Uttar Pradesh news : एक बड़े ज्वैलर इंद्रकुमार गुप्ता की लाडली बेटी शिवांगी को अपनी सहेली ज्योति से ऐसा प्यार हुआ कि वह उस से शादी करने को अड़ गई. इंद्रकुमार गुप्ता ने भी अपनी लाडली का लिंग चेंज करा कर धूमधाम से उस की शादी ज्योति से कराई. इन दोनों की प्रेम कहानी इतनी दिलचस्प है कि…

शिवांगी और ज्योति पक्की सहेलियां थीं. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. रविवार को वे घर के पास ही संजीवनी पार्क पहुंच जातीं फिर घंटा, आधा घंटा किसी सूने कोने में बैठ कर अंतरंग बातें करती थीं, उस के बाद दोनों अपनेअपने घर चली जातीं. यह उन का हर रविवार का नियम था. हर बार की तरह उस रोज भी रविवार था. शिवांगी व ज्योति आईं और झाडिय़ों के पीछे एकांत में बैठ गईं. यूं भी दोपहर का समय था और उस समय पार्क अकसर सुनसान रहते हैं. संजीवनी पार्क में भी इक्कादुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे. कुछ देर दोनों गपशप करती रहीं, फिर सहसा शिवांगी गंभीर हो कर ज्योति को अपलक निहारने लगी. 

कुछ देर ज्योति सहेली को देखते हुए मुसकराती रही, फिर असहज हो कर बोली, ”शिवांगी, तुम इस तरह मुझे क्यों देख रही हो?’’

यह पूछो कि क्या देख रही हूं.’’

मुसकराते हुए ज्योति ने प्रतिप्रश्न किया, ”तुम ही बता दो कि बिना पलकें झपकाए तुम मुझ में क्या देख रही हो?’’

ज्योति, तुम बहुत खूबसूरत हो,’’ शिवांगी अपना मुंह ज्योति की आंखों के पास ले गई, स्वाभाविक तौर पर उस की पलकें बंद हो गईं. शिवांगी ने बारीबारी उस की पलकें चूमी, फिर अपना मुंह दूर हटा लिया, ”तुम्हारी आंखें किसी उस्ताद शायर का हसीन ख्वाब हैं,’’ इस के बाद उस ने ज्योति के होठों पर तर्जनी फिराई, ”और तुम्हारे ये होंठ मानो शराब के पैमाने हैं.’’

पलकों पर होंठों का स्पर्श, चेहरे से टकराती शिवांगी की हसरत भरी सांसें और होंठों पर अब भी घूम रही तर्जनी के स्पर्श से ज्योति एक अजब रोमांच से भर गई. सहेली का यह व्यवहार भी उसे अजीब लग रहा था, इसलिए चेहरे पर मुसकान सजा कर उस ने पूछा, ”शिवांगी, आज तुुम यह कैसी बहकीबहकी सी बातें कर रही हो?’’

बहकीबहकी नहीं, महकीमहकी बातें कर रही हूं,’’ शब्द मानो शिवांगी की आत्मा से निकल रहे थे, ”सच कह रही हूं ज्योति, तुम्हारे होंठों को मुंह लगा कर जो यह शराब पी ले, कसम से जिंदगी भर उस का नशा न उतरे.’’

ज्योति को उलझन सी महसूस हुई, ”शिवांगी, आज तुम्हें यह क्या हो गया है?’’

प्यार हो गया है,’’ ज्योति की तरह उस का भी लहजा संजीदा था, ”तुम्हारे लिए अपने दिल में प्यार तो तभी से महसूस कर रही हूं, जब से पहली बार तुम्हें देखा था, आज जाहिर कर देती हूंआई लव यू ज्योति.’’

ज्योति खिलखिला कर हंसी, ”यह बात किसी लड़के से बोलो तो तुम्हें कुछ हासिल भी हो, मुझ से क्या पाओगी. जो तुम में है, वही मुुझ में है. लड़कियों की खुशियों का बंद ताला खोलने की चाबी लड़कों के पास होती है. मुझे बख्शो और अपनी मनपसंद के किसी लड़के से बोलो आई लव यू.’’

जरूरी नहीं कि लड़की को लड़के से ही प्यार हो,’’ शिवांगी ने अपना दर्शन बघारा, ”लड़की को लड़की से भी प्यार हो सकता है. वैसे ही जैसे मुझे तुम से हो गया है.’’

बहुत चुहल हो गई, अब चलो.’’ ज्योति भौहें उचका कर बोली.

चलते हैं यार,’’ शिवांगी ने ज्योति की कमर जकड़ कर जहां का तहां बैठा लिया, ”पहले अपने होठों की शराब तो चखा दो. आज मैं ऐसा नशा कर लेना चाहती हूं, जो जीवन भर न उतरे.’’

शिवांगी क्या फिजूल की बात कर रही हो, यार. लड़कीलड़की में ऐसे थोड़े ही होता है.’’

होता है यार, आज से नहीं सदियों से होता आ रहा है और होता रहेगा.’’

नहीं यार, ये गलत है.’’ ज्योति ने विरोध किया.

ज्योति मना करती रही, लेकिन शिवांगी कहां मानने वाली थी. उस ने ज्योति का मुंह अपनी तरफ घुमाया, दोनों हथेलियों में उस का चेहरा फंसाया और उस का निचला होंठ अपने होंठों से चूमने लगी. ज्योति का तनमन रोमांच से भर गया. ज्योंज्यों चुंबन के चटखारे तेज हुए, ज्योति का विरोध कमजोर पड़ता गया. आनंद और उत्तेजना के कारण उस की आंखें खुदबखुद बंद हो गईं. लड़की भी लड़की को असीम आनंद दे सकती है, यह उस ने पहली बार जाना. उत्तर प्रदेश का एक चर्चित शहर है कन्नौज. यह शहर सुगंध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां का इत्र व्यवसाय पूरे विश्व में मशहूर है.

कन्नौज का ऐतिहासिक महत्त्व भी है. राजा जयचंद ने इसे अपनी राजधानी बनाया था. उस के द्वारा बनाए गए किलों के अवशेष आज भी मौजूद हैं. बीड़ी उद्योग के लिए भी कन्नौज मशहूर है. कन्नौज शहर का ही एक बड़ा क्षेत्र है सरायमीरा. इसी सरायमीरा के देविनटोला मोहल्ले में इंद्रकुमार गुप्ता सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां व एक बेटा था. इंद्रकुमार गुप्ता सर्राफा व्यापारी थे. सरायमीरा में उन की ज्वैलरी शौप थी. सर्राफा व्यापार में उन का नाम था.

किसे ढूंढ रही थीं शिवांगी की प्यासी निगाहें

इंद्रकुमार गुप्ता ने 2 बेटियों के विवाह कर दिए थे. बेटे की भी शादी कर दी थी. अब बची थी सब से छोटी बेटी शिवांगी उर्फ रानू. शिवांगी खूबसूरत व तेजतर्रार थी. पढ़ाई में भी वह तेज थी और खेलकूद में भी निपुण थी. उस ने महिला महाविद्यालय से बीए किया था. इस के बाद पापा की ज्वैलरी शौप पर उन का सहयोग करने लगी थी. इतनी सारी खूबियां होने के बावजूद शिवांगी के वजूद में एक खामी थी. किशोरवय तक तो सब ठीक था, मगर उस के बाद उस में विचित्र बदलाव आने लगे. वह महसूस करने लगी थी कि उस की देह अवश्य नारी की है, मगर उस में जो आत्मा है, वह पुरुष की है. 

यही कारण था कि लड़कियों को सहेली बनाने के बजाय लड़कों को दोस्त बनाना शिवांगी को सुहाता था. उस की चालढाल, आचारविचार सब लड़कों जैसे हो गए. कपड़े भी उस ने मरदाना पहनने शुरू कर दिए. लंबे बाल कटवा कर हेयर स्टाइल भी लड़कों जैसा करा लिया. कह सकते हैं कि शिवांगी अपने मन की मालिक थी. जो उसे अच्छा लगता, वही करती. मातापिता का उस पर अंकुश था नहीं. इसलिए भी वह अपने मन की करती थी.

किशोरावस्था पार कर के शिवांगी ने युवावस्था में प्रवेश किया तो उस का मन किसी से प्रीत जोडऩे के लिए ललकने लगा. शिवांगी लड़की थी, मगर स्वयं को लड़की मानती नहीं थी और लड़कों में उसे दिलचस्पी नहीं थी. इसलिए उस की आंखों ने किसी ऐसी नवयौवना की तलाश शुरू कर दी, जिसे वह अपनी प्रेमिका बना कर प्यार कर सके. शिवांगी के मन को कुछ लड़कियां भायीं भी, मगर हर किसी में कोई न कोई कमी भी नजर आई. लिहाजा उन से प्रेम करने का इरादा त्याग दिया. दरअसल, शिवांगी को ऐसी संगिनी की तमन्ना थी, जो लाखों में एक न सही, सैकड़ों में एक जरूर हो. 

लड़कियों की भीड़ में वह सब से अलग नजर आए. ऐसी लड़की जो उस के मन, आत्मा और भावनाओं को समझे. समलिंगी से वह वे सारी अपेक्षाएं करे, जो आम लड़कियां विपरीत लिंगी से किया करती हैं. यही नहीं, उस की क्रियाओं से वह शांति एवं संपूर्ण तृप्ति की भी अनुभूति करे. किसी का प्यार पाने तथा किसी को प्यार देने के लिए शिवांगी का मन बेचैन था, मगर उस के मनमुताबिक संगिनी मिल नहीं रही थी. शिवांगी को हर किसी से निराशा मिल रही थी. इस के बावजूद उस ने सब्र का दामन नहीं छोड़ा. वह उस पल का इंतजार करती रही, जब नियति को उस के जोड़ीदार से मिलाना था. आखिर वह दिन आ ही गया. 

पार्क में फलनेफूलने लगा लेस्बियन प्यार

साल 2020 की बात है. दिसंबर का महीना था. हर रोज की तरह उस रोज भी शिवांगी पापा की ज्वैलरी शौप के काउंटर पर बैठी थी. लगभग 12 बजे एक लड़की आई और शिवांगी के काउंटर के सामने आ कर बैठ गई. शिवांगी की नजरें उसी से चिपक गई, ‘वाव! क्या हुस्न, शबाब और ताजाताजा खिली जवानी है. महबूबा बनाने लायक तो यह लड़की है.’ 

शिवांगी ने मुसकराहट के फूल खिलाए, ”हाय!’’

लड़की भी मुसकराई, ”हाय.’’

मेरा नाम शिवांगी गुप्ता है.’’

मैं ज्योति, देविन टोला में रहती हूं.’’

अरे, वहीं तो मेरा भी मकान है. लेकिन कभी मुलाकात नहीं हुई.’’

मैं पहले दूसरे मोहल्ले में रहती थी. अभी कुछ महीने से देविन टोला मोहल्ले में रह रही हूं. परिवार में मम्मीपापा के अलावा एक बहन है, जिस की शादी हो चुकी है. मैं ने इंटर पास करने के बाद ब्यूटीशियन का कोर्स किया है.’’

परिचय होते ही दोस्ती हो गई. शिवांगी ने खूबसूरत ताजा गुलाब जैसी ज्योति को भरपूर नजरों से देखा फिर पूछा, ”बताओ, कौन सी ज्वैलरी दिखाऊं?’’

मुझे आधुनिक डिजाइन की पायल चाहिए.’’ ज्योति ने कहा. 

शिवांगी ने कई पायल दिखाईं, लेकिन ज्योति को पसंद नहीं आईं. फिर वह दूसरे काउंटर पर जा कर पायल लाई और बोली, ”ज्योति, तुम्हारे दूधिया पैरों में यह पायल खूब फबेगी.’’ 

सचमुच वह पायल ज्योति को पसंद आ गई. उस ने पायल की कीमत चुकाई और चली गई. इस के बाद उसे जब भी कोई ज्वैलरी खरीदनी होती, वह शिवांगी की शौप पर पहुंच जाती. 

इस तरह शौप पर आतेजाते उन की दोस्ती गहराने लगी. शिवांगी ज्योति को अपने घर ले गई तो ज्योति के घर जा कर उस की मम्मी सुषमा से भी मिल आई. बात लड़की से लड़की की दोस्ती की थी, इसलिए किसी को क्या आपत्ति होती. इंद्रकुमार गुप्ता के लिए ज्योति और सुषमा के लिए शिवांगी बेटी जैसी थी. दोस्ती पक्की हो गई. ज्योति के साथ शिवांगी अधिक से अधिक समय गुजारने के प्रयास में रहने लगी. रविवार को शिवांगी की शौप बंद रहती थी, इसलिए वह ज्योति को पास के संजीवनी पार्क में ले जाती. इस के बाद शाम व रात को भी वह ज्योति से फोन पर बातें करती. 

शिवांगी यह सब ज्योति का मन टटोलने के लिए कर रही थी. उस के मन में कसक भी थी, यदि उस का प्रेम निवेदन ज्योति ने ठुकरा दिया तो दिल टूट जाएगा. देर रात को जब सारे लोग गहरी नींद सो रहे होते, शिवांगी जागते हुए सोच रही होती कि जरूरी नहीं कि ज्योति भी ऐसी हो. हर युवती अपने नारी अंगों का महत्त्व देती है एवं उन का उपयोग जानती है. उसे यह भी पता होता है कि उस के अंगों का विपरीतलिंगी ही सही उपयोग कर सकता है और यही प्रकृतिसम्मत है. ज्योति हो अथवा दूसरी युवती, उसे अपनी कामुक चेष्टाओं से चरम का स्पर्श तो करा सकती हूं, मगर कहलाएगा तो अप्राकृतिक ही.

सोचों के इन गहन क्षणों में शिवांगी सोचती, ‘मुझे फिफ्टीफिफ्टी क्यों बनाया. देह नारी की दी तो आत्मा पुरुष की क्यों डाली? मुझे ज्योति से प्यार है. यदि उस ने मेरी नारी देह के साथ प्रेम स्वीकार नहीं किया, तब तो मैं न घर की रहूंगी, न घाट की.

शिवांगी जल्दी हार मानने वाली युवती नहीं थी. धीरेधीरे किंतु बहुत चतुराई से वह ज्योति की भावनाओं से अपने जज्बात जोड़ती रही. इस के साथ ही उस ने ज्योति की कामनाओं में आग लगाना भी शुरू कर दी. संजीवनी पार्क की झाडिय़ों में ले जा कर शिवांगी ने पहले तो अपनी बातों से ज्योति की कामनाएं भड़काई, फिर उस दिन उस के साथ शोख शारीरिक छेड़छाड़ भी कर दी. शिवांगी ने ज्योति की पलकें चूमी, प्यार का इजहार किया और फिर उस के होंठों का शराब चूसने लगी. ज्योति आनंद, उत्तेजना और सरसराहट से भर गई. रोमांच की लहरें उसे दूर बहा ले जाने लगीं. 

सहसा ज्योति का मस्तिष्क जागा. उस ने अपना मुंह शिवांगी के मुंह से हटा लिया, ”बहुत हो गया, अब यह सब मत करो.’’

ज्योति को दिलफेंक आशिक की तरह चाहने लगी शिवांगी

शिवांगी भी एकदम से सब कुछ नहीं करना चाहती थी. उस की इच्छा चरणदरचरण ज्योति को काम के शिखर पर ले जाने की थी. इसलिए वह संगिनी को देखते हुए मुसकराई, फिर भीगे होंठों पर जीभ फिरा कर उन्हें और भिगो लिया, ”ज्योति, वाकई तुम गजब की मादक लड़की हो. जी चाहता है कि तुम्हारे होंठों को चूसचूस कर इस कदर लाल कर दूं कि तुम्हें कभी लिपस्टिक लगाने की जरूरत न रहे.’’

बहुत हो गया, अब चलो.’’ फिर संजीवनी पार्क से निकल कर दोनों अपनेअपने घर चली गईं. 

उस पूरी रात शिवांगी की हर बात और हरकत ज्योति को उत्तेजक अनुभूति से भरती रही. शिवांगी उसे पसंद थी. वह सोचने लगी कि काश! शिवांगी लड़का होती. 

अगले रविवार को भी शिवांगी ने पार्क के सूने कोने की ऐसी जगह चुनी, जहां उन पर किसी की नजर न पड़े. दोनों बैठ गईं तो शिवांगी ने अपनी बांहें ज्योति के गले में डाल दी, ”आई लव यू.’’

ज्योति ने गले से शिवांगी की बांहें निकाली नहीं, बल्कि उस की आंखों में देखते हुए मुसकराने लगी, ”तुम फिर शुरू हो गई.’’

क्या करूं यार, तुम्हें करीब पाते ही मन बहकने लगता है.’’

शिवांगी, बीते रविवार को तुम ने मेरे साथ जो हरकत की, उस के बारे में सोचसोच कर मैं अजीब सा महसूस करती रही.’’

रात को सपना भी देखा था क्या कि तुम मेरी बांहों में हो और मैं तुम्हें प्यार कर रही हूं.’’

यह सुन कर ज्योति के गालों पर हया की सुर्खी फैल गई. वह धीमे से मुसकराई और नजर झुका कर बोली, ”हां, देखा था.’’

इस से यह साबित होता है कि तुम्हें भी मुझ से प्यार हो गया है.’’ शिवांगी के लहजे में शोखी भर गई, ”मैं कह चुकी हूंआई लव यू’, तुम भी कह दो यारआई लव यू टू शिवांगी.’’

धत्त..’’ कह कर ज्योति ने लजा कर अपना चेहरा दुपट्टे से ढक लिया. 

अच्छा, मैं फिर से तुम्हारे होंठ चूसती हूं, उस से तुम्हारी झिझक खत्म हो जाएगी, फिर खुल कर कहोगी आई लव यू टू.’’ कहने के साथ ही बीते दिन की तरह शिवांगी ने ज्योति का निचला होंठ दबाया और पूरी शिद्ïदत से उसे पीने लगी. 

ज्योति की देह उत्तेजना से भरने लगी तो उस ने शिवांगी को स्वयं से दूर हटा दिया, ”लिमिट में रहो यार.’’

अभी मैं ने कहा न, अकेले में तुम्हें पा कर कंट्रोल नहीं होता.’’ शिवांगी ने उस के भीगे होंठों पर अंगुली फेरी, ”अब तो कह दो, आई लव यू शिवांगी.’’

कह दूंगी तो क्या होगा?’’ ज्योति ने पूछा.

प्यार की नेमत मिल जाएगी.’’ शिवांगी किसी दिलफेंक आशिक की तरह बोली, ”मुझे सुकून मिलेगा कि मेरी मोहब्बत एकतरफा नहीं है. ज्योति भी मुझे चाहती है.’’

शिवांगी की बातों और कामुक छेड़छाड़ से ज्योति के जिस्म में आग सी लगी हुई थी. मन में प्यार भी अंगड़ाई ले रहा था. अत: उस ने भी निश्चय कर लिया फिर शिवांगी की आंखों में देखते हुए वह मुसकराई और फिर धीमे से कह दिया, ”आई लव यू टू.’’

शिवांगी की इच्छा पूरी हुई. मुसकरा कर उस ने अपने होंठों के प्याले ज्योति की ओर बढ़ाए और नशीले अंदाज में बोली, ”ऐसे नहीं, पहले मेरे होंठों को चूमो, फिर कहो, आई लव यू शिवांगी.’’

ज्योति ने शिवांगी की तर्ज पर उस का निचला होंठ अपने होंठों से दबाया, चूसा, फिर मुंह हटा कर बोली, ”आई लव यू शिवांगी.’’

उस दिन से शिवांगी और ज्योति की लव स्टोरी शुरू हो गई. पार्क में जा कर कामुक छेड़छाड़ करती और रात को फोन पर वैसी ही बातें करतीं, जैसे प्रेमीप्रेमिका किया करते हैं. शिवांगी प्रेमी होती और ज्योति प्रेमिका. एक रोज ज्योति ने शिवांगी से कहा कि उस ने ब्यूटीशियन कोर्स किया है. ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए उसे जगह की तलाश है. शिवांगी कुछ देर सोचती रही फिर बोली, ”हमारे मकान के ग्राउंड फ्लोर पर एक कमरा खाली है. चाहो तो तुम उस कमरे में ब्यूटीपार्लर चला सकती हो. मगर इस के लिए तुम्हें मेरे मम्मीपापा से बात करनी होगी. आज रविवार है. हमारी शौप बंद है. पापा घर पर ही हैं. तुम मेरे साथ घर चलो और उन से बात कर लो.’’

शिवांगी की सलाह ज्योति को अच्छी लगी. वह उस के साथ घर गई और शिवांगी के पापा इंद्रकुमार गुप्ता से ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए रूम देने का अनुरोध किया. चूंकि ज्योति उन की बेटी शिवांगी की सहेली थी, इसलिए वह ज्योति की रिक्वेस्ट को ठुकरा न सके. उन की पत्नी लक्ष्मी भी मान गई. उस के बाद ज्योति ने रूम सजाया और ज्योति ब्यूटीपार्लरके नाम से दुकान के बाहर बोर्ड लगा दिया. पार्लर खोलने में शिवांगी ने उस की भरपूर मदद की. 

ब्यूटीपार्लर बन गया प्यार करने का अड्डा

पहले दोनों का मिलन पार्क में होता था. अब हर रोज सुबह व शाम उन का मिलन ब्यूटीपार्लर वाले रूम में होने लगा. यहां उन्हें किसी प्रकार का डर भी नहीं था. कभीकभी रात को बहाने से शिवांगी ज्योति को रोक भी लेती. फिर तो उस रात दोनों खूब मौजमस्ती करतीं. शिवांगी प्रेमी का रोल अदा करती और ज्योति प्रेमिका का. दोनों पूरी रात आपस में लिपटी रहतीं और देह सुख पातीं. लेकिन एक रात उन का भांडा फूट गया. उस रात शिवांगी ने ज्योति को रोक लिया था. खाना खाने के बाद दोनों कमरे में पहुंचीं और शिवांगी ने कमरा अंदर से बंद कर लिया. आधी रात के बाद शिवांगी की मम्मी लक्ष्मी बाथरूम जाने के लिए वह बेटी के कमरे के सामने से गुजरी तो उसे फुसफुसाहट के साथ अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. लक्ष्मी का माथा ठनका और पांव जहां के तहां ठिठक गए. 

लक्ष्मी ने खिड़की से झांक कर देखा तो भीतर का नजारा देख कर उस के होश उड़ गए. दोनों सहेलियां बेलिबास थीं और कामुक क्रीड़ाओं में तल्लीन थी. लक्ष्मी सन्न रह गई तो यह है ज्योति व शिवांगी की दोस्ती का राज’. 

उसे गुस्सा तो बहुत आया कि उसी समय ज्योति को कमरे से खींच कर घर से बाहर निकाल दे. मगर ऐसा करने से बदनामी हो सकती थी. इसलिए वह चुप रही और अपने बैड पर जा कर लेट गई. यह अलग बात थी कि वह पूरी रात सो नहीं सकी. सुबह होते ही ज्योति अपने घर चली गई. इस के बाद लक्ष्मी ने शिवांगी की खबर ली, ”रानू, तुम दोनों जो करती हो, वह मैं ने देख लिया है. आज से तुम उस से नहीं मिलोगी.’’ 

लक्ष्मी ने बेटी की करतूत पति को भी बता दी. इंद्रकुमार गुप्ता शर्म से पानीपानी हो गए. उन्होंने शिवांगी को जम कर फटकार लगाई. पेरेंट्स की फटकार सुन कर शिवांगी न शरमाई न लजाई, न डरी न सहमी. सीधे बोली, ”पापा, मैं ज्योति से प्यार करती हूं. ज्योति भी मुझ से प्यार करती है. हम दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं. इसलिए मैं ज्योति से शादी करना चाहती हूं. इस के लिए ज्योति भी तैयार है.’’

बेटी की बात सुन कर इंद्रकुमार गुप्ता हैरान रह गए, ”शिवांगी, तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या. भला लड़की की शादी लड़की से कैसे हो सकती है. घरसमाज वाले क्या कहेंगे. समाज में मेरी इज्जत है, मानमर्यादा है. सब कुछ खत्म हो जाएगा. मेरी बात मानो और उस लड़की से नाता तोड़ लो.’’

यह संभव नहीं है पापा. न मैं उस के बिना रह सकती हूं और न ज्योति मेरे बिना रह सकती है.’’

जिद छोड़ दो बेटी. मैं ने तो सोचा था कि तुम्हारी बड़ी बहनों की तरह तुम्हारी भी शादी किसी अच्छे परिवार में धूमधाम से करूंगा, लेकिन तुम ने तो मेरे अरमानों का गला घोंट दिया. तुम्हारे इस कदम से समाज में मेरी जगहंसाई होगी और लोग हमें अजीब नजरों से देखेंगे.’’

पापा, आप मेरी भावनाओं को समझें. मेरी परिस्थिति को जानें. मैं न नर हूं, न नारी. मेरी काया जरूर नारी की है, लेकिन आत्मा पुरुष की है. मेरी शादी जबरदस्ती कर दी तो क्या रिश्ता कायम रहेगा? कभी नहीं. तब आप की बदनामी नहीं होगी? सिर नीचा नहीं होगा?’’

तो तुम्हीं बताओ, चाहती क्या हो तुम?’’

पापा, मैं चाहती हूं कि आप जितना पैसा मेरी धूमधाम वाली शादी में खर्च करना चाहते हैं. उतना पैसा मेरी जिंदगी संवारने में खर्च कर दीजिए. आप मेरा जेंडर बदलवाने में खर्च कर दें ताकि मैं संपूर्ण पुरुष बन जाऊं. उस के बाद हम ज्योति से शादी कर लेंगे.’’

शिवांगी के फैसले से फेमिली वाले क्यों हुए परेशान

इंद्रकुमार गुप्ता को शिवांगी की बातें अटपटी लगीं. वह हर हाल में दोनों सहेलियों को अलग करना चाहते थे. शिवांगी नहीं मानी तो इंद्रकुमार गुप्ता उलाहना ले कर ज्योति के घर जा पहुंचे. उन्होंने सुषमा से कहा, ”तुम्हारी बेटी गलत शौक रखती है. बेहतर होगा, जल्द ही उस के हाथ पीले कर दीजिए. ज्योति को यह भी समझा दीजिएगा कि वह मेरी बेटी शिवांगी का पीछा छोड़ दे. और हां, ज्योति से कहना, मेरा कमरा खाली कर दे, जिस में उस ने ब्यूटीपार्लर खोल रखा है.’’

इंद्रकुमार गुप्ता की बात सुन कर सुषमा चौंक गई. उसे दोनों की दोस्ती पर शक तो था, लेकिन बात इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी, इस का अंदाजा उसे नहीं था. इंद्रकुमार के जाते ही सुषमा ने ज्योति की खबर ली, ”ज्योति, तुम दोनों जो करती हो, उस की खबर हमें मिल गई है. आज से तुम्हारा उस के घर जाना बंद. ब्यूटीपार्लर भी बंद कर दो. देहरी से पांव निकाला तो टांगे तोड़ दूंगी.’’ सुषमा ने ज्योति पर पाबंदियां ही नहीं लगाईं, उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया. 

अपनी सफाई में ज्योति क्या कहती. कहने को उस के पास कुछ था ही नहीं. सिर झुकाए वह मम्मी की बात सुनती रही. शिवांगी लड़का होती, तब जरूर कह देती, ‘हम दोनों प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं. लड़की से लड़की के प्यार का न कोई औचित्य है, न सामाजिक मान्यता.

बेटी की आई शिकायत से सुषमा ने पति राधेश्याम को अवगत कराया तो वह चौंक पड़े कि यह क्या सुनने को मिल रहा है. फिर बोले, ”तुम ज्योति पर कड़ी नजर रखो. जल्द से जल्द हम उस के हाथ पीले कर देंगे, ताकि हमारी इज्जत बची रहे.’’

ज्योति ने पापा की बात सुनी तो मानो उस के दिल पर छुरियां चल गईं, लेकिन वह कर ही क्या सकती थी. एक बार फिर उसे शिवांगी के लड़की होने पर अफसोस हुआ, ‘काश! शिवांगी लड़का होती’.

शिवांगी और ज्योति के फेमिली वाले अवश्य उन के विरोधी हो गए थे, लेकिन वे एकदूसरे की मोहब्बत को तोड़ नहीं सके. वे दोनों किसी न किसी तरह अपनी तड़प मिटा ही लेते थे. वे हमेशा इस चिंता में रहती थीं कि कैसे मिलें, कहां मिलें.

एक रोज ज्योति बाजार से निकली तो उसे सड़क पर स्कूटी से जाते हुए शिवांगी दिखी. उस ने हाथ लहरा कर रुकने का इशारा किया. स्कूटी रोक कर दोनों एकदूसरे से जा मिलीं. दोनों ने अपनीअपनी तड़प बयां की. शिवांगी ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर तसल्ली दी, ”ज्योति, हम एकदूसरे के लिए ही बने हैं, इसलिए कोई भी हमें जुदा नहीं कर सकता.’’

ज्योति ने मायूस निगाहों से उसे देखा, ”जीवन भर हम साथ रहें भी तो कैसे?’’

शादी कर के.’’ शिवांगी के मुंह से निकला.

क्या यह मुमकिन है?’’ ज्योति ने अचकचा कर पूछा. 

बेशक मुमकिन है. मैं अपना जेंडर चेंज करा कर पूर्णरूप से लड़का बनूंगी. उस के बाद तुम से शादी करूंगी. मैं ने अपने पापा को अपनी मंशा से अवगत करा दिया है. 

अब देखना है कि वह अमल कब करते हैं. ज्योति, तुम्हें वादा करना होगा कि जब तक मैं लड़का न बन जाऊं, तब तक तुम्हें इंतजार करना होगा.’’

शिवांगी, मुझे फेमिली वालों की कितनी ही जिल्लत झेलनी पड़े, कितनी भी प्रताडऩा सहनी पड़े. लेकिन वादा निभाऊंगी. तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

लिंग चेंज करा कर शिवांगी को मिल ही गया प्यार

इधर शिवांगी को ले कर इंद्रकुमार गुप्ता बेहद परेशान रहने लगे थे. इसी परेशानी के चलते एक रोज उन्होंने अपने फैमिली डाक्टर से शिवांगी को ले कर चिंता जताई. इस पर डाक्टर ने कहा कि शिवांगी की काया नारी की है, लेकिन उस की चालढाल, पहनावा, बोलीभाषा सब लड़कों जैसी है. ऐसे में यदि वह अपना जेंडर चेंज कराने की इच्छुक है तो इस में हर्ज ही क्या है. इसी के साथ उन्होंने दिल्ली, लखनऊ के कुछ डाक्टरों के नाम भी सुझाए. 

इस बाबत इंद्रकुमार गुप्ता ने पत्नी लक्ष्मी से गहन विचारविमर्श किया फिर पत्नी के राजी होने पर उन्होंने शिवांगी का जेंडर चेंज कराने का फैसला किया. वह शिवांगी को दिल्ली ले गए और जेंडर चेंज करने वाले एक चर्चित डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने सब से पहले शिवांगी की काउंसलिंग की, फिर बताया कि शिवांगी का जेंडर चेंज हो सकता है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा. 4 औपरेशन करने होंगे और लगभग 8 लाख रुपए का खर्च आएगा. हर औपरेशन की फीस एडवांस जमा करनी होगी. 

इंद्रकुमार गुप्ता राजी हो गए. इस के बाद शिवांगी के जेंडर चेंज की प्रक्रिया शुरू हो गई. लगभग 2 साल में शिवांगी के 3 औपरेशन पूरे हो गए थे. शिवांगी लड़की से लड़का बन चुकी थी. यद्यपि एक साधारण सा औपरेशन अब भी बाकी था. अब वह शिवांगी से शिव बन गई थी. शिवांगी लड़की से लड़का बनी तो उस ने ज्योति से शादी की इच्छा जताई. उस ने पहले अपने पेरेंट्स को राजी किया, फिर ज्योति के मम्मीपापा को भी राजी कर लिया. इस के बाद शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. शादी के कार्ड छपवाए गए और नातेदारों, इष्ट मित्रों व परिवार वालों को बंाटे गए. कार्ड पर वर का नाम शिव गुप्ता व वधू का नाम ज्योति लिखा था. 

कार्ड बंटने के बाद यह शादी कौतूहल का विषय बन गई. क्योंकि रिश्तेदारपरिवार व मोहल्ले के लोग जानते थे कि इंद्रकुमार के 4 बच्चों में 3 की शादी हो चुकी थी और चौथी बेटी शिवांगी थी. जबकि कार्ड पर वर का नाम शिव छपा था. अत: इस शादी में सम्मलित होने को लोग उत्साहित थे. 25 नवंबर, 2024 को कन्नौज के एक अच्छे गेस्टहाउस में शिवांगी उर्फ शिव का विवाह ज्योति के साथ धूमधाम से हो गया. इंद्रकुमार गुप्ता ने पत्नी लक्ष्मी के साथ वरवधू को आशीर्वाद दिया. 

ज्योति के मम्मीपापा भी शादी में शामिल हुए और दोनों को आशीर्वाद दिया. 2 सहेलियों की इस अजबगजब प्रेम कहानी की चर्चा आजकल पूरे क्षेत्र में हो रही है. कथा संकलन तक ज्योति दुलहन बन कर पति शिवांगी उर्फ शिव के साथ उस के घर में रह रही थी. 

अपनेअपने पति को छोड़ 2 महिलाओं ने की शादी

देवरिया जिले से 25 किलोमीटर दूर एक कस्बा है रुद्रपुर. जो छोटा काशी के नाम से जाना जाता है. 23 जनवरी, 2025 को यहां स्थित दुग्धेश्वर मंदिर परिसर में एक कौतूहल भरी घटना घटित हुई. सुबह के समय मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा था. तभी 2 महिलाएं मंदिर में आईं. पुजारी उमाशंकर पांडेय उस समय मंदिर में ही थे. दोनों महिलाओं ने पुजारी को हाथ जोड़ कर अभिवादन किया फिर बोली, ”पुजारीजी, हम दोनों गोरखपुर से आई हैं. मेरा नाम गुंजा है और यह कविता है. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करती हैं, एकदूसरे के बिना नहीं रह सकतीं, इसलिए आपस में शादी करना चाहती हैं.’’

उन की बात सुन कर पुजारी उमाशंकर पांडेय चौंक पड़े. फिर सोचने लगे कि महिला की शादी महिला से… यह कैसी शादी? यह तो अमर्यादित है. उन्होंने दोनों को गौर से देखा, फिर पूछा, ”तुम्हारी उम्र तो परिपक्व है. क्या तुम दोनों की अभी तक किसी पुरुष के साथ शादी नही हुई?’’

पुजारीजी, हम दोनों विवाहित हैं, लेकिन हम ने अपनेअपने पतियों को छोड़ दिया है. क्योंकि वे शराबी थे और मारपीट करते थे. बाद में हम दोनों की मुलाकात हुई. बातचीत शुरू हुई, बातचीत प्यार में बदली और अब जीवन भर साथ रहना चाहती हैं. आप को हमारी शादी से कोई ऐतराज तो नही?’’

पुजारी ने कहा, ”बेटा, इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से आता है, नाथ बाबा उन की मनोकामना पूरी करते हैं. हम तो सिर्फ उन के सेवक हैं. हमें कोई ऐतराज नहीं.’’

पुजारी की सहमति मिली तो गुंजा और कविता मंदिर के पास फूल बेचने वाले की दुकान पर पहुंचीं. वहां से उन्होंने फूलों की 2 मालाएं लीं और बगल की दुकान से सिंदूर की डिब्बी ली. फिर वे वापस मंदिर में आ गईं. इस के बाद गुंजा दूल्हा बनी और कविता दुलहन. दोनों नाथ बाबा के समक्ष पहुंचीं और उन को साक्षी मान कर एकदूसरे के गले में माला पहनाई. गुंजा ने कविता की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में स्वीकार किया और जीवन भर साथ निभाने का वादा किया. फिर दोनों ने पुजारी उमाशंकर पांडेय से आशिर्वाद लिया.

2 समलैंगिक महिलाओं की शादी की खबर रुद्रपुर कस्बे में फैली तो कौतूहलवश उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी. सब को इस बात की उत्सुकता थी कि उन्होंने आपस में क्यों और कैसे शादी रचाई? मीडियाकर्मियों को भी यह जानकारी हुई तो उन का भी जमावड़ा लग गया. दोनों महिलाओं ने मीडिया के सामने अपना दर्द बयां किया और आपस में शादी करने के बाबत बताया. दूल्हे की भूमिका निभाने वाली गुंजा रांची (बिहार) की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी है. वह जवान हुई तो मम्मीपापा ने उस की शादी राधे नामक युवक से कर दी. राधे प्राइवेट नौकरी करता था. गुंजा की शादी के कुछ साल तो ठीक से गुजरे, उस के बाद घर में कलह होने लगी. 

कलह का पहला कारण यह था कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी गुंजा मां नहीं बन सकी थी. सब लोग उसे बांझ कहते थे और ताने मारते थे. उस का पति राधे भी उसी को दोषी ठहराता था. दूसरा कारण यह था कि राधे शराब का लती था. गुंजा शराब पीने का विरोध करती थी तो वह उसे मारतापीटता था. सासससुर के तानों और पति की प्रताडऩा से गुंजा आजिज आ गई तो उस ने ससुराल से किनारा कर लिया और मायके में आ कर रहने लगी. पेरेंट्स ने उस की दूसरी शादी का प्रयास किया, लेकिन उस ने इनकार कर दिया, क्योंकि उसे तो अब मर्द जाति से ही नफरत हो गई थी. 

दुलहन बनी कविता, गोरखपुर के झंगहा थाने के बांसगांव की रहने वाली थी. उस का विवाह कम उम्र में मंगई उर्फ मंगूलाल के साथ हुआ था. मंगई किसान था. उस की आर्थिक स्थिति खराब थी. शादी के बाद कविता एक के बाद एक 4 बच्चों की मां बनी. मंगई खेतों पर मेहनत तो करता था, लेकिन शराबी था. वह कविता पर शक करता था. लांछन लगा कर वह उस की खूब पिटाई करता था. कविता उसे शराब पीने को मना करती तो वह इंसान से हैवान बन जाता और उसे जानवरों की तरह पीटता था. कविता कब तक मार सहती, वह शराबी पति से नफरत करने लगी. वह बच्चों और पति को छोड़ मायके में आ कर रहने लगी. 

गुजा को मोबाइल फोन चलाने का शौक था. वह फोन पर इंस्टाग्राम व फेसबुक देखती थी. करीब 6 साल पहले उस का सोशल मीडिया के जरिए कविता से संपर्क हुआ. दोनों ने अपने दुख को एक दूसरे से साझा किया. सोशल मीडिया के जरिए उन की अकसर बातचीत होने लगी. धीरेधीरे बातचीत प्यार में बदल गई. उन दोनों की प्यार भरी बातें इंस्टाग्राम व फेसबुक के जरिए होने लगीं. समय बीतता रहा और उन का प्यार पनपता रहा. आखिर वह समय भी आ गया, जब दोनों महसूस करने लगीं कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकतीं. अत: दोनों ने आपस में शादी रचाने और जीवन भर साथ रहने का निश्चय किया.

एक रोज गुंजा ने कविता से बात की और उसे अपनी दुलहन बनाने को राजी कर लिया. गुंजा ने उसे गोरखपुर बुलाया. 15 जनवरी, 2025 को गुंजा और कविता अपनेअपने घरों से निकलीं और गोरखपुर आ कर दोनों का मिलन हुआ. दोनों गोरखपुर के बेतिया हाता स्थित सरकारी अस्पताल में आ कर रुकीं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां शादी रचाएं. इसी बीच उन्हें देवरिया के रुद्रपुर कस्बा स्थित दुग्धेश्वर मंदिर के बारे में पता चला.

लगभग एक सप्ताह तक इधरउधर भटकने के बाद दोनों 23 जनवरी को दुग्धेश्वर मंदिर पहुंचीं और आपस में एकदूसरे के गले में वरमाला डाल कर शादी रचा ली. शादी करने के बाद दोनों ने शादी रचाने के फोटो भी सोशल मीडया पर शेयर किए. गुंजा और कविता ने अब जीवन भर साथ रहने और एकदूसरे के सुखदुख में साथ देने की कसम खाई है. उन का कहना है कि वे गोरखपुर में कमरा ले कर साथ रहेंगी और रोजीरोटी का साधन खुद ही जुटाएंगी. समलैंगिक महिला जोड़ी की यह शादी पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है.

कहानी लेखक द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर आधारित

 

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