अनूप चौधरी ने अपने गैंग के साथ मिल कर कोई एकदो नहीं बल्कि 5 राज्यों के करीब 5 हजार लोगों के साथ कई सौ करोड़ रुपए का फ्राड किया था. आप भी जानें कि आखिर गैंग के सदस्य किस तरह लोगों को अपने जाल में फांसते थे?

जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी द्वारा जारी किए गए ब्रोशर और पैंफ्लेट में यह दावा किया गया था कि वह भारतीय रिजर्व बेंक (आरबीआई) के नियमों के मुताबिक न केवल पैसा फिक्स या आरडी के जरिए निवेश करती है, बल्कि एलआईसी की तरह इंश्योरेंस की सेवा भी देती है. उन के निवेश किए गए पैसों का दूसरा लाभ उन्हें सोसायटी द्वारा बनाए जाने वाले मकान का मिल सकता है. सोसाइटी का पहला साइन बोर्ड साल 2012 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित सहारा शौपिंग सेंटर में लग चुका था, हालांकि उस के रजिस्टर्ड औफिस का पता वह नहीं था.

बड़े बोर्ड पर बना लोगो एलआईसी से मिलताजुलता बनाया गया था. ठीक उस जैसा ही. फर्क सिर्फ इतना था कि 2 हथेलियों से सुरक्षा देने वाले दीपक की जगह मकान की झलक देने वाली रेखांकन में बनाई तसवीर की थी. उस डिजाइन के साथ मल्टीस्टेट लिख दिया गया था. इस के जरिए कंपनी का मकसद यह बताने की कोशिश थी कि वह मकान के लिए निवेश का काम करती है और बदले में रकम दोगुनीतिगुनी भी कर देती है. सोसाइटी का जबरदस्त प्रचारप्रसार किया जाने लगा. इंटरनेट मीडिया, छोटेबड़े होर्डिंग, हैंडबिल, पोस्टर, स्थानीय अखबारों में विज्ञापन और खबरों आदि से ले कर जस्ट डायल तक में सोसाइटी को प्रचारित कर दिया गया.

इसी क्रम में एजेंट नियुक्त कर दिए गए और छोटेछोटे शहरों में ब्रांच औफिस खोल दिए गए. साल 2014 में ही उत्तराखंड के जनपद ऊधमसिंह नगर स्थित काशीपुर में भी एक ब्रांच खोली गई. उस में स्थानीय व्यक्ति सलेम अहमद को डायरेक्टर बना दिया गया. अहमद ने कंपनी द्वारा बनाए गए नियमों के मुताबिक स्थानीय लोगों को निवेश के लिए प्रेरित किया. उस के प्रचारप्रसार के तरीके, वाकपटुता, इलाके में पहचान और कम समय में ही रकम दोगुनी होने के वादे से आरडी और फिक्स डिपौजिट स्कीम परवान चढऩे लगीं. 

कुछ ही दिनों में गांव के 400 लोगों से कंपनी में एक करोड़ 50 लाख रुपए जमा हो गए. इस से मिली कमीशन की मोटी रकम से सलीम की लाइफस्टाइल बदल गई. वह बड़ी गाड़ी में घूमने लगा. शानोशौकत की जिंदगी गुजारने लगा. कुछ निवेशकों ने 5 साल पूरे होने पर अहमद से पौलिसी का भुगतान मांगा. संयोग से उन दिनों कोरोना वायरस को ले कर लौकडाउन के हालात बनने लगे थे. निवेशक जब अपनी पौलिसी के भुगतान के लिए अहमद पर दबाव बनाने लगे, तब उस ने निर्धारित समय पर भुगतान का आश्वासन देते हुए उन के पौलिसी बौंड जमा करवा लिए. लौकडाउन के नियमों के तहत सोसाइटी के औफिस में भी ताला लगा दिया गया और फिर अहमद से भी निवेशकों का संपर्क टूट गया. 

इन 5 सालों में सोसाइटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अलावा, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में पांव फैला लिए थे. इन राज्यों के तमाम छोटेबड़े शहरों में अपना ब्रांच औफिस खोल लिया था. सभी जगह सोसायटी ने दूसरे बैंकों से अधिक ब्याज देने और जमा रकम की एवज में मकान दिए जाने का वादा किया था. इस का लोगों पर जबरदस्त असर हुआ और सोसाइटी के एजेंटों के निवेश करवाने में सफलता मिलती चली गई.

अलगअलग थानों में दर्ज होने लगीं रिपोर्ट

इस तरह निवेशकों की संख्या हजारों में हो गई. उन्हीं में एक निवेशक नरेश भी था, जिस ने उत्तर प्रदेश के संभल जिले में संचालित सोसाइटी की ब्रांच में अच्छीखासी रकम जमा की थी. उस ने भी पौलिसी के पैसे की मांग की. सोसाइटी के ब्रांच से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. इस बारे में उस ने ब्रांच के कई चक्कर लगाए. सोसाइटी के कई अधिकारियों से मुलाकात की. जब हर जगह शिकायत अनसुनी हो गई, तब उस ने प्रिंट मीडिया को मेल लिख कर अपनी पीड़ा सुनाई और सोसाइटी द्वारा धोखाधड़ी की शिकायत की.

नरेश ने अपने बारे में बताया कि उस ने अलगअलग तारीखों में कुल 11,92,428 रुपए जमा किए थे, जिन में 5 वर्षों के लिए आरडी में 31,428 रुपए, 3 वर्षों के लिए एफडी में 3,70,000 रुपए और साढ़े 5 वर्षों के लिए एफडी में 7,91,000 रुपए जमा किए थे. नरेश के सामने समस्या तब पैदा हो गई, जब उस ने अपनी पौलिसी के मैच्योर यानी परिपक्वता की रकम लेने के लिए आवेदन किया. सोसाइटी द्वारा उस के आवेदन को अनसुना कर दिया गया. इस पर भी बात बनती नजर नहीं आई, तब नरेश ने गुन्नौर थाने में आईपीसी की धारा 420 के तहत सोसाइटी के अधिकारियों खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी.

इस रिपोर्ट और विभिन्न लिखित शिकायतों का असर इतना भर हुआ कि सोसाइटी ने उस के कुछ पैसे वापस किए. इस के बाद भी मोटी रकम बची रही. इसी के साथ नरेश ने मेल में अपना पूरा पता नरेश पाल सिंह पुत्र स्व. चक्खन लाल और फर्टिलाइजर प्राइवेट लिमिटेड/टीसीएल टाउनशिप, बबराला निवासी बताया. नरेश पाल की इस शिकायत पर गुन्नौर थाने के इंसपेक्टर रविंद्र प्रताप सिंह ने भादंवि की धारा 420, 468 और 120बी के तहत सोसाइटी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की सूचना संभल के तत्कालीन एसपी आर.एम. भारद्वाज को दे दी. इस शिकायत को भारद्वाज ने गंभीरता से लेते हुए आवश्यक काररवाई के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए.

एक तरफ सोसाइटी के खिलाफ शिकायतों की जांच होने लगी तो दूसरी तरफ मीडिया में भी पीडि़तों की शिकायतों की खबरें प्रसारित होने लगीं. इस का असर सोसाइटी के दूसरे शहरों में खुली शाखाओं पर भी हुआ. वहां पौलिसी मैच्योर होने पर निवेशकों की कतार लगने लगी. लोग अपना पैसा वापस मांगने लगे. जबकि ब्रांच के अधिकारी उन से जैसेतैसे कर अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश करते. उत्तराखंड के हल्द्वानी में भी सैकड़ों निवेशकों की पौलिसी मैच्योर हो चुकी थी. वे लोग भी सोसाइटी की ब्रांच का चक्कर काट रहे थे. मार्च 2020 में हल्द्वानी स्थित सोसाइटी का कार्यालय बंद हो चुका था. कारण कोरोना का लौकडाउन बताया गया था, लेकिन 2 साल बाद भी ब्रांच औफिस नहीं खुला था. 

उस ब्रांच में साल 2014 से निवेश का काम शुरू हो गया था, जो 2015 में तेजी से बढ़ गया था. साल 2017 में कुछ निवेशकों की जमा अवधि पूरी होने पर भुगतान समय पर हो गया, किंतु 2018 में सैकड़ों निवेशकों की जमा राशि वापस नहीं मिल पाई. साल 2020 आतेआते भुगतान मांगने वाले निवेशकों की संख्या काफी बढ़ गई. ब्रांच में उन का तांता लग गया. वे गुहार करने लगे और ब्रांच मैनेजर के खिलाफ नारेबाजी भी करने लगे. हल्द्वानी के कुछ निवेशकों ने 27 अप्रैल, 2022 को कोतवाली में सोसाइटी के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. शिकायत करवाने वाले निवेशक वार्ड नंबर 15 निवासी थे विनय कुमार राठौर, हेमंत अधिकारी, नीलम अधिकारी, नूतन बिष्ट, चंद्रकला, राधा और शिल्पी.

हल्द्वानी कोतवाल ने इस तहरीर के आधार पर जांचपड़ताल शुरू की. इस क्रम में लखनऊ निवासी ज्ञानेश पाठक, बागेश मिश्र, डी.सी. मिश्रा, प्रबल कौशिक, अनूप चौधरी, शिवानी गुप्ता, हाफिज सलीम, हाजी अली मोहम्मद और अर्चना पाठक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. ये सभी सोसाइटी के डायरेक्टर और मैनेजर थे. सोसाइटी के खिलाफ मुकदमों का सिलसिला यहीं नहीं थमा, बल्कि एक अन्य मुकदमा उत्तर प्रदेश में बरेली के इज्जतनगर थाने में दर्ज किया गया. शिकायत करने वाले मोहम्मद सलीम ने भी सोसाइटी से जुड़े 11 लोगों पर धोखाधड़ी के आरोप लगाए. उन पर निवेश के नाम पर पैसे दोगुना करने और उतनी ही रकम का प्लौट देने का झांसा दिया. 

इस झांसे में आने वाले बरेली के कई लोग थे. इन आरोपियों में भी ज्ञानेश पाठक और सलीम अहमद थे. इन के अलावा अनूप कुमार चौधरी, समीर कुमार श्रीवास्तव, शिवकांत त्रिपाठी, प्रबल कौशिक, विनोद कुमार, विकास नाथ त्रिपाठी, सुरेंद्र सिंह, दिनेश चंद्र शर्मा और आशुतोष थे. इन पर लगे ठगी के आरोप के बाद ब्रांच में ताला लग गया और वे फरार हो गए. इस बारे में मोहम्मद सलीम ने पुलिस को बताया कि जब वह कंपनी के औफिस गए, तब उन की कई और पीडि़तों से मुलाकात हुई. उन में मोहम्मद इरफान, वलीउद्ïदीन, मनोज कुमार, चोखेलाल, सुरेंद्र सिंह रावत, मोहम्मद मुश्ताक समेत सैकड़ों लोग थे.

इन की शिकायत से पहले एक ही गांव के 400 लोगों ने सोसाइटी पर पहली अगस्त, 2022 को भी धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवाई थी. मुरादाबाद जिले के मलकपुर गांव के लोगों ने जिला मुख्यालय जा कर अपनी शिकायत दर्ज करवाई थी. उन की शिकायत पर मुरादाबाद के एसएसपी हेमंत कुटियाल ने डिलारी पुलिस को मामले की जांच सौंपी. सोसाइटी के खिलाफ कई शिकायतों में उत्तराखंड पुलिस को पहली सफलता तब मिली, जब वहां के डीजीपी ने प्रदेश में ठगी और जालसाजी के बढ़ते मामले को ले कर एक विशेष अभियान चलाया. जगहजगह छापेमारी की जाने लगी. राज्य के सभी पुलिस थाने इस मामले को ले कर सतर्क हो गए.

सब से पहले हुई सलीम की गिरफ्तारी

6 मई, 2023 को खटीमा पुलिस को एक बड़ी सफलता मिली. पुलिस ने सलीम अहमद को काशीपुर से गिरफ्तार कर लिया. वह काफी समय से फरार चल रहा था. सलीम पर क्षेत्र के 956 लोगों से ठगी कर एक करोड़ 27 लाख रुपए वसूलने का मुकदमा दर्ज किया गया. उस से पूछताछ के बाद अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह सोसाइटी द्वारा जालसाजी के खिलाफ फ्राड करने वालों के खिलाफ पहली बड़ी काररवाई थी. उस के बाद जल्द ही दूसरे आरोपी सचिन कुमार द्विवेदी का नंबर आ गया. वह खटीमा ब्रांच में प्रधान लेखाकार था. पुलिस की विशेष जांच टीम ने उसे 31 अगस्त, 2023 को बिजनौर के शारदा नगर से गिरफ्तार कर लिया.

उस के खिलाफ 23 दिसंबर, 2021 को ही महीपाल गिरि द्वारा नौगांवा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी. उस के बाद से वह फरार चल रहा था, जबकि उस पर 15 हजार रुपए का इनाम भी घोषित था. आरोपियों में एक नाम अनूप चौधरी का भी था. उस के बारे में निवेशकों ने तरहतरह के किस्से सुन रखे थे. जैसे वह कंपनी का एक वीआईपी अधिकारी था. उसे सुरक्षा में सरकारी गनर मिला हुआ था. इस के लिए उस ने खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार सदस्य बताया था. अनूप चौधरी की गिरफ्तारी एसटीएफ द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को हुई थी. उस पर कंपनी की जालसाजी में शामिल होने से ले कर कई फरजी प्रोटोकाल की धौंस दिखाने का भी आरोप लगाया गया. वह मीडिया में खुद को बीजेपी नेता बन कर इंटरव्यू देता था, जबकि उस के खिलाफ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान में 10 से अधिक मामले दर्ज थे.

उस की गिरफ्तारी नाटकीय ढंग से तब हुई, जब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को जनजन तक पहुंचाने के कार्यक्रमों में लगा हुआ था. एसटीएफ को मिली सूचना के अनुसार वह पीएम कार्यक्रमों के नाम पर लोगों से सरकारी काम करवाने के नाम पर पैसे की उगाही करता था. इसी दरम्यान उस के बारे में यह सूचना मिली थी वह खुद को रेल मंत्रालय का सलाहकार समिति का सदस्य बता कर लोगों से ठगी कर रहा है. इस के लिए उस ने अपने लिए बाकायदा एक विशेष कार्य अधिकारी यानी ओएसडी नियुक्त कर रखा है. उसे गाजियाबाद पुलिस से एक गनर मिला हुआ था. 

उस के खिलाफ एसटीएफ के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार वर्मा द्वारा 25 अक्तूबर, 2023 को एफआईआर दर्ज करवाई गई थी. उस पर तथाकथित वीआईपी नेता बन कर प्रोटोकाल हासिल करने का आरोप लगा था. उस ने एक पत्र भेज कर अयोध्या सर्किट हाउस बुक किया था. इस की सूचना एसटीएफ को मिल गई थी.  उस के वहां पहुंचते ही एसटीएफ की टीम ने अयोध्या के कैंट थाना क्षेत्र में सर्किट हाउस के पास खड़ी सफेद स्कौर्पियो के ड्राइवर से पूछताछ की. उस ने अपना नाम अनूप चौधरी बताया. धौंस के साथ वह खुद को क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति उत्तर रेलवे एवं भारतीय खाद्य निगम लखनऊ का सदस्य बताया.

उस से जब सदस्य होने के नाते उस के अधिकार क्षेत्र और गाड़ी के कागजात की बात की गई, तब उन का जवाब देने में लडख़ड़ा गया और पुलिस की गिरफ्त में आने से नहीं बच पाया. उस की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. उस ने खुद को पिलखुआ निवासी बताया. उस ने अपने सारे कारनामों का भेद परत दर परत खोल दिया. उस ने बताया कि किस तरह से उस ने अपने वाहन चालक का फरजी आधार कार्ड बनवाया और गाजियाबाद से गनर पवन कुमार को अपने साथ ले लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि अपने फरजी ओएसडी श्रीनिवास नारला के माध्यम से प्रोटोकाल हासिल किया था. 

इस के लिए उस ने कई फरजीवाड़े कर सरकारी प्रारूप पर पत्र और ईमेल अधिकारियों को भिजवाए थे. सरकारी अधिकारी को एक कंपनी बना कर अयोध्या समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर हेलीकौप्टर सेवा के जरिए घुमाने का झांसा दिया था. चौधरी के इस कबूलनामे के बाद यूपी एसटीएफ ने अयोध्या के कैंट थाने में उस के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटचाल चलने और साजिश रचने की धाराओं का मामला दर्ज कर लिया गया. साथ ही उस के पास से वाहन, 5 मोबाइल फोन, एक टैबलेट, 3 चैकबुक, विभिन्न बैंकों के 20 चैक, 3 आधार कार्ड और 2200 रुपए कैश जमा बरामद कर लिए. उस ने अपना मौजूदा पता गाजियाबाद में वैशाली अपार्टमेंट का बताया, जबकि उस के साथ वाहन चालक फिरोज आलम ऊधमसिंह नगर का रहने वाला था.

राकेश से हुई अलग तरह से ठगी

दोनों पर 5 फरवरी, 2024 को अयोध्या पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी. कई केंद्रीय सरकारी एजेंसियों और विभागों का सदस्य होने का सबूत देने वाले अनूप चौधरी के खिलाफ दर्ज कई मामलों में सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा जयपुर की भी थी. यह एफआईआर एक्सपोर्ट कारोबारी राकेश कुमार खंडेलवाल ने दर्ज करवाई थी, जिस में बिजनैस के लिए 3 प्रतिशत सालाना ब्याज दर पर 5 साल के लिए 25 करोड़ रुपए लोन दिलवाने का वादा किया था. इस एवज में 6 प्रतिशत सर्विस चार्ज और एक प्रतिशत एडवांस कमीशन के रूप में मांगा गया था. बात बनने के बाद अनूप को 25 लाख रुपए खाते में ट्रांसफर करवा दिए गए थे. इस के बाद खंडेलवाल ने 58 लाख रुपए दिए थे. इतनी रकम चुकाने के बावजूद अनूप चौधरी ने लोन नहीं दिलाया.

5 हजार लोगों से ठगे 250 करोड़

कंपनी से जुड़े अनूप चौधरी की गिरफ्तारी भले ही एक बड़े फरजीवाड़े की थी, लेकिन कंपनी के डायरेक्टर आशुतोष चतुर्वेदी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाया था. वह भी एक इनामी आरोपी था, जिस के खिलाफ रिपोर्ट नैनीताल में दर्ज की गई थी. उस पर भादंवि की धाराएं 420, 406, 120बी लगाई गई थीं. उस की गिरफ्तारी 25 जून, 2024 को उत्तराखंड की एसटीएफ द्वारा संभव हो पाई थी, जो सीओ आर.बी. चमोला के द्वारा इंसपेक्टर एम.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित की गई थी. काशीपुर में वार्ड नंबर 4 के मूल निवासी आशुतोष चतुर्वेदी को एसटीएफ ने रुद्रपुर से गिरफ्तार किया था. उस पर संगठित अपराध की शिकायत थी, जिस ने अंतरराज्यीय फ्राड किया था.

इस तरह से पुलिस की काररवाई के क्रम में मास्टरमाइंड ज्ञानेश पाठक भी निशाने पर था. उस पर बरेली से 25 हजार और उत्तराखंड से 50 हजार रुपए का इनाम घोषित था. उसी ने कुल 5 राज्यों में सोसाइटी का कारोबार फैलाया था. सोसाइटी के खिलाफ पुलिस की छानबीन और दर्ज रिपोर्टों से 5 हजार लोगों के साथ 250 करोड़ से अधिक की रकम ठगी का एक बड़ा मामला सामने आ चुका था. इस मामले में 5 राज्यों की पुलिस उसे 5 सालों से तलाश रही थी. जून 2024 में यूपी एसटीएफ को उस के मुंबई में होने का सुराग मिला था. पुलिस वहां गई, वह वहां से जा चुका था. उस की गिरफ्तारी नागपुर के हड़केश्वर इलाके में घेराबंदी के बाद 11 जुलाई को हो पाई. उस का नागपुर कोर्ट से 72 घंटे का ट्रांजिट रिमांड लिया गया. 

पुलिस टीम उसी रात उसे बरेली के किला थाने ले आई, जहां अगले रोज 12 जुलाई को किला थाने में पुलिस ने अपने मुकदमों के सिलसिले में ज्ञानेश से पूछताछ की. उस के बारे में बताया जाता है कि वह पुलिस को चकमा देने में माहिर था. ठगी करने वालों का एक तरह से सरदार था. एसटीएफ के अुनसार उस पर कई शहरों सिद्धार्थ नगर, हाथरस, बरेली, बाराबंकी, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, शामली, एटा, आगरा, बस्ती, संभल और मुरादाबाद जिले के थानों के अलावा उत्तराखंड के नैनीताल, हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंह नगर, राजस्थान के करावली, गुमानपुरा, मध्य प्रदेश के अमाहिया, मुरैना, जबलपुर समेत कई अन्य जिले में कुल 39 केस दर्ज थे.

एसटीएफ इंसपेक्टर जे.पी. राय ने उस से पूछताछ की. पूछताछ में उस ने धोखाधड़ी की पूरी कहानी बयां की. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2012 में अपने 8 साथियों के साथ मिल कर जेकेवी मल्टीस्टेट क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी लिमिटेड और जेकेवी रियल एस्टेट डेवलपर लिमिटेड का पंजीकरण कराया था. 

लखनऊ से शुरू हुई थी फ्राड की शुरुआत

इस सोसाइटी का मुख्य कार्यालय लखनऊ में खोला गया था, जिस का अध्यक्ष ज्ञानेश बना था. इस के बाद वह अपने सहयोगियों के साथ धन दोगुना करने का झांसा दे कर आम लोगों से पैसा जमा करवाने लगा. धीरेधीरे कर उस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार में सोसाइटी की 100 से अधिक शाखाएं खोल लीं. वर्ष 2018-19 में उस ने सोसाइटी में पैसा जमा करने वाले लोगों को करीब 20 से 25 करोड़ रुपए का भुगतान किया, लेकिन बाकी रकम का गबन कर लिया. पैसा मांगने वालों को सोसाइटी से जुड़े लोग झूठा आश्वासन देते रहे, लेकिन किसी का पैसा वापस नहीं मिला.

धोखाधड़ी के शिकार लोगों ने अलगअलग पुलिस थानों में रिपोर्ट दर्ज कराईं तो मुकदमा पंजीकृत होने के बाद ज्ञानेश यूपी छोड़ कर महाराष्ट्र भाग गया था. उस के बारे में एसटीएफ को सुराग मिलने पर एसआई रणेंद्र कुमार सिंह, सिपाही अमित शर्मा, संतोष कुमार, किशन व अखंड प्रताप की टीम मुंबई भेजी गई. ज्ञानेश ने बताया कि उस ने वर्ष 2005 में उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की थी. इस के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की. फिर वह यमुनापार के कुछ लोगों के संपर्क में आया और सोसाइटी बना कर धोखाधड़ी शुरू कर दी थी.

उस के आकर्षक ब्याज और मकान देने के बिछाए जाल में गरीब, मध्य, अमीर सभी वर्ग के लोग फंसते चले गए. उन्होंने अच्छाखासा निवेश कर दिया. कुछ सालों में ही उस ने एक गिरोह बना लिया. उस की गिरफ्तारी के कुछ सदस्य पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके थे. पुलिस को ज्ञानेश के मोबाइल से उस के कई साथियों की जानकारी मिली. इज्जतनगर के परतापुर चौधरी निवासी सलीम ज्ञानेश पाठक का खास गुर्गा बना हुआ था. पुलिस को उस की तलाश जारी थी. 

करीब 250 करोड़ के इस फ्राड में शामिल ज्ञानेश के अन्य साथी मुरादाबाद निवासी मोहम्मद सलीम, लखनऊ के प्रबल कौशिक, विकासनाथ, दिल्ली के मनीष कौशल काशीपुर के रविंद्र चौहान और गाजियाबाद के बागेश मिश्रा को भी एसटीएफ कथा लिखने तक तलाश रही थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

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