हम सोचते हैं कि हमारे ही देश में ज्यादातर धर्मगुरु पतित या लोगों को बेवकूफ बनाने वाले हैं. लेकिन सच यह है कि विदेशों में भी ऐसे धर्मगुरुओं की कोई कमी नहीं है. जापान का शोको असाहारा ऐसा ही धर्मगुरु था, जिस ने सत्ता की चाह में निरीह लोगों की मौत का खेल खेला. लेकिन…
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. यह बात जापान में एक जुलाहे के यहां चरितार्थ हुई. 5 मार्च, 1955 को दक्षिण जापान के की सुशयु क्षेत्र में रहने वाले उस गरीब जुलाहे के यहां एक बेटे ने जन्म लिया. वह कोई साधारण बच्चा नहीं था. एक अजीब सा तेज था उस के चेहरे पर बच्चे की दाईं आंख से न दिख पाने की बात को भी लोगों ने असाधारण बताया था. लोगों की तारीफें सुनसुन कर जुलाहा भी अपनी किस्मत पर इठलाने लगा. बच्चे का नाम रखा गया शोको उर्फ चीजू. जुलाहे को क्या मालूम था कि उस का यह बेटा दौलत और शोहरत की बुलंदियों तक तो पहुंचेगा, लेकिन अमानवीयता और वीभत्सता की सीढ़ी पर चढ़ कर.
गरीब जुलाहे ने किसी तरह शोको को पालपोस कर नक्काशी के काम पर लगा दिया. नक्काशी का काम कर के किसी तरह दो जून की रोटी भर कमाने वाले जुलाहे का बेटा शोको उर्फ चीजू बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी था. गरीबी के फर्श और बेबसी की छत के नीचे लेटा शोको बस दौलत के सपने देखा करता था. मुफलिसी के चलते पढ़ना तो दूर, वह स्कूल का दरवाजा भी नहीं देख पाया था. पर यह उस का आत्मविश्वास ही था कि वह दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद कर रखने का दम भरता था. शोको को गरीबी की चादर से बेहद नफरत थी. गरीबी ही वह शब्द था, जो उस के मन में टीस बन कर रिसता रहता था. किसी के आगे हाथ फैलाना उसे गवारा नहीं था. वह तो बलात छीन कर सब कुछ हासिल करना चाहता था.
जवानी तक पहुंचते पहुंचते शोको की महत्त्वाकांक्षा साकार रूप लेने को बेताब रहने लगी. उस के सपने भी पंख लगा कर हकीकत के आसमान में उड़ने को मचल रहे थे. शोको ने पहला मुकाम हासिल कर लिया था ‘अम’ के रूप में. अम नाम से पंजीकृत हुई शोको की इस कंपनी ने बहुत कम समय में ही ‘पहाड़ी जादूगर समुदाय’ के नाम से अपनी अलग पहचान बना ली थी. शोको ने काफी सोचसमझ कर अपनी कंपनी का नाम अम चुना था. अम जापानी लोगों के लिए मन और मस्तिष्क को सुकून देने वाली एक कारगर दवा थी. कंपनी की सफलता का राज किसी हद तक इस का नाम था. लोगों को जहां यह नाम प्रभावित करता, वहीं शोको का व्यक्तित्व भी उन्हें अपनी ओर खींच लेता था. मात्र एक छोटे से कमरे में शुरू हुई शोको की कंपनी की आय का एकमात्र स्रोत था— स्वास्थ्य के लिए आपत्तिजनक पेय पदार्थों की बिक्री.
कम समय में यह कंपनी जहां सफलता की बुलंदी पर पहुंच गई थी, वहीं शोको के पास दौलत का ढेर लग गया था. मगर शोको को इस से संतुष्टि नहीं थी. यह तो उस का एक कदम भर था, उसे तो अभी और लंबा रास्ता तय करना था. इसी राह पर जाने के लिए शोको ने अम कंपनी को योगा स्कूल का रूप दे दिया था. दूसरी ओर शोको ने अपने नाम के आगे असाहारा शब्द जोड़ कर इस स्कूल के मुख्य निदेशक की कुरसी संभाल ली थी. शोको की दौलत की भूख कुछ शांत हुई तो उसे शोहरत की भूख बेचैन करने लगी. किसी तरह उस ने जापान की लोकप्रिय पत्रिका ‘ट्विलाइट जोन’ में अपना एक लेख प्रकाशित करवाया.
उस लेख के साथ शोको की योग की मुद्रा में एक फोटो भी छपी. फोटो एक पहुंचे हुए योगी की तरह लग रही थी. कुछ उस लेख का मर्म था तो कुछ फोटो का प्रभाव कि शोको रातोंरात मशहूर हो गया. उस के प्रति लोगों की श्रद्धा भावना ऐसी उमड़ी कि सैकड़ों लोगों ने उस के स्कूल की सदस्यता ले ली. कह सकते हैं कि शोको को एक अचूक हथियार मिल गया था. जल्दी ही शोको को चिंतक और आदर्श योगी के रूप में पहचाना जाने लग. अपनी फितरत के अनुसार अब वह देश में ऐसी जगह बनाना चाहता था, जहां सारा देश उस के आगे शरणागत होता नजर आए. अपने ईष्ट के रूप में लोग उसी का नाम लें और उस का ही अनुसरण करें.
यहीं से शोको के नए सफर की शुरुआत हुई. अब वह अपना योग स्कूल छोड़ कर आध्यात्मिक शांति की खोज में जापान के पहाड़ों और समुद्र के तटों पर भटकने लगा. एक ऐसे ही एकांत स्थान पर शोको की मुलाकात इतिहास के मर्मज्ञ एक छात्र से हुई. वह भी शोको के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. उस ने शोको को अपने गूढ़ रहस्य बताते हुए कहा, ‘‘अरमागीडन जल्द ही दस्तक देने वाला है. इस विनाशकारी स्थिति में केवल शुद्ध आत्मा वाले ही जीवित रह पाएंगे.’’
शोको ने इस कथन को काफी गंभीरता से सुना और वह चिंतन करने लगा. उसे लगा कि आध्यात्मिकता उसे बुला रही है. वही एक ऐसा मनुष्य है, जो शुद्ध आत्मा वाले लोगों का नेतृत्व कर सकता है. उसे यह भी झूठा विश्वास हो चला था कि वह अकेला ऐसा प्राणी है, जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति से दुनिया को विनाश के गर्त में जाने से बचा सकता है. इस के बाद शोको ने अपने पुराने चोले को उतार कर श्वेत और ढीलेढाले वस्त्र धारण कर लिए. सिर के बाल और दाढ़ीमूंछ भी बढ़ा ली. वह अपने नए मिशन के तहत पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कई देशों की यात्रा पर निकल गया. वह जगहजगह आध्यात्मिक सत्संग करता और अम शब्द की शक्ति का प्रचार करता. उस ने दूसरी आध्यात्मिक संस्थाओं को भी अपनी शरण में लाने का पूरा प्रयास किया. इस का उसे लाभ भी मिला. उस की ख्याति उस से पहले उस स्थान पर पहुंच जाती, जहां वह अपने आध्यात्मिक भ्रमण के लिए जाता था.
धर्म की आड़ में बन गया धर्मगुरु अपने इसी मिशन के अंतर्गत शोको असाहारा सन 1987 में भारत स्थित हिमालय की वादियों में बसे आध्यात्मिक शहर धर्मशाला पहुंचा. उस के साथ अनुयायियों का दल भी था. उस का उद्देश्य जहां हिमालय की महिमा का बारीकी से अध्ययन करना था, वहीं वह बौद्ध गुरु दलाई लामा का आशीर्वाद भी प्राप्त करना चाहता था. वह अपने मकसद में कामयाब रहा. उसे दलाई लामा का आशीर्वाद मिल गया. आशीर्वाद लेते हुए उस ने एक फोटो भी खिंचवाया. जापान पहुंच कर शोको असाहारा ने इसे भुनाना शुरू कर दिया. उस ने दावा किया, ‘‘मुझे बौद्ध गुरु दलाई लामा ने आशीर्वाद दिया है. उन्होंने मुझे महात्मा बुद्ध की सत्य शिक्षाओं से लोगों को राह दिखाने का एक दैवीय अभियान सौंपा है.’’
शोको ने लोगों को यह बात जोर देते हुए बताई, ‘‘गुरु दलाई लामा ने मुझे विशेष तौर पर इस पावन कार्य के लिए चुना है. क्योंकि मैं महात्मा बुद्ध का सच्चा अनुयायी हूं.’’
शोको के आदेश पर उस के अनुयायियों ने अपने परिचितों और मित्रों को इस दैविक अभियान का लक्ष्य बताते हुए उन्हें इस मार्ग पर साथ चलने को कहा. शोको असाहारा का यह जादू काम कर गया. अनुयायियों की जमात बढ़ती देख शोको ने अपनी दैविक शक्ति श्रद्धालुओं को देने का व्यवसाय शुरू कर दिया. उस ने श्रद्धालुओं के माथे पर अपना हाथ रखने की कीमत 350 डौलर रखी. शोको का यह दैविक अभियान कई महीने चला. अनुयायी बढ़े तो दौलत के दरवाजे भी खुले. अपनी अगली योजना की जानकारी देते हुए शोको ने अपने शिष्यों को बताया, ‘‘समय की मांग को देखते हुए ‘पहाड़ी जादूगर संस्था’ अम को अब ‘अम परम सत्य’ में परिवर्तित कर दिया गया है.’’
शोको असाहारा की तकदीर कहें या उस के व्यक्तित्व का प्रभाव कि उस का यह आगाज कामयाब अंजाम तक पहुंच गया. अम परम सत्य अभियान शोको के नेतृत्व में बौद्ध, जैन धर्म की सत्यता और हिंदू धर्म की गूढ़ता का मिश्रण बन कर उभरा. शोको के रहस्यवादी उपदेश सुनने के लिए देश भर से श्रद्धालु उस की शरण में आने लगे. 2जो भी जीवन के परम सत्य की खोज में शोको का अनुयायी बनता, उसे सब से पहले शोको के शरीर के रक्त की कुछ बूंदें पिलाई जातीं. इस के पीछे यह तर्क दिया जाता कि शोको अलौकिक शक्ति है. उस के रक्त में कई तरह के चुंबकीय आकर्षण हैं, जिन्हें ग्रहण करने से मनुष्य को अलौकिक दिव्य दर्शन का आभास होता है. इस में भी व्यवसायीकरण था. शोको के रक्त की बूंदें प्रसाद स्वरूप नहीं दी जाती थीं, बल्कि उस की भी कीमत थी. वह भी छोटीमोटी नहीं, पूरे 7 हजार डौलर. बता दें कि शोको शादीशुदा था और 3 बेटियों का बाप भी. शोको की शादी तोमोको मैट्सुमोटो के साथ सन 1978 में हुई थी.
शोको हर काम फीस ले कर करता था. आध्यात्मिकता के नाम पर शोको का व्यवसाय जहां फलफूल रहा था, वहीं कलेवर भी बदलता जा रहा था. शोको ने एक और मुकाम की तरफ कदम रखते हुए अपने विशाल भव्य भवन में एक तालाब का निर्माण करवाया, जिसे उस ने एक जादुई तालाब का नाम दिया था. वैसे तो तालाब का जल सामान्य था, लेकिन इस के पीछे यह तर्क दिया जाता कि शोको द्वारा इस जल को छू लेने से यह करिश्माई जल बन गया है. अनुयायियों द्वारा यह प्रचार किया जाने लगा कि इस जल को पीने से जहां शरीर विकारों से मुक्त हो जाता है, वहीं जीवन में छाया अहंकार भी दूर हो जाता है. तालाब के इस जल को पीने की कीमत रखी गई थी 800 डौलर. लोगों की नजरों में भगवान बन चुका शोको पड़ाव दर पड़ाव पार करता जा रहा था.
सन 1987 के अंत तक शोको के अम परम सत्य पथ के अनुयायियों की संख्या करीब डेढ़ हजार तक पहुंच गई थी. शोको असाहारा ने अब अपना पहला अंतरराष्ट्रीय औफिस न्यूयार्क, अमेरिका में ‘अम यूएसए’ नाम से खोला.
दौलत और शोहरत शोको के कदम चूम रही थी. मगर शोको की हवस थी कि शांत होने का नाम नहीं ले रही थी. उस की निगाह तो विश्व पटल पर टिकी थी. शोको का योग स्कूल भी अब अन्य जापानी स्कूलों की तरह नहीं रहा था. इस स्कूल में अध्ययन केवल पत्राचार द्वारा ही होता था. 2 वर्षीय कोर्स की फीस 2 हजार डौलर रखी गई थी और दाखिले के रूप में लिए जाते थे 700 डौलर. अगर कोई दान देने में रुचि रखता था तो उसे शोको के जादुई तालाब का जल तोहफे के रूप में दिया जाता था. कुछ भी हो, पर शोको के प्रवचनों में इतना दमखम और आकर्षण था कि उस से प्रभावित हो कर उस के शिष्य उस की शिक्षा का पालन करते थे. वह जमीन पर सोते, उस के लिए प्रार्थना करते, व्रत रखते और सभी सांसारिक बंधन छोड़ कर बस हर समय उस की सेवा में लगे रहते थे. इन शिष्यों ने शोको के आह्वान पर अपनी समस्त चलअचल संपत्ति और पूंजी शोको के शरणागत कर दी थी.
सन 1990 आतेआते शोको के शिष्य और शिष्याओं की संख्या में अच्छाखासा इजाफा हो गया था. गौरतलब बात यह थी कि इन में से 15-20 प्रतिशत की आयु मात्र 20 वर्ष थी. शोको की आय बढ़ी तो उस का काफी पैसा टैक्स की अदायगी में जाने लगा. यह उस के लिए चिंता का विषय था. अत: शोको ने अपनी आय करमुक्त करने के लिए जापानी धार्मिक कारपोरेशन में कानून के तहत आवेदन दिया, मगर इसे निरस्त कर दिया गया. परिणामस्वरूप टोक्यो के गवर्नर को जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं. आखिर गवर्नर ने जापानी धार्मिक गतिविधियों के उल्लंघन का वास्ता दे कर शोको को कुछ रियायत दे दी. इसी दौरान शोको के खिलाफ कई रिपोर्ट भी दर्ज हुईं, जिन में कहा गया कि वह लोगों को प्रभावित कर अपने जाल में फंसा लेता है और फिर उन की संपत्ति व जमापूंजी ठग लेता है. मगर शोको की ख्याति के चलते उस पर किसी तरह की काररवाई का दुस्साहस किसी ने नहीं किया.
शोको का सब से बड़ा उपासक और प्रेमी था हिडीयो मुराई. वह कुशाग्र बुद्धि एस्ट्रोफिजिक्स वैज्ञानिक था. उस ने समाचार पत्र में शोको के विषय में पढ़ा था. उसी से प्रभावित हो कर उस ने अपना सब कुछ शोको के चरणों में रख दिया और उस के ‘अम परम सत्य’ पथ का शिल्पकार बन गया. अनपढ़ ने उच्चशिक्षित लोगों को बनाया शिष्य शोको बेशक अनपढ़ था, पर उस के शिष्य उच्चशिक्षित थे. क्योरा यूनिवर्सिटी का छात्र सेइहि एंडो पूर्णत: शोको को समर्पित हो गया था. वहीं जेनेटिक्स इंजीनियर मासा की टसुचीया भी अपना उज्ज्वल भविष्य छोड़ कर शोको की शरण में आ गया था. इस क्रम में फुमिरो जीपो भी शोको का परम शिष्य था, जो दूरसंचार अनुसंधानात्मक केंद्र में अध्ययन कर चुका था और अवास्तविक राष्ट्रीय अंतरिक्ष आविष्कार एजेंसी में कार्यरत था. वह भी सब कुछ छोड़ शोको के पास आ गया.
हिडीयो मुराई ने शोको के लिए एक ऐसी टोपी का आविष्कार किया, जिसे पहनते ही ऊर्जा प्राप्त होती थी. जब इस टोपी को पहना जाता तो वह स्वयं उस व्यक्ति से जुड़ जाती थी. इस अद्भुत टोपी की कीमत थी 70 हजार डौलर. शोको के पास वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम थी. इसी ने शोको के आदेश पर एस्ट्रल और कौस्मिक अस्पताल का निर्माण किया. इस अस्पताल में चमत्कारी दवाओं का निर्माण होता था. इन दवाओं को यह कह कर बेचा जाता था कि इस में शोको के रक्त का अंश है, जिसे सेवन करने से परम शक्ति प्राप्त होती है. शोको असाहारा का ‘अम परम सत्य’ पंथ अब कयामतवादी संप्रदाय का रूप ले चुका था. कहते हैं कि इस संप्रदाय में आना आसान था, लेकिन निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था.
शोको के एक 25 वर्षीय शिष्य ने यहां से लौटने की कोशिश की तो परिणामस्वरूप उसे शोको के तथाकथित बदमाशों ने बिजली का करेंट दे कर मौत की नींद सुला दिया. इसी शिष्य के दोस्त को जब इस बारे में जानकारी मिली तो उस के साथ भी यही हुआ. शुजी तागुची नामक इस शिष्य की शोको के अन्य 4 शिष्यों ने गरदन पकड़ी और झटके से घुमा दी. ‘चट’ की आवाज हुई और शुजी का मुंह हमेशा के लिए बंद हो गया. शुजी की लाश को एक पौलीथिन की थैली में भर कर उस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी गई. लेकिन उन्होंने एक गलती यह कर दी कि शुजी के घर संदेश भिजवा दिया कि वह शोको असाहारा के कामों में व्यस्त है, इसलिए घर नहीं लौट पाएगा.
दिनबदिन होता गया खतरनाक यह सुन उस के मातापिता का परेशान होना लाजिमी था. कई महीने तक वह बेटे के घर लौटने का इंतजार करते रहे. वह नहीं लौटा तो निराश हो कर उन्होंने वकील तस्तुमी साकोमाटो से संपर्क कर अपनी व्यथा बताई. तस्तुमी ने उन्हें काररवाई करने का आश्वसन दिया. इस की खबर कुछ और अभिभावकों को भी लग गई थी, जिन के बच्चे घरबार छोड़ कर शोको की शरण में चले गए थे. इन में ओयामा नामक एक युवती के मातापिता भी थे. उन्होंने बताया कि उन की बेटी अपना घर छोड़ कर कई सालों से शोको के पास रहती है. लाख समझाने पर भी वह घर नहीं लौटी. वह उस से मिलना चाहते हैं तो शोको के शिष्य मिलने तक नहीं देते.
सच्चाई का पता लगाने के लिए तस्तुमी शोको के कानूनी सलाहकार योशींबु से मिला. उस ने ओयामा के मातापिता द्वारा लगाए गए आरोपों की बात कही तो योशींबु ने इसे सिरे से नकार दिया. तब तस्तुमी ने ओयामा का टीवी पर इंटरव्यू करवाने की बात कही. लेकिन योशींबु ने स्पष्ट जवाब न दे कर उसे टाल दिया. यह खबर शोको तक पहुंची तो वह घबरा गया. ओयामा के टीवी पर इंटरव्यू से उस के तथाकथित संप्रदाय की काली करतूत उजागर हो सकती थी. वकील तस्तुमी उस के लिए खतरे की घंटी बन कर आया था. अत: शोको ने अपने शिष्यों से तस्तुमी को धमकी भरे फोन करवाए. तस्तुमी धमकी से डरा नहीं, बल्कि वह अब विभिन्न माध्यमों से लोगों को जागरूक करने लगा. उस ने इस सच को लोगों के सामने उजागर किया कि शोको पाखंडी है. उस ने अपने शिष्यों और शिष्याओं को बंदी बना कर रखा हुआ है.
तस्तुमी की इस हरकत से शोको बौखला उठा. उस ने अपने संप्रदाय के वैज्ञानिकों को बुला कर तस्तुमी का मुंह सदा के लिए बंद करने का उपाय करने को कहा. शोको के इस आदेश का पालन हुआ. एक योजना के तहत शोको के वैज्ञानिक शिष्यों हिडीई मुराई, सातोरो हाशिमोटो और डा. नाकागवा ने एक थैली में पोटैशियम क्लोराइड के 7 इंजेक्शन तैयार किए. फिर तीनों योकोहामा रेलवे स्टेशन पर तस्तुमी का इंतजार करने लगे. मगर कई घंटे बीत जाने पर भी उन्हें वह दिखाई नहीं दिया. इस योजना के फेल हो जाने पर गुस्साए शोको के तथाकथित बदमाश शिष्यों का ग्रुप रात 3 बजे तस्तुमी के घर पहुंच गया. शोर सुन कर उस के एक वर्षीय बेटे की नींद खुल गई. एकाएक इतने लोगों को देख वह रोने लगा. तभी डा. नाकागवा (ग्रुप सदस्य) ने बच्चे के हाथ में इंजेक्शन लगा कर उसे मौत की नींद सुला दिया.
अब तक शोर और बच्चे के रोने की आवाज सुन कर तस्तुमी और उस की पत्नी भी जाग गए थे. उन्हें काबू में कर के विरोध करने से पहले ही जहरीले इंजेक्शन लगा कर दुनिया से विदा कर दिया गया. फिर तीनों की लाशें कपड़े में लपेट कर अपने साथ लाए ट्रक में लाद दीं और दूर पहाड़ों के बीच पहुंच कर तीनों लाशों के दांत निकाल लिए. इस के बाद तीनों लाशों को समुद्र की गहराई में फेंक दिया. यह घटना 3 नवंबर, 1989 की है. तस्तुमी, उस की पत्नी और बेटे की हत्या हो जाने की खबर फैली जरूर, पर पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. न ही पुलिस शोको के खिलाफ कोई सबूत जुटा पाई.
शोको के कयामतवादी संप्रदाय के वैज्ञानिकों हिडीई मुराई और सीची एंडो ने अब तक मौत की नींद सुलाने वाले कई तरह के पदार्थों का आविष्कार कर लिया था. इधर शोहरत की चरम पर पहुंच चुका शोको अब जापान पर हुकूमत करना चाहता था. सरकार को एक झटके में हटा कर खुद वहां का शासक बनने की उस की इच्छा तीव्र होती जा रही थी. शोको की ख्याति अन्य देशों में भी फैल चुकी थी. इसी का लाभ उठाते हुए एक योजना के तहत सन 1992 में शोको अपने दलबल के साथ रूस पहुंचा. वहां के नेता उस से प्रभावित थे. अत: वहां उस का जोरदार स्वागत हुआ. अपनी योजना के अनुसार शोको ने अपने राजनैतिक दायरे को विस्तार देना शुरू कर दिया, ताकि उस की आड़ में वह रूस में रह कर आधुनिक हथियारों का निर्माण कर उन्हें जापान ला सके.
शोको असाहारा दिखावे के लिए साधारण संत की तरह था, पर उस की वास्तविक जिंदगी ऐश और विलासपूर्ण थी. उस के पास दुनिया की सब से महंगी 11 कारों में से एक मर्सिडीज व रोल्स रौयस भी थीं. शोको की बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि कब वह जापानी सरकार को गिरा कर देश के तख्तोताज पर विराजमान होगा. मौत का बड़ा खेल खेलना चाहता था शोको सन 1993 में इसी के चलते शोको वापस जापान लौट आया. टोक्यो के बाहरी इलाके में स्थित अपनी 8 मंजिला इमारत को उस ने पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया. यहीं पर शोको के वैज्ञानिक एक गैस ‘बासीलुसांथ्राक्स’ जिसे एंथ्रेक्स नाम से भी जाना जाता था, बनाने में कामयाब हो गए. इसी गैस का प्रयोग अंगरेजों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किया था.
एंथ्रेक्स का असर धीरेधीरे होता है. इस के नथुनों में पहुंचने पर पहले जुकाम व बुखार होता है, फिर मितली, उल्टी होनी शुरू हो जाती है. शरीर पर काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं. मस्तिष्क में इस के पहुंचने पर व्यक्ति कोमा में चला जाता है, फिर अंत में उस की दर्दनाक मौत होती है. एंथ्रेक्स गैस की गंध आसपास के इलाकों में फैलने लगी थी. शोको की इमारत से निकलने वाली इस गंध पर कुछ लोगों को संदेह हुआ तो उन्होंने पुलिस से शिकायत कर दी. पुलिस ने प्रयोगशाला में छापा मारा तो वहां से बस सोयाबीन आयल के ड्रम ही मिले. फलस्वरूप पुलिस ने शोको के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. दरअसल, शोको भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था. उसे पहले से पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. इसीलिए उस ने अपनी इस विशाल प्रयोगशाला से संवेदनशील और आपत्तिजनक पदार्थ पहले ही गायब करवा दिए थे.
शोको चाहता था कि उस के वैज्ञानिक बेहद खतरनाक गैस सेरिन का निर्माण जल्द से जल्द करें, ताकि वह मौत का तांडव कर लोगों में दहशत फैला सके और इसे सरकार की नाकामयाबी कह कर उसे उखाड़ फेंके. मौत के इस भयानक खेल को अंजाम देने के लिए शोको ने भाउट फुजी नामक अपनी इमारत में सेरिन गैस का आविष्कार व निर्माण करने के लिए अपने वैज्ञानिकों को दिनरात एक कर देने का आदेश दे दिया था. उस ने अब इस इमारत का नाम बदल कर ‘सायतान-7’ कर दिया था. इंसान की मौत निश्चित करने के लिए सेरिन गैस की नाममात्र की मात्रा ही काफी होती है. लंबे प्रयास के बाद आखिर शोको के वैज्ञानिकों ने इस गैस का निर्माण कर लिया. अब उस के वैज्ञानिकों, शिष्यों, सदस्यों और कर्मचारियों को इंतजार था तो बस अपने आका शोको के आदेश का, जिस से वह मौत का खेल खेल कर दहशत फैला सकें और अपने कयामतवादी संप्रदाय का लक्ष्य पूरा कर सकें.
टोक्यो की भूमिगत ट्रेन में प्रतिदिन करीब 10 लाख यात्री सफर करते थे. शोको का निशाना भूमिगत ट्रेन का सब से व्यस्ततम रेलवे स्टेशन था.शोको के कहने पर शिष्यों ने रची बड़ी साजिश 20 मार्च, 1995 की सुबह के 8 बजे थे. टोक्यो वासी अंजान थे कि अगला पल उन की जिंदगी का काल बन कर आएगा. शोको का मुख्य वैज्ञानिक हिडीयो मुराई अपने 5 सहायकों कींची हीरोर, यासुओ हायाशी, मासानो योकोयामा, तोयीड़ा और डा. इराव हयाशी के साथ स्टेशन पर पहुंचा. योजना के अनुसार सभी अलगअलग ट्रेनों में सवार हो गए. कासुमीगोसेकी स्टेशन आते ही हिडीयो के पांचों सहायकों ने छिपा कर रखे सेरिन के पैकेट खोल दिए. देखते ही देखते ट्रेनों में मर्मांतक चीखों से वातावरण थर्रा उठा.
ट्रेनों को रोका गया. जिसे जिधर जगह मिली, वह उधर ही अपनी जान बचाने को भागा. रेल प्रशासन भी हरकत में आ गया. इस भयावह स्थिति से निबटने के हर प्रयास किए गए. बावजूद इस के इस मौत के तांडव में 12 लोगों को जहां अपनी जान गंवानी पड़ी वहीं करीब 6 हजार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. इस घटना के बाद टोक्यो पुलिस ही नहीं, जापानी सरकार भी हिल गई. इसे आतंकवादी काररवाई मानते हुए इसे अंजाम देने वालों को खतरनाक देशद्रोही आतंकी करार दिया गया. टोक्यो की तमाम पुलिस और गुप्तचर संस्थाएं अपराधियों की तलाश में कमर कस कर जुट गईं.
घटना के 2 दिन बाद ही 22 मार्च, 1995 को करीब एक हजार पुलिसकर्मियों ने आखिर इस घटना को अंजाम देने वाले डा. इराव हयाशी, कीयोहीदी हायाकाता और टीमो मीस्तु नीमी के साथ शोको असाहारा के डेढ़ सौ शिष्यों को भी गिरफ्तार कर लिया. अब तलाश थी मौत के सौदागार शोको असाहारा की. आखिर 16 मई, 1995 को दबिश दे कर शोको असाहारा को उस की ‘सायतान-7’ नामक इमारत से गिरफ्तार कर लिया गया. शोको असाहारा पर 11 सालों तक चले केस का अंतिम फैसला अक्तूबर, 2006 में आया.
11 सालों तक चले मुकदमे का अंतिम फैसला जापान के सर्वोच्च न्यायालय ने कयामतवादी संप्रदाय चलाने वाले शोको को दी गई ‘मृत्युदंड’ की सजा पर अंतिम मोहर लगा दी. वैसे उसे यह सजा सन 2004 में ही सुना दी गई थी, पर शोको के वकीलों का तर्क था कि शोको की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. शोको ने केस की सुनवाई के दौरान कई बार सजा से बचने के लिए नाटक भी किया था. उस ने अपने वकीलों और बच्चों से बात करनी बंद कर दी, वह फर्श पर कुशन पर बैठता था और किसी बात का जवाब नहीं देता था. तब मनोवैज्ञानिकों ने उस की मानसिक दशा की जांच की और कहा कि वह जजों को गुमराह करने के लिए नाटक कर रहा है.
15 सितंबर, 2006 को जापान के सर्वोच्च न्यायालय ने बचावपक्ष की अपील फिर से सुनने के बाद उन की दलील को अंतिम तौर पर ठुकराते हुए शोको के गले में मौत का फंदा डालने का रास्ता साफ कर दिया. मगर उस के वकील कोई न कोई दलील पेश कर के उसे अब तक मौत से बचाए हुए थे. शोको की बेटी रायका मात्सुमोटा ने रहम के लिए कई बार गुहार लगाई. मौत का खेल खेल कर दुनिया पर अपनी कयामतवादी हुकूमत स्थापित करने का ख्वाब सजाने वाला तथाकथित संत, एक्युपंक्चर विशेषज्ञ और आध्यात्मिक गुरु शोको असाहारा को 6 जुलाई, 2018 को फांसी पर लटका दिया गया.
शोको के साथ उस के 6 समर्थकों को भी फांसी की सजा दी गई. आखिरकार टोक्यो सबवे सेरिन गैस हमले के पीडि़तों को इंसाफ मिला. सालों से टोक्यो के लोग इस दिन का इंतजार कर रहे थे, जिन्होंने इस हमले में अपनों को खो दिया था. पिछले 23 सालों से उस दर्द को सीने में दबाए इन लोगों के चेहरे नम आंखों के साथ खुशी से खिल उठे.