आनंदपाल की मौत के बाद राजू ठेहठ के गैंग की ताकत बढ़ गई है. वह जेल से ही अपने गैंग को संचालित करता है. राजू यह बात अच्छी तरह जानता है कि कोई भी गैंगस्टर स्वाभाविक मौत नहीं मरता. या तो वह पुलिस की गोली का निशाना बनता है या फिर अपने दुश्मन की गोली का. इसलिए अब वह किसी तरह राजनीति में आने की कोशिश कर रहा है.
राजस्थान के सीकर जिले के ठेहठ गांव का रहने वाला राजेंद्र उर्फ राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा में गहरी दोस्ती थी. दोनों पक्के दोस्त थे. वे साथ में शराब के ठेके लिया करते थे. दिनरात एकदूजे के साथ रहते थे. साथ में खाना तो होता ही था, दोनों एकदूसरे से कोई बात भी नहीं छिपाते थे. उन में गहरी छनती थी. राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा शराब के ठेके ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे. कहते हैं न कि दोस्ती के बीच जब धन बेशुमार आने लगता है, तब दोस्ती में यह धन दरार पैदा करा देता है. यही बात इन दोनों में हुई. इन में मतभेद हुए तो ये शराब के ठेके अलगअलग लेने लगे.
ऐसे में दोनों के बीच होड़ लग गई कि कौन ज्यादा पैसे कमाए. वैसे तो दोनों ही व्यवहारिक थे लेकिन जब उन के पास मोटा पैसा आया तो वे अकड़ दिखाने लगे. उन के शराब ठेकों पर अकसर मारपीट होने लगी. यानी वह रौबरुतबा कायम करने लगे. उन की दोस्ती टूटने की भी एक वजह थी. दरअसल, बलबीर बानूड़ा का रिश्ते में साला लगता था विजयपाल. विजयपाल शराब के ठेके पर सेल्समैन था. सन 2005 की बात है. विजयपाल की किसी बात को ले कर राजू ठेहठ से अनबन हो गई. राजू ठेहठ ने अपने गुर्गों के साथ विजयपाल की जबरदस्त पिटाई की, जिस से विजयपाल की मौत हो गई.
बस, उसी दिन से राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा की दोस्ती टूट गई. दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उन्होंने अपनेअपने गैंग बना कर एकदूसरे पर हमले शुरू कर दिए. विजयपाल की हत्या का बदला लेने के लिए बलबीर बानूड़ा उतावला हो रहा था. बलबीर बानूड़ा के गैंग से उन्हीं दिनों आनंदपाल आ जुड़ा. बस फिर क्या था. वे राजू ठेहठ का काम तमाम करने का मौका तलाशने लगे.
राजू ठेहठ गैंग और बलबीर बानूड़ा गैंग के गुंडे आपस में जबतब टकराने लगे. जिस गैंग का व्यक्ति मारा जाता, उस गैंग के लोग बदला ले लेते. इस तरह दोनों गैंग के बीच खूनी खेल शुरू हो गया था. गैंगवार से पुलिस की नींद उड़ गई थी. पुलिस इन सभी के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. आनंदपाल, बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहठ के ऊपर अलगअलग थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे.
राजू ठेहठ पर विजयपाल की हत्या का मुकदमा चल रहा था. आनंदपाल ने अपने मित्र की मौत का बदला जीवनराम गोदारा की हत्या कर ले लिया. इस तरह कुख्यात अपराधी राजू ठेहठ और आनंदपाल की गहरी दुश्मनी हो गई. दोनों एकूसरे के खून के प्यासे बन गए थे. सन 2012 में पुलिस ने जयपुर से बलबीर बानूड़ा को गिरफ्तार कर लिया था. इस के 8 महीने बाद ही आनंदपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों जेल में रह कर ही अपने गैंग का संचालन कर रहे थे.
आनंदपाल और राजू ठेहठ में हो गई दुश्मनी
इस के बाद सन 2013 में राजू ठेहठ भी पकड़ा गया. जेल में रहते हुए ही आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा ने सुभाष को राजू ठेहठ की हत्या के लिए तैयार कर दिया. मौका मिलने पर सुभाष ने सीकर जेल में ही राजू ठेहठ को गोली मारी, जो उस के जबड़े में लगी लेकिन वह बच गया. इस के बाद राजू ठेहठ ने इस का बदला लेने के लिए बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल पर अपने आदमियों से फायरिंग करवाई, जिस में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलबीर बानूड़ा चपेट में आ गया और जेल में ही उस की मौत हो गई.
इस वारदात को अंजाम देने वाले राजू ठेहठ के आदमी को उसी वक्त जेल में पीटपीट कर मार दिया गया था. राजू ठेहठ का भाई ओम ठेहठ भी गैंग से जुड़ा था और वह भाई राजू के कंधे से कंधा मिला कर गैंग चलाता था. इन शातिर गैंगस्टरों के एक इशारे पर धन्नासेठ लाखों रुपए दे देते थे. राजू ठेहठ और आनंदपाल का इतना खौफ था कि उन के आदमी फोन कर के सेठ लोगों को धमकी देते कि ‘सेठ जीना है तो 20 लाख शाम तक पहुंचा देना.’ सेठ की क्या मजाल कि वह इन्हें मना करे. मना करने वाले को ये लोग दूसरी दुनिया में भेज देते थे. इन की नागौर, सीकर, चुरू, बीकानेर, जयपुर, अजमेर आदि जिलों में तूती बोलती थी.
बाद में आनंदपाल पेशी के दौरान फरार हो गया और इस के बाद पुलिस द्वारा किए गए एक एनकाउंटर में वह मारा गया था. उस की मौत से राजू ठेहठ एकमात्र ऐसा गैंगस्टर था, जिस को सब से ज्यादा खुशी हुई. वह बलबीर बानूड़ा को पहले ही निपटा चुका था. अब पुलिस ने आनंदपाल को निपटा कर उसे दोहरी खुशी दे दी थी. सीकर जिले के रानोली गांव के विजयपाल हत्याकांड में आरोपी गैंगस्टर राजू ठेहठ और उस के साथी मोहन माडोता को कोर्ट ने सन 2018 में उम्रकैद की सजा सुनाई. 23 जून, 2005 को ठेहठ ने विजयपाल की हत्या कर दी थी. सीकर अपर सेशन न्यायाधीश सुरेंद्र पुरोहित ने यह सजा सुनाई.
सीकर और शेखावटी में बदमाशों के बीच गैंगवार शुरू होने के बाद थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. राजू ठेहठ को उम्रकैद की सजा के बाद लगा था कि गैंग खत्म होगा, मगर ऐसा नहीं हो सका. पुलिस सूत्रों के अनुसार जेल से ही राजू और उस का भाई ओम ठेहठ गैंग को संचालित कर रहे थे. खैर, आनंदपाल गैंग के सब से बड़े दुश्मन राजू ठेहठ की जान को खतरा था. सीकर पुलिस को आशंका थी राजू ठेहठ के दुश्मन मौका मिलते ही उसे गोलियों से छलनी कर देंगे. यही वजह थी कि सीकर पुलिस राजू ठेहठ की कोर्ट में पेशी के दौरान भारी पुलिस सुरक्षा और बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर ले जाती थी.
कांवडि़ए के रूप में किया गिरफ्तार
उस के साथ जाने वाले पुलिसकर्मी भी बुलेटप्रूफ जैकेट व आधुनिक हथियार से लैस होते थे. राजू ठेहठ और उस का साथी मोहन मांडोता को विजयपाल की हत्या के आरोप में एटीएस ने 16 अगस्त, 2013 को झारखंड के देवघर से गिरफ्तार किया था. उस समय राजू ठेहठ और मोहन मांडोता पीले कपड़े पहन कर कांवड़ ला रहे थे. एटीएस ने पकड़ कर दोनों को रानोली थाना पुलिस को सौंप दिया था.
दोनों आरोपियों ने विजयपाल की हत्या के बाद असम, बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र सहित देश के अलगअलग स्थानों पर 8 साल तक फरारी काटी. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. आखिर जेल से ही वे पेशी पर आतेजाते रहे. उन्हें उम्रकैद की सजा होने के बाद पहले सीकर और फिर जयपुर जेल में रखा गया. मगर राजू ठेहठ ने वहीं जेल से गैंग को संचालित कर रखा था.
जमानत के बाद बनाया नया ठिकाना
राजू ठेहठ ने जयपुर जेल में उम्रकैद की सजा काटने के दौरान विवादित जमीनों और सट्टा कारोबार से जुड़े बदमाशों से संपर्क बढ़ाए. सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह गैंग के लोगों को आदेश देता था. वह जयपुर को अपना नया ठिकाना बना रहा है. ऐसी जानकारी पुलिस को लगी. इसी दौरान करीब 8 साल बाद राजू ठेहठ को दिसंबर 2021 में जमानत मिली. विजयपाल की हत्या के बाद गिरफ्तार होने के दिन यानी 16 अगस्त, 2013 से राजू ठेहठ जेल में ही बंद था. उस की जमानत हुई तो वह बड़ी ठसक के साथ बाहर आया.
पुलिस उस पर कड़ी निगाह रखे थे कि वह क्या कुछ नया गुल खिलाता है. जमानत पर बाहर आ कर राजू ठेहठ ने जयपुर के महेशनगर स्थित स्वेज फार्म में बीजेपी नेता (पूर्व विधायक) प्रेम सिंह बाजोर के मकान को ठिकाना बनाया था. सुरक्षा के लिए घर पर 30 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए थे. 3 गनमैन भी राजू ठेहठ के साथ रहते थे. 6 फरवरी, 2022 को राजू ठेहठ ने गृह प्रवेश किया था. इस से पहले राजू ठेहठ ने कालोनी के गेट को गली के कोने से हटवा दिया था. यह गेट गैंगस्टर ठेहठ के जमानत पर आने के बाद से ही लौक कर दिया गया था. खास मेंबर की एंट्री के लिए ही यह गेट खोला जाता था. वहां पास के खाली प्लौट में गाडि़यां पार्क कराई जाती थीं.
सुरक्षा की दृष्टि से गेट के अलावा राजू ठेहठ ने कई तरह के और इंतजाम किए थे. मकान के चारों ओर निगाह रखने के लिए 30 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. इस के जरिए आसपास की हर छोटीबड़ी गतिविधियों पर निगाह रखी जाती थी. बिना नंबर की सफेद फौर्च्युनर में बैठ कर ही राजू ठेहठ आताजाता था. राजू ने स्वेज फार्म को ठिकाना बनाया है. इस के बारे में जब लोगों को पता चला तो पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया. हमेशा गनमेन राजू ठेहठ के साथ घूमते रहते थे. इस की वजह से आसपास के लोग उधर से निकलने से कतराते थे. ज्यादातर समय राजू ठेहठ स्वेज फार्म में ही रहता था.
मानसरोवर के मांग्यावास पर बने फार्महाउस पर लोगों से मुलाकात करता था. राजू ठेहठ ने विवादित जमीन और सट्टा कारोबार पर ध्यान देना शुरू किया.
जमीनें कब्जाने पर देने लगा ध्यान
सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए जमानत मिलने पर सीकर के बजाय जयपुर में ही रहने लगा. इन लोगों के साथ गैंग बनाने की योजना बनाने लगा. जमानत पर बाहर आते ही राजू ठेहठ गैंग को सक्रिय कर जमीनों पर कब्जे करने लगा था. मार्च 2022 के पहले हफ्ते में जयपुर के भांकरोटा थाने में मानसर खेड़ी बस्सी निवासी 57 वर्षीय रामचरण शर्मा ने एक मामला दर्ज कराया था. रिपोर्ट में बताया कि वह कालोनाइजर है. साल 2004 में रामचंदपुरा में 9 बीघा 17 बिस्वा जमीन खरीदी थी, जिस की देखभाल बनवारीलाल कर रहा था.
कुछ समय पहले मांगीलाल यादव ने जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया. थाने में आरोपी मांगीलाल के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. 24 फरवरी को बनवारी के मोबाइल पर के.के. यादव नाम के व्यक्ति ने काल कर राजू ठेहठ का आदमी बता कर मांगीलाल के खिलाफ बयान देने को ले कर धमकाया, जिस के बाद दोबारा फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम राजू ठेहठ बताया. उस ने मांगीलाल से सेटलमेंट कर रुपए दिलवाने का दबाव बनाया. पीडि़त की शिकायत पर पुलिस ने मांगीलाल, के.के. यादव, जगदीश ढाका और राजू ठेहठ के खिलाफ मामला दर्ज किया.
इस के बाद राजू ठेहठ सहित 8 साथियों को शांति भंग करने के आरोप में महेशनगर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
लग्जरी लाइफ जीने का है शौकीन
स्वेज फार्म स्थित मकान में रहने के दौरान राजू ठेहठ से कई लोग मिलने आते थे. एडिशनल कमिश्नर अजयपाल लांबा का कहना है कि राजू ठेहठ से मिलने आए लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है.
जयपुर (साउथ) एसपी मृदुल कच्छावा के नेतृत्व में गठित टीम घर में लगे सीसीटीवी फुटेजों के आधार पर मिलने आए उन सभी लोगों की पहचान कर रही है, जिस के बाद सभी लोगों की भूमिका और गतिविधियों की जांच करेगी. गैंगस्टर राजू ठेहठ लग्जरी लाइफ जीने का शौकीन है. वह महंगी कार और बाइक पर काफिले के साथ घूमता था. गैंगस्टर राजू ठेहठ को सीकर बौस के नाम से बुलाया जाने लगा है. उसे जयपुर के स्वेज फार्म में जिस मकान से पकड़ा, उस की कीमत 3 करोड़ रुपए बताई जा रही है.
राजस्थान में गैंगस्टर्स आनंदपाल सिंह और राजू ठेहठ में करीब 2 दशक वर्चस्व की लड़ाई चली थी. आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व हो गया. जेल में बंद होने के दौरान भी राजू ठेहठ के रंगदारी वसूलने के कई मामले सामने आए थे. दिसंबर 2021 में राजू ठेहठ 8 साल बाद जमानत पर जेल से बाहर आया. जमानत पर बाहर आने के बाद वह गैंग को बढ़ाने में लग गया. उस ने अपना वर्चस्व तो बना लिया. लोगों में सक्रिय रहने के लिए वह रील बना कर सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हो गया.
उस ने कभी अकेले बाइक राइडिंग के तो कभी नई लग्जरी कार चलाते हुए वीडियो शूट किए. अपने गनमैन और कारों के काफिले के साथ वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड किए. गैंगस्टर राजू ठेहठ बीजेपी नेता प्रेम सिंह बाजौर के जिस मकान में रह रहा था, वह महेशनगर थाने की चौकी से महज 100 मीटर की दूरी पर है. बीट प्रणाली की बात करें या संदिग्धों व बदमाशों को निगरानी की, महेशनगर थाना पुलिस फेल नजर आ रही है.
राजस्थान का एक बड़ा गैंगस्टर खुलेआम काफिले और अकेले रोड पर घूमता, लेकिन थाना पुलिस तो दूर सीएसटी और डीएसटी तक को पता नहीं चला. सोशल मीडिया पर सक्रिय राजू ठेहठ ने भरतपुर के जिला प्रमुख राजवीर, जयपुर के सांगानेर पंचायत समिति के ग्राम पंचायत पवालियां सरपंच रामराज चौधरी और चाकसू विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश चौधरी के साथ फोटो शेयर कर रखी हैं.
माना जा रहा है कि राजू ठेहठ राजनीति में सक्रिय अपने परिचितों से संपर्क साध कर चर्चा करता रहता है और वह राजनीति में जल्द से जल्द सक्रिय होना चाहता है. उस के राजनीतिक लोगों के साथ मीटिंग के दौरान शूट किए गए फोटो भी चर्चा में बने रहते हैं. बदमाशों की टोली के साथ घूमने, खानेपीने की फोटो भी राजू ठेहठ ने शूट कर शेयर की हैं. राजस्थान के सीकर जिले के जीणमाता के पास स्थित अरावली शिक्षण संस्थान की फरजी कार्यकारिणी बनाने के मामले में गैंगस्टर राजू ठेहठ का मामला भी सामने आया.
बताया जाता है कि संस्थान की आईडी और पासवर्ड लेने के लिए राजू ठेहठ ने संचालक को अपने घर बुला कर धमकाया था. साथ ही आईडी पासवर्ड नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में भी पुलिस को राजू की तलाश है. राजू ठेहठ की जान लेने के लिए उस के दुश्मन तैयार बैठे हैं. बलबीर बानूड़ा का बेटा और भतीजे भी मौके की तलाश में हैं.
चाचा की मौत का बदला लेने की फिराक में है पवन
इस कहानी की शुरुआत करीब साढ़े 8 साल पहले हुई थी. 14 साल का बच्चा था सुभाष. 10वीं की पढ़ाई कर रहा था. बौक्सिंग में स्टेट चैंपियनशिप खेल चुका था. स्किल्स में और निखार लाने के लिए हिसार में बौक्सिंग की ट्रेनिंग ले रहा था. इसी तरह सुभाष का बड़ा भाई पवन इलाहाबाद बैंक में नौकरी कर रहा था. 6 महीने ही हुए थे नौकरी लगे. एक महीने पहले शादी हुई थी. जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन फिर आया 23 जुलाई, 2014 का वह खौफनाक दिन. बीकानेर जेल में गोलियां चलीं और दोनों भाइयों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी.
दोनों भाइयों के नाम के आगे लगे बौक्सर और बैंकर शब्द हट गए. एक कालिख उन के नाम के साथ जुड़ गई. और दोनों भाई बन गए गैंगस्टर. इस के बाद वह अपराध के दलदल में ऐसे फंसे कि घर छूटा, सरकारी नौकरी चली गई. भूखा तक रहना पड़ा. अच्छीखासी जिंदगी बिखर गई. 23 जुलाई, 2014 को राजस्थान के बीकानेर जेल में 2 खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा पर अटैक हुआ था. बलबीर की गोली लगने से मौत हो गई थी. बलबीर बानूड़ा की मौत ने एक झटके में उस के परिवार के पैरों तले की जमीन खींच ली.
जयपुर से 135 किलोमीटर दूर सीकर में बानूड़ा गांव है. बानूड़ा गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक ढाणी में 4 घर बने हुए हैं. यहीं है बलबीर बानूड़ा का मकान. मनोहर कहानियां की टीम वहां पहुंची तो वहां बलबीर की मां और पत्नी मिलीं. जब उन से बात की तो बलबीर के घर वालों ने कहा कि परिवार ने बहुत दुख झेला है, जख्मों को कुरेदने से कोई फायदा नहीं है.
बलबीर बानूड़ा का बेटा सुभाष फरार है. पवन जोकि बलबीर का भतीजा है, वह भी अपने चाचा बलबीर की मौत का बदला राजू ठेहठ से लेना चाहता है. बलबीर का बेटा सुभाष बानूड़ा भी अपने पिता के हत्यारों राजू ठेहठ गैंग से बदला लेना चाहता है.
सुभाष के बड़े भाई पवन ने बताया, ‘‘काका बलबीर को बीकानेर जेल में मार दिया, तभी तय कर लिया था कि बदला लूंगा.’’
राजू ठेहठ राजनीति में कूदने को है लालायित
पवन का कहना है कि पुलिस ने उस पर कई झूठे मुकदमे लगा दिए हैं. 4 महीने पहले भी लड़ाईझगड़े में मुकदमा लगा दिया. इस की जांच चल रही है. कहीं कुछ भी होता है तो पवन का नाम लगा देते हैं. पवन को जेल से छूटे 21 महीने हो गए हैं. मनोज ओला पर फायरिंग की थी. जेल से आने के बाद 3 से 4 बार ही घर गया हूं. रात को घर जा कर सुबहसवेरे घर से निकलना पड़ता है. पवन के पिता प्रिंसिपल हैं. परिवार पूरी तरह से संपन्न है. खुद का भी काम ठीक चल रहा है. पवन के 2 बेटियां हैं और एक बड़ा भाई है. सुभाष का भाई विकास दुबई में रहता है. मांबाप काफी समझाते हैं, लेकिन अब क्या करें. अब तो काका की हत्या का बदला ले कर ही मानेंगे.
आनंदपाल और राजू ठेहठ गैंग में कट्टर दुश्मनी हो गई. शेखावटी में 2016 तक 15 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी थीं. आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा की मौत के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व बरकरार है. राजू ठेहठ जेल जाता है और बाहर आने के बाद फिर से गलत धंधे करता है. बस, पुलिस उसे फिर जेल में डाल देती है. राजू ठेहठ निकट भविष्य में राजनीति में आ सकता है. मगर राजू ठेहठ के इतने दुश्मन पैदा हो चुके हैं कि वे उस की जान लेने पर आमादा हैं.
गैंगस्टर का जीवन वैसे भी दुश्मन की गोली या फिर पुलिस की गोली से ही समाप्त होता है. ऐसा कोई विरला गैंगस्टर आज के युग में होगा कि वह अपनी मौत मरे.
राजू ठेहठ अपराध की दुनिया का चमकता गैंगस्टर बन कर कभी जेल तो कभी बाहर आ कर ऐशोआराम से जी रहा है. देखना होगा कि भविष्य में राजू ठेहठ क्या कुछ नया करता है. राजू ठेहठ पर ढाई दरजन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं.