लवली से शादी करते समय सुरेंद्र ने शायद यह नहीं सोचा था कि जो औरत एक बार पति और बच्चों को छोड़ सकती है, वह दोबारा भी यही कर सकती है. पढ़ाई पूरी कर के रोजीरोटी की तलाश में डा. बिस्वास अपने एक दोस्त की मदद से पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश के जिला बरेली आ गया था. यहां वह किसी गांव में क्लिनिक खोल कर प्रैक्टिस करना चाहता था. अपने साथ वह पत्नी और बच्चों को भी ले आया था. डा. बिस्वास का वह दोस्त बरेली के कस्बा मीरगंज मे अपनी क्लिनिक चला रहा था. उसी की मदद से डा. बिस्वास ने मीरगंज से यही कोई 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव हुरहुरी में अपना क्लीनिक खोल लिया था.
गांव हुरहुरी में न कोई क्लिनिक थी न कोई डाक्टर. इसलिए बीमार होने पर गांव वालों को इलाज के लिए 5 किलोमीटर दूर भी दोरगंज जाना पड़ता था. इसलिए डा. बिस्वास ने हुरहुरी में अपना क्लिनिक खोला तो गांव वालों ने उस का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि क्लीनिक खोलने में उस की हर तरह से मदद भी की. डा. बिस्वास को बवासीर, भगंदर जैसी बीमारियों को ठीक करने में महारत हासिल थी. इसी के साथ वह छोटीमोटी बीमारियों का भी इलाज करता था. सम्मानित पेशे से जुड़ा होने की वजह से गांव वाले उस का बहुत सम्मान करते थे.
इस की एक वजह यह भी थी कि उस ने गांव वालों को एक बड़ी चिंता से मुक्त कर दिया था. गांव वाले किसी भी समय उस के यहां आ कर दवा ले सकते थे. गांव में जाटों की बाहुल्यता थी. धीरेधीरे डा. बिस्वास गांव वालों के बीच इस तरह घुलमिल गया, जैसे वह इसी गांव का रहने वाला हो. गांव वालों ने भी उसे इस तरह अपना लिया था, जैसे वह उन्हीं के गांव में पैदा हो कर पलाबढ़ा हो. डा. बिस्वास की पत्नी लवली घर के कामकाज निपटा कर उस की मदद के लिए क्लिनिक में आ जाती थी. वह एक नर्स की तरह क्लिनिक में काम करती थी. क्लिनिक में आने वाला हर कोई उसे भाभी कहता था. इस तरह जल्दी ही वह पूरे गांव की भाभी बन गई. वह काफी विनम्र थी, इसलिए गांव के लोग उस से काफी प्रभावित थे.
गांव के लोग अकसर खाली समय में डा. बिस्वास की क्लिनिक में आ कर बैठ जाते और गपशप करते हुए अपना समय पास करते. उन्हीं बैठने वालों में एक सुरेंद्र सिंह भी था. सुरेंद्र हुरहुरी के रहने वाले चौधरी रामचरण सिंह का बेटा था. सुरेंद्र सिंह जाट और संपन्न परिवार का था. डा. बिस्वास को इस गांव में क्लिनिक खोले लगभग 2 साल हो चुके थे. गांव के लगभग सभी लोगों से उस के मधुर संबंध थे. लेकिन सुरेंद्र सिंह से उस की कुछ ज्यादा ही पटती थी. इसी का नतीजा था कि सुरेंद्र डा. बिस्वास के घर भी आताजाता था. डा. बिस्वास को कभी शहर से दवा मंगानी होती थी तो वह उसे शहर भी भेज देता था. इस के अलावा भी उसे किसी तरह की मदद की जरूरत होती थी तो वह सुरेंद्र को ही याद करता था.
अन्य लोगों की तरह सुरेंद्र भी लवली को भाभी कहता था. कभीकभी सुरेंद्र डाक्टर की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आ जाता तो लवली पति के इस दोस्त की खूब खातिर करती. सुरेंद्र जवान भी था और अविवाहित भी. शायद यही वजह थी कि डा. बिस्वास के यहां आनेजाने में दोस्ती की सीमाओं को लांघने के विचार उस के मन में आने लगे. खूबसूरत लवली की मुसकान और सेवाभाव का वह गलत अर्थ लगा कर उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. जबकि डा. बिस्वास उस पर उसी तरह विश्वास करते रहे. उस के मन में क्या है, यह वह समझ नहीं पाए. डा. बिस्वास को अपने दोस्त सुरेंद्र पर इतना विश्वास था कि अगर पत्नी को कुछ खरीदने के लिए बरेली जाना होता तो वह उसे उस के साथ भेज देता था. सुरेंद्र के लिए यह बढि़या मौका होता था. उसे अकेले में लवली से बात करने का मौका तो मिलता ही था, उस के साथ घूमनेफिरने का भी मौका मिलता था.
सुरेंद्र और लवली जब भी बरेली जाते बस से जाते थे. ऐसे में वह लवली से सट कर बैठता. बगल में बैठ कर वह लवली से इस तरह हरकतें करता, जैसे वह उस की पत्नी हो. लवली उन की इन हरकतों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी. फिर भी जल्दी ही उसे उस के मन की बात का पता चल गया. सुरेंद्र इतना खराब भी नहीं था कि वह उसे झिड़क देती. उस की शक्लसूरत तो ठीकठाक थी ही, खातेपीते घर का भी था. शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. कुल मिला कर वह इस तरह का था कि कोई चालू किस्म की औरत उसे पसंद कर लेती. इन्हीं सब वजहों से लवली को भी सुरेंद्र अच्छा लगता था. इस की एक वजह यह थी कि वह एक प्यार करने वाला लड़का था. उस की हरकतों ने लवली के मन के आकर्षण को और बढ़ा दिया था. इसलिए लवली कभी भी उस की किसी हरकत का विरोध नहीं करती थी. फिर तो सुरेंद्र की हिम्मत बढ़ती गई. इस के बावजूद वह अपने मन की बात लवली से कह नहीं पा रहा था.
एक दिन सुरेंद्र लवली के साथ शौपिंग करने बरेली गई तो जल्दी ही उस का काम खत्म हो गया. फुरसत मिलने पर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘भाभीजी, अभी तो घर जाने में काफी समय है. अगर आप कहें तो चल कर फिल्म ही देख लें.’’ लवली भला क्यों मना करती. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हारा दिल फिल्म देखने को कर रहा है तो मना कर के मैं उसे क्यों तोड़ूं. चलो तुम्हारे साथ मैं भी फिल्म देख लूंगी. वैसे भी यहां आने के बाद हौल में फिल्म देखने का मौका बिलकुल नहीं मिला है.’’
लवली के हां करते ही सुरेंद्र ने टिकटें खरीदीं और उस के साथ फिल्म देखने के लिए अंदर जा बैठा. फिल्म शुरू हुई. फिल्म में प्रेम का दृश्य आया तो अंधेरे में ही सुरेंद्र ने लवली का हाथ पकड़ कर चूम लिया. लवली ने इस का विरोध करने के बजाय उस का हाथ अपने हाथ में ले कर दबा दिया. फिल्म खत्म हुई. दोनों बाहर आए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. अब दोनों ही इस तरह चल रहे थे, जैसे प्रेमीप्रेमिका हों. सुरेंद्र ने लवली को फिल्म तो दिखाई ही, बढि़या रेस्तरां में खाना भी खिलाया. वह उस के लिए कोई बढि़या सा उपहार भी खरीदना चाहता था, लेकिन लवली ने कहा, ‘‘सब कुछ आज ही कर दोगे तो फिर आगे क्या करोगे.’’
दिल की बात जुबान पर आ जाने से लवली भी खुश थी और सुरेंद्र भी. दोनों के ही दिलों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था. लवली डाक्टर के 2 बच्चों की मां थी, लेकिन वह डाक्टर से संतुष्ट नहीं थी. शायद इस की वजह लवली की महत्त्वाकांक्षा थी. वैसे भी वह डा. बिस्वास के साथ ज्यादा खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि डाक्टर की कमाई उतनी नहीं थी, जितनी उस की अपेक्षाएं थीं, शायद इसीलिए उस ने सुरेंद्र का हाथ थाम लिया था. लवली का मन भटका तो डा. बिस्वास में उसे कमियां ही कमियां नजर आने लगी थीं. दिल पागल होता है तो अच्छाइयां भी बुरी नजर आती हैं. ऐसा ही लवली के साथ भी हुआ था.
सुरेंद्र ने लवली के दिल में अपने लिए जगह तो बना ली थी. लेकिन वह जो चाहता था, वह हासिल नहीं हुआ था. इस के लिए वह मौका तलाश रहा था. लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था. उसी बीच डा. बिस्वास को सूचना मिली कि गांव में उन की मां की तबीयत खराब है. मां को देखने जाना जरूरी था, इसलिए डा. बिस्वास गांव चला गया. पत्नी और बच्चों को वह इसलिए नहीं ले गया कि उन के जाने से क्लिनिक में ताला लग जाता. इसीलिए लवली को उस ने हुरहुरी में ही छोड़ दिया.
सुरेंद्र के लिए यह सुनहरा मौका था. घर में लवली अकेली रह गई थी. अब वह उस से कुछ भी कह सकता था और उस की इच्छा होने पर उस के साथ कुछ भी कर सकता था. गांव में सुरेंद्र को ही डा. बिस्वास अपना सब से करीबी मानता था, इसलिए पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी उसे ही सौंप गया था. इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए सुरेंद्र ने लवली के पास आ कर कहा था, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो, बेझिझक कहना.’’
लवली ने एक आंख दबा कर कहा, ‘‘डा. साहब तो गांव जा रहे हैं. अब हमें अपनी सभी जरूरतें तुम्हें ही बतानी पड़ेंगी.’’
सुबह सुरेंद्र ने क्लिनिक खुलवाई तो रात को बंद भी उसी ने करवाई. क्लिनिक बंद करा कर वह जाने लगा तो लवली ने कहा, ‘‘रुको, खाना खा कर जाना. वैसे भी अकेली बोर हो रही हूं.’’
बच्चे खा कर जल्दी ही सो गए थे. उस के बाद लवली और सुरेंद्र ने खाना खाया. इस बीच दोनों दुनियाजहान की बातें करते रहे. कामों से फुरसत हो कर लवली सुरेंद्र के पास आई तो उस ने उसे बांहों में भल लिया. तब लवली ने कहा, ‘‘सुरेंद्र, तुम तो जानते ही हो कि मैं शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों की मां भी हूं. तुम्हारा यह प्यार मेरे शरीर तक तो ही सीमित नहीं रहेगा?’’
‘‘मैं तुम्हारे शरीर से नहीं, तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम्हें वही इज्जत दूंगा, जो एक पत्नी को मिलती है. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है.’’ सुरेंद्र ने कहा.
‘‘क्या तुम मुझ से विवाह करोगे?’’
‘‘क्यों नहीं. मैं ने तुम से प्यार किया है तो विवाह भी करूंगा.’’ कह कर सुरेंद्र ने अपने प्यार की मुहर लवली के कपोलों पर लगा दी. सुरेंद्र की मजबूत बांहों में लवली पिघलने लगी थी. वह भी उस से लिपट गई. तब उस ने न पति के बारे में सोचा, न बच्चों के बारे में.
डा. विश्वास के वापस आतेआते उस की गृहस्थी में सेंध लग चुकी थी. दोस्त और पत्नी ने डा. बिस्वास के विश्वास को खत्म कर दिया था. डाक्टर तो अपने काम में लगा रहता था, ऐसे में लवली को प्रेमी से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. दोनों दिन में न मिल पाते तो रात में डाक्टर के सो जाने के बाद मिल लेते थे. सुरेंद्र और लवली का यह संबंध ज्यादा दिनों तक न तो गांव वालों से छिपा रह सका न डा. बिस्वास से. पत्नी के बेवफा हो जाने से डाक्टर हैरान तो हुआ ही, परेशान भी हो उठा. उसे पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जब गांव के कई लोगों ने उसे टोका तो एक दिन उस ने लवली से पूछा, ‘‘मैं जो सुन रहा हूं क्या वह सच है?’’
‘‘तुम क्या सुन रहे हो. मुझे कैसे पता चलेगा. इसलिए मैं क्या बताऊं कि तुम ने जो सुना है, वह सच है या झूठ?’’
‘‘तुम जानती हो कि तुम्हें और सुरेंद्र को ले कर गांव में खूब चर्चा हो रही है. मेरे खयाल से यह ठीक नहीं है. अगर तुम अपनी सीमा में रहो तो तुम्हारे लिए भी ठीक रहेगा और मेरे लिए भी.’’ डा. बिस्वास ने चेताया.
‘‘यह झूठ है. गांव वालों की बातों में आ कर मुझ पर शक करने लगे. मैं तुम्हारी सगी हूं या गांव वाले?’’ लवली बोली.
लवली ने भले ही अपने ऊपर लगे आरोप को नकार दिया था, लेकिन डा. बिस्वास को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ. फलस्वरूप वह तनाव में रहने लगा. सब से ज्यादा चिंता उसे अपने बच्चों की थी. अब अकसर पतिपत्नी में लड़ाईझगड़ा और मारपीट होने लगी. इस के बावजूद लवली ने सुरेंद्र से मिलना बंद नहीं किया. इस की एक वजह यह भी थी कि सुरेंद्र उसे शादी का भरोसा दे रहा था. शायद इसीलिए उसे न पति की परवाह रह गई थी, न ही बच्चों की. अब उसे सिर्फ अपने सुख की परवाह रह गई थी.
हालात बेकाबू होते देख डा. बिस्वास गांव लौटने की सोचने लगा. जहां उस का घर था और अपने लोग भी थे. लेकिन लवली वापस जाने के लिए तैयर नहीं थी. इसलिए उस ने सुरेंद्र से साफ कह दिया, ‘‘जो कुछ भी करना है, जल्दी कर लो वरना डाक्टर मुझे जबरदस्ती कोलकाता ले कर चला जाएगा. तब मैं उसे मना भी नहीं कर पाऊंगी. क्योंकि बिना विवाह के मैं तुम्हारे साथ रह भी नहीं सकती.’’
लवली के दबाव डालने पर सुरेंद्र लवली को ले कर बरेली में रहने ही नहीं लगा, बल्कि कोर्टमैरिज भी कर ली. पत्नी और दोस्त के विश्वासघात से डा. बिस्वास टूट गया. वह गांव वालों के सामने फूटफूट कर रो पड़ा. गांव वालों को उस से सहानुभूति तो थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया. सुरेंद्र के पिता रामचरण सिंह और भाई महेंद्र को भी उस की यह हरकत पसंद नहीं आई, लेकिन उस की दबंगई के आगे उन की भी एक न चली. डा. बिस्वास की दुनिया लुट चुकी थी. जिसे सुख देने के लिए वह घरपरिवार छोड़ कर इतनी दूर आया था, जब वही छोड़ कर चली गई तो उस के लिए यहां रहना मुश्किल हो गया. वह अपने बच्चों को ले कर अपने गांव लौट गया. यह करीब 17 साल पहले की बात है.
डा. बिस्वास गांव छोड़ कर चला गया तो सुरेंद्र लवली को ले कर गांव आ गया. लेकिन घर वालों ने उसे साथ नहीं रखा. उस के हिस्से की जमीन दे कर उसे अलग कर दिया. सुरेंद्र ने लवली के साथ अपनी गृहस्थी अलग बसा ली और आराम से रहने लगा. लवली अब सुरेंद्र की प्रेमिका नहीं, पत्नी थी. इसलिए सुरेंद्र अब उसे अपने हिसाब से रखना चाहता था, जबकि लवली सीमाओं में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. लवली सुरेंद्र के 2 बच्चों, वीरेंद्र और तृप्ति की मां बन गई थी. इस के बावजूद वह जिस तरह रहती आई थी, उसी तरह रहना चाहती थी. सुरेंद्र लवली को अपने हिसाब से रखने लगा तो उसे लगा कि उस की आजादी खत्म हो रही है. वह बंदिशों में रहने वाली नहीं थी. डा. बिस्वास ने कभी उसे बंदिशों में रखा भी नहीं था, इसलिए सुरेंद्र की ये बंदिशें उसे खल रही थीं.
अब लवली को अपना यह यार अखरने लगा था. उसे ज्यादा परेशानी हुई तो एक दिन उस ने सुरेंद्र से कह भी दिया, ‘‘मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं उन औरतों में नहीं हूं, जो पति की अंगुली पकड़ कर चलती हैं. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं. मैं अपने हिसाब से जीना चाहती हूं.’’
लवली की ये बातें सुरेंद्र को बिलकुल अच्छी नहीं लगीं. अब उसे लगा कि दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी बना कर उस ने बड़ी गलती की है. लेकिन उसे अपनी मर्दानगी पर विश्वास था, इसलिए उसे लगता था कि वह जिस तरह चाहेगा, पत्नी को रखेगा. लेकिन उस का यह विश्वास तब टूट गया, जब लवली ने उस की मरजी के खिलाफ मीरगंज के एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली. लवली ने घर के बाहर कदम रखा तो उस की लोगों से जानपहचान बढ़ने लगी. उन में से कुछ लोगों से उस की दोस्ती भी हो गई, तो वे उस से मिलने हुरहुरी तक आने लगे. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने इस का विरोध किया. लेकिन लवली अब खुद अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए उस ने किसी की एक नहीं सुनी.
सुरेंद्र ने लवली को समझाया भी और धमकाया भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उस की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं थी. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने ज्यादा रोकटोक की तो लवली ने मीरगंज के मोहल्ला मुगरा में एक कमरा किराए पर लिया और उसी में बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चे भी अब तक काफी बड़े हो गए थे. बेटा वीरेंद्र 16 साल का था तो बेटी तृप्ति 14 साल की. लवली पति से अलग अकेली रहने लगी तो उस के दोस्तों की संख्या लगातार बढ़ने लगी. पत्नी की इन हरकतों से सुरेंद्र परेशान रहने लगा था. लेकिन अपने दिल का दर्द किसी से कह नहीं सकता था. घर वालों ने भी कह दिया था कि उस ने जैसा किया है, वही भोगे. यह भी सच है कि जो औरत एक बार पति और बच्चों को छोड़ सकती है, परिस्थिति बनने पर उसे दूसरे पति और बच्चों को छोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी.
सुरेंद्र तनाव में रहने लगा था, क्योंकि उस की परेशानी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. इस की एक वजह यह भी थी कि लवली के पास जिन लोगों का आनाजाना था, वे रसूखदार लोग थे. अब सुरेंद्र लवली से डरने लगा था. इसी चिंता में वह शराब पीने लगा. सुरेंद्र जब भी लवली से मिलने मीरगंज जाता. दोनों का झगड़ा जरूर होता. तब बच्चे मां का ही पक्ष लेते. पत्नी और बच्चों की इन हरकतों से वह महसूस करता कि सब कुछ होते हुए भी उस के पास कुछ नहीं है. उसे चिंता बच्चों की थी. उसे लगता था कि अगर यही हाल रहा तो उस के बच्चे बरबाद हो जाएंगे. इसलिए बच्चों का हवाला दे कर भी उस ने लवली को समझाने की कोशिश की थी, इस पर भी वह नहीं मानी थी.
लवली मीरगंज में रहती थी, जबकि सुरेंद्र गांव में रहता था. सुरेंद्र के भाइयों ने उसे सलाह दी कि अगर उसे अपनी पत्नी और बच्चों पर कंट्रोल रखना है तो वह उन के साथ रहे. घर वालों की यह सलाह सुरेंद्र को उचित लगी. उस ने तय किया कि वह जमीन बेच कर मीरगंज में मकान बनवा ले और उसी में पत्नी और बच्चों के साथ रहे. उसी बीच लवली की दोस्ती मुगरा मोहल्ले से जुड़े मोहल्ला शिवपुरी के रहने वाले 20 वर्षीय शिब्बू उर्फ शिवम से हो गई. शिवम के पिता की मौत हो चुकी थी, जो तहसील मिलक के सरकारी अस्पताल में नौकरी करते थे. पिता की मौत के बाद मृतक आश्रित कोटे में उसे वार्डब्याय की नौकरी मिल गई थी. लवली नर्स थी, जबकि शिवम वार्डब्वाय इसी आधार पर दोनों की जानपहचान हो गई थी. उन का मिलनाजुलना होने लगा तो एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे.
घर आनेजाने में ही दोनों में नाजायज संबंध बन गए. जबकि दोनों की उम्र में जमीन आसमान का अंतर था. लवली 40 साल की थी तो शिवम 20 साल का. सुरेंद्र ने अपनी एक जमीन 13 लाख रुपए में बेच कर मीरगंज की टीचर कालोनी में 7 लाख रुपए में एक प्लौट खरीद कर बाकी बचे पैसों से मकान बनवाना शुरू कर दिया. लवली समझ गई कि मकान बन जाने के बाद उसे सुरेंद्र के साथ ही रहना पड़ेगा. तब उसे शिवम से मिलने में परेशानी होगी. जबकि लवली अब शिवम के बिना नहीं रह सकती थी. सुरेंद्र को लवली के नए दोस्त शिवम के बारे में पता नहीं था. लेकिन मकान बनवाने के दौरान उस ने शिवम को लवली के कमरे पर आतेजाते देखा तो उस के बारे में पूछा. लवली ने ऐसे ही कह दिया, ‘‘लड़का ही तो है. आ जाता है तो इस में परेशानी क्या है?’’
सुरेंद्र को लगा कि जब सभी एक साथ रहने लगेंगे तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह सुरेंद्र की भूल थी, क्योंकि लवली कुछ और ही सोच रही थी. एक बार फिर बहक चुकी लवली अब किसी भी कीमत पर पति की बंदिशों में नहीं रहना चाहती थी. लेकिन उसे यह भी पता था कि सुरेंद्र के पैसे और मकान पर उसे तभी हक मिलेगा, जब वह उस के साथ रहे. फिर तो जल्दी ही वह यह सोचने लगी कि अगर सुरेंद्र नाम का यह कांटा निकल जाए तो वह आजाद भी हो जाएगी और इस की सारी प्रौपर्टी भी उस की हो जाएगी. इस के बाद उस ने अपने नए प्रेमी शिवम से बात कर के सुरेंद्र को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसे पैसे का लालच तो दिया ही था, साथ ही यह भी कहा था कि सुरेंद्र के न रहने पर वे दोनों चैन से एक साथ रह सकेंगे.
सुरेंद्र को ठिकाने लगाना शिवम के अकेले के वश का नहीं था. मदद के लिए उस ने अपने दोस्तों ललित और सनी से बात की. दोस्ती की खातिर वे दोनों भी उस की मदद के लिए तैयार हो गए. ललित मीरगंज के ही रहने वाले धाकनलाल का बेटा था तो सनी मिलक के रहने वाले छतरपाल का. सुरेंद्र अपने बन रहे नए मकान पर ही रहता था. ऐसे में उसे ठिकाने लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था. वह रोजाना शराब पीता ही था. इसलिए उसे मारना और आसान था. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लवली उस की हत्या भी करवा सकती है, इसलिए वह निश्चिंत था. 25 अक्तूबर की रात उस का खाना ले कर लवली आई. सुरेंद्र ने शराब पी कर खाना खाया. लवली ने भी उस के साथ ही खाना खाया था. काफी रात तक वह उस के साथ बातें करती रही. सुरेंद्र को नींद आने लगी तो वह कमरे पर आ गई.
सुबह सुरेंद्र के मकान पर काम करने वाले मिस्त्री और मजदूर आए तो पता चला कि सुरेंद्र की मौत हो गई. किसी ने पुलिस को खबर कर दी तो थोड़ी ही देर में चौकीइंचार्ज राजू राव आ पहुंचे. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. उस के गले पर दबाए जाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब था कि उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी. चौकीइंचार्ज राजू राव ने घटना की सूचना थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल भी क्षेत्राधिकारी धर्म सिंह के साथ आ पहुंचे. सुरेंद्र की हत्या की सूचना पत्नी और भाइयों को भी मिल चुकी थी. भाइयों ने आते ही कहा था कि उस के भाई की हत्या उस की पत्नी लवली ने ही कराई है.
लवली भी वहां मौजूद थी. उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि उसे पति की हत्या का कोई गम नहीं है. उस की आंखों में आंसू भी नहीं थे. यह सब देख कर पुलिस को मृतक सुरेंद्र के भाइयों की बात सच लगी. पुलिस ने सुरेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और लवली को साथ ले कर थाने आ गई. पूछताछ में लवली यही कहती रही कि उसे कुछ नहीं पता. रात में वह उसे खाना खिला कर अच्छाभला छोड़ कर आई थी. सुरेंद्र के भाई हरपाल सिंह द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर पुलिस ने अपराध संख्या 655/2013 पर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा लवली और उस के अज्ञात साथियों के खिलाफ दर्ज कर लिया था.
हत्या के इस मामले की जांच चौकी इंचार्ज राजू राव को सौंपी गई. उन्हें अपने मुखबिरों से पता चला कि इधर कुछ दिनों से शिवपुरी का रहने वाला शिवम का लवली के यहां कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. इस के बाद लवली के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक की गई तो उस में आखिरी फोन शिवम का था. यह फोन उसी रात किया गया था, जिस रात सुरेंद्र की हत्या हुई थी. लवली से शिवम के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के बारे में भी कुछ नहीं बताया. तब पुलिस ने शिवम को उस के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर 26 अक्तूबर को बरेली के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. शिवम को गिरफ्तार कर के थाने लाया गया तो वहां लवली को देख कर वह समझ गया कि अब सारा खेल खत्म हो चुका है. इसलिए बिना किसी हीलाहवाली के उस ने लवली के साथ के अपने अवैध संबंधों को स्वीकार करते हुए सुरेंद्र की हत्या की पूरी कहानी बता दी.
शिवम ने कहा, ‘‘लवली के कहने पर ही मैं ने अपने दोस्तों ललित और सनी की मदद से गला दबा कर सुरेंद्र की हत्या की थी. पुलिस ने शिवम की निशानदेही पर ललित और सनी के घरों पर छापा मार कर गिरफ्तार करना चाहा. लेकिन वे फरार हो चुके थे. इस के बाद पुलिस ने लवली और शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. थाना मीरगंज पुलिस ललित और सनी की तलाश कर रही है. कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित