उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर में रहने वाला चंद्रेश गुप्ता अपने कमरे में बैठा सुबह की चाय का इंतजार कर रहा था, उसे नौकरी का इंटरव्यू देने के लिए 9 बजे घर से निकलना था. चंद्रेश ने इसी साल मेरठ से बीएससी की थी, नोएडा की एक फार्मा कंपनी में नौकरी के लिए निकली वैकेंसी के लिए आवेदन भी कर दिया था. उसे इंटरव्यू का लैटर मिल गया था, इसलिए वह नहाधो कर तैयार बैठा था. एकाएक उस के कानों में भाभी रमा की दर्दभरी चीख सुनाई पड़ी, ‘‘ऊई मांऽऽ.’’
‘‘क्या हुआ भाभी?’’ चंद्रेश घबरा कर किचन की तरफ दौड़ते हुए चिल्लाया.
‘‘अंगुली कट गई लाला.’’ रमा अपनी बाईं हाथ की एक अंगुली को दूसरे हाथ से दबाए हुए दर्द भरे स्वर में बोली.
चंद्रेश ने भाभी की कटी अंगुली से खून टपकता देखा तो वह घबरा कर बोला, ‘‘क्या करती हो भाभी? कैसे काट ही अंगुली?’’
‘‘प्याज काट रही थी लाला. सोचा था, तुम्हारे लिए परांठे और आलू की भुजिया बना दूं. इंटरव्यू देने जा रहे हो, पता नहीं कितना समय लग जाए. नाश्ता कर के जाना जरूरी है.’’ रमा दर्द से कराहते हुए बोली.
‘‘आप अंगुली दबा कर रखो, मैं फर्स्टएड बौक्स ले कर आता हूं.’’ चंद्रेश ने कहा और तेजी से कमरे की तरफ लपक कर गया.
उस ने दराज में रखा फर्स्टएड बौक्स निकाला और किचन में ले आया. उस ने बौक्स में से एंटीसेप्टिक क्रीम, डिटोल और कौटन पट्टी निकाली. पहले कौटन पर डिटोल लगा कर रमा की अंगुली से बह रहे खून को कौटन से साफ किया. डिटोल से खून रोकने के बाद चंद्रेश ने साफ कौटन पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाई और कटी अंगुली पर पट्टी बांध दी. रमा बड़े गौर से अपने देवर द्वारा अपनी की अंगुली पर पट्टी बांधते हुए देख रही थी. पट्टी हो गई तो रमा मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम तो पूरे डाक्टर बन गए हो लाला.’’
‘‘कहां भाभी?’’ चंद्रेश गहरी सांस भर कर बोला, ‘‘भैया से कितनी बार कहा है कि जब साइंस सबजेक्ट से ग्रैजुएशन करवा दिए हो तो मुझे डाक्टरी की पढ़ाई भी करवा दो, लेकिन भैया हैं कि सुनते ही नहीं.’’
‘‘डाक्टरी कोई हजार 2 हजार में थोड़ी होती है लाला. सुना है, इस में 80-90 लाख रुपया लग जाता है. इतना रुपया तुम्हारे भैया सात जन्म कमाने के बाद भी इकट्ठा नहीं कर सकते. फैजाबाद में जो खेत पड़ा है, वह बेचा नहीं जा सकता. तुम्हारे भैया ने अपनी तनख्वाह में तुम्हें ग्रैजुएशन करवा दिया है. अब कहीं 10-12 हजार की नौकरी कर लो, इस घर के खर्च को ठीकठाक चलाने के लिए इतना ही काफी रहेगा.’’
‘‘अच्छा भाभी.’’ चंद्रेश ने मुसकरा कर कहा और इंटरव्यू के लिए निकल गया.
‘‘लाला, बाहर कुछ खा जरूर लेना, भूखे मत रहना.’’ भाभी ने कहा.
‘‘खा लूंगा भाभी, आप आराम कीजिए. दोपहर में चावल वगैरह बना कर आप खा लेना. शाम को मैं होटल से रोटीसब्जी लेता आऊंगा.’’ चंद्रेश ने कहा.
हरीराम उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद में रहते थे. मूलत: वह फैजाबाद के रहने वाले थे, वहां पुश्तैनी घर और खेतीबाड़ी थी. खेती की फसल से उन के परिवार का खर्च चलता था. परिवार में पत्नी माया और 2 बेटे दयाशंकर और चंद्रेश थे. गाजियाबाद में उन के बहनोई रहते थे. उन के कहने पर 10 साल पहले वह पुश्तैनी मकान बेच कर गाजियाबाद आ बसे थे.
चंद्रेश बनना चाहता था डाक्टर
यहां एक कंपनी में वह काम पर लग गए और बेटों को उच्च शिक्षा दिलाने की मंशा से उन्हें अच्छे स्कूलों में दाखिला दिला दिया. दयाशंकर 12वीं क्लास तक ही पढ़ पाया. अपनी रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दया को अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया और उस की शादी रमा से कर दी. चूंकि हरीराम और पत्नी माया बूढ़े हो गए थे. अब दोनों घर में ही पड़े रहते थे. घर के खर्च की जिम्मेदारी दया ने संभाल ली थी. वह चंद्रेश को खूब पढ़ाना चाहता था ताकि वह किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर नौकरी कर के घर खर्च में उस का सहयोग करे.
चंद्रेश मेरठ के डिग्री कालेज से बीएससी करने के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन उस के लिए लाखों रुपया चाहिए था. फैजाबाद में जो खेत पड़ा था, वह बटाई पर दिया हुआ था, उस के रुपयों से गाजियाबाद में हरीराम के परिवार का खर्च चल रहा था. उसे बेचा नहीं जा सकता था. बेचते भी तो 20-30 लाख रुपया ही मिलता, लेकिन उस से एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं हो पाती, घर में खर्चे की परेशानी पैदा होती सो अलग. इसलिए चंद्रेश ने एमबीबीएस करने का विचार त्याग कर सरकारी नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू कर दी थी. परंतु बहुत कोशिश के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो चंद्रेश ने प्राइवेट कंपनी की ओर रुख कर लिया था.
आज उसे फार्मा टेक्ट कंपनी में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. ठीक समय पर वह उस कंपनी में पहुंच गया, लेकिन इंटरव्यू के नाम पर खानापूर्ति कर के उसे वापस लौटा दिया गया. मालूम हुआ कि कंपनी में काम कर रहे किसी व्यक्ति ने मोटी रकम कंपनी के एमडी की जेब में डाल कर अपने भतीजे को रिक्त पड़ी एकाउंटेंट की नौकरी पर लगवा दिया है. चंद्रेश निराश हो कर घर लौट रहा था कि उस की मुलाकात अपने एक जिगरी दोस्त राजवीर से हो गई. राजवीर उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला, ‘‘कैसे हो चंद्रेश? यह शक्ल पर 12 क्यों बज रहे हैं तुम्हारे?’’ राजवीर ने पूछा.
‘‘किस्मत की मार पड़ती है तो ऐसे ही 12-13 बजते हैं राजवीर.’’ चंद्रेश के स्वर में असंतोष था.
‘‘किस्मत को मत कोसो यार, आज नहीं तो कल तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी. आओ, किसी रेस्तरां में बैठ कर चाय पीते हैं.’’ राजवीर ने कहा और चंद्रेश को ले कर एक रेस्तरां में आ गया.
चाय के साथ उस ने 2 प्लेट समोसे का भी और्डर दे कर चंद्रेश के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘तुम्हारा एमबीबीएस करने का सपना था, उस का क्या हुआ?’’
‘‘उस के लिए बहुत मोटी रकम चाहिए राजवीर, हमारे पास इतना रुपया नहीं है. तभी तो मैं नौकरी के लिए भागदौड़ कर रहा हूं.’’
‘‘मैं जानता हूं एमबीबीएस करने के लिए अस्सीनब्बे लाख रुपया चाहिए. यह कोर्स अमीर लोग ही अपने बेटों को करवा सकते हैं. हम लोग यह कोर्स करने का सपना भी नहीं देख सकते, लेकिन अब हमारे लिए एक रास्ता खुल गया है.’’
‘‘कैसा रास्ता?’’ चंद्रेश ने राजवीर की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.
‘‘गौतमबुद्ध नगर में एक औफिस खुला है. वे एमबीबीएस के लिए संबंधित कालेज में केवल 15 लाख में एडमिशन दिलवा देते हैं.’’
‘‘15 लाख, यह तो ज्यादा है.’’ चंद्रेश की आवाज में निराशा झलकी.
‘‘अबे, 80-90 लाख से तो ठीक है. तेरा सपना अगर 15 लाख रुपए में पूरा हो जाए तो और क्या चाहिए. डाक्टर बन कर कालेज से बाहर आओगे तो ऐसे कितने ही 15 लाख कमा लोगे.’’
‘‘कहता तो तू ठीक है, बोल कब चलेगा उस औफिस में?’’
‘‘कल चलते हैं. मैं आज दोस्त से उस औफिस का एड्रैस कंफर्म कर लूंगा. मुझे भी एमबीबीएस करना है.’’
‘‘ठीक है, मैं कल तुम्हें 9 बजे तुम्हारे घर पर मिलता हूं.’’ चंद्रेश ने उठते हुए कहा.
शाम को उस ने घर पहुंच कर इंटरव्यू में धोखाधड़ी होने की बात अपनी भाभी रमा को बता दी थी. भाभी तब बहुत निराश हो गई थीं.
वह सोचता था, ‘क्या उस ने 10-12 हजार की नौकरी पाने के लिए बीएससी की थी?’
जैसेतैसे वह रात कटी. चंद्रेश ने जल्दी से बिस्तर छोड़ा. नित्यकर्म से फारिग होने के बाद उस ने चायनाश्ता किया और तैयार हो कर वह 8 बजे ही घर से निकल गया.
9 बजे से पहले ही वह राजवीर के घर पहुंच गया. उसे हैरानी हुई कि राजवीर पहले से ही तैयार हो कर उस का इंतजार कर रहा था.
‘‘तूने एड्रैस कंफर्म कर लिया न राजवीर?’’ चंद्रेश ने हायहैलो करने से पहले ही पूछ लिया.
‘‘हां, वह सैक्टर-63 में है. पूरा पता है डी-247/4ए, गौतमबुद्ध नगर. हम वहां आटो से चलेंगे.’’
‘‘ठीक है.’’ चंद्रेश ने सिर हिला कर कहा, ‘‘मेरी जेब में 2 सौ रुपया है.’’
‘‘मेरी जेब भी गरम है यार.’’ राजवीर बोला तो चंद्रेश हंस पड़ा.
दोनों ने रोड से गौतमबुद्धनगर के सैक्टर-63 के लिए आटो किया और आधा घंटे में ही सैक्टर-63 में पहुंच गए. पूछते हुए दोनों डी-247/4ए के सामने पहुंच कर रुक गए. वहां कुछ युवक खड़े थे.
‘‘यही है औफिस. देखो, पहले से यहां कितने ही युवक खड़े हैं.’’ राजवीर ने चंद्रेश का हाथ दबा कर कहा.
‘‘शायद एकएक को अंदर बुलाया जा रहा है, तभी औफिस के बाहर ये लोग खड़े हैं.’’ चंद्रेश ने अनुमान लगा कर कहा, ‘‘आओ, किसी से पूछ लेते हैं.’’
दोनों वहां बाहर खडे युवकों के पास आए.
‘‘अंदर प्रवेश के लिए क्या प्रोसिजर है दोस्त?’’ राजवीर ने एक युवक से पूछा.
‘‘गेट पर गार्ड खड़ा है, उस से एक फार्म 5 रुपए का ले लो और अपना बायोडाटा लिख कर गार्ड को दे दो. वही आवाज लगा कर आप को बुलाएगा.’’ उस युवक ने बताया.
दोनों ने गार्ड को 10 रुपए दे कर 2 फार्म ले लिए फिर फार्म भर कर गार्ड के पास जमा करवा दिए. उन को बताया गया कि एक घंटे तक उन का नंबर आ जाएगा. दोनों वहीं धूप में खड़े हो गए. एक घंटे बाद पहले राजवीर को अंदर बुलाया गया, फिर 15 मिनट बाद चंद्रेश का नंबर आया. चंद्रेश ने शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश किया, तब उस के दिल की धड़कन बेकाबू थी. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए उस ने अंदर बने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर घुसते हुए बड़े शिष्टाचार से कहा, ‘‘गुड मार्निंग सर.’’
‘‘वेरी गुडमार्निंग,’’ सामने कुरसी में धंसे एक मुसलिम नजर आने वाले युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए.’’
चंद्रेश ने कुरसी पर बैठ कर नजरें घुमाईं. उस युवक के साथ वाली कुरसियों पर 2 युवतियां बैठी हुई थीं, जो चेहरेमोहरों से शिक्षित दिखलाई पड़ती थीं.
केबिन की दीवारें सपाट थीं. उन पर किसी नेता की तसवीर नहीं लगी थी. अकसर औफिस में किसी राजनेता की तसवीर जरूर लगी होती है. सामने बैठा मुसलिम युवक शायद हैड था. उस ने चंद्रेश को गौर से देखा, ‘‘क्या आप का नाम चंद्रेश गुप्ता है?’’ हाथ में पकड़े फार्म को देख कर उस युवक ने पूछा.
‘‘जी सर,’’ चंद्रेश ने बताया.
‘‘गुप्ता लोग तो पैसे वाले होते हैं चंद्रेश बाबू.’’ युवक ने प्रश्न किया, ‘‘क्या आप भी पैसे वाले हैं?’’
‘‘नहीं सर, हम खानेकमाने वालों में से हैं. भैया 12 हजार की नौकरी करते हैं.’’
‘‘हूं,’’ सामने बैठे युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘क्या आप को नहीं मालूम एमबीबीएस में एडमिशन पाने के लिए लाखों रुपया लगता है?’’
‘‘मालूम है सर. लेकिन सुना है, आप कम रुपयों में एमबीबीएस का दाखिला दिला देते हैं.’’ चंद्रेश ने जल्दी से बात को संभाला, ‘‘आप केवल 15 लाख रुपया लेते हैं.’’
‘‘जरूरी नहीं, 15 लाख ही लेंगे. हमें आप का सब्जेक्ट, शिक्षा सभी पर गौर करना है. खुशी हुई आप ने साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन किया है. लेकिन आप के मार्क्स कम हैं, इसलिए आप को सरकारी कालेज में दाखिला दिलवाने में थोड़ी परेशानी पेश आएगी.’’
‘‘सर, मुझे एमबीबीएस करना है. आप मन से चाहेंगे तो मुझे एडमिशन मिल जाएगा.’’ चंद्रेश गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘मैं बहुत उम्मीद से यहां आया हूं.’’
उस युवक ने पास बैठी युवती की ओर देखा. आंखों ही आंखों में बात की, फिर उन में से एक युवती ने चंद्रेश के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘क्या आप 30 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकेंगे?’’
‘‘30 लाख? यह तो बहुत ज्यादा होगा मैम.’’ चंद्रेश घबरा कर बोला.
‘‘तो आप कितना दे सकते हैं?’’ दूसरी युवती ने पूछा.
‘‘15 लाख दे दूंगा मैम.’’
‘‘15 लाख कम रहेगा.’’ सामने बैठे युवक ने इंकार में सिर हिलाया तो तुरंत पास बैठी युवली बोल पड़ी, ‘‘आप 20 लाख का इंतजाम करिए. हम आप के लिए सरकारी कालेज में एडमिशन की बात कर लेते हैं.’’
‘‘जी, ठीक है. मैं 20 लाख ही दूंगा, लेकिन मेरा एडमिशन हो जाना चाहिए मैम.’’ चंद्रेश ने अपनी बात रख कर आश्वासन मांगा.
‘‘अवश्य हो जाएगा. आप एक हफ्ते में 20 लाख रुपया जमा करवा दें, इस से ज्यादा समय नहीं दिया जाएगा आप को, क्योंकि यहां एडमिशन पाने वालों की भीड़ ज्यादा है और सरकारी कालेजों में सीटें कम हैं.’’
‘‘मैं एक हफ्ते से पहले ही 20 लाख जमा करवा दूंगा मैम.’’ चंद्रेश जल्दी से बोला.
चंद्रेश उठा और बाहर आ गया. राजवीर उसे बाहर ही मिल गया. उस ने बताया कि उस से 25 लाख रुपया मांगा गया है, वह 2 दिन में यह रुपया ला कर जमा करवा देगा.
राजवीर और चंद्रेश की आंखों में अनोखी चमक थी. बहुत कम रुपयों में उन्हें एमबीबीएम करने का सुनहरा मौका जो मिल रहा था. इस मौके को वे किसी भी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.
सभी पीडि़त पहुंचे पुलिस के पास
नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) के थाना सेक्टर-63 में 30-35 युवक एक साथ पंहुचे तो एसएचओ अमित मान अपनी कुरसी से उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘क्या बात है, आप इतने लोग एक साथ?’’
‘‘सर, हम लुट गए हैं, हमारे साथ धोखाधड़ी हुई है.’’ उन युवकों में चंद्रेश भी था. वह आगे आ कर रुआंसे स्वर में बोला.
‘‘किस ने की है यह धोखाधड़ी?’’ एसएचओ चौंकते हुए बोले, ‘‘मुझे तुम विस्तार से पूरा मामला बताओ.’’
‘‘सर, मेरा नाम चंद्रेश है. यहां सैक्टर-63 में एक औफिस खोला गया है, जिस के द्वारा 20 से 30 लाख रुपए ले कर सरकारी कालेज में एमबीबीएस का एडमिशन दिलवाने का झांसा दिया गया.
‘‘यह साथ आए तमाम छात्र और मैं इस फरजीवाड़े का शिकार बन गए हैं. किसी ने 30 लाख रुपया दिया है, किसी ने 20 लाख. मेरे दोस्त राजवीर ने मुझे बताया कि कम रुपयों में फलां कंपनी हमें एमबीबीएस का एडमिशन दिलवा देगी.’’
‘‘राजवीर साथ आया है?’’ एसएचओ अमित मान ने पूछा.
‘‘जी सर.’’ राजवीर युवकों की भीड़ से आगे आ कर बोला, ‘‘मैं भी इस फरजी कंपनी द्वारा ठग लिया गया हूं. मैं ने 25 लाख रुपया इस कंपनी को दे दिया है.’’
‘‘ओह!’’ एसएचओ अमित मान एकदम गंभीर हो गए, ‘‘राजवीर तुम्हें इस औफिस के विषय में किस ने बताया था?’’
‘‘मेरा दोस्त शिवम है, वह भी साथ आया है सर. शिवम ने ही मुझे बताया था कि 15 लाख रुपया दे कर वह सरकारी कालेज के लिए सेलेक्ट हो गया है. मैं ने यह बात चंद्रेश को बताई तो वह और मैं दूसरे दिन इस औफिस में पहुंच गए. मुझ से 25 लाख रुपया एडमिशन दिलवाने के नाम पर मांगा गया तो मैं ने तीसरे दिन ही यह रुपया औफिस में जा कर जमा करवा दिया.’’
‘‘हां चंद्रेश, तुम ने 20 लाख रुपया कैसे जुटाया?’’ एसएचओ ने पूछा.
‘‘सर, मैं ने पिताजी और भैया के पांव पकड़ लिए. उन से गिड़गिड़ा कर कहा कि अगर मुझे 20 लाख रुपया दे देंगे तो डाक्टरी करने के बाद सरकारी नौकरी मिल जाएगी. मैं उन का रुपया लौटा दूंगा और घर की तमाम जिम्मेदारी भी संभाल लूंगा. मेरे भाई और पिताजी ने सलाहमशविरा कर के फैजाबाद वाला खेत 20 लाख में तुरंत बेच कर 3 दिन में मेरे हाथ पर 20 लाख रुपया रख दिया. जिसे ला कर मैं ने उस औफिस में जमा करवा दिया.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि तुम लुट गए हो, तुम्हारे साथ धोखा हुआ है?’’ एसएचओ ने पूछा.
‘‘सर, इस कंपनी ने रुपया ले लेने के बाद मुझे भी अन्य छात्रों की तरह काउंसलिंग के बहाने 18 दिसंबर, 22 तक रोक कर रखा. हमें एक महीने रोक कर रोज मीटिंग ली जाती, समझाया जाता कि एमबीबीएस कैसे पूरा करना है, कैसे आत्मविश्वास बना कर रखना है, कैसे संयम रख कर अपनी पढाई करनी है, आदिआदि.
‘‘एक महीना पूरा होने के बाद 18 दिसंबर को सरकारी कालेज (जहां से एमबीबीएस करना था) एक अथारिटी लेटर ले कर भेजा गया. वहां जाने पर हमें मालूम हुआ कि सरकारी कालेज के डीन ऐसे किसी औफिस या व्यक्ति को नहीं जानते, हमें ठगा गया है. यह मालूम होते ही हम सब सेक्टर-63 के उस औफिस में पहुंचे तो वहां गार्ड और कर्ताधर्ता गायब थे. हमें अपने को ठगे जाने का पता चला तो हम सब एकत्र हो कर यहां अपनी शिकायत ले कर आ गए हैं.’’
मामला बहुत गंभीर था. एसएचओ अमित मान ने गौतमबुद्ध नगर की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह, डीसीपी व एसीपी को फोन द्वारा इस ठगी की जानकारी दी तो उन्होंने एसएचओ अमित मान को जांच अधिकारी बना कर उन के नेतृत्व में एसआई नीरज शर्मा, आरती शर्मा, हैडकांस्टेबल सुबोध, वरुण चौधरी, कांस्टेबल अंकित व अंशुल की टीम का गठन कर दिया गया. एसएचओ ने थाने में आए छात्रों को आश्वासन दिया कि उन ठगों को पकड़ने की पूरी कोशिश की जाएगी. वे सब अपनीअपनी शिकायत स्वागत कक्ष में जा कर लिखित रूप में जमा करवा दें और अपने घर लौट जाएं.
चंद्रेश और राजवीर के बताए अनुसार, आर्टिस्ट ने उन ठगों के हुलिए के रेखाचित्र बना दिए. उन में एक उस मुसलिम युवक और 2 युवतियों के चित्र थे. एसएचओ अमित मान ने उन रेखाचित्रों को हर थाने में वाट्सऐप द्वारा भेज कर उन्हें देखते ही हिरासत में लेने और सूचना देने का अनुरोध कर दिया. एसएचओ अमित मान अपने साथ एसआई नीरज शर्मा और पुलिस टीम के साथ चंद्रेश और राजवीर को साथ ले कर उन ठगों के कथित औफिस के लिए निकल गए. लेकिन औफिस पर ताला बंद था. वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की पड़ताल की गई तो उन युवक और युवतियों की पहचान चंद्रेश और राजवीर ने कर दी.
तीनों की फोटो अपने मोबाइल में अपलोड करने के बाद एसएचओ अमित मान ने अपने तमाम मुखबिरों को वह फोटो उन के मोबाइल में भेज कर उन की तलाश में लगा दिया. पुलिस टीम भी उन वांछित ठगों की तलाश में पूरे शहर में फैल गई. पुलिस और मुखबिरों की मेहनत रंग लाई. उन ठगों को 30 दिसंबर को सेक्टर 62 के गोलचक्कर से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी की सूचना पा कर वरिष्ठ अधिकारी भी थाने पहुंच गए. उन की उपस्थिति में ठगों से पूछताछ शुरू हुई. उन के नाम तस्कीर अहमद खान, रितिक सिंह उर्फ लवलीन व वैशाली पाल थे. तीनों पढ़ेलिखे थे. अपने शौक व तुरंत अमीर बनने की महत्त्वाकांक्षा के लिए उन्होंने ठगी का यह धंधा अख्तियार किया था. तीनों दोस्त थे.
तस्कीर अहमद को मालूम था, एमबीबीएस में छात्रों को 80-90 लाख में भी दाखिला बहुत मुश्किल से मिलता है. ऐसे छात्रों को एमबीबीएस में कालेज में दाखिला दिलवाने के लिए 15 से 30 लाख रुपया ले कर ठगा जा सकता है. इस के लिए उन तीनों ने गौतमबुद्ध नगर में डी-247/4ए में एक औफिस खोल कर सिक्योरिटी गार्ड को रखा. इस के बाद उन्होंने कालेजों से साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन करने वाले छात्रों के एड्रैस, नाम और मोबाइल नंबर हासिल कर के उन के मोबाइल्स पर सस्ते में एमबीबीएस करवाने का मैसेज भेजा. 2-4 छात्र उन के पास आए तो उन्हें 20-30 लाख में एडमिशन दिलवाने के नाम पर ठग कर उन्हें ही अन्य दोस्तों को, जो यह कोर्स करना चाहते हैं, उकसाने और यहां लाने के लिए प्रेरित किया. इस प्रकार सैकड़ों छात्र उन के संपर्क में आ गए.
उन्होंने इस तरह छात्रों से करोड़ों रुपए ठग लिए, फिर फरजीवाड़े की पोल खुलने के डर से 18 दिसंबर, 2022 को उन्होंने छात्रों को अपाइंटमेंट लेटर दे कर सरकारी कालेज जाने को कहा और अपना बोरियाबिस्तर समेट कर भाग निकले, किंतु वे मुखबिर की सूचना पर सेक्टर-62 से पकडे़ गए. वह यह शहर छोड़ कर मुंबई भाग जाने वाले थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. पुलिस ने उन को कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर ले लिया. उन से कड़ी पूछताछ शुरू हुई तो उन्होंने अपने 3 और साथियों के नाम बताए, जो परदे के पीछे रह कर काम कर रहे थे. ये नाम थे- 1. नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, निवासी-गांव महादेवा, थाना-माली, जिला-औरंगाबाद (बिहार) 2. अभिषेक आनंद उर्फ सुनील, निवासी- 193, मानसा मार्ग, कृष्णापुरी, पटना (बिहार) 3. मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल हक निवासी-149, हौजरानी, मैक्स हौस्पिटल के पास, मालवीय नगर, दिल्ली.
इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस टीम भेजी गई, लेकिन ये तीनों फरार हो गए थे. शायद इन्हें अपने साथियों के पकड़े जाने की भनक लग गई थी. पकड़े गए तस्कीर अहमद खान पुत्र अहमद अली खान, निवासी मुरादी रोड, बाटला हाउस, थाना जामिया, दिल्ली 2. रितिक उर्फ लवलीन कौर पुत्री गुरुदेव कौर, चाम्स केशल, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद. 3. वैशाली पाल पुत्री मूलचंद सिंह, निवासी-साईं एन्क्लेव, डी ब्लौक, नंदग्राम, गाजियाबाद. रिमांड अवधि में इन से छात्रों से ठगे गए रुपयों के संबंध में पूछताछ की गई तो इन की निशानदेही पर 19 लाख रुपया, 3 अंगूठी सफेद धातु, एक ब्रेसलेट सफेद धातु, 6 चेन पीली धातु, एक बाली पीली धातु, 6 अंगूठियां पीली धातु, 6 मोबाइल, 14 की पैड फोन, 3 डायरी, एक पैन कार्ड, 4 एटीएम कार्ड, एक आधार कार्ड बरामद हुआ.
पुलिस ने इन के विरुद्ध भादंवि की धारा 420/406/120बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर इन्हें दोबारा अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.
तीनों भगोड़े ठगों नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, अभिषेक आनंद उर्फ सुनील व मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल पर पुलिस ने 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. इन्होंने पुलिस को बहुत छकाया, लेकिन अंत में 28 जनवरी, 2023 को 11 बजे ये तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. इन से भी पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.