Sad Story :  कहते हैं, हताशनिराश या दुखी हो कर इंसान जब आत्महत्या की सोचता है तो सिर्फ एक पल ऐसा होता है, जो उसे आत्महत्या करने को उकसाता है. अगर किसी तरह वह एक पल निकल जाए, तो इंसान आत्महत्या का इरादा छोड़ देता है दिशा की तरह. आत्महत्या को ले कर बुनी गई एक रोचक कहानी…

दिशा को उस के प्रेमी ने तो धोखा दिया ही था, साथ ही उस की वजह से दिशा की अच्छीभली नौकरी भी चली गई थी. भेद खुला तो घर वाले बहुत नाराज हुए. साथ ही सगेसंबंधियों और जानपहचान वालों में उस की खासी बदनामी हुई. शरम के मारे दिशा ने बाहर आनाजाना तक बंद कर दिया था. वह घर में ही पड़ीपड़ी घुटती रहती थी. जिस की वजह से वह इतनी हताश और निराश हो गई कि उसे अपना जीवन व्यर्थ सा लगने लगा था.

एक दिन शाम को घर के सभी लोग किसी रिश्तेदार के यहां शादी में गए हुए थे. वह दिशा को अपने साथ इसलिए नहीं ले गए थे कि लोग पता नहीं कैसेकैसे सवाल पूछें. पहले ही हताशनिराश दिशा घर वालों के इस व्यवहार से और ज्यादा निराश हुई. उसे लगा कि इस तरह जीने से तो मर जाना ही बेहतर है. उस समय वह घर में अकेली थी. उस के लिए यह अच्छा मौका था, इसलिए उस ने आत्महत्या करने का फैसला ले लिया.

नींद न आने की वजह से उस ने नींद की गोलियां पहले ही खरीद रखी थीं. उस ने झटपट सुसाइड नोट लिखा और नींद की गोलियों की पूरी शीशी और एक गिलास पानी अपने पास रख लिया. इस के बाद वह सोचने लगी कि उस के जीवन की यह अंतिम शाम होगी, क्योंकि ऐसे जीवन का कोई मतलब नहीं है, जिस में कोई अपना हो ही नहीं. अब न तो कोई उस की चिंता करने वाला है और न कोई उस के बारे में सोचने वाला. अगर वह जिंदा रहती है तो पूरी जिंदगी उसे इसी तरह घर वालों के ताने सुनते रहना पड़ेगा. अब उस की सहन करने की सारी हदें पार हो गई हैं. जब घर वाले ही उस के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं तो जीने से क्या फायदा.

हाथ में नींद की गोलियों की शीशी लिए दिशा की सोच (Sad Story) आगे बढ़ पाती, इस से पहले ही बैड पर पड़े मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. दिशा ने नफरत से मोबाइल की ओर देखा. उस ने सोच लिया कि फोन किसी का भी हो, वह नहीं उठाएगी. जब उस ने मरने का फैसला कर ही लिया है तो फोन उठाने की जरूरत ही क्या है. उस ने यह भी नहीं देखा कि फोन किस का है.

दूसरी ओर फोन करने वाले ने भी जैसे ठान लिया था कि जब तक फोन उठेगा नहीं, वह घंटी बजाता रहेगा. निश्चित समय तक घंटी बजने के बाद कुछ सैकेंड के लिए बंद होती और फिर बजनी शुरू हो जाती. यही क्रम लगातार चलता रहा. लगातार घंटी बजती रही तो उकता कर दिशा ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि देखें कौन है, जो उस से बातें करने के लिए मरा जा रहा है. फोन रिसीव कर जैसे ही दिशा ने हैलो कहा तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘क्या मैं यश से बात कर सकता हूं?’’

‘‘कौन यश?’’ जवाब देने के बजाय दिशा ने सवाल किया.

‘‘यश…यश ठाकुर.’’ वह बोला.

‘‘सौरी रौंग नंबर, यहां कोई यश नहीं रहता.’’ दिशा ने कहा.

‘‘तो कौन रहता है?’’

‘‘क्या मतलब?’’ दिशा थोड़ी नाराज हो कर बोली.

‘‘मेरे पूछने का मतलब यह कि आप कौन बोल रही हैं?’’

‘‘मैं यश तो नहीं हूं न, आप के लिए इतना पर्याप्त नहीं है क्या?’’

‘‘यह तो मैं भी जान रहा हूं कि आप यश नहीं हैं, क्योंकि यह आवाज यश की नहीं है. लेकिन आप बुरा मत मानिएगा, आप की आवाज बहुत मधुर है. एकदम शहद जैसी. आप की आवाज अच्छी लगी, इसीलिए पूछ लिया. आई एम वेरीवेरी सौरी, अगर बुरा लगा हो तो…’’

मस्का लगाने पर दिशा की नाराजगी थोड़ी कम हुई. क्षण भर चुप्पी साधे रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘मैं दिशा बोल रही हूं. आई मीन मेरा नाम दिशा है.’’

‘‘ओह ग्रेट, जीवन में सब को गाइड करने वाली यानी दिशा दिखाने वाली…सचमुच बड़ा सुंदर नाम है.’’

‘‘सौरी, मैं न किसी को गाइड करती हूं और न ही दिशा दिखाती हूं.’’

‘‘अगेन सौरी…मैं तो मजाक कर रहा था.’’

‘‘अनजान लोगों से आप की मजाक करने की आदत है क्या?’’

‘‘नहीं, आप अनजान नहीं लगीं, इसीलिए…’’

‘‘बातें करने में आप बहुत स्मार्ट लगते हैं.’’

‘‘सिर्फ बातें करने में ही नहीं, मैं तो पूरा का पूरा स्मार्ट हूं.’’

‘‘आप अपने बारे में ऊंची मान्यता रखने वाले लगते हैं.’’

‘‘अपने बारे में अच्छा सोचना, सम्मान रखना कोई बुरी बात तो नहीं. आप ही बताओ, अपनी उपेक्षा क्यों की जाए?’’

‘‘लेखक हो क्या?’’

‘‘हूं तो नहीं पर बनने के सपने देख रहा हूं.’’

‘‘सपना…केवल सपना ही देखते हो या मेहनत भी करते हो?’’ अब दिशा धीरेधीरे उस अनजान की बातों में उलझती जा रही थी.

‘‘इस समय मैं कर क्या रहा हूं, मेहनत ही तो कर रहा हूं. दिशा नाम की लड़की को पटाने की मेहनत…’’

‘‘व्हाट?’’ दिशा नाराज हो कर बोली.

‘‘सौरी…सौरी, मिठास के साथ आप में कड़वाहट भी है. मैं ने यही जानने के लिए पटाने वाली बात कही थी. क्योंकि केवल मिठास होना ही अच्छी बात नहीं है. आप में तो मिठास के साथसाथ कड़वाहट भी है.’’

‘‘बातें बनाना और मस्का लगाना आप को बहुत अच्छा आता है.’’

‘‘थैंक्स फौर कांप्लीमेंट्स. हमारे ऊपर हमेशा आप जैसी सुंदर लड़कियों की शुभकामनाओं की मेहरबानी रही है.’’

‘‘मैं सुंदर हूं, यह आप से किस ने कहा?’’

‘‘मैं लड़कियों को सुंदर ही मानता हूं. कहा जाता है कि सुंदरता नजरों में होती है और मेरी नजर सुंदर है. मैं तो उन्हीं कवियों को पसंद करता हूं जो प्रेम (Sad Story) की कविताएं लिखते हैं.’’ इतना कह कर वह जोर से हंसा. उस के इस तरह हंसने से दिशा खीझ कर बोली, ‘‘खुद को स्मार्ट साबित करने का तुम्हारा यह आइडिया बहुत सुंदर है. लगता है, तुम ने ‘रौंग नंबर’ कहानी पढ़ ली है.’’

‘‘आप बेकार ही इस कहानी को बीच में ला रही हैं. वैसे भी इस कहानी से हमें काफी सुविधा मिली है. फोन पर कैसे बात की जाए, यह तो पता चल ही जाता है.’’

‘‘कहीं वह कहानी आप ने ही तो नहीं लिखी है. इस तरह बातचीत कर के एक और कहानी लिखना चाहते हों. आप ने पहले ही बताया है कि आप लेखक बनने का सपना देख रहे हैं. इसी तरह कहानी लिख कर लेखक बन जाएं. वैसे आप का सेंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है.’’

न चाहते हुए भी दिशा के चेहरे पर मुसकान की हलकी लहर दौड़ गई. आत्महत्या के अंतिम पलों में हंसी भला कहां आती है. अगर जीवन में हंसने के ही मौके होते तो मन में आत्महत्या का विचार ही क्यों आता.

‘‘मेरे सेंस औफ ह्यूमर के लिए तो मेरे दोस्त भी दाद देते हैं.’’ वह बोला.

‘‘लेकिन मैं आप की दोस्त थोड़े ही हूं.’’

‘‘मुझे तो यही लगता है कि अब तक आप मेरी दोस्त बन गई हैं. वरना कोई रौंग नंबर पर इतनी देर बातें करता है क्या?’’

दिशा ने तुरंत फोन काट दिया. वह बुदबुदाने लगी, ‘अपने आप को समझता क्या है?’

5-7 मिनट तक शांति छाई रही. उस के बाद फिर फोन बजा. इस बार न जाने क्यों दिशा ने तुरंत फोन उठा लिया. जबकि उसे उम्मीद थी कि फोन उसी अनजान आदमी का होगा. दिशा को लगा, यह आदमी आसानी से पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसे थोड़ा हड़काना ही पड़ेगा. इसलिए दिशा ने गुस्से में तेज आवाज में कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो.’’ फिर वही आवाज आई. शायद उस की समझ में आ गया कि दिशा उस के फोन करने से नाराज है, इसलिए उस ने सहानुभूति पाने के लिए बात बदल दी. उस ने कहा, ‘‘सौरी दिशाजी, मेरा इरादा आप को हर्ट करने का नहीं था. मुझे लगा कि जीवन के अंतिम पलों में किसी अच्छे व्यक्ति से बात कर के इस दुनिया को अलविदा (Sad Story) कहूं. लेकिन…’’

दिशा चौंकी. इस का मतलब यह भी उसी की तरह दुखी है. बीमार तो है नहीं, शायद प्रेम में धोखा खाया होगा. इसलिए न चाहते हुए भी उस के मुंह से निकल गया, ‘‘यानी आप भी मेरी तरह..?’’

पलभर मौन के बाद दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘तो क्या आप भी मेरी तरह..?’’

‘‘हां, मेरी भी इस अंतिम शाम की यह अंतिम बातचीत है. अपनी मुलाकात आप को कुछ अनोखी नहीं लगती.’’

‘‘हां, अनोखी ही है, अंतिम पलों के साथी बन गए हैं हम.’’

‘‘पर आप तो पुरुष हैं. आप को आत्महत्या करने की क्या जरूरत है?’’

थोड़ी देर शांति के बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘क्यों, ऐसा कोई नियम है क्या कि पुरुष को कोई परेशानी नहीं हो सकती?’’

‘‘नहीं…नहीं, नियम तो नहीं है लेकिन सामान्य रूप से हमारा समाज पुरुष प्रधान है. इसलिए जब सहन करने की बात आती है तो वह स्त्रियों के हिस्से में आता है.’’

‘‘यह आप का भ्रम है लेकिन अब अंतिम समय में आप का यह भ्रम तोड़ने से कोई फायदा नहीं है, वरना जरूर पूरी बात कहता. पर जाने से पहले दिल हलका करने के लिए एक बात…पर जाने दो. अंतिम समय में दिल हलका हो या न हो, क्या फर्क पड़ता है.’’

‘‘हमेशा ऐसा नहीं होता. अगर कोई सहृदय बात सुने तो जरूर अच्छा लगता है. और वैसे भी हंसतेहंसते दुनिया को अलविदा कहना हर आदमी के भाग्य में नहीं होता.’’

‘‘आप तो दार्शनिक की तरह बातें करने लगीं.’’

‘‘अंतिम पलों में शायद हर आदमी अपने आप दार्शनिक हो जाता है.’’ दिशा अनायास ही बातों के प्रवाह में बहती चली गई. उस ने आगे कहा, ‘‘पर अपनी बातें सुनने का समय अब किस के पास है.’’

‘‘आप की बात सच है. पर मुझे इस समय मौत जैसा कोई दूसरा सुख दिखाई नहीं दे रहा.’’ दूसरी ओर से निराशा भरी आवाज आई.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. आप तो पुरुष हैं, पुरुष हो कर भी हिम्मत हार गए. इस तरह निराशावादी होना आप के लिए शोभा नहीं देता.’’

‘‘मुझे कुछ भी ठीक नहीं लग रहा. दिशाजी, आप ही सोचो कि अगर सब अच्छा होता तो मरने के बारे में सोचता ही क्यों.’’

‘‘अच्छे में तो सभी जी लेते हैं, बात तो मुश्किलों से सामना करने की है. मरना तो आसान है. आप ने मुश्किलों से मुकाबला कर के जीने की कोशिश नहीं की?’’ अब तक दिशा जानेअनजाने में काउंसलर की भूमिका में आ गई थी.

‘‘हो सकता है. लेकिन एक बार जो निर्णय कर लिया, अब उसे बदलने की मेरी इच्छा नहीं हो रही है.’’

‘‘जीवन में हम कितनी बार अपना फैसला बदलते हैं. आप अपना नजरिया तो बदलिए और थोड़ा पौजिटिव बनिए. हो सकता है, दुनिया कुछ अलग ही दिखाई दे.’’

‘‘शायद आप की बात सच हो…’’

‘‘सौ प्रतिशत सच है.’’ दिशा जैसे जुनून में आ गई थी.

‘‘होगी, पर अब मैं इस तरह कुछ नहीं सोचना चाहता. जीने के लिए कितने समझौते करने होते हैं. कभीकभी हमें भी…’’ दूसरी ओर से इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी गई.

‘‘परेशानियों से डर कर मैदान छोड़ देना कायरता कही जाएगी.’’ दिशा की काउंसलर की भूमिका आगे बढ़ी, ‘‘कभीकभी हम छोटी से छोटी बात को ले कर आवेश में आ जाते हैं और बिना सोचेसमझे उलटासीधा कदम उठा लेते हैं.’’

‘‘आप तो काफी पढ़ेलिखे लगते हैं. फिर भी…’’

‘‘थैंक फौर कांप्लीमेंट्स. पर कभीकभी ज्यादा पढ़लिख लेना भी काम नहीं आता. उस का ढंग से उपयोग नहीं किया जा सकता. किताबों में जो पढ़ाया जाता है, वह जीवन में किस काम आता है. मुझे तो यह सब बेकार की चीजें लगती हैं. दूसरों को कहना आसान है. जब खुद पर जरा भी परेशानी आती है तो सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है.’’

‘‘ऐसा हमेशा थोड़े ही होता है.’’

‘‘वैसे आप की बात निश्चित रूप से विचार करने लायक है. सच कहूं, मन में यह विचार तो आता ही है कि मैं तो आत्महत्या कर के इस समाज और दुनिया से छुटकारा पा जाऊंगा, पर क्या यह स्वार्थ नहीं होगा? क्या मैं स्वार्थी नहीं कहलाऊंगा? मेरे चले जाने के बाद दुनिया पर तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन कोई तो होगा, जिसे मेरे जाने का दुख होगा. यही मैं इतनी देर से सोच रहा हूं.’’

‘‘इतना सोचनेविचारने के बाद भी आखिर में आप ने नेगेटिव ही सोचा.’’

‘‘क्या करूं दिशाजी, आदत से मजबूर हूं.’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, यह कह कर छुटकारा पाने का हमारा हक नहीं है. हमारी अब तक की जिंदगी में कितने लोगों का सहयोग है. मातापिता, सगेसंबंधी, मित्र…कोई तो होगा जो हमारे लिए…’’ कहतेकहते दिशा अचानक रुक गई. दिशा बातों के प्रवाह में इस कदर बह गई थी कि उसे इस बात का भी भान नहीं रहा कि वह एक अपरिचित व्यक्ति से बात कर रही है. जबकि वह खुद भी आत्महत्या करने का निर्णय किए बैठी थी. ऐसे में इस तरह की दलीलें करना शोभा देता है क्या? पर नहीं, अपनी दलीलों से अगर किसी का जीवन बच जाता है तो…जातेजाते एक नेक काम तो करती जाए.

‘‘आप अचानक चुप क्यों हो गईं? अपनी बात आती है तो सभी इसी तरह चुप हो जाते हैं. देखिए, दूसरों को उपदेश देना या बड़ीबड़ी बातें करना बड़ा आसान होता है लेकिन उन्हें अमल में लाना आसान नहीं है.

‘‘मुझे पता था कि आप यही सब प्रवचन देंगी कि जीवन अनमोल है, समाज में हम से भी ज्यादा दुखी तमाम लोग हैं,जो मजे से जी रहे हैं. उन की तरफ देखो, तब पता चलेगा कि हमारे पास कितना कुछ है. यही सब कहना चाहती हैं न आप. अरे मोहतरमा, यह सब मैं खूब सुन चुका हूं. पर अब इन सब बातों का मेरे ऊपर कोई असर नहीं होने वाला.’’

दिशा को उस की इन बातों पर गुस्सा आया. जब उसे सब पता ही है तो इसे क्या समझाना. ऐसे आदमी को समझाया भी नहीं जा सकता. लेकिन जानते हुए किसी को मरने के लिए कैसे छोड़ा जा सकता है?

इसलिए उस ने एक बार और कोशिश की, ‘‘देखिए मिस्टर, आप कोई भी हैं. फिर भी लेट मी टेल वनथिंग… आप ने भले ही निर्णय कर लिया है, लेकिन एक काम कीजिए. आप ज्यादा दिनों के लिए नहीं, बस एक दिन के लिए इस विचार को मुल्तवी कर दीजिए. आप को आत्महत्या ही करनी है तो आज के बजाय कल कर लीजिएगा.’’

‘‘एक दिन में क्या फर्क पड़ने वाला है. अरे जो काम कल करना है, उसे आज ही कर के छुट्टी पा लो.’’

‘‘यह तो मुझे नहीं पता कि एक दिन में क्या फर्क पड़ेगा, पर शायद आप ने यह निर्णय किसी क्षणिक आवेश में लिया हो तो हो सकता कल का सूरज आप के लिए कोई शुभ संदेश ले कर उदय हो. आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह तो मुझे नहीं पता, पर हो सकता है कि कल आप को जिंदगी जीने लायक लगे. जैसा आप ने कहा है, शायद उसी तरह अगला बसंत आप की प्रतीक्षा में…’’

‘‘वैसे आप की सारी बातें सच हैं. किसी को भी आप बहुत अच्छी तरह से समझा लेती हैं. आप एक काम कीजिए, काउंसलिंग सर्विस खोल लीजिए, बहुत अच्छी चलेगी.’’

‘‘जब आप पर मेरी काउंसलिंग का कोई असर नहीं हो रहा है तो आप यह कैसे कह सकते हैं कि मेरी काउंसलिंग सर्विस अच्छी चलेगी.’’

‘‘यह किस ने कहा कि आप की काउंसलिंग का मेरे ऊपर असर नहीं हो रहा.’’

‘‘यानी आप ने मेरी बात मान ली है?’’ दिशा इस तरह उत्साह में कैसे आ गई, यह उस की समझ में नहीं आया.

‘‘इस समय तो यही लग रहा है कि आप जो एक दिन के लिए मुल्तवी करने को कह रही हैं, वह ठीक ही है. आप की इस बात पर विचार तो किया ही जा सकता है.’’

‘‘केवल विचार ही नहीं किया जा सकता, इस पर अमल करना जरूरी है.’’ दिशा ने यह बात एकदम गंभीर हो कर कही.

‘‘ओके मैडम, आप जीतीं, मैं हारा. आप की बात मान कर मैं आज के दिन…केवल आज के दिन मरने यानी आत्महत्या करने का कार्यक्रम टाल रहा हूं. हो सकता है, आप मेरे लिए सही अर्थ में मार्गदर्शक बन कर आई हों. मैं ने तो आप की बात मान ली, अब आप को भी मेरी बात माननी होगी. आप भी आज आत्महत्या नहीं करेंगी.’’

‘‘ठीक है, लेकिन मेरी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आप कल मुझे फोन करेंगे.’’

‘‘मुझे आप की यह शर्त मंजूर है.’’ कह कर रौंग नंबर ने फोन काट दिया.

इस के बाद दिशा रौंग नंबर के नाम से नंबर सेव कर रही थी तो रौंग नंबर दिशा के नाम से. नंबर सेव करते हुए दिशा के कानों में अपने ही शब्द गूंज रहे थे. 5-7 मिनट तक वह नींद की गोलियों की शीशी को देखती रही. उस के दिलोदिमाग में अपनी ही बातें गूंज रही थीं. वह जल्दी से उठी, शीशी का ढक्कन खोल कर सारी गोलियां नाली में फेंक दी. दूसरी ओर रौंग नंबर इस बात से खुश था कि उस ने अपनी साइकोलौजी से एक जान बचा ली.

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