इस वेब सीरीज की कहानी केरल की एक ऐसी नर्स सारा (नीना गुप्ता) की है, जो रिटायरमेंट के बाद अपने बेटे से यह खुलासा करती है कि उसे अस्पताल में बच्चों को बदलने में बड़ा आनंद आता था. वहां उस ने करीब एक हजार बच्चे बदले थे. यह सीरीज एक बेहतरीन सस्पेंस थ्रिलर बन सकती थी, लेकिन…

कलाकार: नीना गुप्ता, रहमान, नजबीन जमीला सलीम, संजू शिवरम, जौय मैथ्यू, इरशाद अली, रामानंद, श्रीकांत मुरली, शाजू श्रीधर आदि

निर्देशक: नजीम कोया, प्रोड्यूसर: शाजी नादेसन, आर्य, संपादक: जानकुट्टी, संगीतकार: शंकर शर्मा, लेखक: नजीम कोया, अरुज इरफान, ओटीटी: डिज्नी प्लस हौटस्टार

हौटस्टार पर प्रदर्शित ‘1000 बेबीजवेब सीरीज बनाने वाले निर्देशक नजीम कोया ने सिवाय नीना गुप्ता 

यानी सारा ओसेफ के अलावा सारे किरदारों का गलत तरीके से चयन किया है. वेब सीरीज का पहला पार्ट प्रीक्वल यानी आगाज ही उस के अंत की तरफ इशारा करता है. दर्शक आधा घंटे के भीतर में जबरिया उबाऊ, थकी हुई, धीमी रफ्तार और स्तरहीन थ्रिल ड्रामा देख कर ही उसे रिजेक्ट कर देगा.

एपिसोड नंबर-1

डायरेक्टर ने वेब सीरीज में सस्पेंस पैदा करने के लिए पहले पार्ट में 2 बार 5-5 मिनट के डरावने सीन बनाए हैं. इस से साफ है कि वेब सीरीज कैसे दर्शकों को आकर्षित करे, उस प्रयास में ज्यादा मेहनत के चलते वह बिखर गई. नीना गुप्ता बौलीवुड की एक मंझी हुई अदाकारा है. लेकिन उसे भी आभास हो गया था कि यह सीरीज दर्शकों का दिल नहीं जीत सकेगी. इसलिए उस ने अपनी अदाकारी के बूते कई जगहों पर निर्देशक को आलोचना से बचाने का प्रयास किया. 

इस वेब सीरीज में फिल्मांकन करने वाले कैमरामैन, ड्रेस डिजाइनर से ले कर लोकेशन चुनने वाले व्यक्ति को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. पहले भाग में डायरेक्टर ने एक हजार बच्चों के नाम मार्कर से एक मकान के दीवार पर लिखे हैं. हालांकि उन नामों के बीच नीना गुप्ता के जरिए ओटीटी निर्देशक कोई उत्साह ही पैदा नहीं कर सका. 

पहले पार्ट के मध्यांतर तक वेब सीरीज हौरर लगती है. क्योंकि बैकग्राउंड में क्राइम के बजाय हौरर संगीत डाला गया है. पहले भाग के अंत में पता चलता है कि सारा ओसफ रिटायर्ड नर्स थी. वह सब कुछ बता देती है, लेकिन तब ओटीटी निर्देशक म्यूजिक की आड़ में उसे 2 बार दबा देते हैं. फिर अचानक बेतुके अंदाज में पुलिस और वकील की एंट्री दिखाई गई है, जिन को वह अपने किए हुए गुनाह का पूरा ब्यौरा बता देती है. यानी साफ है कि कोई भी सस्पेंस वेब सीरीज में दर्शकों को नहीं मिलने वाला है. 

एपिसोड नंबर-2

वेब सीरीज का पहला एपिसोड लगभग 40 मिनट का है. वहीं उस का दूसरा एपिसोड 80 मिनट का रखा गया है. इस में पहले एपिसोड से वेब सीरीज के अंत तक दर्शकों को दूसरे एपिसोड का कोई कनेक्शन ही नहीं मिलेगा. जब दूसरा एपिसोड समाप्त होने जा रहा होता है तो ओटीटी फिल्म की मुख्य पात्र नीना गुप्ता यानी सारा ओसेफ के बेटे बिबिन ओसेफ की तरफ से भेजे गए एक महिला डाकिया से निर्देशक उसे जोड़ता है. इस से पहले पूरे 78 मिनट तक दर्शकों के सामने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की हीरोइन के मर्डर की कहानी घूमती रहती है. 

उस में भी विधायक, अनजान क्रू मेंबर से ले कर तमाम अनचाहे लोकेशन पर ओटीटी फिल्म बनती जाती है. दर्शक को समझ ही नहीं आता है कि हीरोइन का घर कहां है तो वह किस क्लब में किस व्यक्ति से मिल रही है. कुल मिला कर ‘1000 बेबीजदेखने के लिए दर्शक तीसरा पार्ट देखे या नहीं देखे, वह एक हजार बार सोचेगा. पूरा पार्ट भूलभुलैया का गहरा कुंआ है, जिस में कमजोरियों की गहराई नापना संभव ही नहीं है. 

फिल्म डायरेक्टर नजीम कोया ने कई लोकेशन की स्टडी ही नहीं कराई. इस में बात करें तो फिल्म हीरोइन को पोस्टमार्टम करते हुए जैसे दिखाया गया है, वह विश्व में कहीं भी नहीं होता. दृश्य जिस तरह फिल्माया गया, वह बेहद ही हास्यास्पद है. अंधेरा कमरा जिस में बिजली की भारी कमी और शरीर को चीरफाड़ करते तो ऐसे दिखाया 

जैसे ओटीटी के दर्शकों के बजाय उसे कार्टून फिल्मों के दर्शक समझ कर लोग आएंगे. डायरेक्टर ने न्यायाधीश के पात्र को पुलिस अफसरों के साथ ड्रिंक करते हुए दिखा कर बहुत ही नादानी भरा काम किया. इस के अलावा ओटीटी में एमएलए, हीरोइन के पति का रसूख दिखाने के लिए अस्पताल में सिगरेट पीने के लिए फिल्मांकन किया गया. ऐसे ही कई अन्य तकनीकी चूक से भरा दूसरा एपिसोड दर्शकों को वेब सीरीज बोझ लगने का अहसास कराता है. 

एपिसोड नंबर-3

वेब सीरीज का तीसरा एपिसोड ओटीटी के दर्शकों को बहुत ज्यादा निराश और हताश कर देगा. इस वेब सीरीज की शुरुआत इंसपेक्टर के पास लैटर ले कर आने वाली मर्लिन से होती है. वह नीना गुप्ता यानी सारा के बेटे बिबिन की कहानी बताती है. मर्लिन उस के साथ पहले एपिसोड में कुछ पल के लिए एक पैथोलौजी लैब में काम करते हुए दिखाई गई है. मर्लिन की यह भूमिका विविया संथ ने निभाई है, जबकि इंसपेक्टर की भूमिका में रहमान है, जोकि अजि कुरियन नाम से पात्र है. 

इस एपिसोड में इंसपेक्टर तफ्तीश करते हुए बिबिन के घर पहुंच जाता है, जिस को वह पड़ोसी को बेच देता है. फिर बिबिन का बचपन और मर्लिन के वैवाहिक जीवन को दिखाया गया है. इस बीच इंसपेक्टर वहां जाता है, जहां बिबिन का घर होता है. यहां जा कर उस अस्पताल का पता मिलता है, जहां सारा ने अंतिम सांस ली थी. यहां पर उसे वकील और तत्कालीन इंसपेक्टर के साथ 12 साल पुराने वाकए का पता चलता है. इंसपेक्टर उन के पास जाता है तो उस के 2 सीनियर पुलिस अधिकारी और न्यायाधीश के पास पहुंच जाता है. यहां वह सारा का इकबालिया बयान बताते हैं, जिस में यह पूरी वेब सीरीज बनी है. 

हैरानी वाली बात यह है कि इस एपिसोड में ओटीटी के डायरेक्टर नीना गुप्ता यानी सारा, जो 5 साल तक एक निजी अस्पताल में जौब करती है, उसे ही गायब कर देते हैं. उस की जगह दूसरी सारा को ले कर आया जाता है. ऐसे में दर्शक फिर चकराने लगता है कि आखिर वह इस वेब सीरीज को क्यों देख रहा है. पहले से ले कर तीसरे एपिसोड में किसी भी तरह का ठोस संवाद ही नहीं है. इस के अलावा कोई याद करने वाले पल की कमी को दर्शक महसूस करेगा.

एपिसोड नंबर- 4

वेब सीरीज का चौथा एपिसोड भी 40 मिनट का है. यहां पुलिस अधिकारियों के आदेश पर इंसपेक्टर अजि कुरियन को एक टीम बना कर दी जाती है. इस टीम को बनाने को ले कर कोई योग्यता का पैमाना नहीं दिखता. इस एपिसोड में भी पात्र आतेजाते हैं और कुछ मिनटों बाद ही ओझल हो जाते हैं. अजि कुरियन जांच करने से पहले तय करते हैं कि सारा ओसेफ के बेटे बिबिन को तलाशा जाए. सब से पहले वह उस बच्ची को टारगेट करते हैं, जिस को उस की मां ने बदला था. उस का नाम रेणुका होता है, जिस का पुलिस के पहुंचने से बहुत साल पहले ही मर्डर हो जाता है.

ओटीटी में ‘1000 बेबीजदेखने वाले दर्शकों को साल याद रखना होगा. यानी सारा ओसेज की मौत के 12 साल बाद अजि कुरियन जांच शुरू करते हैं. सर्चिंग करते हुए वह बेंगलुरु पहुंचते हैं. यहां एसीपी जो कुछ देर के लिए आती है और चली जाती है, उन से मदद ले कर जांच करते हैं. इस के बाद अजि कुरियन के सहयोगी एसआई उस कालेज में जा कर पता करते हैं, जहां बिबिन ओसेफ के असली मातापिता प्रोफेसर थे. यहां से जांच शुरु होते हुए बेंगलुरु पहुंचती है. बेंगलुरु में उस के पिता बताते हैं कि उस की कार में दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई थी. उसी केस की छानबीन में फिर कई पुलिस अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं. 

इस दौरान अजि कुरियन उस थाने में पहुंचते हैं, जहां रेणुका की मौत की केस डायरी होती है. यहां से अजि कुरियन को उस के दोस्तों के बारे में पता चलता है. उन से बातचीत में अजि कुरियन को मालूम होता है कि बिबिन उस कंपनी में जौब कर रहा था, जहां रेणुका भी थी. लेकिन उस का नाम यहां हर्षिन होता है. वह उस की मौत के बाद गायब हो जाता है. यह देख कर लगता है कि डायरेक्टर को चौथे एपिसोड में याद आता है कि उन्हें क्राइम स्टोरी पर वेब सीरीज बनानी है. इस एपिसोड में भी कई जगह फिल्मांकन की लोकेशन दर्शकों को गले नहीं उतरने वाली है. किसी तरह की बारीक जांच देखने को नहीं मिलती. 

सब कुछ ओटीटी निर्देशक की समझ के अनुसार सबूत मिलते हैं और उन से ही जांच आगे बढ़ती है. चौथा एपिसोड खत्म होता है तो इस बात का अहसास ही निर्देशक नहीं करा पाया कि दर्शक को पांचवां एपिसोड क्यों देखना चाहिए. इस एपिसोड में भी लिए गए अधिकांश पात्र वेब सीरीज की जरूरत के हिसाब से फिट ही नहीं बैठते. 

एपिसोड नंबर-5

वेब सीरीज का पांचवां एपिसोड देवन कुंबलेरी पर केंद्रित है. करीब 40 मिनट के एपिसोड में पूरा देवन कुंबलेरी पर यह बनाया गया है. यह राजनीतिक पार्टी का नेता है, जो एक विशेष जाति के प्रति आस्था रखता है. यानी निर्देशक ने यहां हिंदूमुसलमान के देशभर में फैले मुद्ïदे को भुनाने की कोशिश की है. इसी एपिसोड में खुल कर बीफ खाने को ले कर बताया गया है. ऐसा लगता है कि इस विषय को डाल कर वेब सीरीज को विवादों में ला कर जबरिया हिट कराने की कोशिश की गई है. लेकिन कमजोर पटकथा, उस के घटिया फिल्मांकन, गैरवाजिब पात्रों के मिश्रण और निरंतरता खोती वेब सीरीज सुर्खियां इन मुद्ïदों पर भी नहीं पा सकी. 

इस एपिसोड में भी ओटीटी निर्देशक की पटकथा के अनुसार सब कुछ सुराग जांच करने पहुंचे अजि कुरियन के सामने आती जाती है. दर्शकों को इस बात का अहसास ही नहीं होता कि वे कोई ओटीटी वेब सीरीज देख रहे हैं. फिल्म ऐसी लगती है जैसे कोई फ्लैशबैक कर के कहानी सुना रहा हो. इस वेब सीरीज की सब से कमजोर कड़ी कलाकारों के बैकग्राउंड में दी गई आवाज है. यह आवाजें पात्र के अनुसार किसी भी कलाकार पर सटीक नहीं बैठती हैं. इस के अलावा जगहजगह दर्शकों को बहुत आसानी से इस बात का अहसास हो जाता है कि यह हिंदी अनुवाद पर बनाई गई दक्षिण भारतीय फिल्म है. 

अभी तक यह होता आया है कि दक्षिण भारत की फिल्मों को ले कर बौलीवुड वेब सीरीज या फिल्में बना कर पैसा कमाता था. लेकिन, दर्शकों को यह कपोल कल्पनाओं पर बनी फिल्म आकर्षित ही नहीं कर सकी. मुख्य कलाकार बिबिन, जो हर एपिसोड में नए नाम के साथ सामने आता है, इस में भी नायसाम अली बन कर आता है. वेब सीरीज में अस्पताल में बदले गए बच्चों के मातापिता को ले कर कोई खोजपरक या याद करने योग्य कहीं कोई वाकया ही नहीं है. 

ओटीटी के डायरेक्टर ने पांचवें एपिसोड में भी भारी चूक की है. इस में एक पात्र दिखाया है, जिस का नाम सुनील है. लेकिन उस के मातापिता मुसलिम हैं. वह उन्हें अब्बू और अम्मी बोलते हुए दिखाया गया है. ऐसे ही तकनीकी चूक से भरी यह वेब सीरीज है. पुलिस जिस भी पात्र के पास जाती है, उस के जन्मदिन वाले दिन ही संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती है. इसलिए दर्शकों को कलाकार के जन्म तारीखों पर जूझना पड़ता है. जिस कारण वेब सीरीज दर्शकों से ही मेहनत कराती है, जो उस की असफलता का सब से बड़ा कारण है. 

एपिसोड नंबर-6

वेब सीरीज का छठवां एपिसोड पूरी तरह से बिखरा हुआ है. इस में कभी भी दूसरे एपिसोड में हुए मर्डर मिस्ट्री आ जाती है. इसी एपिसोड में तीसरे एपिसोड का भी मर्डर वाला हिस्सा आता है. सब कुछ दूसरे और तीसरे एपिसोड से मिला कर इसे निर्देशक ने बना दिया है. यानी साफ है कि निर्देशक के पास स्टोरी लाइन ही नहीं थी. इसलिए छठवां एपिसोड पूरी तरह से भटका रहा. यहां मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के लेखक संजीव, जो कभी चर्चित चेहरा हुआ करते थे, वह हाशिए पर जाते हैं. जिन से उन की पत्नी भी किनारा करने लगती है. उस ने ही इंसपेक्टर के सामने मर्डर की बात कुबूली थी. उस ने अभिनेत्री पत्नी नैंसी की हत्या की थी. इस के लिए वह बेबी डौल की मदद से बाकायदा अभ्यास भी कर रहा था. लेकिन उसे यह सब राह दिखाने वाला बिबिन नहीं था. 

वहीं कालेज में प्रोफेसर की बेटी जिस को बिबिन जन्मदिन में आयोजित पार्टी के दौरान नशे की ओवरडोज दे कर मारता है. यह सारी कहानी इंसपेक्टर अजि कुरियन मजिस्ट्रैट और पुलिस के अफसरों को बताते हैं. यह एपिसोड भी 40 मिनट का है, जिस में ज्यादा समय युवाओं को नशा करने के तरीकों को ले कर केंद्रित किया है. निर्देशक ने ड्रग बनाने से ले कर उस के इस्तेमाल की पूरी विधि इस एपिसोड में बताई है. इसलिए यहां ओटीटी में पुलिस की पड़ताल या सस्पेंस जैसा कुछ भी नहीं है. सारे पात्र एकएक कर के अचानक आते हैं और चले जाते हैं. 

एपिसोड नंबर- 7

वेब सीरीज का सातवां और आखिरी एपिसोड फिर 2 नाम के गुमनाम व्यक्ति के भेजे पत्र से शुरू होता है. इस में भी एक व्यक्ति की हत्या हो चुकी होती है. किसी भी एपिसोड में ओटीटी के डायरेक्टर ने बिबिन को योजना बनाते या उस को अमल में लाते हुए नहीं दिखाया. यह इस वेब सीरीज की भारी चूक है. जिस कारण बिखरी हुई पटकथा और पात्रों के चलते अंतिम एपिसोड भी दर्शकों को काफी निराश करेगी. किसी तरह का अभिनय नीना गुप्ता को छोड़ कर कोई भी कलाकार पेश ही नहीं कर सका. जगहजगह तकनीकी चूक से भरी ओटीटी का दूसरा भाग भी बनना तय है. ओटीटी के आखिरी में जो नाम संकेत के तौर पर मिलते हैं, वह जिब्रान नहीं बल्कि बिबिन निकल कर आता है. 

हालांकि निर्देशक यह बताने में सफल रहा कि मोपेड सवार जो आखिरी बार मर्लिन और इंसपेक्टर अजि कुरियन को पत्र देता है, वह निकल कर जाते हुए दिखता है. बिबिन को कुरियन के साथ मौजूद एसआई गोली मार कर उस का एनकाउंटर कर देता है. वेब सीरीज का आखिरी एपिसोड लगभग 55 मिनट का है, जिस में से कहीं भी दर्शक रुकने वाला नहीं है. किसी तरह का सस्पेंस, थ्रिलर और क्राइम ओटीटी के दर्शकों को निर्देशक परोसने में नाकाम रहा. 

पहले ही एपिसोड में नीना गुप्ता, जिसे मनोरोगी भी दिखाया गया है, वह बेटे बिबिन ओसेफ को बुलाती है. वह उस वक्त इंगलिश टायलेट पर पूरी तरह से नग्न बैठा हुआ दिखाया गया है. वह उसी अवस्था में मां के लिए टायलेट का दरवाजा भी खोलता है. वेब सीरीज में जम कर ड्रग्स के इस्तेमाल को प्रदर्शित किया गया है. वेब सीरीज में बहुत सारे कलाकारों को शामिल किया गया. जिस कारण वह कुछ चयनित पात्रों के बीच सिमटने की बजाय बिखरती चली गई. इसलिए निर्देशक हर एपिसोड में वेब सीरीज को क्लोजिंग और उसे ओपनिंग करने के लिए जूझता नजर आया. 

हर कलाकार के बीच तालमेल का भी अभाव दिखा. क्राइम पर आधारित ओटीटी फिल्म थी, जिस में साइबर और तकनीकी समझ से कमजोर तथ्यों के साथ पुलिस विभाग को थका हुआ विभाग प्रदर्शित कर रही है.

नीना गुप्ता

हौटस्टार पर 18 अक्तूबर, 2024 को प्रदर्शित क्राइम वेब सीरीज ‘1000 बेबीजमें उत्तर और मध्य भारतीय दर्शकों के बीच पहचान बना चुकी नीना गुप्ता चर्चित चेहरा है. उस ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में लगभग 3 दशक बाद अपना भाग्य आजमाया है. ओटीटी पर उस की प्रदर्शित पंचायतवेब सीरीज के चलते उसे काफी शोहरत मिली. बौलीवुड में अपने अभिनय के चलते खास पहचान रखने वाली नीना गुप्ता किसी परिचय का मोहताज नहीं है. खलनायकफिल्म का आइटम सौंग हो या बधाई होफिल्म में हास्य पैदा करने वाला काम, उस में महान फनकार वही रही है. 

नीना गुप्ता जो मुख्य भूमिका में तो है लेकिन 2 एपिसोड के बाद निर्देशक ने उस के हिस्से को हाशिए पर धकेल दिया. जिस कारण 2 एपिसोड के बाद वेब सीरीज फिसड्डी साबित हुई. नीना गुप्ता बौलीवुड में 1981 से अभिनय कर रही है. उस की पहली फिल्म आदत से मजबूरथी. वह विवादों में भी कई बार रही. खासतौर पर अविवाहित हो कर बच्चे को जन्म देने वाले किस्से को ले कर. उस वक्त भारतीय संस्कृति में इसे काफी बुरा माना जाता था. उस दौर से निकल कर उस ने अपार सफलता पाई. 

वह अपने विवादित बयानों के चलते भी चर्चा में बनी रही. उस के वेस्टइंडीज के क्रिकेटर विवियन रिचड्र्स के साथ अफेयर के किस्से भी मीडिया में जगह पाते रहे. काफी उथलपुथल लाइफ देखने के बाद बौलीवुड में नीना गुप्ता ने 2018 से कमबैक किया. खासतौर पर उस ने अपनी खोई विरासत बधाई होफिल्म से पाई, जिस में उस ने मां की उस अवस्था का अभिनय बेहतरीन ढंग से किया, जब बच्चे की उम्र शादी की होती है. 

नजीम कोया

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री यानी मौलीवुड में नजीम कोया नाम नया नहीं है. उस की चर्चित 2018 में प्रदर्शित कालीफिल्म के बाद उस ने अपनी पहचान बनाई. कोया 2010 में थ्रिलर फिल्म अपूर्वरागमबना कर मौलीवुड में पहचाना गया. वह फिल्म निर्देशक के साथ पटकथा लेखक भी है. निर्देशक नजीम कोया जब ‘1000 बेबीजकी शूटिंग कर रहा था, तभी उस के होटल में आबकारी विभाग ने छापा मारा था. यह काररवाई पिछले साल की गई थी. हालांकि होटल से कोई भी नशीला पदार्थ नहीं मिला था. इस घटना के बाद केरल फिल्म इंडस्ट्री उस के समर्थन में उतर आई थी. 

इस वेब सीरीज के बाद लोगों ने इस के असली या नकली होने को ले कर काफी सर्च किया, जिस में जांबिया की नर्स की 5 हजार बच्चों की कहानी सामने आई थी. हालांकि वह मेल नहीं खाई. इतने मंझे हुए फिल्ममेकर से ओटीटी बनाने में कई जगह तकनीकी चूक हो गई. इसलिए नहीं लगता कि वह भविष्य में दोबारा ओटीटी को ले कर कोई उत्साह दिखाएगा. मलयालय फिल्म इंडस्ट्री में भी इस वेब सीरीज की काफी आलोचना हुई है.

रघु

ओटीटी पर प्रदर्शित ‘1000 बेबीजमें ए.आर. रहमान की साली को भी लांच किया गया है. इस के लिए उन्होंने मौलीवुड इंडस्ट्री को लांच पैड बनाया. इसी वेब सीरीज में इंसपेक्टर के रूप में अजि कुरियन नाम से चर्चित मलयालम कलाकार रघु ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रघु मलयालय फिल्म इंडस्ट्री का चर्चित नाम है. लेकिन जब उस ने ‘1000 बेबीजमें काम किया तो वह नकल करते नजर आए. कुछ जगहों पर उस ने सोनी पर प्रदर्शित होने वाले सीआईडीकी शैली अपनाई. रघु ने कुछ जगहों पर मनोज बाजपेयी की तरह ओटीटी में काम करने का प्रयास किया. नतीजतन, मलयालय इंडस्ट्री के मूल तत्त्व से ही भटक गए, जिस का प्रभाव उस की अदाकारी पर पड़ा. 

रहमान का जन्म 1967 में हुआ था. वह मलयालय के अलावा तमिल और तेलुगु भाषा की फिल्मों में भी काम कर चुका है. उस ने करीब 150 फिल्मों में अभिनय किया है. इस के बावजूद ओटीटी पर आई ‘1000 बेबीजमें वह उत्तर भारतीय दर्शकों के दिल पर कोई छाप नहीं छोड़ सका. हालांकि वह बेहतरीन कलाकार है.

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