Social story : प्रयागराज महाकुंभ हादसे से पहले आयोजित कुंभ और अद्र्धकुंभ मेलों में भी हादसे हुए थे, लेकिन योगी सरकार ने उन हादसों से सबक लेने के बजाए अपना ध्यान मेले का राजनीतिक लाभ लेने के साथ वीवीआईपी व्यवस्थाओं पर जोर दिया. जितने स्तर पर इस मेले का प्रचार किया गया, काश! उसी स्तर पर सुरक्षा के इंतजाम किए होते तो…
28 और 29 जनवरी, 2025 की दरम्यानी रात थी. हिंदू आस्था के प्रतीक शहर प्रयागराज में 144 साल बाद लगे महाकुंभ में मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के कारण आस्था में डूबे लाखोंकरोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति से जनसैलाब का मंजर था. हर कोई संगम नोज में स्नान करने को व्याकुल था. वैसे तो मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 जनवरी की शाम 7.35 बजे से ही शुरू हो चुका था, लेकिन हर कोई अपनी आस्था के कारण मध्यरात्रि के बाद और ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने को आतुर था.
चाहे धर्मभीरु सम्राट हर्षवर्धन का दौर रहा हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड. कुंभ में आस्था का यह जन प्रवाह कभी नहीं रुका. पद्मपुराण में कहा गया है, ‘आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ…’ यानी माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में गोचर करते हैं, तब संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थों के बराबर पुण्य मिल जाता है. लोक धारणा है कि इस अवधि में जो श्रद्धालु प्रयाग के संगम तट पर में स्नान करते हैं, वह हर तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं.
इसी आस्था में डूबे श्रद्धालुओं के जत्थे संगम नोज और उस के आसपास गंगा यमुना किनारे पवित्र स्नान के लिए अपने कदम बढ़ा चुके थे. शाम से ही महाकुंभ मेले के डीआईजी वैभव कृष्ण माइक हाथ में ले कर घोषणा कर श्रद्धालुओं से अपील कर रहे थे कि वो अपने स्थान से उठ कर समीप के गंगा घाटों पर जाएं और जल्दी स्नान कर के अपने गंतव्यों की ओर प्रस्थान करें. क्योंकि मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में देशभर से करीब 12 करोड़ श्रद्धालु आए हैं और भीड़ बहुत अधिक है.
डीआईजी वैभव कृष्ण शाम से ही यह भी अपील कर रहे थे कि श्रद्धालु घाटों पर रात को न सोएं, न ही सामान छोड़ें और जो घाट करीब है, वहीं जल्दीजल्दी स्नान कर लें, दूसरे लोगों को भी स्नान का मौका दें. प्रशासन के अलगअलग अधिकारी बारबार ये अपील कर रहे थे कि श्रद्धालु किसी भी घाट पर स्नान कर लें और संगम घाट पर भीड़ न बढ़ाएं. धार्मिक गुरुओं ने भी बारबार अपील की कि संगम घाट और बाकी घाटों पर स्नान का महत्त्व एक ही है, इसलिए श्रद्धालु जहां जगह मिले, वहीं स्नान कर लें.
पुलिस प्रशासन ने संगम नोज पर भीड़ को रोकने के लिए अखाड़ा द्वार पर बैरिकेड्स भी लगा कर आवाजाही बंद कर दी थी, लेकिन आस्था तो आस्था होती है. लोगों की मान्यता तो यही है कि महाकुंभ में संगम तट, जहां 3 नदियों का मिलन होता है, वहीं पर स्नान करने से असल पुण्य मिलता है. इसी आस्था के कारण हजारों की संख्या में श्रद्धालु संगम नोज पर शाम को ही पुहंच गए और वहीं जमीन पर लेट कर रात्रि विश्राम करने लगे. अचानक आधी रात के बाद अखाड़ा क्षेत्र में श्रद्धालुओं की भीड़ और उस का ऐसा रेला आया कि बैरिकेड्स टूट गए. बहुत सारे श्रद्धालु जो ब्रह्म मुहूर्त का इंतजार करते हुए घाटों पर ही लेटे हुए थे, अचानक आई भीड़ के रेले में दब गए.
जब श्रद्धालुओं की भीड़ आगे बढऩे की होड़ में वहां नीचे लेटे हुए श्रद्धालुओं को रौंद कर आगे बढ़ी तो दर्द और पीड़ा से लोग चीखने लगे. चीखपुकार का अंजाम ये हुआ कि अचानक अफरातफरी मच गई और लोग इधर से उधर भागने लगे. देखते ही देखते भगदड़ मच गई. कौन जमीन पर लेटा है, सामने महिला है या बुजुर्ग और बच्चे किसी को सुध नहीं रही. किसी को नहीं सूझ रहा था कि भगदड़ क्यों मची है. बस जिसे देखो, एक अंजान सी आफत से बचने के लिए इधर से उधर दौड़ रहा था. किसी के पांव से जूतेचप्पल निकल गए तो किसी का बैग छूट गया. कोई जमीन पर गिरे अपने परिजनों को संभालने की कोशिश में भीड़ के सैलाब में खुद भी लोगों के पांव तले कुचल गया.
कुछ ही मिनटों में संगम नोज क्षेत्र में भगदड़ के कारण ऐसा मंजर पैदा हो गया, मानो कोई प्राकृतिक आपदा आ खड़ी हुई हो. देखते ही देखते कुछ ही घंटों में आस्था का महाकुंभ मौत का महाकुंभ बन गया. हादसे के चश्मदीदों का कहना है कि संगम तट के पास जब अचानक भगदड़ मचने से चारों तरफ चीखचीत्कार मची तो कुछ लोग इधरउधर भागने में गिरे और उठ न सके. जिसे जहां जगह मिली, उस ओर जान बचा कर शरण ली. सब कुछ एक समय पर व्यवस्थित चल रहा था. लेकिन अचानक ही वहां अव्यवस्था हो गई.
अचानक से बाहर की तरफ से भीड़ का जत्था अंदर प्रवेश करने के कारण बाहर जाने और अंदर आने वाले लोग आमनेसामने आ गए थे. कोई इधर जाने लगता था तो कोई उधर. ऐसी स्थिति बन गई कि लोग आपस में ही फंसने लगे थे. कोई भी हिल तक नहीं पा रहा था. भीड़ खुद के बचाव में दूसरों को धक्का देने लगी. जिस से बचने के चक्कर में लोग भीड़ में नीचे गिरे और उन के ऊपर भी लोग गिरने लगे. इस से लोग दबते गए और उठ ही नहीं सके. बाद में पुलिस की मदद से लोगों को सुरक्षित स्थानों की तरफ भेजा गया.
हादसे के बाद सारा क्षेत्र पुलिस की गाडिय़ों और एंबुलेंस के सायरन की आवाज से गूंजने लगा. पुलिस और प्रशासन के अधिकारी राहत और बचाव कार्य में जुट गए. पहली प्राथमिकता थी मेले में उमड़ी भीड़ को नियंत्रित करने और और उन अफवाहों को रोकने की, जिस के कारण करोड़ों लोगों में भय का माहौल बन गया था. भगदड में जो लोग घायल हुए, उन्हें कुंभ मेले में ही बने टैंट के अस्पतालों में पहुंचाया गया. जिन की हालत गंभीर थी, उन्हें शहर के विभिन्न सरकारी और निजी अस्पतालों में पहुंचाया गया. भगदड़ में दबे कुछ लोगों की वहीं पर मौत हो गई थी तो कुछ ने अस्पताल तक पहुंचतेपहुंचते दम तोड़ तोड़ दिया.
हालांकि भगदड़ व अफरातफरी के बाद कुछ ही घंटों में प्रशासन ने स्थिति पर काबू पा लिया और रात में मची भगदड़ के बाद सुबह 11 बजे तक स्थिति पर नियंत्रण कर लिया गया. इस के बाद सभी अखाड़ों ने अमृत स्नान को स्थगित करने का ऐलान कर दिया था, लेकिन स्थिति काबू में आने के बाद दोपहर में सभी 13 अखाड़ों ने सांकेतिक स्नान किया. इस दौरान कुंभ मेला प्रशासन की तरफ से डीआईजी (महाकुंभ) वैभव कृष्ण ने बयान जारी किया कि, ‘ब्रह्म मुहूर्त से पहले रात 1 से 2 बजे के बीच अखाड़ा मार्ग पर भारी भीड़ जमा हो गई. इस भीड़ के कारण दूसरी तरफ लगे बैरिकेड्स टूट गए और भीड़ दूसरी तरफ ब्रह्म मुहूर्त की पवित्र डुबकी लगाने के लिए इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं पर चढ़ गई. इसी कारण भगदड़ व अफवाह के चलते कुछ लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए.’
हालांकि प्रशासन ने दोपहर में सिर्फ 12 लोगों के मौत की पुष्टि की थी, लेकिन देर शाम तक पुलिस प्रशासन की तरफ से कहा गया कि इस हादसे में उस समय तक 30 लोगों के मरने की पुष्टि हुई है, जिन में से 25 की पहचान हो गई है और 5 मृतकों की पहचान के प्रयास किए जा रहे हैं. साथ ही हादसे में घायलों की संख्या 60 बताई गई.
संगम पर उस रात आखिर किस की गलती से हुआ ये हादसा
वैसे तो जहां भी लाखोंकरोड़ों की भीड़ उमड़ती है, वहां इस तरह के हादसे होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार और मेला प्रशासन ने जिस तरह के दावे किए थे, उसे देखते हुए यह हादसा एक तरह से प्रशासन की अक्षमताओं और अदूरदर्शिता की ओर ज्यादा इशारा करता है. कुंभ हो, अद्र्धकुंभ हो, पूर्ण कुंभ हो या महाकुंभ हो, इन सब में सब से बड़ा अमृत स्नान मौनी अमावस्या का होता है. इस स्नान को मोक्ष की प्राप्ति के लिए जरूरी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन प्रयागराज की त्रिवेणी में अमृत बहता है, जिस की वजह से ज्यादातर लोग गंगा नदी या यमुना नदी में स्नान करने के बजाय संगम की नोज में स्नान करने का संकल्प लेते हैं.
इस बार महाकुंभ का मेला क्षेत्र लगभग 4 हजार हेक्टेयर की भूमि पर फैला हुआ है, जिस में कुल 25 सेक्टर हैं और 41 घाट हैं. ये घटना मेला क्षेत्र के सेक्टर 2 में हुई, जहां महाकुंभ का सब से प्रमुख और महत्त्वपूर्ण घाट है. इस घाट को संगम घाट या संगम नोज भी कहते हैं, क्योंकि इसी घाट पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है. लोग मानते हैं कि उन्हें महाकुंभ में पवित्र स्नान का असली पुण्य तभी मिलेगा, जब वो संगम में डुबकी लगाएंगे. मीडिया के माध्यम से भी लगातार ये प्रचार होता रहा. यही कारण था कि जितने भी लोग महाकुंभ गए, वो संगम घाट पर स्नान करना चाहते थे और इस घटना में भी यही हुआ.
जो श्रद्धालु गंगा और यमुना नदी के घाटों पर मौजूद थे, वो मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान करने के लिए संगम घाट की तरफ प्रस्थान करने लगे, जिस से संगम घाट पर भीड़ का दबाव काफी बढ़ गया. चश्मदीदों का कहना है कि देर रात 2 बजे जब ये घटना हुई, उस से महज आधा घंटा पहले तक संगम घाट पर चारों तरफ लोगों का सैलाब उमड़ चुका था. अनुमान है कि उस समय सिर्फ इस एक सेक्टर में संगम के आसपास 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालु इकट्ठा हुए थे. पुलिस ने संगम पहुंचने के लिए जो मार्ग बनाए थे, वो इस कदर भरे हुए थे कि लोग वहां लगाए गए बैरिकेड्स को तोडऩे की कोशिश कर रहे थे और पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवान उन्हें रोकने के लिए बारबार समझा रहे थे.
ये सारे हालात भगदड़ मचने से सिर्फ आधा घंटा पहले के थे. प्रशासन के मुताबिक, ये घटना देर रात 1 बज कर 45 मिनट से 2 बजे के बीच हुई. जहां ये घटना हुई, वहां से संगम घाट की दूरी ज्यादा से ज्यादा 200 मीटर थी. महाकुंभ के 45 दिनों में सब से बड़ा अमृत स्नान मौनी अमावस्या को सिर्फ संगम में होता है और ये स्नान 13 अखाड़ों के साधुसंतों और महामंडलेश्वर द्वारा किया जाता है. इस दिन आम श्रद्धालु गंगा और यमुना नदी के घाटों पर अमृत स्नान कर सकते हैं, लेकिन साधुसंत सनातन परंपरा के कारण सिर्फ संगम की (नोज) पर ही अमृत स्नान करते हैं. यही कारण है कि संगम पर साधुसंतों के पहुंचने के लिए एक आरक्षित मार्ग बनाया जाता है, जिसे ‘अखाड़ा रोड’ भी कहते हैं.
अखाड़ों के साधुसंतों के टेंट गंगा नदी के उस पार लगे हुए थे. उन्हें संगम में स्नान करने के लिए अस्थाई पुलों से गंगा नदी को पार कर के इस अखाड़ा मार्ग पर आना था, क्योंकि अमृत स्नान के लिए सभी अखाड़े रथों पर सवार हो कर संगम पहुंचते हैं, इसलिए इस मार्ग को थोड़ा चौड़ा और बड़ा रखा गया था. मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के लिए भी ऐसा ही किया गया था और ये कोई वीवीआईपी मूवमेंट नहीं था. पुलिस ने गंगा नदी पर बने कई अस्थाई पुलों को बंद कर दिया था, ताकि आम श्रद्धालु जिस घाट पर हैं, वहीं स्नान करें और संगम की तरफ न आएं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अलगअलग मार्ग से करोड़ों श्रद्धालु संगम पर पहुंच गए, जिस से नागा साधुओं को अपना अमृत स्नान रोकना पड़ा.
भीड़ के कारण एक अखाड़े के साधुसंतों को बीच रास्ते से ही बिना अमृत स्नान किए वापस अपने शिविरों में लौटना पड़ा और इस से ये साधुसंत नाराज भी हुए. इस सब के बीच हालात तब और ज्यादा बिगडऩे शुरू हुए, जब संगम पर पहुंचने के बाद लोग वहीं रुक कर सुबह होने का इंतज़ार करने लगे. ये तमाम लोग यह सोच रहे थे कि ये मौनी अमावस्या पर सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र स्नान करेंगे और बाद में वहां से शहर की ओर वापस लौट जाएंगे. लेकिन इस से संगम पर भीड़ का दबाव काफी बढऩे लगा और इस भीड़ में लाखों लोग संगम के पास अपना सामान रख कर वहीं विश्राम करने लगे. दावा है कि जब संगम के मार्ग में भगदड़ हुई, तब यही भीड़ वहां नीचे सो रहे लोगों पर गिर गई और इस में 30 लोगों की जान चली गई.
क्या इस भगदड़ को रोका जा सकता
क्या प्रशासन ने इस भीड़ को नियंत्रित करने का कोई प्रयास नहीं किया? इस भगदड़ को रोका जा सकता था, अगर श्रद्धालु प्रशासन की अपील को नजरअंदाज नहीं करते तो हां, इस घटना को रोका जा सकता था. डीआईजी वैभव कृष्ण ने घटना से कुछ देर पहले ही लाउडस्पीकर पर ये अपील की थी कि लोग घाटों पर रात भर न रुकें, क्योंकि इस से आने वाले दूसरे श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा था कि लोग संगम पर जाने के बजाय उन्हीं घाटों पर पवित्र स्नान करें, जो उन के आसपास हैं. लेकिन लोगों ने प्रशासन की इस अपील पर ध्यान नहीं दिया और संगम पर बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने से ये घटना हो गई.
सरकार और चश्मदीदों के अलगअलग दावे
यह बात सही है कि लोगों ने प्रशासन की अपील पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि इस घटना के लिए लोगों को दोष देना बिलकुल गलत होगा. अगर आप महाकुंभ की व्यवस्था को देखेंगे तो प्रशासन ने संगम पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई रास्तों को डायवर्ट किया हुआ था. इस डायवर्जन के कारण लोगों को 6 से 7 किलोमीटर पैदल चल कर संगम की नोज पर पहुंचना पड़ रहा था यानी संगम का जो रास्ता 1 से 2 किलोमीटर का था, वो डायवर्जन के कारण 6 से 7 किलोमीटर हो गया था.
इस के अलावा ये मार्ग भीड़ के मुकाबले संकरे थे और इन रास्तों में धक्के खाते हुए संगम पहुंचना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. अगर कोई व्यक्ति मेला क्षेत्र में 6 से 7 किलोमीटर पैदल चल कर संगम पहुंच रहा था तो उस के लिए घाट पर कुछ देर रुक कर आराम करना स्वाभाविक बात थी. इस घटना में भी बहुत सारे लोगों ने यही किया, इसलिए ये कहना कि लोग वहां क्यों रुके हुए थे, ये सही नहीं होगा. यहां गलती प्रशासन से हुई थी, जो भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम रहा.
महाकुंभ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 40 हजार पुलिसकर्मी और जवान और 2700 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे, लेकिन इस के बावजूद ये भगदड़ को रोक नहीं पाए. इस के अलावा महाकुंभ में 3 प्रकार की सड़कें थीं. पहली सड़क को काली सड़क के नाम से थी, जो आम श्रद्धालुओं के लिए थी. दूसरी सड़क को लाल सड़क नाम दिया गया, जो वीवीआईपी मूवमेंट के लिए थी और तीसरे मार्ग को त्रिवेणी मार्ग नाम दिया, जो मेला क्षेत्र को संगम से जोड़े हुए था. लेकिन इस घटना में ये व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई और प्रशासन इस भगदड़ को रोक नहीं पाया.
इस घटना पर सरकार और चश्मदीदों का पक्ष अलगअलग क्यों है? पुलिस का कहना है कि इस भगदड़ में कुछ बैरिकेड्स टूट गए थे, जिस की वजह से भीड़ का एक जत्था जमीन पर सो रहे कुछ श्रद्धालुओं पर चढ़ गया. लेकिन चश्मदीदों ने बताया कि संगम घाट पर आने और जाने के लिए एक ही मार्ग था, जिस से लोगों में धक्कामुक्की हुई और इस के बाद वहां भगदड़ मच गई.
2 अन्य जगहों पर भी मची थी भगदड़
वैसे जिस वक्त अखाड़ा बैरिकेड के पास संगम नोज में जिस वक्त भगदड़ मची थी, उस के एक घंटे बाद अफवाह और अफरातफरी में मेला क्षेत्र में 2 अन्य स्थानों पर भी भगदड़ मची थी, जिस में कुछ लोगों की मौत हुई थी. महाकुंभ मेले में एक नहीं, बल्कि 3 स्थानों पर भगदड़ हुई थी. संगम तट के अलावा सेक्टर 10 में ओल्ड जीटी रोड पर और सेक्टर 21 में उल्टा किला झूंसी के पास भी भगदड़ हुई थी. उल्टा किला के पास से दरभंगा, बिहार निवासी रमा देवी पत्नी महेंद्र झा कथा लिखने तक लापता थे.
इस दर्दनाक हादसे के कुछ घंटे बाद सेक्टर 21 में उल्टा किला झूंसी के पास भी भगदड़ मची थी. कुछ प्रत्यक्षदर्शी हर्षित, बलराम और रंजीत ने बताया कि भगदड़ में कई श्रद्धालु दब गए और कई अचेत हो गए थे. जान बचाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु एक दुकान में घुस गए थे. इस के अलावा कई श्रद्धालु संगम लोअर मार्ग की तरफ भी भागने लगे थे. हर्षित नाम के प्रत्यक्षदर्शी का कहना है कि घटना के दौरान वह मौके पर मौजूद था. भगदड़ होते ही श्रद्धालु नमकीन की दुकान में घुसने लगे तो कर्मचारी वहां से भाग गए. सूचना पा कर पहुंची पुलिस भगदड़ में हताहत लोगों को किसी तरह उठा कर निकट के अस्पताल ले गई थी.
सेक्टर 21 के बाद सेक्टर 18 में ओल्ड जीटी के पास एक महामंडलेश्वर की कार के लिए रास्ता बनाने के दौरान भगदड़ हुई थी, जिस में एक बच्ची समेत 7 महिलाओं की मौत हुई थी. भगदड़ में जान गंवाने वाली बच्ची समेत सातों महिलाओं की पहचान गुरुवार तक नहीं हो सकी थी.
क्या वीआईपी कल्चर भी बना हादसे में मददगार
दरअसल, इस हादसे की एक बड़ी वजह ये वीआईपी की सेवा में शासन का समर्पण भी रहा. शासन से ले कर प्रशासन का सारा ध्यान नेताओं, प्रदेश के बड़े अफसरों, उन के परिजनों व रिश्तेदारों, दूसरे प्रदेशों से आने वाले विशिष्ट अतिथियों, सेलिब्रिटी और संतों की सेवा में ही लगा रहा. इन के कारण नदियों के ऊपर बने करीब 18 पंटून पुलों को बारबार बंद किया जाता रहा, जिस के कारण आम जनता का अधिकांश वक्त इंतजार में ही बीता और भीड़ का दबाव लगातार बढता रहा. जिस रात ये हादसा हुआ, उस वक्त भी अधिकांश पंटून पुल बंद थे.
अब लोगों का सवाल यह था कि हिंदुओं के धार्मिक स्थलों और आयोजनों में ही क्यों भक्तों के बीच भेदभाव होता है. इस दर्दनाक हादसे ने वीआईपी कल्चर पर एक बार फिर से नए सिरे से बहस छेड़ दी है. सवाल उठ रहा है कि जब गुरुद्वारे में वीआईपी दर्शन नहीं, मसजिद में वीआईपी नमाज नहीं, चर्च में वीआईपी प्रार्थना नहीं होती है तो सिर्फ मंदिरों में कुछ प्रमुख लोगों के लिए वीआईपी दर्शन क्यों जरूरी है? क्या इस पद्धति को खत्म नहीं किया जाना चाहिए, जो हिंदुओं में एकदूसरे के बीच दूरियों का कारण बनता है.
हाल यह है कि कई मंदिरों के भीतर तो वहीं का स्टाफ और पुरोहित ही धन उगाही कर के भक्तों को वीआईपी सुविधा प्रदान करने से नहीं चूकते हैं. ऐसे भक्तों को बिना लाइन के और मंदिर का प्रोटोकाल तोड़ कर गर्भगृह में प्रवेश करा कर भी दर्शन करा दिए जाते हैं. आम श्रद्धालु घंटों कतार में खड़े रहते हैं, जबकि वीआईपी को सीधे गर्भगृह में प्रवेश मिल जाता है. बड़े मंदिरों में वीआईपी पास या दान के बदले विशेष दर्शन की व्यवस्था होती है, जबकि साधारण भक्तों को धक्कामुक्की झेलनी पड़ती है. वीआईपी भक्तों को विशेष प्रसाद, बैठने की जगह और पुजारियों का अलग से आशीर्वाद मिलता है, जबकि आम भक्त को कुछ ही सेकेंड में दर्शन कर आगे बढऩे को कहा जाता है.
अन्य तीर्थस्थलों और गंगा स्नान में वीआईपी संस्कृति की बात की जाए तो महाकुंभ मेले प्रयागराज, हरिद्वार या वाराणसी जैसे तीर्थस्थलों पर भी आम श्रद्धालुओं को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन वीआईपी के लिए अलग घाट बना दिए जाते हैं. जहां आम लोग भीड़ में संघर्ष करते हैं, वहीं खास लोगों के लिए विशेष स्नान व्यवस्था, सुरक्षा घेरा और सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं.
सवाल यह है कि जहां करोड़ों लोग जुट रहे हों, वहां आम श्रद्धालुओं की असुविधा को बढ़ा कर वीआईपी स्नान जैसी व्यवस्था आखिर क्यों की जानी चाहिए?
हादसे के बाद वीआईपी स्नान के नग्न प्रदर्शन की टीस महाराज प्रेमानंद गिरि के शब्दों में भी दिखी, जब उन्होंने कहा कि प्रशासन का पूरा ध्यान वीआईपी पर था. आम श्रद्धालुओं को उन के हाल पर छोड़ दिया गया था. उन का आरोप है कि पूरा प्रशासन वीवीआईपी की जीहुजूरी में लगा रहा, तुष्टीकरण में लगा रहा. आम श्रद्धालु 15-15, 20-20 किलोमीटर पैदल चल कर स्नान करने पहुंचे और कथित वीआईपी गाडिय़ों के रेले के साथ सीधे तट तक पहुंचे, ये तो आम श्रद्धालुओं में रोष, खीझ और असंतोष पैदा करने वाला ही होगा.
वैसे वीआईपी कल्चर का दायरा काफी बढ़ा है. वीआईपी कल्चर धार्मिक स्थलों तक ही नहीं सीमित है. लोकतंत्र से आस्था तक, हर जगह कुछ लोगों को कई मौकों पर विशेषाधिकार मिल ही जाता है. लोकतंत्र के मूल सिद्धांत कहते हैं कि सभी नागरिक समान हैं, लेकिन व्यवहार में कुछ लोग ‘विशेष’ हो जाते हैं, फिर चाहे वे सड़क पर हों, सरकारी दफ्तर में, अस्पताल में, या फिर मंदिर में. इसी प्रकार से अकसर बड़े नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा के नाम पर ट्रैफिक रोका जाता है, जबकि आम जनता घंटों जाम में फंसी रहती है. अस्पतालों में वीआईपी वार्ड अलग से बनाए जाते हैं, जबकि आम मरीजों को बिस्तर तक नहीं मिलता. एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर वीआईपी यात्रियों के लिए विशेष सुविधाएं होती हैं, जबकि आम जनता लंबी कतारों में खड़ी रहती है.
वीआईपी कल्चर एक नासूर की तरह है. इसीलिए हर सरकार वीआईपी कल्चर खत्म करने के वादे और बात करती है, लेकिन असल में इसे बनाए रखने के नए तरीके ढूंढे जाते हैं. मंदिरों और तीर्थस्थलों में भी यह भेदभाव खत्म होना चाहिए, क्योंकि भगवान के दरबार में वीआईपी और आम आदमी का भेद न्यायसंगत नहीं हो सकता. सब से बड़ी बात यह है कि जब तक जनता खुद इस संस्कृति को स्वीकार करती रहेगी, तब तक वीआईपी कल्चर खत्म नहीं होगा. बदलाव तभी आएगा, जब लोग अपने अधिकारों को समझेंगे और भक्ति से ले कर लोकतंत्र तक समानता की मांग करेंगे.
हादसे के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह और डीजीपी प्रशांत कुमार ने गुरुवार को महाकुंभ भगदड़ के घटनास्थल पर पहुंच कर हालात का जायजा लिया. वाच टावर पर जा कर उन्होंने वहां से जाना कि भगदड़ के वक्त अचानक ऐसा क्या हुआ कि लोगों का सैलाब आ गया. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को 25 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा के साथ हादसे की जांच के लिए 3 सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हर्ष कुमार की अध्यक्षता वाले इस आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अफसर डी.के. सिंह और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी वी.के. गुप्ता भी शामिल हैं.
आयोग को अपने गठन के एक महीने के अंदर मामले की जांच रिपोर्ट देनी होगी. आयोग भगदड़ के कारणों और परिस्थितियों की जांच करेगा. साथ ही भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सुझाव भी देगा. महाकुंभ में मौनी अमावस्या से पहले संगम तट पर मची भगदड़ के बाद शासन ने सख्त कदम उठाए. हादसे तक करीब 30 करोड़ लोग स्नान कर चुके थे. मेला क्षेत्र में कई बड़े बदलाव कर दिए गए. महाकुंभ मेला क्षेत्र में वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई. सभी वीआईपी पास रद्द कर दिए गए. वीआईपी लोगों के भी अमृत स्नान वाले दिन वाहन घाट तक ले जाने की रोक लगा दी.
इस के अलावा मेला क्षेत्र में भीड़ का दबाव न बने, इस के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में होल्डिंग एरिया बनाए गए, जहां कहीं भी लोगों को रोका गया, वहां सभी के भोजन/पेयजल का प्रबंध किया गया. प्रयागराज के सीमावर्ती जिलों में भी पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई. अयोध्या-प्रयागराज, कानपुर-प्रयागराज, फतेहपुर-प्रयागराज, लखनऊ-प्रतापगढ़-प्रयागराज, वाराणसी-प्रयागराज जैसे सभी मार्गों पर कहीं भी यातायात अवरुद्ध न हो, इस के प्रयास किए गए. प्रयागराज से वापसी के सभी मार्गों को लगातार खुला रखने की घोषणा कर दी गई.
महाकुंभ में व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए कुंभ 2019 के समय प्रयागराज में बतौर मंडलायुक्त सेवा दे चुके आशीष गोयल और एडीए के वीसी रहे भानु गोस्वामी की तैनाती की गई. इस के अतिरिक्त विशेष सचिव स्तर के 5 अधिकारियों को भी भेजा गया है. मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर मौन डुबकी की ललक में संगम पर हादसा हुए कुछ ही घंटे बीते थे कि आस्था के जन ज्वार में यह दर्दनाक हादसा चंद समय बाद ही पीछे छूट गया. 8 लेन वाले अखाड़ा मार्ग से ले कर संगम द्वार तक कुछ देर बाद ही ऐसा माहौल बन गया, जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो. आस्था का जन प्रवाह रत्ती भर कम नहीं हुआ.
पहले कुंभ में हुए हादसों से क्यों नहीं लिया सबक
भारी भीड़ और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं के कारण कुंभ या महाकुंभ में पहली बार भगदड़ या हादसा नहीं हुआ है. इस से पहले भी कई बार इस तरह के हादसे हो चुके हैं, जिस में बहुत से श्रद्धालुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस तरह के हादसे पर एक नजर डालते हैं. आजादी के बाद 3 फरवरी, 1954 को भी कुंभ में भगदड़ मची थी. उस मेले में मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी बांध पर भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की जान चली गई थी. तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में कुंभ मेला लगा था. यह आजादी के बाद का पहला कुंभ था. मौनी अमावस्या के मौके पर बड़ी तादाद में श्रद्धालु संगम तट पहुंचे थे. कहा जाता है कि एक हाथी की वजह से भगदड़ मच गई. इस में 800 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सैकड़ों घायल हुए थे.
साल 1992 में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेला लगा था. उस दौरान भी भगदड़ की स्थिति देखने को मिली थी. इस दर्दनाक हादसे में 50 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी. इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजनेताओं और विशिष्ट लोगों को मेले में जाने से बचने की सलाह दी थी. हरिद्वार में कुंभ मेला लगा था और 14 अप्रैल, 1986 को उस वक्त के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कई दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और नेताओं के साथ हरिद्वार गए थे. आम लोगों को तट पर जाने से रोक दिया गया था. इस की वजह से भीड़ का दबाव बढ़ा. भीड़ अनियंत्रित हो गई. इस घटना में करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी. हरिद्वार में इस से पहले 1927 और 1950 में भी भगदड़ मची थी.
27 अगस्त, 2003 में नासिक में कुंभ मेले का आयोजन किया गया था. जहां भगदड़ मचने से 39 लोगों की जान चली गई थी. 2010 के हरिद्वार कुंभ में भी भगदड़ मचने से 7 लोगों की जान गई थी. दरअसल, स्नान के दिन साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच कुछ बहस हुई. इस के बाद भगदड़ मच गई. इसी तरह साल 2013 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन हुआ था. तब भी 10 फरवरी को मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के दिन प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ के कारण भगदड़ मची, जिस के चलते 36 लोगों की जान गई थी. इन में 29 महिलाएं थीं.
आखिर कुंभ में स्नान के लिए क्यों उतावले होते हैं लोग
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब भगवान धनवंतरि अमृत कुंभ यानी कलश ले कर प्रकट हुए. देवताओं के संकेत पर इंद्र पुत्र जयंत अमृत से भरा कलश ले कर भागने लगे तो असुर जयंत के पीछे भागने लगे. अमृत कलथ की प्राप्ति के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच 12 दिन तक भयंकर युद्ध हुआ. माना जाता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्य के 12 वर्षों के बराबर होता है. इस युद्ध के दौरान जिनजिन स्थानों पर कलश से अमृत की बूंदे गिरी थीं, वहां कुंभ मेला लगता है. अमृत की बूंदे इन 4 जगहों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं. इन चारों स्थानों पर कुंभ मेलों का आयोजन किया जाता है.
इस दौरान श्रद्धालु गंगा, गोदावरी और क्षिप्रा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. वहीं, प्रयागराज में लोग संगम में स्नान करते हैं. इस में अद्र्धकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 6 वर्ष में एक बार किया जाता है. यह मेला सिर्फ प्रयागराज और हरिद्वार में होता है, जिस में करोड़ों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. अब सवाल है कि आखिर पूर्णकुंभ मेला क्या होता है? तो आप को बता दें कि पूर्णकुंभ मेला 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है. यह मेला प्रयागराज में संगम तट पर आयोजित होता है, जिस में करोड़ों संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
आखिरी बार साल 2013 में यहां पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया गया था. वहीं, इस के बाद अब 2025 में पूर्णकुंभ आयोजित हो रहा है. हालांकि, इसे महाकुंभ नाम दिया जाता है. अब सवाल है कि आखिर इसे यह नाम क्यों दिया गया है?
जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है. पूर्णकुंभ 12 वर्ष में एक बार लगता है और महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है. यानी 144 साल बाद इस पीढी के लोग पहली बार महाकुंभ में पवित्र स्नान कर रहे थे. इस कारण पूरे देश से श्रद्धालुओं का सैलाब प्रयागराज पहुंचा था. इस प्रकार वर्षों की गणना करें तो यह 144 सालों में एक बार आयोजित होता है. इस वजह से इसे महाकुंभ कहा जाता है. यह सब से बड़ा मेला होता है, जिस में सब से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं. बता दें कि महाकुंभ में नागा साधुओं से ले कर अन्य अलगअलग बड़ेबड़े संत पधारते हैं, जिन का आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु दूरदूर से आते हैं.