नाजिम और आयशा ने प्रेम ही नहीं किया, बल्कि निकाह की भी पूरी तैयारी कर ली थी. इस के लिए दोनों के मांबाप भी तैयार थे. लेकिन आयशा के भाई इमरान ने इस निकाह को रोकने के लिए जो किया, वह बिलकुल ही जायज नहीं था. उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर अपने कार्यालय में जैसे ही आ कर बैठे, एक बुजुर्ग उन के सामने आ कर खड़ा हो गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मोहम्मद आरिफ है. मैं दामूपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा 26 वर्षीय बेटा नाजिम 14 सितंबर की सुबह 10 बजे घर से काम पर जाने के लिए निकला था. शाम को वह घर नहीं लौटा तो मैं उस की तलाश करने लगा.

लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह 5 बजे गांव में शोर मचा कि सुमित पाल के बाजरे के खेत में एक लड़के की लाश पड़ी है. मैं ने वहां जा कर देखा तो वह मेरे बेटे नाजिम की लाश थी. उस में से बदबू आ रही थी. साहब, मैं उसी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

सुबहसुबह हत्या की खबर से थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर का दिमाग चकरा गया. उन्होंने स्वयं को संभाल कर मोहम्मद आरिफ से पूछा, ‘‘बता सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘जी मेरे ही गांव के मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान ने यह काम किया है. साहब, मेरा बेटा नाजिम उस की बहन आयशा से प्यार करता था. वह उस से निकाह करना चाहता था. जबकि इमरान को यह पसंद नहीं था.’’

आरिफ की सूचना पर थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने अपराध संख्या-520/2013 पर भादंवि की धारा 302/364/201 के तहत मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान तथा 2 अन्य  लोगों, इमरान के मौसेरे भाई उस्मान और दोस्त सुफियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपने साथ एसएसआई उमाशंकर यादव, एसआई जीतेंद्र बहादुर सिंह, एसआई (टे्रनिंग) संगीता सिंह तथा कुछ सिपाहियों को ले कर गांव दामूपुर के लिए रवाना हो गए. पुलिस बल के साथ इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर दामूपुर गांव के उस बाजरे के खेत पर जा पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश निर्वस्त्र थी. देखने से ही लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद उसे चाकुओं से भी गोदा गया था. यह हत्या भी कहीं दूसरी जगह की गई थी. उस के बाद लाश को यहां ला कर फेंका गया था. लाश से तेज दुर्गंध आ रही थी.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने दामूपुर गांव जा पहुंचे. लेकिन वहां कोई नहीं मिला. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर अभियुक्त इमरान की बहन आयशा, अम्मी परवीन बेगम तथा अब्बा इब्राहीम को पूछताछ के लिए थाने ले आए. पूछताछ में इब्राहीम और उन की पत्नी ने बताया कि न तो उन्होंने यह हत्या की है और न ही उन्हें हत्यारों के बारे में कुछ पता है. इस के बाद इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने आयशा को अलग ले जा कर पूछताछ की तो उस ने नाजिम से अपना प्रेमसंबंध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘मेरे भाई इमरान ने मेरी मौसी के बेटे उस्मान और दोस्त सुफियान के साथ मिल कर नाजिम की हत्या की है.

इमरान ने मुझ से निकाह करने का आश्वासन दे कर नाजिम को शनिवार की रात घर बुलाया. उसी रात तीनों ने नाजिम की गला दबा कर और चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. आधी रात के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया तो वे नाजिम की लाश को गांव के बाहर बाजरे के खेत में फेंक आए थे.’’

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इमरान के पिता इब्राहीम को रोक कर आयशा और उस की मां परवीन बेगम को घर भेज दिया था. यह 16 सितंबर की बात है. 19 सितंबर को सूरज ने अभी पूरी तरह आंखें खोली भी नहीं थी कि इब्राहीम के घर की महिलाओं के चीखचीख कर रोने की आवाज से पूरा गांव जाग गया. गांव वाले इब्राहीम के घर पहुंचे तो पता चला कि उस की बेटी आयशा ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. गांव वालों के कहने पर परवीन बेगम ने इस घटना की सूचना थाना धूमनगंज पुलिस को दी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर को परवीन बेगम की बातों पर कतई विश्वास नहीं हुआ. फिर भी उन्होंने उस के बताए अनुसार अपराध संख्या-529/2013 पर भादंवि की धारा 309 के तहत मुकद्दमा दर्ज करा कर साथियों के साथ दामूपुर स्थित इब्राहीम के घर जा पहुंचे.

आयशा की लाश मकान की पहली मंजिल बने कमरे में दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से रस्सी के सहारे लटक रही थी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश का निरीक्षण करने के दौरान देखा कि लटक रही लाश के पैर फर्श को छू रहे थे. शरीर पर 2 जगहों पर जले के निशान थे. कपड़ों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी. वहीं मिट्टी के तेल का डिब्बा भी पड़ा था. स्थितियों से यही लग रहा था कि पहले उस पर मिट्टी का तेल डाल कर जला कर मारने का प्रयास किया गया था. किसी वजह से इरादा बदल गया तो गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. उस के बाद लाश को रस्सी के सहारे लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया गया. पुलिस ने जब हत्या की शंका व्यक्त की लेकिन घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश को नीचे उतरवा कर आवश्यक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. अब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा थी. पोस्टमार्टम के बाद आयशा की लाश अंतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. इंसपेक्टर रामसूरत को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो उन का शक विश्वास में बदल गया, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयशा की मौत एंटीमार्टम इंजरी स्ट्रांगग्यूलेशन यानी गला दबा कर हत्या करना बता रही थी. इस बीच इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इस मामले में अपने मुखबिरों से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं. प्राप्त जानकारियों के अनुसार आयशा के भाई को उस रात गांव में देखा गया था. चर्चा थी कि आयशा नाजिम की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता कर मुख्य गवाह बन गई थी, इसीलिए उसे उस के भाई ने मार दिया था.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए थाना धूमनगंज पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए. परिणामस्वरूप 20 सितंबर को पुलिस ने इमरान के मौसेरे भाई उस्मान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद 28 सितंबर को आयशा का भाई इमरान भी पुलिस गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के अगले दिन उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इमरान और उस्मान ने नाजिम और आयशा की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह प्रेमसंबंध और औनर किलिंग की निकली. इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के गांव दामूपुर में मोहम्मद आरिफ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे. बेटों में नाजिम सब से छोटा था. वह मकानों में मार्बल लगाने का ठेका लेता था, जिस से वह अच्छीखासी कमाई कर रहा था. जबकि मोहम्मद आरिफ गांव में ही पान की दुकान चलाते थे.

इसी गांव के रहने वाले मोहम्मद इब्राहीम मोटर मैकेनिक थे. जीटी रोड चौफटका पर उस की अपनी दुकान थी. घर में पत्नी परवीन बेगम के अलावा 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. 18 वर्षीया आयशा तीसरे नंबर पर थी. एकहरे बदन की गोरीचिट्टी आयशा देखने में ठीकठाक लगती थी. आयशा के भाई इमरान की नाजिम से खूब पटती थी. उन की यह दोस्ती बचपन की थी. नाजिम का उस के घर भी आनाजाना था. इसी आनेजाने में आयशा को नाजिम कब पसंद आ गया, उसे खुद ही पता नहीं चला. नाजिम आयशा को 1-2 दिन दिखाई न देता तो वह बेचैन हो उठती. उस की आंखें नाजिम के दीदार को तड़पने लगतीं. जल्दी ही नाजिम को आयशा की इस तड़प का अहसास हो गया. यही वजह थी कि जिस आग में आयशा जल रही थी, उसी आग मे नाजिम भी जलने लगा. वह जब भी आयशा के घर आता, चाहतभरी नजरों से उसे देखता रहता.

ऐसे में ही किसी दिन आयशा और नाजिम को तनहाई में मिलने का मौका मिला तो दोनों के दिल की तड़प होठों पर आ गई. नाजिम ने आयशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आयशा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी चाहता है मैं तुम्हें हमेशा देखता रहूं.’’

‘‘नाजिम, मेरा भी यही हाल है.’’ आयशा उस के नजदीक आकर बोली, ‘‘मेरा भी मन करता है कि हर पल तुम्हें ही देखती रहूं, तुम से खूब बातें करूं, तुम्हारे साथ घूमूं. तुम मेरे दिलोदिमाग में रचबस गए हो. दिन में चैन नहीं मिलता तो रातों को नींद नहीं आती. बस, तुम्हारी ही यादों में खोई रहती हूं.’’

आयशा अपनी बात कह ही रही थी कि नाजिम ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. इस के बाद धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. गुपचुप तौर पर दोनों कभी घर में तो कभी घर के बाहर रात के अंधेरों में मिलनेजुलने लगे. आयशा जब भी नाजिम से मिलती, अपने प्यार की दुनिया बसाने का स्वप्न उस के सीने पर सिर रख कर देखती. आयशा नाजिम पर कुछ इस कदर दीवानी हुई कि एक दिन अपना सबकुछ उस के हवाले कर दिया. इस के बाद नाजिम ने उसे भरोसा दिलाया कि दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, लेकिन वह उसे इधर से उधर नहीं होने देगा. वह उसी से निकाह करेगा. प्यारमोहब्बत कोई छिपने की चीज तो है नहीं, यही वजह थी कि नाजिम और आयशा की मोहब्बत का भी खुलासा हो गया. गांव में उन की मोहब्बत की चर्चाएं होने लगीं.

यह खबर इब्राहीम और उस के बेटे इमरान तक भी पहुंच गई. बहन की इस करतूत से इमरान को आग सी लग गई. वह आयशा पर नजर रखने लगा. उस ने आयशा का घर से निकलना बंद करा दिया. इस के बाद उस ने नाजिम को भी धमकाया, ‘‘खबरदार, अब कभी आयशा से मिलने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

लेकिन नाजिम और आयशा की मोहब्बत इतनी गहरी हो चुकी थी कि इमरान की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई. किसी न किसी बहाने आयशा और नाजिम मिल ही लेते थे. ऐसे ही पलों में एक दिन आयशा ने कहा, ‘‘नाजिम, मेरे भाईजान इमरान को हमारी मोहब्बत पर सख्त ऐतराज है. वह नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. उन्होंने मुझ पर इतनी सख्ती कर दी है कि तुम से मिलना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. गांव में भी हमारी मोहब्बत के चर्चे आम हो गए हैं. वैसे मेरी अम्मी और अब्बू को हमारी मोहब्बत पर ज्यादा ऐतराज नहीं है. अगर तुम अपने अब्बू को निकाह के लिए मेरे अब्बू के पास भेजो तो बात बन सकती है.

नाजिम को आयशा की बात उचित लगी. उस ने आयशा को आश्वासन दिया कि घर पहुंचते ही वह अम्मीअब्बू से निकाह की बात करेगा. नाजिम ने कहा ही नहीं, बल्कि घर आते ही बात भी की. तब अगले ही दिन उस के अब्बू आयशा के अब्बू इब्राहीम से मिलने उन के कारखाने पर जा पहुंचे. उन्होंने उन से आयशा और नाजिम के निकाह की बात की तो पहले तो इब्राहीम ने मना कर दिया. लेकिन बाद में कहा, ‘‘देखो आरिफ भाई, मुझे तो इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इमरान इस निकाह के लिए तैयार नहीं होगा. फिर भी मैं घर में बात चलाऊंगा.’’

इमरान को जब पता चला कि आयशा के निकाह के लिए नाजिम के अब्बू उस के अब्बू के पास आए थे तो वह स्वयं को रोक नहीं सका और जा कर नाजिम से झगड़ा करने लगा. तब गांव के कुछ लोगों ने उसे समझाबुझा कर शांत किया. कहीं कुछ उलटासीधा न हो जाए, यह सोच कर गांव के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठा हो कर इमरान को समझाया कि नाजिम खाताकमाता है, आयशा भी बालिग हो चुकी है, इसलिए दोनों का निकाह करने में उसे परेशानी किस बात की है? कोई ऊंचनीच हो, इस से बेहतर है कि दोनों का निकाह कर दिया जाए. बुजुर्गों के सामने तो इमरान कोई विरोध नहीं कर सका, लेकिन दिल से वह इस निकाह के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयशा और नाजिम की मोहब्बत की उम्र 2 साल से अधिक हो चुकी थी. लाख कोशिश कर के भी इमरान आयशा और नाजिम को अलग नहीं कर सका. बुजुर्गों के समझाने के बाद नाजिम और आयशा को लगने लगा था कि अब उन का निकाह हो जाएगा. इस की वजह यह थी कि दोनों के अम्मीअब्बू राजी थे. बात सिर्फ इमरान की थी. उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन वह भी मान जाएगा. 15-20 दिनों तक इमरान ने भी विरोध नहीं किया तो आयशा और नाजिम को लगा कि अब सारी रुकावटें दूर हो गई हैं. जबकि आयशा ने जो किया था, उस से इमरान अंदर ही अंदर सुलग रहा था. वह किसी भी कीमत पर आयशा का निकाह नाजिम से नहीं होने देना चाहता था. इस के लिए जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने गुपचुप तरीके से साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने मौसेरे भाई उस्मान, जो बेगम बाजार, बमरौली का रहने वाला था तथा अपने दोस्त सुफियान को विश्वास में ले कर शामिल कर लिया.

पूरी योजना तैयार कर के इमरान ने 14 सितंबर, शनिवार को बहन से कहा, ‘‘आयशा, मुझे लगता है कि नाजिम तुझे खुश रखेगा. इसलिए तेरा निकाह उस से कर देना ही ठीक है. ऐसा करो, आज रात 9 बजे नाजिम को फोन कर के तुम घर पर बुला लो. निकाह कब और कैसे किया जाए, बात कर लेते हैं.’’

इमरान की बात सुन कर आयशा को यकीन नहीं हुआ. इसलिए उस ने कहा, ‘‘भाईजान, आप यह क्या कह रहे हैं?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ इमरान ने विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘जब घर के सभी लोग तैयार हैं तो मैं ही तेरी खुशी में टांग क्यों अड़ाऊं?’’

इमरान में बदलाव देख कर आयशा खुश हो उठी. उस ने कहा, ‘‘भाईजान, मैं अभी नाजिम को फोन किए देती हूं. वह काम से लौटते हुए सीधे अपने घर आ जाएगा.’’

इस के बाद आयशा ने अपने मोबाइल फोन से नाजिम को फोन कर के कहा, ‘‘नाजिम, आज काम से लौटते समय तुम सीधे मेरे घर आ जाना. इमरान भाई मान गए हैं. वह तुम से बात कर के निकाह की तारीख पक्की करना चाहते हैं.’’

आयशा ने अपनी यह बात पूरे विश्वास के साथ कही थी, इसलिए नाजिम ने हामी ही नहीं भरी, बल्कि ठीक समय पर वह उस के घर आ गया. इमरान उस से बड़ी आत्मीयता से मिला. नाजिम को उस ने ऊपर के कमरे में ले जा कर बैठा दिया. उस कमरे में पहले से ही उस्मान और सुफियान बैठे थे. नाजिम उन्हें जानता था, इसलिए उन से बातें करने लगा. नाजिम को नाश्ता भी कराया गया. इस के बाद निकाह कब और कैसे किया जाए, इस पर बातचीत होने लगी. रात 11 बजे तक निकाह के बारे में बहुत सी बातें तय हो गईं. इस के बाद इमरान ने कहा, ‘‘नाजिम, अम्मी तुम्हारे लिए भी खाना बना रही हैं, खाना खा कर जाना.’’

नाजिम को लगा कि अब सब ठीक हो गया है, इसलिए उस ने हामी भर ली. अब तक गांव में सन्नाटा पसर गया था. दिन भर का थकामांदा नाजिम लापरवाह चारपाई पर बैठा था, इसी का फादया उठा कर उस्मान और सुफियान ने अचानक नाजिम के हाथपैर पकड़ लिए तो इमरान ने झपट कर नाजिम का गला पकड़ लिया और दबाने लगा. छटपटा कर नाजिम ने प्राण त्याग दिए. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस पर चाकू से भी वार किए गए. इस के बाद रात में ही नाजिम की लाश गांव के बाहर बाजरे के खेत में बीचोबीच फेंक दी गई.

काम हो जाने के बाद सुफियान और उस्मान अपनेअपने घर चले गए. आयशा, उस की अम्मी और अब्बू तथा घर के अन्य लोग नाजिम की हत्या होते देखते रहे, लेकिन डर के मारे कोई विरोध नहीं कर सका. आयशा ने कुछ कहना चाहा तो इमरान चीख कर बोला, ‘‘खबरदार, अगर किसी ने कुछ भी बोलने या कहने की हिम्मत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. उस का भी वही हाल कर दूंगा, जो मैं ने नाजिम का किया है.’’

घर वालों को धमका कर इमरान उस कमरे में गया, जिस में उस ने नाजिम की हत्या की थी. उस की साफसफाई कर के सुबह से पहले ही घरवालों को बिना कुछ बताए वह भी फरार हो गया. 3 दिनों तक नाजिम के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला. 18 सितंबर को जब लाश से दुर्गंध आने लगी तो कुछ लोग खेत के भीतर यह देखने के लिए घुसे कि दुर्गंध किस चीज की आ रही है. तब नाजिम की हत्या का पता चला. मोहम्मद आरिफ की सूचना पर पुलिस इमरान और साथियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी तो दबाव बनाने के लिए इमरान के अम्मीअब्बू तथा बहन आयशा को थाने ले आई थी. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने इब्राहीम को थाने में रोक कर परवीन बेगम और आयशा को घर भेज दिया.

इमरान को साथियों से पता चल गया था कि आयशा ने नाजिम की हत्या की एकएक बात पुलिस को बता दी है. यही नहीं, वह अदालत में भी यह कहने को तैयार है कि नाजिम की हत्या उस के भाई इमरान ने अपने मौसेरे भाई उस्मान तथा दोस्त सुफियान के साथ मिल कर की है. आयशा चश्मदीद गवाह थी. अगर वह अदालत में गवाही देती तो इमरान और उस के साथियों को सजा निश्चित थी. इसलिए इमरान को लगा कि किसी भी तरह आयशा को रोका जाए. वह उसी रात छिपतेछिपाते घर आया और आयशा को समझाने लगा कि वह उस के खिलाफ गवाही न दे. लेकिन आयशा अपनी जिद पर अड़ी थी. क्योंकि उस के प्रेमी को मारा गया था. उस ने कहा, ‘‘दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, मैं अपनी बात से नहीं डिगूंगी. अदालत में मैं वही कहूंगी, जो मैं ने आंखों से देखा है.’’

इस के बाद इमरान को इतना गुस्सा आया कि उस ने तय कर लिया कि इसे मार देना ही ठीक है. उस ने मिट्टी के तेल का डिब्बा उठाया और उस पर तेल डालने लगा. आयशा जान बचाने के लिए चीखते हुए भागी. तब उसे लगा कि अगर उस ने आग लगाई तो यह शोर मचा देगी. शोरशराबा न हो, यह सोच कर उस ने आयशा को पकड़ा और अपने दोस्त जहीद की मदद से उस का गला दबा कर मार दिया. इस के बाद हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस ने आयशा की लाश को रस्सी का फंदा बना कर दरवाजे के ऊपर बने रोशानदान से लटका दिया और अपने साथी जहीद के साथ घर से भाग गया.

कथा लिखे जाने तक नाजिम की हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुफियान तथा आयशा की हत्या में शामिल जहीद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

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