उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के थाना चितबड़ा के अंतर्गत फिरोजपुर गांव के रहने वाले नरेंद्र कुमार सिंह पेशे से डाक्टर हैं. नरेंद्र सिंह चितबड़ा में ही अपना क्लिनिक चलाते हैं. उन के परिवार में उन की पत्नी आशा सिंह के अलावा 3 बेटे हैं.
सब से बड़े बेटे मनीष कुमार सिंह ने ग्रैजुएशन की और वह दिल्ली आ गया. दिल्ली आ कर मनीष ने ट्रांसपोर्ट का काम शुरू कर दिया. वह टैक्सियां किराए पर चलवाने लगा. मनीष शादीशुदा है. मंझला बेटा पंकज 4 साल पहले गाजियाबाद आया और यहां जीटी रोड पर स्थित इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन में एलएलबी में दाखिला ले लिया.
पंकज का एक छोटा भाई भी है, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बंगलुरु की एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहा है. नरेंद्र सिंह की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इस साल अक्तूबर महीने में अचानक ही उन की जिंदगी में भूचाल आ गया.
10 अक्तूबर, 2019 की सुबह करीब 10 बजे का वक्त था. पंकज का भाई मनीष साहिबाबाद थाने पहुंचा. उस वक्त ड्यूटी औफिसर के रूप में एसआई जितेंद्र कुमार मौजूद थे. मनीष ने उन्हें बताया कि उस का छोटा भाई पंकज गिरधर एनक्लेव स्थित नवीन त्यागी के मकान नंबर 109 में किराए पर रहता है. वह 9 अक्तूबर की सुबह करीब 10 बजे से लापता है.
मनीष ने एसआई जितेंद्र कुमार को बताया कि 8 अक्तूबर की शाम को उस की पंकज से फोन पर बात हुई थी, तब तक वह ठीक था. अगले दिन यानी 9 अक्तूबर को जब उस ने पंकज को दोपहर 12 बजे फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.
मनीष ने बताया कि उस ने सोचा या तो पंकज के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या वह क्लास में होगा. यही सोच कर उस ने ज्यादा परवाह नहीं की. लेकिन दोपहर बाद जब 3 बजे से रात 8 बजे तक कई बार फोन करने पर भी पंकज का फोन स्विच्ड औफ मिला तो उसे घबराहट होने लगी.
मनीष ने बताया कि पंकज नवीन त्यागी के जिस फ्लैट में रहता था, उस में उस का एक रूम पार्टनर संजय भी था. संजय भी पंकज के साथ इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था. उस ने संजय से अपने भाई पंकज के बारे में पूछा कि वह कहां है और उस का फोन क्यों नहीं लग रहा?
तब संजय ने बताया कि पंकज 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे उस से यह कह कर फ्लैट से निकला था कि वह अपने साइबर कैफे जा रहा है. दोपहर में जब वह कालेज के लिए निकले तो उसे वहीं पर मिले. पंकज ने एक साइबर कैफे भी खोल रखा था. संजय ने बताया कि जब वह साढ़े 12 बजे साइबर कैफे पहुंचा तो वहां ताला लटका हुआ मिला.
संजय को आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि आज तो कैफे खुला ही नहीं.
संजय को समझ नहीं आया कि दुकान खोलने के लिए आया पंकज उसे बिना बताए कहां चला गया. यही जानने के लिए उस ने पंकज को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.
चूंकि संजय को कालेज पहुंचना था इसलिए उस ने उस वक्त यही सोचा कि शायद पंकज को कोई मिल गया होगा और वह उसे बिना बताए कहीं चला गया होगा. यह सोच कर वह कालेज चला गया.
शाम को 5 बजे वह जब कालेज से लौटा तो उस ने पाया कि पंकज का साइबर कैफे तब भी बंद था.
फ्लैट पर पहुंचने के बाद संजय ने खाना बनाया और पंकज का इंतजार करने लगा. इस दौरान उस ने कई बार पंकज के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन हर बार मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.
अब संजय को भी पंकज की चिंता होने लगी थी. वह सोच ही रहा था कि क्या करे, इसी बीच पंकज के भाई मनीष का फोन आ गया तो उस ने सारी बात मनीष को बता दी. क्योंकि रात हो चुकी थी. इसलिए मनीष को यह नहीं सूझा कि वह क्या करे.
मनीष ने रात में ही पंकज के लापता होने की बात अपने पिता डा. नरेंद्र कुमार सिंह को बताई तो वे भी चिंतित हो उठे. पिता ने अनिष्ट की आशंका जताते हुए मनीष से अगली सुबह थाने जा कर इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.
इस के बाद अगली सुबह यानी 10 अक्तूबर को मनीष थाना साहिबाबाद पहुंचा और ड्यूटी पर तैनात एसआई जितेंद्र कुमार को अपने भाई पंकज के लापता होने की सारी बात विस्तार से बता दी.
इस के बाद मनीष की तहरीर पर पुलिस ने भादंसं की धारा 365 के अंतर्गत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया.
साहिबाबाद थाने के थानाप्रभारी जे.के. सिंह के निर्देश पर एसआई जितेंद्र कुमार ने ही जांच का काम शुरू कर दिया.
अपहरण के ऐसे मामलों में पुलिस अकसर पीडि़त के मोबाइल फोन की काल डिटेल से ही उस तक पहुंचने का प्रयास करती है. एसआई जितेंद्र कुमार ने पंकज के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. उन्होंने कांस्टेबल संजीव, विपिन और प्रवेश को ऐसे लोगों की सूची तैयार करने के काम पर लगा दिया, जिन से पंकज की सब से ज्यादा बातचीत होती थी और अंतिम बार उस ने किन लोगों के साथ बातचीत की.
2 दिन गुजर गए और पुलिस की अब तक की जांच बेनतीजा रही.
इधर मनीष के पिता डा. नरेंद्र सिंह भी बलिया से उस के पास दिल्ली आ गए थे. मनीष के कुछ परिजन और रिश्तेदार भी पंकज के लापता होने की जानकारी मिलने पर गाजियाबाद पहुंच गए. सभी लोग अपनेअपने तरीके से पंकज की तलाश में जुटे थे.
इसी सिलसिले में मनीष 12 अक्तूबर की सुबह एक बार फिर गिरधर एनक्लेव पहुंचा जहां पंकज रहता था. मनीष के दिमाग में न जाने क्यों कल से यह बात आ रही थी कि उसे मुन्ना से पंकज के बारे में जानकारी करने के लिए मिलना चाहिए.
दरअसल, 3 महीने पहले पंकज 15 दिन के लिए गिरधर कालोनी के ही मकान नंबर 51 के मालिक मुन्ना के घर में किराए पर रहा था.
मुन्ना से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. क्योंकि पंकज मुन्ना के 2 बेटों और 2 बेटियों को ट्यूशन पढ़ाता था. इन्हीं संबंधों के नाते मुन्ना ने पंकज को अपना फ्लैट कुछ दिन के लिए रहने को दे दिया था. मुन्ना के मकान में पंकज 15 दिन ही रहा था. उस ने उस का मकान खाली कर दिया और नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा. वहां उस ने साथ में पढ़ने वाले एक दोस्त पंकज को भी पार्टनर के रूप में साथ रख लिया था.
मनीष को पता था कि मुन्ना और उस के परिवार से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. उस ने सोचा कि क्यों न एक बार मुन्ना और उस के परिवार से मिल कर पता कर ले. हालांकि जिस दिन मनीष ने पंकज के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था, उस दिन भी वह मुन्ना से मिला था. मुन्ना ने पंकज के इस तरह लापता होने पर काफी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि वह तो बेहद शरीफ और अच्छा लड़का है.
लेकिन 12 तारीख की सुबह जब मनीष मुन्ना के घर पहुंचा तो वहां ताला लटका मिला. मुन्ना के मकान में जो किराएदार रहते थे, उन के परिवार की महिलाएं तो मिलीं, लेकिन पुरुष सदस्य काम पर जा चुके थे. पूछने पर महिलाओं ने मनीष को बताया कि मकान मालिक मुन्ना तो अपने परिवार के साथ 11 अक्तूबर की सुबह से ही वहां नहीं है.
मुन्ना के 3 मंजिला मकान में ग्राउंड फ्लोर पर वह खुद रहता था, जबकि पहली और दूसरी मंजिल पर किराएदार रहते थे. चौथी मंजिल पर भी एक कमरा बना था जो खाली था. पंकज उसी कमरे में कुछ दिन रहा था.
जब मनीष ने मुन्ना के फ्लैट पर ताला लटका देखा तो वह असमंजस में पड़ गया कि आखिर पूरा परिवार कहां चला गया.
मनीष समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे, क्या न करे. इसी दौरान उस की नजर ग्राउंड फ्लोर पर उस हिस्से पर पड़ी, जहां से बेसमेंट की तरफ सीढि़यां उतर रही थीं. सीढि़यों से उतरते हुए मनीष बेसमेंट में पहुंच गया. वहां काफी अंधेरा था. अचानक उसे एक अजीब सी गंध का एहसास हुआ.
मनीष ने अपने मोबाइल की टौर्च जला कर देखा तो वहां कई जगह इधरउधर सीमेंट बिखरा था और कबाड़ भी फैला था. ऐसा लग रहा था था कि वहां कुछ रोज पहले ही राजमिस्त्री ने कोई काम किया है.
उसे जो गंध आ रही थी, ऐसी गंध हमेशा किसी जानवर या मरे हुए इंसान से उठती है. लेकिन कमरे में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था. मनीष ने जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार को फोन कर के सारी बात बता दी.
एसआई जितेंद्र कुमार, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर और रविंद्र को ले कर कुछ ही देर में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए.
पुलिस जब बेसमेंट में पहुंची तो बदबू का अहसास उन्हें भी हुआ. मोबाइल टौर्च से पर्याप्त उजाला होने पर एक सिपाही ने कमरे में लगा बिजली का बोर्ड तलाश कर बंद पड़ी लाइटेंजला दीं, जिस से कमरा प्रकाश से भर गया. अब उस हालनुमा कमरे में सब कुछ साफसाफ दिखाई पड़ रहा था. कमरे के बीचोबीच ढेर सारा कबाड़ पड़ा था. कमरे में जहांतहां सीमेंट और बदरपुर फैला हुआ था.
जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार ने सब से पहले अपने सहयोगी सिपाहियों की मदद से मकान में रहने वाले किराएदारों की मौजूदगी में बेसमेंट में बने दोनों कमरों के ताले तोड़े. लेकिन दोनों कमरों में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से पता चलता कि बदबू कहां से आ रही है.
पुलिस ने हाल के बीचोबीच पड़ा कबाड़ का सामान हटाया तो देखा उन के नीचे फूस बिछी हुई थी. जब वहां से फूस को हटाया गया तो नीचे टाट की बोरियां बिछी मिलीं.
पुलिस टीम ने टाट की इन बोरियों को भी हटाया, तो उस के नीचे काफी बड़े क्षेत्र में फर्श के ताजा प्लास्टर होने के निशान साफ दिख रहे थे. टाट की बोरियां हटाने के बाद कमरे में आ रही दुर्गंध और भी ज्यादा तेज हो गई थी.
जितेंद्र कुमार को लगने लगा कि हो न हो, इस फर्श के नीचे ऐसा कुछ जरूर दबा है जिस की वजह से वहां बदबू फैली हुई है.
जितेंद्र कुमार ने बेसमेंट से बाहर आ कर थानाप्रभारी जे.के. सिंह को फोन पर मुन्ना के मकान में इस संदिग्ध गतिविधि के बारे में बताया तो थानाप्रभारी भी कुछ अन्य पुलिसकर्मियों के साथ गिरधर एनक्लेव में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए. तब तक जितेंद्र कुमार ने अपने एक सिपाही को भेज कर 2-3 मजदूर बुलवा लिए थे.
थानाप्रभारी जे.के. सिंह ने निरीक्षण किया तो संदेह की सब से बड़ी बात यह मिली कि जिस स्थान पर प्लास्टर किया गया था, वहां दबाने पर जमीन दब रही थी. ऐसा लग रहा था कि यह प्लास्टर 2-3 दिन पहले ही किया गया हो और इस का भराव ठीक से नहीं किया गया था.
बहरहाल, थानाप्रभारी जे.के. सिंह को भी मामला संदिग्ध लगा. सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा और एसडीएम को सारी बात बता कर मौके पर आने का अनुरोध किया.
गिरधर एनक्लेव में एक के बाद एक पुलिस की गाडि़यां आने के कारण मुन्ना के मकान के बाहर कालोनी के लोगों की भीड़ जुट गई.
सीओ राकेश मिश्रा और एसडीएम के आने के बाद मोहल्ले के कुछ लोगों को गवाह बना कर उस जगह फर्श की खुदाई कराई गई, जहां ताजा प्लास्टर हुआ था.
करीब 4 फुट की खुदाई होते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. 6 फुट गहरे और 2 फुट चौडे़ गड्ढे की मिट्टी निकाली तो वहां से एक लाश निकली. मजदूरों की मदद से वह लाश गड्ढे से बाहर निकाली. उस के चेहरेमोहरे से मिट्टी हटा कर देखा तो वह लाश पंकज की ही निकली. लाश देखते ही मनीष ‘मेरा भाई पंकज’ कहते हुए सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. पंकज के गले में रस्सी बंधी थी, जिस से जाहिर था कि उसी रस्सी से उस का गला दबाया गया था.
थोड़ी ही देर में पंकज का रूम पार्टनर संजय भी मौके पर आ गया. लाश के शरीर पर जो कपड़े थे, उन्हें देख कर संजय ने भी बता दिया कि पंकज यही कपड़े पहन कर 9 तारीख की सुबह घर से निकला था.
लाश मुन्ना के घर के बेसमेंट में मिली थी और मुन्ना अपने परिवार के साथ घर से लापता था. लिहाजा पहली नजर में यह शक हो रहा था कि कहीं न कहीं इस हत्या के पीछे मुन्ना और उस के परिवार का ही हाथ है.
सूचना पा कर एसएसपी सुधीर कुमार सिंह और एसपी (सिटी) मनीष कुमार मिश्रा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. जरूरी जांच करने के बाद पंकज का शव पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद की मोर्चरी भिजवा दिया. पंकज का शव मिलने की बात सुन कर उस के पिता और दूसरे रिश्तेदार भी गाजियाबाद आ गए.
इस बीच एसएसपी ने पूरा मामला जानने के बाद पंकज सिंह हत्याकांड की जांच के लिए सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा के निर्देशन में एक विशेष जांच टीम का गठन कर दिया. टीम में इंसपेक्टर जे.के. सिंह के अलावा एसआई जितेंद्र कुमार, राजीव बालियान, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर, रविंद्र, कांस्टेबल संजीव सिंह, विपिन, प्रवेश और महिला हैडकांस्टेबल सुमित्रा को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर जे.के. सिंह कर रहे थे.
जांच का काम हाथ में लेते ही इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 302 और जोड़ दी. टीम ने सब से पहले गिरधर एनक्लेव में लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच कराई. एक फुटेज में पंकज सुबह करीब सवा 9 बजे लोअर पहने हुए सेब खाता हुआ कालोनी के बाहर से भीतर आता हुआ दिखा था. लेकिन उस के बाद वह कालोनी से बाहर की तरफ निकलते नहीं दिखा. इलाके के कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने भी पंकज को मुन्ना के घर की तरफ जाते देखा था.
जांचपड़ताल की इसी कड़ी में जब पंकज के मोबाइल की काल डिटेल्स की छानबीन की गई तो पता चला कि सुबह सवा 10 बजे पंकज के मोबाइल की लोकेशन झंडापुर टावर की थी. यह टावर गिरधर एनक्लेव के पीछे बने रेलवे ट्रैक के आसपास है. जो मुन्ना के घर के काफी समीप है. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि जिस समय पंकज के साथ कोई हादसा हुआ, उस समय वह या तो मुन्ना के घर के आसपास था या घर के भीतर था.
अब तक आए सभी साक्ष्य इस बात की गवाही दे रहे थे कि पंकज की हत्या मुन्ना और उस के परिवार के किसी सदस्य ने मिल कर की है.
पंकज की काल डिटेल्स में यह बात भी सामने आई कि पंकज के फोन पर अकसर मुन्ना की काल आतीजाती थी. पंकज और मुन्ना के वाट्सऐप पर भी मैसेज का काफी आदानप्रदान होता था, लेकिन वाट्सऐप चैट में क्या था, इसे जानने के लिए दोनों के मोबाइल फोन का होना जरूरी था.
पता चला कि मुन्ना बिहार के नवादा जिले का रहने वाला है. किसी तरह पुलिस ने मुन्ना का पता हासिल कर लिया, जिस के बाद इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने एसआई राजीव बालियान और जितेंद्र कुमार की अगुवाई में एक टीम नवादा (बिहार) के लिए रवाना कर दी.
20 अक्तूबर को पुलिस टीम जब नवादा में मुन्ना के घर पहुंची, तो पता चला कि मुन्ना अपने परिवार के साथ अपने गांव में आया जरूर था, लेकिन 2 दिन पहले ही वह घर जाने की बात कह कर वापस चला गया.
काफी कुरेदने के बावजूद भी पुलिस टीम को मुन्ना के रिश्तेदारों से यह बात पता नहीं चल सकी कि मुन्ना इस समय कहां गया है. थकहार कर साहिबाबाद थाने की पुलिस टीम वापस लौट आई.
इसी दौरान साहिबाबाद थाने में एसएसआई प्रमोद कुमार की नियुक्ति हुई तो इंस्पेक्टर जे.के. सिंह से ले कर पंकज हत्याकांड की जांच का काम उन के सुपुर्द कर दिया गया. प्रमोद कुमार ने जांच का काम हाथ में लेते ही अब तक हुई जांच के बारे में पूरा अध्ययन किया.
जांच अधिकारी प्रमोद कुमार ने टीम के साथ उन तमाम संभावित ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दीं, जहां मुन्ना या उस के परिवार के मिलने की संभावना थी. लेकिन मुन्ना चालाक था. पुलिस जहां भी पहुंचती, वह उस से पहले ही उस ठिकाने से निकल लेता.
पुलिस को मुन्ना के कुछ ऐसे करीबी लोगों के मोबाइल नंबर मिल गए, जिन से मुन्ना के न सिर्फ कारोबारी संबंध थे, बल्कि वह उन के साथ काफी उठताबैठता भी था.
पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर इस से पुलिस को 2 नवंबर, 2019 को जानकारी मिली कि मुन्ना अपने परिवार के साथ साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर मौजूद है और वहां से वह ट्रेन पकड़ कर कोलकाता जाने वाला है. पुलिस टीम तत्काल साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पहुंच गई और उसे दबोच लिया.
दरअसल हुआ यूं था कि मुन्ना ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जिस के औफिस में वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम देखता था, को फोन कर के अपने मुसीबत में होने की बात बताई. उस ने दोस्त से कुछ पैसे साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर भिजवाने के लिए कहा, जहां वह ट्रेन का इंतजार कर रहा था. पुलिस टीम ने जब मुन्ना के उस दोस्त से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया और पुलिस मुन्ना तक पहुंच गई.
मुन्ना और उस के परिवार को थाने ला कर जब सीओ राकेश कुमार मिश्रा के समक्ष पूछताछ हुई तो कुछ ही देर में पंकज की हत्या का सच सामने आ गया. मुन्ना ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी पत्नी सुलेखा और छोटी बेटी अंकिता के साथ मिल कर पंकज की हत्या की थी.
मुन्ना, सुलेखा और अंकिता से पूछताछ के बाद पंकज हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—
दिल्ली से सटे साहिबाबाद शहर में स्थित गिरधर एनक्लेव में रहने वाला हरिओम उर्फ मुन्ना कुछ साल पहले तक कबाड़ी का काम करता था. कबाड़ के काम से उसे खूब आमदनी हुई. जिस से उस ने गिरधर एनक्लेव में प्लौट खरीद कर उस पर 3 मंजिला मकान बना लिया. मकान के 2 मंजिल उस ने किराए पर दे दिए, जिस से अच्छीखासी आमदनी होने लगी.
3 साल पहले मुन्ना ने कबाड़ का काम बंद कर दिया और कुछ दिन खाली रहा. लेकिन 2 साल पहले उस ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जो प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, के दफ्तर पर जा कर बैठना शुरू कर दिया. जहां वह दोस्त के प्रौपर्टी डीलिंग के काम को संभालता था. प्रौपर्टी की जो डील वह खुद करता था उस में दोस्त को वह हिस्सा देता था.
मुन्ना के परिवार में पत्नी सुलेखा के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. मुन्ना की सब से बड़ी बेटी अनीशा (21) अंकिता (19) बेटा दीपक (17) और राकेश (15) साल के हैं.
उस की सब से बड़ी बेटी अनीशा शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर थी और अकसर बीमार रहती थी. यही कारण रहा कि 2-3 साल पहले 10वीं पास करने के बाद उस की पढ़ाई छूट गई. उस से छोटी बेटी अंकिता स्वस्थ होने के साथ बेहद खूबसूरत भी थी. लेकिन बड़ी बहन के बीमार होने के कारण मुन्ना ने उस की तीमारदारी के लिए अंकिता की पढ़ाई भी 10वीं के बाद छुड़वा दी.
हालांकि दोनों बेटों की पढ़ाई लगातार जारी रही. बड़ा बेटा दीपक इस बार 12वीं कक्षा में था. पिछले साल जब अनीशा स्वस्थ हो गई तो मुन्ना ने अनीशा और अंकिता का एक साथ 11वीं कक्षा में एडमिशन करा दिया.
क्योंकि मुन्ना के चारों ही बच्चे पढ़नेलिखने में थोड़ा कमजोर थे. संयोग से सत्यम एनक्लेव में अपने साइबर कैफे में ट्यूशन पढ़ाने वाला पंकज सिंह एक दिन मुन्ना के संपर्क में आया. पता चला कि मुन्ना ने पंकज से अपने चारों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के बारे में बात की.
करीब 5 महीने पहले मुन्ना के चारों बच्चे ट्यूशन पढ़ने के लिए पंकज के साइबर कैफे पर जाने लगे. पंकज सुबह करीब साढ़े 9 बजे तक साइबर कैफे खोल लेता था. इस के बाद वह साढ़े 12 बजे तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. इस दौरान अगर कोई टाइपिंग का वर्क ले कर दुकान पर आ जाता, तो वह उस का भी काम कर देता था.
कुल मिला कर पंकज वकालत की पढ़ाई करने के साथसाथ अपना खर्च चलाने के लिए साइबर कैफे और ट्यूशन पढ़ाने का काम करता था, जिस से उस की जिंदगी आराम से गुजर रही थी. जब से मुन्ना के चारों बच्चे पंकज से ट्यूशन पढ़ने लगे थे, तब से उस के कालेज जाने के बाद चारों बच्चों में से ही कोई उस के साइबर कैफे पर बैठ कर उस का संचालन करते थे. शाम को कालेज से आने के बाद पंकज फिर साइबर कैफे संभाल लेता था.
पंकज पढ़ालिखा और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान था. अंकिता यूं तो पंकज से उम्र में काफी छोटी थी लेकिन डीलडौल और अपने सुडौल बदन की वजह से वह एकदम जवान दिखती थी. न जाने कब और कैसे अंकिता ट्यूशन पढ़तेपढ़ते पंकज के करीब आती चली गई.
यही कारण था कि पंकज से जब भी एकांत में वह मिलती तो गाहेबगाहे पंकज से कुछ ऐसी निजी बातें करने लगती, जिस से धीरेधीरे पंकज भी उस की तरफ आकर्षित हो गया. जल्द ही उन दोनों की नजदीकियों ने प्रेम का रूप धारण कर लिया.
अब कुछ ऐसा होने लगा कि जब भी दोनों को थोड़ा सा एकांत मिलता तो वे एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते. कभीकभी झूठ बोल कर अंकिता पंकज के साथ पिक्चर देखने भी चली जाती और पंकज उसे रेस्टोरेंट्स में लंच या डिनर कराने भी ले जाता.
इसी दौरान 3 महीने पहले अचानक पंकज के मकान मालिक ने रिपेयर कराने के लिए जब अपना फ्लैट खाली कराया तो अंकिता के कहने पर मुन्ना के तीसरे फ्लोर पर स्थित कमरे में आ कर रहने लगा. मुन्ना के घर में आ कर पंकज की अंकिता के साथ नजदीकी और ज्यादा बढ़ गई. दोनों के बीच कुछ ऐसे रिश्ते भी बन गए जो शादी से पहले एक लड़की और लड़के के बीच नहीं होने चाहिए.
हालांकि अभी तक मुन्ना या उस के परिवार के किसी सदस्य को दोनों के संबंध की भनक नहीं लगी थी. लेकिन 15 दिन बाद अचानक पंकज ने मुन्ना का मकान छोड़ दिया. वह नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा.
मुन्ना के परिवार में मुन्ना के अलावा किसी के पास भी एंड्रायड मोबाइल फोन नहीं था. मुन्ना की पत्नी सुलेखा के पास मोबाइल फोन जरूर था, लेकिन वह भी साधारण फोन था. अगर परिवार में बच्चों को किसी से बात करनी होती थी तो वह अपने पिता या मां सुलेखा का फोन ही इस्तेमाल करते थे.
अंकिता पंकज से बात करने के लिए वाट्सऐप चैट का इस्तेमाल करती थी. लेकिन मुन्ना उस की चोरी पकड़ न पाया. क्योंकि चैटिंग करने के बाद वह चैट हिस्ट्री को डिलीट कर देती थी. ऐसा लंबे समय से चल रहा था. लेकिन इस घटना से करीब एक महीना पहले अचानक रात को सोते समय मुन्ना की आंखें खुल गईं और वह उठ कर बैठ गया. उस ने देखा बगल में रखा उस का फोन गायब था.
वह अपने कमरे से बाहर निकला तो देखा अंकिता अपने कमरे के बाहर फोन ले कर उस पर चैटिंग कर रही थी.
‘‘इतनी रात को तू किस से बातें कर रही है,’’ अचानक पीछे से अपने पिता मुन्ना की आवाज सुन कर अंकिता हड़बड़ा गई और उस ने झटपट फोन बंद कर दिया.
‘‘कुछ नहीं पापा, अपनी एक फ्रैंड से बात कर रही थी थोड़ा होमवर्क छूट गया था, उसी की फोटो मंगवा रही थी.’’ अंकिता ने अपनी सफाई में जवाब दिया और फोन पिता के हाथ में थमा दिया.
कमरे में जा कर मुन्ना अपने मोबाइल की काल डिटेल्स और वाट्सऐप चेक करने लगा कि आखिर अंकिता किस से बातें कर रही थी.
वाट्सऐप चैक करने के बाद मुन्ना की आंखें फटी रह गईं. क्योंकि वाट्सऐप की उस चैटिंग में अंकिता और पंकज के बीच चैट पर जिस तरह की बातें हो रही थीं, वह इशारा कर रहीं थीं कि दोनों के बीच में न सिर्फ घनिष्ठ रिश्ते हैं, बल्कि उन दोनों के बीच कुछ ऐसा भी हो गया है, जो पिता के लिए नाकाबिलेबरदाश्त था.
मुन्ना ने उसी रात अपनी पत्नी को जगा कर पंकज और अंकिता के बीच हो रही वाट्सऐप चैट के बारे में बताया तो पत्नी सुलेखा भी गंभीर हो गई.
पतिपत्नी की वह रात दोनों की आंखों में ही कट गई. रात भर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बात करते रहे कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए.
सुबह होते ही मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा ने अंकिता को अपने कमरे में बुलाया और उसे पंकज के साथ हुई बातचीत की चैट दिखा कर सच बताने को कहा.
मातापिता के सामने आशिकी का सच आया तो एक ही मिनट में अंकिता की रूह कांप उठी. वह अपने मांबाप की नजरों में गिरना नहीं चाहती थी. साथ ही उसे अपनी पिटाई का भी डर हुआ. इसलिए एक ही पल में उस ने बचने का बहाना तलाश कर लिया.
‘‘मैं ने कुछ नहीं किया पापा, पंकज सर मुझ से जबरदस्ती करते हैं. बोलते हैं कि मुझ से दोस्ती करो, नहीं तो तुम्हें फेल करवा दूंगा. पापा, मैंने जब उन की शिकायत आप से करने को कहा तो धमकी देने लगे, मैं तुम्हारे भाईबहनों को ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दूंगा और उन्हें भी फेल करा दूंगा.’’
कहते हैं इंसान को अपनी औलाद का झूठ भी सच लगता है, और दूसरे का सच भी झूठ नजर आता है. मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने अपनी बेटी अंकिता से प्यार और पुचकार कर यह सच भी उगलवा लिया कि पंकज ने उस के साथ कई बार शारीरिक संबंध भी बनाए हैं.
मुन्ना को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली उस के तनबदन में आग लग गई. मुन्ना ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वह अपनी बेटी की अस्मत पर हाथ डालने वाले को जिंदा नहीं छोड़ेगा.
बस उसी दिन से मुन्ना के सिर पर पंकज को खत्म करने का जुनून सवार हो गया. उस के विवेक ने काम करना बंद कर दिया कि यह कदम उठाने के बाद उस का और उस के परिवार का क्या अंजाम होगा.
मुन्ना ने साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया कि किस तरह पंकज की हत्या की जाए. काफी सोचविचार करने के बाद मुन्ना ने फैसला किया कि किसी तरह पंकज को अपने घर बुला लिया जाए और फिर घर में ही उस की हत्या कर दी जाए.
फिर साजिश के तहत उस की पत्नी सुलेखा ने बेटी अंकिता को बहलाफुसला कर पूरी तरह अपने भरोसे में ले लिया. उस ने अंकिता को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह किसी तरह पंकज को घर में बुला लेगी.
8 अक्तूबर, 2019 को दशहरा था. उस दिन जब अंकिता पंकज से ट्यूशन पढ़ने गई तो उस ने धीरे से पंकज के कान में बोल दिया कि कल सुबह मम्मीपापा कहीं चले जाएंगे, जबकि अनीशा और दोनों भाई स्कूल चले जाएंगे, लिहाजा वह घर पर अकेली होगी. अंकिता ने पंकज से कहा कि वह साइबर कैफे जाने से पहले सुबह 10 बजे के आसपास उस से घर पर मिलने चला आए.
अंकिता के इसी बुलावे पर 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे पंकज घर से निकला. और अंकिता के घर पहुंच गया. ऊपर की मंजिल पर रहने वाले किराएदार अपने काम पर जा चुके थे. पंकज ने जब अंकिता के घर की कालबेल बजाई तो मुन्ना और उस की पत्नी समझ गए कि पंकज आ गया है, लिहाजा वे दोनों बाथरूम में छिप गए.
अंकिता ने दरवाजा खोला और पंकज घर के भीतर दाखिल हो गया तो अंकिता ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. पंकज को इस बात का जरा भी एहसास नहीं हुआ कि वह आज एक बड़ी साजिश का शिकार होने वाला है. अंकिता के साथ बैठ कर बात करते हुए पंकज को चंद मिनट ही बीते थे कि तब तक बाथरूम का दरवाजा खोल कर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बाहर आ गए.
कमरे में आते ही मुन्ना ने अपने हाथ में पकड़ी एक रस्सी पंकज के गले में डाल कर उस का फंदा पंकज के गले में कसना शुरू कर दिया.
सुलेखा और अंकिता ने पंकज के हाथपांव पकड़ लिए, ताकि वह चंगुल से छूटने न पाए. मुश्किल से 5 मिनट लगे और पंकज की दम घुटने से मौत हो गई. पंकज की हत्या करने के तुरंत बाद मुन्ना ने उस का मोबाइल स्विच औफ कर दिया.
पंकज की हत्या करने के बाद मुन्ना उस की पत्नी और अंकिता पंकज का शव उठा कर बेसमेंट में ले आए. मुन्ना ने इस वारदात से 4 दिन पहले ही अपने बेसमेंट के फ्लैट के हाल का फर्श तोड़ कर उस में 6 फुट गहरा , 6 फुट लंबा और करीब 2 फुट चौड़ा एक गड्ढा खोदा.
गड्ढे को भरने के बाद उस पर नया फर्श बनाने के लिए सीमेंट, बालू और डस्ट भी पहले ही ला कर रख दिया गया था.
मुन्ना किसी भी हाल में उसी रात पंकज के शव को ठिकाने लगाना चाहता था. इस दौरान मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने किसी भी बच्चे को नीचे बेसमेंट में नहीं आने दिया. रात करीब 10 बजे तक मुन्ना ने बेसमेंट में खोदे गए गड्ढे में पंकज की लाश डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. और तोड़े गए बेसमेंट के फर्श को बनाने का काम पूरा कर लिया.
अगले दिन फर्श के उस स्थान पर टाट की बोरी बिछा कर ऊपर से घासफूस रख दी गई और बेसमेंट के एक कमरे में रखा ढेर सारा कबाड़ का फरनीचर व दूसरा सामान ऊपर से रख दिया ताकि किसी को कोई शक न हो.
मुन्ना को पंकज का शव अपने ही घर में दबाने का आईडिया दृश्यम फिल्म को देख कर आया था.
पंकज की हत्या कर शव को अपने मकान के बेसमेंट में दबाने के बाद हरिओम उर्फ मुन्ना को लगा था कि मामला अब खत्म हो गया और किसी को उस पर शक नहीं होगा.
अगले दिन जब पंकज का भाई मनीष उसकी तलाश में साहिबाबाद आया तो वह मुन्ना से भी मिला था, क्योंकि पंकज कुछ दिन न सिर्फ उस के मकान में रहा था बल्कि वह उस के चारों बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता था. उस वक्त मुन्ना ने मनीष के साथ हमदर्दी जताते हुए पंकज को तलाश करने का नाटक भी किया था.
लेकिन जब मुन्ना को इस बात की जानकारी मिली की पुलिस ने पंकज की हत्या का मुकदमा अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया है और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली जा रही है तथा कालोनी के सीसीटीवी कैमरे देखे जा रहे हैं तो वह अचानक पकड़े जाने के डर से घबरा गया. 10 अक्तूबर की रात को ही उसने फरार होने का फैसला कर लिया.
घर के कुछ जरूरी सामान, सभी बच्चों के पहनने के कपड़े, जरूरी दस्तावेज और घर के सभी गहने नकदी समेट कर 11 अक्तूबर की सुबह ही वह परिवार समेत फरार हो गया. जाने से पहले मुन्ना ने अपने किराएदारों को बता दिया था कि वह बिहार में अपने किसी रिश्तेदार के यहां होने वाले शादी समारोह में शामिल होने के लिए जा रहा है, आने में उसे कुछ वक्त लगेगा.
अपना घर छोड़ कर फरार हुआ मुन्ना पहले करीब एक हफ्ते तक बिहार में अपने गांव नवादा में रहा. इस दौरान मुन्ना ने एक नया मोबाइल और सिम कार्ड ले लिया था. जिसके जरिए वह अपने करीबी लोगों से लगातार संपर्क करके पंकज हत्याकांड में हुई पुलिस की जांच की जानकारी ले रहा था.
जब उसे पता चला कि पुलिस उस के गांव तक पहुंच सकती है. तो पुलिस के वहां पहुंचने से 2 दिन पहले ही मुन्ना परिवार के साथ वापस गाजियाबाद आ गया. खोड़ा कालोनी में उस के कुछ रिश्तेदार रहते थे. कुछ दिनों तक वह अलगअलग रिश्तेदारों के यहां रहा. पूछने पर उस ने रिश्तेदारों को यही बताया कि एक लड़के से उसका झगड़ा हो गया था, जिस में पुलिस उसे फंसाना चाहती है, इसीलिए वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपता फिर रहा है.
इस दौरान मुन्ना ने तय कर लिया था कि वह जब तक पंकज की हत्याकांड का मामला शांत नहीं हो जाता तब तक गिरधर एनक्लेव में अपने फ्लैट पर नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों दोस्तों और प्रौपर्टी डीलिंग में साथ काम करने वाले दोस्त से बड़ी रकम एकत्र की और कोलकाता भागने की तैयारी कर रहा था. ताकि वहां रह कर कुछ समय तक वह छोटामोटा धंधा कर के परिवार का पेट पाल सके, लेकिन इसी दौरान उसे पुलिस ने दबोच लिया.
मुन्ना से पूछताछ में पता चला कि पंकज की हत्या को अंजाम देने के लिए उस की पत्नी सुलेखा और बेटी अंकिता ने उस का साथ दिया था.
लिहाजा पुलिस ने इस केस में साजिश रचने की धारा 120 बी और सबूत छिपाने की धारा 201 जोड़ कर अंकिता और उस की मां सुलेखा को भी आरोपी बना दिया. तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उन से आवश्यक पूछताछ के बाद उन्हें सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस की जांच, आरोपियों से पूछताछ व पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित