतुराई से परिवार में एकमात्र बचे आशीष को थाने ले आई. यह देख कर सभी हैरान हो गए. रामप्रकाश बिंद भी उस के साथसाथ हो लिए. 

थाने में पुलिस उस के साथ सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. पहले तो उस ने नानुकुर किया. पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. लेकिन जब देखा कि अब पुलिस के शिकंजे से बच पाना उस के लिए मुश्किल है तो उस ने सच बता देने में ही अपनी भलाई समझी और सारी सच्चाई बयां करते हुए बोला, ”हां…हां…हां… मैं ने ही मम्मी, पापा और भाई की हत्या की है. भाई को मैं मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस ने मुझे मम्मीपापा का कत्ल करते हुए देख लिया था और उस ने शोर मचाना शुरू कर दिया. मैं कहीं पकड़ा न जाऊं, इसी डर से मैं ने उन्हें भी मार डाला.’’

आशीष पुलिस के सामने अपने दुस्साहस की कहानी ऐसे सुना रहा था, जैसे वह मैराथन दौड़ जीत कर आया हो. न तो उस के माथे पर पसीने की एक भी बूंद छलकी और न ही चेहरे पर पश्चाताप के कोई भाव ही दिख रहे थे. ढीठ की तरह अपनी अकड़ का प्रदर्शन कर रहा था. भतीजे के मुंह से उस की खूनी करतूत सुन कर बड़े ताऊ रामप्रकाश बिंद हैरानपरेशान और दुखी थे. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मासूम सा दिखने वाला आशीष जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. 

पहले प्यार का ऐसे हुआ अहसास

18 साल के आशीष पर मांबाप के लाड़प्यार और उन के परवरिश पर एक लड़की का प्यार इस कदर हावी हुआ कि उस ने अपने ही हाथों परिवार को नेस्तनाबूद कर डाला.

नादान इश्क की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

मुंशी बिंद के पड़ोस में राधे बिंद अपने परिवार के साथ रहता था. 6 सदस्यों वाला उस का खुशहाल परिवार था, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. गाजीपुर में ही रह कर राधे बिंद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 16 वर्षीया नंदिनी बिंद राधे की सब से बड़ी बेटी थी और जान से प्यारी भी. उस पर जान छिड़कता था वह. और जान छिड़के भी क्यों न, वह थी ही इतनी काबिल और होनहार कि वही नहीं घर के सभी उस पर जान छिड़कते थे. 

नंदिनी जितनी काबिल थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. उस की सुंदरता और चंचलता पर हर किसी को प्यार आता था. ऐसे में भला आशीष कैसे अछूता रह सकता था, जबकि वह उस का पड़ोसी था. नंदिनी का अंगअंग विकसित हो चुका था. उस के बदन से जवानी की खुशबू फैली थी. कुदरत ने बड़ी फुरसत से उसे बनाया था. झील सी गहरी आंखें, सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडिय़ों के समान होंठ, नागिन सी लहराती जुल्फें, किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. जब होंठ दबा कर हौले से मुसकराती थी तो मानो कयामत आ जाती थी. कीचड़ में खिले कमल के जैसी थी नंदिनी. उस की मोहक अदा और गोरे रंग पर आशीष पूरी तरह फिदा था. 

उस दिन शाम का वक्त हो रहा था, जब नंदिनी सजधज कर पिंक रंग का सलवारसूट पहने अपनी छत पर खड़ी खोईखोई सी टकटकी लगाए आसमान की ओर देख थी. बयार मंदमंद बह रही थी. बयार के झोंकों से लहराते हुए बाल उस के सुर्ख गाल से अठखेलियां कर रहे थे. ऐसा होता देख उसे असीम सुख की अनुभूति हो रही थी. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि उस की इस अदा को एक आवारा भंवरा अपनी पलकों में कैद कर रहा है. उसे वह कई पलों से अपलक निहारता जा रहा है. वह कोई और नहीं, उस के पड़ोस में रहने वाला आशीष था. उस दिन के बाद से आशीष नंदिनी का दीवाना हो गया था. आंखें खुलतीं तो उसे देखना चाहता था, आंखें बंद होतीं तो उसे पहले देखना चाहता था. उठतेबैठते, खातेपीते हर घड़ी, हर पल आशीष उसे देखता चाहता था.

दिन दूना बढ़ता गया कच्ची उम्र का सच्चा प्यार

आशीष को देख कर नंदिनी का रोमरोम खिल उठता था. अपने रसीली होंठों को एक कोने में दबाए हौले से मुसकरा कर अंदर कमरे की ओर भाग जाती थी. उस के दिल के किसी एक कोने में आशीष के लिए जगह बन चुकी थी. मोहब्बत की आग दोनों के दिलों में बराबर की लगी हुई थी. मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था. धीरेधीरे दोनों का प्यार जवां हो रहा था. 2 प्यार के पंछी नीले गगन के तले सैर कर रहे थे. आशीष और नंदिनी का प्यार सच्चा था. उन का प्यार एक बिलकुल पाकसाफ था. वे शादी करना चाहते थे. लेकिन अपने दिल की बात न तो नंदिनी अपने घर वालों से कह पा रही थी और न ही आशीष ही. भीतर ही भीतर दोनों घुट रहे थे. 

एक दिन की बात है. नंदिनी के घर वाले किसी काम से बाहर गए हुए थे. घर पर नंदिनी ही अकेली थी. यह बात आशीष को मालूम था. उस दिन दोपहर का समय हो रहा था. आशीष भी घर ही पर था. मौका देख कर वह नंदिनी से मिलने दबेपांव उस के घर में घुस गया. अचानक आशीष को सामने देख कर नंदिनी चौंक गई, ”तुम यहां… इस वक्त? किसी ने देख लिया तो?’’ सकपकाती हुई नंदिनी फुसफुसाते हुए बोली.

हां, मैं…’’ आशीष ने उसी के अंदाज में जवाब दिया, ”कोई देख लेगा तो देख लेने दो, मेरे ठेंगे से. मैं किसी की परवाह नहीं करता.’’

कोई काम था क्या?’’

हां, काम था.’’

बोलो.’’

तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता नंदिनी. मुझे डर लगता है कि कहीं हमारे घर वाले हमारे प्यार के दुश्मन न बन बैठें.’’

सो तो है, यह डर मेरे भी दिल में है. मैं भी सोचसोच कर परेशान रहती हूं. मैं तो ये सोचती हूं जिस दिन मम्मीपापा को हमारे प्यार के बारे में मालूम होगा तो कितनी बड़ी कयामत आ जाएगी.’’

”तुम्हें परेशान होने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, नंदिनी. जब तक मैं जिंदा हूं, तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, जैसेतैसे मैं सब संभाल लूंगा. मेरा प्यार हीररांझे की तरह सच्चा है. हम एक साथ नहीं जी सके तो साथ मर तो सकेंगे न.’’

ना आशीष ना.’’ तड़प कर बोली नंदिनी, ”फिर दोबारा मत कहना. हम हमारे प्यार को पाने के लिए जमाने से लड़ेंगे. मम्मीपापा को समझाएंगे.’’ नंदिनी ने आशीष को समझाने की कोशिश की.

इस के बाद दोनों घंटों प्यार भरी बातें करते रहे. नंदिनी और आशीष प्यार की दुनिया में खोए भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे थे. इसी दौरान नंदिनी के घर वालों को उन के प्यार के बारे में सब कुछ पता चल गया था. नंदिनी के पापा राधे बिंद को जैसे ही बेटी की आशिकी के बारे में पता चला, उस के तनबदन में आग लग गई थी. उस ने बेटी को तो आड़ेहाथों लिया ही, आशीष की तो जलालतमलामत सब कर डाली थी. 

यहां तक कि राधे बिंद ने मुंबई में रह रहे आशीष के पापा मुंशी बिंद को बेटे को संभाल लेने की धमकी दी. ऐसा न करने पर उस ने जान से मार देने की धमकी भी दे डाली थी. मुंशी बिंद ने राधे बिंद को समझाने की कोशिश की कि वह बेटे को नंदिनी से दूर रहने के लिए समझाएगा. परेशान मत हो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ा समय दे दो मुझे. मैं जल्द घर आ रहा हूं. मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. फिर उस ने फोन पर ही आशीष को भी समझाया और उसे जम कर डांट पिलाई कि पढ़ाईलिखाई की उम्र है, मन लगा कर पढ़ो, समय आने पर अच्छी लड़की देख कर शादी करा दूंगा. लेकिन ये छिछोरपना करना छोड़ दो, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. 

बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई. जिद्ïदी स्वभाव के आशीष ने पापा की बातों को अनसुना कर दिया. उसे पापा का डांटना भी अच्छा नहीं लगा. प्यार में अंधा हो चुका आशीष नंदिनी से किसी भी कीमत पर दूर नहीं होना चाहता था. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. मगर नंदिनी का साथ छोडऩा उसे मंजूर नहीं था. राधे बिंद के समझाने के बावजूद आशीष का उस की बेटी नंदिनी से मिलना और बातें करना बंद नहीं हुआ, बल्कि उस दिन के बाद से वह और उग्र हो गया और सारी हदें पार कर उस से मिलता रहा. राधे ने मुंशी को समझाया कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है. अपने बेटे के कदमों को रोक दो, वरना उसे जान से हाथ धोना होगा. फिर मत कहना कि तुम ने ऐसा क्यों कर दिया.

इस तरह बैठा दिए प्यार पर पहरे

राधे बिंद के बारबार शिकायत करने पर मुंशी बिंद परेशान हो गया था. बेटे को समझाने का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था. मां और भाई को तो पुरुवापछुवा की बयार समझता था. उन के समझाने पर वह उन्हीं से लड़ पड़ता था. मजबूर हो कर मुंशी बिंद को 6 जून, 2024 को मुंबई से गाजीपुर आना पड़ा. उस के अगले दिन राधे बिंद ने गांव में पंचायत बुलाईपंचायत में पंचों के सामने आशीष, उस के पिता मुंशी बिंद और भाई रामाशीष को बुलाया गया. पंचों ने उस दौरान मुंशी बिंद और उस के बेटे आशीष को जम कर लताड़ा. बेटे की करतूत से घर वालों का सिर शर्म से झुक गया था. पंचों ने जो जलालत मलालत की, सो अलग से. 

पंचायत में तय किया गया कि लड़का और लड़की दोनों पर उन के घर वाले सख्त पाबंदी लगाएं. उन्हें मिलने से हर हाल पर रोकें. घंटों चली पंचायत में मुंशी बिंद का सिर झुका ही रहा. इस के बाद घर वालों ने आशीष पर पहरा लगा दिया. घर वालों की सख्ती से आशीष चिढ़ गया और उसे अपने ही घर वाले दुश्मन लगने लगे. मम्मीपापा की सख्ती से परेशान आशीष के मन में एक खौफनाक इंतकाम ने जगह बना ली. उस ने तय कर लिया कि जो भी उस के प्यार में रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, वह उस का सब से बड़ा दुश्मन होगा, चाहे वह उस के मम्मीपापा ही क्यों न हों.

उस दिन के बाद से आशीष अपने मम्मीपापा का दुश्मन बन गया और उन्हें रास्ते से हटाने के लिए अनेकानेक खतरनाक योजना बनाने लगा, मगर वह अपनी घिनौनी साजिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था. मम्मीपापा की डांट और सख्त रवैए से आशीष विद्रोह पर उतर आया था. इधर आशीष की करतूतों से मम्मीपापा की पूरे गांव में थूथू हो रही थी, इसलिए बेटे के प्रति उन का रवैया सख्त हो गया था. वे हर कीमत पर उसे नंदिनी से मिलने से रोक रहे थे. क्योंकि नंदिनी के पापा राधे बिंद ने आशीष को जान से मारने की भी धमकी दी थी. यह बात उसे पता नहीं थी. वह तो इस बात पर घर वालों से खार खाए हुआ था कि मम्मीपापा की वजह से ही उसे नंदिनी से मिलने नहीं दिया जा रहा है.

आशीष को मम्मीपापा क्यों लगने लगे दुश्मन

घर वालों की सख्त पाबंदी के चलते आशीष ने उन्हें रास्ते से हटाने की खतरनाक योजना बना ली थी. बस उसे अंजाम देना शेष था. योजना को अंजाम देने के लिए आशीष सही समय का इंतजार कर रहा था और वह अपने खतरनाक इरादों में कामयाब भी हो गया. दरअसल, 8 जुलाई, 2024 को गांव में एक परिचित के घर तिलक का कार्यक्रम होना था. उस कार्यक्रम में मुंशी बिंद को परिवार सहित आने का न्यौता मिला था. इस दिन को ही आशीष ने अंजाम देने को चुना. इस के पीछे उस का खास मकसद यह था कि लोग तिलक के कार्यक्रम में व्यस्त रहेंगे. डीजे के शोर में किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा और उस का काम भी पूरा हो जाएगा.

तिलक की रात मुंशी बिंद अपने दोनों बेटों रामाशीष और आशीष के साथ कार्यक्रम में चला गया. देर रात 11 बजे खाना खा कर सभी वापस घर लौट आए. उस के बाद आगे बरामदे में मुंशी बिंद अपनी पत्नी के साथ सो गया और दोनों बेटे भीतर वाले कमरे में सो गए. बिस्तर पर जाते ही रामाशीष नींद की आगोश में समा गया, जबकि आशीष की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. पलट कर पहले उस ने भाई को देखा. उसे हिलाडुला कर जांचा. वह पूरी तरह से नींद में जा चुका था. फिर वह दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा और उस ओर बढ़ गया, जहां उस के मांबाप सो रहे थे. वे भी गहरी नींद में जा चुके थे. 

पापा मुंशी बिंद को देखते ही आशीष का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. आंखों से गुस्से का लावा फूट पड़ा और बदन कांपने लगा. उस पर खून सवार हो गया था. फिर क्या था, नींद में सो रहे पापा के गले की ओर उस के मजबूत हाथ बढ़ते गए और उस ने गला दबा कर मार डाला. गहरी नींद में होने के बावजूद जब आशीष पिता का गला दबा रहा था तो उस के हाथों से छूटने के लिए वह बिस्तर पर फडफ़ड़ा रहा था. उसी बीच पत्नी उठ बैठी और पति को बेटे के हाथों से छुड़ाने लिए बेटे से भिड़ गई. आशीष ने देखा कि अब खेल बिगड़ जाएगा तो मम्मी देवंती को भी गला दबा कर मार डाला. उस दौरान उस ने अपनी जान बचाने के लिए बड़े बेटे को नाम ले कर पुकारती रही. 

गहरी नींद में होने के बावजूद मां की आवाज सुन कर रामाशीष उठ गया और बाहर की ओर लपका, जिस ओर से आवाज आ रही थी. उस ने देखा कि छोटा भाई आशीष मांबाप की हत्या कर वहीं खड़ा है. दोनों की लाशें नीचे फर्श पर पड़ी हैं तो वह कांप उठा. यह देख कर आशीष बुरी तरह डर गया कि सुबह होते ही भाई सभी को घटना के बारे में बता देगा और वह पकड़ा जाएगा. पुलिस से बचने और राज को राज बनाए रखने के लिए उस ने रामाशीष का भी गला घोंट दिया और उस की लाश को बाहर डाल दिया. 

इस के बाद उस ने खुरपी से एकएक कर तीनों के गले रेत दिए. ताकि लगे कि बदमाशों ने गला रेत कर कत्ल किया है. पुलिस का सीधा शक कभी उस पर नहीं आएगा और वह कानून के फंदे से बच जाएगा. बहरहाल, तीनों का कत्ल करने के बाद आशीष ने अपने खून सने कपड़े उतार दिए और पानी से हाथमुंह धो कर कर दूसरे कपड़े पहन कर तैयार हो कर चल रही पार्टी की ओर हो लिया और रास्ते में कपड़े और खून सनी खुरपी को फेंक दी. 

फिर खुद को इतना सामान्य बना लिया, जैसे उस ने कुछ किया ही न हो. फिर पार्टी में जा कर उस ने ऐसा ड्रामा रचा कि सारे लोग अवाक रह गए. फिर आगे क्या हुआ, कहानी में ऊपर बताया जा चुका है. बहरहाल, आशीष एक लड़की के प्यार के लिए इतना बागी हो गया कि उस ने अपने ही परिवार का खात्मा कर दिया. उसे अपने किए का जरा भी मलाल नहीं है, लेकिन अपने किए की सजा जेल की सलाखों के पीछे जा कर पा रहा है. 

कथा लिखे जाने तक आशीष सलाखों के पीछे कैद था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त खून सनी खुरपी और कपड़े बरामद कर लिए.

कथा में नंदिनी बिंद परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

 

 

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