Family Story : कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं, जिन पर विश्वास कर पाना बहुत ही कठिन होता है. ऐसी अविश्वसनीय घटनाएं या तो अंधविश्वास में घटित होती हैं या फिर मनोरोग विकार में. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भी ऐसी ही एक अविश्वसनीय घटना घटित हुई, जिस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया.
कानपुर शहर का एक मिश्रित आबादी वाला मोहल्ला रोशन नगर है. इसी मोहल्ले के कृष्णापुरी के मकान नं. 7/401 में रामऔतार गौतम अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 3 बेटे दिनेश, सुनील व विमलेश थे. रामऔतार गौतम फील्डगन फैक्ट्री में मशीनिष्ट के पद पर कार्यरत थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन का अपना तीनमंजिला मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं मौजूद थीं.
रामऔतार गौतम के तीनों बेटे होनहार थे. बड़ा बेटा दिनेश सिंचाई विभाग में है और वह कानपुर के फूलबाग कार्यालय में तैनात है. जबकि सुनील बिजली उपकरणों की ठेकेदारी करता है. दिनेश व सुनील शादीशुदा हैं. दिनेश की शादी अर्चना से तथा सुनील की गुडि़या से हुई थी. दिनेश व सुनील अपने परिवार के साथ पिता के मकान में ही रहते हैं. रामऔतार गौतम का सब से छोटा बेटा विमलेश कुमार था. वह अपने अन्य भाइयों से ज्यादा तेज दिमाग का था. विमलेश ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रामलला स्कूल से की, फिर बीकौम व एमकौम की पढ़ाई छत्रपति शाहूजी महाराज महाविद्यालय से पूरी की.
उस के बाद विमलेश की नौकरी आयकर विभाग में लग गई. वर्तमान में वह अहमदाबाद में आयकर विभाग में असिस्टेंट एकाउंट औफिसर के पद पर कार्यरत था. विमलेश कुमार की शादी मिताली दीक्षित के साथ हुई थी. यह अंतरजातीय प्रेम विवाह था. विमलेश अनुसूचित जाति के थे, जबकि मिताली दीक्षित ब्राह्मण थी. दरअसल, विमलेश कुमार मिताली को उन के किदवई नगर स्थित घर पर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे. ट्यूशन पढ़ाने के दौरान ही दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए और उन के बीच प्यार पनपने लगा.
मोहब्बत परवान चढ़ी तो दोनों ने शादी का निश्चय किया. विमलेश के घरवाले शादी को राजी थे, लेकिन मिताली के घर वाले राजी नहीं थे. लेकिन घरवालों के विरोध के बावजूद मिताली दीक्षित ने वर्ष 2015 में विमलेश कुमार के साथ विवाह रचा लिया और विमलेश की दुलहन बन कर रोशन नगर स्थित ससुराल आ गई. ससुराल में मिताली को सासससुर व पति का भरपूर प्यार मिला, जिस से वह अपने भाग्य पर इतरा उठी. शादी के 2 साल बाद मिताली ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने संभव रखा. संभव के जन्म से परिवार की खुशियां और बढ़ गईं. मिताली संयुक्त परिवार में जरूर रहती थी, लेकिन कभी उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हुई.
मिताली दीक्षित पढ़ीलिखी सभ्य महिला थी. वह किदवई नगर स्थित कोऔपरेटिव बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत थी. सुबह वह सास व जेठानियों के साथ घर का काम निपटाती फिर बैंक जाती. बैंक से वापस आ कर वह फिर घरेलू काम निपटाती. यही उन की दिनचर्या बन गई थी. वह हर तरह से खुशहाल थी. वर्ष 2019 में विमलेश का ट्रांसफर अहमदाबाद (गुजरात) हो गया. पति के बाहर जाने से मिताली विचलित नहीं हुई और अपने कर्तव्य का पालन करती रही. पति का आनाजाना लगा रहता था. वह अपने बेटे संभव से बहुत प्यार करते थे. बेटे के अलावा उन्हें अपने मातापिता व भाइयों से भी बेहद लगाव था. मां से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था.
इस बीच मिताली दोबारा गर्भवती हुई और उस ने मार्च 2021 में एक बेटी कोे जन्म दिया. इस का नाम उस ने दृष्टि रखा. नवजात की देखभाल हेतु मिताली ने 6 महीने की छुट्टी बैंक से ले ली.
22 अप्रैल, 2021 को हुई थी मौत
इधर आयकर अधिकारी विमलेश कुमार गौतम 16 अप्रैल, 2021 को विभागीय कार्य हेतु अहमदाबाद स्थित आयकर कार्यालय से निकले तो वह बीमार हो गए. उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी. उन दिनों कोरोना काल की दूसरी भयंकर लहर चल रही थी और लोग कीड़ेमकोड़ों की तरह मर रहे थे. अत: घबरा कर विमलेश कुमार ने अहमदाबाद से लखनऊ की फ्लाइट पकड़ी, फिर Family Story लखनऊ से अपने घर कानपुर आ गए.
19 अप्रैल, 2021 को घर वालों ने विमलेश कुमार को बिरहाना रोड के मोती हौस्पिटल में भरती करा दिया. अस्पताल में विमलेश का महंगा इलाज शुरू हुआ. लेकिन डाक्टर काल के हाथों से विमलेश कुमार को बचा न सके. 22 अप्रैल, 2021 की सुबह 4 बजे विमलेश ने दम तोड़ दिया. विमलेश के शव को निजी वाहन से रोशन नगर स्थित घर लाया गया. अस्पताल में लगभग 9 लाख रुपया खर्च हुआ तथा अस्पताल की तरफ से घर वालों को मौत का सर्टिफिकेट भी थमा दिया. आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत से गौतम परिवार में हाहाकार मच गया. नातेरिश्तेदारों का जमावड़ा शुरू हो गया. मातापिता जहां बेटे की मौत पर आंसू बहा रहे थे, वहीं मिताली की आंखों से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. भाई सुनील व दिनेश भी बेहाल थे.
इसी बीच एक रिश्तेदार महिला ने रोते हुए विमलेश के सीने पर सिर रखा तो उसे विमलेश के सीने से धड़कन महसूस हुई. वह आंसू पोंछते हुए रामदुलारी से बोली, ‘‘बहना, तुम्हारा बिटवा जीवित है.’’
फिर तो बारीबारी से रामदुलारी व दिनेश ने भी धड़कन महसूस की. इस के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी रोक दी गई और पड़ोस में रहने वाले एक डाक्टर को बुलाया गया. उस ने विमलेश की मृत देह की अंगुली में पल्स औक्सीमीटर लगाया तो औक्सीजन 77 और पल्स 62 आने लगी. उसे देख मौत का सर्टिफिकेट हाथ में थामने के बावजूद घर वालों ने विमलेश को जीवित मान लिया. इस के बाद सभी अपने घरों को चले गए.
जीवित मान कर शव की करते रहे साफसफाई
परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी, इसलिए परिवार के लोग विमलेश कुमार को तुरंत पनेशिया, केएमसी, फार्च्यून व सिटी हौस्पिटल ले गए. लेकिन सभी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मांग रहे थे. रिपोर्ट उन के पास नहीं थी. इसलिए शहर के किसी भी अस्पताल ने विमलेश को भरती नहीं किया. घर वालों को लाश में आस नजर आ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने घर को ही अस्पताल बना दिया. उन्होंने विमलेश को घर के एसी रूम में तख्त पर लिटा दिया और इलाज शुरू कर दिया. इस इलाज पर उन्होंने करीब 30 लाख रुपए भी खर्च कर दिए. विमलेश की मां रामदुलारी गंगाजल छिड़क कर उस के शरीर को पोछतीं फिर साफसुथरे कपड़े पहनातीं. इस काम में उन का पति रामऔतार भी मदद करते. रामदुलारी चम्मच से 2-4 बूंद गंगाजल उस के मुंह में भी डालतीं.
किसी तरह की बदबू न आए. इस के लिए कमरे में सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती भी जलाई जाती. गुप्तरूप से झोलाछाप डाक्टर व कथित तांत्रिक भी आते व पूजापाठ व तंत्रमंत्र करते. अब तक रामदुलारी व उन का पूरा परिवार अंधविश्वास व मनोरोग विकार का शिकार बन गया था. सभी मानने लगे थे कि विमलेश कुमार कोमा में है और एक दिन जीवित हो जाएगा. पढ़ीलिखी तथा बैंक मैनेजर मिताली दीक्षित भी मनोरोगी बन गई थी. उसने भी मान लिया था कि पति कोमा में है और एक दिन वह जीवित हो जाएंगे.
वह रोज बैंक जाने से पहले पति का माथा छू कर बतियाती थी. सिरहाने बैठ कर उसे निहारती थी, उन के सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोल कर जाती थी कि जल्दी ही औफिस से लौट कर मिलती हूं. भाई दिनेश व सुनील जब काम से लौटते थे तो विमलेश से उस का हालचाल पूछते थे. विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उन्हें जीवित मान रहे थे.
मिताली को कचोट रही थी आत्मा
मिताली दीक्षित परिवार के प्रभाव में थी. इसलिए वह उन की हां में हां मिला रही थी. लेकिन उस की अंतरात्मा उसे कचोट रही थी. यही कारण था कि उस ने पति की मौत के 5 दिन बाद ही एक पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर विभाग को भेज दिया था. पत्र में उस ने लिखा था कि विमलेश कुमार की मौत कोरोना से हो गई है. पेंशन संबंधी औपचारिकताओं का जल्दी से जल्दी निपटारा किया जाए.
आयकर विभाग ने पत्र के आधार पर प्रक्रिया शुरू कर दी थी कि तभी मिताली का एक और पत्र अहमदाबाद आयकर विभाग को प्राप्त हुआ. उस में लिखा था कि औक्सीमीटर से जांच में पति विमलेश की पल्स चलती हुई पाई गई है और वह जीवित है. इसलिए पेंशन व फंड भुगतान की प्रक्रिया को रोक दिया जाए. विभाग ने तब विमलेश की पेंशन, फंड समेत अन्य भुगतान की प्रक्रिया रोक दी. इस के बाद आयकर विभाग ने विमलेश कुमार के मैडिकल बिल और सैलरी भुगतान संबंधी 7 पत्र पत्नी मिताली को भेजे. लेकिन मिताली ने कोई जवाब नहीं दिया.
दरअसल, जैसेजैसे समय बीतता गया वैसेवैसे विमलेश का शरीर काला पड़ता गया. शरीर जब पूरी तरह से सूख गया तो मिताली को यकीन हो गया कि अब शरीर में कुछ नहीं बचा. मिताली ने सासससुर को समझाने का प्रयास किया तो वे उस से झगड़ने लगे. परेशान हो कर मिताली ने एक गुमनाम पत्र अहमदाबाद स्थित आयकर औफिस को भेजा, जिस में उस ने विमलेश की लाश घर पर होने की सनसनीखेज जानकारी दी. इस पत्र के मिलने के बाद आयकर विभाग में खलबली मच गई.
इस के बाद अहमदाबाद से जोनल एकाउंट्स की एक टीम विमलेश के कानपुर स्थित घर पहुंची. लेकिन परिजनों ने टीम को घर के अंदर घुसने नहीं दिया और न ही टीम को कोई जानकारी दी. अहमदाबाद से आई टीम वापस लौट गई और फिर कानपुर आयकर विभाग को पत्र लिख कर शक जताया कि आयकर अधिकारी विमलेश कुमार की मौत हो चुकी है. कानपुर सीएमओ के जरिए इस की Family Story पुष्टि कराएं और जांच रिपोर्ट अहमदाबाद औफिस भिजवाएं.
इस पत्र के बाद कानपुर के आयकर अधिकारियों ने डीएम विशाख जी को सारी जानकारी दी और सीएमओ से विमलेश की जांच कराने का अनुरोध किया. चूंकि मामला पेचीदा था, सो डीएम ने सीएमओ को जांच का आदेश दिया.
डीएम के आदेश पर सीएमओ ने कराई जांच
कानपुर के सीएमओ आलोक रंजन ने तब 3 डाक्टरों की एक टीम जांच हेतु बनाई. इस टीम में डा. ए.वी. गौतम, डा. आशीष तथा डा. अविनाश को शामिल किया गया. सीएमओ ने टीम को निर्देशित किया कि विमलेश कुमार के जीवित या मृत्यु होने की जांच हैलट अस्पताल में ही होगी. अत: उन्हें अस्पताल ही लाया जाए. 23 सितंबर, 2022 की सुबह 11 बजे डाक्टरों की टीम विमलेश कुमार गौतम के घर पहुंची. टीम की मुलाकात विमलेश की मां रामदुलारी व पिता रामऔतार गौतम से हुई. लेकिन उन्होंने जांच कराने से साफ मना कर दिया और कहा कि उन के बेटे विमलेश की धड़कनें चल रही हैं. वह जिंदा है. इसी के साथ उन्होंने मिताली को भी सूचित कर दिया तो वह भी बैंक से घर आ गई.
डाक्टरों की टीम को जब विमलेश के घरवालों ने रोका तो उन्होंने जानकारी सीएमओ आलोक रंजन को दी. आलोक रंजन ने तब पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड को जानकारी दी. उस के बाद जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी, एडिशनल सीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव तथा प्रभारी निरीक्षक संजय शुक्ला विमलेश के आवास पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घर के मुखिया रामऔतार गौतम तथा उन की पत्नी रामदुलारी से बात की और बेटे विमलेश का स्वास्थ परीक्षण कराने को कहा.
विमलेश की पत्नी मिताली तो पति का स्वास्थ परीक्षण कराने को राजी थी, लेकिन बाकी सदस्य टालमटोल कर रहे थे. काफी कहासुनी व पुलिस से झड़प के बाद सभी राजी हो गए. पुलिस के साथ डाक्टरों की टीम ने उस कमरे में प्रवेश किया, जहां विमलेश तख्त पर लेटा था. विमलेश को देख कर पुलिस अफसर व डाक्टर हैरान रह गए. विमलेश का शरीर पूरी तरह से सूख चुका था और काला पड़ गया था. मांस हड्डियों में चिपक गया था. लेकिन डाक्टर व पुलिस अफसर इस बात से हैरान थे कि कमरे से किसी प्रकार की बदबू नहीं आ रही थी और न ही उस के शव से.
डाक्टरों ने कर दिया मृत घोषित
डाक्टरों की टीम ने जांच कर घर वालों को बताया कि विमलेश की मौत हो चुकी है. वह भ्रम न पालें कि वह जिंदा है. इस पर परिवार वाले डाक्टरों से भिड़ गए और जांच को गलत ठहराने लगे. उस के बाद विमलेश कुमार के शव को हैलट अस्पताल लाया गया और परिवार वालों के सामने ईसीजी किया गया. रिपोर्ट में सीधी लकीर दिख रही थी, फिर भी परिवार के लोग संदेह जताते रहे. परिवार के लोग विमलेश के शव का पोस्टमार्टम नहीं कराना चाहते थे. उन्होंने लिख कर भी दे दिया. पुलिस भी बला टालना चाहती थी. और वैसे भी कोई आपराधिक मामला नहीं बनता था सो पुलिस ने लिखित में ले कर घर वालों को शव सौंप दिया. इस के बाद घर वालों ने शव का अंतिम संस्कार भैरवघाट पर कर दिया.
17 माह तक घर में अफसर बेटे का शव रखने का मामला अखबारों में प्रकाशित हुआ तो लोग अवाक रह गए. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि मृत व्यक्ति का शव इतने दिनों तक रखा जा सकता है. टीवी चैनलों के माध्यम से यह मामला देशदुनिया में कई दिनों तक सुर्खियां बटोरता रहा. कानपुर पुलिस भी हैरान थी कि ऐसी क्या वजह थी कि शव 17 महीने तक घर में रखा रहा. कहीं परिवार किसी तांत्रिक के चक्कर में तो नहीं फंसा था. कहीं अफसर का वेतन तो परिवार वाले नहीं हड़पना चाहते थे. कहीं पूरा परिवार अंधविश्वास या मनोरोग का शिकार तो नहीं हो गया था.
इन्हीं सब बिंदुओं की जांच के लिए जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी ने जांच एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव को सौंपी. लाखन सिंह यादव ने इस प्रकरण की बड़ी बारीकी से जांच की और परिवार के मुख्य सदस्यों से अलगअलग बात की. जांच में यही तथ्य निकला कि मां के अंधविश्वास में 17 माह तक विमलेश का शव घर में रखा रहा.
खराब औक्सीमीटर से हुई थी गलतफहमी
मातापिता के इस अंधविश्वास को पूरे घर ने अपना विश्वास बना लिया और उसी तरह से विमलेश की सेवा करने लगे. श्री यादव ने घर के सामान की जांच की पर कोई लेप नहीं मिला. औक्सीजन सिलेंडर तथा तख्त की भी जांच की. जांच में यह बात सामने आई कि जो औक्सीमीटर विमलेश को लगाया गया था, वह खराब था. खराबी के कारण ही वह गलत रीडिंग बता रहा था. जांच से यह भी पता चला कि परिवार ने विमलेश का वेतन नहीं लिया था.
एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश के मातापिता से पूछताछ की और कई सवाल दागे. इन सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी कोई कैमिकल विमलेश की बौडी पर नहीं लगाया. वह गंगाजल के पानी से उस का शरीर पोछते थे और कपड़ा बदलते थे. सफाई का विशेष ध्यान रखते थे. उन्होंने बताया कि वह तो अंतिम क्रिया की तैयारी कर रहे थे लेकिन एक रिश्तेदार महिला ने धड़कन महसूस की, तब पता चला कि बेटा जिंदा है. पुलिस अफसर लाखन सिंह यादव ने मृतक विमलेश कुमार की पत्नी मिताली से भी पूछताछ की तो उस का दर्द उभर पड़ा. उस ने हर सवाल का जवाब बड़ी तत्परता से दिया.
मृतक विमलेश के घर वालों की मनोदशा समझने के लिए एडीसीपी (वेस्ट) लाखन सिंह यादव ने जीएसवीएम मैडिकल कालेज के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर गणेश शंकर से बातचीत की. उन्होंने कहा कि यह अपने आप में एक अनोखा मामला है. इस तरह के बहुत कम मामले देखे गए हैं. प्रथमदृष्टया यह मामला शेयर्ड डिलीवरी डिसऔर्डर नाम की बीमारी का प्रतीत होता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो बहुत कम लोगों को होती है. इस बीमारी में एक व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति से नियंत्रण खो देता है. वह अन्य लोगों को भी इस के प्रभाव में ले लेता है, जिस से वे लोग भी उसी बात पर भरोसा कर लेते हैं, जिस का सच्चाई से दूरदूर तक नाता नहीं होता है. उन का मानना है कि मृतक विमलेश का परिवार भी इसी बीमारी से ग्रसित था.
बहरहाल कथा संकलन तक एडिशनल डीसीपी (वेस्ट) ने अपनी जांच रिपोर्ट जौइंट सीपी आनंद प्रकाश तिवारी को सौंप दी थी. इस के अलावा सीएमओ आलोक रंजन ने भी विमलेश की मौत हो जाने की जांच रिपोर्ट अहमदाबाद के आयकर विभाग को भेज दी. मृतक विमलेश के परिवार वालों ने भी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है. फिर भी स्वास्थ विभाग की टीम परिवार की निगरानी में जुटी है.