Lucknow Crime : शेल्टर होम वृद्ध, अनाथ बच्चों, बेसहारा महिलाओं वगैरह के लिए बनाए जाते हैं, जिन्हें सरकार से प्रोजेक्टों के नाम पर मोटा पैसा मिलता है, लेकिन इन शेल्टर होम्स के अंदर की सच्चाई कुछ और ही होती है. देवरिया का शेल्टर होम भी…  

5 अगस्त, 2018 की दोपहर का समय था. उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर के स्टेशन रोड स्थित एक शेल्टर होम से निकल कर 15 साल की एक लड़की शहर कोतवाली पहुंची. वह पहली बार किसी थाने में आई थी, इसलिए उसे यह समझ नहीं रहा था कि किस से क्या बात करे. उस ने मन को पक्का कर लिया था कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बात पुलिस को बता कर ही रहेगी. थाने में घुसते ही कुरसी पर बैठे जो अधिकारी दिखे वह उन के पास ही पहुंच गई. वह थानाप्रभारी थे. उस लड़की ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘अंकल, हम जिस शेल्टर होम में रहते हैं, उस में क्याक्या होता है, हम आप से बताना चाहते हैं.’’

थानाप्रभारी ने उसे पूरी बात बताने को कहा तो वह आगे बोली, ‘‘अंकल, हफ्ते के आखिरी दिनों में शेल्टर होम से लड़कियों को जबरदस्ती अनजान लोगों के साथ लाल और नीली बत्ती लगी गाडि़यों में भेजा जाता है, जहां उन का यौनशोषण होता है.

‘‘यही नहीं, जब कोई लड़की उन की बात मानने से इनकार करती है तो उसे परेशान किया जाता है, उस पर जुल्म ढाए जाते हैं. लड़कियां रात भर बाहर रहती हैं और सुबह मुंहअंधेरे उन्हीं गाडि़यों से शेल्टर होम लौट आती हैं.

‘‘जो लड़कियां मैडम के कहे अनुसार काम करती हैं, उन से मैडम खुश रहती हैं और उन के साथ अच्छा व्यवहार करती हैं. लड़कियों को लगता है कि मैडम की बात और उन की पहुंच बहुत ऊपर तक है, इसलिए वे उन से डरती हैं.’’

उस लड़की की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी को मामला गंभीर दिखाई दिया. वह लड़की जो थाने आई थी, मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह, देवरिया की थी. इस संस्था के गोरखपुर और सलेमपुर में भी शेल्टर होम हैं. इस की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी हैंशेल्टर होम की ऐसी ही घटना बिहार के मुजफ्फरपुर में घटी थी, जिस की पूरे देश में किरकिरी हो रही थी. इस घटना से बिहार सरकार भी बैकफुट पर थी, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी तुरंत एसपी रोहन पी. कनय को दी. एसपी ने पहले इस मामले की जांच के आदेश दिए. उसी शाम को थाना पुलिस जब मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह पहुंची तो वहां कई लड़कियां और बच्चे गायब मिले.  

यह जानकारी जब देवरिया पुलिस ने लखनऊ में बैठे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो सभी के होश उड़ गए. क्योंकि संस्था की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी एक जानीमानी शख्सियत थी. उस के पति मोहन त्रिपाठी और बेटी लता त्रिपाठी भी संस्था चलाने में सहयोग करते थे. गिरिजा त्रिपाठी पहले हाउसवाइफ थी, जबकि पति भटनी शुगर मिल में काम करता था. पति के वेतन से ही किसी तरह घर का खर्च चलता था. ऐसे में गिरिजा त्रिपाठी ने सामान्य औरतों की तरह घर पर ही कपड़े सिलने का काम शुरू किया, जो वक्त के साथ सिलाई सेंटर बन गया.

पति की नौकरी जाने के बाद उस ने सन 1993 में चिटफंड कंपनी खोली. बाद में इसी कंपनी का प्रारूप बदल कर एनजीओ बना दिया गया. वैसे गिरिजा त्रिपाठी रूपई गांव की रहने वाली थी. उस की ससुराल पड़ोस के ही नूनखार गांव में थी. सन 2003 के करीब गिरिजा त्रिपाठी की संस्था को शेल्टर होम खोलने का प्रोजेक्ट मिला. सरकार ने इस के लिए बजट भी देना शुरू कर दियाधीरेधीरे गिरिजा त्रिपाठी ने शासन और प्रशासन में गहरी पैठ बना ली, जिस का फायदा उठाते हुए उस ने देवरिया के अलावा गोरखपुर और सलेमपुर में भी वृद्धाश्रम खोल लिया. रजना बाजार और उसरा के पास भी संस्था के नाम से उस ने काफी प्रौपर्टी खरीद ली.

उत्तर प्रदेश सरकार की कई योजनाओं के संचालन के काम भी गिरिजा त्रिपाठी की संस्था मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह को मिलने लगे, इस में सरकार की महत्त्वाकांक्षी पालन गृह योजना भी थी. इस के अलावा योगी सरकार ने जब सामूहिक विवाह योजना का काम शुरू किया तो इन लोगों को उस में भी जगह मिल गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी बच्चों को गोद देने का भी एक सेंटर चलाती थी, जो बाल कल्याण समिति के अधीन काम करता था. वहां से बच्चों को गोद दिया जाता था. किसी वजह से 23 जून, 2017 के बाद इस संस्था की मान्यता रद्द कर दी गई थी. इस के बावजूद यहां पर शेल्टर होम के लिए लड़कियां और बच्चे लाए जा रहे थे.

कई लड़कियां ऐसी थीं, जिन्होंने घर से भाग कर शादी की थी. ऐसे मामलों में पुलिस लड़के को जेल भेजने के बाद लड़की को शेल्टर होम भेज देती है. पता चला कि शेल्टर होम में ऐसी लड़कियों को डराधमका कर उन से जिस्मफरोशी कराई जाती थीपुलिस ने ऐसी बालिग लड़कियों को उन के मांबाप के पास भेजने की कोशिश की, लेकिन उन लड़कियों ने यह सोच कर घर जाने से मरा कर दिया कि अगर घरपरिवार वालों को पता चला कि वे गलत काम करती हैं तो उन की बदनामी तो होगी ही, साथ ही जेल से आने के बाद उन का पति भी साथ रखने से मना कर देगा.

कई लड़कियों ने बताया कि उन से घरेलू नौकर का काम कराने के लिए भी दूसरी जगह भेजा जाता था. पुलिस के पास जो लड़की शिकायत दर्ज कराने आई थी, उस का नाम नीता (परिवर्तित नाम) था. वह भी घर से भाग कर आई थी और गरीब घर की थी. उस के घर वालों को खाने तक के लाले पड़े थे. नीता इस संस्था में करीब 3 महीने पहले ही आई थी. जब उसे रात को कार से कहीं भेजा गया तो वह मौका पा कर भाग निकली और पुलिस तक पहुंच गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी का रसूख देवरिया, गोरखपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक था. वह हर सरकार में सत्ता के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों तक अपनी पहुंच रखती थी. इसी वजह से संस्था की मान्यता रद्द होने के बावजूद उस के शेल्टर होम में लड़कियां भेजी जाती रहीं

पुलिस खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार हरकत में आई और पुलिस की उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. एसआईटी जांच की अगुवाई की जिम्मेदारी एडीजी संजय सिंघल को सौंपी गई. जांच में 2 महिला आईपीएस अधिकारियों पूनम और भारती सिंह के अलावा सीओ अर्चना सिंह, इंसपेक्टर ब्रजेश सिंह आदि को भी शामिल किया गया. पुलिस और प्रोबेशन विभाग अलगअलग जांच करने में जुट गए. पुलिस ने संस्था के खिलाफ अलगअलग मामलों में भादंवि की धारा 188, 189, 310, 343, 354, 504, 506 के साथ 7/8 पोक्सो एक्ट और जेजे एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया. सरकार के साथ हाईकोर्ट ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया.

पुलिस की एसआईटी ने जांच के काम को जिस तरह से आगे बढ़ाया, उस में कई ऐसे प्रमाण मिले, जिस से पता चला कि शेल्टर होम में तमाम तरह की गड़बडि़यां थीं. सैक्स रैकेट तो बस उस का एक हिस्सा भर था. इस के अलावा चाइल्ड लेबर और बच्चों को गोद दिए जाने के भी तमाम मामले थे. गिरिजा ने अपने बेटे, बहू और बेटियों को भी संस्था से जोड़ रखा था. जांच कर रही पुलिस टीम के पास अलगअलग तरह की शिकायतें रही थीं. कई परिवारों की लड़कियां गायब थीं और कुछ के नाम ही दर्ज नहीं थे. ऐसे में वहां पर सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल काम था.

पुलिस ने देवरिया के साथ गोरखपुर की चाणक्यपुरी कालोनी में ओल्ड एज होम का पता लगाया. गोरखपुर के इस शेल्टर होम को गिरिजा की दूसरी बेटी कनकलता देख रही थी. वह जिले के प्रोबेशन विभाग में थी. गोरखपुर प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि ओल्ड एज होम में लड़कियों का आनाजाना तो नहीं थागोरखपुर के डीएम विजयेंद्र पांडियन और एसएसपी शलभ माथुर ने अपनी देखरेख में जांच आगे बढ़ाई. यहां पुलिस ने कई लोगों को पकड़ा भी. यह होम बिना मान्यता के चल रहा था. आरोप तो यह भी है कि यहां देवरिया से ला कर लड़कियों को रखा जाता था.

देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में सरकार ने जिले के आला अफसरों को बदल दिया. बस्ती की रहने वाली एक लड़की ने बताया कि उसे धमकी दे कर शेल्टर होम से बाहर ले जाया जाता था. डराया जाता था कि अगर तुम बाहर नहीं गई तो तुम्हारे पति को मरवा देंगे. इस लड़की ने बताया कि शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियां थीं, जो प्रेम विवाह करने के बाद यहां रह रही थीं. उन का भी शोषण होता था. उत्तर प्रदेश महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि इस में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका ठीक नहीं पाई गई. जब सन 2017 से इस शेल्टर होम की मान्यता नहीं थी तो वहां पर लड़कियों को पुलिस क्यों भेज रही थी?

सरकार ने सूचना मिलते ही कड़े कदम उठाए हैं. देवरिया के शेल्टर होम को सन 2010 में मान्यता दी गई थी. उसी समय बाल संरक्षण, बालिका संरक्षण महिला संरक्षण के प्रोजेक्ट दिए गए थे. रीता बहुगुणा ने कहा कि विपक्ष के जो लोग देवरिया कांड की आलोचना कर रहे हैं, उन के कार्यकाल में ही ऐसी संस्थाओं को लाइसैंस दिया गया था. ऐसे में विपक्ष बेकार का मुद्दा बना रहा है. योगी सरकार ने इस मामले पर त्वरित काररवाई कर के कड़ा संदेश दिया है. शेल्टर होम की जांच कर रही एसआईटी टीम 20 अगस्त को शेल्टर होम की अधीक्षिका कंचनलता को जांच के लिए साथ ले गई. बालगृह भवन में प्रवेश करते समय अंदर की बिजली गुल थी. कमरों में अंधेरा छाया हुआ था. उन्हीं बंद कमरों में लड़कियों को रखा जाता था. एसआईटी ने कई तथ्य जुटाए.

सुबह जांच करने गई टीम ने शाम 5 बजे तक जांच की और मिली सामग्री अपने कब्जे में ले ली. एसआईटी ने गिरिजा त्रिपाठी के परिवार की लाल रंग की बत्ती लगी कार को जब्त कर लियाजांच में पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है, जिस के बाद 100 से अधिक एसआई जांच में फंस सकते हैं. टीम ने लड़कियों के कपड़े, खिलौने, बिस्तर की भी जांच की. शेल्टर होम के कार्यालय में टंगी फोटो से यह पता चला कि कौनकौन से लोग यहां कार्यक्रमों में आते रहे हैं. पुलिस उन से भी पूछताछ कर सकती है. दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने लड़कियों के नाम सार्वजनिक करने वालों को भी गलत बताया और पूछा कि जब कोर्ट ने लड़कियों को किसी से मिलने देने से मना किया था तो प्रशासन ने लड़कियों की गोपनीयता का खयाल क्यों नहीं रखा.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डी.बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा इस केस को सुन रहे हैं. जांच और कोर्ट के फैसले के बाद ही शेल्टर होम का सच सामने सकेगापूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि शेल्टर होम जिस मकसद से बने हैं, उन को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में कोई कोई पारदर्शी व्यवस्था प्रशासन और सरकार को बनानी चाहिए, तभी ये जरूरतमंदों को सहयोग कर सकेंगे.

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