समीर ने विवाहिता सोफिया से प्यार केवल उस का शरीर पाने के लिए किया था. जबकि सोफिया उस के साथ जिंदगी बिताने के सपने देख रही थी. कभी किसी के सपने पूरे हुए हैं जो सोफिया के पूरे होते. आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी. उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध आ रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे.
सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी आ चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए. कमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था.
वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी. सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.
अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए. थाने आ कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी.
सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था. सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी.
सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी. चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था.
वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे. इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है?
पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची. पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया.
थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी.
40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बी–विंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी. सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई.
अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था. पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था.
अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे. सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई. इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.
निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा. उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.
पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है. ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.
25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी. अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.
सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.
2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता. दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.
जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगी. समीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.
समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे. तब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.
28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई. जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’
‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.
‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.
‘‘ठीक है, काम बताओ.’’
‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी. समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.
अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने आ रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’
सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास न तो कोई पासपोर्ट रख गया है न कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’
इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर आ गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.
रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित