सवारियों से खचाखच भरी बस गहरी खाई में गिरी तो यात्रियों की चीखों से घाटी गूंज उठी. इस हादसे में 38 यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी और 25 गंभीर रूप से घायल हो गए. आखिर इस हादसे की असली वजह क्या रही?

बराथ गांव जिला अल्मोड़ा का निवासी विनोद 4 नवंबर, 2024 की सुबह जल्दी से उठ कर नहाधो कर तैयार हो गया था. उस ने अपना बैग तैयार किया और नाश्ता करने लगा. असल में विनोद को काशीपुर जिला ऊधमसिंह में अपने चचेरे भाई चंद्रशेखर की तेरहवीं के कार्यक्रम में शामिल होने जाना था. विनोद का दोपहर में बराथ गांव से निकलने का प्रोग्राम था, लेकिन सुबह 5 बजे विनोद के ताऊ के बेटे संतोष का हल्द्वानी से उस के पास फोन आ गया. संतोष हल्द्वानी में स्थित एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत था.

”भाई साहब, मैं भी तेरहवीं में शामिल होने आ रहा हूं. आप ऐसा करना सुबह 7 बजे की पहली बस में रामनगर आ जाना. मैं हल्द्वानी से अपनी कार से रामनगर आ जाऊंगा. उस के बाद हम दोनों भाई साथसाथ कार में काशीपुर चले जाएंगे.’’ संतोष ने फोन पर कहा.

”संतोष, पहले तो तुम्हें छुट्टी नहीं मिल रही थी?’’ विनोद ने पूछा.

”भाई साहब, मैं ने पहले तो कहा था, परंतु रात को ही मैनेजर साहब आ गए थे और फिर उन्होंने सुबह फोन कर के मुझे 2 दिन की छुट्टी दे दी तो आप को मैं ने सुबहसुबह तैयार रहने को कह दिया. सौरी भाई साहब, अब मैं भी तैयार हो कर औफिस जा रहा हूं, कुछ पेंडिंग काम निपटा कर मैं रामनगर के लिए निकल पड़ूंगा. अच्छा प्रणाम भाई साहब!’’ कहते हुए संतोष ने काल डिसकनेक्ट कर दी. विनोद ने जल्दीजल्दी नाश्ता किया और 4 नवंबर, 2024 की सुबह 7 बजे अल्मोड़ा से रामनगर जाने वाली बस संख्या यूके 12पीए 0061 में बैठ गया. बस में अभी तक 10-12 सवारियां बैठ चुकी थीं. विनोद को आगे की सीट सदा पसंद थी, इसलिए वह ड्राइवर के सामने वाली सीट पर बैठ गया. अपना बैग उस ने अपनी गोदी में रख लिया. बस आगे बढऩे लगी तो रास्ते में चढऩे वाले लोग बैठते जा रहे थे.

जब बस पूरी तरह भर गई तो रास्ते में चढऩे वाले लोग बस में खड़े होने लगे. रात को विनोद देर से सोया था और सुबह पहली बस में जाने के कारण उसे जल्दी उठना पड़ा था. इसलिए उस की आंखें मुंदने लगीं. कभी दाएं तो कभी बाएं उस की गरदन लटकती जा थी. आखिरकार, वह अपना मुंह नीचा कर के बैग पर सिर झुका कर सो गया. तभी उसे मरचुला के कूपी बैंड के पास एक बहुत तेज आवाज सुनाई पड़ी. उसे सपने में ऐसा लगा कि अंधेरा ही अंधेरा छा गया हो. तभी उसे लगा कि वह तेजी से कहीं गिर रहा हो. कहते हैं, जाको राखे साइयां मार सके न कोय, विनोद के साथ भी शायद कुछ ऐसा हुआ था. जब बस गहरी खाई में जाने से पहले जमीन की तरफ आई तो विनोद का जूता स्टीयङ्क्षरग के निचले हिस्से में फंस गया और विनोद नींद की अवस्था में बस की खिड़की को तोड़ते हुए एक घनी झाड़ी के बीच गिर गया.

ताज्जुब की बात तो यह थी कि जब वह झाड़ी में गिरा तो उस का बैग और मोबाइल पूरी तरह से सुरक्षित था. करीब डेढ़ घंटे के बाद विनोद को होश आया तो उस के सारे शरीर में दर्द की लहरें उठ रही थीं. उस ने अपनी स्थिति देखी तो वह घनी झाडिय़ों के बीच में पड़ा हुआ था.

समय पर क्यों नहीं मिली सहायता

लगभग आधा घंटा तो वह उठने की कोशिश करता रहा, मगर विनोद का पूरा शरीर इतना सुन्न सा हो चुका था कि उस को पूरी दुनिया घूमती सी नजर आ रही थी. तभी उस की नजर अपने बैग पर पड़ी जोकि उस से थोड़ी दूर उसी झाड़ी में था, जहां पर विनोद गिरा हुआ था. वहां से मोबाइल तक पहुंचने में भी उसे काफी वक्त लग गया. उस ने मोबाइल खोला तो वह पूरी तरह सुरक्षित था. खाई में एक झाड़ी के बीच से उस ने अपनी पत्नी अनीता को फोन कर के बताया कि मैं खाई में एक झाड़ी के बीच में गिरा हुआ हूं. मुझ से न तो चला जा रहा है और न ही उठा जा रहा है.

अनीता भी यह खबर सुन क र घटनास्थल पर आ चुकी थी और अपने पति विनोद को ढूंढ रही थी. अनीता ने विनोद को देख लिया तो उस ने वहां पर मौजूद लोगों से पति को उठाने का निवेदन किया. वहां पर अब तक आसपास के गांव के सैकड़ों लोगों के अलावा पुलिस की टीमें भी पहुंच चुकी थीं, परंतु वहां की स्थिति कुछ ऐसी थी कि नदी में बहुत सारे लोग घायल अवस्था में या मृत पड़े थे. इसलिए अधिकतर लोग नीचे नदी से ही मृतकों और घायलों को करीब डेढ़ सौ फीट ऊपर लाने की कोशिशों में लगे हुए थे.

विनोद की पत्नी अनीता ने रामनगर के पीरूमदारा में अपनी ननद को फोन कर वहां से गाड़ी बुलवा ली. इस बीच एक घंटे के बाद 2-3 लोगों की सहायता से अनीता अपने पति विनोद को ले कर करीब 50 फीट ऊपर सड़क पर ला चुकी थी. बहन भी अपनी गाड़ी ले कर वहां 2-3 घंटे में पहुंच गई थी. उस के बाद अनीता अपनी ननद की गाड़ी में विनोद को ले कर रामनगर के सरकारी अस्पताल पहुंच गई. अब तक मरचुला से बुरी तरह घायल लोग वहां लाए जा चुके थे. विनोद को अस्पताल के जनरल वार्ड में रखा गया, जबकि उस की हालत खराब थी. विनोद के अलावा जनरल वार्ड में ऐसे भी काफी मरीज थे, जोकि बेहोशी की अवस्था में थे. लेकिन वहां पर अधिकतर लोग अपने फोटो खिंचवाने में ही व्यस्त थे.

तभी एक शोर सुनाई पड़ा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रामनगर चिकित्सालय में मरीजों का देखने बस पहुंचने ही वाले हैं. उन का हैलीकौप्टर रामनगर में लैंड हो चुका था. विनोद और वहां पर अन्य 4 लोगों की किस्मत अच्छी रही कि मुख्यमंत्री के भय से अस्पताल प्रशासन ने विनोद और 4 अन्य लोगों को आईसीयू में भरती कर उन का इलाज करना शुरू कर दिया. इस तरह विनोद के पैर पर प्लास्टर चढ़ाया गया. उस के बाएं पैर की 3 अंगुलियों का औपरेशन करवा कर उस में तार डाली गई. उस के सिर के पीछे 3 टांके लगाए गए और उसे नया जीवन मिला.

दिवाली की छुट्टियां समाप्त होते ही लोग हंसीखुशी महानगरों में वापस अपनेअपने काम पर लौट रहे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि 4 नवंबर, 2024 की सुबह अगले कूपी मोड़ पर मौत उन का इंतजार कर रही है. उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकास खंड के मरचुला में गढ़वाल मोटर यूजर्स की बस संख्या यूके 12पीए 0061 सोमवार की सुबह करीब 7 बजे बराथ गांव से होते हुए हुए रामनगर की ओर आ रही थी. मरचुला के कूपी बैंड के पास पहुंचते ही जैसे ही चालक ने बस को मोडऩे का प्रयास किया, बस बेकाबू हो कर डेढ़ सौ फीट गहरी खाई में जा गिरी. 43 सीट की क्षमता वाली इस बस में कुल 63 लोग सफर कर रहे थे.

इस दर्दनाक बस हादसे की खबर प्रशासन को तो बाद में मिली, लेकिन इस से पहले ही आसपास गांव में मौजूद स्थानीय युवक घटनास्थल पर पहुंच गए और उन्होंने अपने स्तर पर राहत एवं बचाव कार्य शुरू कर दिया. युवक देवदूत बन कर सामने आए, जिन्होंने बुरी तरह से घायलों को निकाल कर अस्पताल पहुंचाना शुरू किया. अगर ये लोग वहां पर समय पर नहीं पहुंचते तो मरने वालों की संख्या और भी अधिक हो सकती थी.

कुछ देर बाद घटनास्थल पर शासनप्रशासन के नुमाइंदे भी पहुंच चुके थे. मौके पर मंजर बेहद ही भयावह था. घटनास्थल पर शव कटे, बिखरे, छितरे हुए थे और इधरउधर लहूलुहान हालत में घायल कराह रहे थे. इन सब को देख कर वहां पर मौजूद लोगों की रूहें भी कांप उठी थीं. सामान्यजन तो अपने आंसू रोक नहीं पा रहे थे. वहीं कई अधिकारी भी रुआंसे से नजर आ रहे थे.

बारबार क्यों हो रहे हैं खतरनाक हादसे

बस जब खाईं में गिरी तो नीचे एक बड़े से पत्थर से टकरा कर वह बुरी तरह से पिचक गई. इस में सवार कई यात्री बस के नीचे दब गए. मौके पर पहुंचे लोगों ने अपने प्रयासों से बस के नीचे दबे लोगों को निकालने का बहुत प्रयास भी किया, लेकिन असफल रहे. करीब एक घंटे बाद जब एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची तो जवानों ने कटर के जरिए बस की चेसिस काट कर शवों को बाहर निकाला. स्थानीय लोगों का कहना था कि यदि हादसे के तुरंत बाद कटर मिल जाता तो और भी कई यात्रियों को बचाया जा सकता था. बस में फंसे कई यात्रियों ने बाहर निकलने की आस में दम तोड़ दिया.

इस हादसे में 38 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और 25 लोग बुरी तरह घायल हो गए. घायलों को पहले एंबुलेंस से रामनगर चिकित्सालय ले जाया गया और जिन घायलों की हालत नाजुक थी, उन्हें एयर लिफ्ट कर के एम्स ऋषिकेश और हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में ले जाया गया.

इस सड़क हादसे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख जताते प्रधानमंत्री राहत कोष से दुर्घटना में मृत प्रत्येक व्यक्ति के निकट संबंधी को 2-2 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए देने की घोषणा की. वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख रुपए और घायलों को 1-1 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की.

उत्तराखंड में सड़क हादसे कोई नई बात नहीं, लेकिन बारबार होने वाले इन हादसों का जिम्मेदार आखिर कौन है? वास्तव में ये वही लोग हैं जो हर बार मृतक या हमेशा के लिए अपाहिज परिवारों के जख्मी दिलों पर मुआवजे का मरहम लगाते हैं और उस के बाद घटना का दोष किसी और पर मढ़ कर चुपचाप निकल जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक हर रोज 3 लोग सड़क हादसों में जान गंवा देते हैं. पिछले वर्ष 2023 तक उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद 20 हजार से भी अधिक लोग राज्य में हुए सड़क हादसा में अपनी जानें गंवा चुके हैं.

उत्तराखंड की पहाडिय़ों में आखिर कब तक मरते रहेंगे लोग

अल्मोड़ा जिले के मरचूला में हुए इस भीषण बस हादसे के अब तक मुख्य 6 कारण सामने आए हैं. हालांकि कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत के नेतृत्व में परिवहन मुख्यालय गहराई से जांचपड़ताल में जुट गया है, जिस की अंतिम रिपोर्ट आने के बाद ही ठोस कारण स्पष्ट हो पाएंगे. पहला कारण वाहन का ओवर लोड होना, दूसरा कारण वाहन की कमानी टूटना, तीसरा कारण सड़क का संकरी व गड्ïढायुक्त होना, चौथा कारण क्रैश बैरियर का नहीं होना, पांचवां कारण सवारियों के हिसाब से वाहनों का कम होना और छठां कारण वाहन की परिवहन विभाग, पुलिस चौकी व यूजर्स द्वारा चैकर्स द्वारा जांच न किया जाना रहा है.

एक और मुख्य बात यहां पर सामने आई है कि पिछले 2 साल में लोक निर्माण विभाग को दुर्गम पहाडिय़ों में क्रैश बैरियर लगाने के लिए 7 करोड़ रुपए दिए गए थे, लेकिन इस के बावजूद भी अब तक कै्रश बैरियर नहीं लगाए गए.

वैसे देखा जाए तो यह मात्र एक घटना नहीं है, बल्कि उन अनकही चीखों का क्रंदन है, जो इन पहाड़ी वादियों में दिनप्रतिदिन गूंजता रहता है. ये सारी चीखें, जो पहाड़ के सन्नाटे में दबी हैं, क्या हमेशाहमेशा के लिए ऐसी ही मौन रहेंगी? हमारा यह खोखला सिस्टम यानी कि राजनीति या समाज के गलियारों में इन बेबस चीखों और आवाजों को कभी कोई सुन भी पाएगा अथवा केवल उन्हें इन्हीं दर्दों में रहने देगा?

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