Delhi crime : संदीप कुमार को अपने मेडिकल स्टोर से अच्छीखासी कमाई हो रही थी. लेकिन जल्दी मोटा पैसा कमाने के चक्कर में वह क्रिकेट के आईपीएल मैचों पर सट्टा लगाने लगा. जिस में नुकसान होने से उस पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया. उस कर्ज से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपराध का रास्ता अपनाया. जिस की वजह से वह दोस्तों के साथ पहुंच गया जेल. जतिन उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी के माउंट एवरेस्ट स्कूल में पांचवीं में पढ़ता था. 21 सितंबर, 2013 को दोपहर बाद वह बुराड़ी में ही रहने वाले अपने एक दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से
निकलने लगा तो अपनी मां राज ढींगरा से बोला, ‘‘मम्मी कौपी ले कर मैं अभी थोड़ी देर में आ रहा हूं.’’ थोड़ी देर में आने के लिए कह कर गया जतिन जब काफी देर तक नहीं लौटा तो घरवाले परेशान होेने लगे. उन्हें यह भी पता नहीं था कि जतिन जिस दोस्त के यहां जाने को कह कर गया है, वह बुराड़ी के किस ब्लौक या गली में रहता है?
घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर जतिन को ढूंढा कहां जाए. उन्होंने मौहल्ले में तलाशने के साथसाथ उस के दोस्तों से भी पता किया, लेकिन जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला. कई घंटे बीत जाने के बाद भी जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता किशनलाल ढींगरा ने थाना बुराड़ी की राह पकड़ी. थाना बुराड़ी के थानाप्रभारी शेरसिंह को किशनलाल ने बेटे के गायब होने की पूरी बात बताई तो उन्होंने 13 साल के जतिन ढींगरा की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस के हुलिया की जानकारी दिल्ली के सभी थानों को वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी.
किशनलाल थाने से लौट कर अपने स्तर से बेटे को तलाश करने लगा. उस की समझ नहीं आ रहा था कि जतिन गया तो गया कहां. वह उसी की चिंता में डूबा था कि शाम सवा 5 बजे उस के मोबाइल पर एक फोन आया. नंबर अनजान था, फिर भी उस ने फोन रिसीव कर लिया. उस के ‘हैलो’ करते ही कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा जतिन इस समय हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा वापस चाहते हो तो 40 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात का ध्यान रखना. अगर पुलिस के पास जाने की गलती की तो जिंदगी भर पछताओगे.’’
‘‘नहीं, मेरे बेटे को कुछ मत कहना. मैं किसी से कुछ नहीं बताऊंगा. मुझे मेरा बेटा चाहिए.’’ किशनलाल घबरा कर बोला. दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. फोन पर हुई बात से किशनलाल समझ गया कि बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है. अपहर्त्ता ने उन्हें पुलिस के पास जाने से मना किया था. इसलिए वह असमंजस में था कि क्या करे? वह पुलिस के पास जाए या नहीं?
पुलिस से शिकायत करने पर अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए राज ढींगरा ने भी पति को थाने जाने से मना किया. लेकिन फिरौती देने के बाद भी अपहर्त्ता जतिन को छोड़ देंगे, इस बात की क्या गारंटी थी? यह बात उस के मन में अचानक उठी. इस बारे में उस ने अपने परिचितों से बात की तो सब ने उसे थाने जाने की सलाह दी. किशनलाल ने थाने जा कर थानाप्रभारी शेरसिंह को फिरौती के लिए आए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने किशनलाल से वह नंबर ले कर फोन किया. लेकिन वह नंबर बंद था. इस से थानाप्रभारी को यकीन हो गया कि जतिन का अपहरण हुआ है. उन्होंने किशनलाल को कुछ दिशानिर्देश दे कर घर भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ जतिन के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.
बच्चे को सकुशल बरामद करने के लिए पुलिस अपहर्त्ताओं का सुराग लगाने लगी. इस के लिए तुरंत एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर राजेश कुमार, रोमिल सिंह, रवि कुमार, हेड कांस्टेबल एच.आर. रहमान, पवन कुमार आदि को शामिल किया गया. जानकारी मिलने पर उत्तरी जिला की डीसीपी सिंधू पिल्लै ए. ने स्पेशल स्टाफ के इंसपेक्टर नरेश कुमार को भी टीम में शामिल कर दिया. अपहर्त्ता ने जिस मोबाइल नंबर से फोन किया था, उस की लोकेशन और वह नंबर किस के नाम से लिया गया था, यह सब पता लगाने के लिए थानाप्रभारी शेरसिंह ने हेडकांस्टेबल पवन कुमार को उस कंपनी के औफिस भेजा, जिस कंपनी का वह नंबर था.
दूसरी ओर किशनलाल के घर पहुंचते ही पौने 6 बजे उस के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने उसी नंबर से फिर फोन किया, ‘‘तुम्हें पुलिस के पास जाने से मना किया गया था, इस के बावजूद तुम थाने चले गए. लगता है, तुम्हें अपने बेटे से प्यार नहीं है.’’
‘‘मैं पुलिस के पास नहीं गया था. मैं तो तुम्हें देने वाले पैसों के इंतजाम में लगा हूं. मैं तुम्हें पूरे पैसे दूंगा, लेकिन बेटे को…’’ किशनलाल की बात पूरी होती, उस के पहले ही फोन कट गया. अपहर्त्ता के रुख से किशनलाल डर गया कि कहीं वे नाराज हो कर उस के बेटे को नुकसान न पहुंचा दें. मन में यही चिंता लिए वह फिर से थानाप्रभारी के पास जा पहुंचा. किशनलाल की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह उस ने थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी इस बात से हैरान थे कि अपहर्त्ता को किशनलाल के थाने जाने की बात कैसे पता लगी. यानी अपहर्त्ता का कोई आदमी ऐसा है जो किशनलाल के साथ रह कर उस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है.
अगले दिल पुलिस के पास अपहर्त्ता के नंबर की काल डिटेल्स आ गई, जिस से पता चला कि वह नंबर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के तिगड़ी निवासी मनोज के नाम से था, जिसे कुछ दिनों पहले ही लिया गया था. इसी के साथ यह भी पता चला कि फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे दिल्ली के वजीराबाद इलाके से किए गए थे. दूसरी ओर बेटे के अपहरण से किशनलाल और उस की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. दोनों इस बात को ले कर परेशान थे कि जतिन न जाने किस हाल में है. पुलिस को मनोज का पता मिल गया था, इसलिए पुलिस टीम तिगड़ी स्थित मनोज के घर जा पहुंची. संयोग से मनोज घर पर ही मिल गया. घर पर पुलिस को देख कर वह चौंका. पुलिस ने उस से जतिन के अपहरण के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह न किसी जतिन को जानता और न ही उसे किसी अपहरण के बारे में जानकारी है. बहरहाल पुलिस उसे साथ ले कर थाने आ गई.
थाने में मनोज से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पहले कही गई बातों को ही दोहराता रहा. उस की बातों से पुलिस को लगा कि वह सही बोल रहा है. उस का जतिन के अपहरण से कोई मतलब नही है. जिस नंबर से फिरौती के लिए फोन किए गए थे, वह उसी के नाम था. फार्म पर मनोज का फोटो लगा होने के साथ पता भी सही था. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि उस की आईडी और फोटो से वह नंबर लिया किस ने? पुलिस ने मनोज से पूछा कि उस ने कभी अपनी आईडी और फोटो किसी को दिए तो नहीं थे?
काफी देर सोचने के बाद मनोज ने कहा, ‘‘सर, जहांगीरपुरी में मेरा एक दोस्त गौतम जैन रहता है. वह एक फाइनेंस कंपनी में नौकरी करता है. सन 2009 में मैं ने नौकरी के लिए उसे अपनी आईडी और एक फोटोग्राफ दिया था.’’
पुलिस मनोज को साथ ले कर गौतम जैन के घर गई तो वह घर पर नहीं मिला. लेकिन घर से पुलिस को उस का फोन नंबर मिल गया. उसी नंबर के सहारे पुलिस ने 23 सितंबर, 2013 को जीटी करनाल रोड बस डिपो के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. मनोज जैन से पूछताछ में पता चला कि उस के साथियों संदीप कुमार, मुकेश और संदीप उर्फ सन्नी ने जतिन का अपहरण किया था. इस कांड में उन के साथ वह भी शामिल था. पुलिस ने जब उस से अपहृत जतिन के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जतिन की हत्या कर के लाश नरेला से हो कर बहने वाले नाले में फेंक दी गई है.
गौतम से पूछताछ के बाद पुलिस ने किशनलाल को थाने बुला लिया. जब उसे पता चला कि जतिन की हत्या कर दी गई है तो उस पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. थानाप्रभारी किशनलाल और गौतम को साथ ले कर वहां के लिए रवाना हो गए, जहां जतिन की लाश फेंकी गई थी. बाहरी दिल्ली में नरेला के पास एक गांव है नगली. वहीं एक बड़ा सा नाला है. गौतम ने वह जगह बताई जहां उस ने लाश फेंकी थी. लेकिन पुलिस को वहां लाश दिखाई नहीं दी. नाला गहरा था, इसलिए पुलिस ने जेसीबी मशीन मंगा कर नाले को खंगालना शुरू किया. आखिर थोड़ी मेहनत के बाद लाश मिल गई. बेटे की लाश देख कर किशनलाल फफक फफक कर रोने लगा. उस ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे जतिन के रूप में कर दी. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और गौतम को साथ ले कर थाने आ गए.
गौतम के अन्य साथी फरार थे, इसलिए उसे तीस हजारी न्यायालय में पेश कर के 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. गौतम की निशानदेही पर पुलिस ने 27 सितंबर को मुकेश, संदीप कुमार और संदीप उर्फ सन्नी को उन की दुकानों से गिरफ्तार कर लिया. इन सभी से की गई पूछताछ में जतिन के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी. देश के आजाद होने के बाद भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान के पेशावर के रहने वाले कालूराम ढींगरा पत्नी और बेटी हरकौर के साथ भारत आ गए थे. कालूराम एक पैर से विकलांग थे. उस समय वह उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं में आ कर बस गए थे. वहीं पर उन्होंने परचून की दुकान खोली, जिस की आमदनी से परिवार का गुजरबसर होने लगा.
बदायूं मे ही उन की पत्नी ने 4 बच्चों को जन्म दिया, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के नाम थे गोविंदराम, हरवंश कौर, रीतू कौर और किशनलाल. कालूराम का भरापूरा परिवार हो गया था, जिस से उन की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. उन्होंने अपने बच्चों की अपनी हैसियत से परिवरिश की. जैसेजैसे बच्चे सयाने होते गए, कालूराम उन की शादी करते गए. बड़ी बेटी हरकौर की शादी दिल्ली के लारेंस रोड पर अपनी ही बिरादरी के लड़के से कर दी थी. हरकौर की शादी दिल्ली में हो गई तो उसी के सहारे घर के बाकी लोगों का भी दिल्ली आनाजाना हो गया. इस के बाद हरवंश की शादी फरीदाबाद और रीतू की शादी उत्तरी दिल्ली के संतनगर (बुराड़ी) में हो गई. गोविंदराम की शादी उन्होंने वहीं एक गांव से कर दी थी. वह पिता के काम में हाथ बंटाता था.
किशनलाल बच्चों में सब से छोटा था. उस की 2 बहनों की दिल्ली में शादी हुई थी. जब वह 7 साल का था, रीतू के साथ दिल्ली आ गया था. बहन ने यहां उस का दाखिला एक स्कूल में करा दिया. घर वाले चाहते थे कि पढ़लिख कर वह कोई अच्छी नौकरी कर ले. लेकिन वह ज्यादा पढ़ नहीं सका. पढ़ाई छोड़ कर आटोरिक्शा चलाने लगा. कई सालों तक आटोरिक्शा चलाने के बाद जब उस के पास पैसे हो गए तो उस ने बुराड़ी की ही बंगाली कालोनी में एक प्लौट खरीद कर अपने लिए एक मकान बनवा लिया. इस के बाद उत्तरी दिल्ली की संत परमानंद कालोनी में रहने वाले हरिदर्शन सिंह की बेटी राज से उस की शादी हो गई.
शादी के बाद उस के यहां गुरप्रीत, जतिन और हर्ष 3 बच्चे हुए. 3 बेटे होने के बाद जहां भरापूरा परिवार हो गया, वहीं घर का खर्च भी बढ़ गया. किशनलाल आटो चला कर जो कमाता था, उस से घर खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. वह आमदनी बढ़ाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने आटो चलाने के बजाय प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया. उस की तमाम लोगों से जानपहचान थी, इसलिए किशनलाल ने बुराड़ी में अच्छीखासी प्रौपर्टी खरीद ली. अब उस के पास पैसों की कमी नहीं रही. पैसे आए तो उस ने बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूलों में करा दिया. बड़ा बेटा गुरप्रीत निरंकारी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था तो जतिन माउंट एवरेस्ट पब्लिक स्कूल में.
किशनलाल का बुराड़ी के हरित विहार में औफिस था. उस के औफिस के पास ही संदीप कुमार की दवाओं की दुकान थी. जबकि उस का घर जहांगीरपुरी में था. बीए पास करने के बाद उस ने हरित विहार में मेडिकल स्टोर खोल लिया था. दुकान से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. इस के बावजूद वह चाहता था कि कहीं से उसे मोटी कमाई हो जाए, जिस से वह ऐशोआराम की जिंदगी जी सके. इसीलिए वह क्रिकेट के आइपीएल मैचों पर सट्टा लगाने लगा, जिस से उसे लाखों रुपए का नुकसान हुआ. इस के अलावा उस ने कुछ दुकानदारों के साथ चिट फंड कमेटी डाली, जिस का सारा पैसा एक दुकानदार ले कर भाग गया. इस से संदीप को काफी नुकसान हुआ.
इन सब की वजह से संदीप परेशान रहने लगा. उस के ऊपर लाखों का कर्ज था, जो दुकान की कमाई से अदा नहीं हो पा रहा था. जिन लोगों से उस ने पैसे उधार लिए थे, वे अपने पैसे वापस मांग रहे थे, जिस से वह परेशान रहने लगा था. संदीप की एक बंगाली डाक्टर से दोस्ती थी. उस ने अपनी परेशानी डा. बंगाली को बताई तो उस ने कर्ज उतारने के लिए उसे 5 लाख रुपए उधार दिए. इस के अलावा बंगाली कालोनी में ही रहने वाली निशा उर्फ नीतू से भी उस ने एक लाख रुपए कर्ज लिए. इस तरह 6 लाख रुपए देने के बाद भी उस पर कर्ज बाकी था. जिस दुकान में संदीप का मेडिकल स्टोर था. वह किराए पर थी. परेशानी की वजह से वह कई महीने से दुकान का किराया भी नहीं दे पा रहा था, जिस से दुकान के मालिक ने उस से दुकान खाली करने को कह दिया. संदीप अब सोचने लगा कि कहीं से उसे मोटी रकम मिल जाती तो वह सभी का कर्ज दे कर निजात पा जाता.
किशनलाल ने कुछ दिनों पहले ही अपना एक प्लौट बेचा था. इस बात की जानकारी संदीप को थी. वैसे भी संदीप को किशनलाल की हैसियत का पता था. क्योंकि वह उस के घर भी आताजाता रहता था. संदीप को जब पता चला कि किशनलाल ने प्लौट बेचा है तो उस के दिमाग में तुरंत आया कि अगर किशनलाल के बच्चे का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती में उस से मोटी रकम मिल सकती है. संदीप कुमार का एक दोस्त था मुकेश, जिस का बंगाली कालोनी की गली नंबर 16 में फोटो स्टूडियो था. चूंकि अपहरण जैसा काम संदीप के अकेले के बस का नहीं था, इसलिए उस ने मुकेश को लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.
अपहरण के लिए एक कार की जरूरत थी, इस के लिए संदीप कुमार ने अपने एक अन्य दोस्त संदीप उर्फ सन्नी से बात की. सन्नी का हरित विहार, बुराड़ी में ही सन्नी मेडिकल के नाम से दवाओं की दुकान थी. वह रहने वाला जहांगीरपुरी का था. मोटी रकम के लालच में सन्नी भी संदीप का साथ देने को तैयार हो गया था. तीनों ने बैठ कर किशनलाल के दूसरे नंबर के बेटे जतिन ढींगरा के अपहरण की योजना बनाई. वैसे तो वे उस के छोटे बेटे हर्ष को उठाना चाहते थे, लेकिन समस्या यह थी कि हर्ष स्कूल आनेजाने के अलावा घर से निकलता नहीं था. और जब स्कूल जाताआता था तो उस के साथ घर का कोई सदस्य होता था, जबकि 13 साल का जतिन अकेला भी घर के बाहर आताजाता रहता था.
योजना बन गई, तो उन्हें फिरौती मांगने के लिए ऐसे फोन नंबर की जरूरत थी, जो किसी दूसरे की आईडी पर लिया गया हो, जिस से वे फंस न सकें. किसी दूसरे की आईडी उन तीनों में से किसी के पास थी नहीं. मेडिकल स्टोर खोलने से पहले सन्नी एक फाइनेंस कंपनी में काम करता था. उसी के साथ जहांगीर पुरी का ही रहने वाला गौतम जैन भी नौकरी करता था. सन्नी ने बातें ही बातों में गौतम जैन से पता किया कि उस के पास किसी की आईडी तो नहीं पड़ी है? गौतम जैन ने सन्नी से आईडी की जरूरत के बारे में पूछा तो सन्नी ने उसे सच्चाई बता दी. पैसों के चक्कर में गौतम जैन के मन में भी लालच आ गया. उस ने कहा कि वह आईडी और फोटो तो उपलब्ध करा देगा, लेकिन फिरौती की रकम में वह भी बराबर का हिस्सा लेगा.
सन्नी ने यह बात मुकेश और संदीप कुमार को बताई तो मजबूरी में उन्होंने गौतम जैन को भी योजना में शामिल कर लिया. गौतम जैन को तिगड़ी के रहने वाले उस के दोस्त मनोज ने 2 साल पहले अपना फोटो और आईडी दी थी, ताकि वह उस की नौकरी लगवा सके. तब से मनोज के सारे कागज गौतम के पास ही रखे थे. मनोज की आईडी और फोटो से गौतम ने आइडिया कंपनी का नया सिम ले लिया. संदीप कुमार किशनलाल के घर भी आताजाता था, जिस से घर के सभी लोग उसे अच्छी तरह पहचानते थे. इसलिए उस ने साथियों के साथ पहले ही तय कर लिया था कि फिरौती मिलने के बाद जतिन को जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा. सारी तैयारी हो गई तो वे मौके की तलाश में रहने लगे.
21 सितंबर, 2013 को दोपहर के बाद जतिन बुराड़ी के ही अपने किसी दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से निकला. जैसे ही वह मेन रोड पर पहुंचा, गिद्धदृष्टि जमाए संदीप और मुकेश उस के पास पहुंच गए. जतिन वीडियो गेम खेलने का शौकीन था. वीडियो गेम खेलने और खिलौने दिलाने के बहाने संदीप कुमार जतिन को अपने साथ ले गया. चूंकि जतिन संदीप को जातनापहचानता था, इसलिए वह उस के साथ चला गया. वहां से कुछ दूर अपनी वैगनआर कार डीएल9सीएक्स1861 में बैठा सन्नी यह सब देख रहा था. संदीप का इशारा मिलते ही वह अपनी कार संदीप के पास ले आया. संदीप ने जतिन को कार में बैठने को कहा तो बैठ गया. कार सन्नी चला रहा था. वह जतिन को हरित विहार स्थित अपने मैडिकल स्टोर पर ले गया.
सन्नी ने दुकान में रखे फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाल कर जतिन को दी तो वह पीने लगा. उस कोल्डड्रिंक में नशीली दवा पहले ही मिला रखी थी, इसलिए कोल्डड्रिंक पीने के थोड़ी देर बाद जतिन बेहोश हो गया. सन्नी की दुकान के बगल की दुकान बंद रहती थी, जिस की चाबी सन्नी के पास थी. बेहोश जतिन को उसी दुकान में रखना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर उन की यह योजना बदल गई. उस समय उन के साथ गौतम जैन नहीं था. उसे उन्होंने फोन पर सब बता दिया तो उस ने कहा कि वह उन्हें बुराड़ी चौक पर मिल जाएगा. बेहोश जतिन को उन्होंने कार में डाला और नगली ऊना गांव की ओर चल पड़े. संदीप वहीं रहता था, इसलिए उसे वहां की अच्छीखासी जानकारी थी. रास्ते में बुराड़ी चौक के पास गौतम जैन मिला तो उसे भी उन्होंने कार में बैठा लिया. जतिन को होश आ जाता तो वह हंगामा कर सकता था. इसलिए उन्होंने कार में ही उस की गला दबा कर हत्या कर दी. उसे मार कर उस की लाश उन्होंने नगली के पास गहरे नाले में फेंक दी.
लाश ठिकाने लगा कर संदीप कुमार और मुकेश अपनीअपनी दुकानों पर चले गए. जबकि फिरौती के लिए फोन करने की जिम्मेदारी सन्नी और गौतम जैन को सौंपी गई. दूसरे जतिन घर नहीं लौटा तो घरवाले परेशान हो उठे. उन्होंने मोहल्ले में और इधरउधर तलाश की. जब इस बात की जानकारी मुकेश को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए वह भी किशनलाल की मदद के लिए आ गया. सन्नी और गौतम ने दिल्ली के वजीराबाद इलाके में जा कर किशनलाल ढींगरा को फोन कर के 40 लाख रुपए की फिरौती मांगी. बेटे के अपहरण की खबर सुन कर किशनलाल के होश उड़ गए. वह किसी भी तरह रकम जुटा कर बेटे को सकुशल वापस पाना चाहता था, लेकिन परिचितों के कहने पर वह थाने चला गया. तब उसे क्या पता था कि अपहर्त्ताओं ने पहले ही उस के बेटे को मार दिया है.
पूछताछ के बाद पुलिस ने गौतम जैन को 27 सितंबर को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद अन्य अभियुक्तों संदीप कुमार, मुकेश और सन्नी से घटनास्थल की तस्दीक करा कर 28 सितंबर को उन्हें भी न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर परमजीत सिंह कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित