भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान का कंधार शहर इस वक्त तालिबान के हमले से जूझ रहा है. यही कारण है कि तालिबान भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. तालिबान चाहता है कि अफगानिस्तान में 2001 से पहले जैसे उस ने शासन किया, उसी प्रकार उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता और पहचान मिले.
अफगानिस्तान के लगभग 85 फीसदी हिस्से पर वो अपना कब्जा जमा चुका है और वह अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार और उस के सैनिकों को खत्म करने पर आमादा है. तालिबान को इस बात का पूरा यकीन हो चला है कि अब उस के रास्ते में कोई आने वाला नहीं है.
तालिबान पाकिस्तान सीमा से लगे ज्यादातर प्रमुख इलाकों पर कब्जा कर चुका है. जबकि अफगान के बाकी क्षेत्र को दोबारा हासिल करने की कोशिश में अफगान बलों और तालिबान के लड़ाकों के बीच काबुल के स्पिन बोल्डक शहर में लगातार झड़प चल रही है.
भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी इसी इलाके में युद्ध हालात को कवर कर रहे थे. वह अपने कैमरे की नजर से तालिबानी हमले से हो रही हिंसा से दुनिया को रूबरू करा रहे थे.
हर दिन अफगान सेना और तालिबान लड़ाकों के बीच गोलाबारूद से होने वाली खूनी झड़पों में सैकड़ों मौतें हो रही हैं, उन्हीं में 15 जुलाई, 2021 को हुई एक भारतीय फोटो पत्रकार की मौत ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है.
दानिश सिद्दीकी 15 जुलाई को कंधार में तब अपनी जान गंवा बैठे, जब वह तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच चल रही लड़ाई को कवर कर रहे थे.
दानिश सिद्दीकी दुनिया की सब से बड़ी समाचार एजेंसी रायटर्स के लिए बतौर फोटो जर्नलिस्ट काम करते थे और युद्धग्रस्त अफगान क्षेत्र में अफगान सुरक्षा बलों के साथ एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट पर थे.
दानिश सिद्दीकी 13 जुलाई को भी उस समय बालबाल बचे थे, जब अफगान सेना पर तालिबानी हमला हुआ था. उस दिन वह अफगानिस्तान में मौत से पहली बार रूबरू हुए थे.
दरअसल, उस दिन वह अफगान सेना के उस वाहन में मौजूद थे, जो हिंसाग्रस्त इलाकों से लोगों को बचाने जा रहा था. उस वक्त सेना की गाड़ी पर भी गोलीबारी की गई थी, जिस में दानिश बालबाल बचे थे.
दानिश ने इस घटना के वीडियो व फोटो ट्विटर पर पोस्ट किए थे, जिस में गाड़ी पर आरपीजी की 3 राउंड फायरिंग होती नजर आई. उस दौरान दानिश ने लिखा था कि भाग्यशाली हूं कि सुरक्षित हूं.
उसी दिन उन्होंने ट्विटर पर एक तसवीर भी साझा की थी, जिस में उन्होंने लिखा था कि 15 घंटे के औपरेशन के बाद उन्हें महज 15 मिनट का ब्रेक मिला.
भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने कंधार में भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की कवरेज के दौरान हत्या किए जाने की सूचना सार्वजनिक की.
अफगानिस्तान के राजदूत फरीद ममुंडजे ने 17 जुलाई को सुबह ट्वीट किया, ‘कल रात कंधार में एक दोस्त दानिश सिद्दीकी की हत्या की दुखद खबर से बहुत परेशान हूं. भारतीय पत्रकार और पुलित्जर पुरस्कार विजेता अफगान सुरक्षा बलों के साथ कवरेज कर रहे थे. मैं उन से 2 हफ्ते पहले उन के काबुल जाने से पहले मिला था. उन के परिवार और रायटर के प्रति संवेदना.’
पत्नी व बच्चे थे जर्मनी में
एजेंसी रायटर्स से जुड़े फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी पुलित्जर पुरस्कार विजेता थे. हालांकि तालिबान के प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने सिद्दीकी की मौत पर दुख जाहिर करते हुए कहा, ‘‘हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि किस की गोलीबारी में पत्रकार दानिश की मौत हुई. हम नहीं जानते उन की मौत कैसे हुई. लेकिन युद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे किसी भी पत्रकार को हमें सूचित करना चाहिए. हम उस व्यक्ति का खास ध्यान रखेंगे.’’
दानिश का यूं असमय चले जाना उन के पूरे परिवार को तोड़ गया है. दानिश सिद्दीकी का जन्म साल 1980 में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हुआ था. दानिश सिद्दीकी के पिता प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी जामिया मिलिया इस्लामिया से रिटायर्ड हैं. इस के अलावा अख्तर सिद्दीकी राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी रह चुके हैं.
दानिश सिद्दीकी के परिवार में उन की पत्नी और 2 बच्चे हैं. दानिश सिद्दीकी की पत्नी जर्मनी की रहने वाली हैं. उन का 6 साल का एक बेटा और 3 साल की एक बेटी है.
घटना के समय उन की पत्नी व बच्चे जर्मनी में ही थे. दानिश की मौत की खबर मिलने के बाद वे भारत के लिए रवाना हो गए.
दानिश सिद्दीकी ने दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया से पढ़ाई की थी. यहीं से उन्होंने इकोनौमिक्स में स्नातक किया था. जामिया से 2005-07 बैच में उन्होंने मास कम्युनिकेशन की मास्टर डिग्री हासिल की. पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद दानिश ने ‘आजतक’ टीवी चैनल में बतौर पत्रकार अपना करियर शुरू किया था.
इस के बाद उन का रुझान फोटो जर्नलिज्म की तरफ बढ़ता चला गया और सन 2010 में वह अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर्स के साथ बतौर इंटर्न जुड़ गए. दानिश सिद्दीकी ने जब कैमरे से फोटो लेनी शुरू कीं तो उन की तसवीरें पसंद की जाने लगीं.
रिपोर्टर से की करियर की शुरुआत
क्योंकि उन की तसवीरें बोलती थीं. उन के पीछे एक सच छिपा होता था, जो पूरी व्यवस्था और घटनाक्रम को बयां करती थीं. उन की एकएक तसवीर लाखों शब्दों के बराबर होती थी, जो पूरी कहानी बयान कर देती थी.
दानिश के करियर के शुरुआती सहयोगियों में से एक वरिष्ठ पत्रकार राना अयूब बताती हैं कि उस वक्त उन लोगों की उम्र 23-24 साल थी. हम लोग मुंबई में ‘न्यूज एक्स’ में काम कर रहे थे और दानिश जामिया से नयानया निकल कर आया स्टूडेंट था.
वह था तो रिपोर्टर, लेकिन उसे कैमरे से इतना ज्यादा लगाव था कि मौका मिलते ही वह फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों से उन का कैमरा ले कर खुद शूट करने लग जाता था.
हम लोग उस से कहते भी थे कि जब तुम इतनी अच्छी फोटोग्राफी करते हो, तो फोटाग्राफर क्यों नहीं बन जाते हो और बाद में वही हुआ. दानिश ने करियर में अपने हार्ड वर्क और लगन से एक ऐसी जंप लगाई कि सब को पीछे छोड़ दिया.
दानिश के फोटोग्राफर बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है. उन के मित्र कमर सिब्ते ने बताया कि दानिश ने पहले न्यूज एक्स और उस के बाद हेडलाइंस टुडे में बतौर पत्रकार काम किया था.
चूंकि उसे फोटोग्राफी का बहुत शौक था. उसी दौरान एक बार वह अपने काम से छुट्टी ले कर मोहर्रम की कवरेज के लिए उत्तर प्रदेश के शहर अमरोहा चला गया, जहां उस की मुलाकात रायटर्स के चीफ फोटोग्राफर से हुई.
रायटर्स के फोटोग्राफर ने जब दानिश के फोटोज देखे, तो वह उस से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने कुछ ही समय बाद उसे अपनी एजेंसी में जौब का औफर दिया और उस के बाद दानिश की लाइफ ही बदल गई.
मुंबई में टाइम्स औफ इंडिया के स्पैशल फोटो जर्नलिस्ट एस.एल. शांता कुमार बताते हैं कि दानिश हर फोटो को स्टोरी के नजरिए से शूट करता था. हम लोग जब भी मिलते थे, उस से हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता था.
जब उसे पुलित्जर पुरस्कार मिला तो मैं ने सुबहसुबह उठ कर उसे फोन पर बधाई दी और बाद में उस से मिल कर उस के साथ सेल्फी भी ली थी.
दिल्ली दंगों की भी की थी कवरेज
दानिश ने दिल्ली दंगों के दौरान भी फोटोग्राफी की थी. इस दंगे के दौरान जब दानिश एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ का फोटो शूट कर रहे थे तो उस वक्त मारने वाले लोगों का ध्यान उन पर नहीं था.
लेकिन जैसे ही उन्होंने नोटिस किया कि कोई उन की फोटो खींच रहा है तो वो लोग दानिश को पकड़ने के लिए उन के पीछे भी भागे, लेकिन दानिश किसी तरह वहां से भाग कर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे.
यूं कहें तो गलत न होगा कि इस वक्त भारत में दानिश से अच्छा और कोई फोटो जर्नलिस्ट नहीं था. पिछले एकडेढ़ साल के दौरान देश में जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई थीं, उन के सब से बेहतरीन फोटो दानिश ने ही लिए थे.
चाहे वो नौर्थईस्ट दिल्ली के दंगों के दौरान खून से लथपथ एक शख्स पर हमला कर रही भीड़ की तसवीर हो या कोविड वार्ड में एक ही बैड पर औक्सीजन लगा कर लेटे 2 मरीजों की फोटो हो या फिर श्मशान घाट में जलती चिताओं की तसवीर हो, उन का काम अलग ही बोलता था और उस की खातिर वह किसी भी खतरे का सामना करने और कहीं भी जाने के लिए हर वक्त तैयार रहते थे.
2018 में दानिश को मिला पुलित्जर अवार्ड
भारतीय फोटो पत्रकार दानिश अंतिम सांस तक तसवीरों के जरिए दुनिया को अफगानिस्तान के हालातों से रूबरू कराते रहे. अब दानिश हमारे बीच नहीं हैं, मगर उन के काम हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे.
उन की तसवीरें बोलती थीं, यही वजह है कि दानिश सिद्दीकी को उन के बेहतरीन काम के लिए पत्रकारिता का प्रतिष्ठित पुलित्जर अवार्ड भी मिला था.
दानिश सिद्दीकी ने रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या को अपनी तसवीरों से दिखाया था और ये तसवीर उन तसवीरों में शामिल हैं, जिस की वजह से उन्हें 2018 में पुलित्जर अवार्ड मिला था.
दानिश सिद्दीकी अपनी तसवीरों के जरिए आम आदमी की भावनाओं को सामने लाते थे. वह इन दिनों भारत में रायटर्स की फोटो टीम के हैड थे.
कोरोना काल की वह तसवीर किसे याद नहीं होगी, जब लोग लौकडाउन में अपने घरों की ओर भागने लगे थे. तब हाथ में कपड़ों की पोटली और कंधों पर बच्चे को लादे लोगों की तसवीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थीं. ऐसी तमाम दर्दनाक तसवीरें दानिश ने ही अपने कैमरे में कैद की थीं और प्रवासी मजदूरों की व्यथा को देशदुनिया के सामने लाए थे.
दानिश की उस वायरल तसवीर को भी कोई नहीं भूला होगा, जब 12 सितंबर, 2018 को उत्तर कोरिया के प्योंगयांग में एक चिडि़याघर का दौरा करते हुए महिला सैनिक आइसक्रीम खाते हुए कैमरे में कैद हुई थी.
दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर के दौरान साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप, साल 2016-17 में मोसुल की लड़ाई, रोहिंग्या नरसंहार से पैदा हुए शरणार्थी संकट और हांगकांग को कवर किया.
इस के अलावा साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी दानिश सिद्दीकी की तसवीरें खासी चर्चा में रहीं. दिल्ली दंगों के दौरान जामिया के पास गोपाल शर्मा नाम के शख्स की फायरिंग करते हुए तसवीर दानिश सिद्दीकी ने ही ली थी. यह तसवीर उस समय दिल्ली दंगों की सब से चर्चित तसवीरों में से एक थी.
जामिया नगर की गफ्फार मंजिल के रहने वाले दानिश सिद्दीकी के गमजदा परिवार में 17 जुलाई की सुबह से ही मिलनेजुलने वालों और परिचितों के दुख जताने का सिलसिला जारी हो गया. पिता प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी को विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन का बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा.
वे बताते हैं कि 2 दिन पहले ही दानिश से उन की फोन पर बातचीत हुई थी. उन्होंने दानिश से अपनी सुरक्षा का ध्यान रखने के लिए कहा तो दानिश ने कहा था कि वे फिक्र न करें अफगानी आर्म्ड फोर्स उन्हें पूरी सुरक्षा दे रही है. अविश्वसनीय भाव से बेटे की तसवीर को निहारते प्रोफेसर अख्तर सिद्दीकी की आंखों से आंसू टपक रहे थे.
अफगानी फोर्स की थी सुरक्षा
दूसरी तरफ दानिश की तालिबानी हमले में मौत के बाद विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने यूएनएससी की बैठक में कहा कि भारत अफगानिस्तान में पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या की कड़ी निंदा करता है.
साथ ही सशस्त्र संघर्ष के हालात में मानवीय कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता व्यक्त भी की है. भारत में अधिकांश राजनेताओं ने दानिश की मौत पर दुख व्यक्त किया.
रायटर्स के अध्यक्ष माइकल फ्रिडेनबर्ग और एडिटर इन चीफ एलेसेंड्रा गैलोनी ने भी दानिश सिद्दीकी की हत्या पर शोक जाहिर किया है.
18 जुलाई, 2021 को जब एयर इंडिया के विमान से उन का पार्थिव शरीर भारत लाया गया तो एयरपोर्ट पर उन के पिता ने शव रिसीव किया.
पार्थिव शरीर आने से पहले ही सरकार ने जरूरी इंतजाम किए हुए थे, जिस की वजह से क्लीयरेंस व अन्य किसी चीज में दिक्कत नहीं आई. शव ले कर एंबुलेंस जब जामिया नगर पहुंची तो सड़क के दोनों ओर गमगीन लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.
दिल्ली के जामिया नगर के गफ्फार मंजिल इलाके में स्थित उन के घर पर लोगों का तांता लग गया. सभी ने उन की मौत पर शोक व्यक्त किया. रविवार यानी 18 जुलाई की देर रात को उन्हें जामिया के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
अब फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन इन की तसवीरें हमेशा उन के साहसिक कार्य की कहानी बयां करती रहेंगी.