Maharashtra Crime : बेटा कितना भी राक्षस बन जाए, मां के साथ दुराचार नहीं कर सकता. लेकिन रामचरण द्विवेदी ऐसा दुराचारी बन गया था कि उस ने उस मां का भी शिकार कर लिया, जिस ने उसे जन्म दिया था. मां इस अनर्थ को सह नहीं पाई और उस ने…

सुबह के यही कोई साढ़े 9 बजे का समय था. मुंबई (Maharashtra Crime) महानगर से सटे जनपद पालघर के उपनगर वसई जानकी पाड़ा की पहाडि़यों के बीच की खाई के पास काफी लोगों की भीड़ जमा थी. लोगों के जमा होने की वजह यह थी कि उस गहरी खाई में एक युवक की लाश पड़ी थी. मामला हत्या का लग रहा था, इसलिए किसी व्यक्ति ने इस की सूचना पालघर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह क्षेत्र थाना वालिव के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने युवक की लाश की सूचना थाना वालिव के अलावा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर और एसआई विनायक माने को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल थाने से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर था. पुलिस 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने खाई में उतर कर युवक की लाश पर सरसरी नजर डाली. उस की उम्र करीब 22 साल थी. वह जमीन पर औंधे मुंह पड़ा हुआ था, शरीर पर किसी धारदार हथियार के कई घाव थे. उस का गला भी काटा हुआ था.

थानाप्रभारी संजय हजारे टीम के साथ लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि पालघर डिवीजन के एसपी मंजूनाथ सिंगे, एसडीपीओ दत्ता तोटेवाड़ फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. फोरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतक के शव का निरीक्षण किया और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर लौट गए. थानाप्रभारी संजय हजारे ने शव को खाई से बाहर निकलवाया और वहां भीड़ से उस की शिनाख्त करने को कहा. लेकिन भीड़ में ऐसा कोई नहीं था जो मृतक को पहचान पाता. इस से यह बात साफ हो गई कि मृतक उस जगह या उस इलाके का रहने वाला नहीं था.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए पालघर जिला अस्पताल भेज दिया. यह 21 अगस्त, 2017 की बात है. थाने लौटने के बाद थानाप्रभारी संजय हजारे ने इस केस के बारे में अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श किया और जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर डी.वी. वांदेकर को सौंप दी. डी.वी. वांदेकर ने मामले की तह तक जाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एसआई विनायक माने और कुछ सिपाहियों को टीम में शामिल किया. पुलिस के सामने सब से बड़ी समस्या लाश की शिनाख्त की थी, क्योंकि शिनाख्त के बाद ही आगे की कडि़यां जुड़ सकती थीं.

शिनाख्त के लिए पुलिस ने वायरलैस से जिले के सभी पुलिस थानों को मृतक का हुलिया भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी पुलिस थाने में उस हुलिए के युवक की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पुलिस टीम को पूरी आशा थी कि किसी न किसी पुलिस थाने में मृतक के लापता होने की शिकायत जरूर दर्ज होगी. लेकिन पुलिस टीम की यह उम्मीद विफल हो गई. किसी भी थाने में मृतक के हुलिए से मिलतेजुलते किसी युवक की गुमशुदगी की सूचना दर्ज नहीं थी. लेकिन इस से पुलिस टीम निराश नहीं हुई. टीम ने लाश के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर जिले के सभी रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और सार्वजनिक स्थानों पर लगवा दिए.

इस के अलावा पुलिस ने सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया का सहारा ले कर मृतक की शिनाख्त की अपील की. लेकिन इस से भी कामयाबी नहीं मिली. जैसेजैसे समय गुजर रहा था, वैसेवैसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का दबाव बढ़ता जा रहा था. तमाम कोशिशों के बावजूद पुलिस के हाथ खाली थे. 15 दिसंबर को पुलिस को अचानक एक गुप्त सूचना मिली. इस सूचना पर काम किया गया तो सफलता मिलती गई. पुलिस को सूचना मिली कि जिस युवक की हत्या हुई थी, उस युवक का नाम रामचरण द्विवेदी है. वह उसी दिन से गायब है, जिस दिन खाई में अज्ञात लाश मिली थी. सूचना में यह भी बताया गया कि रामचरण उपनगर भायंदर के गणेश देवल नगर में रहने वाले रामदास द्विवेदी का बेटा है.

सूचना मिलने के बाद पुलिस ने रामदास और उस के परिवार वालों को थाने बुला लिया. उन्हें जब लाश के फोटो और कपड़े दिखाए गए तो वे फोटो और कपड़ों को देखते ही दहाड़ मार कर रोने लगे. रामदास ने बताया कि यह उस का बेटा रामचरण है. पुलिस ने रामदास द्विवेदी से उस के बेटे के बारे में पूछताछ की तो उस ने बस इतना ही बताया कि रामचरण का चालचलन ठीक नहीं था. वह आवारा किस्म का युवक था. ड्रग्स के अलावा वह शराब और शबाब का भी आदी था. औरत उस की खास कमजोरी थी, जिस की वजह से इलाके के कई लोगों से उस की दुश्मनी हो गई थी.

प्रारंभिक पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रामचरण द्विवेदी और उन के परिवार को घर भेज दिया. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस टीम का सिरदर्द आधा हो गया था. अब उन्हें यकीन हो गया था कि हत्या की गुत्थी जल्दी ही सुलझ जाएगी. पुलिस टीम ने मुखबिरों के जरिए जब मृतक रामचरण का इतिहास खंगाला तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. इस के बाद पुलिस गणेश देवल नगर पहुंची. पुलिस ने वहां के लोगों से पूछताछ की तो संदेह की सुई रामचरण द्विवेदी के घर वालों की तरफ ही घूम गई.

पुलिस ने रामचरण के घर वालों को फिर से थाने में बुला कर पूछताछ की तो वे पुलिस के सवालों के बीच उलझ कर रह गए. उन के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उन्होंने रामचरण के गायब होने की शिकायत स्थानीय पुलिस थाने में क्यों नहीं दर्ज कराई. पुलिस समझ गई कि दाल में जरूर ही कुछ काला है. लिहाजा जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो रामदास ने सच उगल दिया. उस ने बताया कि उस के सामने ऐसे हालात बन गए थे कि उसे अपने ही बेटे की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. चूंकि उस से विस्तृत पूछताछ करनी थी, इसलिए पुलिस ने उसे वसई कोर्ट के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के यहां पेश कर के एक सप्ताह के रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान रामदास और उन की पत्नी रजनी ने अपने ही बेटे की हत्या करने की जो कहानी बताई वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली. रामदास द्विवेदी मुंबई के उपनगर भायंदर (वेस्ट) में अपने परिवार के साथ रहता था. परिवार में उस की पत्नी रजनी के अलावा 2 बेटे थे. बड़े बेटे का नाम सीताराम और छोटे का नाम रामचरण था. बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी. छोटा बेटा रामचरण भी शादी के लायक हो गया था. लेकिन उस का आचरण ठीक नहीं होने के कारण उस के लिए कोई रिश्ता नहीं आ रहा था.

रामदास द्विवेदी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर के मछली शहर का रहने वाला था. उस के पिता रामचंद्र द्विवेदी कथावाचक ब्राह्मण थे. गांव, समाज और बिरादरी में उन की काफी इज्जत थी. लेकिन उन के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पूजापाठ में इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च सुचारू रूप से चल सके. घर की परेशानियों की वजह से रामदास द्विवेदी रोजीरोटी की तलाश में मुंबई चला आया था. मुंबई के भायंदर इलाके में उस के गांव के कई लोग रहते थे. उन के सहयोग से रामदास को कोई अच्छी नौकरी तो नहीं मिली, उसी इलाके की एक इमारत में चौकीदारी की नौकरी जरूर मिल गई. हालांकि चौकीदारी में इतनी कमाई नहीं थी. लेकिन रामदास मेहनती इंसान था.

वह लोगों की कारों की धुलाई और साफसफाई कर के इतना कमा लेता था कि घरपरिवार का काम चल सके. धीरेधीरे पैसे जमा कर के उस ने अपना एक झोपड़ा खरीद लिया था. अपने खर्चे के बाद जो पैसा बचता, उसे वह गांव भेज देता था. इस से परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी थी. इसी दौरान बनारस की रहने वाली लक्ष्मी से उस की शादी हो गई. शादी के बाद रामदास ने कुछ दिनों तक अपनी पत्नी को मांबाप की सेवा में छोड़ा. उस के बाद वह पत्नी को ले कर (Maharashtra Crime) मुंबई चला आया. समय के साथसाथ लक्ष्मी सीताराम और रामचरण 2 बच्चों की मां बन गई थी. रामचरण चूंकि छोटा था, इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते थे. उस समय उन्हें यह नहीं पता था कि यही लाड़प्यार एक दिन उन के पूरे परिवार को समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा.

परिवार के लाड़प्यार ने रामचरण को इस कदर बिगाड़ दिया कि बाद में उसे संभालना मुश्किल हो गया. स्कूल में उस का मन पढ़ाईलिखाई में कम मटरगश्ती में ज्यादा लगता था. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह अपने बड़े बेटे सीताराम को अधिक पढ़ालिखा नहीं पाए थे. लेकिन रामचरण से उन्हें काफी उम्मीदें थीं. मगर घर वालों का यह सपना सपना ही रह गया. कहने के लिए तो वह स्कूल जाता था लेकिन पढ़ाई के नाम पर वह आवारा बच्चों के साथ घूमता था जो अपने ही घरों से चोरी कर के लाए पैसों का गलत इस्तेमाल करते थे. छोटी सी उम्र में ही रामचरण ड्रग्स, चरस, शराब और शबाब के चक्कर में पड़ गया.

शुरू में रामदास द्विवेदी और घर वालों को रामचरण की इस कमजोरी के बारे में पता नहीं चला और जब पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी. रामचरण नशे के उस मुकाम पर पहुंच गया था, जहां से लौटना मुश्किल था. वह जिस बस्ती और इलाके में रहता था, वहां के लोगों के लिए वह सिर दर्द बन गया था. मारपीट, राहजनी और अय्याशी के शौक में वह पूरी तरह जकड़ चुका था. मोहल्ले की कोई भी लड़की या औरत रास्ते में उस के सामने आने तक से डरती थी. अपनी बस्ती और इलाके की कई औरतों को वह अपनी हवस का शिकार बना चुका था. अपनी धौंस और डर दिखा कर रामचरण कई औरतों का यौनशोषण कर चुका था.

इज्जत और समाज में बदनामी होने के डर से कोई उस के खिलाफ पुलिस में नहीं जाता था. इस से उस का हौसला इतना बढ़ गया था कि ड्रग्स के नशे में उस ने अपने घर को भी नहीं छोड़ा. पहले उस ने अपनी भाभी के साथ रेप किया और इस के बाद अपनी मां की इज्जत भी तारतार कर डाली थी. रामचरण इंसान से जानवर बन गया था. मां ने जिस बेटे को जन्म दिया, वही बेटा एक दिन उस के साथ ही रेप कर बैठेगा, यह बात लक्ष्मी ने सपने में भी नहीं सोची थी. एक जानवर में और रामचरण में अब कोई फर्क नहीं रह गया था. कहावत है कि जब कोई आदमी जानवर बन जाए और फिर आदमखोर हो जाए तो उसे मार देना ही एक रास्ता होता है.

यही सोच कर लक्ष्मी ने रामचरण के लिए एक खतरनाक फैसला ले लिया. बेटे के कृत्य की वजह से वह बड़ी ही शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. एक तरह से वह घुटघुट कर जी रही थी. अपने खतरनाक फैसले में अपने पति रामदास द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू को भी शामिल कर लिया. यह काम उन में से किसी के भी बस का नहीं था, लिहाजा वह किराए के हत्यारे को तलाशने लगे. इस तलाश में लक्ष्मी और उस के पति को अपने ही इलाके में रहने वाले अपराधी प्रवृत्ति के केशव मिस्त्री की याद आई. केशव मिस्त्री वसई के जानकीपाड़ा में रहता था और राजगीर का काम करता था. कभीकभार वह लक्ष्मी और उन के परिवार से मिलनेजुलने आया करता था.

इस मामले में लक्ष्मी और उस के पति, बेटे और बहू ने केशव मिस्त्री से मिल कर जब सारी बातें बता कर अपनी योजना बताई तो वह रामचरण को मारने के लिए तैयार हो गया. उस ने इस काम के लिए एक लाख रुपए की मांग की. लक्ष्मी इतना पैसा देने की स्थिति में नहीं थी. उस ने अपनी मजबूरी बताई तो मामला 50 हजार रुपए में तय हो गया. लक्ष्मी के पास 50 हजार रुपए भी नहीं थे उस के पास शादी का मंगलसूत्र था. बेटे को मरवाने के लिए उस ने अपना मंगलसूत्र तक बेच कर केशव मिस्त्री को पैसे दे दिए. पैसे मिलने के बाद केशव मिस्त्री ने इस काम को अंजाम देने के लिए अपने दोस्त राकेश यादव को तैयार कर लिया.

योजना के अनुसार 20 अगस्त, 2017 को केशव मिस्त्री और राकेश यादव लक्ष्मी के घर आए और रामचरण द्विवेदी को शराब और शबाब की पार्टी के बहाने अपने साथ लाए टैंपो में बैठा कर जानकीपाड़ा की खाई के पास ले गए और उसे टैंपो से उतार कर उस के गले और शरीर पर गंड़ासे से वार कर के अधमरा कर दिया. फिर उन्होंने उस की गरदन काट कर उसे खाई में फेंक दिया. पुलिस ने गिरफ्तार रामदास द्विवेदी, उस की पत्नी लक्ष्मी द्विवेदी, बेटे सीताराम द्विवेदी और बहू के बयान दर्ज किए. तत्पश्चात उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. जब पुलिस टीम केशव मिस्त्री और राकेश यादव के घर पहुंची तो पता चला कि वे दोनों घटना को अंजाम देने के बाद अपने गांव उत्तर प्रदेश चले गए.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी संजय हजारे ने एसआई विनायक माने को एक पुलिस टीम के साथ उत्तर प्रदेश के लिए रवाना कर दिया, जहां उन्होंने केशव मिस्त्री और राकेश यादव को गिरफ्तार कर लिया और मुंबई ले आए थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से भी विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. लक्ष्मी परिवर्तित नाम है.

 

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