पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर रहे इमरान खान अब प्रधानमंत्री की कुरसी तक पहुंच गए हैं. वह भारत के लिए बेहतर प्रधानमंत्री रहेंगे या पाकिस्तान का उद्धार कर देंगे, ऐसा कुछ नहीं होगा. सच तो यह है कि इश्किया मिजाज के इमरान के लिए यह कुरसी कांटों के ताज से कम नहीं है…
बुशरा मनेका ठीक वैसे ही सौंदर्य की स्वामिनी हैं, जैसी 60 के दशक की भारतीय अभिनेत्रियां नरगिस और मधुबाला हुआ करती थीं. सांचे में ढला बदन, लंबी नाक, मासूम बोलता चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें और पतली कमर पर झूलते बाल. इस के अलावा भी वह उन तमाम सौंदर्य के पैमानों पर खरी उतरती हैं, जो साहित्यकारों, दर्शनशास्त्रियों और विश्लेषकों ने गढ़ रखे हैं. बहुत संक्षिप्त में कहें, तो संगमरमर की मूर्ति या जीवित ताजमहल. बुशरा बीती 16 अगस्त को 40 की हो चुकी हैं, लेकिन 5 बच्चों की मां बनने के बाद भी इतनी उम्र की लगती नहीं हैं. कहीं से रत्ती भर उम्र उन की खूबसूरती पर हावी नहीं हो पाई है. पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री और अपने वक्त के मशहूर क्रिकेटर इमरान खान के उन पर मर मिटने की दूसरी वजहें भी थीं, जिन्होंने बुशरा को उन की तीसरी बीवी होने की इज्जत बख्शी थी.
साल 2018 का पहला दिन ही एक सनसनाती खबर ले कर आया था कि इमरान ने बुशरा मनेका से शादी कर ली. सुनने वालों या इमरान खान को जानने वालों के लिए यह कतई हैरानी की बात नहीं थी. लेकिन दिक्कत यह थी कि खुद इमरान ने इस खबर का खंडन करते हुए इसे मीडिया द्वारा फैलाई गई अफवाह बताया. इमरान खान के साथसाथ क्रिकेट और पाकिस्तानी राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों ने इस खबर को होल्ड पर रख दिया था. जनवरी का पूरा महीना और फरवरी 2018 के पहले पखवाड़े तक इमरान और बुशरा की शादी की खबर रुकरुक कर आती रही तो आम और खास लोगों ने मन ही मन मान लिया कि शादी की खबर तो पक्की है, जिसे इमरान नहीं मान रहे हैं तो इस की एक बड़ी वजह साल के मध्य में होने वाले आम चुनाव हो सकते हैं. क्योंकि पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी यानी पीटीआई के मुखिया इमरान प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश हो चुके थे.
ऐसे में शादी की अटकलें उन की इमेज बिगाड़ रही थीं, इसलिए फरवरी के तीसरे हफ्ते में खुद पीटीआई के प्रवक्ता फराद चौधरी ने मान ही लिया कि इमरान खान तीसरी शादी के बंधन में बंध चुके हैं. शादी या टोटका थोड़ी हैरानी और तमाम चर्चाओं के बाद बात आईगई हो गई. हर किसी ने मान लिया कि इमरान की तो आदत बन गई है, पहले शादी करने और फिर बीवी के छोड़ कर चले जाने को सहज ढंग से लेने की. सभी ने बुशरा मनेका से हमदर्दी रखते हुए इमरान खान की पहली 2 पत्नियों जेमिमा मार्सले गोल्ड स्मिथ और रेहम खान को याद किया. तीसरी शादी कैसे इमरान के प्रधानमंत्री बनने की वजह बनी, यह बात बताती है कि इमरान खान बहुत ज्यादा अंधविश्वासी हैं. वह जादूटोनों और गंडाताबीजों में आम पाकिस्तानियों जैसा ही भरोसा करते हैं. अब पाकिस्तान का भविष्य क्या होगा, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, जिस की तह में जाने के लिए बुशरा के बारे में जानना जरूरी है.
बुशरा मनेका दरअसल एक पीर हैं. पढ़ेलिखे लोग भले ही उन्हें आध्यात्मिक गुरु कहते रहें लेकिन हकीकत में वे एक ज्योतिषी और भविष्यवक्ता हैं. साथ ही जादूटोना वगैरह की रूहानी ताकत उन्हें सीधे ऊपर से यानी प्रकृति से मिली हुई है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के पाकपट्टन जिले में जन्मी बुशरा की पहली शादी बहुत कम उम्र में खाबर फरीद मनेका से हुई थी. खाबर कस्टम विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं. उन से बुशरा को 5 बच्चे हुए, लेकिन फिर तलाक हो गया. तब बुशरा इस्लामाबाद में रहती थीं. लाहौर के एचिसन कालेज से ग्रैजुएट बुशरा का तलाक के बाद अध्यात्म में रुझान हो गया और वे आध्यात्मिक बातें करने लगीं. अध्यात्म में तो आजकल कोई दिलचस्पी नहीं लेता बुशरा मशहूर हुईं अपनी भविष्यवाणियों और ज्योतिष से. इसी के चलते उन के इर्दगिर्द बच्चा चाहने वालों से ले कर तबादला कराने वालों और कुरसी के ख्वाहिशमंदों तक की भीड़ जमा होने लगी.
देखते ही देखते बुशरा का धंधा और नाम दोनों चल निकले और लोग श्रद्धा से उन्हें पिंकी बीबी और बुशरा बीबी बुलाने लगे. दौलत खुदबखुद चल कर उन के पास आने लगी, पर शोहरत उतनी नहीं हुई थी जितनी वे चाहती थीं. फिर एक दिन ऊपर वाले ने उन की फरियाद सुन ली और इमरान खान उन के दरबार में जा पहुंचे. यह महज इत्तफाक की बात थी, लेकिन इस के बाद जो हुआ वह इत्तफाक नहीं बल्कि एक साजिश भरा ड्रामा लगता है. साल 2015 में लोधरन में एनए-154 सीट के लिए उपचुनाव था, जिस में इमरान अपनी पार्टी पीटीआई के उम्मीदवार जहांगीर तरीन के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे. यहीं दोनों की पहली मुलाकात हुई.
इमरान ने बुशरा के बारे में सुना और उन से हारजीत के बारे में पूछा. इस पर बुशरा ने उन के उम्मीदवार की जीत की भविष्यवाणी कर दी, जो सच साबित हुई. तभी से इमरान बुशरा के आध्यात्मिक ज्ञान के मुरीद हो गए. तब तक उन्होंने बुशरा की सूरत नहीं देखी थी, क्योंकि वे बुरके में रहती थीं और सिर पर हैट लगाती थीं. बुशरा के किरदार की तरह उन की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी कम दिलचस्प नहीं, जो उन्हें महत्त्वाकांक्षी बनाती है. उन के पहले पति खाबर फरीद मनेका के पिता यानी उन के ससुर गुलाम फरीद मनेका पाकिस्तान सरकार में मंत्री रह चुके हैं और खुद बुशरा पंजाब के प्रतिष्ठित रियाज वट्टू वंश से ताल्लुक रखती हैं. उन की बड़ी बेटी मेहरू पंजाब प्रांत के सांसद मियां अट्टा मोहम्मद मानिका की बहू है.
ऐसे बनी बुशरा की आध्यात्मिक छवि अपने वक्त के मशहूर पंजाबी सूफी गुरु गुलाम फरीद की कविताएं पढ़ कर बुशरा प्रसिद्ध होने लगीं. साथ ही उन की एक चमत्कारिक छवि भी स्थापित हो गई. लेकिन बुशरा महज इतने से संतुष्ट नहीं थीं कि ताबीज बांटती रहें, भभूत देती रहें या फिर नीचे वालों की दुआएं कबूल होने के लिए ऊपर वाले को फारवर्ड करती रहें. जो वह चाहती थीं वह उन्हें इमरान से मिला. जहांगीर तरीन की जीत ने इमरान का भरोसा उन पर पुख्ता कर दिया. यह वह वक्त था, जब इमरान के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बनने को लेकर चर्चा तो होती थी, लेकिन एक हिचकिचाहट के साथ. एक दिन बुशरा ने इमरान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने का टोटका बताया कि वह उन से शादी कर लें तो बात बन जाएगी. लोकतांत्रिक इतिहास में शायद ही कभी किसी आध्यात्मिक गुरु ने ऐसा अनूठा रास्ता किसी राजनेता को बताया हो और राजनेता ने उस पर अमल भी किया हो.
पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बन जाने के लिए यह शर्त आकर्षक थी जिस में कुरसी मिलने की गारंटी भले ही नहीं थी, लेकिन एक निहायत ही खूबसूरत संगमरमरी हसीना गारंटेड मिल रही थी. लिहाजा इमरान न नहीं कह सके. 3 साल की मेलमुलाकातों के बाद आखिर बुशरा इमरान की तीसरी बीवी बन कर उन के घर आ गईं. शादी उन के भाई के घर पर हुई उस वक्त वे बुरके में ही थीं और इमरान पठानी सलवारसूट में थे. सुर्ख गुलाबी रंगत के चेहरे वाले 65 वर्षीय इमरान को देख तब सहज ही लगा था कि औरतों की नजाकत और खूबसूरती पर तो खूब लिखा गया है, लेकिन जाने क्यों मरदाना कशिश पर कलम कम ही चलाई गई. बुशरा से शादी करने के पहले 2 बीवियों को तलाक दे चुके इमरान खान के चेहरे पर नए दूल्हों जैसी ही हया थी, तब भी वे एक मुकम्मल मर्द या हीमैन कुछ भी कह लें, लग रहे थे.
बुशरा की भविष्यवाणी का पंजाब प्रांत पर वाजिब असर पड़ा और पीटीआई ने यहां से उम्मीद के मुताबिक सीटें हासिल कीं जिस की वजह से 18 अगस्त को इमरान खान ने पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री की शपथ ली. इमरान के दांपत्यों की दिलचस्पी किसी रोमांटिक उपन्यास से कम नहीं है. लोगों की यह आशंका सच साबित हई कि पहली शादी तो जैसेतैसे 9 साल चल गई थी और दूसरी 10 महीने तक घिसटी थी. कहीं ऐसा न हो कि तीसरी का अंजाम इस से भी कम दिनों का हो. 3-4 महीनों में ही बुशरा इमरान का घर छोड़ कर अपने घर वापस चली गईं. दूसरे पति से अलगाव की वजह पालतू कुत्ते थे जो उन की आध्यात्मिक राह में भौंकभौंक कर रोड़े अटकाते थे. इमरान खान पर तीसरी बीवी के भी चले जाने का कोई असर क्यों नहीं हुआ और कैसे वे अपनी पत्नी के आशीर्वाद से प्रधानमंत्री बने, यह बात अब समझ में आने लगी है.
दरअसल यह एक धार्मिक पाखंड था, जिस के चलते लोग पीटीआई को वोट करें. सिर्फ कुत्तों की वजह से बुशरा इमरान का घर छोड़ कर गई थीं, यह भी पूरा सच नहीं है. कहा यह भी गया कि इस अलगाव की जड़ में इमरान की बहनें भी थीं. सच जो भी हो, लेकिन इस अलगाव ने इमरान की पहली 2 शादियों और बीवियों के इश्क के किस्सों की याद ताजा कर दी, जिस से नए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का एक अलग ही चेहरा बेनकाब होता है. साथ ही यह भी साबित करता है कि इमरान वाकई एक रोमांटिक शख्सियत के मालिक हैं और पूरी शिद्दत से इश्क फरमाते रहे हैं. इमरान खान के इश्किया किस्से जातपांत धर्म और सीमाओं से परे हैं.
रेहम की मजबूरी या तेवर एक तरफ जहां बुशरा को इमरान के लिए लकी लेडी के तौर पर जाना जाता है तो दूसरी तरफ उन की दूसरी पत्नी रेहम खान ने इमरान का जीना दूभर कर दिया था. अब उन के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह उन के खिलाफ जहर उगलना नहीं छोड़ रही हैं. रेहम की मानें तो इमरान अव्वल दरजे के अय्याश शख्स हैं. शुक्र तो इस बात का रहा कि रेहम ने सीधेसीधे इमरान को औरतखोर मर्द नहीं कहा. जब पाकिस्तान में चुनाव प्रचार शवाब पर था तब रेहम तरहतरह से इमरान के खिलाफ जहर उगल रही थीं, जिस से एक बार लगने भी लगा था कि इमरान का प्रधानमंत्री बनने का सपना शायद ही पूरा हो पाए.
लेकिन रेहम इमरान की छवि जरूरत से ज्यादा बिगाड़ नहीं पाईं, जिस से साबित होता है कि एक पिछड़े देश में जहां धर्म के नाम पर सेना की हुकूमत चलती हो, वहां के लोग आलोचनाओं और प्रशंसा में कोई खास फर्क नहीं करते. पाकिस्तानी समाज में खुलेआम प्यार करना किसी गुनाह से कम नहीं माना जाता, ऐसे में इमरान खान की जीत बताती है कि वोटर ने उन की व्यक्तिगत छवि से कोई वास्ता नहीं रखा. रेहम खान की पहली शादी महज 19 साल की उम्र में पेशे से मनोचिकित्सक अपने कजिन एजाज रहमान से हुई थी. रेहम का परिवार 60 के दशक में लीबिया जा बसा था, लेकिन उस का पाकिस्तान से नाता नहीं टूटा था. खूबसूरत रेहम पेशावर के जिन्ना कालेज फार वूमेन में पढ़ी थीं. संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि वाली रेहम की रुचि पत्रकारिता में थी और वह बीबीसी पर मौसम का हाल सुनाती थीं.
महत्त्वाकांक्षी होने के साथसाथ रेहम प्रतिभाशाली भी थीं. उन की उर्दू के साथसाथ अंगरेजी पर भी अच्छी पकड़ थी. एजाज से शादी कर के उन्होंने एक गृहिणी की तरह रहना चाहा और इस बाबत कोशिश भी की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाईं. 3 बच्चों की मां रेहम को उस वक्त जिंदगी की हकीकत से सामना करना पड़ा, जब एजाज ने उन्हें तलाक दे दिया. रेहम का यह फलसफा रहा है कि औरत को मर्द से दबना नहीं चाहिए. पाकिस्तान में तलाक की कोई घोषित या वैधानिक वजह होना अनिवार्य नहीं है, इसलिए कोई भी अंदाजा नहीं लगा पाया कि एजाज ने रेहम को तलाक क्यों दिया. जहां तलाक पति की इच्छा से होता हो वहां औरतों की दुर्दशा क्या होती होगी, इस का सहज अंदाजा रेहम को देख कर लगाया जा सकता था.
रेहम हालात से हार मानने वाली महिलाओं में से नहीं थीं. उन्होंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया लेकिन पहचानी वह बीबीसी से गईं. पाकिस्तान के कई चैनल्स पर उन्होंने काम किया और एक टीवी पत्रकार और शो मेकर के रूप में अच्छा नाम और पैसा कमाया. 2 पाकिस्तानी फिल्मों में भी उन्होंने काम किया. इमरान खान से उन की शादी जनवरी 2015 में हुई थी, लेकिन महज 10 महीनों में ही नौबत तलाक तक जा पहुंची थी. अक्टूबर 2015 में दोनों का तलाक हो गया और रेहम एक बार फिर बेघर हो गईं. इस बार तलाक क्यों हुआ, इस बाबत रेहम ने कुछ छिपाया नहीं. तलाक के बाद उन्होंने एक बयान में कहा था कि इमरान खान शादी निभाना नहीं जानते. वे अच्छे क्रिकेटर और राजनेता हो सकते हैं, लेकिन वे एक अच्छे लाइफ पार्टनर नहीं बन सकते.
बात यहीं खत्म नहीं हुई थी, वजह यह कि तलाक के बाद रेहम को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था, क्योंकि उन्हें कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं. इस में कोई शक नहीं कि टीवी पत्रकार के रूप में उन की पहचान सिमटी हुई थी, जिसे विस्तार इमरान से शादी और तलाक के बाद मिला. हालांकि यह अप्रिय था लेकिन रेहम के हिस्से में स्वाभाविक तौर पर शोहरत आई, क्योंकि वह इमरान खान की पत्नी थी. रेहम ने उगला जहर चुनाव प्रचार के दौरान रेहम ने इमरान के बारे में जो कहा, उसे देख लगता नहीं कि महज 10 महीने के वैवाहिक जीवन में वे इमरान के बारे में इतना जानने लगी होंगी या उन्हें इतना समझने लगी होंगी, जितना कि वे दावा कर रही थीं.
अपनी किताब जिस का शीर्षक उन के नाम का ही है. ‘रेहम खान’ में रेहम ने इमरान के खिलाफ जो जहर उगला, उसे देख लगता है कि रेहम किसी भी कीमत पर इमरान को इतना बदनाम कर देना चाहती थीं कि वह जीत न पाएं. बकौल रेहम, इमरान के 5 नाजायज बच्चे हैं, जिन में से कुछ भारतीय भी हैं. इस आत्मकथा में रेहम ने इमरान को खुले तौर पर अय्याश और ड्रग एडिक्ट बताया है. उन्होंने यह भी कहा कि वह कोकीन और हेरोइन जैसी ड्रग्स के आदी हैं. बुशरा से शादी करने के बाद इमरान की छवि एक धार्मिक व्यक्ति की बन रही थी, इस पर प्रहार करते रेहम ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि इमरान कुरान तक का पाठ नहीं करते और इतने अंधविश्वासी हैं कि काले जादू में विश्वास करते हैं. एक बार तो एक पीर की सलाह पर उन्होंने अपने पूरे शरीर पर काली दाल लगा ली थी.
इमरान अंधविश्वासी हैं, इस में कोई शक नहीं. यह बात तब भी उजागर हुई थी जब बुशरा की सलाह पर उन्होंने 2015 से लेकर 2018 की गर्मियां पहाड़ी इलाकों में गुजारी थीं. रेहम की जिंदगी का अधिकतर वक्त पाकिस्तान से बाहर गुजरा है, इसलिए वे अंदाजा नहीं लगा पाईं कि इमरान को अंधविश्वासी बता कर वे उन का प्रचार ही कर रही हैं. वजह पाकिस्तान के अधिकतर लोग गंडाताबीज और जादूटोने की गिरफ्त में हैं. ऐसे में उन्हें इसी मिजाज का प्रधानमंत्री मिल जाए तो बात सोने पे सुहागा जैसी हो जाती है. बात अकेले पाकिस्तान की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की हालत यही है कि उन्हें एक धार्मिक और अंधविश्वासी इमेज वाला मुखिया चाहिए होता है.
रेहम की कोशिशें वैसी ही थीं जैसी एक शेर के सामने बिल्ली की रहती है. लाख कोशिशों के बाद भी वह इमरान का कुछ नहीं बिगाड़ पाईं तो इस की एक बड़ी वजह उन के बयानों और किताबों में अतिशयोक्ति का होना भी था. पीटीआई की जीत के बाद रेहम ने इमरान के राजनैतिक भविष्य का आकलन भी यह कहते हुए किया कि इमरान अब तक पाकिस्तान के हीरो थे, पर अब आइटम नंबर बन कर रह जाएंगे, क्योंकि उन्हें चलाने वाले लोग दूसरे यानी फौज के होंगे. रेहम का यह भी कहना है कि इमरान बहुत ज्यादा दिनों तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं रह पाएंगे और जब उन की कुरसी जाएगी तो इज्जत भी चली जाएगी. इमरान ने धर्म के नाम पर वोट मांगे हैं, जबकि निजी जिंदगी में वे कतई धार्मिक नहीं हैं.
एकाएक आलोचना से राजनैतिक विश्लेषक की भूमिका में आ गईं रेहम खान अब भी खंभा ही नोंच रही हैं, जिन्हें पत्रकारिता के पेशे में रहते यह तजुर्बा नहीं हुआ कि लोग धर्म के नाम पर ढोंग पाखंड करने वाला प्रधानमंत्री ही चाहते हैं. देश कल्याण और लोकतंत्र जैसी सियासी महज राजनीति की चालें होती हैं. रेहम के पूर्वाग्रह कुंठा और विष वमन से परे इमरान नई जिंदगी व भूमिका में हैं. उन्हें जीत पर बधाई देने वालों में एक महत्त्वपूर्ण शख्स उन की पहली पत्नी जेमिमा मार्सले गोल्डस्मिथ थीं. दुनिया भर की दर्जनों महिलाओं के साथ इमरान का नाम जुड़ा और उन के इश्क के चर्चे हमेशा आम रहे, इतने आम कि ऐसा लगता है कि 65 में से 50 साल वे इश्क ही फरमाते रहे हैं.
अच्छी पत्नी और दोस्त इमरान की जिंदगी में बहैसियत एक औरत सब से लंबी पारी खेलने वाली जेमिमा ने उन्हें बधाई देते कहा कि मेरे बेटों के पिता को प्रधानमंत्री बनने पर बधाई. यह बेहद दिलचस्प इत्तफाक है कि इमरान की तीनों पत्नियां अब 40 पार कर चुकी हैं यानी उन से उम्र में 20 साल तो छोटी हैं ही. साल 1995 में उन की पहली शादी ब्रिटेन की जेमिमा से हुई थी. तब जेमिमा की उम्र महज 21 साल थी और इमरान उम्र में उन से लगभग दोगुने थे. 1995 में इमरान और जेमिमा की शादी का खासा तहलका मचा था. एक ब्रिटिश फायनेंसर की बेटी जेमिमा भी पेशे से पत्रकार थीं. यह वह वक्त था, जब इमरान क्रिकेट से संन्यास ले चुके थे. इस के पहले 1992 में उन्होंने अपनी कप्तानी में पाकिस्तान को विश्वकप जितवाया था. हालांकि किसी मैच में वे उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाए थे.
जेमिमा इमरान पर फिदा थीं तो कहा जा सकता है कि यह एक अपरिपक्व और अल्हड़ युवती की दीवानगी और जुनून था. लेकिन शादी के बाद इसलाम अपनाते हुए जेमिमा ने खुद को अप्रत्याशित तरीके से बदला और पूरी तरह इस्लामिक रंगढंग में ढल गईं. तब ऐसा लग रहा था कि वह एक कामयाब क्रिकेटर की जिंदगी और गृहस्थी में रम गई हैं. खुले विचारों वाली जेमिमा जल्द ही पाकिस्तान की चहेती बहू बन गईं. उन्होंने न केवल पाश्चात्य परिधान बल्कि उस सभ्यता से भी किनारा कर लिया. दरअसल जेमिमा चाहती थीं कि पाकिस्तान और इसलाम दोनों उन्हें कुबूल कर लें और अपनी इस कोशिश में फौरी तौर पर वे कामयाब भी रहीं. इमरान के क्रिकेटर साथियों सहित पूरा पाकिस्तान उन्हें भाभी कहने लगा था. अगर जेमिमा पाकिस्तान और इमरान के लिए बदलीं थीं तो इस का भरपूर रिस्पौंस भी उन्हें मिला था.
इमरान से उन्हें 2 बेटे हुए. यह इमरान की भटकती जिंदगी का स्थायित्व वाला दौर था जिस में उन्होंने पत्नीबच्चों और गृहस्थी का सुख भोगा. इसी दौरान इमरान पर समाजसेवा का भूत सवार हुआ तो उन्होंने अपनी मां की याद में कैंसर अस्पताल खोल डाला. इस नेक काम में भी जेमिमा उन के साथ थीं. बेमकसद जिंदगी जीना इमरान की फितरत नहीं था. वे खेतीकिसानी और पशुपालन जैसे व्यवसाय करते थे. लेकिन इस से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी. एक बेचैनी उन्हें घेरे रहती थी, जिस से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखते हुए 1996 में पाकिस्तान तहरीक–ए–इंसाफ पार्टी का गठन कर डाला. इमरान की लोकप्रियता के चलते पीटीआई को शुरुआती दौर में ही पूछपरख मिली तो साफ दिखने लगा था कि यह पार्टी पाकिस्तानी सियासत में हलचल मचाएगी.
शुरुआत में इमरान ने वही किया जो नए दल बनाने वाले करते हैं, मसलन धरने, प्रदर्शन, सरकार का विरोध और तब्दीली की बात करना. कहने को तो बदलाव और न्याय के लिए पीटीआई बनी थी, लेकिन इमरान के पास स्पष्ट राजनैतिक सोच का अभाव था. पीटीआई के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ ने उन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिशें कीं, लेकिन इमरान ने मन ही मन जो ठान रखा था वह 2018 के नतीजों से उन्हें हासिल हुआ. जेमिमा की समझदारी जेमिमा इमरान को लगातार प्रोत्साहित करती रही थीं और एक अच्छी पत्नी की तरह उन का साथ भी देती रहीं. शौहर के साथ उन्होंने पूरा पाकिस्तान घूम डाला. इस दौरान वही हुआ जिस का कुछ तजुर्बेकार लोगों को डर था.
आजादख्यालों वाली जेमिमा को पाकिस्तानी माहौल में घुटन महसूस होने लगी. कट्टर इस्लामिक समाज की बंदिशें उन के आसमान को निगलने लगीं तो साल 2004 में उन्होंने इमरान से तलाक ले लिया और दोनों बेटों के साथ ब्रिटेन चली गईं. यह तलाक बेहद स्वस्थ ढंग से सहमति से हुआ था. तय है इमरान जेमिमा की मनोदशा समझ रहे थे कि वे उन्हें तो चाहती हैं लेकिन रूढि़वाद से और ज्यादा तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं. इस में गलत कुछ भी नहीं था. दोनों ने बेहद दोस्ताना अंदाज में वैवाहिक विच्छेद कर के मिलतेजुलते रहने के वादे किए इमरान के बेटे कभीकभार पाकिस्तान आते थे और कभी खुद इमरान उन से मिलने ब्रिटेन चले जाते थे.
दोनों के बीच कोई खटास या कटुता आज भी नहीं है, इसलिए इमरान के प्रधानमंत्री घोषित किए जाने के बाद जेमिमा ने उन के संघर्ष को तरहतरह से ट्वीट कर के उन्हें बधाई दी और खुद के पति की जगह बेटों के पापा पीएम बनेंगे जैसी बात कही. ब्रिटेन जा कर जेमिमा ने इस्लामिक लबादा उतार फेंका और फिर तन और मन दोनों से पाश्चात्य रंगढंग में ढल गईं. इमरान के साथ बिताया वक्त उन के लिए एक सपने की तरह था. यह उम्र का उन्माद था या फिर वाकई प्यार था, यह तो वही जानें लेकिन कभी भी उन्होंने इमरान की शान में गुस्ताखी नहीं की. न ही कभी रेहम की तरह कड़वा बोला, उलटे जब रेहम इमरान पर आक्रामक हो रही थीं, तब उन्होंने रेहम को अदालत में घसीटने तक की धमकी भी दी थी.
ये चोंचले चुनाव तक ही सिमटे रहे. इमरान की जीत के साथ ही तूतू मैंमैं बंद हो गई. अब हर कोई उत्सुकता से इमरान की तरफ देख रहा है कि वे प्रधानमंत्री बनने के बाद क्या करेंगे. कौन सी तब्दीली पाकिस्तान में आएगी और इमरान क्याक्या बदलेंगे. इमरान और इश्क का चोलीदामन का साथ रहा है, जो इस धारणा को खंडित करता है कि इमरान खान एक शर्मीले युवा थे. इश्किया इमरान एक वक्त में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के साथ उन के इश्क के किस्से चटखारे ले कर सुने जाते थे. कहा जाता है कि बेनजीर उन पर हद से ज्यादा फिदा थीं. इमरान की जिंदगी पर किताब लिखने वाले लेखक क्रिस्टोफर सैंडफोर्ड ने इस चर्चित प्रेमप्रसंग के बारे में लिखा है कि बेनजीर और इमरान के बीच शारीरिक संबंध भी बने थे. लेकिन क्रिस्टोफर इस बात की पुष्टि नहीं करते. लाहौर के शेर का खिताब बेनजीर ने ही इमरान को दिया था.
हर कोई जानता है कि बेनजीर भुट्टो एक उन्मुक्त खयालों वाली महिला थीं और एक वक्त में उन की छवि एक परमानेंट प्रिगनेंट प्राइम मिनिस्टर की थी. 1975 के आसपास दोनों ब्रिटेन में पढ़ते थे और अकसर साथ भी दिखते थे. लेकिन राजनीति में दोनों एकदूसरे का विरोध करते रहे. साल 2007 में जब बेनजीर की हत्या हुई तब जा कर यह सिलसिला थमा. लेकिन बेनजीर का विरोध करते रहने वाले इमरान को इस से काफी लोकप्रियता मिली. इमरान की मां शौकत खानम की इच्छा थी कि इमरान और बेनजीर की शादी हो. इस बाबत उन्होंने कोशिशें भी की थीं लेकिन बेनजीर इमरान से कहीं ज्यादा आक्रामक स्वभाव की थीं. वे समझ गई थीं कि इमरान कभी उन की अधीनता नहीं स्वीकारेंगे, लिहाजा यह प्रेमप्रसंग शादी में तब्दील नहीं हो पाया. तब तक इमरान की प्लेबौय की इमेज भी बन चुकी थी, जो बेनजीर को पसंद नहीं थी.
इमरान का दूसरा मशहूर इश्क बौलीवुड की बोल्ड अदाकारा जीनत अमान के साथ था. 70-80 के दशक के दौरान पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के भारतीय दौरे के समय इमरान जीनत के इश्क के चर्चों के चलते भी सुर्खियों में रहते थे. एक वक्त तो दोनों की शादी की अफवाह भी उड़ी थी, लेकिन यह महज अफवाह ही साबित हुई. क्रिकेट और फिल्म प्रेमी तब यह जानने के लिए बैचेन रहते थे कि इस इश्क का नया किस्सा क्या है. तब जीनत इमरान का कैरियर भी शवाब पर था और इमरान भी क्रिकेट में नएनए कीर्तिमान गढ़ रहे थे. ड्रेसिंग रूम में इमरान के साथी खिलाड़ी यह मानते थे कि मैदान पर इमरान खान ज्यादा थकेथके नजर आते हैं क्योंकि एक दिन पहले ही वे जीनत से मिलने गए थे.
संबंधों को कभी गहराई से नहीं लिया इमरान ने इन बातों के कोई दीर्घकालिक तो दूर तात्कालिक माने भी नहीं निकले, लेकिन कलाकार ऐमा सार्जेंट 80 के दशक में इमरान के बेहद नजदीक थीं. दोनों की मुलाकात एक पार्टी में हुई थी, वहां आंखें मिलीं और दोनों में प्यार हो गया. अकसर ऐमा और इमरान साथ दिखे जाने लगे थे, जंगलों से ले कर पार्टियों तक में. लेकिन ऐमा एक प्रतिभाशाली कलाकार के अलावा समझदार महिला भी थीं. कहा जाता है कि इमरान से शादी उन्होंने इसलिए नहीं की थी कि वे पाकिस्तान की घुटन भरी जिंदगी और माहौल में रह नहीं पातीं. रेहम की तरह ऐमा भी नहीं चाहती थीं कि उन की पहचान पति के नाम से हो, इसलिए हर स्तर पर भरपूर प्यार कर लेने के बाद दोनों जुदा हो गए. अकेली सीता व्हाइट ऐसा नाम था, जिस से इमरान पल्ला नहीं झाड़ पाए थे. सीता व्हाइट का असली नाम ऐना लूसिया था. सीता और इमरान बिना शादी किए लंबे समय तक पतिपत्नी की तरह रहे थे. 1987 में यह प्रेमप्रसंग उजागर हुआ था और 1992 में सीता ने इमरान से एक बेटी को जन्म दिया था.
सीता व्हाइट इमरान पर मरती थीं और उन के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थीं, जिस में बगैर शादी किए साथ रहना भी शामिल था. बेटी का नाम उन्होंने टिरियन रखा और इमरान से उसे अपनाने की गुजारिश की तो इमरान साफसाफ मुकर गए थे. कुछ समय तक सीता चुप रहीं पर बारबार कहने पर भी इमरान ने टिरियन को बेटी नहीं माना तो वे अदालत जा पहुंची. मुकदमा चला और 1997 में यह साबित हो गया कि इमरान ही टिरियन के पिता हैं. तब कहीं खुद इमरान ने भी इस सच को स्वीकार लिया था. लेकिन टिरियन को बेटी होने के वैधानिक अधिकार नहीं दिए थे. एक जेमिमा को छोड़ इमरान की जिंदगी में जितनी भी औरतें आईं, वे या तो शादीशुदा थीं या फिर इमरान की ही तरह उन के इश्किया किस्से मीडिया की सुर्खियां बनते रहते थे. सीता व्हाइट इस का अपवाद नहीं थीं. लेकिन टिरियन को ले कर वे गंभीर थीं और उसे हक दिलाना चाहती थीं.
जीते जी तो वे ऐसा नहीं कर पाईं, लेकिन साल 2004 में हार्टअटैक से हुई उन की मौत के बाद इमरान ने टिरियन को बेटी मान लिया था. इस की वजह सिर्फ यह नहीं थी कि इमरान पसीज गए थे या उन का जमीर जाग उठा था, बल्कि यह है कि इस प्रेमप्रसंग को ले कर पाकिस्तान में राजनैतिक स्तर पर उन का विरोध होने लगा था. नवाज शरीफ को जब भी इमरान को सार्वजनिक तौर पर नीचा दिखाना होता था तो वे सीता व्हाइट का नाम ले देते थे. इमरान की प्रेमिकाओं की सूची में और जो प्रमुख नाम शामिल हैं, उन में एक्ट्रेस स्टैफनी बीजम, गोल्डी हान, लीजा कैंपबेल, पत्रकार केरोलिन केलेट, सुजाना कांस्टाइन वगैरह वगैरह हैं.
अब आगे क्या हैरत की एक और बात यह है कि इमरान की पत्नियों और पे्रेमिकाओं की राय उन के बारे में कभी अच्छी नहीं रही, सिवाय जेमिमा गोल्डस्मिथ के जिन्होंने 9 साल ही सही पत्नीधर्म पूरी ईमानदारी से निभाया. प्रधानमंत्री बनते ही ये किस्से उजागर हुए पर इन से इमरान के राजनैतिक व्यक्तित्व और पहलू का कोई खास लेनादेना नहीं है. सभी की नजरें क्रिकेट और इश्क से इतर इमरान की आने वाली नीतियों पर हैं कि वह क्या करेंगे. इमरान ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में भारतीय नेताओं को ठेंगा दिखा कर साफ कर दिया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या किसी और से प्रभावित नहीं हैं. लेकिन अपने क्रिकेटर दोस्तों सुनील गावस्कर, कपिलदेव और नवजोत सिंह सिद्धू को बुलाना वे नहीं भूले. यह अलग बात है कि इन में से केवल नवजोत सिंह सिद्धू उन के शपथ समारोह में गए. इसे ले कर अपने देश में सिद्धू की जो छीछालेदर हुई, वह होनी ही चाहिए थी.
प्यार करना गुनाह नहीं, न ही बहुतों से प्यार करने को व्यभिचार कहा जा सकता है. इस लिहाज से इमरान कोई अपराधी नहीं लेकिन अपनी नई भूमिका में उन्हें सजग रहना पड़ेगा, क्योंकि वे अब एक ऐसे देश के प्रमुख हैं जिस की असल समस्या पिछड़ापन और कट्टरवाद है. सेना के साए में रहते इन चीजों से निपटना किसी चुनौती से कम नहीं. ऐसे में लग भी नहीं रहा कि इमरान पाकिस्तान के लिए कुछ खास कर पाएंगे. फिर भी लोगों को उन से उम्मीदे हैं तो इस की वजह उन का जिद्दी और प्रतिभाशाली होना है, जिस के चलते वह एक नामुमकिन मिशन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बन जाने का पूरा कर पाए हैं.