Crime stories : औरत जब भाइयों में दरार डाल देती है तो दोस्त क्या चीज हैं. रामू के दोस्तों ने जब उस से अपनी माशूका के पास ले चलने को कहा तो उस की देह में आग लग गई और फिर जो हुआ, वह अप्रत्याशित था. मैनपुरी के मोहल्ला हिंदपुरम की रहने वाली कुसुमा पूरे मोहल्ले की भाभी थी. ज्यादातर लड़के उस की गदराई जवानी के दीवाने थे. वे उस के घर के चक्कर लगाते रहते थे. कुसुमा घर पर 2 बच्चों के साथ रहती थी, जबकि उस का पति मुकेश दिल्ली में रहता था. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए ही घर आता था. पति से दूर रहना कुसुमा को अच्छा नहीं लगता था. वह पति के साथ दिल्ली में रहना चाहती थी.
लेकिन मुकेश की इतनी तनख्वाह नहीं थी कि वह बीवीबच्चों को साथ रख सकता. वह 2-3 महीने में 1-2 दिनों के लिए पत्नी और बच्चों से मिलने घर आ जाता था. कुसुमा जवान थी. उस की भी कुछ हसरतें थीं. लेकिन मुकेश उस तरफ ध्यान नहीं देता था. नतीजतन कुसुमा का झुकाव मोहल्ले के लड़कों की ओर होने लगा. उन्हीं लड़कों में एक रामू था, जो कुसुमा के घर से तीसरे नंबर के मकान में रहता था. रामू के पिता फूल सिंह की मौत हो चुकी थी. उस के 4 भाई और 2 बहनें थीं. पिता की मौत के बाद मां शांति ने जैसेतैसे घरपरिवार संभाला था. 19 साल का रामू कुसुमा का ऐसा दीवाना हुआ था कि जब देखो, तब उस के घर के चक्कर लगाता रहता था. शांति को जब इस बात का पता चला तो उस ने रामू को समझाया, ‘‘बेटा, कुसुमा अच्छी औरत नहीं है, इसलिए उस के यहां ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है.’’
मगर रामू कुसुमा के आकर्षण में इस कदर बंधा था कि उसे उस के अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. इसीलिए उस ने मां की बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. कुसुमा चालू किस्म की औरत थी. रामू उम्र के उस पड़ाव पर था, जहां से फिसलने में देर नहीं लगती. कुसुमा और रामू की जरूरत एक ही थी, इसलिए उन के बीच नजदीकियां और अपनापन बढ़ने लगा. एक शाम कुसुमा के दरवाजे पर दस्तक हुई तो उस ने दरवाजा खोला. सामने रामू खड़ा था. उसे देखते ही वह चौंक कर बोली, ‘‘रामू…तुम. आओ, अंदर आ जाओ.’’
रामू अंदर आ गया. उस के हाथ में एक पैकेट था. कुसुमा रसोई में जा कर चाय बना लाई. रामू चाय पीने लगा तो कुसुमा ने कहा, ‘‘पैकेट में क्या है?’’
‘‘खुद ही देख लो.’’ रामू ने शरमाते हुए कहा. कुसुमा ने पैकेट खोला तो उस में साड़ी दिखी. वह बोली, ‘‘रामू, साड़ी बहुत अच्छी है. अपनी मां के लिए लाए हो क्या?’’
‘‘तुम भी भाभी, कैसी बातें करती हो? क्या मैं तुम्हारे लिए एक साड़ी भी नहीं ला सकता? मुझे दुकान पर पसंद आ गई तो मैं ने तुहारे लिए खरीद ली. तुम पहनोगी न?’’
‘‘हां…हां, क्यों नहीं. जब तुम इतने प्यार से लाए हो तो जरूर पहनूंगी. लो अभी पहन कर दिखाती हूं.’’ कह कर कुसुमा साड़ी ले कर अंदर चली गई. रामू इस बात से खुश हो रहा था कि कुसुमा ने उस के द्वारा दी गई पहली चीज स्वीकार कर ली. कुछ ही देर में कुसुमा वह साड़ी पहन कर आई तो रामू उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी इस साड़ी में तुम बहुत ही खूबसूरत लग रही हो. इसे तुम मेरे प्यार का पहला तोहफा समझो.’’
‘‘प्यार का तोहफा? यह तुम क्या कह रहे हो?’’ कुसुमा बोली.
‘‘हां भाभी, सचमुच रातदिन तुम मेरे जेहन में बसी रहती हो. जब मैं काम पर होता हूं, तब भी तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं.’’
चाहती उसे कुसुमा भी थी, लेकिन वह इजहार के लिए रामू की तरह बेचैन नहीं थी. इसलिए रामू की बातें सुन कर कुछ पल के लिए वह चुपचाप उसे देखती रही. रामू का मन कर रहा था कि वह कुसुमा को बांहों में भर कर अपनी मोहब्बत का इजहार कर दे, लेकिन ऐसा करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी कुसुमा ने रामू के पास आ कर रामू की बातों को टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या तुम सचमुच मुझ से प्यार करते हो?’’
‘‘हां, करता हूं. चाहो तो मेरे दिल की आवाज खुद सुन लो.’’ रामू चहक कर बोला.
‘‘मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं जाओगे?’’
‘‘कभी नहीं. अपनी जान दे सकता हूं, लेकिन तुम्हें छोड़ नहीं सकता. यह मेरा वादा है.’’
‘‘तो ठीक है, आज रात को आ जाना. फुरसत में बातें करेंगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ कुसुमा ने कहा.
कुसुमा के इस प्रस्ताव से रामू का दिल खुशी से उछल पड़ा. वह रात को आने का वादा कर के चला गया. कुसुमा के घर से जाने के बाद रामू का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह बस यही सोच रहा था कि जल्द से जल्द दिन ढल कर अंधेरा हो जाए, जिस से वह कुसुमा के साथ मौजमस्ती करे. कहते हैं, इंतजार के पल लंबे हो जाते हैं. यही हाल राजू का भी हो रहा था. वह अंधेरा होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था. खैर, रोजाना की तरह उस दिन भी शाम हुई, लेकिन वह दिन रामू के लिए बहुत बड़ा हो गया था.
शाम का खाना खाने के बाद रामू कुछ देर तक इधरउधर घूमता रहा. उस के बाद मौका देख कर कुसुमा के घर में घुस गया. कुसुमा ने खाना खिला कर बच्चों को पहले ही सुला दिया था. जैसे ही रामू ने उस के दरवाजे पर दस्तक दी, कुसुमा ने दरवाजा खोल दिया. रामू को देख कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘टाइम के बड़े पाबंद हो. अंदर आ जाओ.’’
‘‘भाभी हम वादा कर के मुकरने वालों में में नहीं हैं.’’ रामू ने अंदर आते हुए कहा.
कुसुमा ने कुंडी बंद कर दी. रामू उस के बेड पर जा कर बैठ गया. कुसुमा उस के पास बैठ गई और उस का हाथ दोनों हाथों में ले कर बोली, ‘‘रामू, अब तुम मुझे भाभी नहीं कहोगे. आज से तुम मेरा नाम ले पुकारोगे.’’
किसी महिला ने रामू का हाथ पहली बार थामा था. इसलिए उस का शरीर सिहर उठा. दोनों के बीच अब किसी तरह की रोकटोक नहीं थी, इसलिए रामू ने कुसुमा के गालों पर होंठ रखते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज से तुम्हें जो अच्छा लगेगा, वही कहूंगा.’’
इस के बाद दोनों एकदूसरे के बदन से खेलने लगे. रामू ने पहली बार इस सुख का अनुभव किया था, इसलिए उसे बहुत अच्छा लगा. लेकिन घर पहुंच कर रामू को लगा कि कुसुमा के साथ संबंध बना कर उस ने अच्छा नहीं किया. अपराधबोध की वजह से उस ने कुसुमा के घर की ओर जाना ही बंद कर दिया. शायद रामू यह नहीं जानता था कि जिस दलदल में उस ने कदम रख दिया है, वहां से निकलना आसान नहीं है.
3-4 दिनों बाद कुसुमा ने ही रामू को फोन किया, ‘‘रामू, कई दिन हो गए तुम दिखाई नहीं दिए, क्या कहीं बाहर चले गए हो क्या?’’
‘‘नहीं, मैं तो घर में ही हूं.’’
‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘हां.’’
‘‘बातें तो तुम बड़ी लंबीचौड़ी कर रहे थे. कहां गई तुम्हारी वह मर्दानगी? तुम इसी समय आ जाओ, तुम से एक जरूरी बात करनी है. न चाहते हुए भी रामू कुसुमा के घर पहुंच गया. और फिर वही सब हुआ, जो कुसुमा चाहती थी. इस के बाद कुसुमा का जब भी मन होता, रामू को फोन कर के बुला लेती और अपने मन की करती. इस तरह रामू उस के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया. रामू दिन में तो घर से गायब रहता ही था, कुसुमा के पास आनेजाने की वजह से रात में भी गायब रहने लगा. शांति ने जब बेटे के घर से गायब रहने की वजह का पता किया तो उन्हें पता चलते देर नहीं लगी कि उस का बेटा कुसुमा के जाल में फंस गया है.
रामू की इस करतूत से पूरा परिवार हैरान रह गया था. यह कोई अच्छी बात नहीं थी, इसलिए मां ने ही नहीं, भाइयों ने भी रामू को रोका. मारपीट भी की, लेकिन रामू नहीं माना तो नहीं माना. कुसुमा से उसे जो सुख मिलता था, उस की चाहत में वह उस के पास पहुंच ही जाता था. परेशान हो कर एक दिन शांति कुसुमा के घर जा पहुंची और उसे बुराभला कहने लगी. तब कुसुमा ने कहा, ‘‘काकी, मैं तुम्हारे बेटे को बुलाने नहीं जाती, वह खुद ही मेरे पास आता है. तुम उसी को क्यों नहीं रोक लेती. अब तुम्हारे ही घर कोई आएगा, तो क्या तुम उसे भगा दोगी? तुम उसे तो रोकती नहीं, मुझे बेकार में बदनाम करने चली आई.’’
शांति चुपचाप घर लौट आई. उसी बीच मुकेश गांव आया तो किसी ने उस से रामू और कुसुमा के संबंधों के बारे में बताया. उस ने इस बारे में कुसुमा से पूछा तो रोते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं कब से कह रही हूं कि तुम मुझे अपने साथ ले चलो. बीवी को इस तरह गांव में अकेली छोड़ोगे तो दिलजले लोग ऐसी ही बातें करेंगे.’’
मुकेश को लगा कि कुसुमा सच कह रही है, इसलिए उस की बात पर विश्वास कर के वह निश्चिंत हो कर दिल्ली चला गया. लेकिन अब मुकेश जब भी घर आता, गांव का कोई न कोई आदमी कुसुमा और रामू को ले कर उसे जरूर टोकता. इन बातों से उसे लगने लगा कि कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. इस के बाद उस ने कुसुमा को मारपीट कर धमकाया कि अब अगर उस ने उस के बारे में कुछ सुना तो वह उसे उस के मायके पहुंचा देगा. यही नहीं, उस ने शांति के घर जा कर उस से भी कहा कि वह रामू को रोके अन्यथा ठीक नहीं होगा.
इस पर जलीभुनी शांति ने कहा, ‘‘मैं खुद ही तुम्हारी पत्नी से परेशान हूं. इस के लिए मैं पंचायत बुलाने वाली हूं.’’
शांति की इस धमकी से मुकेश परेशान हो गया. अगर शांति ने पंचायत बुलाई तो गांव में उस की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. नाराज और दुखी मुकेश ने सारा गुस्सा और क्षोभ घर आ कर कुसुमा की पिटाई कर के निकाला. अगले दिन शांति ने पंचायत बुलाई, जिस में मुकेश और कुसुमा को भी बुलाया गया. पंचायत में कुसुमा ने साफ कहा कि रामू से उस का कोई संबंध नहीं है. इस बात को ले कर उसे बेकार ही गांव में बदनाम किया जा रहा है. पंचों ने जब मुकेश से कुछ कहना चाहा तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि कुसुमा अब मेरे वश में नहीं है.’’
पंचायत बिना किसी फैसले के ही खत्म हो गई. मुकेश दूसरे दिन शाम को दिल्ली चला गया. इस पंचायत के बाद मोहल्ले का हर आदमी कुसुमा को अपना दुश्मन नजर आने लगा. इसलिए वह मोहल्ले के हर आदमी से पंगा ले कर उस की ऐसीतैसी करने लगी. उस की इस हरकत से हर कोई उस से घबराने लगा. अब किसी की हिम्मत उस से कुछ कहने की नहीं पड़ती थी. इस के बाद उस की और रामू की मोहब्बत की गाड़ी आराम से चलने लगी. डर के मारे मोहल्ले वालों ने उन की ओर से आंखें मूंद लीं.
शांति रामू को कुसुमा से किसी भी तरह अलग नहीं कर पाई तो उस ने सोचा कि रामू की शादी कर दे. नईनवेली दुलहन पा कर वह खुद ही कुसुमा का पीछा छोड़ देगा. उस ने रामू के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. जल्दी ही उस ने जिला मैनपुरी के थाना एलांद के गांव सुशनगढ़ी के रहने वाले मान सिंह की बेटी सुमन से उस की शादी तय कर दी. कुसुमा को जब पता चला कि रामू की शादी तय हो गई है तो वह सुलग उठी. वह किसी भी कीमत पर यह शादी नहीं होने देना चाहती थी. भला वह कैसे चाहती कि उस का प्रेमी किसी से शादी कर के उसे सुलगने के लिए छोड़ दे. इसलिए उस ने रामू से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने यह शादी की तो वह जान दे देगी.
‘‘शादी के बाद भी मैं तुम्हारा ही रहूंगा भाभी. मां बहुत परेशान हैं. मैं अब उसे और दुखी नहीं कर सकता.’’ रामू ने कुसुमा को समझाना चाहा.
‘‘वाह, क्या बात कही है? तुम्हारी वजह से मैं कितनी बदनामी झेल रही हूं, तुम्हें पता है. लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं. अब बीच मंझधार में तुम मुझे छोड़ कर किसी और का होना चाहते हो. कान खोल कर सुन लो, जीते जी मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.’’ कुसुमा ने चेतावनी दी.
रामू घर वालों के बारे में सोच रहा था कि वह घर वालों को क्या जवाब दे. तभी कुसुमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, हम कहीं दूर भाग चलते हैं. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो मेरा मरा मुंह देखोगे.’’
कुसुमा के तेवर देख कर रामू को यकीन हो गया कि अगर उस ने शादी कर ली तो कुसुमा सचमुच आत्महत्या कर लेगी. तब वह फंस सकता है. काफी सोचसमझ कर उस ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी करो. मैं तुम्हें साथ ले कर भागने को तैयार हूं.’’
1 जून, 2013 को रामू की शादी होनी थी. दोनों ओर जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. शादी की तारीख से 2 दिन पहले रामू घर से गायब हो गया. रामू का गायब होना घर वालों के लिए सदमे की तरह था. उन के लिए परेशानी यह थी कि वे लड़की वालों को क्या जवाब देंगे. रिश्तेदारों को कौन सा मुंह दिखाएंगे. क्योंकि अब तक कार्ड भी बंट गए थे. कुसुमा भी घर से गायब थी, इसलिए सब को पूरा यकीन था कि जहां भी हैं, दोनों एक साथ हैं. सब से बड़ी परेशानी यह थी कि लड़की वालों को कैसे समझाया जाए. शांति बेटे मनोज को ले कर सुशनगढ़ी पहुंची. जब उस ने मान सिंह को सारी बात बताई तो उस ने अपना सिर पीट लिया. उस की बेटी का क्या होगा, कौन करेगा उस से शादी? लोग पूछेंगे कि शादी क्यों टूटी तो वह क्या जवाब देगा?
मान सिंह को इस तरह परेशान देख कर शांति ने कहा, ‘‘हम बहुत शर्मिंदा हैं समधीजी. अब इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है. अगर आप मान जाएं तो सब ठीक हो जाएगा.’’
‘‘कौन सा रास्ता?’’ मान सिंह ने पूछा.
‘‘मेरे बेटे शिवशंकर को तो आप ने देखा ही है. वह बहुत ही नेक है. कमाताधमाता भी ठीकठाक है. वह आप की बेटी को खुश रखेगा. अगर आप तैयार हों तो…?’’
मान सिंह के पास उन की बात मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. उस ने उदास मन से कहा, ‘‘ठीक है, इज्जत बचाने के लिए शिवशंकर से ही सुमन की शादी कर देता हूं.’’
इस के बाद शिवशंकर ने चुपचाप मां की बात मान ली तो 1 जून, 2013 को सुमन से उस की शादी हो गई. इस तरह उस ने 2 परिवारों की इज्जत बचा ली.
11 जून, 2013 को रामू और कुसुमा लौट आए. पत्नी की इस हरकत की जानकारी दिल्ली में रह रहे मुकेश को भी हो गई थी. लेकिन वह हालात के सामने हारा हुआ था. इसलिए चुप्पी साधे दिल्ली में ही पड़ा रहा. सप्ताह भर बाद रामू घर लौटा तो सभी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सुमन को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मैं कुसुमा के साथ चला गया था.’’
शांति ने सोचा, जो होता है, वह अच्छा ही होता है. रामू की मुलायम सिंह, राहुल और तेजा से खूब पटती थी. इन में से मुलायम सिंह और तेजा पास के ही गांव के रहने वाले थे, जबकि राहुल मैनपुरी के कुरावली कस्बे का रहने वाला था. एक दिन सभी एक साथ एक ढाबे में बैठे खापी रहे थे, तभी राहुल न कहा, ‘‘यार रामू, कभी हम लोगों को भी कुसुमा भाभी से मिलवा.’’
‘‘तुम लोग उस से मिल कर क्या करोगे?’’ रामू ने पूछा. तेजा ने हंसते हुए कहा, ‘‘जो तू करता है, वही हम लोग भी करेंगे.’’
‘‘खबरदार, कुसुमा के बारे में अब एक भी शब्द बोला तो…?’’ रामू गुर्राया.
‘‘इस में तुझे मिर्चें क्यों लग रही है? कौन सी वह तेरी बीवी है?’’ मुलायम सिंह ने रामू के कंधे पर हाथ रख कर कहा.
‘‘यह अच्छी बात नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम लोग उस की बात बिलकुल मत करो.’’ कह कर रामू उठ खड़ा हुआ.
राहुल ने रामू का हाथ पकड़ कर बैठाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘भई, हम सब दोस्त हैं, इसलिए जो भी मिले, हम सब को मिलबांट कर खाना चाहिए.’’
राहुल की यह बात रामू को इतनी बुरी लगी कि उस ने गुस्से में उसे 2-4 तमाचे जड़ दिए. मुलायम ने रामू को धकेल कर अलग करते हुए कहा, ‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया रामू.’’
‘‘कान खोल कर सुन लो, तुम में से किसी ने भी मेरी जिंदगी में दखल देने की कोशिश की तो मैं उस के साथ भी यही करूंगा.’’ कह कर रामू चला गया.
बाकी तीनों दोस्त रामू के इस रवैये से सन्न थे. किसी से कुछ कहते नहीं बन रहा था. आखिर चुप्पी मुलायम सिंह ने तोड़ी. ‘‘हम इतने भी गएगुजरे नहीं हैं कि इस की मारपीट चुपचाप सह लेंगे.’’
रामू के ये सभी दोस्त उस से जल रहे थे. वे कुसुमा को पाना चाहते थे, लेकिन रामू ने उन की इच्छाओं पर पानी फेर दिया था. इसलिए वे रामू को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगे. 2 दिनों तक तीनों रामू द्वारा किए अपमान का बदला लेने की साजिश रचते रहे. अंतत: उन्होंने तय किया कि रामू को ऐसी सजा दी जाए कि कोई दोस्त फिर कभी अपने किसी दोस्त का इस तरह अपमान न कर सके. इस के बाद उन्होंने योजना भी बना डाली. उसी योजना के तहत तीनों ने रामू से माफी मांगी. रामू ने सोचा कि जब इन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है तो उसे भी अपनी गलती के लिए माफी मांग लेनी चाहिए. उस ने भी दोस्तों से अपनी गलती के लिए माफी मांग ली. इस के बाद मुलायम ने कहा, ‘‘इस खुशी में आज रात मैं सभी को पार्टी दे रहा हूं.’’
‘‘क्या खिलाएगा पार्टी में?’’ रामू ने पूछा.
‘‘भई पार्टी है तो कुछ अच्छा ही होगा. शाम को हम तुझे तेरे घर लेने आएंगे, तू तैयार रहना.’’ तेजा ने कहा.
शाम को रामू घर में ही था. उस के दोस्त उसे बुलाने आए तो मां को बता कर वह उन के साथ चला गया. एक ढाबे से गोश्त और रोटियां पैक कराई गईं. इस के बाद शराब की दुकान से एक बोतल शराब खरीदी गई. सारी व्यवस्था कर के तय किया गया कि भूरा की दुकान की छत पर बैठ कर खानापीना होगा. भूरा की दुकान हिंदपुरम कालोनी के सामने ही थी. कालोनी अभी नईनई बस रही है, इसलिए यहां अभी इक्कादुक्का मकान ही बने हैं. दूसरी ओर खेत हैं, इसलिए लोगों का आनाजाना इधर कम ही होता है. यही वजह थी कि अंधेरा होते ही इधर सन्नाटा पसर जाता था. यह मैनपुरी का काफी संवेदनशील इलाका माना जाता है.
तीनों दोस्त रामू को साथ ले कर भूरा की दुकान की छत पर आ गए. इस के बाद बातचीत के बीच खानापीना होने लगा. रामू काफी अच्छे मूड में था, इसलिए उस ने शराब थोड़ी ज्यादा पी ली. दोस्तों ने उसे पिलाई भी कुछ ज्यादा. काफी देर हो गई तो रामू ने कहा, ‘‘भई, अब घर चलना चाहिए.’’
‘‘कौन से घर, मां के या माशूका के?’’ मुलायम सिंह ने छेड़ा. रामू लड़ाईझगड़े के मूड़ में नहीं था, इसलिए उठ कर खड़ा हो गया. वह चलता, उस के पहले ही मुलायम सिंह ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘चल, हम भी तेरे साथ तेरी माशूका के यहां मौजमस्ती करने चलते हैं.’’
दरअसल, मुलायम सिंह उसे उकसाना चाहता था. मुलायम की इस बात पर रामू को गुस्सा आ गया तो वह उस की ओर झपटा. फिर क्या था, तीनों दोस्तों ने उसे दबोच कर गिरा दिया. इस के बाद वहां रखे फावड़े से उस की गर्दन काट दी. अब उन्हें लाश को ठिकाने लगाना था. काफी सोचविचार कर वे लाश को घसीट कर नीचे ले आए और सड़क के उस पार बहने वाले नाले में फेंक कर भाग खड़े हुए. काफी रात बीत गई और रामू नहीं लौटा तो शांति परेशान होने लगी. उस ने सोचा कि वह कुसुमा के यहां होगा. इसलिए उस ने सवेरा होते ही मनोज को कुसुमा के घर भेजा. तब पता चला कि रात में वह कुसुमा के घर भी नहीं था. इस के बाद उस की खोज शुरू हुई.
रामू अपने दोस्तों के साथ गया था. उस के दोस्तों से उस के बारे में पूछा जाता, उस के पहले ही किसी लड़के ने आ कर बताया कि रामू की लाश सड़क के किनारे बहने वाले नाले में पड़ी है. कोतवाली पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलते ही इंस्पेक्टर शंकर सिंह और क्षेत्राधिकारी वी.पी. सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. निरीक्षण में उन्होंने देखा कि खून नाले से सामने की दुकान तक फैला है. छत पर जाने वाली सीढि़यों पर भी खून फैला था. पुलिस छत पर पहुंची तो वहां भी खून फैला दिखाई दिया. वहीं खून से सना फावड़ा भी पड़ा था. इस का मतलब यह था कि उसी फावड़े से छत पर मृतक की हत्या की गई थी.
पूछताछ में पता चल गया कि मृतक के मोहल्ले की ही एक महिला से अवैध संबंध थे. घरवालों ने भी बता दिया था कि कल शाम को रामू को उस के 3 दोस्त बुला कर ले गए थे. इस के बाद रामू के छोटे भाई शिवशंकर ने मैनपुरी कोतवाली में भाई की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी, उस के आधार पर उसे पुलिस ने अपराध संख्या 641/13 पर भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुलायम सिंह पुत्र सूरज, निवासी नगला पंजाबा, राहुल पुत्र किशनलाल, निवासी कुरावली तथा तेजा पुत्र बाबूराम, निवासी हिंदपुरम कालोनी और कुसुमा पत्नी मुकेश, निवासी हिंदपुरम कालोनी के खिलाफ दर्ज कर लिया. मुलायम सिंह, तेजा और राहुल तो पहले से ही फरार थे, कुसुमा को भी जब पता चला कि रिर्पोट में उस का भी नाम है तो वह भी फरार हो गई.
लेकिन पुलिस ने जाल बिछा कर मुलायम सिंह, तेजा और राहुल को उसी दिन यानी 16 जुलाई, 2013 की देर शाम गिरफ्तार कर लिया. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर के रामू की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. अगले दिन पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पूछताछ में उन्होंने साफसाफ कहा था कि रामू की हत्या में कुसुमा शामिल नहीं थी. लेकिन रिपोर्ट में उस का नाम शामिल था, इसलिए 26 जुलाई, 2013 को उस ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
इस तरह कुसुमा की वासना की आग ने अपना घर तो जलाया ही, शांति के घर को भी नहीं बख्शा. शांति का कहना है कि रामू ने तो नादानी की ही, कुसुमा भी कम गुनहगार नहीं है. उसी ने उस के मासूम बेटे को गुमराह किया था. कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि