विभूति को लगता था कि गौरव उस से शादी करेगा. जबकि गौरव उसे मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने का साधन समझता रहा. गौरव का इरादा जानने के बाद विभूति ने उस की इच्छा पूरी करने से मना किया तो… 

विभूति का सामान ज्यादा और भारी था, इसलिए सीट के नीचे एडजस्ट करने में उसे काफी दिक्कत हो रही थी. उसे परेशान देख कर सामने की सीट पर बैठे युवक ने कहा, ‘‘मैडम, आप बुरा मानें तो आप का सामान एडजस्ट कराने में मैं आप की मदद कर दूं.’’ विभूति ने युवक की ओर देखा और उठ कर एक किनारे खड़ी हो गई. एक तरह से यह उस की मौन सहमति थी. उस युवक ने विभूति का सारा सामान पलभर में सीट के नीचे करीने से लगा दिया. उस के बाद हाथ झाड़ते हुए बोला, ‘‘अब आप आराम से बैठिए.’’

‘‘थैंक यू.’’ कह कर विभूति युवक के सामने वाली अपनी सीट पर बैठ गई. कुछ पल तक खामोशी छाई रही. यह खामोशी शायद युवक को अच्छी नहीं लग रही थी, इसलिए चुप्पी तोड़ते हुए उस ने पूछा, ‘‘मैडम, आप कहां तक जाएंगी?’’

‘‘मुंबई तक.’’ विभूति ने संक्षिप्त सा जवाब दिया. युवक शायद विभूति से बातचीत के मूड में था, इसलिए उस ने तुरंत अगला सवाल दाग दिया, ‘‘आप यहीं की रहने वाली हैं?’’

‘‘नहीं,’’ विभूति युवक को लगभग घूरते हुए बोली, ‘‘मैं मुंबई की रहने वाली हूं. यहां मेरी कंपनी ने एक फैशन शो आयोजित किया था, उसी में भाग लेने आई थी.’’

‘‘आप मौडलिंग करती हैं क्या?’’ युवक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं मौडल नहीं, फैशन डिजाइनर हूं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘अच्छा, आप ड्रैस डिजाइनर हैं. मैं भी एक तरह से डिजाइनर ही हूं. आप अपनी डिजाइन से लोगों को सजाती हैं तो मैं अपनी डिजाइन से लोगों के घर, होटल आदि सजाता हूं. मैं इंटीरियर डिजाइनर हूं. मैं भी मुंबई का ही रहने वाला हूं. यहां एक होटल में मेरा काम चल रहा है, उसी सिलसिले में आया था.’’

‘‘इतनी सारी बातें हो गईं. कौन कहां रहता है, क्या करता है? यह तो पता चल गया लेकिन अभी तक हम एकदूसरे का नाम नहीं जान सके. चलो, पहले मैं ही अपने बारे में बताए देती हूं. मेरा नाम विभूति है और मैं मुंबई के घाटकोपर में रहती हूं. क्या करती हूं, यह आप जान ही गए हैं.’’ विभूति ने कहा.

‘‘मैं क्या करता हूं, यह आप को पता चल ही चुका है. मेरा नाम गौरव बरुआ है. मैं मुंबई के विलेपार्ले जुहू स्कीम में रहता हूं.’’ गौरव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि विभूति झट बोल पड़ी, ‘‘आप तो मुंबई के बहुत ही वीआईपी इलाके में रहते हैं.’’

‘‘पिताजी जब मुंबई आए थे, तभी वह बंगला खरीदा था. बाकी मेरी हैसियत वहां बंगला खरीदने की कहां है.’’ गौरव ने कहा. इस तरह गौरव और विभूति में बातचीत शुरू हुई तो दोनों तब तक बातें करते रहे, जब तक ट्रेन मुंबई नहीं पहुंच गई. इस बीच दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिए थे. मुंबई पहुंचने पर गौरव ने विभूति का सामान उतरवाया ही नहीं, बल्कि बाहर तक लाने में मदद भी की. बाहर विभूति के पापा गाड़ी लिए खड़े थे, वह उन के साथ चली गई तो गौरव टैक्सी कर के अपने घर चला गया

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. ट्रेन पर हुई इस मुलाकात ने दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत का एक कोना बना दिया था. दरअसल दोनों ही पढ़ेलिखे और ठीकठाक घरों से तो थे ही, देखने में सुंदर और बातचीत में भी काफी स्मार्ट थे. शायद यही वजह थी कि दोनों ही एकदूसरे को भा गए थे. लेकिन सवाल यह था कि बात कैसे आगे बढ़े. गौरव शायद विभूति के लिए कुछ ज्यादा ही बेचैन था. वह स्टेशन पर विभूति को विदा कर के घर तो गया था, लेकिन उस का दिल खूबसूरत विभूति के साथ चला गया था. उस की आंखों में नींद की जगह अब विभूति समा गई थी. स्त्री सुख के लिए तरस रहे गौरव को विभूति की सुंदरता और वाचालता ने कुछ इस तरह से प्रभावित किया था कि एक बार फिर उसे पत्नी की याद सताने लगी थी.

वह उस सुख के लिए छटपटाने लगा था, जो कभी पत्नी से मिलता रहा था. वैसे तो पत्नी के छोड़ कर जाने के बाद से गौरव बरुआ को औरत नाम से नफरत हो गई थी. लेकिन विभूति से मिलने के बाद वह नफरत एक बार फिर प्यार में बदल गई थी. पहले उसे औरतों से जितनी नफरत थी, विभूति से मिलने के बाद उस से उतना ही प्यार हो गया था. वह उस की ओर खिंचता चला जा रहा था. लेकिन फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. संकोच हो रहा था कि फोन करने पर वह उस के बारे में क्या सोचेगी. दूसरी ओर विभूति का भी वही हाल था, जो गौरव का था. गौरव का बातव्यवहार और कदकाठी उसे कुछ इस तरह से भाई थी कि हर पल वह उसी के बारे में सोचने को मजबूर थी.

29 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था, जब विभूति किसी युवक के प्रति आकर्षित हुई थी यानी उस का दिल आया था. एक  तरह से उसे गौरव से प्यार हो गया था. लेकिन चाह कर भी वह गौरव को फोन नहीं कर पा रही थी. 4-5 दिनों तक तो गौरव ने खुद को किसी तरह रोके रखा. लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने विभूति को फोन कर ही दिया. गौरव के इस फोन ने विभूति के दिल को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी कि लगता कि दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए कुछ चल रहा है. लेकिन बातचीत का रास्ता जरूर खुल गया था.  

एक बार बाचतीत शुरू हुई तो यह सिलसिला सा बन गया. धीरेधीरे बातें लंबी होती गईं. फिर एक समय ऐसा भी गया, जब दोनों समय निकाल कर एकदूसरे से मिलने लगे. लगातार मिलते रहने से जल्दी ही दोनों करीब ही नहीं गए, बल्कि उन के शारीरिक संबंध भी बन गए. इस की वजह यह थी कि विभूति को पाने के लिए गौरव ने शादी का वादा कर लिया था. विभूति भी उस से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह गौरव की हर इच्छा पूरी करना अपना फर्ज समझने लगी थीयही वजह थी कि चाह कर भी वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर गौरव की इच्छा पूरी करने लगी. इस तरह गौरव जो चाहता था, वह उसे आसानी से मिल गया था. एक बार मर्यादा टूटी तो फिर टूटती ही चली गई.

गौरव ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर ही अपना औफिस बना रखा था, जबकि फर्स्ट फ्लोर पर वह मां के साथ रहता था, इसलिए जब भी वह खाली होता, फोन कर के विभूति को अपने ही औफिस में बुला लेता था. विभूति को काम भी होता, तब भी वह मना नहीं कर पाती थी और गौरव से मिलने उस के औफिस पहुंच जाती थी. इसी तरह समय बीतता रहा. गौरव और विभूति को मिलते हुए लगभग 2 साल का समय बीत गया. इस बीच विभूति ने जाने कितनी बार गौरव से शादी के लिए कहा, लेकिन गौरव ने हर बार कोई कोई बहाना बना कर बात टाल दीगौरव की इस तरह लगातार बहानेबाजी से विभूति को लगने लगा कि गौरव उसे सिर्फ एंजौय का साधन समझता है. शादी का उस का कोई इरादा नहीं है यानी शादी का झांसा दे कर वह उस का यौनशोषण कर रहा है

इस बात का अहसास होते ही विभूति गौरव पर शादी का दबाव डालने लगी. गौरव ने इसे पहले की ही तरह लापरवाही से लिया, लेकिन जब विभूति ने उस पर कुछ ज्यादा ही दबाव बनाया तो वह बौखला उठा. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह क्या करे. क्योंकि अब विभूति के शरीर के बिना रहना उस के लिए मुश्किल थाजबकि विभूति ने पक्का इरादा बना लिया था कि अब वह शादी के बाद ही गौरव को अपने शरीर से हाथ लगाने देगी. गौरव ने देखा कि विभूति किसी भी तरह नहीं मान रही है तो काफी सोचविचार कर उस ने उसे समझाने और मनाने के लिए फोन कर के अपने बंगले पर बुलाया.

शनिवार का दिन था. काम ज्यादा होने की वजह से विभूति शाम को गौरव के बंगले पर जा पहुंची. बातचीत और इच्छा पूरी करने में लड़ाईझगड़ा भी हो सकता था. तब बात मां तक पहुंच सकती थी. बात मां तक पहुंचे, इस से बचने के लिए गौरव ने कार निकाली और विभूति को बैठा कर समुद्र के किनारे जुहू चौपाटी की ओर निकल पड़ाकाफी समय तक गौरव विभूति के साथ इधरउधर घूमता रहा. इस दौरान वह विभूति को भरोसा दिलाता रहा कि जल्दी ही वह उस से शादी कर लेगा. जब उसे लगा कि विभूति मान गई है तो वह उसे ले कर बंगले पर गया. बंगले पर कर उस ने विभूति से शारीरिक संबंध की पेशकश की तो उस ने साफ मना कर दिया. जबकि गौरव पूरे मूड में था, इसलिए वह उसे मनाने लगा.

जबकि विभूति अपनी बात पर अड़ी रही. उस ने साफ कह दिया कि अब तक जो हुआ, वह बहुत था. अब वह उसे शादी के बाद ही हाथ लगाने देगीलेकिन गौरव वासना के उन्माद में पूरी तरह अंधा हो चुका था, इसलिए वह होश खो बैठा. उसे अच्छेबुरे का भी खयाल नहीं रहा. आवेश में कर उस ने विभूति का गला दोनों हाथों से पकड़ लिया. इस पर भी विभूति नहीं मानी तो गौरव ने उस पर दबाव बनाने के लिए उस का गला दबाना शुरू कर दिया. गुस्से में होने की वजह से दबाव बढ़ गया तो विभूति मर गई. विभूति एक ओर लुढ़क गई तो वासना के उन्माद में अंधे गौरव की आंखें खुलीं. जब उस ने देखा कि विभूति मर चुकी है तो वह बुरी तरह डर गया. पुलिस और कानून से बचने के लिए विभूति के शव को ठिकाने लगाना जरूरी था. दूसरी ओर मां का भी डर था.

सुबह होने पर मां को इस बात की जानकारी हो, उस के पहले ही वह विभूति के शव को ठिकाने लगा देना चाहता था. उस ने कागज के एक पुराने बौक्स में लाश डाली और उसे कार की डिक्की में रख कर जान की परवाह किए बगैर उतनी रात को पवई कस्टम विभाग कालोनी के पीछे घने जंगलों में जा पहुंचा. लाश को एक खाई में डाल कर साथ लाए थिनर के पूरे कैन को उस के ऊपर उड़ेल कर जला दिया. यह 9 नवंबर, 2013 की रात की घटना थी.10 नवंबर की सुबह यही कोई 11 बजे मुंबई के उपनगर अंधेरी के पौश इलाके के थाना पवई के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला को किसी ने फोन द्वारा सूचना दी कि पवई कस्टम कालोनी के पीछे के जंगल में कुछ दूर अंदर जा कर घनी झाडि़यों के बीच एक खाई में एक महिला की क्षतविक्षत लाश पड़ी है.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने तुरंत ड्यूटी अफसर से यह मामला दर्ज कराने के साथ घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों और कंट्रोलरूम को दे दी. इस के बाद वह कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए 10 मिनट में वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. जहां लाश पड़ी थी, वह स्थान निर्जन और  सुनसान था. वहां कोई भीड़भाड़ नहीं थी. इस की वजह यह थी कि पवई कस्टम विभाग कालोनी का यह इलाका संजय गांधी नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है, जहां अकसर तेंदुए और अन्य खतरनाक जंगली जानवर खुलेआम घूमते दिखाई दे जाते हैं. इसलिए यहां आम लोगों के आनेजाने पर पाबंदी है.

पहले तो पुलिस को लगा था कि किसी आदिवासी महिला को किसी जंगली तेंदुए ने अपना शिकार बनाया होगा. लेकिन घटनास्थल पर पहुंचने पर पता चला कि यह जंगली जानवर का नहीं, किसी आदमखोर इंसान का काम था. स्थिति स्तब्ध करने वाली थी. महिला की अधजली, क्षतविक्षत लाश 8-10 फुट गहरी खाई में पड़ी थी.लाश की शिनाख्त और सुबूतों को मिटाने के लिए हत्यारे ने महिला के चेहरे से ले कर पैर तक कैमिकल डाल कर बुरी तरह से जला दिया था. हत्यारे ने वहां कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस को जांच आगे बढ़ाने में मदद मिलती.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला सहयोगियों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि क्राइम ब्रांच के जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अरविंद महावद्धी, डीसीपी अंबादास पोटे आदि क्राइम टीम के साथ घटनास्थल पर गए. सभी अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो अधिकारी थाना पुलिस को दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने लाश को खाई से बाहर निकलवाया और अन्य सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. इस के बाद थाने कर मृतका का पूरा हुलिया बता कर महानगर के सभी पुलिस थानों को लाश बरामद होने की सूचना दे दी

थाना पवई पुलिस को उम्मीद थी कि किसी किसी थाने में मृतका की गुमशुदगी अवश्य दर्ज होगी. लेकिन पवई पुलिस को इस का कोई फायदा नहीं मिला. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुल्ला ने मुखबिरों की मदद ली, लेकिन वह पूरा दिन बीत गया, पुलिस को कहीं से भी मृतका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. एक ओर थाना पवई पुलिस जहां लाश की शिनाख्त के लिए हाथपैर मार रही थी, वहीं दूसरी ओर घटनास्थल से लौट कर आने के बाद जौइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी दहिसर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले को सौंप दी थी. आदेश मिलते ही मिलिंद खेतले ने सहयोगियों के साथ एक मीटिंग की. इस मीटिंग में तमाम माथापच्ची के बाद भी जांच को आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं मिली. इस की वजह यह थी कि एक तो अभी तक लाश की शिनाख्त नहीं हुई थी, दूसरे घटनास्थल से कोई सुबूत भी नहीं मिला था

हत्यारे ने मृतका की शिनाख्त इस तरह मिटाई थी कि उस का फोटो भी अखबार में नहीं छपवाया जा सकता था. जबकि बिना लाश की शिनाख्त के जांच को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था. क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी मिलिंद इस मामले को ले कर थोड़ा परेशान जरूर थे, लेकिन निराश बिलकुल नहीं थे. उन्हें पूरा यकीन था कि इस मामले को वह शीघ्र ही सुलझा लेंगेसीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए 4 टीमें बनाईं, जिन में पुलिस इंसपेक्टर राजेश कानड़े, संदीप विश्वासराव, असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर मनोहर दलवी, विजय कांदलगांवकर, संजय मराठे, राहुल देशमुख, सबइंसपेक्टर बालकृष्ण लाड को शामिल किया

इस के बाद उन्होंने चारों टीमों को जांच के लिए लगा दिया. सभी टीमों को निर्देश दिया गया कि वे शहर के हर थाने में जा कर स्वयं पता करें कि उन के यहां किसी लड़की की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले की यह युक्ति काम कर गई और गोरेगांव ईस्ट के थाना वनराई गई पुलिस टीम को पता चल गया कि 10 नवंबर को यहां एक लड़की की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थीयह गुमशुदगी घाटकोपर की अमृतनगर कालोनी के रहने वाले राजेंद्र कुमार संपत ने दर्ज कराई थी. इस के बाद क्राइम ब्रांच की जांच टीम ने गुमशुदगी दर्ज कराने वाले राजेंद्र कुमार संपत को क्राइम ब्रांच के औफिस बुला लिया. उन से पूछताछ में पता चला कि लाश की शिनाख्त के लिए वह थाना पवई गए थे, जहां से जेजे अस्पताल ले जा कर उन्हें वह लाश दिखाई गई थी.

लेकिन लाश की स्थिति ऐसी थी कि उसे देख कर पहचान पाना संभव नहीं था. कैमिकल से लाश का अधिकतर हिस्सा जला दिया गया था. लेकिन हाथ के कंगन से उन्होंने शव को पहचान लिया था. लाश उन की बेटी विभूति की थी. राजेंद्र कुमार संपत का कहना था कि 9 नवंबर की सुबह औफिस के लिए निकली विभूति 10 नवंबर की शाम तक घर नहीं पहुंची तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने उस की तलाश शुरू कीउस की कंपनी में तो पता किया ही, उस के यारदोस्तों और नातेरिश्तेदारों से भी पूछा. जब कहीं से कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने गोरेगांव (ईस्ट) के थाना वनराई में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दीथाना पवई पुलिस ने जब जंगल से लाश बरामद की तो उसी दर्ज रिपोर्ट के आधार पर उन्हें थाना पवई बुला कर वह लाश दिखाई गई थी. इस के बाद उन्होंने जो बताया, वह इस प्रकार था.

राजेंद्र कुमार संपत अपने परिवार के साथ घाटकोपर के अमृतनगर कालोनी में रहते थे. उन का अपना व्यवसाय था. 29 वर्षीया विभूति उन की एकलौती संतान थी. एकलौती होने की वजह से वह उन्हें बहुत प्यारी थी. विभूति पढ़नेलिखने में ठीक थी. बीएससी करने के बाद उस ने घाटकोपर के सौम्या कालेज से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया तो गोरेगांव ईस्ट स्थित केकेसीएल कंपनी में उसे एग्जीक्यूटिव फैशन डिजाइनर की नौकरी मिल गई थी. वह समय पर औफिस जाती थी और समय पर घर जाती थी. कभीकभार औफिस में काम होता तो देर भी हो जाती थी. जरूरत पड़ने पर वह दूसरे शहरों में भी जाती रहती थी. उस दिन भी उस ने कहा था कि काम अधिक होने की वजह से उसे देर हो जाएगी, इसलिए उस दिन वह नहीं आई तो घर वालों को लगा कि काम की वजह से वह घर नहीं पाई.

क्राइम ब्रांच की टीम को घर वालों से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी, जिस से उन्हें जांच को आगे बढ़ाने में मदद मिलती इस टीम ने उस के औफिस जा कर उस के सहकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन वहां से भी पुलिस के हाथ कुछ खास नहीं लगा. तब क्राइम ब्रांच की टीम उन लोगों के फोन नंबर ले कर अपने औफिस गई, जो विभूति के कुछ ज्यादा ही करीबी थे. अब पुलिस के पास हत्यारों तक पहुंचने का एक ही रास्ता बचा था, वह था विभूति का मोबाइल फोन नंबर. पुलिस ने विभूति के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पुलिस को एक नंबर पर शक हुआ, क्योंकि उस नंबर पर विभूति की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. जिस दिन विभूति गायब हुई थी, उस दिन उस नंबर से फोन तो नहीं आया था, लेकिन एसएमएस जरूर किया गया था.

इस के बाद पुलिस ने उस फोन की लोकेशन निकलवाई तो उस की लोकेशन वहां की मिल गई, जहां से विभूति की लाश बरामद की गई थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर विलेपार्ले जुहू स्कीम के रहने वाले गौरव बरुआ का निकला. क्राइम ब्रांच की यह टीम गौरव बरुआ के घर पहुंची और पूछताछ के लिए उसे दहिसर स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस ले आई. पूछताछ में पहले तो गौरव बरुआ ने विभूति की हत्या के मामले में खुद को निर्दोष बताया. पहले तो उस ने विभूति को जानने से ही मना कर दिया था. लेकिन पुलिस ने विभूति की काल डिटेल्स में उस का नंबर दिखाया और जिस दिन वह गायब हुई थी, उस दिन उस के द्वारा भेजा गया एसएमएस दिखाने के साथ घटनास्थल की उस के मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

गौरव बरुआ द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने के बाद क्राइम ब्रांच टीम ने 12 नवंबर, 2013 को उसे बोरीवली की अदालत में पेश कर के विस्तृत पूछताछ और सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में गौरव बरुआ से जो पता चला, वह इस प्रकार था. 35 वर्षीय गौरव बरुआ दिलीप बरुआ का एकलौता बेटा था. दिलीप बरुआ मूलरूप से गुजरात के रहने वाले थे. बरसों पहले वह मुंबई आए तो उन्होंने नौकरी करने के बजाय अपना व्यवसाय शुरू किया. वह सीधेसादे, सरल स्वभाव के मिलनसार आदमी थे. इसी वजह से उन का व्यवसाय चल निकला. दिलीप बरुआ के पास पैसा आया तो उन्होंने विलेपार्ले जुहू स्कीम जैसे पौश इलाके में अपने लिए एक छोटा सा बंगला खरीद लिया. यह ऐसा इलाका है, जहां अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमामालिनी, मनोज कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, अमरीश पुरी जैसे लोग रहते हैं.

गौरव बरुआ छोटा था, तभी दिलीप बरुआ की मौत हो गई थी. उस के बाद व्यवसाय और गौरव की जिम्मेदारी उस की मां ने संभाली. मां ने गौरव को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उस ने घरपरिवार की सारी जिम्मेदारी संभाल ली. उस ने मीठीबाई कालेज से बीएससी किया और इंटीरियर डेकोरेटर का कोर्स कर के अपना खुद का काम करने लगा. अपने इसी काम की वजह से गौरव बरुआ को अकसर बाहर जाना पड़ता था. ऐसे में घर में उस की मां अकेली रह जाती थीं. इसलिए वह बेटे की शादी के लिए लड़की की तलाश करने लगीं. शीघ्र ही उन्हें लड़की मिल गई और उस से उन्होंने गौरव की शादी कर दी.

लेकिन गौरव बरुआ की यह शादी ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई. पत्नी तलाक ले कर चली गई. पत्नी ने उस के साथ जो व्यवहार किया था, उस से उसे औरतों से नफरत हो गई. लेकिन विभूति से उस की मुलाकात के बाद उसे फिर से एक औरत की जरूरत महसूस होने लगी. उस ने विभूति से दोस्ती कर ली. उसे उस से प्यार नहीं हुआ. उस ने उसे मात्र हवस शांत करने का साधन समझा था. यही वजह थी कि जब विभूति ने उस की हवस शांत करने से मना किया तो उस ने उसे खत्म कर दिया.

 पूछताछ और सुबूत जुटा कर क्राइम ब्रांच यूनिट-12 के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मिलिंद खेतले ने गौरव को थाना पवई पुलिस को सौंप दिया, जहां गौरव के खिलाफ विभूति की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे एक बार फिर अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक गौरव जेल में ही था. उस की जमानत नहीं हुई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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