संतोष को लगा कि जिन के पास पैसा अधिक है, उन से आसानी से पैसा लिया जा सकता है. उस ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. बिहार में संतोष झा का अपहरण और वसूली का बहुत बड़ा कारोबार था, पर नैशनल लेवल पर उसे कोई नहीं जानता था. 27 दिसंबर, 2015 को जब संतोष ने दरभंगा हत्याकांड किया. तब उसे सब जानने लगे.

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी हाईवे बनाने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने उस कंपनी से 75 करोड़ रुपए का गुंडा टैक्स मांगा था. मालिकों ने उस से रकम कम करने की विनती की तो भरी दोपहर को संतोष झा और मुकेश पाठक एके 47 ले कर साइट पर पहुंच गए और कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया. इस मामले में इन्हें जेल भी जाना पड़ा.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में मर चुकी पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा. जेल में उस की मुलाकात पूजा नाम की एक सुंदर युवती से हुई. वह किडनैपिंग क्वीन के नाम से जानी जाती थी. जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार के इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

जेल में मुकेश और संतोष साथ ही थे, एक थाली में एक साथ खाने का संबंध था, फिर इन दोनों के बीच खटास कैसे पैदा हुई? दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई. नेपाल के बौर्डर से जुड़े बिहार के चंपारण जिला को बहुत बड़ा होने की वजह से इसे 2 हिस्सों में बांट दिया गया है. पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण. जिले का मुख्यालय मोतिहारी है. 6 मई, 2023 शनिवार की सुबह पूर्वी चंपारण ऐसी ही एक घटना से हिल उठा था. क्योंकि शिवनगर के पास लक्ष्मीनिया गांव के रहने वाला ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की बड़ी ही क्रूरता से हत्या कर दी गई थी.

ओमप्रकाश की मां को घुटने में तकलीफ थी, इसलिए मुजफ्फरपुर में उन के घुटने का औपरेशन कराया गया था. उस दिन ओमप्रकाश सिंह अपनी मां का हालचाल लेने के लिए बोलेरो जीप से मुजफ्फरपुर जा रहा था. उस के साथ उस के 2 रिश्तेदार भी थे और उस का वर्षों पुराना भरोसेमंद ड्राइवर मुकेश जीप चला रहा था. ओमप्रकाश सिंह जीप की आगे वाली सीट पर ड्राइवर के बगल में बैठा था. फेनहारा थाने के अंतर्गत आने वाले गांव इजोबारा को पार कर के जीप जैसे ही आगे बढ़ी, एक टाटा सूमो इतनी तेजी से आ कर सामने खड़ी हुई कि मुकेश को अपनी बोलेरो रोकनी पड़ी. जरा भी समय गंवाए बगैर टाटा सूमो से 3 लोग फुरती से नीचे उतरे और आटोमैटिक रायफलों से धड़ाधड़ फायरिंग शुरू कर दी. गिनती के 3 मिनट में अपना खेल खत्म कर के तीनों सूमो में सवार हो कर भाग निकले.

इस अंधाधुंध फायरिंग में ड्राइवर मुकेश और पीछे बैठे दोनों रिश्तेदारों को खरोंच तक नहीं आई, इस चालाकी से शिकारियों ने अपने शिकार ओमप्रकाश सिंह की देह को छलनी कर दिया था. जीप पर 28 गोलियों के निशान थे. गोलियों की आवाज सुन कर गांव वाले भाग कर आ गए थे. मुकेश ने फोन कर के कांपती आवाज में यह जानकारी ओमप्रकाश सिंह के परिवार को दी. सूचना पा कर घर वाले दौड़े आए और लाश कब्जे में ले ली. किसी की सूचना पर पुलिस भी आ गई थी. पुलिस अपनी जांच में आगे बढ़ती, उस के पहले ही हत्यारों ने खुद ही ओमप्रकाश सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार कर के अपना नाम जाहिर करते हुए बिहार के लगभग सभी मीडिया संस्थानों को पत्र भेजा.

हत्यारों ने जो पत्र मीडिया को भेजा था, वह कुछ इस प्रकार था, ‘मैं राज झा, संतोष झा गैंग का मुख्य प्रवक्ता. तमाम मीडिया को बताना चाहता हूं कि 6 मई, 2023 की सुबह बाबूसाहब उर्फ ओमप्रकाश सिंह की हत्या करने की जिम्मेदारी मेरी है. मैं ने ही उसे खत्म किया है. ओमप्रकाश सिंह ठेकेदार नहीं, एक नामचीन गुंडा था. गुंडागिरी और दादागिरी से सरकारी ठेके लेता था. बिहार के कुख्यात गुंडा मुकेश पाठक का वह दाहिना हाथ था. मुकेश पाठक के हर अपराध में वह सहभागी था.

’28 अगस्त, 2018 को जब सीतामढ़ी कोर्ट में संतोष झा की हत्या हुई थी तो वह उस में शामिल था. संतोष झा को मारने वाले सभी शूटर ओमप्रकाश सिंह के घर पर ही रुके थे और उन्हें हथियार भी ओमप्रकाश सिंह ने ही मुहैया कराए थे. उसे खत्म कर के हम ने संतोष झा की हत्या का बदला लिया है. मुकेश पाठक तो अभी जेल में है, पर हम उस की भी यही हालत करने वाले हैं.

-राज झा.’

इस पत्र के बाद जेल में बंद मुकेश पाठक की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. अब अगर मुकेश पाठक की बात करते हैं तो पहले संतोष झा के बारे में बताना जरूरी है.

सामान्य परिवार का युवक था संतोष झा

गुंडागिरी के इतिहास में बिहार के सब से बड़े गैंगस्टर के रूप में संतोष झा का नाम लिया जा सकता है. उत्तर बिहार में इस का बेरोकटोक शासन चलता था. प्राइवेट कंपनियों की तरह हिसाबकिताब रखने वाले संतोष झा के पास 40 से भी अधिक वेतनभोगी गुंडों की फौज थी. हर किसी को हर महीने वेतन के अलावा अन्य सुविधाएं वह देता था. बिहार का जिला चंपारण और नेपाल के बौर्डर से लगा जिला शिवहर है. इसी जिले के दोस्तियां गांव के एक सामान्य परिवार में संतोष का जन्म हुआ था. संतोष के पिता गांव के ही संपन्न किसान नवलकिशोर राय के यहां ड्राइवर की नौकरी करते थे.

संतोष को पढ़ाई में बिलकुल रुचि नहीं थी. परिवार की आर्थिक स्थिति उसे पता ही थी, इसलिए 15 साल की उम्र में ही वह कामधंधे की तलाश में हरियाणा चला गया. वह वहां गया कि 8 महीने बाद गांव में एक ऐसी घटना घटी जिस से उस का जीवन ही बदल गया. नवलकिशोर राय से संतोष के पिता की कुछ बकझक हो गई तो पैसे के घमंड में उन्होंने संतोष के पिता को गालियां देते हुए धमकाने के साथसाथ एक थप्पड़ भी जड़ दिया. इसी के साथ नौकरी से भी निकाल दिया. यह समाचार मिलने के बाद संतोष गांव लौट आया. साल 2001 में 16 साल की उम्र में वह क्या कर सकता था? धनी लोगों के प्रति मन में नफरत तो थी ही. उस समय उस इलाके में नक्सली कमांडर गौरीशंकर झा का रुतबा था. संतोष उस के पास पहुंच गया और उस की टीम में शामिल हो गया.

संतोष ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. उस की गैंग ने धूमधड़ाके के साथ रंगदारी वसूली का कारोबार शुरू कर दिया. इस से आने वाली आमदनी को देख कर संतोष ने अपने गैंग को बढ़ाया और अपनी धाक जमा ली. उस के इस कारनामे को देख कर नक्सली कमांडर गौरीशंकर काफी नाराज हुआ. अब तक संतोष के पास एक बड़े गैंग की ताकत थी और अपहरण और वसूली से मोटी कमाई हो रही थी. इसलिए उस ने गुरु की सलाह नहीं मानी और दलील की, जिस से दोनों में झगड़ा बढ़ गया. आवाज सुन कर गौरीशंकर की पत्नी भी बाहर आ गई. उस ने भी संतोष को ताना मारा.

चिढ़ कर संतोष ने जेब से रिवौल्वर निकाला और गोली चला दी. गौरीशंकर और उस की पत्नी की हत्या कर संतोष चुपचाप उन के घर से चला गया. पुलिस को भले ही इस दोहरे हत्याकांड में कोई गवाह या साक्ष्य नहीं मिला, पर लोगों को तो पता चल ही गया था कि ये हत्याएं किस ने की हैं. इस से इलाके में संतोष की धाक के साथ दबदबा भी बढ़ गया. पिता को थप्पड़ मारने वाले नवलकिशोर राय के प्रति उस के दिल में नफरत अभी भी भरी थी. 15 जनवरी, 2010 को उस ने पिता के अपमान का बदला ले लिया. नवलकिशोर राय की खोपड़ी के परखच्चे उड़ाने के साथ उस के हवेली जैसे मकान को डायनामाइट से उड़ा दिया. उसे पकडऩे के लिए बिहार पुलिस की टास्क फोर्स रातदिन लगी थी, पर पकड़ नहीं पा रही थी.

आखिर साल 2014 में स्पैशल टास्क फोर्स ने कोलकाता से संतोष झा को गिरफ्तार कर लिया. वह जेल चला गया, पर वसूली का उस का कारोबार जेल से ही चलता रहा.

मई, 2015 में वह जेल से बाहर आ गया. उस की गैरहाजिरी में मुकेश पाठक जेल में रह कर मुखिया की तरह गैंग संभालता रहा.

गुंडा टैक्स में मांगे थे 75 करोड़ रुपए

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने कंपनी से 75 करोड़ रुपए गुंडा टैक्स मांगा था. पैसे न देने पर उस ने कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया. दिनदहाड़े इस घटना को अंजाम दिया गया था, इसलिए चश्मदीद भी थे और कंपनी पर सरकार का हाथ भी था. इसलिए इस घटना की चार्जशीट तैयार करने में पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. 75 करोड़ की रंगदारी मांगने वाले संतोष झा का नाम पूरे भारत में चमक उठा. संतोष झा और मुकेश पाठक पकड़े गए. मुकदमा चला और गुरुचेला और इन के अन्य 7 साथियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. सभी को जेल में डाल दिया गया.

मुकेश पाठक इस गैंग में कैसे शामिल हुआ, आइए अब यह जानते हैं. मुकेश अपनी पत्नी सलोनी से बहुत प्यार करता था. 3 साल की बेटी श्वेता और पतिपत्नी तीनों शांति से रह रहे थे. पारिवारिक जमीन का विवाद चल रहा था. जब यह विवाद बढ़ा तो उस के चाचा के बेटे प्रेमनाथ पाठक और बुआ के बेटे सुशील तिवारी ने मिल कर मुकेश नाम के इस कांटे को निकाल फेंकने की योजना बनाई. एक दिन दोनों रात को उस के घर आए और गोलियां चलाने लगे. इस में मुकेश तो बच गया, पर गर्भवती सलोनी की गोली लगने से मौत हो गई. प्रेमनाथ और सुशील ने पुलिस और मायके वालों के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि दहेज उत्पीडऩ में पत्नी की हत्या के आरोप में मुकेश को ही फंसा दिया.

मुकदमा चला तो 3 साल की बेटी श्वेता ने प्रेमनाथ और सुशील की ओर इशारा करते हुए कोर्ट में बयान दिया कि उस की मम्मी को पापा ने नहीं, इन दोनों अंकल ने मारा है. बेटी के बयान के बाद मुकेश निर्दोष छूट गया. श्वेता के बयान पर प्रेमनाथ और सुशील फंस गए. कुछ दिनों बाद प्रेमनाथ जमानत पर बाहर आया तो बदले की आग में जल रहे मुकेश ने 8 मई, 2003 को प्रेमनाथ की हत्या कर के जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया. 2004 में पुलिस ने उसे पकड़ा. जमानत पर बाहर आने के बाद वह संतोष झा से जा मिला. अपने गैंग को मजबूत करने के लिए संतोष को ऐसे ही साथियों की जरूरत थी. उस ने संतोष की गैंग में दूसरे नंबर की जगह पा ली.

पुलिस को उस की दरजनों मामलों में तलाश थी. 17 जनवरी, 2012 को स्पैशल टास्क फोर्स ने उसे रांची से पकड़ कर मोतिहारी जेल भेज दिया. इस के बाद उसे शिवहर की जेल भेज दिया गया. इस से वह काफी नाराज था. पर तब उसे शायद यह पता नहीं था कि वहां उसे एक सुखद सरप्राइज मिलने वाला है.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में दिवंगत पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा.

पूजा और मुकेश की जेल में हुई थी शादी

बिहार में किडनैपिंग के कारोबार में केवल पुरुष ही नहीं जुड़े थे, यह साबित करने के लिए पूजा नाम की एक सुंदर युवती भी अपनी हिम्मत से इस धंधे में आ कर बहुत कम समय में किडनैपिंग क्वीन के रूप में नाम कमा चुकी थी. पौलिटेक्निक की पढ़ाई के साथ उस ने अपना यह कारोबार शुरू किया था. पर 4 सफल औपरेशन के बाद वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई थी. वह भी इसी जेल में थी. जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार की इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

20 जुलाई, 2015 को तबीयत खराब होने का बहाना बना कर मुकेश अस्पताल में भरती हुआ. वहां पुलिस को प्रसाद के रूप में नशे वाली मिठाई खिला कर सुला दिया और खुद अस्पताल से फरार हो गया. उस ने पुलिस को सांसत में डाल दिया. एक तो खुद फरार हो गया, दूसरी ओर पता चला कि पूजा गर्भवती है. जेल में कोई प्रेगनेंट महिला कैदी कैसे रह सकती है? जेल में मुकेश और पूजा की प्रेमलीला के चक्कर में 4 पुलिस अधिकारी भी सस्पेंड हुए. संतोष झा के गैंग में मुकेश का दूसरे नंबर पर स्थान था. रंगदारी की जो मोटी रकम आ रही थी, उस से बिहार और नेपाल में रिश्तेदारों के नाम जमीनें और मकान खरीदे जा रहे थे. उस समय मुकेश के मन में एक बात खटकती थी कि उस की चालाकी और मेहनत का जो लाभ उसे मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल रहा है.

दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई. पर एक पत्रकार द्वारा जो एक कारण सामने आया, संतोष के स्वभाव के बारे में जानने वाले उसे सच मानते हैं. संतोष की गैंग की एक शरणस्थली नेपाल में भी थी. नेपाल का कारोबार राजा उर्फ सौरभ कुमार संभालता था.

जेल में आने के बाद मुकेश पाठक को पता चला कि गैंग के किसी भी सदस्य को बताए बगैर संतोष ने कंस्ट्रक्शन कंपनी से 35 करोड़ रुपए ले लिए थे. दगाबाजी के इस मुद्दे पर मुकेश का अपने गुरु संतोष से झगड़ा हुआ और उसी समय मुकेश ने तय कर लिया कि अब ऐसे गुरु को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.

जेल से चल रहा था रंगदारी का धंधा

रंगदारी वसूलने का काम तो सालों से जेल में बैठेबैठे चल रहा था. गैंग के 40 से अधिक खूंखार वेतनभोगी साथी बाहर ही थे. इसलिए गैंग का रुतबा अभी भी वैसा ही था. संतोष झा की हत्या के बारे में विचार करने के बाद मुकेश सोचने लगा कि यह काम किसे सौंपा जाए? तभी उसे ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की याद आई. जेल में ओमप्रकाश सिंह की मुकेश पाठक और संतोष झा से दोस्ती हो गई. इस में मुकेश पाठक से उस की कुछ ज्यादा ही करीबी हो गई थी. उस समय वह बाहर था, इसलिए मुकेश ने अपनी तरह से योजना बनाई और वह पूरा करने की जिम्मेदारी डेविड उर्फ आशीष रंजन और ओमप्रकाश सिंह को सौंपी.

संतोष का एक भरोसेमंद साथी अभिषेक झा भी जेल में था. 16 जुलाई को उस की कोर्ट में पेशी थी. तभी मोतिहारी-ढाका कोर्ट कंपाउंड में मुकेश ने उस की हत्या करा दी. इस सफलता के बाद मुकेश ने संतोष के लिए उसी तरह की योजना बनाई. 28 अगस्त, 2018 को सीतामढ़ी की अदालत में मुकेश पाठक और संतोष झा को हाजिर करना था. इस के 15 दिन पहले से सीतामढ़ी के एक मकान में तैयारी चल रही थी. मुकेश को पता था कि संतोष और विकास को जब अदालत में ले जाया जाएगा तो उन के चारों ओर सशस्त्र पुलिस की सुरक्षा रहेगी. इसलिए उस की हत्या के लिए सियार और नेवले जैसी फुरती रखने वाले शूटर चाहिए.

इस तरह का एक हीरो मुकेश की नजर में था. नौवीं कक्षा में पढऩे वाला विकास महतो मात्र 15 साल का था, फिर भी उस में हिम्मत और जुनून था. फेसबुक पर एके 47 के साथ फोटो डालने वाला यमराज सिंह शूटर- मोतिहारी का यमराज इस तरह की पहचान बताने वाला विकास झा उर्फ कालिया संतोष का वफादार था.

विकास और शकील को दी संतोष की हत्या की सुपारी

विकास महतो बाल सुधार गृह से कुछ दिनों पहले ही बाहर आया था. उसी ने एक और नाम बताया. वह था शकील अख्तर. साल 2015 में थाना चकिया के एसएचओ ने उसे रिवौल्वर के साथ पकड़ा था. उसे बच्चा समझ कर पुलिस ने उस के प्रति लापरवाही बरती और वह थाने से भाग गया था. 20 अगस्त, 2018 में पुलिस ने उसे खोज निकाला और जुवेनाइल कोर्ट ने उसे बाल सुधार गृह रिमांड होम में भेज दिया. मुकेश के खास साथी डेविल उर्फ सौरभ कुमार ने यह मोर्चा संभाल रखा था. उस की देखभाल में 5 दिनों तक रिमांड होम में रहने के बाद 26 अगस्त, 2018 को शकील अख्तर ने प्रार्थना पत्र दिया कि पटना के अस्पताल में उस का भाई सीरियस है, इसलिए उसे छुट्टी दी जाए. बाल सुधार गृह के अधिकारियों ने उसे 27 से 30 अगस्त यानी 4 दिन की छुट्टी दी. इस के बाद वह सीधे सीतामढ़ी आ गया.

विकास महतो और शकील अख्तर को अगले दिन काम समझा कर कहा गया कि संतोष झा जीवित नहीं बचना चाहिए. इस के लिए वह जितनी रकम मांगेंगे, उस से 10 हजार रुपए उन्हें अधिक मिलेंगे. मानव चौबे और संजीत इस पूरी टीम को संभाल रहे थे. इस औपरेशन की सफलता के लिए आसपास के 5 जिलों के तमाम सरकारी ठेकेदारों को मुकेश ने व्यक्तिगत रूप से खबर भिजवा दी थी कि उन्हें लूटने वाले संतोष का सफाया करवाना है. जेल अधिकारियों को पता था कि एक समय जिगरी दोस्त रहे दोनों अब एकदूसरे के खून के प्यासे हैं. इसलिए दोनों को एक वैन में ले जाने का उन्होंने खतरा नहीं उठाया. पहली वैन में मुकेश को सीतामढ़ी लाया गया तो उस के बाद 11 पुलिस वालों के काफिले के साथ संतोष झा को लाया गया.

संतोष झा की हत्या के लिए पूरी व्यवस्था हो चुकी थी. विकास महतो और शकील अख्तर को हथियारों के साथ बाइक पर पीछे बैठना था. कुछ उल्टासीधा हो जाए तो उस परिस्थिति को संभालने के लिए राजा उर्फ सौरभ कुमार कार्बाइन ले कर कोर्ट परिसर में कोने में जम गया. लेकिन विकास और शकील ने कोई गलती नहीं की. 11 पुलिस वालों के साथ जैसे ही संतोष कोर्ट से बाहर आया, चीते की गति से दौड़ कर उन्होंने संतोष के सिर और छाती को गोलियों से छलनी कर दिया. पुलिस वाले कुछ समझ पाते, उस के पहले ही संतोष गिर पड़ा.

हत्यारे अपना काम कर के भागे. उन में बाइक पर चढ़ते समय विकास लडख़ड़ाया और हथियार सहित पुलिस की पकड़ में आ गया. जबकि शकील भाग निकला. संतोष की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इस घटना के लिए लापरवाही के आरोप में 25 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया.

संतोष की हत्या के बाद मुकेश ने संभाली गैंग

मुकेश का नाम हत्या के इस मामले में सामने न आए, इस के लिए 15 साल के विकास महतो ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि संतोष झा ने उस के पिता की हत्या की थी, उसी का बदला लेने के लिए उस ने उस की हत्या की है. बाद में पुलिस जांच में उस का यह झूठ पकड़ा गया था. अपने गुरु गौरीशंकर झा की हत्या संतोष ने की थी, उसी तरह संतोष के चेले मुकेश ने उसे खत्म कर दिया था. साल 2020 में पुलिस ने शकील अख्तर को भी पकड़ लिया था. विकास महतो भी जेल में है.

संतोष की हत्या के बाद कुछ दिनों के लिए उस की गैंग बिखर गई थी, लेकिन फिर से मैदान में आ कर विकास झा उर्फ कालिया ने गैंग को फिर से संभाल लिया और रंगदारी वसूलने का कारोबार शुरू कर दिया. अपने गुरु संतोष झा की बेटी के साथ उस ने विवाह कर लिया. वह गजब का हिम्मती था. उसी के इशारे पर मुकेश के साथी राजा उर्फ सौरभ कुमार की हत्या नेपाल में कर दी गई. इस के बाद 6 मई, 2023 को ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब को 19 गोलियों से छलनी कर के खुलेआम धमकी दे दी गई कि मुकेश पाठक का भी ऐसा ही हाल किया जाएगा.

मुकेश पाठक इस समय कड़ी सुरक्षा के बीच भागलपुर की जेल में सजा काट रहा है. सूत्रों से पता चला है कि मुकेश ने अवैध कमाई से करीब 7 सौ करोड़ की संपत्ति बनाई है. गैंगवार की इस परंपरा को देखते हुए सवाल यह है कि जेल से आने के बाद इस 7 सौ करोड़ की संपत्ति का सुख कितने दिन भोग सकेगा.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...