नादान नेहा ने प्रवीण से प्यार तो कर लिया, लेकिन जब उस ने देखा कि प्रवीण अपने भाइयों के साथ मिल कर उस की मां और भाई के साथ कुछ भी उलटासीधा कर सकता है तो उसे प्रवीण से नफरत हो गई, इस के बाद जो हुआ, शायद वह नेहा की नादानी का ही नतीजा था दोपहर के सवा 2 बजे के आसपास गौरव घर पहुंचा तो उसे दरवाज खुलवाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि
दरवाजा पहले से ही खुला था. बरामदे में साइकिल खड़ी कर के वह सीधे अपने स्टडी रूम में घुस गया. बैग रख कर कपड़े बदले और किचन की ओर जाते हुए बहन को आवाज दी. बहन ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे लगा कि नेहा कान में इयरफोन लगा कर गाने सुनते हुए घर के काम कर रही होगी, क्योंकि पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. उस ने बहन की ओर ध्यान न दे कर प्लेट में दालचावल निकाला और अपने कमरे में जा कर खाने लगा.
गौरव खाना खा कर हाथ धो रहा था, तभी एक गंदा कुत्ता घर में घुस आया. उस के शरीर पर तमाम घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. उसे भगाने के लिए गौरव ने डंडा उठाया तो वह भाग कर नेहा के कमरे में घुस गया. उस के पीछेपीछे गौरव कमरे में घुसा तो उस ने वहां जो देखा, उसे कुत्ते का होश ही नहीं रहा. वह बाहर आ कर चीखनेचिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. उन लोगों ने कमरे में जा कर देखा तो पता चला कि उस की बड़ी बहन नेहा छत में लगे कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकी हुई थी. गौरव ने रोते हुए यह बात फोन कर के अपनी मां कुसुमवती को बताई तो वह औफिस में ही बिलखबिलख कर रोने लगीं. किसी तरह औफिस के सहयोगियों ने उन्हें घर पहुंचाया.
नेहा द्वारा कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी बुंदू कटरा पुलिस चौकी के प्रभारी मनोज मिश्रा के साथ कुसुमवती के घर आ पहुंचे. कमरे और लाश की स्थिति से प्रथमदृष्टया यही लग रहा था कि नेहा के साथ दुष्कर्म कर के हत्या कर दी गई थी. उस के बाद लाश के गले में दुपट्टा बांध कर छत में लगे कुंडे से लटका दिया गया था, जिस से लगे कि इस ने आत्महत्या की थी. इस की वजह यह थी कि उस के पैर बेड पर घुटनों के बल टिके थे.
थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने घटना की जानकारी अधिकारियों को भी दे दी थी. फोरेंसिक टीम को बुला कर लाश के फोटो कराए गए और फिंगरप्रिंट उठवाए गए. इस के बाद शव को नीचे उतरवा कर कमरे को सील करवा दिया. शव को पोस्टमार्टन के लिए भेज कर थानाप्रभारी पूछताछ करना चाहते थे, लेकिन कुसुमवती होश में नहीं थी, इसलिए बिना पूछताछ किए ही वह थाने आ गए. थाने आ कर उन्होंने अपराध संख्या 697/2013 पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और विवेचना की जिम्मेदारी खुद संभाल ली. यह 8 अक्टूबर, 2013 की बात थी. अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया.
10 अक्टूबर, 2013 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे कुसुमवती थाने पहुंची और थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी को एक तहरीर दी, जिस में उन्होंने नेहा की हत्या का आरोप अपने घर के सामने ही रहने वाले स्व. ओमप्रकाश के 3 बेटों, प्रवीण, प्रमोद उर्फ कलुआ और राहुल के साथ इन के चचेरे भाइयों सुनील तथा दीपू पर लगाया था. थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने उन लोगों को नामजद करने की वजह पूछी तो कुसुमवती ने कहा, ‘‘सर, आप इन लोगों को गिरफ्तार तो कीजिए, वे खुद ही नेहा की हत्या की वजह बता देंगे.’’ कुसुमवती ने अपनी यह बात जिस दृढ़ता और विश्वास के साथ कही थी, उस से थानाप्रभारी को उन के आरोप में दम नजर आया. उन्होंने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर छापा मारा तो सभी के सभी फरार मिले. इस बात से थानाप्रभारी का संदेह और बढ़ गया. उन्हें लगा कि नेहा की हत्या में इन लोगों की कोई न कोई भूमिका जरूर है.
लेकिन इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी को नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो उसे पढ़ कर उन्हें झटका सा लगा, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत लटकने से ही हुई थी. वह शारीरिक संबंधों की भी आदी बताई गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सारा मामला ही उलट गया था. क्योंकि जिस स्थिति में नेहा की लाश मिली थी, ऐसे में कोई कैसे आत्महत्या कर सकता था? इस तरह के काम छिपछिपा कर किए जाते हैं, जबकि नेहा के घर के सारे दरवाजे खुले थे. पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. नेहा को ऐसी क्या जल्दी थी कि वह पानी की मोटर और वाशिंग मशीन का स्विच भी नहीं औफ कर सकी?
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नेहा की मौत रहस्यों में घिर गई थी. अब उस की मौत का रहस्य तभी खुल सकता था, जब नेहा की मां कुसुमवती द्वारा नामजद लोगों को गिरफ्तार कर के उन से सचाई उगलवाई जाती. धीरेधीरे पूरा महीना गुजर गया और पुलिस नेहा के संभावित हत्यारों तक पहुंच नहीं सकी. पुलिस पर आरोप लगने लगा तो एक बार फिर पुलिस ने तेजी दिखाई. फलस्वरूप 14 नवंबर, 2013 को थाना सदर बाजार पुलिस ने नामजद लोगों में से मुख्य अभियुक्त प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद एकएक कर के अन्य अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए गए. थानाप्रभारी सत्यप्रकाश ने इन लोगों से नेहा की मौत के बारे में पूछताछ शुरू की तो पहले ये सभी उन्हें गुमराह करते रहे. लेकिन जब पुलिस ने उन्हें घेरा तो मजबूर हो कर उन्होंने सच्चाई उगल दी. प्रवीण ने नेहा की मौत की जो कहानी सुनाई, उस में प्यार तो था ही, उस से भी ज्यादा डर था, जिस की वजह से इस प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ था.
उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकरनगर के रहने वाले मनोज कुमार की नौकरी आगरा सीओडी में लगी तो वह आगरा आ गए थे. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए वह पत्नी कुसुमवती और बच्चों को अंबेडकरनगर में ही मां के पास छोड़ आए थे. मनोज कुमार पूरे तीन साल अकेले ही रहे. 3 सालों में बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मां ने कहा कि अब वह अपनी बीवी और बच्चों को ले जाए. मनोज कुमार अपने परिवार को आगरा लाने की तैयारी कर ही रहे थे कि मात्र 30 साल की उम्र में ही अचानक उन की असमय मौत हो गई. तब उन के बच्चों में बेटी नेहा 6 साल की थी तो बेटा गौरव 3 साल का.
कुसुमवती की मांग ही नहीं, जिंदगी भी सूनी हो चुकी थी. वह अपना दुख ले कर बैठी रहतीं तो उन के बच्चों का क्या होता? वह अपना दुख भूल कर बच्चों की परवरिश में लग गईं. 6 महीने बाद उन्हें पति की जगह सीओडी में नौकरी मिल गई तो वह बच्चों को ले कर आगरा आ गईं. वह आगरा आ कर उसी मकान में रहने लगी थीं, जिस में मनोज कुमार रहते थे. कुसुमवती की सास भी साथ आई थीं. बहू जब पूरी तरह व्यवस्थित हो गई तो वह अंबेडकरनगर वापस लौट गईं. सास के जाने के बाद बच्चों को ले कर घर से इतनी दूर अकेले जीवन गुजारना कुसुमवती के लिए एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन कुसुमवती ने इस चुनौती को स्वीकार किया. एकएक कर के 16-17 साल बीत गए. इस बीच उन्होंने अपनी कमाई से नगला भवानी सिंह में अपना मकान खरीद लिया था. अपना घर हो गया तो कुसुमवती का यह शहर अपना हो गया.
जिन दिनों कुसुमवती ने नगला भवानी का अपना नया मकान खरीदा था, उन दिनों नेहा पास के ही केंद्रीय विद्यालय में 9वीं में पढ़ती थी तो उस का भाई गौरव 6ठवीं में. भाईबहन मां के संघर्ष को देख रहे थे, इसलिए मेहनत से पढ़ाई करने के साथसाथ हर काम में मां की मदद भी करते थे. कुसुमवती के घर के ठीक सामने मकान नंबर 153 में ओमप्रकाश कुशवाह अपने भाई चंद्रभान कुशवाह के साथ रहते थे. ओमप्रकाश विद्युत विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी राजो के अलावा 3 बेटे प्रमोद, प्रवीन और राहुल तथा एक बेटी कृष्णा थी. नौकरी के दौरान ही ओमप्रकाश की मृत्यु हो गई तो उन की जगह पत्नी राजो को नौकरी मिल गई थी. नौकरी मिलने से राजो का गुजरबसर तो आराम से होता रहा, लेकिन उस के तीनों बेटे उस के नियंत्रण से बाहर हो गए थे. मन होता था तो कोई कामधाम कर लेते, अन्यथा मां की तनख्वाह तो मिलती ही थी, उसी से मौज करते थे.
उसी मकान के आधे हिस्से में ओमप्रकाश के भाई चंद्रभान कुशवाह का परिवार रहता था. उस की भी मौत हो चुकी थी. उस का चाटपकौड़ी का काम था. असमय मौत के बाद उस का यह जमाजमाया व्यवसाय बंद हो गया था, क्योंकि उस के दोनों बेटों दीपू और सुनील ने इसे संभाला ही नहीं. मरने से पहले चंद्रभान बेटी बीना का ब्याह कर गया था. घर में पत्नी राजवती दोनों बेटों के साथ रहती थी. ओमप्रकाश और चंद्रभान के पांचों बेटों में से कोई भी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. राजो और राजवती ने अपनेअपने बेटों को संभालने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन जवान हो चुके पांचों लड़के उन के काबू में नहीं आए. वह हर रोज कोई न कोई ऐसा कारनामा कर आते कि राजो और राजवती का सिर नीचा हो जाता. इन पांचों भाइयों की ऐसी करतूते हैं कि पूरा मोहल्ला इन्हें 5 कौरव कहता था.
नौकरी की वजह से राजो को अपना घरपरिवार चलाने में कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन कमाई का कोई साधन न होने की वजह से राजवती को परेशानी हो रही थी. काफी कहनेसुनने के बाद सुनील एक गारमेंट कंपनी में ठेकेदारी करने लगा, जहां से उसे ठीकठाक कमाई होने लगी थी. पास में पैसा आया तो उस के ऐब और बढ़ गए थे. भाई की कमाई पर दीपू भी ऐश कर रहा था. उस के पास कोई कामधाम तो था नहीं, इसलिए वह मोहल्ले में दबंगई करने लगा. कुछ दिनों बाद सुनील का चचेरा भाई प्रमोद भी उसी के साथ ठेकेदारी करने लगा था. उस के पास भी पैसा आया तो वह भी घमंडी हो गया.
भाइयों की देखादेखी प्रवीण का मन भी कुछ करने को हुआ. वह भी चाहता था कि हर समय उस की जेब में हजार, 2 हजार रुपए पड़े रहें. इस के लिए उस ने एक मोबाइल कंपनी की एजेंसी में नौकरी कर ली. उसी बीच उस की नजर घर के सामने रहने वाली कुसुमवती की जवान हो रही बेटी नेहा पर पड़ी तो उस के लिए उस का दिल मचल उठा. प्रवीण उम्र में उस से 3-4 साल बड़ा था, लेकिन चाहत उम्र कहां देखती है. उम्र के अंतर के बावजूद प्रवीण नेहा को चाहने लगा तो उस तक अपनी चाहत का पैगाम भेजने की कोशिश करने लगा. शुरूशुरू में उस ने आंखों से इशारा किया. इस पर नेहा ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. तब उस ने उसे रास्ते में रोकना शुरू किया.
शुरूशुरू में तो नेहा प्रवीण को इग्नोर करती रही, क्योंकि वह प्रेमवे्रम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन जब प्रवीण उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया तो धीरेधीरे वह भी उसे पसंद करने लगी. लेकिन उस की यह पसंद शादी वाली नहीं थी. वह सिर्फ उस से दोस्ती करना चाहती थी. यह बात मन में आते ही उस ने प्रवीण को नजरअंदाज करना बंद कर दिया. इस के बाद वह अपने कुछ कीमती पल उस के साथ शेयर करने लगी. मिलनेजुलने में ही उन की यह दोस्ती प्यार में बदल गई, जिस का आभास नेहा को काफी देर से हुआ. फिर तो जब तक वह दिन में 1-2 बार प्रवीण को देख न लेती, उसे चैन ही न मिलता. नेहा पूरे दिन घर में अकेली ही रहती थी, इसलिए दिन में जब उस का मन होता, वह प्रवीण से बातें कर लेती. नेहा जिस प्यार को कभी बेकार की चीज समझती थी, अब वही उसे अच्छा लगने लगा था.
नेहा को अपने प्रेमी प्रवीण से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. मां औफिस चली जाती थी और भाई स्कूल, इस के बाद नेहा जब, जहां चाहती, फोन कर के प्रवीण को बुला लेती. फिर दोनों घंटों प्यार में डूबे रहते. प्रवीण का कुसुमवती की अनुपस्थिति में उस के घर ज्यादा आनाजाना हुआ तो आसपड़ोस वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि मामला क्या है. फिर इस बात की जानकारी कुसुमवती को भी हो गई. लेकिन उन्होंने कभी नेहा पर यह नहीं जाहिर होने दिया कि उन्हें उस के और प्रवीण के संबंधों का पता चल गया है. हां, वह बेटी को घुमाफिरा कर जरूर समझाती रहती थीं कि प्यारव्यार सब बेकार की चीजें हैं. लड़कियों को इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए.
नेहा मां के इशारों को समझती थी, लेकिन अब तक वह प्रवीण के प्रेम में इस कदर डूब चुकी थी कि चाह कर भी वह उस से अलग नहीं हो पा रही थी, क्योंकि अब तक उस के प्रवीण से शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. मां के ड्यूटी पर और भाई गौरव के स्कूल जाने के बाद नेहा घर में अकेली रह जाती थी. फिर क्या था, वह जब चाहती, प्रवीण को बुला लेती और जैसा आनंद चाहती, निश्चिंत हो कर उठाती थी. कभी प्रवीण से दूर भागने वाली नेहा अब उस के साथ विवाह कर के पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिसे देख कर नेहा का विचार एकदम से बदल गया. प्रवीण के साथ पूरी जिंदगी बिताने का सपना देखने वाली नेहा उस से दूर भागने लगी.
दरअसल, हुआ यह कि 14 सितंबर, 2013 को नगला भवानी सिंह के ही मकान नंबर 163 में रहने वाले बंगाली बाबू की बेटी ममता अचानक घर से गायब हो गई. बंगाली बाबू ममता की शादी तय कर चुके थे और पूरे जोरशोर से शादी की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में बेटी का गायब हो जाना उन के लिए किसी आघात से कम नहीं था. उन्होंने थाना सदर बाजार में ममता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब इस मामले में जांच की तो पता चला कि ममता को मोहल्ले का ही राहुल भगा ले गया है. राहुल प्रवीण का छोटा भाई था. ममता को भगाने में प्रवीण और उस के अन्य भाइयों, प्रमोद, सुनील और दीपू ने भी उस की मदद की थी. पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो सभी घर से फरार हो गए.
पुलिस ने राहुल और उस के भाइयों को गिरफ्तार करने के प्रयास किए तो राहुल ने वकील के माध्यम से ममता को अदालत में पेश कर के धारा 164 के तहत अपने पक्ष में बयान दिला दिया. ममता बालिग थी ही, अदालत ने ममता को राहुल के साथ रहने की इजाजत दे दी. राहुल बंगाली बाबू के सामने ही उन की बेटी को ले कर अपने घर में रहने लगा. राहुल उन्हें जलील करने के लिए छत पर खुलेआम ममता के गले में बांहें डाल कर अश्लील हरकतें करता. बंगाली बाबू ने टोंका तो राहुल ही नहीं, प्रवीण, प्रमोद, दीपू और सुनील उन्हें गंदीगंदी गालियां देते हुए धमकी देने लगे कि वे उन की छोटी बेटी को भी ममता की तरह भगा ले जाएंगे. हद तो तब हो गई, जब एक दिन राहुल ने अपने भाइयों के साथ बंगाली बाबू के घर में घुस कर उन से मारपीट कर के उन से कहने लगा कि वह अपना मकान उन के नाम करा दें.
नेहा का प्रेमी प्रवीण भी अपने भाई राहुल की हर बुरे काम में पूरा सहयोग कर रहा था. यह सब देख कर वह डर गई कि एक दिन ये लोग यही सब उस की मां के साथ भी कर सकते हैं. यही सोच कर उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह प्रवीण से अपना हर तरह का संबंध खत्म कर लेगी. प्रवीण की हरकतों को देख कर उसे उस से जितना प्यार था, उस से कहीं ज्यादा नफरत हो गई. नेहा को प्रवीण और उस के भाइयों से डर भी लगने लगा, क्योंकि उन्होंने बंगाली बाबू और उन की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. यह देख कर उसे लगा कि ये लोग उस की मां पर भी हाथ उठा सकते हैं. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकते हैं.
इस के बाद नेहा ने प्रवीण से मिलनाजुलना ही नहीं, फोन पर बात करना भी बंद कर दिया. प्रवीण उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह इग्नोर कर देती. अब वह घर से भी नहीं निकलती थी. वह घर में रह कर अपनी पढ़ाई में लगी रहती. यही सब करते 10-12 दिन हो गए. इस बीच उस ने अपनी मां से भी कह दिया था कि उस से एक गलती हो गई है, जिसे वह सुधारने की कोशिश कर रही है. कुसुमवती को पता था कि उन की बेटी से कौन सी गलती हुई है. वह चाहती थीं कि वह स्वयं ही तय करे कि प्रवीण उस के लायक है या नहीं. शायद नेहा समझ गई थी कि प्रवीण उस के लायक नहीं है. इसीलिए वह उसे इग्नोर कर रही थी.
प्रवीण को इस बात का अहसास हुआ तो नेहा का यह व्यवहार उसे पसंद नहीं आया. वह उस से मिल कर उस के बदले व्यवहार की वजह पूछना चाहता था. जबकि वह उसे मिलने का मौका नहीं दे रही थी, इसलिए एक दिन प्रवीण उस के पीछेपीछे उस की कोचिंग पहुंच गया. नेहा ने उस से बात नहीं की तो घर आ कर उस ने उसे फोन किया. नेहा को पता था कि प्रवीण सीधे उस का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसलिए उस ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘आज के बाद तुम कभी मुझे फोन मत करना, क्योंकि अब मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती. यह हमारी अंतिम बातचीत है.’’
इतना कह कर नेहा ने फोन काट दिया. नेहा की इस बात से प्रवीण भन्ना उठा. उसे लगा कि नेहा ने उसे इस तरह जवाब दे कर उस की दबंगई और मर्दानगी को थप्पड़ मारा है. गुस्से में सीधे वह नेहा के घर जा पहुंचा. नेहा उस समय अपने कमरे में पोछा लगा रही थी, साथ ही वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुल रही थी. पानी की मोटर भी चल रही थी. पोछा की ही वजह से उस ने मकान के सभी दरवाजे खोल रखे थे. उसे क्या पता था कि उस के मना करने के बावजूद प्रवीण जबरदस्ती उस के घर आ जाएगा. प्रवीण ने कमरे में जा कर नेहा के गाल पर एक थप्पड़ मार कर कहा, ‘‘मैं मिलने के लिए बुला रहा हूं तो कह रही है कि मैं नहीं आऊंगी, तेरी यह मजाल. मैं चाहूं तो तुझे अभी उठा ले जाऊं और किसी वेश्या बाजार में बेच दूं, मेरा कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पुलिस भी हमारे ऊपर हाथ नहीं डाल सकती. देख तो रही है, ममता मेरे घर में है. उस का बाप ही नहीं, पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाई.’’
प्रवीण की इस हरकत पर नेहा को भी गुस्सा आ गया. वह उस से भिड़ गई. इस पर प्रवीण बौखला उठा और उस ने नेहा की ऐसी धुनाई की कि उस का एक दांत टूट गया और होठ भी फट गया. इस तरह नेहा पर अपना गुस्सा उतार कर प्रवीण जिस तरह आया था, उसी तरह चला गया. प्रवीण के जाने के बाद नेहा ने अपनी हालत पर गौर किया तो उसे लगा कि जब इस सब की जानकारी मां को होगी तो वह जीते जी मर जाएंगी. वह यह सब कैसे बरदाश्त करेंगी? जिस बेटी पर उन्होंने ईश्वर से भी ज्यादा विश्वास किया, उस ने उन्हें इतना बड़ा धोखा दिया.
वह जानती थी कि प्रवीण अपने भाइयों के साथ मिल कर कुछ भी कर सकता है. जब चाहे उसे उठा ले जा सकता है. उस की मां की भी बेइज्जती कर सकता है. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकता है. यह सब सोच कर वह डर गई. उसे लगा कि अगर कुछ ऐसा होता है तो यह सब उसी की वजह से होगा. तब उसे लगा कि अगर वह नहीं रहेगी तो यह सब होने से बच जाएगा. यही सोच कर उस ने तय किया कि अब वह नहीं रहेगी. फिर उस ने गले में दुपट्टा बांध कर आत्महत्या कर ली.
प्रवीण के इस बयान के बाद पुलिस ने उस पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उस के बाकी भाइयों के नाम निकाल दिए गए. नेहा की मां ने इन पांचों कौरवों के डर से वह मोहल्ला छोड़ दिया है. उन्हें लगता है कि पुलिस ने उन के साथ न्याय नहीं किया है, वह इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराना चाहती हैं.
— कथा पुलिस सूत्रों एवं प्रवीण के बयान पर आधारित