Rape Case : समाजसेवा के नाम पर सरकारी मदद से चलने वाली संस्थाओं की हकीकत ज्यादातर कड़वी ही होती है, लेकिन सरकारी अफसरों से मिलीभगत से सारी बातें दबी रह जाती हैं. अश्विन शर्मा मूकबधिर लड़कियों का हौस्टल चलाता था, जब उस की हकीकत खुली तो…

मोनिका पुरोहित इंदौर के तुकोगंज थाना क्षेत्र मूकबधिर पुलिस सहायता केंद्र की समन्वयक हैं. थाने में यह सहायता केंद्र उन के पति ज्ञानेंद्र पुरोहित की पहल पर खुला था. जानने वाले ही जानते हैं कि पुरोहित दंपति ने अपना जीवन मूकबधिरों के नाम कर रखा है. उन के कानूनी हकों के लिए ज्ञानेंद्र ने लंबी लड़ाई लड़ी है और वे आज भी उन की किसी भी तरह की सहायता के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध रहते हैं.

मूकबधिरों के लिए जीवन समर्पित कर देने वाले पुरोहित दंपति के पास हजारों अहम और दिलचस्प अनुभव हैं. लेकिन 2 अगस्त, 2018 को अपने कार्यालय में बैठी मोनिका को जो अनुभव हुआ, वह शर्मसार कर देने वाला था. हुआ यूं था कि उस दिन आदिवासी बाहुल्य जिले धार के एक गांव की 2 मूकबधिर लड़कियां उन के पास आई थीं. अपने पति की ही तरह मोनिका भी मूकबधिरों की भाषा यानी साइन लैंग्वेज की अच्छी जानकार हैं, इसलिए मूकबधिरों को उन की किसी भी समस्या के समाधान के लिए उन के पास भेज दिया जाता है.

ये दोनों लड़कियां यह जानने उन के पास आई थीं कि पढ़ाई के लिए वे कहां जाएं और इस के बाद उन का भविष्य क्या है. मोनिका के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, लिहाजा उन्होंने तुरंत साइन लैंग्वेज में इन लड़कियों को उन के सारे सवालों के जवाब दिए और यह कह कर उन का उत्साह बढ़ाया कि मूकबधिर होना एक कमी जरूर है लेकिन यह कमी कोई अभिशाप नहीं है. साथ ही उन्होंने दोनों लड़कियों को उन सरकारी योजनाओं की पूरी जानकारी भी दी, जिन के तहत सरकार दिव्यांग बच्चों को अपने खर्चे पर न केवल पढ़ातीलिखाती है, बल्कि हौस्टल और खानेपीने का भी सारा खर्च उठाती है.

लड़कियों से बात करतेकरते मोनिका को कुछ साल पहले उन्हीं लड़कियों के गांव से आई एक और मूकबधिर लड़की पार्वती (बदला नाम) की याद आई जो इन्हीं की तरह उन के पास जानकारियां लेने आई थी. पार्वती की तरफ उन का ध्यान इसलिए भी गया था कि वह बेहद मासूम और खूबसूरत थी. उस ने इंदौर में उन्हीं के पास रह कर 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी, इसलिए उन्हें उस से कुछ ज्यादा ही लगाव था. उन्होंने जिज्ञासावश पार्वती के बारे में पूछा कि इन दिनों वह कहां है और कैसी है. पार्वती के बारे में सुनते ही दोनों लड़कियों के चेहरे सकपकाए और उन का रंग उड़ गया. दोनों की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया देख कर मोनिका चौंकीं. वह समझ गईं कि कुछ गड़बड़ है. यह अंदेशा होते ही मोनिका ने दोनों को प्यार से पुचकारा तो उन्होंने जो सच बताया उसे सुन कर मोनिका सिर से ले कर पांव तक सिहर उठीं.

उन्होंने इन दोनों से उस के बारे में जो सुना, उसे जान कर एक क्षण को उन के जेहन में यह खयाल भी आया कि दुनिया में ऐसेऐसे लोग भी हैं, जो विकलांगों तक को नहीं छोड़ते. वह कुछ देर सकते की हालत में रहीं लेकिन जल्द ही उन्होंने सख्ती से यह सख्त फैसला ले लिया कि वह उस हैवान को उस के किए की सजा दिलाने में अपनी भूमिका जरूर निभाएंगी, जिस ने एक ऐसी लड़की की जिंदगी नर्क बना दी, जो बेचारी न बोल सकती है और न ही सुन सकती है. उन्होंने सोचा कि ऐसे हैवान को अगर सजा नहीं मिली तो उस के जैसे न जाने कितने हैवान भोलीभाली मासूम मूकबधिरों को अपनी हवस और वासना का (Rape Case) शिकार बनाते रहेंगे और उन के वहशीपन पर शराफत और समाजसेवा का चोला पड़ा रहेगा.

पार्वती की कड़वी हकीकत आई सामने दोनों लड़कियों ने मोनिका को बताया कि पार्वती का हाल बुरा है. वह भोपाल के जिस हौस्टल में रह रही है, उस का संचालक अश्विन शर्मा उसे घर नहीं जाने दे रहा. जबकि पार्वती की पढ़ाई पूरी हो चुकी है. मूकबधिर पार्वती मध्य प्रदेश में धार जिले के एक गांव की रहने वाली थी. यह इशारा ही मोनिका के दिमाग की घंटियां बजा देने के लिए काफी था. कुछ सोचने के बाद मोनिका ने पार्वती के घर फोन किया और सारी बात बताई. इस के अगले दिन ही पार्वती का भाई उसे लेने के लिए भोपाल रवाना हो गया. 4 अगस्त को वह भोपाल पहुंच कर हौस्टल के संचालक अश्विन से मिला और समझदारी दिखाते हुए यह बहाना बनाया कि घर में जरूरी काम आ गया है, इसलिए पार्वती को तुरंत ले जाना है.

अश्विन उस की मंशा समझ नहीं पाया और उस ने पार्वती को यह सोचते हुए जाने दिया कि चिडि़या जाएगी कहां, 2-4 दिनों में अपने पिंजरे में वापस आ जाएगी. सधी ऐक्टिंग करते हुए पार्वती का भाई अपनी बहन को वहां से धार होते हुए इंदौर में मोनिका के पास ले गया. मोनिका को देखते ही पार्वती उन के सीने से लग कर फफकफफक कर रो पड़ी. अपने ऊपर हुए अत्याचारों की कहानी कहने के लिए उस के आंसू ही काफी थे, जिन्हें किसी जुबान की जरूरत नहीं थी लेकिन अश्विन को उस के कुकर्मों की सजा दिलवाने के लिए महज आंसू ही काफी नहीं थे, इसलिए उन्हें शब्द देना जरूरी हो गया था. लिहाजा पार्वती ने अपनी आपबीती मोनिका को विस्तार से सुना दी.

पार्वती की आपबीती सुन कर मोनिका ने धार के पुलिस अधीक्षक वीरेंद्र सिंह से संपर्क किया और उन्हें सारी बात बताई. चूंकि मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने डीआईजी और आईजी को भी सूचना दे दी. नतीजतन 8 अगस्त, 2018 को धार थाने में पार्वती की रिपोर्ट दर्ज की गई. अश्विन शर्मा के खिलाफ एफआईआर नंबर शून्य पर मामला दर्ज करते हुए डायरी भोपाल के अवधपुरी थाने भेज दी गई. इंसान नहीं शैतान था अश्विन शर्मा अवधपुरी भोपाल के रायसेन रोड पर स्थित एक विकसित रिहायशी इलाका है. यहां की एक कालोनी क्रिस्टल आइडल सिटी में दिव्यांगों के लिए एक हौस्टल संचालित होता है, जिस का संचालक 35 वर्षीय अश्विन शर्मा है. उसी के हौस्टल में पार्वती कैद थी. यहीं पर अश्विन ने 3 डुप्लेक्स फ्लैट किराए पर ले रखे थे.

संस्था के साथसाथ यहीं उस का ‘कृतार्थ’ नाम से हौस्टल भी है. अब तक क्रिस्टल आइडल सिटी और अवधपुरी के लोग यही जानते थे कि अश्विन समाजसेवी है और दिव्यांग बच्चियों की मदद करता है. इस बाबत अकसर वह बड़ी बेचारगी से कहता भी था कि उस का बेटा भी दिव्यांग है, इसलिए वह समाजसेवा का यह काम करता है. आजकल तमाम जगहों पर ऐसी संस्थाएं और हौस्टल हैं, इसलिए लोगों को हैरानी नहीं होती. अश्विन को मूकबधिर लड़कियों के आवास और खानेपीने के लिए प्रदेश के सामाजिक न्याय विभाग से आर्थिक सहायता मिलती थी.

जैसे ही पुलिस ने अश्विन को गिरफ्तार किया, मामले ने राजनैतिक तूल पकड़ लिया. क्योंकि मामला एक मूकबधिर आदिवासी लड़की से हौस्टल के संचालक द्वारा (Rape Case) बलात्कार का था. अश्विन की गिरफ्तारी की खबर देश भर में आग की तरह फैली क्योंकि इन्हीं दिनों बिहार और उत्तर प्रदेश के इसी तरह के दुराचारों को ले कर सड़क से संसद तक हल्ला मचा हुआ था और लोग सरकार को पानी पीपी कर कोस रहे थे कि आखिर ये हो क्या रहा है, जो मासूम दिव्यांग लड़कियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है.

लोगों ने किया प्रदर्शन अभी पार्वती के साथ हुई ज्यादती पूरी तरह लोगों के सामने नहीं आई थी लेकिन अश्विन की गिरफ्तारी के दूसरे दिन इंदौर के हीरानगर थाने में 2 और सगी मूकबधिर बहनों ने उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. उन्होंने कहा कि अश्विन अपने हौस्टल में उन के साथ शारीरिक छेड़छाड़ करता था. अश्विन की हैवानियत पूरी तरह 11 अगस्त, 2018 को उजागर हुई, जब होहल्ला मचने के बाद धार थाने में एक और लड़की सुनीता (बदला हुआ नाम) ने यह रिपोर्ट दर्ज कराई कि अश्विन ने उस के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक कृत्य किया था.

अश्विन के पापों का घड़ा फूटा तो लोग उबल पड़े लेकिन इस घड़े में पहला पत्थर मारने वाली 20 वर्षीय पार्वती ही थी. वह किस तरह उस के चंगुल में आ फंसी थी, यह जानना इस लिहाज से जरूरी है कि आखिर कैसे एनजीओ और हौस्टल के नाम पर लड़कियों के शारीरिक और मानसिक शोषण का कुचक्र चलता है और इस में कुछ सरकारी विभाग भी परोक्ष रूप से शामिल होते हैं. पार्वती लगभग 3 साल पहले अश्विन के संपर्क में आई थी. 10वीं का इम्तिहान पार्वती ने सन 2015-16 में पास किया था. सामाजिक न्याय विभाग ने उसे आगे पढ़ने के लिए भोपाल भेजा था. भोपाल में उसे गैस राहत विभाग के गोविंदपुरा स्थित आईटीआई में एडमिशन मिला था. यहां ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग छात्रछात्राओं की जिम्मेदारी उठाने वाले सामाजिक न्याय विभाग ने ही उसे अश्विन शर्मा के अवधपुरी स्थित हौस्टल भेजा था.

पार्वती जब हौस्टल रहने आई, तब वहां कई लड़कियां रहती थीं. पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद जब लड़कियां घर जाने लगीं तो अश्विन ने 4 लड़कियों को ट्रेनिंग के बहाने रोक लिया. उसी वक्त उस ने इन लड़कियों को यह भी बताया कि अब उन्हें बजाय हौस्टल के उस के घर पर रहना पड़ेगा. अभी तक सरकारी और अश्विन के अहसान तले दबी ये लड़कियां उस की कुत्सित मंशा नहीं समझ पाई थीं. 2016 की दीवाली के दिनों में अश्विन ने राक्षसी तरीके से पार्वती के जिस्म से छेड़छाड़ की थी, जिस से उसे कई दिनों तक दर्द सहना पड़ा. उस रात अश्विन जबरन उस के बिस्तर में घुस गया था.

पार्वती फंसी अमानुष के चंगुल में 24 दिसंबर, 2016 को अश्विन ने पार्वती का बलात्कार किया था. उस रात उस की मंशा देख पार्वती ने उस के हाथपांव जोड़ते हुए बख्शने की मिन्नतें की थीं. लेकिन इस हैवान का दिल नहीं पसीजा. अश्विन जब बिस्तर से बाहर निकला, तब लुटीपिटी पार्वती के कपड़े खून से सन गए थे. उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे और उस के साथ ऐसा क्यों हो रहा है. बोलने और सुनने की ताकत तो कुदरत ने उसे दी नहीं थी. अश्विन की ज्यादती से उस पर क्या गुजरी होगी, इस का सहज अंदाजा हर कोई नहीं लगा सकता. किसी तरह वह इसे भुलाने की कोशिश कर रही थी कि कुछ दिन बाद अश्विन ने उस के साथ फिर जबरदस्ती कर डाली.

इंदौर के हीरानगर थाने में जिन 2 बहनों ने रिपोर्ट लिखाई थी, उन्होंने पुलिस को बताया था कि अश्विन ने उन के साथ भी बलात्कार की कोशिश की थी, पर दोनों बहनें उस की पिटाई कर इंदौर भाग आई थीं. लेकिन उन्होंने अश्विन के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखाई थी. जब वह गिरफ्तार हुआ तो उन्हें हिम्मत बंधी. यह मामला इंदौर में एफआईआर संख्या शून्य पर दर्ज किया गया. धार की सुनीता ने बताया था कि अश्विन जबरन उसे अश्लील (Rape Case) वीडियो दिखाता था. इस पर उस ने मना किया तो अश्विन ने उस की पिटाई भी की. सुनीता के मुताबिक हौस्टल में लड़कियों से नौकरानियों की तरह काम करवाया जाता था और अश्विन कम उम्र लड़कियों के साथ अप्राकृतिक तरीके से यौन क्रियाएं करता था.

इन चारों लड़कियों ने अलगअलग दिन साइन लैंग्वेज में जो आपबीती सुनाई, वह वाकई दिल दहला देने वाली निकली. पता चला कि गरीब घरों की मूकबधिर लड़कियों की इमदाद के नाम पर कैसेकैसे शोषण किया जाता है. इन मामलों के उजागर होने पर भोपाल की सड़कों पर प्रदर्शन हुए, हायहाय के नारे लगे और खूब राजनीति भी हुई. इस में सामाजिक न्याय  विभाग की संदिग्ध भूमिका भी सामने आई. अश्विन के बारे में पुलिस कोई खास जानकारी नहीं दे पाई, सिवाय इस के कि उस के पिता 65 वर्षीय राजेंद्र शर्मा रेलवे से रिटायर्ड सीनियर सेक्शन इंजीनियर हैं. राजेंद्र शर्मा चाहते थे कि अश्विन भी पढ़लिख कर अफसर बने, पर ऐसा नहीं हो पाया तो पैसा कमाने के लिए वह कैटरिंग का काम करने लगा.

कैटरिंग का धंधा साल भर नहीं चलता, इसलिए अश्विन ने मेस चलाना शुरू कर दिया. हौस्टल और मेस वह भी सरकारी मदद से चलाना खासे मुनाफे का धंधा है, इसलिए अश्विन की महत्त्वाकांक्षाओं को पर लग गए. बनने लगी भूमिका पाप की इमारत खड़ी करने की जल्द ही इस चलतेपुर्जे ने कई नेताओं और अधिकारियों की नजदीकियां और कृपा हासिल कर ली और हौस्टल खोल लिया. आदिवासी कल्याण विभाग में अश्विन का दखल बढ़ा तो उसे पता चला कि आदिवासी बच्चों का सारा खर्च सरकार उठाती है. लिहाजा उस ने अपनी जानपहचान का फायदा उठाते हुए आदिवासी लड़कियों का हौस्टल खोल लिया. देखते ही देखते उस के हौस्टल में 21 लड़कियां हो गईं. इन में से एक पार्वती भी थी.

अश्विन ने देखा कि जेब में घूस का पैसा और मुंह में खुशामद की मिठास हो तो सब चलता है और वाकई सब चलने लगा. विभाग से उसे प्रति छात्र लगभग 4 हजार रुपए महीने की आर्थिक सहायता मिलने लगी तो वह मालामाल हो गया. हौस्टल में 21 लड़कियां रह रही थीं, लेकिन उसे पैसा 74 लड़कियों के हिसाब से मिल रहा था. यहां तक बात हर्ज की नहीं थी, लेकिन जब उस की कुत्सित नजर इन जवान होती लड़कियों पर पड़ी जो न बोल पातीं और न सुन पातीं तो उस के भीतर बैठा राक्षस अंगड़ाइयां लेने लगा. इस बात का भी पुलिस पूरी तरह खुलासा नहीं कर पाई कि अश्विन की पत्नी भी हौस्टल में देखभाल करती थी तो उसे भी सहअभियुक्त क्यों नहीं बनाया गया. हालांकि अश्विन के पिता का कहना है कि बहू भोपाल में ही रहती है और एक साल से अलग रह रही है.

इस बयान में दम इस लिहाज से नहीं है, क्योंकि जिन दिनों पार्वती सुनीता और दूसरी 2 बहनों के साथ अश्विन ने ज्यादती की थी, उन दिनों उस की पत्नी साथ ही रहती थी. अश्विन अब जेल में है लेकिन इस घृणित मामले के कई पेंच या गुत्थियां किसी को समझ नहीं आ रही हैं. इस घृणित मामले के उजागर होते ही लोगों में गुस्सा तो था ही, साथ ही यह भी शक था कि बिना सरकारी विभागों की मिलीभगत के ऐसा होना मुमकिन नहीं. अश्विन के ठाठबाट और सामाजिक न्याय विभाग से नजदीकियों की वजह से अवधपुरी के अधिकतर लोग अश्विन के हौस्टल को सरकारी ही समझते थे.

जैसे ही यह हैवान पकड़ा गया तो हड़कंप भी खूब मचा. सब से पहले सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों ने ही कहना शुरू किया कि अश्विन से उन का कोई किसी तरह का सरकारी संबंध नहीं है. विभाग से तो उसे बस सरकारी इमदाद भर मुहैया कराई जा रही थी. बाकी उस ने जो अपराध किया, उस के लिए वह खुद जिम्मेदार है. लेकिन लोगों का शक बजाय कम होने के और गहराता जा रहा था क्योंकि पुलिस जिस तरह से अश्विन के मामले में ढिलाई बरत रही थी, वह सहज किसी के गले नहीं उतर रही थी. इस ढिलाई के अपने अलग मायने थे. यह एक तरह से सामाजिक न्याय विभाग और आदिवासी कल्याण विभाग के अधिकारियों को दिया गया मौका था कि वे अपनी कागजी करतूतों पर लीपापोती कर लें.

पेंच ही पेंच इस मामले में ऐसा हुआ भी लेकिन पूरी तरह नहीं हो पाया. पुलिस 12 अगस्त को पीडि़ताओं को मोनिका पुरोहित और उन के पति ज्ञानेंद्र पुरोहित के साथ शिनाख्त के लिए घटनास्थल पर ले गई, जहां लड़कियों ने बताया कि किस तरह उन के साथ यह हैवान दुष्कर्म करता था. 31 अगस्त को आखिरकार आधिकारिक तौर पर यह उजागर हुआ कि सामाजिक न्याय विभाग ने पीडि़ताओं को शासन की योजना के तहत साल 2015 में दाखिला दिया था. उन्हें कृतार्थ हौस्टल में भेजा गया था, जिस का मालिक अश्विन शर्मा था.

ताज्जुब की बात यह सामने आई कि अश्विन जिस एनजीओ के माध्यम से हौस्टल चला कर सरकारी सहायता ले रहा था, वह एनजीओ रजिस्टर्ड नहीं था. यह बात बहुत बड़े घपले की तरफ इशारा कर रही थी. उसे दिए गए पैसे का कभी उपयोगिता प्रमाणपत्र भी नहीं मांगा गया था, जोकि एक अनिवार्य सरकारी प्रक्रिया है. यह कम हैरानी की बात नहीं कि सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों ने इस बाबत कोई लिखित अनुबंध न कर के मौखिक अनुबंध को महत्त्व दिया था, जिस का कानूनन कोई खास महत्त्व नहीं होता. यह बात भी शायद मजबूरियों के चलते इस विभाग ने मानी क्योंकि लाखों रुपए का भुगतान अश्विन के बैंक खाते में किया गया था, जिसे छिपाना मुश्किल था. इतना ही नहीं, इस मौखिक अनुबंध के पहले अश्विन का हौस्टल केवल लड़कों का था, जिस में जाने क्यों लड़कियों को रहने दिया गया.

नियमों के मुताबिक अश्विन के हौस्टल में रह रही छात्राओं को हाजिरी भी नहीं ली जाती थी और न ही सामाजिक न्याय कल्याण विभाग के अधिकारियों ने छात्रावासों का भौतिक सत्यापन किया. सरकारी विभाग भी दोषी था पुलिस ने मामले की जांच के लिए 10 अगस्त, 2018 को एसआईटी गठित की, जिस की रिपोर्ट उस के मुखिया राहुल लोढ़ा ने भोपाल कलेक्टर को 31 अगस्त को सौंपी. तब यह अनियमितताएं आधिककारिक तौर पर उजागर हुईं. उस दिन एसआईटी ने विशेष न्यायाधीश पंकज गौड़ की अदालत में दूसरा चालान पेश किया था.

करीब साढ़े 8 सौ पृष्ठों के इस चालान में किसी अधिकारी की भूमिका संदिग्ध नहीं बताई गई. खुद पुलिस वालों की संदिग्ध भूमिका इसी बात से उजागर होती है कि उस ने एफआईआर में अश्विन की उम्र, पिता का नाम और पता तक नहीं लिखा था. इस का नतीजा यह निकला कि पार्वती और दूसरी लड़कियों के शोषण की बड़ी वजह भ्रष्टाचार और घूसखोरी थी, जिस का कोई जिक्र जानबूझ कर नहीं किया जा रहा था. सरकार किसी को एक पैसा भी देती है तो उस की पूरी लिखापढ़ी करती है और यह पैसा इमदाद की शक्ल में हो तो तबियत से पैसों की छीनाझपटी चलती है. जाहिर है अश्विन विभाग को तगड़ी रिश्वत दे रहा था, तभी तो राजामहाराजाओं की तरह उसे मौखिक अनुबंध पर मदद दी जा रही थी.

20 दिनों तक पुलिस गिरफ्तारी, चालान और रिमांड का खेल खेलती रही जिस से सामाजिक न्याय विभाग ने अपने कितने पाप ढक लिए, इस का अंदाजा लगा पाना अब मुश्किल है. चारों पीडि़ताएं अब सदमे से उबरने के बाद संतुष्ट हैं कि अश्विन को जेल हो गई और अब उसे सजा भी मिलेगी. सजा मिलनी तो तय है पर वह उस के अपराध के अनुपात में होगी, इस में जरूर शक है क्योंकि मामले में 87 गवाह पेश होंगे, जिन में विरोधाभास आना स्वाभाविक बात है. इस का फायदा शातिर अश्विन को मिल सकता है, जो जेल में बैठा पुलिस से कागज, पेन और कानून की किताबों की मांग करता है. यह हैवान अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा और अपने लिए वकील भी नहीं कर रहा है, इस से तय है कि उस के दिमाग में अलग कोई खिचड़ी पक रही है.

एसआईटी ने यह जरूर माना कि अश्विन ने फरवरी 2016 में 132 नंबर के डुप्लेक्स यानी हौस्टल में पीडि़ता से उस वक्त ज्यादती की थी, जब वह बाथरूम से नहा कर निकल रही थी. अश्विन ने पीडि़ता का अश्लील वीडियो बना कर उसे सोशल मीडिया पर वायरल भी किया था. गरमाई सियासत के मायने उम्मीद के मुताबिक इस मामले पर भी खूब सियासत गरमाई. कांग्रेस की मीडिया प्रभारी तेजतर्रार नेत्री शोभा ओझा ने एक पत्रकार वार्ता में एक वीडियो जारी करते हुए भाजपा और आरएसएस को कटघरे में खड़ा किया.

इस बाबत उन्होंने जो वीडियो पत्रकारों को दिखाया, उस में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अश्विन शर्मा के सिर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद देते दिखाई दे रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट तौर पर आरोप लगाया कि अश्विन शर्मा को मुख्यमंत्री और आरएसएस का संरक्षण मिला हुआ है. धरनेप्रदर्शनों के जरिए भी कांग्रेस ने भाजपा को घेरने में चूक नहीं की क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाएगी. भाजपा के पास शोभा ओझा के आरोपों का कोई ठोस जवाब नहीं है, सिवाय इस के कि वे बलात्कार पर राजनीति कर रही हैं.

अपनी दूसरी प्रैस कौन्फ्रैंस में शोभा ओझा ने सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव को घेरते हुए कहा कि उन की भूमिका इस मामले में संदिग्ध है. इसलिए मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए. शोभा ओझा के मुताबिक अश्विन शर्मा के हौस्टल को 74 बच्चों का अनुदान मिल रहा था. उन्होंने अश्विन के एनजीओ के पंजीयन पर भी सवाल उठाया. राजनीति करना कहीं से गलत नहीं कहा जा सकता. इस मामले में भी राजनीति नहीं होती तो पुलिस और ढिलाई बरत सकती थी तब सामाजिक न्याय विभाग की कारगुजारियां भी सामने नहीं आ पातीं.

अब देखना दिलचस्प होगा कि अश्विन को कब और कितनी सजा मिलती है. साफ दिख रहा है कि इस पूरे मामले को सामने लाने वाली मोनिका पुरोहित की गवाही काफी अहम होगी.

 

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