कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश के अधिकांश हिस्सों में लौकडाउन और कर्फ्यू के कारण तमाम तरह की गतिविधियां लगभग बंद पड़ी थीं. इस दौरान पुलिस अपराध नियंत्रण की जगह या तो लोगों की मदद करने में जुटी थी या लौकडाउन का पालन कराने और लोगों को कोरोना संक्रमण से जागरुक करने में.

लेकिन इस दरम्यान कुछ ऐसा हुआ कि 30 मई, 2021 को दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पुलिस मुख्यालय में एक खास मकसद से एक आपात बैठक बुलानी पड़ी. इस बैठक में चुनिंदा पुलिस अधिकारी मौजूद थे. इस आपात बैठक में पुलिस कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव के सामने क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन के साथ साइबर क्राइम सेल के संयुक्त आयुक्त प्रेमनाथ तथा इसी सेल के डीसीपी अनेष राय मौजूद थे. पुलिस कमिश्नर के सामने एक मोटी फाइल  रखी थी.

‘‘प्रवीर क्या तुम्हारी यूनिट को खबर है कि इन दिनों औनलाइन फ्रौड का कौन सा नया ट्रेंड सब से तेजी से अपना काम कर रहा है?’’ कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव ने क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन से मुखातिब होते हुए पूछा.

‘‘औनलाइन फ्रौड के तो दरजनों तरीके हैं सर और साइबर क्रिमिनल इन सब के जरिए ही क्राइम कर रहे हैं. जब से कोरोना महामारी फैली है और लोग लौकडाउन के कारण घरों में बंद हैं, तब से तो आए दिन एक नया औनलाइन फ्रौड सामने आ रहा है. सौरी सर, लेकिन आप किस नए ट्रेंड की बातें कर रहे हैं?’’ प्रवीर रंजन पुलिस कमिश्नर की बात को स्पष्ट रूप से समझ नहीं सके तो उन्होंने संकोच करते हुए उन से साफतौर से बताने का आग्रह किया.

‘‘मेरे सामने जो फाइल है इस में पिछले 2 महीने के दौरान औनलाइन मिली वो शिकायतें हैं, जिन में सैंकड़ों लोगों ने एक ही तरह से ठगी की शिकायत की है. सब के साथ एक ही तरह से ठगी की गई है. इन के अलावा न्यूजपेपर में अलग से आए दिन इसी तरह से ठगी की शिकायतों की खबरें छप रही हैं.

‘‘मुझे लगता है कि कोई गैंग है जो बड़े आर्गनाइज तरीके से इस तरह से ठगी की वारदातों को अंजाम दे रहा है. अभी ये तो नहीं पता कि कितने लोगों के साथ अब तक ऐसी वारदात हो चुकी है, लेकिन जिस तेजी से ये गैंग काम कर रहा है उसे देख कर लगता है कि ठगी के शिकार लोगों की गिनती लाखों में हो सकती है.’’

पुलिस आयुक्त ने दिए कुछ हिंट

पुलिस आयुक्त श्रीवास्तव ने गंभीर होते हुए सीधे मुद्दे की बात शुरू कर दी, जिस के लिए उन्होंने यह बैठक बुलाई थी.

‘‘मेरे पास जितनी भी शिकायतें आई हैं, वे सब एक ही तरह की हैं. जिस में लोगों को गूगल प्लेस्टोर से कुछ खास तरह के ऐप डाउनलोड करने के लिंक भेजे जा रहे हैं. लोगों को इन ऐप्स ने 25-35 दिनों में निवेश राशि को दोगुना करने के दावों के साथ निवेश पर आकर्षक रिटर्न की पेशकश की. ये ऐप्स प्रति घंटा और दैनिक आधार पर रिटर्न की पेशकश कर रहे हैं. शुरू में लोगों को छोटे निवेश पर रिटर्न दिया जा रहा है और बड़ी रकम का निवेश होते ही निवेशक के मोबाइल पर ऐप ब्लौक हो जाता है.’’

विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन स्पष्ट बताते ही समझ गए कि पुलिस कमिश्नर ठगी के किस नए ट्रेंड की बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘सर, आप पावर ऐप बैंक की बात कर रहे हैं. सर, पिछले हफ्ते ही मुझे सीधे कुछ ऐसी शिकायतें मिली थीं और हम ने अखबारों में भी पढ़ा था, जिस के बाद मैं ने अपनी साइबर यूनिट को ऐसे मामलों की छानबीन करने के काम पर लगा दिया है. हम आलरेडी इस पर काम कर रहे हैं.’’

‘‘गुड प्रवीर, मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी. मैं चाहता हूं कि एक बड़ी टीम बना कर इस पर सीरियसली तुरंत ऐक्शन शुरू करो. लोग किस तरह इस ठगी से बच सकते हैं, इस के लिए भी एक एडवाइजरी बनाओ जिस से हम लोगों को ऐसे जालसाजों के चंगुल में फंसने से बचा सकें और उन्हें जागरुक कर सकें.’’ कहते हुए पुलिस आयुक्त श्रीवास्तव ने अपने सामने रखी मोटी फाइल प्रवीर रंजन की तरफ बढ़ा दी.

इस के बाद इसी मुद्दे पर खास हिदायतें देने के बाद मीटिंग खत्म हो गई और पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव मीटिंग से चले गए. पुलिस कमिश्नर के जाने के बाद प्रवीर रंजन इस मामले को ले कर जौइंट सीपी प्रेमनाथ और डीसीपी अनेष राय के साथ काफी देर तक चर्चा करते रहे और कुछ देर की माथापच्ची के बाद बाकायदा एक रणनीति तैयार कर ली गई, ताकि जालसाजी का अनोखा जाल फैलाने वालों को पकड़ा जा सके. तीनों अधिकारी कुछ देर बाद जब मीटिंग रूम से बाहर निकले तो उन के इरादे साफ थे कि इस मामले में जल्द ही बड़ा ऐक्शन शुरू होगा. क्योंकि किसी खास अपराध को ले कर अगर पुलिस आयुक्त खुद चिंता व्यक्त करें तो मातहतों के लिए ऐसा ऐक्शन लेना लाजिमी भी हो जाता है. वैसे भी जालसाजी का ये जो नया ट्रेंड सामने आया था, वो सीधे लाखोंकरोड़ों लोगों से जुड़ा था और इस के जरिए हर रोज लोगों के साथ धोखाधड़ी की शिकायतें सामने आ रही थीं.

साइबर क्राइम की टीम जुटी जांच में

इस बैठक के बाद विशेष आयुक्त प्रवीर रंजन ने साइबर अपराध प्रकोष्ठ के तेजतर्रार एसीपी आदित्य गौतम के नेतृत्व में इंसपेक्टर परवीन, इंसपेक्टर हंसराज, सबइंसपेक्टर अवधेश, सुनील, व हरजीत के साथ 3 दरजन पुलिसकर्मियों की एक बड़ी टीम तैयार की. इस टीम के कई लोग पहले से ही जालसाजी के इस रैकेट को समझने के लिए इस पर काम कर रहे थे. साइबर क्राइम की टीम ने सब से पहले पावर बैंक ऐप और ईजीमनी ऐप की मोडस औपरेंडी का विश्लेषण किया कि वे कैसे काम करते हैं. टीम के सदस्यों ने इन ऐप्स पर अपने खाते बनाए और इस के बाद उन्होंने इस में कुछ पैसे इनवेस्ट भी कर दिए ताकि पता लगाया जा सके कि पैसे किन खातों में और कहां ट्रांसफर होते हैं.

पुलिस ने लंबी कवायद के बाद आखिरकार पता लगा लिया कि ऐप्स में होने वाले इनवैस्टमेंट का पैसा किस पेमेंट गेटवे से हो कर किनकिन बैंक खातों में ट्रांसफर होता है और वे बैंक खाते किन लोगों के नाम पर खुले हैं. उन में जो मोबाइल नंबर दर्ज हैं, उन का संचालन कौन करता है. साइबर क्राइम की टीम ने ठगी के इस जाल की पूरी कड़ी तैयार कर ली, जिस के बाद शुरू हुआ ऐक्शन का काम. 2 जून, 2021 की सुबह एक ही समय में दिल्लीएनसीआर, पश्चिम बंगाल और बंगलुरु में एक साथ छापेमारी की गई और 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया. इस में 2 चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. इन की पहचान गुड़गांव निवासी अविक केडिया और दिल्ली के कटवारिया सराय निवासी रौनक बंसल के रूप में हुई.

पूछताछ में पता चला कि ठगी की रकम को ट्रांसफर करने के लिए जो मुखौटा कंपनियां बनाई गई थीं, वे इन्हीं दोनों ने तैयार की थीं.

मास्टरमाइंड हुआ गिरफ्तार

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में स्थित उलबेरिया में रहने वाला शेख रौबिन इस धोखाधड़ी के नेटवर्क का भारत में मास्टरमाइंड सरगना था. शेख रौबिन से पूछताछ और उस से बरामद हुए दस्तावेजों की छानबीन में पता चला कि वह कई बार चीन, सिंगापुर, दुबई और दूसरे देशों की यात्रा कर चुका था. शेख रौबिन वीचैट और टेलीग्राम जैसे मोबाइल ऐप के जरिए कुछ चीनी लोगों के संपर्क में था. उन्होेंने शेख को अपने गूगल प्लेस्टोर पर अपलोड किए गए अपने मोबाइल ऐप पावर बैंक और सन लाइट फैक्ट्री के जरिए भारतीय लोगों से धोखाधड़ी करने के लिए एक ऐसा सिंडीकेट तैयार करने के लिए राजी किया था, जो अपना लाभ ले कर उन के लिए काम कर सकें.

धोखाधड़ी का पूरा प्लान जानने के बाद शेख रौबिन ने दिल्ली और गुड़गांव में सीए अविक केडिया और दिल्ली के रौनक बंसल से संपर्क किया. दोनों सीए ने अपने करीबी लोगों, रिश्तेदारों के नाम, पते और दस्तावेजों का इस्तेमाल कर करीब 25 शैल कंपनियां बनाईं और उन्हें शेख रौबिन को 3 लाख रुपए इन का इस्तेमाल करने के लिए बेच दिया. शेख ने इन सभी कंपनियों के नाम से देश के अलगअलग शहरों में करीब 30 से अधिक बैंक खाते खुलवाए और इन में अपने लोगों के नाम से फरजी आधार कार्ड व दस्तावेज बना कर खरीदे गए सिम कार्ड व मोबाइल नंबर दर्ज करा दिए.

शेख रौबिन ने बंगुलरु में एक तिब्बत मूल की युवती पेमा वांगमो के साथ मिल कर एक ऐसी फरजी स्टार्टअप कंपनी का गठन कर दिया, जो मल्टीलेवल मार्केटिंग के लिए ईजी मनी ऐप को प्रमोट करने लगी. पेमा के साथ बंगलुरु में सुकन्या और नागाभूषण नाम के उस के साथी भी उस की मदद करते थे. शेख रौबिन, पेमा वांगमो, सीए अविक केडिया और रौनक बंसल ने जब ठगी का पूरा जाल तैयार कर लिया तो चीनी नागरिकों ने चीन से अपने तीनों ऐप्स को प्रमोट करने के लिए इन्हें गूगल प्लेस्टोर के मेलवेयर स्पैम में डाल कर प्रमोट करना शुरू कर दिया.

इन ऐप्स को वाट्सऐप, टेलीग्राम के जरिए भी प्रमोट करना शुरू कर दिया. कई तरह की गेम एप्लीकेशन और सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर इन एप्लीकेशन के विज्ञापन इतनी तेजी से वायरल होने लगे कि एक महीने के भीतर ही पावर बैंक ऐप गूगल प्लेस्टोर पर डाउनलोड होने वाले ऐप में चौथे नंबर पर ट्रेंड करने लगा.

दोगुना करने के लालच में फंसते गए लोग

इन एप्लीकेशन को इतने आकर्षक ढंग से प्रमोट किया जा रहा था कि पूरे भारत में जो भी लोग इन लिंक को देखते जल्दी पैसा कमाने के लालच में तुरंत इसे डाउनलोड कर लेते. दरअसल मल्टीलेवल मार्केटिंग की तर्ज पर बनी एप्लीकेशन में लोगों को बहुत मामूली सी रकम इनवैस्ट करने पर इस के 25 से 35 दिनों में दोगुना होने का औफर था. सब से छोटी रकम के रूप में 300 रुपए निवेश करने थे, उस के बाद कोई चाहे तो इस रकम को लाखों तक निवेश कर सकता था. यानी सब से छोटी रकम की लिमिट 300 रुपए और अधिकतम की सीमा कोई नहीं थी.

दिलचस्प बात यह थी कि जिन लोगों के पास किसी भी ऐप के माध्यम से प्रमोट हो कर ये क्विक मनी अर्निंग ऐप का लिंक पहुंचता था वह क्लिक करते ही लोगों के मोबाइल फोन में खुदबखुद इंस्टाल हो जाता था. जिस में सब से पहले इनवैस्ट करने वाले को रकम के कुछ ही दिनों में दोगुना होने का औफर होता. उस के बाद एक प्रोफार्मा होता, जिस में निवेशक को अपना नाम, पता, मोबाइल नंबर, आधार व बैंक खाते की जानकारी भरनी होती. साथ ही कुछ शर्तें लिखी होतीं, जिन्हें स्वीकार करना होता था. इस के बाद जितनी भी रकम किसी को इनवैस्ट करनी हो उस का भुगतान करने के लिए पेटीएम, गूगल पे, भारत पे और यूपीआई के पेमेंट गेटवे के बार कोड व डिटेल दी गई थी. जिन के जरिए लोग अपनी इनवैस्ट की जाने वाली रकम का भुगतान कर देते थे.

सब से अच्छी बात यह थी कि शुरुआत के कुछ दिनों में छोटी रकम इनवैस्ट करने वाले करीब 20 फीसदी लोगों को तय समय सीमा में वादे के अनुसार उन की इनवैस्ट रकम का दोगुना भुगतान मिल गया. इस से उत्साहित ऐसे लोगों ने अगले इनवैस्टमेंट के रूप में हजारों और लाखों रुपए की बड़ी रकम का इनवैस्टमेंट करना शुरू कर दिया.

बाद में पैसा आना हो गया बंद

जिन लोगों को एक बार लाभ मिल चुका था, उन्होेंने अपने मित्रों, रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को भी इन ऐप्स के बारे में और अपने लाभ के बारे में बताया तो अचानक एक महीने बाद तेजी से पावर बैंक और ईजी मनी ऐप लोगों के आकर्षण का केंद्रबिंदु बन गया. पिछले डेढ़ साल से कोरोना और ज्यादातर समय रहे लौकडाउन के कारण लोगों के कामधंधे चौपट हो चुके थे, काफी लोग बेरोजगार हो गए थे. ऐसे में आर्थिक तंगी से जूझ रहे लोगों के लिए मल्टीलेवल मार्केटिंग के ये ऐप्स लोगों को देवदूत लगने लगे, जो रातोंरात उन की दरिद्रता दूर कर सकते थे.

बस ये ऐप धड़ाधड़ डाउनलोड होने लगे. देखते ही देखते देश भर में लाखों लोगों ने इन में पैसा इनवैस्ट करना शुरू कर दिया. दरअसल, गूगल प्लेस्टोर व दूसरे सोशल मीडिया तथा यूट्यूब के बहुत सारे वीडियो में जिस तरह से इन एप्लीकेशंस का प्रचार हो रहा था और पेमेंट गेटवे के जरिए रकम जमा कराई जा रही थी, उस से किसी को भी यह शक ही नहीं था कि ये धोखाधड़ी का एक ऐसा लालच भरा जाल है, जिस में एक बार कोई फंस गया तो निकलना बेहद मुश्किल होगा. वैसे भी भारत सरकार ने बैंक खातों में खुले एकाउंट और पेमेंट गेटवे पर खाता बनाने के लिए इतनी औपचारिकताएं और दस्तावेज जमा कराने की बाध्यता कर दी है कि लोग यही समझते हैं कि अगर उन के साथ कोई धोखाधड़ी हो भी गई तो वे पुलिस में शिकायत कर कानूनी काररवाई कर देंगे.

यही कारण रहा कि लोग तेजी के साथ इन ऐप्स के जरिए इनवैस्टमेंट करते चले गए. लेकिन 2 महीने बाद ही धोखाधड़ी करने वाले संचालक अपनी असलियत पर आ गए. बड़ी रकम जमा कराने वाले लोगों का पैसा वापस लौटाने का नंबर आया तो उन के मोबाइल पर ये ऐप्स ब्लौकहोने लगे, लिहाजा जल्द ही लोगों को समझ में आने लगा कि यह धोखाधड़ी का एक जाल है. लोगों ने पुलिस में शिकायतें करनी शुरू कर दीं और सोशल मीडिया पर अपने इन कड़वे अनुभव और धोखाधड़ी की कहानी लिखनी शुरू कर दी.

इसी के बाद दिल्ली पुलिस और देश के दूसरे राज्यों की पुलिस ने इस धोखाधड़ी के नेटवर्क को तोड़ने के लिए छानबीन कर ऐक्शन लेने का काम शुरू कर दिया.

पुलिस ने बैंक खाते कराए सीज

पुलिस ने शेख रौबिन, सीए अविक केडिया, रौनक बंसल और पेमा के अलावा दिल्ली के रहने वाले उमाकांत अक्श जौय, वेद चंद्रा , हरिओम और अभिषेक मंसारमाणी नाम के 4 लोगों को गिरफ्तार किया. ये सभी घोटाले में इस्तेमाल की जा रही मुखौटा कंपनियों के निदेशक थे और इन कंपनियों के खातों में ठगी की रकम ट्रांसफर हुई थी. दिल्ली के ही रहने वाले एक आरोपी अरविंद को भी गिरफ्तार किया गया, जिस ने 3 व्यक्तियों को एकमुश्त भुगतान ले कर शैल कंपनियों को निदेशक बनने के लिए तैयार किया था.

शशि बंसल और मिथलेश शर्मा नाम की दिल्ली की 2 महिलाओं को चीनी जालसाजों को अपनी शैल कंपनियां और अपने नाम से खोले गए बैंक खाते ठगी के रकम को ट्रांसफर करने के लिए उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने अभी तक की जांच में 29 बैंक खातों का पता लगाया है, जिन में ठगी की रकम एक खाते से दूसरे खातों में भूलभुलैया पैदा करने के लिए ट्रांसफर की गई थी. इन बैंक खातों में पड़ी करीब 12 करोड़ की रकम को पुलिस ने सीज करवा दिया है. इस के अलावा सभी आरोपियों से करीब 30 सक्रिय मोबाइल फोन बरामद किए गए थे. इन में से अधिकांश का इस्तेमाल बैंक खातों के संचालन और पेमेंट गेटवे के खातों के औपरेशन में हो रहा था.

दोनों सीए अविक केडिया व रौनक बंसल से पता चला कि शेख रौबिन के अलावा वे चीनी जालसाजों के सीधे संपर्क में भी थे और उन से टेलीग्राम, डिंगटौक, वीचैट आदि के माध्यम से संपर्क में रहते थे. चीनी नागरिक उन्हें बैंकों में खाते खुलवाने, भुगतान गेटवे तैयार कराने, अन्य डमी निदेशकों आदि की व्यवस्था करने के निर्देश देते थे. इस काम के लिए वे 3 लाख रुपए की मोटी रकम लेते थे. सीए अविक केडिया ने बताया कि चीनी धोखेबाजों के लिए उस ने 110 से अधिक शेल कंपनियां बनाई थीं. चीनी धोखेबाजों और उन के ये सभी गुर्गे बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी फंड ट्रांसफर के लिए उच्च गुणवत्ता  वाले सौफ्टवेयर और वित्तीय टूलों का इस्तेमाल करते थे.

रोचक खुलासों से चौंकी पुलिस

पुलिस को अब तक की जांच में पता चला है कि पावर बैंक, ईजी मनी के जरिए अब तक पूरे भारत में करीब 5 लाख लोगों को ठगा जा चुका था और इन से करीब 2 महीनों में ही 150 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी की गई. पुलिस ने सीए अविक केडिया के गुड़गांव स्थित घर से 97 लाख रुपए नकद भी बरामद किए. पुलिस को जांच और पूछताछ में पता चला था कि पावर बैंक क्विक अर्निंग ऐप गूगल प्लेस्टोर पर था और इसे चीन के एक सर्वर से कमांड दी जाती थी.

जबकि पावर बैंक व ईजीमनी का ऐप 222.द्ग5श्चद्यड्डठ्ठ.द्बठ्ठ वेबसाइट पर उपलब्ध था. इस ऐप के संदेश लोगों को स्पैम के रूप में आते थे. प्राप्तकर्ता को एक संक्षिप्त (एनक्रिप्टेड) यूआरएल के माध्यम से ऐप डाउनलोड करने के लिए प्रेरित किया जाता था. इसलिए जब पुलिस ने इस की संदिग्ध गतिविधि को परखा तो एनसीएफएल की मैलवेयर फोरैंसिक लैब से इस ऐप की जांच करवाई. जांच में कुछ रोचक खुलासे से पुलिस चौंक गई. पावर बैंक व ईजीमनी ऐप ने खुद को बेंगलुरु आधारित एक स्टार्टअप कंपनी का प्रोजैक्ट बताया था, जो क्विक चार्जिंग अर्न करने की चेन से जुडा था. लेकिन जिस सर्वर पर ऐप को होस्ट किया गया था, उस के  चीन में होने के कारण पुलिस को इस में छिपे ठगी के नेटवर्क का शक हो गया.

ऐप्स की जांच में यह बात भी साफ हुई कि ये ऐप्स कई खतरनाक अनुमतियों से जुड़े थे. जैसे कि इन की पहुंच उपयोगकर्ता के कैमरे, उस में संग्रहित फोटो, वीडियो और दस्तावेजों की सामग्री तथा उन के कौन्टैक्ट नंबर का डाटा हासिल करने तक थी. शुरुआती जांच में ही पुलिस को शक हो गया था कि इन ऐप्स का इस्तेमाल लोगों से धोखाधड़ी करने के अलावा उन के डाटा को चोरी करने के लिए भी किया जा रहा था. पुलिस ने अब तक इस सिंडीकेट से जुड़े जिन 11 लोगों को गिरफ्तार किया था. उन के अलावा भारत में ही इस नेटवर्क से जुड़े दूसरे भारतीय अपराधियों की भूमिका के नाम सामने आ चुके हैं. इन के अलावा कई चीनी नागरिकों के नामों का भी खुलासा हुआ है, जो चीन की सीमा में हैं. इन जालसाजों को कैसे कानून की पकड़ में लाना है, इस के लिए पुलिस बड़ी रणनीति पर काम कर रही है.

दरअसल, इन ऐप्स के जरिए लोग जिस रकम को इनवैस्ट करते थे, उस का करीब 80 फीसदी हिस्सा विभिन्न खातों से होते हुए इसी चाइनीज नेटवर्क के पास आता था. जांच में पता चला है कि चीनी धोखेबाजों ने इस धोखाधड़ी के जरिए भोलेभाले और शौर्टकट से पैसा कमाने वाले लोगों को लूटने के लिए देश भर में अपने गुर्गों का एक बड़ा नेटवर्क बनाया था. उन्होंने इस मेगा धोखाधड़ी के संचालन के लिए देश भर के विभिन्न शहरों में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, बैंक अकाउंट कस्टोडियन, डमी डायरेक्टर्स, मनी म्यूल्स आदि नियुक्त किए हुए हैं. अभी तक पश्चिम बंगाल, दिल्ली व एनसीआर क्षेत्र, बेंगलुरु, ओडिशा, असम और सूरत में इस तरह की जालसाजी के सबूत पुलिस के सामने आ चुके हैं.

चीनी नागरिकों ने टोनी व फियोना जैसे अंगरेजी नाम रखे थे. इन चीनी नागरिकों ने ठगी के लिए कई ऐप्स को अप्रैल महीने की शुरुआत में भारतीय बाजार में सर्कुलेट करना शुरू किया था. इस के बाद 12 मई को ये ऐप बंद हो गए. चीनी नागरिकों के इस गिरोह में कई ऐसे भारतीय काम कर रहे थे, जो कभी चीनी आकाओं से मिले ही नहीं और न ही उन्हें जानते हैं. बस उन के लिए काम कर रहे थे. इन लोगों ने ही ठगी के लिए भारतीयों को गिरोह में भरती किया था.

फिलहाल दिल्ली पुलिस इस मामले की जांच में महत्त्वपूर्ण डिजिटल साक्ष्य हासिल करने के लिए विभिन्न प्रयोगशालाओं की मदद ले रही है और इस अपराध में शामिल अन्य अपराधियों को पकड़ने के लिए लगातार छापेमारी कर रही है.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

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