जिंदगी से निराश हो चुकी ततजाना के 20 औपरेशन कर के डा. फेंज ने उस की जिंदगी संवारी ही नहीं बल्कि उस से शादी कर के उसे वह सब भी दिया, जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. लेकिन ततजाना ने उन के इन अहसानों के बदले क्या दिया…
तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वह ‘मिस जर्मनी’ के खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंगअंग का कोई जवाब नहीं था.
आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिन ‘मिस जर्मनी’ का ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’
एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के आंसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’
ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’
एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट. उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?
ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़केलड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’
‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’
मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज न रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं. वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थित ‘नरीम्बर्ग विला क्लीनिक’ में जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.
सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगी? वह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.
बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक. कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशानिराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.
कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा. इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’
ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’
नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’ अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’ ततजाना बस इतना ही कह पाई.
सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग आ गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुई. सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करतेकरते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.
अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने. डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’
डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी. वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.
तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी. वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’
‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.
‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.
‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’
सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी. अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोनेहीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी. ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.
उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.
डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली. इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है. डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.
डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे. सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’
यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’ खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’
कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत आ गई कि वह झटके से बाहर आ गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दिया. इस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.
डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी. 10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.
पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया. 16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.
कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी. पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.
खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोगविलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया. एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था. कहानी लिखे जाने तक ततजाना के प्यार में आकंठ डूबे प्रिंस वौन अपनी पत्नी से तलाक ले कर ततजाना से शादी करने का प्रयास कर रहे थे.