इंसान की एक सब से बड़ी कमजोरी होती है लालच. कुछ लोग इंसान की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उस की गाढ़ी कमाई इस तरह लूट लेते हैं कि उसे अपने लुटने का पता तब चलता है, जब वह स्वयं अपने हाथों से उसे अपना सब कुछ सौंप चुका होता है. दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले रामवीर शर्मा की आटोपार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी. विभिन्न आटो कंपनियों के और्डर पर वह आटोपार्ट्स बना कर सप्लाई करते थे. काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी. सन 1988 से उन की यह फैक्ट्री मध्य दिल्ली के झंडेवालान में चल रही थी.
काम बढ़ने लगा तो उन्होंने और मशीनें लगाने की सोची. लेकिन फैक्ट्री की जो जगह थी, उस में और मशीनें नहीं लग सकती थीं. वह फैक्ट्री लगाने के लिए जगह की तलाश करने लगे. उन्हें हरियाणा के राई में एक बढि़या प्लौट मिल गया तो उसे खरीद कर उन्होंने झंडेवालान वाली फैक्ट्री को वहीं शिफ्ट कर दिया. अब फैक्ट्री में पहले से ज्यादा मशीनें लग गई थीं, इसलिए पहले से ज्यादा काम भी हो गया और आमदनी भी बढ़ गई. चूंकि वह और्डर का माल समय से पहले तैयार करा कर पहुंचा देते थे, इसलिए इस क्षेत्र में उन की अच्छीखासी साख बनी थी. इसी का नतीजा था कि उन्हें जरमन की एक आटो कंपनी का और्डर मिल गया. विदेशी कौन्ट्रैक्ट मिलने के बाद वह फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि पार्ट्स तैयार करने के लिए उन्हें अच्छे पैसे मिल रहे थे.
वह विदेशी आटो कंपनी के पार्ट्स तैयार कराने लगे. उस विदेशी कंपनी के साथ कुछ दिनों तो उन का तालमेल ठीक चला, लेकिन सन 2006-07 के दौरान उन्हें गर्दिश ने ऐसा घेरा कि वह उबर न सके. दरअसल वह जिस जरमन कंपनी के लिए आटोपार्ट्स तैयार करा रहे थे, किसी वजह से उस कंपनी ने तैयार माल लेने से मना कर दिया. उस माल को तैयार कराने में वह मोटी रकम खर्च कर चुके थे. जिस की वजह से उन्हें मोटा घाटा उठाना पड़ा. इंडिया की जिस आटो कंपनी के पार्ट्स वह तैयार करते थे, वह काम जरमन कंपनी से कौन्ट्रैक्ट होने के बाद उन्होंने बंद कर दिया था. काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें इंडिया की भी किसी कंपनी से कोई और्डर नहीं मिल रहा था.
उन की आमदनी बंद हो चुकी थी, जबकि फैक्ट्री के कर्मचारियों के वेतन से ले कर अन्य मदों पर होने वाले खर्च जारी थे. इस के अलावा रामवीर शर्मा के अपने और घर के खर्च भी थे. वह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि फैक्ट्री फिर से कैसे चले. एक समय ऐसा आया कि रामवीर शर्मा को फैक्ट्री बंद करनी पड़ गई. फैक्ट्री बंद होने के बाद वह कोई दूसरा काम करने की कोशिश करने लगे. उसी बीच उन की मुलाकात अनिल खत्री से हुई, जो पीतमपुरा के ही डी ब्लौक में रहता था. अनिल खत्री ने उन्हें स्पीक एशिया नाम की कंपनी के बारे में बताया. उस ने बताया कि स्पीक एशिया एक कंपनी है, जिस में 11 हजार रुपए जमा करने 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक मिलते रहेंगे.
11 हजार लगा कर एक साल तक 4 हजार रुपए महीने यानी साल भर में करीब 50 हजार रुपए कमाने की बात सुन कर रामवीर के कान खड़े हो गए. उन्हें स्कीम के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. उन्होंने अनिल खत्री से इस स्कीम के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘स्पीक एशिया एक औनलाइन कंपनी है. इस में 11 हजार रुपए जमा करने पर कंपनी एक लौग इन आईडी और पासवर्ड देती है. उस आईडी पर कंपनी हर सप्ताह एक सर्वे भेजती है. वह सर्वे औनलाइन ही 5 मिनट में भर जाता है. सर्वे पूरा होने पर कंपनी एक हजार रुपए आप के एकाउंट में भेज देगी. इस तरह कंपनी एक साल में 52 सर्वे भेजेगी, जिन्हें भरने पर 52 हजार रुपए मिलेंगे.’’
इस इनकम के बारे में सुन कर रामवीर शर्मा को लालच आ गया. इतनी इनकम तो उन्हें अपनी आटोपार्ट्स की फैक्ट्री से भी नहीं होती थी. उन्हें स्कीम तो अच्छी लगी, लेकिन उन के मन में एक दुविधा थी कि पता नहीं जो इनकम अनिल बता रहे हैं, वह आती भी है या नहीं? उन्होंने अपनी संशय अनिल खत्री से बताई तो उस ने अपनी बैंक की पासबुक और स्टेटमेंट दिखाते हुए कहा, ‘‘शर्माजी, यहां कुछ भी गलत नहीं है. सब कुछ औनलाइन है. आप खुद ही देख लीजिए कि मैं अब तक इस कंपनी से कितना कमा चुका हूं.’’
वास्तव में अनिल खत्री के एकाउंट में सिंगापुर की एक बैंक से लाखों रुपए भेजने का रिकौर्ड था. बैंक पासबुक देखने के बाद रामवीर शर्मा को विश्वास हो गया कि कंपनी सर्वे के पैसे भेजती है. रामवीर शर्मा की बौडी लैंग्वेज देख कर अनिल खत्री ने कहा, ‘‘शर्माजी सोचनाविचारना बंद करो और जल्द ही काम चालू कर दो. आप अपनी क्षमता के मुताबिक जितनी आईडी चाहो, ले सकते हो. जितनी आईडी लोगे, उतना ज्यादा कमाओगे. सर्वे की एक दूसरी इनकम भी है, वह है जौइनिंग की. अपनी आईडी के नीचे तुम जितने नए लोगों को जोड़ोगे, हजार रुपए प्रति जौइनिंग मिलेगा.’’
रामवीर शर्मा अनिल खत्री को पहले से जानते ही थे, इसलिए उन्हें उस की बातों पर भरोसा हो गया. उन्होंने अनिल के माध्यम से 33 हजार रुपए जमा करा दिए. पैसे जमा करने के बाद रामवीर शर्मा को 3 लौग इन आईडी और पासवर्ड मिल गए. फिर उन की आईडी पर भी सर्वे आने शुरू हो गए. वह जल्दी से सर्वे भर कर खुश होते कि 11 हफ्ते में उन के द्वारा जमा कराए गए पैसे वापस आ जाएंगे. उस के बाद उन की कमाई ही कमाई है. रामवीर शर्मा के एकाउंट में सर्वे के पैसे आने लगे तो उन्हें तसल्ली हो गई. अनिल खत्री के कहने पर उन्होंने कई और आईडी ले लीं. अनिल खत्री उन्हें कंपनी की ओर से आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों में भी ले जाने लगा. वहां पर वह उन की बड़ेबड़े लीडरों से मुलाकात भी कराता.
सन 2011 में कंपनी ने गोवा में एक सेमिनार का आयोजन किया. उस सेमिनार में हिंदुस्तान की तमाम बड़ी प्रोडक्ट बेस कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. उस सेमिनार के बाद कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में उत्साह भर गया. इस के बाद कंपनी की ओर से दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया गया. उस सेमिनार में कंपनी के शीर्ष लीडर मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल, रामसुमिरन पाल आदि आए. उन्होंने सेमिनार में आए लोगों को कंपनी की उन्नति और खुशहाली के बारे में बताया. चूंकि अनिल खत्री की गिनती दिल्ली में कंपनी के सीनियर लीडर के रूप में होती थी, इसलिए सेमिनार में आए अधिकांश लीडर उसे व्यक्तिगत रूप से जानते थे. वह सेमिनार इतना बड़ा था कि वहां पेनलिस्टों के बैठने के लिए सीटें भी कम पड़ गई थीं. इस सेमिनार से पेनलिस्टों में और जोश भर गया था.
अनिल खत्री रामवीर शर्मा की हैसियत के बारे में अच्छी तरह से जानता था, इसलिए सेमिनार खत्म होने के बाद उस ने रामवीर शर्मा की मुलाकात मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल से कराई. इन सभी लीडरों ने उन्हें और ज्यादा पैसे लगा कर और ज्यादा कमाने को कहा. पहले से ली गई आईडी पर रामवीर शर्मा के पैसे आ ही रहे थे, इसलिए उन की बातों में फंस कर उन्हें भी लालच आ गया और सोचा कि अगर वह मोटी रकम लगा देते हैं तो आमदनी और ज्यादा हो सकती है. रामवीर शर्मा ने अपनी सारी जमापूंजी, पत्नी के गहने बेच कर और अपने जानकारों से पैसे उधार ले कर करीब 25 लाख रुपए इकट्ठा कर के स्पीक एशिया कंपनी में लगा दिए. इतनी बड़ी रकम लगाने के बाद उन की आमदनी भी मोटी होने लगी.
तभी अचानक उन्हें मीडिया द्वारा जानकारी मिली कि स्पीक एशिया कंपनी लोगों का पैसा ले कर भाग गई है. यह सुनते ही वह सन्न रह गए. उन के अलावा जिन लोगों ने इस कंपनी में मोटी रकम लगाई थी, यह खबर सुन कर वे भी परेशान हो गए. सभी अपनेअपने सीनियर्स को फोन कर के मामले की सच्चाई जानने लगे. रामवीर शर्मा ने भी इस बारे में अनिल खत्री से बात की तो उस ने कहा कि ये सब विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें हैं. इन पर ध्यान मत दो और अपना काम करते रहो. रामवीर शर्मा को अनिल खत्री ने समझा तो दिया, लेकिन उन के मन में संशय बना रहा. उन्हें अनिल की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह सर्वे भरते रहे, लेकिन वह तब हैरान रह गए, जब 18 मई, 2011 से सर्वे के पैसे उन के खाते में आने बंद हो गए.
उन्होंने अनिल खत्री से फिर संपर्क किया. उस ने एक बार फिर उन्हें समझाया कि कंपनी की वेबसाइट पर कुछ काम चल रहा है, जिस की वजह से यह प्रौब्लम आ रही है. उस ने कहा कि इतनी बड़ी कंपनी है और उस से लाखों लोग जुड़े हैं, इस तरह कंपनी एकदम से थोड़े ही बंद हो जाएगी. अब तक मीडिया से स्पीक एशिया द्वारा लोगों को ठगे जाने की खबरें लगातार आने लगी थीं. जून, 2011 में मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा और पाईघुनी थाने में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ भांदंवि की धारा 406/34/120 बी के अलावा प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट-1978 के सैक्शन 3, 4, 5, 6 के तहत मामला दर्ज हुआ तो कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में खलबली मच गई.
सब से ज्यादा वे पेनलिस्ट परेशान होने लगे, जिन्होंने कंपनी ने मोटी रकम लगा रखी थी और उन की वह रकम लौटी नहीं थी. रामवीर शर्मा अनिल खत्री के यहां पहुंचे तो उस ने बातें बना कर उन्हें टाल दिया. इस के बाद तो कंपनी के खिलाफ मुंबई, हैदराबाद, छत्तीसगढ़, रायगढ़, लखनऊ, गाजियाबाद, जैसे तमाम शहरों के अनेक थानों में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ मामले दर्ज होने लगे. इस के बाद तो पुलिस स्पीक एशिया से जुड़े बड़े अधिकारियों, एजेंटों आदि की सरगर्मी से तलाश करने लगी. मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा कर रही थी तो छत्तीसगढ़ में स्पेशल इनवैस्टीगैशन सेल अभियुक्तों की तलाश में थी.
आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और स्पीक एशिया के बड़े लीडर रवि जनकराज खन्ना, शेख रईस लतीफ, राजीव मनमोहन मल्होत्रा, राहुल पन्नालाल शाह गिरफ्तार कर लिए गए. इन सभी से पूछताछ के बाद पुलिस ने स्पीक एशिया के सीईओ (इंडिया) तारक विमलेंदु वाजपेई को गिरफ्तार किया. इस के बाद तो मुंबई में स्पीक एशिया के फ्रेंचाइजी दीपांकर दुलालचंद सरकार, मेलविन रोनाल्ड क्रेस्टो, सौरभ सिंह, सुरेश बी. पधि, तबरेज लतीफ अंसारी, सईद अहमद माजगोंकर भी पुलिस गिरफ्त में आ गए. स्पीक एशिया के चार्टर्ड एकाउंटेंट और वित्त सलाहकार संजीव एस. डनडोना, कंपनी के वेब डिजाइनर और कौन्टेंट राइटर नयन कांतिलाल खंदोर, गुजरात और महाराष्ट्र के रीजनल मैनेजर आशीष विजय डंडेकर एवं अभिषेक एस. कुलश्रेष्ठ भी पुलिस से बच न सके.
पुलिस ने कंपनी के 200 से अधिक बैंक खाते सीज करा दिए थे, जिन में करीब 142 करोड़ रुपए जमा थे. इस के अलावा यूएई के भी कई बैंकों में कंपनी के खाते होने की जानकारी मिली. पुलिस को यह भी पता चला कि स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े वांछित लोग विदेश भागने की फिराक में हैं, इसलिए उन के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करा दी. पुलिस को जांच में पता चला चुका था कि स्पीक एशिया कंपनी ने 24 लाख लोगों को झांसा दे कर 2276 करोड़ रुपए कमाए हैं. इस कंपनी की ग्लोबल सीईओ हरेंदर कौर सिंगापुर में बैठ कर काम को अंजाम दे रही थी. भारत में कंपनी के मुख्य कर्ताधर्ता मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल थे. ये सभी फरार चल रहे थे.
मुंबई पुलिस इन्हें भी सरगर्मी से तलाशने लगी. पुलिस मुंबई स्थित इन के ठिकानों पर गई तो ये फरार मिले. वहां पर रामनिवास की मर्सिडीज कार मिली, जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया. 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता लेते हुए कहा कि स्पीक एशिया कंपनी ने जिन लोगों के पैसे लिए हैं, वह उन्हें वापस करे. मुंबई आर्थिक अपराध शाखा को कहीं से सूचना मिली की रामनिवास पाल और उस के साथी दिल्ली या एनसीआर इलाके में हैं. मुंबई पुलिस कमिश्नर ने यह जानकारी दिल्ली पुलिस कमिश्नर से शेयर की और उन की गिरफ्तारी में सहयोग करने की मांग की. चर्चित और खास तरह के मामलों में अलगअलग शहरों की पुलिस संबंधित शहरों की पुलिस से जानकारी शेयर कर के अभियुक्तों की गिरफ्तारी में सहयोग करने की अपील करती है. इसी तरह के सहयोग की मांग मुंबई पुलिस ने दिल्ली पुलिस से की थी.
दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मामला क्राइम ब्रांच को सौंपते हुए काररवाई करने के आदेश दिए. क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने क्राइम ब्रांच के उपायुक्त कुमार ज्ञानेश की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड के एसीपी सुरेश कौशिक, इंसपेक्टर अशोक कुमार, संजीव कुमार, सबइंस्पेक्टर अशोक कुमार वेद, वीरेंद्र सिंह, चंदर प्रकाश, विवेक मंडोला, देवेंद्र सिंह, एएसआई जसवंत राठी, हेडकांस्टेबल देवेंद्र कुमार, संजीव कुमार हरविंदर, संजय, रविंदर पाल, कांस्टेबल सुरेंद, जमील, साजिद आदि को शामिल किया गया.
मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर दिल्ली क्राइम ब्रांच इन की तलाश करने लगी. पुलिस टीम को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी मिली कि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल सगे भाई हैं. स्पीक एशिया से अरबों रुपए कमाने के बाद इन लोगों ने रीयल एस्टेट में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. इसी सिलसिले में वे अकसर दिल्ली आते रहते हैं. मुंबई पुलिस द्वारा इन की फोटो मिलने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. इसी बीच पुलिस को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि रामसुमिरन पाल अपने एक साथी के साथ 25 नवंबर, 2013 की शाम को कनाट प्लेस स्थित रीगल पहुंचेगा. पुलिस टीम रीगल सिनेमा के आसपास बिना वर्दी के खड़ी हो गई.
शाम साढ़े 6 बजे के करीब रीगल सिनेमा के पास स्थित एक दुकान पर 2 शख्स टाई खरीदते हुए दिखे. एसीपी सुरेश कौशिक ने मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए फोटो से उन के चेहरों का मिलान किया तो उन में से एक युवक का चेहरा फोटो से मिल रहा था. फिर क्या था, उन्होंने अपनी टीम को इशारा कर दिया. पुलिस टीम ने घेर कर दोनों युवकों को दबोच लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस औफिस आ गई. दोनों युवकों से पुलिस ने पूछताछ की तो वह पहले तो अपना नाम व पता फरजी बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उन्हें सच उगलना ही पड़ा. उन में से एक युवक ने अपना नाम रामसुमिरन पाल और दूसरे ने सतीशसोहन पाल बताया. उन्होंने बताया कि वे स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े थे. रामसुमिरन पाल उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था तो सतीशसोहन पाल दिल्ली के नजफगढ़ का.
रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी पर दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम फूली नहीं समा रही थी. क्योंकि वह स्पीक एशिया का भारत में मुख्य कर्ताधर्ता था. काफी कोशिशों के बाद भी मुंबई क्राइम ब्रांच उसे और उस के भाई रामनिवास पाल को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. सतीशसोहन पाल स्पीक एशिया का दिल्ली में मुख्य फें्रचाइजी था. उस ने भी स्पीक एशिया के नाम पर दिल्ली के हजारों लोगों से करोड़ों रुपए ठगे थे. पुलिस ने उन से जरूरी पूछताछ की. चूंकि इन के खिलाफ दिल्ली में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. मुंबई के कई थानों में इन के खिलाफ मामले दर्ज थे, इसलिए इन की गिरफ्तारी की सूचना मुंबई क्राइम ब्रांच को दे दी गई.
इस के बाद दोनों ठगों को सीआरपीसी की धारा 41.1 बी (किसी दूसरे थाने के वांटेड आरोपी को गिरफ्तार करना) के तहत गिरफ्तार कर 26 नवंबर को पटियाला हाउस न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट पुनीथ पावा के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी की खबर पा कर 27 नवंबर को मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम दिल्ली पहुंची और कोर्ट से दोनों ठगों को मुंबई ले गई. स्पीक एशिया के ठग रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल के गिरफ्तार होने की खबर जैसे ही फोटो सहित मीडिया में आई तो रामवीर शर्मा रामसुमिरन पाल को पहचान गए. उन के मन में भी स्पीक एशिया में लगाए गए पैसे पाने की उम्मीद जागी और वह दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश के पास पहुंच गए.
उन्होंने डीसीपी को अनिल खत्री, मनोज कुमार शर्मा, रामसुमिरन पाल और रामनिवास पाल के उकसावे में आ कर स्पीक एशिया कंपनी में 25 लाख रुपए लगाए जाने की पूरी बात बताई. उन्होंने उक्त चारों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग भी की. रामवीर शर्मा की शिकायत पर क्राइम ब्रांच थाने में उक्त चारों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर संख्या 198 पर भादंवि की धारा 420, 406, 120-बी को तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े तमाम लोगों के खिलाफ भले ही देश के विभिन्न थानों में तमाम रिपोर्ट दर्ज थीं, लेकिन दिल्ली में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था. पहली रिपोर्ट रामवीर शर्मा ने दर्ज कराई. मामला दर्ज होने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने खुद भी इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी.
रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल से पूछताछ में दिल्ली क्राइम ब्रांच को रामनिवास पाल के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली थीं. रामनिवास पाल वह शख्स था, जो स्पीक एशिया को भारत में लाया था. इतना ही नहीं, स्पीक एशिया के प्लान आदि सब उस के ही तैयार कराए थे. एक तरह से वह कंपनी का मास्टर माइंड था. इस मास्टर माइंड की तलाश के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम बंगलुरू रवाना हो गई. पुलिस को सूचना मिली थी कि वह वहां एक आईटी कंपनी में सलाहकार है. जिस कंपनी में वह काम कर रहा था, पुलिस को उस का पता मिल चुका था.
30 नवंबर, 2013 को दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम बंगलुरू पहुंच गई और व्हाइट फील्ड रोड इलाके से एक शख्स को हिरासत में ले लिया. लेकिन उस ने अपना नाम अभय सिंह चंदेल बताया. बातचीत के दौरान पुलिस को लगा कि अभय सिंह चंदेल नाम का यह शख्स झूठ बोल रहा है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह रामनिवास पाल है और स्पीक एशिया कंपनी से जुड़ा था. बंगलुरू की स्थानीय अदालत में पेश कर के पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई. चूंकि स्पीक एशिया के इस मास्टर माइंड से पुलिस को विस्तार से पूछताछ करनी थी, इसलिए 2 दिसंबर, 2013 को उसे रोहिणी न्यायालय में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर के 9 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड ले लिया गया.
पुलिस ने रामनिवास पाल से जब पूछताछ की तो स्पीक एशिया से उस के जुड़ने से ले कर ठगी तक की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. रामनिवास पाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के गांव नागरपाल का रहने वाला था. उस के पिता वेदराम एक किसान थे. रामनिवास पाल के अलावा वेदराम के 2 और बेटे थे, रामसुमिरन पाल और रजनीश पाल. रामनिवास पाल बीएससी कर रहा था, तभी उस का सेलेक्शन भारतीय वायु सेवा में एयरमैन (टेक्निकल) के पद पर हो गया था. यह सन 1991 की बात है. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस की पोस्टिंग जोधपुर (राजस्थान) की हेलिकौप्टर यूनिट में हुई. बाद में उस का तबादला हैदराबाद हो गया. रामनिवास पाल महत्त्वाकांक्षी था. एयरफोर्स में 10 साल नौकरी के बाद वह कोई ऐसा काम करने की सोचने लगा, जिस में उसे मोटी कमाई हो.
इसलिए सन 2001 में अधिकारियों को बिना कोई सूचना दिए घर चला आया. एयरफोर्स ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया. बाद में वह एयरफोर्स अधिकारियों के संपर्क में आया तो उसे कोर्टमार्शल के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. एयरफोर्स की नौकरी छोड़ने के बाद वह 2002 में मुंबई चला गया और बहुराष्ट्रीय बैंकों को सलाह देने के लिए स्मार्ट कनेक्ट नाम की कंपनी बनाई. इस के बाद वह टीवी कलाकार अमर उपाध्याय की कंपनी मिहिर विरानी मल्टी ट्रेड प्रा.लि. में निदेशक के रूप में काम करने लगा. यह कंपनी आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री करती थी. कंपनी के प्रबंधन से विवाद हो जाने के बाद रामनिवास पाल ने नौकरी छोड़ दी. वहीं उस का संपर्क मनोज कुमार शर्मा से हुआ.
मनोज कुमार शर्मा डाइरेक्ट मार्केटिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष था. रामनिवास बातचीत में दूसरों को प्रभावित करने में माहिर था, इसलिए मनोज से उस के अच्छे संबंध बन गए. वह मनोज की सारी कंपनियों का काम देखने लगा. इसी दौरान वह कुछ विदेशी कंपनियों के संपर्क में आया. रामनिवास पाल का छोटा भाई रामसुमिरन पाल मुंबई में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता था. उस ने मुंबई से मार्केटिंग में एमबीए किया था. रामनिवास पाल ने रामसुमिरन पाल को भी अपने काम में लगा लिया.
रामनिवास पाल ने मनोज कुमार शर्मा और रामसुमिरन पाल के साथ हालैंड की मैंगो यूनिवर्स, ऐड मैट्रिक्स, इटली की सेविन रिंग्स आदि मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों को भारत में लांच किया. इन कंपनियों में रामनिवास पाल कभी संरक्षक, कभी सलाहकार तो कभी कंपनी की योजनाएं बनाने व विकसित करने वाले की भूमिका में होता था. ये भारत के मध्यमवर्गीय लोगों की मानसिकता को जानते थे, इसलिए इन्होंने सन 2008 में सिंगापुर में रजिस्टर्ड एमएलएम कंपनी स्पीक एशिया को भारत में लांच किया. कंपनी का रजिस्ट्रेशन उन्होंने सिंगापुर, ब्राजील व इटली में भी कराया, लेकिन वहां बिजनेस स्टार्ट नहीं किया. कंपनी के प्लान, पेआउट, सर्वे आदि की रूपरेखा रामनिवास पाल ने ही तैयार की.
उसी ने ही स्पीक एशिया कंपनी के मल्टी लेवल मार्केटिंग स्कीम का डिजाइन तैयार किया. बड़ेबड़े महानगरों में उस ने कंपनी की फ्रैंचाइजी दे दी. 11 हजार रुपए जमा कर के 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक पाने के लालच में बड़ी तेजी से लोग इस से जुड़ने लगे. ज्यादा कमाने के लालच में कुछ लोगों ने कंपनी में लाखों रुपए लगा दिए. कंपनी अपने साथ जुड़ने वाले लोगों को पेनलिस्ट कहती थी. विश्वास जमाने के लिए कंपनी ने पेनलिस्टों के बैंक एकाउंटों में पैसे भी भेजने शुरू कर दिए. फिर क्या था, लोगों का कंपनी के प्रति इतना विश्वास बढ़ा कि कुछ ही दिनों में हिंदुस्तान भर में स्पीक एशिया के लाखों पेनलिस्ट बन गए. कंपनी को पेनलिस्टों से सैकड़ों करोड़ की आमदनी होने लगी.
वे फाइव स्टार होटलों में पेनलिस्टों के साथ मीटिंग करते और अलगअलग शहरों में बड़ेबड़े सेमिनारों में प्रभावशाली स्पीच देते. उन की लाइफस्टाइल और स्पीच से पेनलिस्ट बहुत प्रभावित होते. 2011 के मध्य हिंदुस्तान भर से करीब 24 लाख लोग स्पीक एशिया से जुड़ गए. मास्टर माइंड रामनिवास पाल जानता था कि यदि स्पीक एशिया के कार्यक्रम में फिल्मी कलाकारों को शामिल कर लिया जाए तो लोगों का कंपनी पर विश्वास और बढ़ेगा, जिस से उन की कमाई भी बढ़ेगी. तब उस ने 2011 में गोवा में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया. इस के लिए दिल्ली से गोवा तक एक विशेष टे्रन भी चलवाई. तब उस ने गोवा के ज्यादातर बड़े होटल भी बुक करा लिए थे. कई फिल्मी कलाकारों को भी वहां बुलाया था. बताया जाता है कि कंपनी ने इस सेमिनार के आयोजन पर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे.
गोवा में हुए सेमिनार के बाद स्पीक एशिया कंपनी पर अंगुलियां उठने लगी थीं. अपना विश्वास बनाए रखने और लोगों को आकर्षित करने के लिए कंपनी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भी एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया था. इस के बाद जून, 2011 में कंपनी से जुड़े लोग अंडरग्राउंड हो गए. यानी स्पीक एशिया कंपनी लोगों के 2276 करोड़ रुपए ले कर छूमंतर हो गई. जिन लोगों ने कंपनी में फरवरी, 2011 के बाद पैसे लगाए थे, वे घाटे में रहे. लोगों ने स्पीक एशिया के संचालकों के खिलाफ विभिन्न थानों में रिपोर्ट लिखानी शुरू कर दी.
मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई. मुंबई पुलिस संचालकों को खोजने लगी. चूंकि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने इटली की सेवन रिंग्स इंटरनेशनल और हालैंड की ऐड मैट्रिक्स प्रा.लि. कंपनी भी खरीद ली थी, इसलिए इन्होंने स्पीक एशिया द्वारा 900 करोड़ रुपए मनी लांड्रिंग के जरिए सिंगापुर पहुंचा दिए. वहां से वे उस रकम को दुबई, इटली, यूके के जरिए दोबारा कंपनी के खाते में भारत ले आए.
पाल बंधुओं ने स्पीक एशिया की दिल्ली की फ्रेंचाइजी सतीशसोहन पाल को दी थी. सतीशसोहन पाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया था. इस के बाद उस ने विभिन्न इंस्टीट्यूटों में काम करते हुए सन 2007 में मुंबई शिफ्ट हो गया था. वहीं पर वह रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल के संपर्क में आया और उन के साथ मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों में काम करने लगा. जब इन्होंने भारत में स्पीक एशिया कंपनी की शुरुआत की तो सतीशसोहन पाल ने दिल्ली की फ्रेंचाइजी ले ली और लोगों से करोड़ों रुपए इकट्ठे किए. यह पाल बंधुओं का बिजनैस एडवाइजर भी था.
स्पीक एशिया कंपनी के बंद होते ही सतीशसोहन पाल मलेशिया भाग गया था. वहां उस ने वेब एक्सल सौल्युशन कंपनी खरीद कर एमएलएम का बिजनेस शुरू किया. 2012 में अपने परिवार को भी मलेशिया ले गया और क्वालालामपुर में रहने लगा. वहां बैठे हुए भी वह भारत में मौजूद अपने शुभचिंतकों द्वारा पुलिस द्वारा स्पीक एशिया के खिलाफ की जा रही काररवाई के बारे में जानकारी लेता रहा. सन 2012 में पुलिस से बचते हुए रामसुमिरन पाल मलेशिया में सतीश के पास रुका था. सन 2013 में सतीश के परिवार के साथ वह दिल्ली लौट आया. चूंकि मुंबई पुलिस उस के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी कर चुकी थी. इसलिए वह काठमांडू तक प्लेन से आया और वहां से सड़क मार्ग से दिल्ली आया.
रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने स्पीक एशिया द्वारा कमाए गए पैसों से मुंबई, शाहजहांपुर, देहरादून आदि शहरों में प्रौपर्टी खरीदी थी. इन्होंने नेपाल और मलेशिया में भी अपने ठिकाने बना रखे थे. रामसुमिरन पाल पुलिस से बचने के लिए अपना हुलिया बदलता रहता था. वह कभी मूंछे रखता था तो कभी सिर मुंडवा लेता था. दाढ़ी बढ़ाने के साथ अचानक ही वह फ्रेंच कट में भी आ जाता था. रामसुमिरन पाल फिलहाल देहरादून में ससुराल पक्ष के लोगों के यहां रह रहा था. दूसरों की गाढ़ी कमाई ठग कर उस ने देहरादून में रीयल एस्टेट कारोबार में लगा दी थी. वहां पर उस के विला और डुप्लेक्स फ्लैट के प्रोजेक्ट चल रहे थे.
रीयल एस्टेट कारोबार के सिलसिले में ही वह दिल्ली आता रहता था. दिल्ली में वह एक फाइवस्टार होटल बनवाने के लिए जगह तलाश रहा था. 25 नवंबर, 2013 को भी वह सतीशसोहन पाल के साथ कनाट प्लेस दिल्ली आया था. उन्हें क्या पता था कि दिल्ली पुलिस भी उस के पीछे लगी है. इसी वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. रामनिवास पाल पुलिस से बचता हुआ बंगलुरू भाग गया. उस ने अपने परिजनों से फोन पर बात तक करनी बंद कर दी थी. वह व्हाइट फील्ड रोड इलाके में हुलिया और नाम बदल कर रह रहा था. वहां की एक आईटी कंपनी में वह सलाहकार के रूप पर काम कर रहा था. इस के अलावा वह मलेशिया की एक आईटी कंपनी के जरिए विभिन्न वेबसाइटों पर औनलाइन विज्ञापनों की लोकप्रियता प्रमाणपत्र वितरण संबंधी अपना बिजनेस प्लान तैयार कर रहा था.
इस कंपनी के जरिए वह देश भर में दोबारा से ठगी का मायाजाल फैलाना चाह रहा था. इस से पहले कि वह अपने मंसूबे पूरे करता, पुलिस की गिरफ्त में आ गया. रामनिवास पाल से पूछताछ के बाद पुलिस ने मुंबई की एक्सिस बैंक में खुले उस के 3 एकाउंट सीज कर दिए. 9 दिसंबर को उसे पुन: न्यायालय में पेश कर 14 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड लिया. दिल्ली क्राइम ब्रांच ने मुंबई पुलिस की कस्टडी में रामसुमिरन पाल, सतीशसोहन पाल को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर फिर से पूछताछ की. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े लोगों के खिलाफ देश भर में अब तक 800 से भी ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. पुलिस अब तक 17 ठगों को गिरफ्तार कर के 210 बैंक खाते सीज कर चुकी है. 150 के करीब संदिग्ध खातों की जांच की जा रही है. दिल्ली में रामवीर शर्मा द्वारा दर्ज कराए गए मामले के बाद क्राइम ब्रांच में स्पीक एशिया द्वारा ठगे गए लोगों के आने की संख्या बढ़ने लगी है. जिस से दिल्ली में गिरफ्तार होने वालों की संख्या बढ़ सकती है.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित