रचिता वत्स साड़ी कारोबारी मनीष कनौडिया के बेटे कुशाग्र को कई सालों से ट्यूशन पढ़ाती थी. कनौडिया परिवार रचिता को घर के  सदस्य की तरह ही मानता था और समयसमय पर रचिता की आर्थिक सहायता भी करता रहता था. इस के बावजूद रचिता ने अपने प्रेमी प्रभात शुक्ला से कुशाग्र का न सिर्फ किडनैप करा दिया बल्कि प्रभात ने उस की हत्या भी कर दी. आखिर रचिता और प्रभात ने यह क्यों किया?

रचिता वत्स प्रभात शुक्ला व शिवा गुप्ता ने सेंट्रल पार्क में बैठ कर 16 वर्षीय कुशाग्र के अपहरण व हत्या की योजना बनाई. इस के बाद प्रभात व शिवा उस की रेकी करने लगे. वह दिन में 1-2 बार श्री भगवती विला अपार्टमेंट के चक्कर जरूर लगाते. क्योंकि कुशाग्र इसी अपार्टमेंट में रहता था. सोसाइटी के गार्ड राजेंद्र कुमार ने एक बार प्रभात को रेकी करते पकड़ा तो वह बहाना बना कर चला गया. फिर भी गार्ड ने इस की शिकायत कुशाग्र के चाचा सुमित कनौडिया से कर दी थी. उन का मकसद किसी भी तरह कुशाग्र को किडनैप करना था. 30 अक्तूबर को योजना को अंजाम देने के लिए प्रभात शुक्ला व शिवा गुप्ता ने कानपुर के ही दर्शनपुरवा में स्थित एक दुकान से नारियल की रस्सी खरीदी, फिर प्लास्टिक की दुकान से पौलीथिन बैग खरीदे.

शिवा ने चापड़ का इंतजाम भी कर लिया था. प्रभात ने रस्सी अपने घर के स्टोर रूम में रख दी. पौलीथिन बैग व चापड़ प्लास्टिक की एक बोरी में भर कर घर के पास झाडिय़ों में छिपा दिए. इस की जानकारी प्रभात ने अपनी प्रेमिका रचिता को दे दी. इस के बाद प्रभात जरीब चौकी चौराहा पहुंचा और कुशाग्र के आने का इंतजार करने लगा. कुशाग्र अपनी स्कूटी से शाम 4 बजे घर से स्वरूप नगर स्थित मेनन कोचिंग सेंटर जाने को निकला और सवा 4 बजे जरीब चौकी चौराहा पहुंचा. तभी इंतजार कर रहे प्रभात ने उसे रोका और बोला, ”कुशाग्र भैया, मेरी स्कूटी खराब हो गई है. मुझे मेरे घर छोड़ दो.’’

कुशाग्र ने उस से कोचिंग के लिए देरी की बात कही तो प्रभात बोला, ”भैया, बस 2 मिनट लगेंगे. घर पर जरूरी काम है.’’ इस के बाद वह कुशाग्र की स्कूटी की पिछली सीट पर बैठ गया. वह कुशाग्र के साथ अपने घर ओम नगर आ गया. कुशाग्र प्रभात को छोड़ कर जाने लगा तो प्रभात बोला, ”भैया, कोल्ड ड्रिंक पी कर जाना.’’ कुशाग्र ने मना किया तो बोला, ”भैया, आप ने अपने घर पर हमें खूब खिलायापिलाया. हम गरीब हैं तो आप मना कर रहे हैं.’’

प्रभात ने भावनात्मक चोट की तो कुशाग्र मान गया और प्रभात के साथ उस के कोठरीनुमा कमरे में जा पहुंचा. कोठरीनुमा कमरे में पहुंचते ही प्रभात के तेवर बदल गए. उस ने दरवाजा बंद किया और बोला, ”अब तुम इसी कमरे में कुछ दिन बंद रहोगे. हमें तुम्हारे घर से पैसे मंगाने हैं.’’

”प्रभात भैया, यह क्या मजाक है.’’ कहते हुए कुशाग्र दरवाजे की ओर बढ़ा, तभी प्रभात ने पीछे से उस के पैर पर लात मारी. वह लडख़ड़ा कर गिर पड़ा. इसी समय प्रभात ने उस के गले में नारियल की रस्सी लपेटी और उस का गला कसने लगा. कुछ मिनट बाद ही कुशाग्र ने दम तोड़ दिया. इस के बाद उस ने रस्सी से ही कुशाग्र के हाथपैर बांधे और शव को जमीन पर गिरा दिया. फिर शव को चादर से ढक दिया.

कुशाग्र की हत्या करने के बाद प्रभात ने उस का फोन अपनी जेब में रखा फिर उस की स्कूटी ले कर जीटी रोड स्थित सिटी क्लब आया. सिटी क्लब के बाहर सड़क किनारे उस ने कुशाग्र की स्कूटी खड़ी कर दी और मोबाइल फोन रेलवे किनारे झाडिय़ों में छिपा दिया. उस के बाद प्रभात फिर अपने कमरे में आया. उस ने डायरी से 2 पन्ने फाड़े और पेन से फिरौती के लिए पत्र लिखा. फिर वह अपने दूसरे कमरे में गया और प्रेमिका रचिता को सारी जानकारी दे कर उस की स्कूटी मांगी.

रचिता तब अपनी स्कूटी प्रभात के घर छोड़ गई. इस बीच शिवा भी आ गया. उस ने फिरौती वाला पत्र शिवा को दिया और वह पत्र कुशाग्र के पापा मनीष कनौडिया के घर डाल आने को कहा. उधर जब कुशाग्र कोचिंग से घर नहीं लौटा तो उस की मम्मी सोनिया को चिंता हुई. उन्होंने बेटे को फोन किया तो उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. वह परेशान हो गईं कि पता नहीं कुशाग्र अभी तक घर क्यों नहीं लौटा. सोनिया कनौडिया की निगाहें दीवार घड़ी पर जमी थीं. जैसेजैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़ रही थीं, वैसे ही उन की दिल की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं. कभी वह कमरे में चहलकदमी करतीं तो कभी फ्लैट की बालकनी मे आ कर खड़ी हो जातीं और नजरें मेन गेट पर जम जातीं.

घर के बाहर कौन डाल कर आया फिरौती का पत्र

सोनिया कनौडिया के पति मनीष कनौडिया कारोबार के सिलसिले में सूरत (गुजरात) में थे. छोटा बेटा आदी ही घर पर था. आदी भी कुशाग्र का पता लगाने के लिए उस के दोस्तों को फोन कर रहा था, लेकिन कुशाग्र का कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था. सोनिया की उलझन तब और बढ़ गई, जब उन्होंने कोचिंग के संचालक डेनियल से फोन पर बात की. डेनियल ने बताया कि कुशाग्र कनौडिया आज कोचिंग आया ही नहीं था. घबराई सोनिया ने कुशाग्र के गुम होने की जानकारी सब से पहले पति मनीष कनौडिया को दी और तत्काल घर वापस आने को कहा. उस के बाद कुशाग्र के चाचा सुमित कनौडिया व मामा त्रिवेणी नगर निवासी अभिषेक अग्रवाल को फोन कर घर बुला लिया. ये लोग अपने स्तर से कुशाग्र की खोज में जुट गए. उन्होंने अपने सभी सगेसंबंधियों के यहां फोन कर जानकारी जुटाई, लेकिन कुशाग्र का कुछ भी पता नहीं चला.

इसी बीच अभिषेक अग्रवाल की बात अपार्टमेंट के सिक्योरिटी गार्ड राजेंद्र कुमार से हुई तो उस ने बताया रात करीब 9 बजे बिजली नहीं आ रही थी, तभी एक व्यक्ति हेलमेट पहने और मुंह पर मास्क लगाए आया, स्कूटी खड़ी की और बोला कि यह पत्र मनीष के यहां दे कर आओ. इस पर मैं ने कहा, ”तुम खुद दे कर आओ, मैं ड्यूटी छोड़ कर नहीं जा सकता. और हां, मास्क और हेलमेट उतार कर जाना.

”फिर उस युवक ने हेलमेट उतार कर स्कूटी पर रखा और पत्र देने सीढिय़ां चढ़ता हुआ ऊपर चला गया. मुझे उस व्यक्ति पर कुछ शक हुआ. मैं ने स्कूटी देखी तो आगे के नंबर प्लेट पर काला रंग पुता था और पीछे की नंबर प्लेट पर कपड़ा बंधा था. मैं ने कपड़ा हटा कर स्कूटी का नंबर नोट कर लिया. इसी बीच वह युवक आ गया. उस ने मुझे घूरा, फिर स्कूटी ले कर चला गया.’’

गार्ड राजेंद्र कुमार ने अभिषेक अग्रवाल को स्कूटी का नंबर बता दिया. वह स्कूटी पहचान गया है. यह स्कूटी कुशाग्र भैया को कोचिंग पढ़ाने आने वाली मैडम रचिता वत्स की लग रही है. अभी तक पत्र की जानकारी परिवार के किसी सदस्य को नहीं थी. पत्र की खोज की गई तो फ्लैट के मुख्य दरवाजे के पास पत्र मिल गया. पत्र अपहरण और फिरौती वसूलने को लिखा गया था. डायरी के 2 पन्नों पर लिखा गया पत्र इस प्रकार था.

पहले पेज पर लिखा था— ‘मैं नहीं चाहता कि आप का त्यौहार बरबाद हो. आप मेरे हाथ पर पैसा रखो और लड़का एक घंटे बाद आप के पास होगा. अल्लाह हू अकबर… और हां, इस लड़के की गाड़ी और मोबाइल दोनों आप के घर के पास होटल सिटी क्लब के सामने खड़ी है. मैं आप का नुकसान नहीं चाहता. आप से बारबार बोल रहा हूं कि घबराओ नहीं, अल्लाह पर भरोसा रखो.’

वहीं दूसरे पेज पर लिखा था— ‘आप से निवेदन है कि आप यह बात न ही पुलिस से और न ही अपनी लखनऊ वाली फैमिली को बताएं कि कुशाग्र को किडनैप कर लिया है. आप के पास 2-3 दिन का समय है. आप जल्दी से 30 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. और अगर यह बात कहीं फैली तो इस के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे.

‘जल्दी से 30 लाख रुपए का इंतजाम कर लो और अपना बच्चा एक घंटे बाद घर में देखो और पैसे ले कर रात 2 बजे कोका कोला चौराहे पर मिलो. मैं पैसे लेने आऊंगा. जैसे ही पैसे मेरे पास आएंगे, उस के ठीक एक घंटे बाद लड़का आप के पास होगा. पैसे का इंतजाम हो जाए तो अपने घर पर चारों तरफ पूजन वाले झंडे लगा देना. मैं देख लूंगा. इस के बाद आप को फोन करूंगा और हां, कोई भी होशियारी हुई तो इस के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे. मेरी नजर आप के घर पर ही होगी. कोई भी बात बाहर पता चली तो आप ध्यान रखना और आप बिलकुल भी घबराओ नहीं, आप का लड़का बिलकुल सहीसलामत घर पहुंच जाएगा. पर उस की जिम्मेदारी आप के ऊपर है.’

पत्र पढ़ कर घर में हड़कंप मच गया. सुमित और अभिषेक भी जान चुके थे कि कुशाग्र का किडनैप फिरौती के लिए किया गया है, लेकिन फिरौती का पत्र लाने वाला व्यक्ति ट्यूटर रचिता वत्स की स्कूटी से आया था. इस के बाद आदी ने अपनी ट्यूटर रचिता वत्स को फोन कर दिया. रचिता ने जैसे ही काल रिसीव की तो वह बोला, ”मैम आप की स्कूटी से कौन आया था जो घर पर एक लेटर डाल गया है. भैया (कुशाग्र) कहां है? क्या आप को कुछ मालूम है?’’

इस पर रचिता ने जवाब दिया कि वह घर पर है और उस की स्कूटी उस के दोस्त प्रभात शुक्ला के पास है. तुम्हारे भाई के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.

किडनैपर ने हड़काया बुरी तरह

लेकिन अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि आदी के मामा अभिषेक अग्रवाल के फोन पर रचिता वत्स का फोन आया. उन के फोन की रिकौर्डिंग औन थी. काल पिकअप करते ही रचिता वत्स ने पूछा कि आप कौन बोल रहे हैं? अभिषेक अग्रवाल ने जवाब दिया कि आदी का मामा बोल रहा हूं. फिर वह सीधे कहने लगी, ”क्याऽऽ पत्र… कौन सा पत्र आया है? मेरी स्कूटी से आया है कोई? क्या मामला है? आप लोग मेरा नाम क्यों ऐसे ले रहे हैं? मेरा बीपी लो हो रहा है. क्या बात है? आदी का फोन आया था मुझे.’’

इस पर अभिषेक ने कहा, ”नहीं, कोई बात नहीं है. आदी ने ऐसे ही तुम्हें फोन कर दिया होगा.’’ यह कह कर अभिषेक ने काल डिसकनेक्ट कर दी. लेकिन रचिता पर शक गहरा गया. रात 10 बजे सुमित कनौडिया व अभिषेक अग्रवाल कानपुर शहर के थाना रायपुरवा जा पहुंचे. थाने पर उस समय इंसपेक्टर अंकिता वर्मा मौजूद थीं. सुमित ने उन्हें अपने 16 वर्षीय बेटे कुशाग्र के अपहरण की सारी कहानी विस्तार से बता दी. उन्होंने फिरौती वाला पत्र इंसपेक्टर अंकिता वर्मा को थमा दिया.

अंकिता वर्मा ने पत्र बड़े गौर से पढ़ा, फिर बोली कि मामला गंभीर है. लगता है किसी खतरनाक गिरोह ने उस का किडनैप किया है. कुछ क्षण मौन रहने के बाद उन्होंने पूछा, ”तुम्हें किसी पर शक है?’’

”हां जी, शक तो है. लेकिन कोई यकीन नहीं कर पा रहा उस पर.’’

”कौन है वह?’’ अंकिता वर्मा ने पूछा.

”मैम, कुशाग्र को ट्यूशन पढ़ाने वाली ट्यूटर रचिता वत्स पर. 4 साल तक उस ने कुशाग्र को पढ़ाया. इस दरम्यान वह परिवार से घुलमिल गई थी. मनीष व उन की पत्नी सोनिया उसे बेटी मानते थे. ट्यूशन बंद हो जाने के बाद भी उस का घर आनाजाना था.’’

”तो फिर रचिता पर शक क्यों?’’ इंसपेक्टर वर्मा ने पूछा.

”मैम, जो व्यक्ति स्कूटी से पत्र पहुंचाने अपार्टमेंट आया था, वह स्कूटी रचिता वत्स की थी. सिक्योरिटी गार्ड राजेंद्र कुमार का मानना है कि स्कूटी रचिता मैम की है. इसी से शक है कि रचिता वत्स ने अपने अन्य साथियों के साथ मिल कर कुशाग्र का किडनैप किया है.’’

चूंकि मामला एक करोड़पति कारोबारी के बेटे के किडनैप का था, इसलिए इंसपेक्टर अंकिता वर्मा ऐक्शन में आ गईं. उन्होंने इस की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी, फिर पुलिस टीम के साथ श्री भगवती विला अपार्टमेंट पहुंच गईं. उन की सूचना पर आधा घंटे के अंदरअंदर जौइंट पुलिस कमिश्नर आनंद प्रकाश तिवारी, डीसीपी (सेंट्रल) प्रमोद कुमार, एडीसीपी आरती सिंह, एसीपी (अनवरगंज) सृष्टि सिंह, एसएचओ (बेकनगंज) अर्चना सिंह तथा एसएचओ (अनवरगंज) अशोक कुमार भी अपार्टमेंट पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले श्री भगवती विला के सिक्योरिटी गार्ड राजेंद्र कुमार से पूछताछ की. उस ने अधिकारियों को पूरी बात बताई. साथ ही यह भी कहा कि काले कलर की वह स्कूटी कुशाग्र भैया को ट्यूशन पढ़ाने वाली मैम रचिता वत्स की ही थी. उस ने स्कूटी को अच्छी तरह पहचान लिया था.

उसे यह पता नहीं था कि कुशाग्र का अपहरण हो गया है और वह युवक फिरौती का पत्र देने आया है वरना मैं उसे उसी समय ही दबोच लेता. गार्ड राजेंद्र का बयान पुलिस ने दर्ज किया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कुशाग्र के चाचा सुमित कनौडिया, मम्मी सोनिया, मामा अभिषेक अग्रवाल तथा भाई आदी से पूछताछ कर उन सब के बयान दर्ज किए. पुलिस ने अपार्टमेंट के मुख्य गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे को खंगाला तो उस में एक युवक काले कलर की स्कूटी से आता दिखाई दिया.

पुलिस होटल सिटी क्लब के पास पहुंची तो सड़क किनारे कुशाग्र की स्कूटी तो खड़ी मिली, लेकिन मोबाइल फोन नहीं मिला. पुलिस ने स्कूटी अपनी सुरक्षा में ले ली. पुलिस अब जल्द से जल्द रचिता वत्स को हिरासत में ले कर पूछताछ करना चाहती थी. लेकिन घर वालों ने ऐतराज जताया. उन का मानना था कि पुलिस देख कर रचिता व उस के साथी कुशाग्र के साथ कुछ गलत न कर दें. पुलिस अधिकारियों ने उन की बात मान ली.

गार्ड राजेंद्र कुमार 1-2 बार रचिता वत्स को उसे उस के घर तक छोडऩे जा चुका था. इसलिए सुमित, अभिषेक अग्रवाल, आदी तथा एक खास रिश्तेदार गार्ड राजेंद्र को साथ ले कर रचिता के फजलगंज खोया मंडी के पास स्थित रामबाबू के मकान पर पहुंचे. उस समय रात के साढ़े 10 बज रहे थे. पुलिस भी परिजनों का अनुसरण कर रही थी. अभिषेक अग्रवाल ने आवाज दी तो रचिता कमरे के बाहर आ गई. अभिषेक ने पूछा, ”रचिता, तुम्हारी स्कूटी कहां है?’’ यह सुनते ही रचिता सकपका गई. उस का चेहरा पीला पड़ गया. फिर भी वह खुद को संभालते हुए बोली, ”अंकलजी, हमारी स्कूटी दोस्त प्रभात शुक्ला के पास है. वह पास में ही ओम नगर वाली गली में इंद्रकुटी हाता में रहता है.’’

”मुझे उस के घर ले कर चलो,’’ अभिषेक अग्रवाल थोड़े ऊंचे स्वर में बोले.

ट्यूटर रचिता ने क्यों रची अपहरण की साजिश

रचिता वत्स उन लोगों को साथ ले कर प्रभात शुक्ला के घर पहुंची. प्रभात के घर वह स्कूटी खड़ी थी, जिस से पत्र फेंका गया था. रचिता के बुलाने पर प्रभात घर के बाहर आया. उस ने अभिषेक व अन्य लोगों को घर के अंदर नहीं जाने दिया और गेट पर ही बात करने लगा. अभिषेक अग्रवाल ने जब कुशाग्र और स्कूटी के संबंध में प्रभात शुक्ला से सवालजवाब किए तो वह उत्तेजित होने लगा. बात बिगड़ती, उस से पहले ही पुलिस आ गई और रचिता व प्रभात को हिरासत में ले लिया. स्कूटी भी कब्जे में ले ली. स्कूटी सहित रचिता व प्रभात को थाना रायपुरवा लाया गया.

थाने में डीसीपी (सेंट्रल) प्रमोद कुमार, एडीसीपी आरती सिंह, एसीपी सृष्टि सिंह, इंसपेक्टर अंकिता वर्मा तथा अशोक कुमार सरोज ने रचिता वत्स व प्रभात शुक्ला से पूछताछ शुरू की. लगभग 2 घंटे तक दोनों ही पुलिस को गुमराह करते रहे और खुद को निर्दोष बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने रचिता पर सख्ती की तो वह टूट गई. प्रभात भी पुलिस की सख्ती सहन नहीं कर पाया और टूट गया.

”कुशाग्र कहां है? उसे तुम ने कहां पर बंधक बनाया है?’’ डीसीपी ने पूछा.

”सर, कुशाग्र अब इस दुनिया में नहीं है,’’ प्रभात गरदन झुका कर बोला.

”क्या तुम लोगों ने उसे मार डाला है?’’

”हां सर, मैं ने शिवा व रचिता के साथ षडयंत्र रच कर कुशाग्र का किडनैप किया, फिर रस्सी से गला घोंट कर मार डाला. उस का शव हमारे घर के स्टोर रूम में पड़ा है.’’

”यह शिवा कौन है?’’ इंसपेक्टर अशोक कुमार सरोज ने पूछा.

”सर, शिवा गुप्ता हमारा दोस्त है और ओमनगर में ही हमारे घर से कुछ दूरी पर रहता है.’’

यह पता चलते ही पुलिस ने शिवा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद सुबह 4 बजे पुलिस प्रभात शुक्ला के घर पहुंची और उस के स्टोर रूम का दरवाजा तोड़ कर कोठरीनुमा कमरे में पहुंची. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर कुशाग्र का शव औंधे मुंह जमीन पर पड़ा था. उस के गले में नारियल की रस्सी कसी थी और उस के हाथपांव भी रस्सी से बंधे थे. शव को चादर से ढका गया था. सूचना पा कर पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे और घटनास्थल का निरीक्षण कर शव को पोस्टमार्टम हाउस लाला लाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया और मोहल्ले में भारी फोर्स तैनात कर दी.

पुलिस ने घटनास्थल से गला घोंटने वाली नारियल की रस्सी, डायरी, पेन, मृतक कुशाग्र का बैग, हेलमेट आदि बरामद किया. पुलिस ने हत्यारोपी प्रभात शुक्ला व शिवा की निशानदेही पर कुशाग्र का मोबाइल फोन, जिसे प्रभात ने रेलवे लाइन के किनारे झाडिय़ों में छिपा दिया था, बरामद किया. पुलिस ने दोनों की निशानदेही पर घटनास्थल से कुछ दूरी पर झाडिय़ों से एक बोरी भी बरामद की, जिस में पौलीथिन बैग व चापड़ था. इस बोरी के संबंध में प्रभात व शिवा ने बताया कि यदि वह पकड़े न जाते तो रात में कुशाग्र के शव के टुकड़ेटुकड़े कर पौलीथिन बैग में भर कर गंगा में फेंक देते. बरामद सामान को पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित किए. इस के अलावा पुलिस ने तीनों के मोबाइल फोन भी जांच हेतु जब्त कर लिए.

साक्ष्य जुटाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने हत्यारोपी रचिता वत्स, प्रभात शुक्ला व शिवा गुप्ता से पूछताछ की. तीनों ने अलगअलग बयान दिए. उन के इन बयानों पर पुलिस अधिकारियों को भरोसा नहीं हुआ. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में लव अफेयर, लालच और कत्ल की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

किराएदार रचिता को दिल दे बैठा प्रभात

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के फजलगंज कोतवाली के अंतर्गत एक मोहल्ला है- ओम नगर. इसी मोहल्ले के इंद्रकुटी हाता में सुनील कुमार शुक्ला सपरिवार रहते थे. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा प्रभात तथा एक बेटी निमिषा थी. सुनील कुमार शुक्ला होमगार्ड थे. पनकी थाने में वह तैनात थे. उन्हें जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का गुजारा होता था. प्रभात डीबीएस कालेज से बीएससी की परीक्षा पास कर ली थी. वह नौकरी की तलाश में था. लेकिन जब नौकरी नहीं मिली तो लौंग, इलायची और मसाला दुकानों पर सप्लाई करने लगा. इस व्यापार से उसे कमाई होने लगी, जिस से वह ठाटबाट से रहने लगा.

प्रभात शुक्ला का दोस्त था शिवा गुप्ता. वह ओमनगर में ही उस के घर से कुछ दूरी पर रहता था. शिवा के पिता का नाम राजकुमार गुप्ता व मां का नाम रेनू गुप्ता था. शिवा के 2 अन्य भाई सुमित व सत्यम थे. तीनों भाई मिल कर हैलट अस्पताल में कैंटीन चलाते थे. शिवा के पिता राजकुमार गुप्ता पैरालिसिस के मरीज थे और मां घरेलू महिला थी. सुनील कुमार शुक्ला के मकान में संजय वत्स किराएदार थे. वह मूलरूप से हिमाचल प्रदेश के जिला अंबा की तहसील नंदपुर के गांव ठठर के रहने वाले थे. एक दशक पहले वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आए थे. उस के बाद यहीं बस गए थे.

उन के परिवार में पत्नी चमेली के अलावा 2 बेटियां तथा एक बेटा था. रचिता वत्स बड़ी बेटी थी. संजय प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालनपोषण करते थे. 20 वर्षीय रचिता वत्स गोरीचिट्टी, छरहरी काया की युवती थी. नैननक्श भी तीखे थे. सब से खूबसूरत उस की आंखें थीं, जो खुमार भरी और गहरी थीं. उस की आंखों में ऐसी कशिश थी कि जो उन में देखे, खो सा जाए. रचिता कौन्वेंट में पढ़ती थी. उस ने सीबीएसई बोर्ड से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. वह आगे भी पढऩा चाहती थी, लेकिन मां के निधन के कारण उसे पढ़ाई बंद करनी पड़ी.

रचिता और प्रभात हमउम्र थे. दोनों एक ही मकान में रहते थे. इसलिए अकसर दोनों का आमनासामना हो जाता था. बातचीत भी हो जाती थी. प्रभात की नजरें जब भी रचिता की नजरों से मिलती तो वह उस में मानो डूब सा जाता. जी में आता, उन्हीं खुमार भरी आंखों की अथाह गहराइयों में पूरी उम्र डूबा रहे. प्रभात रचिता पर फिदा था. रचिता की आंखें उस की सोच की धुरी बन गई थी. रचिता ने भी प्रभात की के दिल की भाषा पढ़ ली थी. अत: वह भी प्रभात को मन ही मन चाहने लगी थी.

एक शाम रचिता कमरे में अकेली थी. तभी प्रभात कमरे में आ गया. उस ने रचिता का हाथ अपने हाथ पर रखा फिर बोला, ”रचिता, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम से प्यार हो गया है. तुम्हारी इन हसीन आंखों में अब मैं पूरी जिंदगी गुजार देना चाहता हूं.’’

कुछ देर तक रचिता प्रभात को देखती रही, फिर आहिस्ता से बोली, ”प्यार ऐसी ही चीज है, जिस पर दुनिया का कोई कानून लागू नहीं होता. लेकिन प्यार के कुछ तकाजे भी होते हैं.’’

प्रभात ने धड़कते दिल से पूछा, ”कैसे तकाजे?’’

”वफा, ईमानदारी और जिंदगी भर साथ निभाने का जज्बा.’’

”यह सब मैं अच्छी तरह से निभाऊंगा. बस तुम मेरा प्यार कबूल कर लो.’’

रचिता भरीपूरी युवती थी. उस के मन में भी किसी का प्यार पाने की चाहत थी. अत: जब प्रभात ने प्यार का इजहार किया तो उस ने उस के प्यार को स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों के प्यार के चर्चे ओम नगर की गली में होने लगे. रचिता और प्रभात के प्यार की भनक प्रभात के पिता सुनील कुमार शुक्ला के कानों में पड़ी तो उन का माथा ठनका. वह नहीं चाहते थे कि प्रभात एक पहाड़ी लड़की को ब्याह कर घर लाए. उन्होंने विरोध करना शुरू किया. साथ ही रचिता के पिता संजय वत्स को कमरा खाली करने का फरमान जारी कर दिया. जबकि प्रभात नहीं चाहता था कि रचिता कमरा खाली कर कहीं दूसरी जगह जा कर रहे, लेकिन पिता के आगे उस की एक न चली.

दबाव के चलते संजय वत्स ने कमरा खाली कर दिया और फजलगंज में खोया मंडी के पास रामबाबू के मकान में कमरा किराए पर ले लिया. इन्हीं दिनों संजय वत्स बीमार पड़ गए, जिस से घर में आर्थिक संकट आ गया. रचिता पढ़ीलिखी युवती थी, अत: वह बड़े घरों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी. इस से उस का खर्चा चलने लगा. बीमारी के चलते कुछ समय बाद उस के पिता संजय का भी निधन हो गया. उस के बाद रचिता ने भाईबहन को ननिहाल (हिमाचल प्रदेश) भेज दिया और स्वयं अकेली रहने लगी. कोचिंग से वह इतना कमा लेती थी कि उस का खर्चा आराम से चल जाता था.

रचिता ने कमरा जरूर खाली कर दिया था, लेकिन उस का प्रभात से मिलनाजुलना बंद नहीं हुआ था. प्रभात का एक कमरे तथा उस से सटे स्टोर रूम पर कब्जा था. रचिता जब कभी प्रभात से मिलने कमरे पर आती तो प्रभात के अनुरोध पर रात में कमरे पर रुक भी जाती थी. इस तरह दोनों का मिलन होता रहता था. दोनों के बीच की दूरियां मिट चुकी थीं. इस मिलन का परिणाम यह हुआ कि रचिता गर्भवती हो गई. लेकिन लोकलाज के चलते उस ने प्रभात के कहने पर गर्भपात करा दिया था. गर्भ गिराने को ले कर रचिता और प्रभात के बीच बहस भी हुई थी, लेकिन प्रभात ने रचिता को समझाबुझा कर चुप करा दिया था.

प्रेमिका के सहारे प्रभात पूरा करना चाहता था स्वार्थ

रचिता वत्स कारोबारी मनीष कनौडिया के बेटे कुशाग्र को भी ट्यूशन पढ़ाने जाती थी. कुशाग्र के पिता मनीष कनौडिया आचार्य नगर स्थित श्री भगवती विला अपार्टमेंट के द्वितीय तल पर रहते थे. परिवार में पत्नी सोनिया के अलावा 2 बेटे कुशाग्र व आदी थे. मनीष कनौडिया साड़ी के बड़े कारोबारी थे. उन की पीर रोड पर कनौडिया मैचिंग सेंटर के नाम से साड़ी का शोरूम था.जनरलगंज में मनीष कुमार, सुमित कुमार ऐंड संस तथा जनरलगंज में ही मां शीतला एजेंसी के नाम से साड़ी की बड़ी दुकानें थीं. लखनऊ में भी श्री राधेकृष्ण सारीज के नाम से दुकान थी. सूरत (गुजरात) में भी उन का साड़ी का कारोबार था.

लखनऊ और कानपुर का कारोबार उन के भाई सुमित कुमार तथा पिता संजय कनौडिया संभालते थे. जबकि सूरत का कारोबार मनीष कनौडिया संभालते थे. मनीष कनौडिया करोड़पति साड़ी कारोबारी थे. कानपुर शहर के कपड़ा व्यापारियों में उन की आनबानशान थी. मनीष कनौडिया का बेटा कुशाग्र कानपुर के प्रतिष्ठित सेठ आनंद राम जयपुरिया स्कूल कैंट में पढ़ता था. जब वह कक्षा 4 में था, तब से रचिता वत्स उसे ट्यूशन पढ़ाने आ रही थी. चूंकि रचिता अच्छा पढ़ाती थी, इसलिए कुशाग्र उस से हिलमिल गया था. वह हंसमुख थी, अत: उस ने कुशाग्र के मम्मीपापा का दिल जीत लिया था. वह उसे बेटी के समान मानने लगे थे.

रचिता को ट्यूशन फीस साढ़े 4 हजार रुपए मिलती थी. इस के अलावा भी कुशाग्र की मम्मी सोनिया उस की आर्थिक मदद करती रहती थी. ट्यूशन के पैसे जोड़ कर रचिता ने स्कूटी खरीद ली थी. इसी स्कूटी से वह घरों में पढ़ाने जाती थी. रचिता ने कुशाग्र को कक्षा 8 तक पढ़ाया. उस के बाद वह उस के भाई आदी को पढ़ाने लगी थी. कुशाग्र मेनन कोचिंग स्वरूपनगर पढऩे जाने लगा था. एक रोज प्यार के क्षणों में प्रभात ने पूछा, ”रचिता, सुना है कि तुम जिस साड़ी कारोबारी के लड़के को ट्यूशन पढ़ाती हो, वह बहुत बड़ा आदमी है. कभी हमें भी उस की रईसी की झलक दिखाओ.’’

”तुम्हारी यह तमन्ना मैं जरूर पूरा करूंगी. थोड़ा समय का इंतजार करो.’’ रचिता ने हंसते हुए जवाब दिया.

13 अक्तूबर, 2022 को कुशाग्र का जन्मदिन था. इस में रचिता को भी बुलाया गया था. जन्मदिन की पार्टी में रचिता अपने प्रेमी प्रभात शुक्ला को साथ ले कर गई. उस ने दोस्त के रूप में प्रभात का परिचय कुशाग्र की मम्मी सोनिया व परिवार के अन्य लोगों से कराया. पार्टी की शानोशौकत व रौनक देख कर प्रभात की आंखें चौंधिया गई. प्रभात ने पार्टी के दौरान कुशाग्र से खूब बातचीत की और उस से घुलमिल गया. इस के बाद मार्च 2023 में कुशाग्र के घर फिर से जन्मदिन पार्टी हुई. इस पार्टी में भी प्रभात रचिता के साथ गया. यह पार्टी पहले से भी ज्यादा शानदार थी. इस पार्टी में प्रभात ने कुशाग्र से सारी जानकारी हासिल की. मसलन वह कहां कोचिंग पढ़ता है. घर से कब निकलता है. कब वापस आता है. किस रूट से आताजाता है. स्कूटी से जाता है या कोई छोडऩे जाता है.

पार्टी से लौटने के बाद प्रभात के मन में लालच आ गया. वह सोचने लगा कि यदि रचिता उस का साथ दे तो वह लखपति बन सकता है. उस के मन में कुशाग्र का किडनैप और हत्या कर लाखों रुपया फिरौती के रूप में वसूलने का कुविचार पनपने लगा. उस ने मन की बात रचिता से कही तो वह चौंकी, लेकिन जब प्रभात ने उसे समझाया कि इस पैसे से वह गाड़ी, बंगला खरीद कर और शादी रचा कर ऐश की जिंदगी बिताएंगे तो रचिता के मन में भी लालच आ गया. वह प्रेमी का साथ देने को राजी हो गया. उस ने अपनी योजना में दोस्त शिवा गुप्ता को भी रुपयों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस तरह योजना बना कर प्रभात शुक्ला ने 30 अक्तूबर, 2023 को कुशाग्र का अपहरण कर उस की हत्या कर दी.

रचिता कुशाग्र से हंसहंस कर खूब बातें करती थी, इसलिए प्रभात के मन में यह शक हो गया था कि कहीं इन दोनों के बीच कोई चक्कर तो नहीं चल रहा, इसलिए प्रभात को कुशाग्र से खुंदक रहती थी. तभी तो उस ने उस का अपहरण करने के बाद उस की तुरंत हत्या कर दी थी फिर अपने दोस्त शिवा गुप्ता के जरिए फिरौती का लेटर कुशाग्र के फ्लैट तक पहुंचवा दिया. पुलिस ने हत्यारोपी प्रभात शुक्ला, शिवा गुप्ता व रचिता वत्स को कानपुर कोर्ट में सीएमएम के समक्ष पेश किया, जहां से उन तीनों को जिला जेल भेज दिया गया.

चूंकि सिक्योरिटी गार्ड की सूझबूझ से इस जघन्य हत्याकांड का परदाफाश हुआ था, अत: पुलिस अधिकारियों ने गार्ड राजेंद्र को प्रशस्ति पत्र दे कर सम्मानित किया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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