खूबसूरत खालिदा और नौशाद एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे, लेकिन खालिदा के घर वालों ने उस का निकाह नौशाद के भाई आफताब से कर दिया. भाभी के रूप में अपनी महबूबा को देख कर नौशाद का दिमाग खराब हो जाता था. फिर एक दिन…  

दिनों मेरी पोस्टिंग नौशहरा में थी. मेरी रिहाइश भी थाने के करीब ही थी. एसआई मशकूर हुसैन ने खबर सुनाई

नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’ मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी. मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

मैं ने गौर से लाश की जांच की. वह औंधे मुंह पड़ा था. मुंह के करीब खून का छोटा सा तालाब बन गया था. खोपड़ी पर किसी वजनी चीज से वार किया गया था. खोपड़ी का पिछला हिस्सा काफी जख्मी था. खोपड़ी चटक गई थी. यह जख्म ही मौत की वजह था. वार बड़ी बेदर्दी से किया गया था, जिस से मारने वाले की नफरत का अंदाजा होता था. मेरे अंदाज के मुताबिक उसे सुबह 5-6 बजे मारा गया था. मैं ने कमरे की अच्छे से तलाशी ली. आला कत्ल नहीं मिला. मैं ने दूसरे कमरे की भी तलाशी ली, जहां खेती के औजार और बीज पड़े थे. काररवाई पूरी होने पर लाश मशकूर हुसैन के साथ पोस्टमार्टम के लिए सिटी अस्पताल भिजवा दी.

कमरे के बाहर अब तक काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने फय्याज को तसल्ली दी. उसे यकीन दिलाया कि कातिल जल्दी ही पकड़ा जाएगा. फिर उस से पूछा, ‘‘क्या आफताब की किसी से लड़ाई थी?’’

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘उस का कोई दुश्मन नहीं था. वह तो सब से मिलजुल कर रहता था.’’

‘‘पर फय्याज अली, लाश की हालत देख कर लगता है कि किसी ने दुश्मनी निकाली है. क्या किसी पर शक है? उस की लाश कितने बजे मिली थी?’’

‘‘हुजूर, वह सुबह 5 बजे अपने भाई के साथ खेतों पर निकल जाता था. लाश 8 बजे मिली. मैं देर से उन का नाश्ता ले कर जाता था.’’

‘‘क्या तुम आज भी 8 बजे नाश्ता ले कर निकले थे?’’

‘‘जी सरकार. आज मैं अकेले आफताब का नाश्ता लाया था, क्योंकि नौशाद बीमार घर पर पड़ा है.’’

काफी देर तक मैं अंदरबाहर की तलाशी लेता रहा. फिर फय्याज अली से पूछा, ‘‘जब तुम कमरे पर पहुंचे तो तुम ने क्या देखा?’’

‘‘जब मैं खेतों पर पहुंचा, मैं ने उसे खेत में नहीं देखा तो परेशान हो गया. वह सवेरे घर से कर डेरे से खेतों के कपड़े पहन कर काम शुरू करता था. शाम को काम खत्म कर के घर के कपड़े बदलता था. जब मैं कमरे पर पहुंचा तो वह घर के कपड़ों में ही औंधा पड़ा था. उसे कपड़े बदलने का मौका भी नहीं मिला था. शायद कातिल उस के साथ ही यहां पहुंचा हो.’’

‘‘मेरे खयाल में कातिल ने बेखबरी में मकतूल पर पीछे से वार किया है. उसे कपड़े बदलने का मौका तक नहीं मिल सका. मुझे शक है कि कातिल पहले से ही कमरे में था.’’

‘‘लेकिन दोनों कमरों के दरवाजे हम ताला लगा कर बंद करते हैं. कोई बंदा अंदर कैसे जा सकता है?’’

अचानक मेरी नजर कमरे की खिड़की पर पड़ी, जिस से आसानी से एक आदमी कमरे के अंदर सकता था. मैं ने खिड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘देखो, वह खिड़की खुली हुई है. कुंडी नहीं लगी है.’’

फय्याज हैरानी से बोला, ‘‘हैरत है जनाब, हम रोज शाम को खिड़की दरवाजे याद से बंद करते हैं. कल शायद भूल हो गई और कातिल को अंदर आने का मौका मिल गया.’’

उस के बाद मैं फय्याज के साथ कमरे बंद करवा कर उस के घर पहुंचा, जहां उस की बीवी सुलताना और बहू खालिदा थीं. घर का माहौल बेहद बोझिल था. आसपड़ोस की औरतें दोनों को तसल्ली दे रही थीं. मुझे नौशाद कहीं दिखाई नहीं दिया. मैं ने उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह रिश्तेदारी में मौत की खबर देने गया है. औरतें कुछ बताने की हालत में नहीं थींमैं बाहर गया. सामने किराने की एक दुकान थी. मैं वहां पहुंच गया. मैं ने दुकानदार अली से कहा, ‘‘तुम्हारी दुकान के सामने ही रहने वाले फय्याज का कत्ल हो गया है. तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’

उस ने बड़ी ही उदासी से कहा, ‘‘बहुत अफसोसजनक घटना है. आफताब बहुत अच्छा लड़का और कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था.’’

‘‘चाचा, मुझे लगता है कि यह कत्ल दुश्मनी और नफरत का नतीजा है. क्या तुम्हें कुछ अंदाजा है, कौन यह काम कर सकता है?’’

कुछ देर वह सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सरकार, ऐसे तो मुझे कुछ अंदाजा नहीं है. अभी तो बेचारे की शादी हुई थी. बड़ा ही सीधा बंदा था और बहुत ही धीमे मिजाज का. पर मुझे याद पड़ता है कुछ अरसे पहले कबड्डी के एक मैच में विरोधी टीम के एक बंदे ने बेइमानी की थी. उस का नाम फैजी था. दोनों की खूब कहासुनी हुई थी. फैजी का एक साथी जावेद भी बहुत बढ़चढ़ कर बोल रहा था. वह तो अच्छा हुआ देखने वालों ने समझाबुझा कर मामला संभाल लिया. मैं भी वहीं था. फैजी और जावेद बड़े लड़ाकू किस्म के लड़के हैं. उस दिन आफताब खेल से बाहर निकल गया. बात खत्म हो गई.’’

‘‘यह कितने दिन पहले की बात है?’’ 

चाचा ने सोच कर कहा, ‘‘उस की शादी के बाद ये मैच हुआ था. पर थानेदार साहब, यह इतनी बड़ी बात नहीं है कि कोई किसी का कत्ल कर दे.’’

मैं ने चाचा को बहुत कुरेदा पर कोई खास जानकारी हो सकी. थाने पहुंच कर मैं ने जावेद को बुलवाया तो पता चला कि वह किसी काम से गल्ला मंडी गया है. सिपाही उस की मां से कह कर आया था कि आने पर उसे थाने भेज दे. शाम को मशकूर हुसैन शहर से वापस गया. लाश दूसरे दिन मिलने वाली थी. मौत की वजह खोपड़ी पर लगी चोट थी. मैं ने मशकूर हुसैन से पूछा, ‘‘तुम जावेद के बारे में क्या जानते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जावेद कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी है. एक मैच में उस की आफताब से लड़ाई भी हुई थी, पर यह इतनी अहम बात नहीं है कि बात कत्ल तक पहुंच जाए.’’

‘‘जावेद के आने पर असली बात पता चलेगी.’’

‘‘एक बात और है सर, मेरी मालूमात के मुताबिक जावेद की बहन फरीदा की शादी आफताब से होने वाली थी. एक साल मंगनी रही फिर आफताब के घर वालों ने यह कह कर मंगनी तोड़ दी कि लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. और फिर उस की शादी भाई की बेटी खालिदा से कर दी.’’

मैं ने कहा, ‘‘मंगनी टूटने का भी दुख और अपमान ऐसे काम को उकसा सकता है.’’

अगले दिन फिर मैं फय्याज अली के घर गया. जावेद अभी तक नहीं आया था. मैं उस के बारे में सोच रहा था. फय्याज अली के घर का माहौल वैसा ही शोकग्रस्त था. मैं मकतूल की बेवा खालिदा से मिला. वह सदमे में थी. रोरो कर उस की आंखें सुर्ख हो रही थीं. अच्छी खूबसूरत लड़की बेहाल हो रही थी. उस से कुछ पूछना बेकार था. मैं ने फय्याज से पूछा, ‘‘क्या कबड्डी के एक मैच में जावेद और आफताब की लड़ाई हुई थी?’’

उस ने बेबसी से कहा, ‘‘हां, मैं ने भी सुना था कि कुछ बेइमानी होने पर दोनों के बीच में कहासुनी हुई थी.’’

मैं ने आफताब की मां से पूछा, ‘‘आप के बेटे की मंगनी पहले जावेद की बहन फरीदा से हुई थी. फिर मंगनी क्यों तोड़ दी? हो सकता है, इस वाकये की वजह से जावेद आफताब से नफरत करने लगा हो.’’

‘‘मंगनी तो टूटी थी क्योंकि फरीदा का चालचलन अच्छा नहीं था. पर थानेदार साहब, मुझे जावेद से ज्यादा फैजी पर शक है क्योंकि कबड्डी के मैदान के साथसाथ आफताब ने उसे जिंदगी के मैदान में भी हरा दिया था. क्योंकि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था. वैसे हमारी फैजी से कोई सीधी रिश्तेदारी नहीं है, पर खालिदा की मां और फैजी की मां आपस में बहनें हैं

‘‘खालिदा फैजी की खालाजाद बहन है. फैजी की मां की बड़ी आरजू थी कि वह खालिदा को अपनी बहू बनाए पर खालिदा की मां ने साफ इनकार कर दिया. इस पर बहुत लड़ाई भी हुई थी. लंबी नाराजगी चल रही है और खालिदा की शादी मेरे बेटे आफताब से हो गई. इस के पहले फैजी की मां और खालिदा की मां के ताल्लुकात बहुत अच्छे थे और सदमे में फैजी के बाप को फालिज का असर हो गया.’’

सारी कहानी सुन कर मैं सोच में पड़ गया. अब फैजी और जावेद दोनों शक के घेरे में गए थे. मैं ने फय्याज अली को बताया, ‘‘लाश शाम तक जाएगी. वे लोग मय्यत का बंदोबस्त कर लें.’’ 

सब को तसल्ली दे कर मैं वहां से उठ गया. उस दिन भी नौशाद से मुलाकात हो सकी. वह काम से बाहर गया था. सुलताना से की गई मालूमात तफ्तीश को आगे बढ़ाने में कारामद थी. जब मैं बाहर निकला तो फय्याज के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी और एक लड़का भी था. फय्याज ने बताया, ‘‘यह मेरे भाई फिदा अली हैं और यह खालिदा का भाई सईद.’’ इन के बारे में मैं पहले ही सुन चुका था. इन लोगों से कुछ पूछना बेकार था.

दूसरे दिन जावेद मेरे सामने खड़ा था. कसरती नौजवान था. उस के चेहरे पर रूखापन और अकड़ थी. उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने क्या किया है जो आप ने मुझे थाने बुलाया है?’’

‘‘मुझे कुछ पूछताछ करनी है. सीधा और सही जवाब चाहिए.’’

‘‘मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत है. बेवजह मुझे पकड़ लाए.’’

हवलदार ने एक चांटा उसे जड़ा तो उस का दिमाग सही हो गया. धीमे लहजे में बोला, ‘‘पूछिए, क्या पूछना है?’’

‘‘वारदात के दिन तुम कहां थे? शाम तक भी घर वापस नहीं आए.’’

‘‘सरकार, मैं गल्ला मंडी गया था. कुछ काम पड़ गया, आतेआते रात हो गई. सुबह आप की खिदमत में हाजिर हूं.’’

‘‘गल्ला मंडी क्यों गए थे?’’

‘‘मुझे सब्जियों के बीज लाने थे और गेहूं के दाम भी चैक करने थे. मैं सवेरे 8 बजे घर से निकला था.’’

इस का मतलब वह आफताब की मौत के बाद घर से निकला था. मैं आंख बंद कर के उस पर यकीन नहीं कर सकता था.

‘‘तुम ने जो बीज खरीदे, उस की रसीद दिखाओ?’’ 

उस ने जेब से तुड़ीमुड़ी रसीद निकाल कर मेरे आगे कर दी. तारीख की जगह पर मुझे ओवरराइटिंग का गुमान हुआ. मैं ने रसीद दराज में रख ली.

‘‘जावेद, यह बताओ कि आफताब की मंगनी तुम्हारी बहन से हुई थी तो यह मंगनी क्यों टूट गई?’’

‘‘सरकार, उन लोगों ने मेरी बहन पर बदचलनी का इलजाम लगा कर मंगनी तोड़ दी. मुझे बहुत गुस्सा आया रंज भी हुआ. बेवजह मेरी बहन बदनाम हुई.’’

‘‘और इसी का बदला लेने के लिए गुस्से में तुम ने आफताब का कत्ल कर दिया.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘थानेदार साहब, गुस्सा अपनी जगह है. मैं इस बात के लिए आफताब को कत्ल नहीं कर सकता. हां, मेरी उस से लड़ाई हुई थी. उसे बुराभला कह कर मैं ने अपना गुस्सा उतार लिया था और अपने दोस्त फैजी का साथ दिया था. मैं कसम खाता हूं, मैं इस कत्ल में शामिल नहीं हूं.’’

मैं ने पलटवार किया, ‘‘तो क्या यह कत्ल फैजी ने किया है? वह खालिदा से शादी करना चाहता था, पर जब उस की शादी आफताब से हो गई तो बदला लेने के लिए उस ने आफताब को मार दिया.’’

वह जल्दी से बोला, ‘‘नहीं सरकार, फैजी ऐसा नहीं कर सकता. इतनी सी बात के लिए कोई खून नहीं कर सकता. मैं यह मानता हूं कि मेरे और फैजी के दिल में आफताब के लिए जहर भरा था, पर हम ने कत्ल की वारदात नहीं की है.’’

मैं ने धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम शक के दायरे से बाहर नहीं हो. गांव छोड़ कर बाहर मत जाना.’’

दोपहर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट गई और साथ ही लाश भी. लाश घर वालों के सुपुर्द कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, आफताब को 18 तारीख की सवेरे 5 और 6 बजे के बीच मारा गया था

मौत खोपड़ी चटखने से हुई. खोपड़ी के पिछले हिस्से पर लोहे की भारी चीज से वार किया गया था. यह वार बेखबरी में पीछे से किया गया थाशाम को लाश को दफना दिया गया. काफी लोग जमा हुए थे. गमी का माहौल था. दूसरे दिन मैं ने मशकूर हुसैन को जावेद की बात की सच्चाई जानने को रसीद के साथ गल्ला मंडी रवाना कर दिया. उस के बाद फैजी को थाने बुलाया. फैजी 23-24 साल का गोरा जवान था. आते ही उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘मुझे आप ने सिपाही से पकड़वा कर क्यों बुलवाया? मेरा क्या कसूर है?’’

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है. एक बार में सच बोल दो तो बेहतर है. मार के बाद तो सच ही निकलेगा. तुम ने आफताब का कत्ल क्यों किया?’’

वह चीखते हुए बोला, ‘‘आप यह कैसा इलजाम लगा रहे हैं. इस कत्ल में मैं शामिल नहीं हूं. खुदा की कसम, मैं ने उस का कत्ल नहीं किया. यह सरासर इलजाम है.’’

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘फिर बताओ किस ने कत्ल किया? तुम उस से नफरत करते थे क्योंकि तुम्हारी पसंद की लड़की की शादी आफताब से हो गई थी. उस की जीत तुम से बरदाश्त नहीं हुई. कबड्डी के मैदान में भी तुम ने उस से झगड़ा किया था.’’

‘‘यह सही है कि मैं उस से नफरत करता था, पर सच्चाई यह है कि मैं ने आफताब को नहीं मारा.’’

‘‘जब तक सही कातिल हाथ नहीं आता, शक में तुम हवालात में बंद रहोगे.’’

फैजी की गिरफ्तारी की खबर जल्दी ही गांव में फैल गई. उस की मां रोतेधोते हमारे पास पहुंच गई. कहने लगी, ‘‘मेरा बेटा बेकसूर है. सुलताना ने आप को भड़काया, इलजाम लगाया, आप ने उसे हवालात में डाल दिया. यह जुल्म है सरकार. यह बात सही है कि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था पर मेरी बहन ने ही मना कर दिया, मैं किसी को क्या दोष दूं.’’

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, अभी जांच चल रही है. फैजी शक के दायरे में आता है, इसलिए उसे बंद किया है. अगर वह बेकसूर है तो यकीन रखो, मैं उसे छोड़ दूंगा.’’

वह रोते हुए बोली, ‘‘हुजूर, उस का बाप भी फालिज में पड़ा हुआ है. बेटा जेल में बंद है, हम पर रहम करें.’’ 

मैं ने समझाबुझा कर उसे घर भेजा. इसी बीच मशकूर हुसैन गल्ला मंडी से लौट आया. उस ने बताया, ‘‘तारीख में हेरफेर किया गया है. 3 को 8 बनाया गया है. बीज 13 तारीख को खरीदे गए थे, रसीद में 18 है.’’ 

वह दूसरी रसीद भी साथ लाया था. मैं ने फौरन जावेद को बुलवाया. उसे दोनों रसीदें दिखाईं तो वह हड़बड़ा गया. कहने लगा, ‘‘मैं ने तारीख बदली है यह सच है, पर इस की वजह दूसरी है, जिसे मैं ही जानता हूं.’’

मैं ने एक चांटा लगाते हुए पूछा, ‘‘वारदात के अलावा और क्या वजह हो सकती है.’’

वह गिड़गिड़ाया, ‘‘हुजूर, बात यह है कि 13 तारीख की रसीद दिखा कर मैं ने अपने बाप से पैसे वसूल कर लिए थे. मुझे जुए की लत लग गई है. 18 को मैं गल्ला मंडी तो गया था पर कुछ खरीदा नहीं और पुरानी रसीद में तारीख बदल कर अब्बा से दोबारा पैसे वसूल कर लिए. बस इतनी सी बात है.’’

वह रोने लगा, कसमें खाने लगा. उस की बात में सच्चाई थी क्योंकि गल्ला मंडी से यही मालूम हुआ था कि वह 13 तारीख को बीज ले गया था, 18 तारीख को सिर्फ कर चला गया था. वहां से वह हनीफ के जुआ अड्डे पर गया था. पर मैं इस तरह से उसे छोड़ नहीं सकता था. मैं ने उसे भी हवालात में डलवा दिया. गल्ला मंडी की जांच एक सिपाही के जिम्मे कर दी. शाम को मैं खुद फैजी के घर चला गया. उस का बाप बाबू खां दुबलापतला, बीमार सा आदमी था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘हौसला रखो बाबू खां. फैजी अगर बेकसूर है तो मैं तुम से वादा करता हूं कि उस का बाल भी बांका नहीं होगा.’’

उस ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘थानेदार साहब, इंसान गलती का पुतला है. ऐसी ही संगीन गलती मेरी बीवी जाहिदा ने भी की. वह खालिदा की शादी आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत अच्छा होता.’’

बाबू खां की एक बात में हजार भेद छिपे थे. बाबू खां को समझा कर मैं लौट आया. जैसे ही मैं थाने पहुंचा, सिपाही साजिद मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘सर, मुझ से बड़ी गलती हो गई. 18 तारीख वारदात के दिन जब हम लोग कमरों की तलाशी ले रहे थे, मुझे यह अंगूठी खिड़की के बाहर पड़ी मिली थी. मैं ने इसे जेब में रख लिया था और फिर एकदम भूल गया. आज जब ड्रैस धोने को निकाला तो यह अंगूठी हाथ लगी.’’

उस ने अंगूठी मेरी टेबल पर रख दी. गुस्सा तो मुझे बहुत आया. क्लू के होते हुए भी मैं अंधेरे में हाथपांव मार रहा था. 2 बंदों को हवालात में बिठा रखा था. मैं ने साजिद अली की अच्छी खबर ली और वार्निंग दी कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होनी चाहिएअंगूठी अच्छीखासी महंगी थी, जिस में चौकोर माणिक जड़ा था. चारों तरफ नन्हे फिरोजे जड़े हुए थे. मैं ने जावेद और फैजी को अपने कमरे में बुलाया. दोनों के हाथ बारीकी से चैक किए. वहां किसी की अंगुली पर अंगूठी का निशान नहीं था. फिर मैं ने उन्हें अंगूठी दिखाते हुए कहा, ‘‘सचसच बताना, यह अंगूठी किस की है? क्या इसे पहचानते हो?’’

दोनों के मुंह से एक साथ निकला, ‘‘हां सरकार, यह अंगूठी नौशाद की है.’’

कच्चा वारदाती जब पुलिस के हाथ चढ़ता है तो 2 झन्नाटेदार थप्पड़ उसे सच बोलने पर मजबूर कर देते हैं. नौशाद को गिरफ्तार कर के जब मेरे सामने लाया गया, मैं ने माणिक जड़ी अंगूठी उस के सामने रख दी. थप्पड़ों से पहले ही उस के होश ठिकाने चुके थे. अंगूठी देखते ही उस का रंग उड़ चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘यह अंगूठी तुम्हारी है ?’’

‘‘सर, यह आप को कहां से मिली?’’

‘‘जहां से तुम खिड़की के रास्ते कमरे के अंदर पहुंचे थे, वहां दीवार के पास पड़ी थी.’’

वह हक्काबक्का मेरी सूरत देख रहा था. बाबू खां का कहा हुआ एक वाक्य मेरे जहन में गूंज रहा था, ‘‘मांबाप को शादी के वक्त औलाद की पसंदनापसंद का खयाल रखना चाहिए. अगर वह खालिदा का रिश्ता आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत बेहतर होता.’’ अब इस वाक्य के पीछे छिपी कहानी पूरी तरह मेरी समझ में गई थी. नौशाद ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘यह अंगूठी मेरी है.’’

‘‘क्या तुम खालिदा से मोहब्बत करते हो और वह भी तुम्हें पसंद करती है?’’

‘‘जी, यह सच है मैं और खालिदा एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते हैं.’’ उस ने थूक निगलते हुए कहा.

‘‘तो क्या अपनी पसंद और मोहब्बत को पाने के लिए सगे भाई को कत्ल कर देना चाहिए?’’ मैं ने नफरत भरे लहजे में कहते हुए एक तमाचा और मारा. यह खुदगर्जी और जुल्म की एक बदतरीन मिसाल थी. इस से पहले मैं ने नौशाद को देखा ही नहीं था, नहीं तो शायद उस की खूबसूरती देख कर मेरे दिल में शक होता. नौशाद ने रोते हुए गरदन झुका ली.

अगले एक घंटे के अंदर मैं ने उस का इकबालिया बयान ले लिया. किस्सा यूं था

खालिदा और नौशाद बेहद खूबसूरत थे. वे दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे पर खालिदा की मां ने फैजी का रिश्ता आने की वजह से उस की शादी आफताब से तय कर दी और एक हफ्ते के अंदर ही खालिदा और आफताब की शादी निपटा दी. खालिदा और नौशाद को शादी के मौके पर कुछ कहने का वक्त ही नहीं मिला. जब होश आया, जुबान खोलते, तब तक शादी हो चुकी थीखालिदा ब्याह कर उसी के घर में गई. वह ब्याह कर और कहीं जाती तो शायद नौशाद उसे भूल जाता, पर अपने ही घर में अपनी महबूबा को भाभी के रूप में देख कर नौशाद का दिमाग खराब हो गया. वह रातदिन खालिदा को देख कर जलता और सोचता कि उसे कैसे हासिल किया जाए. फिर एक दिन उस ने एक शैतानी मंसूबा बना डाला और फैसला कर लिया कि सगे भाई आफताब को रास्ते से हटा देगा.

अपने मंसूबे के मुताबिक वारदात के एक दिन पहले अपनी बीमारी का कामयाब ड्रामा रचाया और 18 तारीख की सुबह वह भाई के साथ काम करने के लिए खेतों पर नहीं गया. वह छत पर सोता था, इसलिए उस की कारगुजारी सब से छिपी रही. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई कि मकतूल के पहले चुपके से वह डेरे पर पहुंच गया. अपने मकसद को पूरा करने के लिए उस ने खिड़की की कुंडी नहीं लगाई थी. वह खिड़की के रास्ते आफताब से पहले ही कमरे में घुस कर दरवाजे के पीछे छिप कर खड़ा हो गया और आफताब का इंतजार करने लगा

जैसे ही आफताब ताला खोल कर कमरे में दाखिल हुआ, उस ने लोहे के भारी रेंचपाने से उस के सिर पर करारा वार किया. अगले ही पल किसी कटे हुए दरख्त की तरह वह जमीन पर गिर गया. उस की खोपड़ी चटख गई थीनौशाद खिड़की के रास्ते कमरे में आया था. चढ़ते वक्त उस की अंगूठी दीवार के पास गिर गई, उसे पता नहीं चला. और साजिद ने भी अंगूठी देने में देर कर दी, नहीं तो केस दूसरे दिन ही हल हो जाता. बेवजह ही फैजी और जावेद को हवालात में बंद रखा. जर, जोरू और जमीन शुरू से ही कत्ल की वजह बनते रहे हैं. दोनों ही खूबसूरत लड़की और लड़के की जिंदगी नादानी में उठाए एक कदम से बरबाद हो गई.

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