बेटी की  हत्या कर के अशोक सिंह ने आरोप उस के प्रेमी के सिर मढ़ दिया. लेकिन पुलिस पूछताछ में प्रेमी ने जो कहानी सुनाई, उस से पुलिस ही नहीं गांव वाले भी हैरान रह गए. रात के यही कोई 11 बजे आगरा के थाना एतमादपुर के गांव चौगान से जिला नियंत्रण कक्ष को फोन द्वारा सूचना दी गई कि गांव के अशोक सिंह के घर हथियारों से लैस कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घुस आए थे. घर वालों ने बदमाशों से मोर्चा लिया तो बदमाश भाग निकले. लेकिन लूटपाट का विरोध करने की वजह से जातेजाते बदमाशों ने अशोक सिंह की बड़ी बेटी को गोली मार दी है, जिस की तुरंत मौत हो गई है. बाकी बदमाश तो भाग गए लेकिन एक बदमाश को उन लोगों ने बंधक बना लिया है.

खबर सनसनीखेज थी, लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम ने तुरंत इस खबर को पूरे जिले में प्रसारित कर दी.चौगान गांव थाना एतमादपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए गश्त पर निकले एतमादपुर के थानाप्रभारी अमित कुमार ने जीप में लगे वायरलेस सेट से जैसे ही लूटपाट के इरादे से की गई हत्या की खबर सुनी, तत्काल चौगान गांव के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ 6 सिपाही थे. जीप से ही उन्होंने फोन द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस चौकी छलेसर के प्रभारी टोडी सिंह को दे कर चौगान पहुंचने के लिए कह दिया था.

पुलिस को अशोक सिंह का घर ढूंढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. गोलियों की आवाज और चीखचिल्लाहट से पूरा गांव जाग चुका था. इसलिए गांव में घुसते ही गांव वालों ने पुलिस को अशोक सिंह के घर पहुंचा दिया था. गांव वालों के साथ घर के बाहर खड़े अशोक सिंह अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर के साथ पुलिस का इंतजार कर रहे थे. घर के अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं. अशोक सिंह के अन्य भाईभतीजे भी वहां मौजूद थे. अशोक सिंह के जिस मकान में डकैती पड़ी थी, वह 6-7 कमरों का एकमंजिला मकान था. उन का यह मकान चारों ओर से बंद था, लेकिन छत से हो कर मकान के अंदर आसानी से जाया जा सकता था. क्योंकि छत पर जाने की सीढि़यां बाहर से बनी थीं.

पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो देखा कि छत पर आंगन की ओर लगी रेलिंग से बंधी एक साड़ी लटक रही थी. पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि किसी बदमाश के इसी साड़ी के सहारे नीचे आ कर बाकी बदमाशों के आने के लिए दरवाजे की कुंडी खोली होगी. पूछताछ में अशोक सिंह ने बताया, ‘‘साहब, मैं अपनी पत्नी कमला देवी के साथ अपने कमरे में सो रहा था तो मेरे दोनों बेटे सचिन और विपिन अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. एक कमरे में मेरी 2 बेटियां सो रहीं थीं. चूंकि बड़ी बेटी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, इसलिए वह देर रात तक जाग कर पढ़ाई करती थी. इसी वजह से वह अकेली अलग कमरे मे सोती थी.’’

‘‘रात पौने 11 बजे के आसपास मैं ने बड़ी बेटी रुचि के चीखने की आवाज सुनी तो तुरंत कमरे से बाहर आ गया. वही आवाज सुन कर मेरे बेटे भी अपनेअपने कमरे से बाहर आ गए थे. रुचि के चीखते ही तड़ातड़ गोलियां चली थीं. उस के साथ एक बार फिर रुचि चीखी थी. गोलियां चलाने वाले मुख्य दरवाजे की ओर भाग रहे थे, क्योंकि वे जान गए थे कि अब उन का मकसद पूरा नहीं होगा. तभी मेरी नजर रुचि पर पड़ी, जो गोलियों से घायल हो कर आंगन में गिरी पड़ी थी. बाकी बदमाश तो भाग गए, लेकिन एक बदमाश नहीं भाग सका. उसे हम ने हथियारों के बल पर कमरे में बंद कर दिया है.’’

मामला काफी गंभीर था. आंगन में एक जवान लड़की की लाश पड़ी थी. उस के शरीर से अभी भी खून बह रहा था. आंगन की ओर दीवारों पर गोलियों के कुछ निशान नजर आ रहे थे. माना गया कि बदमाशों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं होंगी, जिस से कुछ गोलियां दीवारों पर जा लगी थीं. घटना की सूचना थानाप्रभारी अमित कुमार ने पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. इसी सूचना के आधार पर डीआईजी विजय सिंह मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार गांव चौगान पहुंच गए थे. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के साथ अशोक सिंह तथा घर के अन्य लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

बंधक बना बदमाश अभी तक कमरे में बंद था. उस ने अंदर से कुंडी लगा रखी थी. बदमाश के पास कोई भी हथियार हो सकता था. इस स्थिति में पुलिस ने उसे रात में निकालना उचित नहीं समझा, क्योंकि पुलिस का मानना था कि वह अपनी जान बचाने के लिए पुलिस पर भी हमला कर सकता है. पुलिस ने सुबह तक का इंतजार करना उचित समझा. सवेरा होने पर खिड़की और झरोखों से देख कर यह निश्चित कर लिया गया कि बंधक बनाए गए बदमाश के पास कोई हथियार नहीं है तो पुलिस ने उस से दरवाजा खोलने को कहा. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में जान की भीख मांगते हुए बदमाश ने दरवाजा खोल दिया. कमरे से निकला बदमाश 24-25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था. बदमाश के बाहर आते ही पुलिस उस के साथियों के नामपते पूछने लगी तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे थाने ले चलो, क्योंकि यहां मेरी जान को खतरा है. थाने में मैं सब कुछ बता दूंगा.

क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार ने बदमाश का मुंह ढंक कर जीप में बैठाया और थानाप्रभारी अमित कुमार की देखरेख में उसे थाना एतमादपुर ले जाने के लिए कहा. इस के बाद अधिकारियों की देखरेख में चौकीप्रभारी टोडी सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर बदमाशों की गोली का शिकार अशोक सिंह की बेटी रुचि की लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मेडिकल कालेज भिजवा दिया. पुलिस ने घटनास्थल से कारतूसों के खोखे भी कब्जे में ले लिए थे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर सहयोगियों के साथ चलने लगे तो उन्होंने अशोक सिंह से थाने चल कर रिपोर्ट लिखवाने को कहा. तब उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘सर, आप चलिए. मैं घर वालों को समझाबुझा कर थोड़ी देर में आता हूं.’’

अशोक सिंह का यह जवाब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की समझ में नहीं आया. जिस की बेटी को बदमाशों ने मार दिया था और एक बदमाश पकड़ा भी गया था. इस के बावजूद भी वह आदमी मुकदमा दर्ज कराने में हीलाहवाली कर रहा था. वह उसे साथ ले जाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘देखो, रिपोर्ट जितनी जल्दी लिख जाएगी, पुलिस उतनी ही जल्दी काररवाई शुरू कर देगी. तुम्हारी बेटी के हत्यारों को पकड़ना भी है. बिना रिपोर्ट लिखे पुलिस कोई भी काररवाई करने से रही. इसलिए जितनी जल्दी हो सके तुम्हें थाने चल कर रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए.’’

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की इस बात का अशोक सिंह पर कुछ असर पड़ा. उस ने अपने भाइयों, पत्नी और बेटों से कुछ सलाहमशविरा किया और फिर पुलिस के साथ थाने आ गया. उसी के साथ गांव के तमाम अन्य लोग भी उस बदमाश को देखने थाने आ गए थे. पुलिस ने पहले तो गांव वालों को थाना परिसर से बाहर निकाला. क्योंकि वे बदमाश को सामने लाने की बात कर रहे थे. साथ ही वे यह भी कह रहे थे कि जल्दी रिपोर्ट लिख कर अशोक सिंह को जाने दो. गांव वालों को बाहर निकाल कर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की उपस्थिति में पकड़े गए बदमाश से उस के साथियों के बारे में पूछा गया तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर पुलिस दंग रह गई.

पता चला, पकड़ा गया युवक बदमाश नहीं, उसी गांव का रहने वाला शेर सिंह था. उस ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार सारा मामला ही पलट गया था. उस के बताए अनुसार रुचि की हत्या का मुकदमा बदमाशों के बजाय उस के पिता अशोक सिंह सिकरवार तथा उन के बेटों के खिलाफ दर्ज कर के अशोक सिंह को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था. जब इस बात की जानकारी थाने आए गांव वालों को हुई तो वे भी हैरान रह गए क्योंकि अभी तक उन्हें ही पता नहीं था कि पकड़ा गया बदमाश कौन था और अशोक सिंह के घर में उस रात क्या हुआ था. दरअसल पुलिस ने कमरे में बंद शेर सिंह को जब बाहर निकाला था, तो उस के मुंह को ढक दिया था, इसलिए गांव वाले उस समय उसे देख नहीं पाए थे.

सच्चाई का पता चलने पर पूरा गांव हैरान रह गया था. आइए अब जानते हैं कि उस रात ऐसा क्या हुआ था कि पुलिस वाले ही नहीं, अशोक सिंह सिकरवार के समर्थन में आए लोग भी हैरान थे. बंधक बनाए गए बदमाश यानी शेर सिंह ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार यह घटना कुछ इस प्रकार थी. उत्तर प्रदेश की ताजनगरी आगरा से यही कोई 30 किलोमीटर दूरी पर बसा है गांव चौगान. ठाकुर बाहुल्य इस गांव के किसान, जिन के पास अपने खुद के खेत थे, यमुना एक्सपे्रसवे का निर्माण होने से उन में से कुछ करोड़पति बन गए हैं. इस की वजह यह है कि 165 किलोमीटर लंबा यमुना एक्सप्रेसवे, जो आगरा से ग्रेटर नोएडा तक बना है, में जिन गांवों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया था, उन्हीं गावों में एक चौगान भी था.

यमुना एक्सप्रेस वे के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाने लगा था तो किसानों ने मिलने वाले मुआवजे के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. परिणामस्वरूप उन्हें मुंहमांगा मुआवजा मिला था, जिस से जिन किसानों की ज्यादा जमीनें गईं वे रातोंरात करोड़पति बन गए. ऐसे ही लोगों में चौगान गांव के भी 2 परिवार थे. उन में से एक था ठाकुर रामदयाल सिंह सिकरवार का परिवार तो दूसरा था अमर सिंह का. अमर सिंह की लगभग 20 साल पहले मौत हो चुकी थी. वर्तमान में उस के 4 बेटे थे, जो करोड़पति बन गए थे. वैसे तो अशोक सिंह और अमर सिंह के घरों के बीच मात्र 100 कदम की दूरी रही होगी, लेकिन उन के बीच कोई आपसी सामंजस्य नहीं था. इस की वजह यह थी कि रामदयाल सिंह सिकरवार जहां ठाकुर थे, वहीं अमर सिंह दलित. शायद इसीलिए दोनों परिवार रहते भले ही आसपास थे, लेकिन उन में दुआसलाम तक नहीं थी.

अमर सिंह अपने पीछे 4 बेटों और 2 बेटियों का भरापूरा परिवार छोड़ गया था. उस के बेटों में शेर सिंह सब से छोटा था. पढ़ाई में तो वह ठीकठाक था ही, खेलकूद में भी अव्वल था. वह क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता था, इसीलिए कालेज की क्रिकेट टीम का वह कप्तान था. जिस विमला देवी इंटर कालेज में वह पढता था, उसी कालेज में उस के पड़ोस में रहने वाले अशोक सिंह सिकरवार की बेटी रुचि उर्फ रश्मि भी पढ़ती थी. उसे भी खेलकूद में रुचि थी, इसलिए वह भी स्कूल के खेलों में भाग लेती रहती थी. भले ही रुचि और शेर सिंह के परिवारों में कोई सामंजस्य नहीं था, लेकिन एक ही कालेज में पढ़ने की वजह से शेर सिंह और रुचि में पटने लगी थी.

साथ आनेजाने और खेल के मैदान में मिलते रहने की वजह से रुचि और शेर सिंह के बीच कब प्यार पनप उठा, उन्हें पता ही नहीं चला. हंसीमजाक और छेड़छाड़ में उन का यह प्यार बढ़ता ही गया. जब उन्हें लगा कि मिलने के दौरान वे पूरी बातें नहीं कर पाते तो उन्होंने बातें करने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग करना शुरू कर दिया. फिर तो उन के बीच रात को लंबीलंबी बातें होने लगीं. शेर सिंह के पास अपनी मोटरसाइकिल थी, इसलिए रुचि कभीकभार उस की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ आगरा घूमने जाने लगी.

ऐसे में ही रुचि और शेर सिंह का प्यार शारीरिक संबंध में बदल गया. दोनों घर के बाहर तो मिलते ही थे, मौका देख कर रुचि शेर सिंह को अपने घर भी बुला लेती थी. इस में मोबाइल फोन उन की पूरी मदद करता था. रुचि जब भी घर में अकेली होती, फोन कर के शेर सिंह को बुला लेती. रुचि की दोनों बहनें एक ही कमरे में एक साथ सोती थीं. जबकि रुचि पढ़ाई के बहाने अलग कमरे में अकेली ही सोती थी. क्योंकि अकेली होने की वजह से रात में उसे शेर सिंह से बातें करने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

एक समय ऐसा आ गया रुचि रात को घर वालों की उपस्थिति में ही रात को शेर सिंह को अपने घर बुलाने लगी. उसी बीच गांव के किसी आदमी ने रुचि के पिता अशोक सिंह सिकरवार को बताया कि उस ने उन की बड़ी बेटी रुचि को गांव के ही शेर सिंह की मोटरसाइकिल पर बैठ कर शहर में घूमते देखा है. अशोक सिंह के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. जिस घरपरिवार से कोई राहरीति न हो, उस घर के लड़के के साथ बेटी के घूमने का मतलब वह तुरंत समझ गए उन की बेटी गांव के ही दलित लड़के के साथ घूम रही है. यह सुन कर उन का खून खौल उठा.

अशोक सिंह ने तुरंत अपने भाइयों को बुलाया और दरवाजे पर कुर्सियां डाल कर बैठ गए. थोड़ी देर बाद रुचि लौटी तो सिर झुकाए सीधी घर की ओर चली जा रही थी. उस के हावभाव से ही लग रहा था कि वह कोई गलत काम कर के आई है और घर वालों से नजरें छिपा रही है. रुचि घर में घुसती, उस के पहले ही अशोक सिंह ने कहा, ‘‘रुचि, जरा इधर तो आना.’’

रुचि उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जब उस की नजरें पिता से मिलीं तो उस की तो जैसे हलक ही सूख गई.नजरों से ही उस ने भांप लिया कि पिता गुस्से में हैं. वह रुचि से कुछ कहते, उन के भाई ने कहा, ‘‘इसे जाने दो. इस से घर के अंदर चल कर बात करेंगे.’’

रुचि चुपचाप घर चली गई. लेकिन वह समझ गई कि आज का दिन उस के लिए ठीक नहीं है. उस की यह आशंका तब और बढ़ गई, जब उस के घर के अंदर आने के 10 मिनट बाद ही बाहर से शेर सिंह के रोनेचीखने की आवाजें आती उसे सुनाई दीं. दरअसल शेर सिंह रुचि को गांव के बाहर अपनी मोटरसाइकिल से उतार कर रुक गया था, जिस से गांव वालों को यही लगे कि दोनों आगेपीछे आए हैं. रुचि घर पहुंच गई होगी, यह सोच कर वह अपने घर जाने लगा तो अशोक सिंह ने आवाज दे कर उसे बुला लिया. वह जैसे ही उन के पास पहुंचा, तीनों भाई लाठीडंडा ले कर उस पर पिल पड़े. वह बचाव के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन किसी की क्या कहें, उस के भाइयों तक की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे उसे बचाने आते.

अशोक सिंह और उन के भाई मारपीट कर थक गए तो उस के भाइयों से कहा कि इसे उठा ले जाओ. भाइयों ने शेर सिंह को घर ला कर इस मारपीट की वजह पूछी तो उस ने सच न बता कर कहा कि वह उधर से गुजर रहा था, तभी अशोक ने उसे रोक लिया और भाइयों के साथ पिटाई करने लगा. शेर सिंह के भाई भी पैसे वाले थे, उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के बजाय शेर सिंह को साथ ले जा कर पुलिस चौकी पहुंचे और अशोक सिंह तथा उस के भाइयों के खिलाफ मारपीट की तहरीर दिलवा दी.

पुलिस ने अशोक सिंह को चौकी पर बुलवा कर मारपीट की वजह पूछी तो अशोक सिंह ने जो बताया, उस से शेर सिंह के भाइयों को भी सच्चाई का पता चल गया. सच्चाई पता चलने पर पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई इसलिए नहीं कि गांव की बात है, आपस में मामला सुलझ जाएगा. पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो शेर सिंह को गुस्सा आ गया. इतनी मारपीट के बाद उसे रुचि से दूर हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शेर सिंह इस मारपीट का बदला रुचि से शारीरिक संबंध बना कर लेने लगा.

रुचि बीएससी सेकेंड ईयर में पढ़ रही थी. जबकि शेर सिंह ने पढ़ाई छोड़ कर छलेसर चौराहे पर जनरल स्टोर की दुकान खोल ली थी. अशोक सिंह ने अपने मकान की छत पर आनेजाने के लिए घर के बाहर से सीढि़यां बनवा रखी थीं. इसलिए उन की छत पर जाना तो आसान था, लेकिन घर के अंदर उतरने की कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए शेर सिंह ठंड की रातों में रुचि से मिलने उस के घर जाता था तो बाहर से बनी सीढि़यों से छत पर चढ़ जाता था. नीचे उतरने के लिए रुचि नीचे से साड़ी या रस्सी फेंक देती थी, जिसे आंगन की ओर बनी रेलिंग में बांध कर शेर सिंह नीचे आंगन में उतर आता था. उस के बाद रुचि उसे अपने कमरे में ले कर चली जाती थी.

काम होने के बाद शेर सिंह जिस तरह आता था, उसी तरह वापस चला जाता था. लेकिन यह सब ठंडी की रातों में ही हो पाता था. गर्मी के दिनों में सब बाहर सोते थे, इसलिए इस तरह दोनों का मिलना नहीं हो पाता था. इस बार भी ठंड आते ही जब सभी लोग अपनेअपने कमरों में सोने लगे तो रुचि शेर सिंह को रात में अपने घर बुलाने लगी. 11 नवंबर, 2013 की रात को भी जब रुचि को लगा कि घर के सभी लोग सो गए हैं तो उस ने फोन कर के शेर सिंह को आने के लिए कह दिया. गांवों में ज्यादातर लोग शाम को जल्दी खा कर सो जाते हैं. इसलिए गांवों में रात 10 बजे तक सन्नाटा पसर जाता है. गांव में सन्नाटा पसरते ही शेर सिंह अशोक सिंह के घर पहुंच गया. रुचि उस का इंतजार कर ही रही थी इसलिए उस के छत पर आते ही उस ने साड़ी फेंक दी. शेर सिंह रेलिंग में साड़ी बांध कर आंगन में उतरा और रुचि के साथ उस के कमरे में चला गया.

रुचि और शेर सिंह कपड़े उतार कर शारीरिक संबंध के तैयार ही हुए थे कि उन्हें आंगन में किसी की पदपाप सुनाई दी. उन्हें लगा कि कोई लघुशंका के लिए उठा होगा. वे सांस रोक कर उस के वापस कमरे में जाने का इंतजार करने लगे. लेकिन तब दोनों सहम उठे, जब अशोक सिंह की आवाज उन के कानों में पड़ी. वह अपने दोनों बेटों, सचिन और विपिन को आवाज दे कर बाहर आने के लिए कह रहे थे. सचिन और विपिन के बाहर आते ही अशोक सिंह ने रुचि को आवाज दे कर कमरे का दरवाजा खोलने को कहा. अब रुचि और शेर सिंह को समझते देर नहीं लगी कि उन्हें शेर सिंह के कमरे में होने की शंका हो गई है. रुचि और शेर सिंह जिस स्थिति में थे, उस स्थिति में दरवाजा नहीं खोल सकते थे. दोनों ने जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे. दरवाजा नहीं खुला तो अशोक सिंह ने दरवाजे पर जोर से लात मार कर एक बार फिर रुचि को दरवाजा खोलने को कहा.

अब रुचि के पास दरवाजा खोलने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. डर से कांप रही रुचि ने दरवाजा खोला और तेजी से बाहर की ओर भागी. उस के बाहर निकलते ही शेर सिंह ने फुरती से एक बार फिर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. बाहर जाते ही रुचि ने कहा, ‘‘पापा, उसे कुछ मत कहना. उस की कोई गलती नहीं है.’’

रुचि का इतना कहना था कि तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं. उसी के साथ रुचि के चीखने की आवाज शेर सिंह को सुनाई दी. चीखें ऐसी थीं, जिन्हें सुन कर शेर सिंह को समझते देर नहीं लगी कि वे गोलियां रुचि के ऊपर दागी गई थीं. यह जान कर शेर सिंह का पेशाब निकल गया. रुचि को गोली मारने के बाद अशोक सिंह ने एक बार फिर कमरे का दरवाजा खुलवाने की कोशिश की. लेकिन शेर सिंह जानता था कि उस के बाहर निकलते ही उसे भी गोली मार दी जाएगी. इसलिए उस ने दरवाजा नहीं खोला. उस के बाद ठोकर मार कर दरवाजा तोड़ने की कोशिश की गई. लेकिन दरवाजा मजबूत था, इसलिए टूटा नहीं.

कमरे के अंदर बैठा शेर सिंह मौत का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के पास मोबाइल तो था, लेकिन बैटरी खत्म हो जाने की वजह से वह बंद हो गया था. इसलिए वह भाइयो को फोन कर के इस बारे में कुछ बता भी नहीं सकता था. वह मौत का इंतजार कर ही रहा था कि तभी पकड़ोपकड़ो की आवाजें आने लगीं. यह शोर सुन कर गांव के कुछ लोग अशोक सिंह के घर के अंदर आ गए तो उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘कुछ हथियारबंद बदमाश घर के अंदर आ कर लूटपाट करने की कोशिश कर रहे थे. बाकी लोग तो सो रहे थे, लेकिन रुचि जाग रही थी. उस ने विरोध किया तो उसे गोली मार कर बदमाश भाग गए. लेकिन मैं ने विपिन और सचिन की मदद से एक बदमाश को कमरे में बंद कर दिया है.’’

गांव वालों की सलाह पर अशोक सिंह ने सौ नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. गांव वालों के आ जाने और पुलिस को सूचना देने की बात सुन कर कमरे में बंद शेर सिंह की जान में जान आई. उसे लगा कि अब जो करेगी, पुलिस करेगी. ये लोग उस का कुछ नहीं करेंगे. सूचना पा कर पुलिस अशोक सिंह के घर पहुंची और काररवाई कर के शेर सिंह को थाने ले आई. थाने में की गई पूछताछ में जब उस ने पुलिस को सच्चाई बताई तो सारा मामला ही उलट गया. इस के बाद थानाप्रभारी अमित कुमार ने अशोक सिंह को एकांत में बुला कर जब कहा कि उन्हें सारी सच्चाई का पता चल गया है, इसलिए उन के लिए अच्छा यही होगा कि वह स्वयं ही सारी सच्चाई बता दें.

मजबूरन अशाक सिंह को सच बताना पड़ा. अशोक सिंह ने जो बताया उस के अनुसार, रात में जब वह लघुशंका के लिए उठे तो उन्हें रेलिंग से बंधी साड़ी दिखाई दी. पहले तो उन्हें संदेह हुआ कि कहीं प्रेमी के विछोह में रुचि फांसी लगा कर आत्महत्या तो नहीं करना चाहती. लेकिन जब वह रुचि के कमरे के पास पहुंचे तो उन्हें कमरा अंदर से बंद मिला. इस बात पर उन्हें ताज्जुब हुआ, क्योंकि रुचि का कमरा अंदर से कभी बंद नहीं रहता था. कमरे के अंदर से बंद होने और साड़ी के लटकने से उन्हें संदेह हुआ तो उन्होंने बेटों को आवाज दी.

दोनों बेटों के साथ अशोक सिंह की पत्नी कमला देवी भी आंगन में आ गई थीं. साड़ी को उस तरह लटकती देख सभी हैरान थे. इस के बाद अशोक सिंह ने रुचि के कमरे की ओर इशारा कर के कहा कि यह दरवाजा अंदर से बंद है. उन्हें शक है कि अंदर रुचि के अलावा भी कोई है. इस के बाद अपना लाइसेंसी रिवाल्वर निकाल कर अशोक ने दरवाजा खोलने के लिए रुचि को आवाज दी. बेटे भी तमंचे लिए हुए थे. जब रुचि ने दरवाजा नहीं खोला तो उन्होंने दरवाजे पर लात मारी. पिता को गुस्से में देख कर रुचि कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर की ओर भागी. शायद उस के सलवार का नाड़ा ठीक से बंधा नहीं था, इसलिए भागते समय वह नीचे गिर गया. रुचि को उस हालत में देख कर अशोक सिंह समझ गए कि अंदर क्या हो रहा था. फिर क्या था, बापबेटों का दिमाग घूम गया और उन्होंने हाथ में लिए हथियारों से रुचि पर गोलियां चला दीं. कुछ गोलियां रुचि को लगीं तो कुछ दीवारों पर जा लगीं.

रुचि को खत्म कर के अशोक सिंह और उन के बेटों का ध्यान रुचि के कमरे की ओर गया, क्योंकि कमरा एक बार फिर अंदर से बंद हो गया था. वे समझ गए कि कमरे के अंदर जो उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है. एक बार फिर कमरा खोलवाने की कोशिश की गई, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. कमरे का दरवाजा मजबूत था, इसलिए जल्दी टूट भी नहीं सकता था. गोलियों की आवाजें सुन कर गांववाले जाग गए थे. वे शोर मचाते हुए अशोक सिंह के घर की ओर दौड़ पडे़ थे. उस स्थिति में अशोक सिंह ने घर वालों के साथ मिल कर तुरंत एक योजना बनाई. फिर उसी योजना के तहत वे जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगे कि लूटने के उद्देश्य घर में घुस आए बदमाशों ने विरोध करने पर उन की बड़ी बेटी रुचि को गोली मार दी है.

गांव वालों से पूछने पर जब उन्होंने बताया कि हथियारों के बल पर एक बदमाश को बंधक बना लिया है तो गांव वालों ने उन से 100 नंबर पर फोन करा कर घटना की सूचना दिला दी. अशोक सिंह ने होशियारी तो बहुत दिखाई, लेकिन शेर सिंह ने जब सारी सच्चाई पुलिस को बता दी तो वह खुद ही अपने बिछाए जाल में फंस गए. अशोक सिंह से पूछताछ के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारों की जगह अशोक सिंह और उन के बेटों, सचिन और विपिन का नाम दर्ज कर के मामले में शस्त्र अधिनियम की धाराएं और बढ़ा दीं. पुलिस ने अशोक सिंह को तो गिरफ्तार कर ही लिया था, विपिन और सचिन को गिरफ्तार करने गांव चौगान पहुंच गई.

लेकिन विपिन और सचिन को इस बात की भनक लग गई थी, इसलिए पुलिस के पहुंचने के पहले ही दोनों भाई फरार हो गए थे. अशोक सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने वे हथियार बरामद कर लिए, जिन से रुचि की हत्या हुई थी. इस के बाद पुलिस ने अशोक सिंह को अदालत मे पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस सचिन और विपिन की तलाश कर रही थी. कथा लिखे जाने तक उन का कुछ पता नहीं चला था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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