कुलदीप ने प्रेमिका के खून से हाथ रंग कर जो किया, वह भावावेश में उठाए गए कदम के साथसाथ जघन्य अपराध भी था. इस की सजा भी उसे मिलेगी, लेकिन उसे इस स्थिति तक पहुंचाने वाली शबनम भी कम गुनहगार नहीं थी. अगर वह…

कानपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है बिल्हौर. इस कस्बे से सटा एक गांव है दासा निवादा, जहां छिद्दू का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी रमा के अलावा 2 बेटे सतीश, नेमचंद्र तथा 2 बेटियां विजयलक्ष्मी और पूनम थीं. विजयलक्ष्मी को ज्यादातर शबनम के नाम से जाना जाता था. छिद्दू गरीब किसान था. उस के पास नाममात्र की जमीन थी. वह मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह परिवार का भरणपोषण करता था. खेतीकिसानी में उस के दोनों बेटे भी सहयोग करते थे.

तीखे नैननक्श और गोरी रंगत वाली विजयलक्ष्मी उर्फ शबनम छिद्दू की संतानों में सब से सुंदर थी. समय के साथ जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, उस के सौंदर्य में भी निखार आता जा रहा था. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नैननक्श, गुलाबी होंठ और कंधों तक लहराते बाल किसी को भी उस की ओर आकर्षित कर सकते थे. अपनी खूबसूरती पर शबनम को भी बहुत नाज था. यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह उसे इस तरह घूर कर देखती मानो खा जाएगी. उस की टेढ़ी नजरों से ही लड़के उस से डर जाते थे. लेकिन कुलदीप शबनम की टेढ़ी नजर से जरा भी नहीं डरा.

कुलदीप का घर शबनम के घर से कुछ ही दूरी पर था. उस के पिता देवी गुलाम खेतीबाड़ी करते थे. उन की 3 संतानों में कुलदीप सब से छोटा था. वह सिलाई का काम करता था. उस की कमाई ज्यादा अच्छी नहीं तो बुरी भी नहीं थी. अच्छे कपड़े पहनना और मोटरसाइकिल पर घूमना कुलदीप का शौक था. शबनम तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही वह पढ़नेलिखने में भी तेज थी. बिल्हौर के बाबा रघुनंदन दास इंटर कालेज से हाईस्कूल पास कर के उस ने 11वीं में दाखिला ले लिया था. अपने कामधाम और स्वभाव की वजह से वह अपने मांबाप की आंखों का तारा बनी हुई थी. शबनम के कालेज आनेजाने में ही कुलदीप की निगाह शबनम पर पड़ी थी. पहली ही बार में वह उस की ओर आकर्षित हो गया था. वह उसे तब तक देखता रहता था, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी.

ऐसा नहीं था कि कुलदीप ने शबनम को पहली बार देखा था. इस के पहले भी उस ने शबनम को कई बार देखा था. लेकिन तब और अब में जमीनआसमान का अंतर था. शबनम कुलदीप के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. उस के कालेज आनेजाने के समय वह रास्ते में खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. शबनम उसे दिखाई दे जाती तो वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता रहता, लेकिन शबनम थी कि उसे भाव ही नहीं दे रही थी. धीरेधीरे उस की बेचैनी बढ़ने लगी थी. हर पल उस के मन में शबनम ही छाई रहती. यहां तक कि उस का मन सिलाई के काम में भी नहीं लगता था. उस के मन की बेचैनी तब और बढ़ जाती, जब शबनम उसे दिखाई दे जाती.

जब कुलदीप के लिए शबनम के करीब पहुंचने की तड़प बरदाश्त से बाहर हो गई तो उस ने शबनम के भाई सतीश से दोस्ती कर ली और मिलने के बहाने उस के घर आनेजाने लगा. सतीश के घर पर कुलदीप बातें भले ही दूसरों से करता था लेकिन उस की नजरें शबनम पर ही जमी रहती थीं. जल्दी ही इस बात को शबनम ने भी भांप लिया. कुलदीप की आंखों में अपने प्रति चाहत देख कर शबनम का मन भी विचलित हो उठा. वह भी अब कुलदीप के आने का इंतजार करने लगी. जब कुलदीप आता तो वह उस के पास ही मंडराती रहती. दोनों ही एकदूसरे का सामीप्य पाने के लिए बेचैन रहने लगे. कुलदीप की चाहत भरी नजरें शबनम की नजरों से मिलतीं तो वह मुसकरा कर मुंह फेर लेती. कई बार वह तिरछी नजरों से देखते हुए कुलदीप के आगेपीछे चक्कर लगाती रहती.

शबनम की कातिल निगाहों और मुसकान से कुलदीप समझ गया कि जो बात उस के मन में है, वही शबनम के मन में भी है. फिर भी वह अपनी बात शबनम से नहीं कह पा रहा था, जबकि शबनम पहल करने से कतरा रही थी. सोचविचार कर कुलदीप ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह शबनम से अपने दिल की बात कह सके. यह सच है कि चाह को राह मिल ही जाती है. आखिर एक दिन कुलदीप को मौका मिल ही गया. शबनम को घर में अकेली पा कर कुलदीप ने कहा, ‘‘शबनम, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर बुरा न मानो तो मैं अपने मन की बात कह दूं?’’

‘‘बात ही तो कहनी है. कह दो. इस में बुरा मानने की क्या बात है.’’ शबनम नजरें चुराते हुए बोली. शायद उसे अहसास था कि कुलदीप क्या कहने वाला है.

‘‘शबनम तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मुझे तुम्हारे अलावा कुछ सूझता ही नहीं है.’’ कुलदीप नजरें झुका कर बोला, ‘‘हर पल तुम्हारी सूरत मेरी नजरों के सामने घूमती रहती है.’’

कुलदीप की बात सुन कर शबनम के दिल में गुदगुदी सी होेने लगी. वह शरमाते हुए बोली, ‘‘कुलदीप, जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

शबनम का जवाब सुन कर कुलदीप ने उसे बाहों में भर कर कहा, ‘‘तुम्हारे मुंह से यही बात सुनने के लिए मैं कब से इंतजार कर रहा था.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. शबनम कालेज के लिए निकलती तो कुलदीप सड़क पर मोटरसाइकिल लिए उस का इंतजार करता मिलता. शबनम के आते ही वह उसे मोटरसाइकिल पर बिठा कर कालेज छोड़ आता. शबनम जब कुलदीप की मोटरसाइकिल पर बैठती तो उस के किशोर मन की कल्पना के घोड़े तेज रफ्तार से दौड़ने लगते. उसे लगता जैसे कुलदीप ही उस के सपने का राजकुमार है और वह उस के साथ घोड़े पर सवार हो कर कहीं दूर सपनों की दुनिया में जा रही है. कुलदीप उसे बाइक से कालेज छोड़ने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता था. शबनम को भी उस का साथ भाने लगा था. शबनम बाइक से उतर कर जब उसे थैंक्स कहती तो कुलदीप का दिल खुश हो जाता.

इश्क की आग दोनों ओर बराबर भड़क रही थी. धीरेधीरे कुलदीप और शबनम के बीच की दूरियां सिमटने लगी थीं. अकसर तन्हाइयों में होने वाली दोनों की मुलाकातें उन्हें और ज्यादा नजदीक लाने लगी थीं. कुलदीप अब शबनम को तोहफे भी देने लगा था. एक रोज कुलदीप शबनम के लिए एक कीमती सलवार सूट ले कर आया. सलवार सूट देख कर शबनम खुशी से झूम उठी. उस ने चहकते हुए पूछा, ‘‘इतना महंगा सलवार सूट क्यों लाए?’’

‘‘कीमती आभूषण पर महंगा नगीना ही सजता है, शबनम.’’ कुलदीप ने उस के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे आगे इस सूट की कीमत कुछ भी नहीं है.’’ कुलदीप अपना चेहरा उस के एकदम करीब ले आया.

शबनम के होंठ कंपकंपाने लगे. निगाहें हया से झुक गईं. उस ने कांपते शब्दों में पूछा, ‘‘मैं तुम्हारे लिए इतना मायने रखती हूं.’’

‘‘हां, शबनम.’’ कुलदीप की सांसें उस के चेहरे से टकराने लगीं, ‘‘तुम मेरे लिए मेरी सांसों से ज्यादा मायने रखती हो. मैं दिल हूं तुम धड़कन. मैं दीया, तुम बाती. तुम फूल मैं खूशबू.’’ कहने के साथ ही उस ने शबनम का चेहरा ऊपर उठाया.

शबनम उस की बातों से मदहोशी के आलम में आ चुकी थी. खुशियों भरी लज्जा से उस की आंखें बंद हो गई थीं.

कुलदीप ने चेहरा झुका कर शबनम के होंठों को चूम लिया. सांसों से सांसें मिलीं तो शबनम की मदहोशी बढ़ गई. उस ने कुलदीप को रोका नहीं, बल्कि उस से लिपट गई. फिर तो तन से तन मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा. दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. एक बार दोनों ने वासना की दलदल में कदम रखा तो उन की भावनाएं, उन की चाहत, सामाजिक मर्यादाएं सब उस दलदल में डूबते गए. घर के बाहर जहां भी मौका मिलता वे शरीर की आग शांत करने लगे. कुलदीप शबनम के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ कि उस की हर डिमांड पूरी करने लगा. बात करने के लिए उस ने शबनम को महंगा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया. रिचार्ज का पैसा भी शबनम उसी से लेती थी. इस के अलावा, कपड़े, फीस और उस के अन्य खर्चे भी कुलदीप ही उठाने लगा.

एक रोज शबनम ने कुलदीप से एक अजीब पेशकश की. उस ने प्यार के क्षणों में कहा, ‘‘कुलदीप मुझे बाइक चलाना सिखा दो. मैं भी तुम्हारी तरह फर्राटे भर कर बाइक चलाना चाहती हूं.’’

‘‘बाइक मर्द चलाते हैं, औरतें नहीं.’’ कुलदीप ने शबनम को समझाया, लेकिन वह जिद पर अड़ गई. अंतत: कुलदीप को शबनम की बात माननी पड़ी. वह उसे बाइक चलाना सिखाने लगा. कुलदीप की मेहनत और शबनम की लगन काम आई, कुछ ही दिनों में वह सचमुच फर्राटे भरते हुए मोटरसाइकिल चलाने लगी. उस ने लाइसेंस भी बनवा लिया था. इस के बाद उस ने कुलदीप के सहयोग से एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीद ली और उसी से कालेज आनेजाने लगी. अब तक कुलदीप और शबनम के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे थे. उड़तेउड़ते यह खबर शबनम के मांबाप के कानों में पड़ी तो सुन कर रमा और छिद्दू सन्न रह गए. उस दिन शबनम घर आई तो रमा उसे अलग कमरे में ले जा कर बोली, ‘‘शबनम, तुम पर मैं बहुत भरोसा करती थी, लेकिन तुम ने अभी से अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. बता कुलदीप के साथ तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘मां अगर जानना चाहती हो तो सुनो. कुलदीप और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं. हम दोनों शादी कर के अपना घर बसाना चाहते हैं.’’ शबनम ने विस्फोट किया तो छिद्दू और रमा समझ गए कि शबनम बेलगाम हो गई है. उसे समझाना आसान नहीं होगा.

चूंकि सवाल इज्जत का था, सो शबनम के दो टूक जवाब देने के बावजूद रमा ने उसे समझाया. छिद्दू भी कुलदीप के पिता देवी गुलाम के घर गया और इज्जत की दुहाई दे कर कुलदीप को समझाने के लिए कहा. देवी गुलाम ने  आश्वासन दिया कि वह कुलदीप को समझाएगा. देवी गुलाम ने कुलदीप को समझाया भी, लेकिन उस ने पिता की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. परिवार वालों का विरोध बढ़ा तो शबनम अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठी. उस ने अपनी चिंता से कुलदीप को भी अवगत करा दिया था. उस ने आश्वासन दिया कि वह किसी भी हाल में उस का साथ नहीं छोड़ेगा. समय आने पर उस की मांग में सिंदूर भरेगा. वह उसे भगा कर नहीं ले जाएगा, बल्कि गांव में ही उस के साथ सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर के घर बसाएगा.

शबनम को विश्वास दिलाने के लिए वह उसे मंदिर में ले गया और भगवान को साक्षी मान कर उस के साथ विवाह कर लिया. इस बात की जानकारी न तो शबनम के घर वालों को हुई और न ही कुलदीप के घर वालों को. कुलदीप को अब घर से पैसा मिलना बंद हो गया था. सिलाई की दुकान से उसे इतनी आमदनी नहीं थी कि वह अपना और शबनम का खर्च बरदाश्त कर पाता. इसलिए ज्यादा पैसा कमाने के लिए उस ने दिल्ली जाने का निश्चय कर लिया. इस बाबत उस ने शबनम से बात की तो उस ने सहमति दे दी. दरअसल शबनम को कुलदीप से ज्यादा पैसे से प्यार था. बिना पैसे के उस का काम नहीं चल सकता था. दिल्ली के लक्ष्मीनगर में कुलदीप का दोस्त अमर रेडीमेड कपड़ों के कारखाने में सिलाई का काम करता था. कुलदीप ने उस से बात की तो उस ने उसे दिल्ली बुला लिया.

दिल्ली आ कर कुलदीप कारखाने में ज्यादा से ज्यादा सिलाई का काम करने लगा ताकि प्रेमिका के लिए पैसा जुटा सके. कुलदीप और शबनम में ज्यादा बातें रात में होती थीं. शबनम कुलदीप से प्यार भरी बातें तो करती थी, लेकिन अपनी डिमांड पूरी करने का दबाव भी बनाती थी. कुलदीप यथाशक्ति उस की डिमांड पूरी करने का प्रयास करता था. जो डिमांड अधूरी रह जाती उसे वह छुट्टी पर घर आ कर पूरी करता था. कुलदीप को 2-4 दिन की ही छुट्टी मिलती थी. वह छुट्टी पर घर आता तो शबनम को हर तरह से खुश रखता. उस की डिमांड पूरी करता और शारीरिक सुख प्राप्त कर के वापस चला जाता. समय बीतता रहा. शबनम अब तक इंटरमीडिएट पास कर चुकी थी और बीटेक की डिग्री के लिए उस ने कृष्णा इंजीनियरिंग कालेज, कानपुर में दाखिल ले लिया था. वह मोटरसाइकिल से ही कालेज आतीजाती थी.

20 वर्षीय शबनम तेजतर्रार युवती थी. वह न किसी से दबती थी और न किसी के सामने झुकती थी. कभी कोई युवक उस पर फब्तियां कसता तो वह बाइक रोक कर उसे सबक सिखा देती थी. उस के गांव के लोग तो उस की छाया तक से डरते थे. बीटेक की पढ़ाई के दौरान शबनम के आंतरिक संबंध बीटेक के कुछ छात्रों से बन गए थे. वह उन के साथ घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती. दोपहर को वह एक युवक के साथ होटल या रेस्टोरेंट जाती तो शाम को किसी दूसरे के साथ. जल्दी ही उस के चाहने वालों की फौज तैयार हो गई. चाहत के ऐसे ही फौजियों से उस की आर्थिक व शारीरिक दोनों तरह की पूर्ति होने लगी. दरअसल, कुलदीप के बाहर चले जाने के बाद वह पुरुष संसर्ग से वंचित रहने लगी थी. साथ ही उसे आर्थिक परेशानी से भी जूझना पड़ता था. इन्हीं आवश्यकताओं की वजह से उस के कदम बहक गए थे.

शबनम ने जम कर मौजमस्ती की तो उस की पढ़ाई में बाधा पड़ने लगी. इस का परिणाम यह निकला कि उस के 2 पेपर में बैक आ गई. खिन्न हो कर शबनम ने बीटेक की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. इस के बाद उस ने तांतियागंज स्थित विशंभरनाथ डिग्री कालेज से बीकौम करने के लिए दाखिल ले लिया. शबनम पर घर वालों का कोई नियंत्रण नहीं था. वह अपनी मरजी से घर आती थी और  मरजी से जाती थी. उस की भाभी दया अगर कभी उस से मजाक करती तो वह उसे करारा जवाब देती, ‘‘भाभी, पहले तुम बताओ मायके में कितने यार छोड़ कर आई हो, फिर मैं बताऊंगी.’’

शबनम भले ही गरीबी में पली थी, लेकिन उस के सपने आसमान छूने वाले थे. वह पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, अपने सपने पूरे करना चाहती थी. वह तेजतर्रार ही नहीं शरीर से भी हृष्टपुष्ट थी. इसी के मद्देनजर वह पुलिस विभाग में नौकरी करने की इच्छुक थी. इस के लिए उस ने प्रयास भी शुरू कर दिया था. सिपाही भरती में उस ने आवेदन भी किया था, लेकिन यह परीक्षा निरस्त हो गई थी. इधर शबनम ने जब नए दोस्त बना लिए और वह उन के साथ मौजमस्ती करने लगी तो उस ने कुलदीप को दिल से ही निकाल दिया. अब उस का मन कुलदीप से ऊबने लगा था. प्रेमिका की यह फितरत कुलदीप समझ नहीं पाया. वह तो सपनों की दुनिया में जी रहा था. शबनम ने अब मोबाइल पर भी कुलदीप से बात करनी करीबकरीब बंद कर दी थी.

कुलदीप शबनम से बात करने की कोशिश करता तो वह उस का फोन रिसीव नहीं करती थी, कभी झुंझला कर रिसीव भी करती तो कोई न कोई बहाना बना देती. कभी कालेज में होने का बहाना बनाती तो कभी रात अधिक होने या सिरदर्द का बहाना कर फोन बंद कर देती. कुलदीप की समझ में नहीं आ रहा था कि शबनम बेवफाई क्यों कर रही है. कुलदीप, शबनम से बेइंतहा प्यार करता था. उस के बिना वह खुद को अधूरा महसूस करता था. जब शबनम ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. कारण जानने के लिए वह दिल्ली से अपने गांव आ गया. गांव में उस ने गुप्त रूप से शबनम की बेरुखी के बारे में पता किया तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे पता चला कि शबनम ने कई नए दोस्त बना लिए हैं, जिन के साथ वह मौजमस्ती करती है.

कुलदीप ने इन नए दोस्तों के बारे में शबनम से पूछा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘कुलदीप, अब मैं कालेज में पढ़ती हूं. कालेज में लड़केलड़कियां साथ में पढ़ते हैं. उन से मेलजोल स्वाभाविक है. तुम व्यर्थ में शक कर रहे हो. मैं तुम से उतना ही प्यार करती हूं जितना पहले किया करती थी.’’

‘‘तो फिर मोबाइल पर बातचीत करनी क्यों बंद कर दी?’’ कुलदीप ने शिकायत की, तो शबनम बोली, ‘‘तुम वक्त बेवक्त फोन करते हो. कभी मैं कालेज में क्लास में होती हूं तो कभी रात को घर वाले कान लगाए रहते हैं. लेकिन अब तुम्हें शिकायत नहीं होगी. मैं तुम से बात करती रहूंगी.’’

शबनम ने अपनी चपल चाल से कुलदीप को संतुष्ट कर दिया. उस ने 1-2 दिन कुलदीप के साथ मौजमस्ती की और अपनी जरूरत की चीजों की खरीदारी भी. इस के बाद कुलदीप वापस दिल्ली चला गया. लेकिन इस बार दिल्ली में उस का मन नहीं लग रहा था. वह रात दिन शबनम के फोन का इंतजार करता रहता. पर शबनम फोन नहीं करती. कुलदीप फोन मिलाता तो वह रिसीव नहीं करती थी. शबनम से बात न हो पाने से कुलदीप परेशान हो गया. उस का दिन का चैन और रात की नींद हराम हो गई. कुलदीप समझ गया कि शबनम बेवफा हो गई है. उस ने नए यार बना लिए हैं, जिन की वजह से उस ने उसे भुला दिया है. उस ने सोच लिया कि अगर शबनम उस की नहीं हुई तो वह उसे दूसरों की बांहों में भी नहीं झूलने देगा.

24 जून, 2018 को कुलदीप दिल्ली से अपने गांव दासानिवादा आ गया. यहां उस ने शिवराजपुर कस्बे के एक अपराधी से संपर्क किया और उस से 315 बोर का तमंचा व 6 कारतूस खरीद लिए. उस ने तमंचा लोड कर के सुरक्षित रख लिया. कुलदीप ने शबनम से मिल कर बात करने का काफी प्रयास किया, लेकिन शबनम नहीं मिली. 27 जून को कुलदीप को शबनम के चचेरे भाई से पता चला कि वह कालेज गई है. यह जानने के बाद कुलदीप बाइक ले कर राधन लिंक रोड पर पहुंच गया और शबनम के वापस लौटने का इंतजार करने लगा. इसी लिंक रोड से गांव आनेजाने का रास्ता जुड़ा था. कुलदीप को मालूम था कि गांव जाने के लिए शबनम इसी लिंक रोड से हो कर गुजरेगी.

इस बीच कुलदीप ने अपने मोबाइल से शबनम से बात करने की कोशिश की. लेकिन शबनम ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. इस पर कुलदीप ने शबनम के फोन पर ‘काल मी’ मैसेज भेजा पर शबनम ने उसे फोन नहीं किया. लगभग 12 बजे कुलदीप को शबनम बाइक से आती दिखी. नजदीक आते ही उस ने शबनम को रोेक लिया. दोनों में फोन पर बात न करने को ले कर तकरार होने लगी. कुलदीप ने शबनम से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करता हूं. फिर भी तुम बेवफा बन गईं, मुझे भूल कर यारों के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगीं.’’

कुलदीप के इस आरोप से शबनम तिलमिला गई. वह कुलदीप को मां की गाली देते हुए बोली, ‘‘तू अपना खर्चा पूरा कर नहीं पाता, मेरा कैसे करेगा. चल भाग, नामर्द कहीं का.’’

एक तो मां की गाली, ऊपर से नामर्द कहना, कुलदीप को नागवार लगा. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कमर में खोसा हुआ तमंचा निकाला और शबनम की कनपटी पर लगाते हुए बोला, ‘‘बेवफा, बदजुबान, आज मैं तुझे सबक सिखा कर रहूंगा.’’

शबनम कुछ सोच पाती इस से पहले ही कुलदीप ने ट्रिगर दबा दिया. धांय की आवाज के साथ शबनम का भेजा उड़ गया. खून से लथपथ हो कर वह सड़क पर गिर गई. थोड़ी देर में उस ने दम तोड़ दिया. गोली चलने की आवाज सुन कर खेतों में काम कर रहे लोग उस ओर दौड़े तो कुलदीप बाइक से भाग निकला. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने एक युवती की हत्या किए जाने की खबर थाना बिल्हौर की पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिल्हौर थानाप्रभारी ज्ञान सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल आ गए.

उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. कुछ देर बाद ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, सीओ (बिल्हौर) आर.के. चतुर्वेदी, फोरेंसिक टीम के साथ आ गए. इसी बीच दासानिवादा निवासी छिद्दू और उस के दोनों बेटे सतीश व नेमचंद आए और युवती के शव को देख कर बिलख पड़े. छिद्दू ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि लाश उस की बेटी शबनम उर्फ विजयलक्ष्मी की है. लाश की पहचान हो गई तो पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. शबनम की कनपटी में सटा कर गोली मारी गई थी. जो आरपार हो गई थी. उस का भेजा उड़ चुका था. मौके पर पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया गया. मृतका की बाइक भी पुलिस ने थाने भिजवा दी. फोरेंसिक टीम ने भी साक्ष्य जुटाए. इस के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया.

शबनम की हत्या के संबंध में एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह ने छिद्दू और उस के बेटे से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शबनम की हत्या गांव के ही कुलदीप ने की है. दोनों के बीच अवैध संबंध थे. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ज्ञान सिंह ने मृतका के भाई सतीश को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत कुलदीप के खिलाफ रिपार्ट दर्ज कर ली और उस की तलाश में जुट गए. उस के घर पर छापा मारा गया पर वह फरार हो गया था.

कुलदीप को पकड़ने के लिए एसपी (गामीण) प्रद्युम्न सिंह ने एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में बिल्हौर थानाप्रभारी ज्ञान सिंह, एसआई बहादुर सिंह, शिवप्रताप तथा सिपाही उमेश रामवीर, जुनेंद्र व अफरोज को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने कुलदीप के पिता देवी गुलाम से उस के ठिकानों के संबंध में जानकारी हासिल की. इस के बाद कुलदीप के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर उसे चरखी, दादरी, लक्ष्मी नगर (दिल्ली), बीकानेर (राजस्थान), गोहना (हरियाणा) तथा नोएडा की संभावित जगहों पर खोजा गया. लेकिन कुलदीप हाथ नहीं लगा. आखिर पुलिस ने उस की तलाश में मुखबिर लगा दिए.

पुलिस टीम ने घटनास्थल से मिला मृतका का फोन खंगाला तो उस में कई दरजन नंबर सेव थे. ये नंबर थे तो लड़कों के, लेकिन फोन में लड़कियों के नाम से सेव किए गए थे. मृतका के मोबाइल पर आखिरी काल 3 मिनट की थी. इसी नंबर से ‘काल मी’ का मैसेज भी था. जांच से पता चला कि वह नंबर कुलदीप का था. 13 जुलाई, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी ज्ञान सिंह को मुखबिर ने खबर दी कि हत्यारोपी कुलदीप इस वक्त उत्तरीपुरा रेलवे फाटक के पास मौजूद है, अगर तुरंत एक्शन लिया जाए तो उसे पकड़ा जा सकता है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. ज्ञान सिंह ने पुलिस टीम के साथ छापा मार कर कुलदीप को रेलवे फाटक के पास स्थित होटल से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से शबनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने कहा कि उसे शबनम की हत्या का कोई गम नहीं है. उस की बेवफाई ने उसे गुनाह करने को मजबूर कर दिया था.

कुलदीप के पास से 315 बोर का तमंचा तथा 3 जीवित कारतूस भी मिले. पुलिस ने इस के लिए उस के खिलाफ आर्म्स एक्ट का मुकदमा अलग से दर्ज किया. यह वही तमंचा था, जिस से उस ने शबनम की हत्या की थी.

दिनांक 14 जुलाई, 2018 को थाना बिल्हौर पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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