True Crime : पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के रहने वाले मृणाल कृष्णा दास उन खुशहाल लोगों में से थे जो अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर किसी काबिल बना देते हैं. वह एक सरकारी बैंक में नौकरी करते थे. कुछ साल पहले मिली सेवानिवृत्ति के बाद उन का अधिकांश समय घर पर ही बीतता था. उन के परिवार में पत्नी काजोल दास के अलावा 2 बच्चे थे, मोमिता दास और बेटा मृगांक दास.

मोमिता को चित्रकारी का शौक था. स्कूलकालेजों में होने वाली आर्ट प्रतियोगिताओं में वह हमेशा अव्वल आती थी. इसी के मद्देनजर उस ने एमए तक की पढ़ाई आर्ट से ही की.

प्राकृतिक फोटोग्राफी भी उस के शौक में शामिल थी. मोमिता की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. इसलिए 2 साल पहले घर वालों की सलाह पर वह कैरियर बनाने के लिए नदिया से दिल्ली आ गई. वह चूंकि समझदार थी इसलिए उस के अकेले दिल्ली आने पर मातापिता को ज्यादा चिंता नहीं थी. मोमिता का छोटा भाई मृगांक भी पढ़ाई के लिए बेंगलुरु चला गया.

maumita-das-hatyakand

दिल्ली आ कर मोमिता ने अपने एक परिचित के माध्यम से दक्षिणी दिल्ली के लाडोसराय इलाके में किराए पर एक कमरा ले लिया और अपने लिए नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी. थोड़ी कोशिश के बाद उसे गुडगांव, हरियाणा के एक निजी स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गई. 28 वर्षीय मोमिता स्वभाव से मिलनसार व खुशमिजाज थी.

दोस्ती बदली प्यार में

कुछ दिनों बाद मोमिता की दोस्ती ग्राफिक डिजाइनर अभिजीत पौल से हो गई. अभिजीत भी पश्चिमी बंगाल के कोलकाता शहर का रहने वाला था और दिल्ली में रह कर अपना कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा था. दोनों की आदतें, विचार और शौक एक जैसे थे. लिहाजा उन की दोस्ती बदलते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी.

abhijit-paul-murder-chakrata

उन की इस दोस्ती की खबर उन के परिजनों तक भी पहुंच गई थी. मोमिता के मातापिता ने इस बात पर कोई ऐतराज नहीं किया. वे जानते थे कि बेटी ने जो कदम उठाया है वह कुछ सोच कर ही उठाया होगा.

मोमिता को प्राकृतिक सौंदर्य से बहुत प्यार था. वह जब भी कहीं घूमने के लिए जाती थी, तो अकसर वहां की फोटोग्राफी किया करती थी. कुछ पत्र पत्रिकाओं में उस के द्वारा खींचे गए फोटो छपने भी लगे थे. बेटी की उपलब्धियों से मृणाल बहुत खुश थे. वह लगातार उस के संपर्क में रहते थे.

22 अक्तूबर, 2004 की सुबह का वक्त था. मृणाल कृष्णदास के पास मोमिता का फोन आया. उस ने बताया, ‘‘पापा, मैं आज उत्तराखंड जा रही हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मृणाल ने पूछा.

‘‘बस घूमने और अच्छे फोटोग्राफ के लिए.’’

‘‘अकेली जाओगी?’’

‘‘नहीं पापा मेरे साथ अभिजीत है. हम दोनों जा रहे हैं.’’ बेटियां भले ही कितनी भी समझदार क्यों न हो जाएं, मातापिता को हमेशा उन की फिक्र लगी ही रहती है. मृणाल को भी उस की फिक्र रहती थी. इसलिए उन्होंने उसे सफर की सावधानियों के बारे में समझा दिया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – नासमझी का घातक परिणाम

मृणाल ने शाम को मोमिता को फोन किया तो उस ने बताया कि वे लोग देहरादून पहुंच गए हैं और कल से घूमने का प्रोग्राम बनाएंगे. अगले दिन उन की बात हुई, तो मोमिता ने बताया, ‘‘पापा, आज हम लोग चकराता जाएंगे. यहां की बहुत खूबसूरत जगह है.’’ मोमिता की बातों से ही झलक रहा था कि उत्तराखंड पहुंच कर वह बहुत खुश थी.

मोमिता का फोन क्यों था स्विच औफ

24 अक्तूबर को मृणाल बहुत परेशान थे. उन की परेशानी की वजह मोमिता थी. 23 अक्तूबर की शाम से उन का मोमिता से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था. बारबार मिलाने पर भी मोबाइल स्विच औफ आ रहा था. कृष्णा समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मोमिता का मोबाइल अचानक क्यों बंद हो गया. वह सैकड़ों मील दूर थे. उन की परेशानी पत्नी काजोल से भी नहीं छिपी रह सकी.

‘‘क्यों परेशान हैं आप?’’ काजोल ने पूछा.

‘‘मोमिता का नंबर नहीं लग रहा है.’’ मृणाल ने कहा.

‘‘नेटवर्क में नहीं होगी या मोबाइल की बैटरी वीक हो गई होगी.’’

‘‘वह तो मैं भी समझता हूं. लेकिन बहुत वक्त हो गया.’’ इस बात से वह भी परेशान हो गईं. इस के बाद इंतजार का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन न तो मोमिता का नंबर मिला और न उस का फोन आया. इस से पतिपत्नी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. देखतेदेखते 4 दिन बीत गए. अगर मोमिता का मोबाइल खो गया था तो भी उसे संपर्क करना चाहिए था. ऐसा कभी नहीं होता था कि वह उन लोगों से बात न करें. नाते रिश्तेदारों की सलाह पर मृणाल कृष्णा दिल्ली आ गए.

अपने बेटे को भी उन्होंने बेंगलुरु से बुलवा लिया. मृणाल कृष्णा ने दिल्ली के थाना साकेत जा कर पुलिस को बेटी से संबंधित अपनी चिंता बताई. चिंता की बात यह थी कि मोमिता का अपने घर वालों से सपंर्क नहीं हो पा रहा था. पुलिस ने गुमशुदगी संख्या 33 ए पर मोमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दूसरी तरफ कोलकाता में अभिजीत के घर वाले भी परेशान थे, उस का भी कुछ पता नहीं चल रहा था. उस के घर वालों ने कोलकाता में ही उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

गुमशुदगी दर्ज कर के मोमिता के मामले की जांच सबइंसपेक्टर दुर्गादास सिंह के हवाले कर दी गई. मामला एक युवक युवती के लापता होने का था. इस मामले में अपनी मरजी से True Crime गायब हो जाने की आशंकाएं भी नहीं थीं क्योंकि मोमिता व अभिजीत के रिश्ते उन के परिजनों से छिपे नहीं थे.

पुलिस ने कुछ दिन इंतजार किया. जब कोई पता नहीं चला तो दिल्ली पुलिस की एक टीम उत्तराखंड के लिए रवाना हो गई. इस बीच पुलिस ने मोमिता के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल कर ली थी. उस के मोबाइल की अंतिम लोकेशन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 98 किलोमीटर दूर पर्यटनस्थल चकराता में पाई गई थी. इस से पहले उस के मोबाइल की लोकेशन देहरादून और विकासनगर में थी. यह भी पता चला कि मोमिता ने 23 अक्तूबर को अंतिम बार एक स्थानीय नंबर पर बात की थी.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – प्यार में भटका पुजारी

दिल्ली पुलिस ने देहरादून के डीआईजी संजय गुंज्याल और एसएसपी अजय रौतेला से संपर्क किया. पुलिस ने उस नंबर की जांचपड़ताल कराई जिस पर मोमिता की बात हुई थी. वह नंबर एक टैक्सी चालक राजू दास पुत्र मोहन दास का निकला. राजू चकराता के गांव टुंगरौली का रहने वाला था. वह विकासनगर और चकराता के बीच टैक्सी चलाता था. दिल्ली पुलिस राजू तक पहुंच गई.

पुलिस ने मोमिता का फोटो दिखा कर उस से पूछताछ की, तो उस ने बताया, ‘‘हां सर, यह लड़की एक लड़के के साथ विकासनगर से मेरी टैक्सी में चकराता तक गई थी.’’

‘‘उस के बाद?’’

‘‘उस के बाद मुझे नहीं पता सर. मुझे लड़की ने फोन कर के बुलाया था कि उन्हें चकराता जाना है. उस दिन हम लोग दोपहर में विकासनगर से चले थे. चकराता पहुंच कर उन्होंने मुझे मेरा भाड़ा दे दिया और मैं वापस आ गया.’’

‘‘तुम्हें उन्होंने कुछ बताया. मतलब आगे का कोई प्रोग्राम?’’

‘‘नहीं सर, लेकिन हां दोनों काफी खुश थे और पूरा उत्तराखंड घूमने की बात कर रहे थे.’’ टैक्सी चालक राजू देखने में सीधासादा युवक लगता था. उस की बातों में सच्चाई झलक रही थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. उस से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस वापस आ गई. मोमिता व अभिजीत के इस तरह गायब होने की वजह पुलिस भी नहीं समझ पा रही थी. पुलिस को जांच के लिए कोई ऐसा सिरा नहीं मिल पा रहा था जिस से दोनों के लापता होने का राज खुल सके.

 टैक्सी चालक निकला मोमिता अभिजीत का कातिल

पुलिस ने मोमिता अभिजीत के मोबाइल को सर्चिंग में लगा दिया. दरअसल पुलिस को उम्मीद थी कि अगर उन के साथ कुछ गलत हुआ होगा तो हो सकता है कोई अन्य व्यक्ति उन के मोबाइलों का इस्तेमाल कर रहा हो. नवंबर के पहले सप्ताह में मोमिता के मोबाइल का इस्तेमाल किया गया. पुलिस ने उस नंबर की जांच कराई, जो उस के मोबाइल में इस्तेमाल हुआ था. वह नंबर चकराता के टैक्सी चालक राजू का ही निकला. इस से वह शक के दायरे में आ गया.

हालांकि पहली पूछताछ में पुलिस ने राजू के बयानों को सही मान लिया था. लेकिन मोमिता का मोबाइल उस के पास कैसे आया, यह एक बड़ा सवाल था. अब पुलिस को आशंका होने लगी कि मोमिता और अभिजीत के साथ जरूर कोई अनहोनी हुई है.

इस के बाद पुलिस टीम एक बार फिर उत्तराखंड के लिए रवाना हो गई. इस टीम में एसआई दुर्गादास सिंह, हेडकांस्टेबल सुधीर कुमार और गोपाल शामिल थे. डीआईजी संजय गुंज्याल ने दिल्ली पुलिस को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने इस बाबत विकासनगर सीओ एसके सिंह को काररवाई के निर्देश भी दे दिए.

दिल्ली पुलिस की टीम के साथ थानाप्रभारी विकासनगर चंदन सिंह बिष्ट, चकराता थानाप्रभारी मुकेश थलेड़ी, विकासनगर थाने के सबइंसपेक्टर दिनेश ठाकुर, चौकीप्रभारी नरेंद्र, कांस्टेबल अमित भप्त, धर्मेंद्र धामी और सोवन सिंह भी थे. दिल्ली व उत्तराखंड पुलिस की टीम ने 10 नवंबर को टैक्सी चालक राजू को हिरासत में ले लिया.

maumita-abhijit-murder-accused

विकासनगर के सीओ एसके सिंह ने राजू से पूछताछ की तो उस ने पुलिस को घुमाने का प्रयास किया. लेकिन पुलिस इस बार उस के साथ सख्ती से पेश आई तो उस ने जो राज खोला उसे सुन कर सभी शर्मसार हो गए. राजू ने अपने ही गांव के 3 दोस्तों के साथ मिल कर मोमिता और अभिजीत की True Crime हत्या कर दी थी. पुलिस ने उस के दोस्तों बबलू, गुड्डू और कुंदन को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की विस्तृत पूछताछ में इन लोगों की सारी करतूत सामने आ गई.

राजू का परिवार बेहद साधारण था. उस ने बचपन से ही गरीबी देखी थी, लेकिन युवा होतेहोते उस ने परिवार को गरीबी से निजात दिलाने की ठान ली थी. वह टैक्सी चलाने लगा. उस के टैक्सी रूट में विकासनगर, चकराता और देहरादून शामिल थे. राजू बुरी लतों का शिकार था. इस के लिए वह अकेला नहीं, बल्कि उस की संगत भी जिम्मेदार थी. गांव के ही बबलू, गुड्डू और कुंदन से उस की गहरी दोस्ती थी. वह भी उसी की तरह थे.

वह आए दिन बैठते थे और बड़ीबड़ी बातें करते थे. चारों की सोच एक जैसी थी. वे लोग हमेशा एक ही बात सोचा करते थे कि शार्टकट अपना कर जीवन में कैसे आगे बढ़ा जाए. शराब पीने के बाद उन के सपने और भी जाग जाते थे. राजू जो कमाता था, उस में उस का पूरा नहीं पड़ता था. कोई और होता, तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. उस की बुरी लतों की वजह से उस की कमाई की आधी रकम पीने पिलाने में उड़ जाती थी.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – विकट की वासना का ऐसा था खूनी अंजाम

उत्तराखंड की आबादी का एक हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है. यहां लाखों पर्यटक आते हैं जिन से स्थानीय लोगों की आजीविका चलती है. पुराने विचारों वाले लोग आज भी पर्यटकों को सम्मान की नजर से देखते हैं. वे लोग यह भी जानते हैं कि अगर पर्यटक नहीं आएंगे और वे उन के साथ अपना व्यवहार अच्छा नहीं रखेंगे, तो उन का काम नहीं चलेगा.

लेकिन राजू नई पीढ़ी का युवक था, उसे इन बातों से कोई मतलब नहीं था. वह पर्यटकों से उल्टेसीधे पैसे ऐंठने को अपनी कला समझता था. जो लोग समय हालात के हिसाब से खुद को स्थापित नहीं करते, जिंदगी अकसर उन्हें अपने हिसाब से परेशान करती रहती है. राजू के साथ भी ऐसा ही था, वह आर्थिक तंगियों से जूझता रहता था.

22 अक्तूबर को मोमिता और अभिजीत दोनों ट्रेन से देहरादून पहुंचे थे. उन्होंने रेलवे स्टेशन के नजदीक ही एक होटल में कमरा ले लिया. पहले दिन वह विकासनगर घूमने गए. लौट कर शाम को होटल से नंबर ले कर उन्होंने टैक्सी चालक राजू से बात की और उसे अगले दिन चकराता चलने के लिए बुक कर लिया. चकराता का नाम अभिजीत व मोमिता ने पहले ही सुन रखा था कि वह खूबसूरत जगह है.

समुद्र तल से 6730 फुट की ऊंचाई पर बसा चकराता उत्तराखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है. इस के साथसाथ यहां भारतीय सेना का क्षेत्रीय कार्यालय है. यहां सेना के कमांडोज को प्रशिक्षण दिया जाता है. चकराता में जहां खूबसूरत घने जंगल हैं वहीं टाइगर फाल, यमुना नदी जैसे स्थल पर्यटकों को लुभाते हैं. गर्मियों में पर्यटकों की संख्या यहां और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

जैसी कि 22 अक्तूबर की शाम को ही बात हो चुकी थी, अगले दिन यानी 23 अक्तूबर की दोपहर को राजू अभिजीत और मोमिता को अपनी टैक्सी में बैठा कर चकराता ले गया. वहां का प्राकृतिक सौंदर्य देख कर दोनों बहुत खुश हुए. राजू के व्यवहार से भी दोनों खुश थे. राजू पूरे रास्ते उन की बातें सुनता रहा और वहां के बारे में बताता रहा.

बातचीत व पहनावा देख कर राजू को लग गया था कि दोनों ही अच्छे घरों से ताल्लुक रखते हैं. बस यहीं से उस का दिमाग घूम गया और उस ने उन्हें लूटने की ठान ली. अभिजीत व मोमिता चकराता घूमते रहे. इस बीच राजू ने कुछ देर में वापस आने की बात कही और अपने तीनों आवारा दोस्तों से मिला.

aropi-moumita-abhijit-hatya

राजू ने उन्हें बताया, ‘‘बाहर की एक पार्टी है. मुझे लगता है उन के पास अच्छा माल है. उन्हें लूटा जाए तो कुछ दिन आराम से बीत जाएंगे.’’

‘‘हम पकड़े भी तो जा सकते हैं?’’

‘‘खाक पकड़े जाएंगे. दोनों बंगाल के रहने वाले हैं, यहीं कहीं ठिकाने लगा देंगे.’’ राजू ने कहा तो चारों ने मिल कर लूटपाट की योजना बना ली. इस के बाद उन्होंने शराब पी. शराब पी कर राजू जाने लगा तो उस ने तीनों दोस्तों से टाइगर फौल के बाहर मिलने को कहा.

इस के बाद राजू अभिजीत व मोमिता के पास गया और उन्हें टाइगर फौल घुमाने ले गया. दोनों को प्राकृतिक नजारों ने बहुत लुभाया. वहां से वापसी के वक्त शाम होनी शुरू हो गई थी. जैसे ही वह सड़क पर आए, तो योजना के अनुसार वहां बबलू, गुड्डू व कुंदन मिल गए. राजू ने उन्हें अपनी टैक्सी में बैठा लिया. यह देख कर मोमिता ने विरोध किया, ‘‘भैया, जब टैक्सी बुक है तो किसी को क्यों बैठा रहे हो?’’

‘‘मेमसाहब, ये मेरे गांव के साथी हैं. इन्हें बस थोड़ा आगे रास्ते में छोड़ना है. आप को कोई परेशानी नहीं होगी. आप आराम से बैठिए.’’ राजू ने समझाया तो मोमिता व अभिजीत ने विश्वास कर लिया.

अभिजीत और मोमिता दोनों कला प्रेमी थे. चालाकियों से उन का वास्ता नहीं था इसलिए भरोसा कर लिया. राजू के तीनों दोस्त भी टैक्सी में सवार हो गए. थोड़ा आगे जाने पर बबलू व अन्य ने राजू से स्थानीय भाषा में मोमिता से छेड़छाड़ करने की बात कही तो उस ने थोड़ा अंधेरा होने का इंतजार करने को कहा.

मोमिता व अभिजीत नहीं जानते थे कि विश्वास कर के वह चंडालों की चौकड़ी में फंस चुके हैं. हलका अंधेरा हुआ तो राजू के साथियों ने मोमिता से True Crime छेड़छाड़ शुरू कर दी. उन का यह रवैया दोनों को ही खराब लगा. उन्हें ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी.

अभिजीत ने उन का विरोध किया, ‘‘यह क्या बदतमीजी है.’’

‘‘क्यों, क्या हम कुछ नहीं कर सकते?’’ तीनों ने बेशरमी से हंसते हुए उसे धमकाया, ‘‘चुपचाप बैठा रह, वरना…’’

‘‘…वरना क्या?’’

‘‘उठा कर खाई में फेंक देंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

उस वक्त सड़क पर सन्नाटा था. बावजूद इस के अभिजीत नहीं डरा. अभिजीत को लगा कि वह ऐसे नहीं मानेंगे तो उस ने उन लोगों से हाथापाई शुरू कर दी. इस से बौखलाए युवकों ने टैक्सी में पड़ी रस्सी निकाल कर अभिजीत का गला दबा दिया. फलस्वरूप उस ने छटपटा कर दम तोड़ दिया.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – गोवा की खौफनाक मुलाकात

मोमिता के साथ की मारपीट

मोमिता ने विरोध किया तो उन्होंने उस के साथ भी मारपीट की. वह डर से कांप रही थी. तीनों ने अभिजीत के शव को टैक्सी में पीछे डाल दिया. युवकों के सिर पर हैवानियत सवार थी. चलती टैक्सी में बबलू ने मोमिता के साथ दुराचार किया. बाकी साथियों ने उस की मदद की.

मोमिता चीखी चिल्लाई तो उस के साथ मारपीट की गई. इस के बाद उन्होंने दुपट्टे से गला दबा कर उस की भी हत्या कर दी. मरने से पहले मोमिता बहुत गिड़गिड़ाई, लेकिन किसी को भी उस पर दया नहीं आई. दोनों का सामान लूट कर थोड़ा आगे जा कर राजू ने टैक्सी रोक दी. चारों ने मिल कर लाखामंडल के पास एक पुल से मोमिता के शव को यमुना नदी में फेंक दिया.

ये लोग अभिजीत का शव भी फेंकने वाले थे कि तभी एक गाड़ी आती दिख जाने से रुक गए और वहां से आगे बढ़ गए. आगे जा कर उन्होंने अभिजीत के शव को चकराता के लाखामंडल मार्ग पर क्वांसी के पास नौगांव इलाके में खाई में फेंक दिया.

लूटा गया सामान आपस में बांट कर सभी अपनेअपने घर चले गए. दोनों के मोबाइल उन्होंने स्विच औफ कर के उन के सिम कार्ड निकाल कर फेंक दिए. उधर संपर्क टूटने से मोमिता व अभिजीत के घर वाले परेशान हो गए थे और उन्होंने दोनों की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

लूटे गए मोबाइलों का किसी ने इस्तेमाल नहीं किया. इस बीच कई दिन बीत गए. इसी बीच 30 अक्तूबर को उत्तरकाशी जनपद के पुरोला थाना क्षेत्र की नौगांव पुलिस चौकी क्षेत्र में एक युवक का शव मिला. सूचना पा कर थानाप्रभारी ठाकुर सिंह रावत मौके पर पहुंचे. उन्होंने उत्तरकाशी के एसपी जगतराम जोशी को घटना से अवगत कराया.

मृतक युवक के पास कोई सामान या शिनाख्त के लिए पहचानपत्र नहीं मिला था. पुलिस को यह मामला लूटपाट के लिए की गई हत्या का लगा था. इसलिए अज्ञात हत्यारे के खिलाफ धारा 302 व 201 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने शव की शिनाख्त का प्रयास किया, लेकिन एक तो शव पुराना था दूसरे उस की शिनाख्त भी नहीं हो पा रही थी. उसे ज्यादा दिन रखना संभव नहीं था इसलिए उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की मौत का कारण गला दबाना पता चला. यह शव अभिजीत का ही था.

chakrata-double-murder

बाद में दिल्ली पुलिस जांचपड़ताल करते हुए राजू तक पहुंची तो उस ने सीधेपन का नाटक करते हुए पुलिस को बहका दिया. पुलिस ने भी उस पर विश्वास कर लिया क्योंकि ऐसा नहीं लग रहा था कि वह इतना भयानक कृत्य कर सकता है.

ये क्राइम स्टोरी भी पढ़ें – प्यार का बदसूरत चेहरा

इस के बाद चारों दोस्तों ने एक बार फिर जश्न मनाया कि पुलिस को उन पर शक नहीं है और उस ने झूठ बोल कर मामला सुलटा दिया है. राजू व उस के दोस्तों को यह विश्वास हो गया था कि उन का राज अब कभी नहीं खुलेगा और दिल्ली पुलिस इतनी दूर बारबार पूछताछ करने नहीं आएगी.

 अपराधीयों को कैसे पकड़ा गया

यही सोच कर राजू ने मोमिता के मोबाइल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. उस की इस बेवकूफी ने पुलिस की मंजिल को आसान कर दिया और वह दोस्तों के साथ शिकंजे में फंस गया. अभिजीत का मोबाइल आरोपी कुंदन ने अपनी बहन को बतौर गिफ्ट दे दिया था. पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से मोमिता व अभिजीत का मोबाइल, पर्स, शौल व अन्य सामान भी बरामद कर लिया.

फोटो के आधार पर अभिजीत के शव की शिनाख्त हो चुकी थी, लेकिन मोमिता का शव अभी तक नहीं मिला था. अगले दिन पुलिस टीम हत्यारोपियों को ले कर चकराता व उत्तरकाशी पहुंच गई. एसपी जगतराम जोशी व थानाप्रभारी पुरोला ठाकुर सिंह रावत भी आ गए.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने गोताखोरों की मदद से नदी के 12 किलोमीटर एरिया में मोमिता के शव की तलाश की लेकिन उस का शव नहीं मिल सका. उस के शव का मिलना भी एक बड़ी चुनौती थी.

अगले दिन पुलिस ने फिर तलाशी अभियान चलाया. इस बीच आरोपियों को पुरोला पुलिस के हवाले कर दिया गया. पुलिस ने अपराध संख्या 50/2014 पर आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी ठाकुर सिंह रावत ने सुरक्षा के बीच सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

13 नवंबर को आखिर पुलिस को मोमिता का शव नदी में मिल गया. पुलिस ने शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया. मोमिता के परिजन भी आ चुके थे. शव की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे वे लोग ले जा सकते. इसलिए उन्होंने पोस्टमार्टम के बाद उस के शव का केदारघाट पर अंतिम संस्कार कर दिया.

chakrata-me-dharna

चकराता जैसे शांत इलाके में अपनी तरह की यह पहली घिनौनी घटना थी. इस घटना को ले कर चकराता व आसपास के लोगों में बहुत गुस्सा था. वे हत्यारों को फांसी देने की मांग कर रहे थे. इलाकाई लोगों ने अभिजीत व मोमिता की आत्मा की शांति के लिए कई कैंडल मार्च निकाले और मौनव्रत रखा.

इस घटना को ले कर 16 नवंबर को चकराता में कई गांवों के करीब 300 लोगों की पंचायत हुई. पंचायत में सर्वसम्मति से आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया. निर्णय लिया गया कि उन के घर वाले न तो उन से जेल में मिलने जाएंगे और न ही उन की पैरवी करेंगे.

घर वालों ने उन से नाता तोड़ दिया. लोगों को आशंका है कि इलाके की छवि धूमिल होने से पर्यटकों की संख्या पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. आरोपियों के घर वालों की मांग है कि उन के बेटों को फांसी की सजा दी जाए. मोमिता व अभिजीत ने राजू पर विश्वास किया था, लेकिन उस ने उन के विश्वास को बुरी तरह छल कर उन की जिंदगी का चिराग हमेशा के लिए बुझा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...