भरी दोपहर का वक्त था. आलोक की दुकान में मटकतीलचकती अमिषा घुसते ही बोली, ‘‘क्यों जीजाजी, अब लेडीज का भी सामान बेचने लगे?’’

‘‘आप के लिए ही तो लाए हैं,’’ आलोक मुसकराते हुए बोला.

‘‘मेरे लिए! क्या मतलब है आप का?’’ अमिषा बोली.

‘‘मतलब यह कि अब आप को अंडरगारमेंट्स के लिए दूसरी दुकान पर नहीं जाना पड़ेगा. ब्रांडेड आइटम लाया हूं. एकदम आप की फिटिंग के लायक.’’ आलोक दुकान के एक कोने की ओर इशारा करते हुए बोला, जहां मौडलों की बड़ी फोटो लगी थी.

‘‘जीजाजी, तब तो आप को सेल्सगर्ल रखनी पड़ेगी,’’ अमिषा झट से बोल पड़ी.

‘‘सेल्सगर्ल क्यों, ग्राहक को मैं नहीं दिखा सकता क्या?’’ आलोक बोला.

‘‘अच्छा चलो, मैं ट्रायल करती हूं. मेरे लिए दिखाइए.’’

‘‘तुम्हारा साइज तो मुझे पता है,’’ आलोक चुटकी लेते हुआ बोला.

‘‘धत्त! बड़े बेशर्म हो.’’ यह कहती अमिषा शरमाती हुई जैसे मटकती आई थी, वैसी ही तेज कदमों से चली गई. आलोक देर तक उसे जाते देखता रहा.

यह बात 2 साल पहले की है. अधेड़ उम्र के आलोक माथुरकर नागपुर में गारमेंट की दुकान चलाता था. दुकान से मात्र 10 मीटर की दूरी पर ही बोबडे परिवार रहता था. बोबडे परिवार से उस का गहरा रिश्ता था, कारण वह उस की ससुराल थी.

परिवार में उस के 60 वर्षीय ससुर देवीदास बोबडे, 55 वर्षीया सास लक्ष्मी बाई और 22 वर्षीया अविवाहित साली अमिषा बोबड़े रहते थे. ससुर देवीदास एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे.

देवीदास की बड़ी बेटी विजया से आलोक ने प्रेम विवाह किया था. विजया भी विवाह से पहले अकसर आलोक की दुकान पर आती थी, वहीं वह आलोक से प्रेम करने लगी थी. अमिषा विजया से करीब 10 साल छोटी थी.

मिट गईं दूरियां

आलोक के पिता उपेंद्र माथुरकर सालों पहले रोजीरोटी के लिए नागपुर शहर आ कर बस गए थे. उन्होंने पांचपावली इलाके में कपड़ों की सिलाई का काम शुरू किया था. आलोक उन का इकलौता बेटा था.

उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इस कारण वह पिता के पुश्तैनी काम में लग गया था. कपड़े की सिलाई के अलावा कपड़े की अच्छी जानकारी थी, सो उस ने अच्छीखासी गारमेंट की दुकान खोल ली थी, जिस से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी.

आलोक का अपना सुखीसंपन्न परिवार था. उस के 2 बच्चे थे, जिन में बेटी परी 14 साल की और बेटा साहिल 11 साल का था. विजया आलोक के साथ खुश रहते हुए दांपत्य जीवन का निर्वाह कर रही थी, लेकिन आलोक रंगीनमिजाज किस्म का आदमी था.

दूसरी लड़कियों पर नजरें रखना और फूहड़ मजाक करना उस की आदत में शामिल था. साली को देखते ही उस के मन में तरहतरह के रोमांटिक विचार उमड़ने लगते थे.

जब भी मौका लगता, दुकान से ससुराल चला जाता था, साली के साथ हंसीमजाक कर समय बिताया करता था. उस की सास न चाहते हुए भी चुप रहती थी.

मजाकमजाक में एक दिन आलोक ने साली को अकेला पा कर बांहों में भर लिया. अमिषा उस दिन किसी तरह से उस की बाहों से छूटी, लेकिन जल्द ही जीजा के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. आलोक ने इस बारे में किसी को नहीं बताने की हिदायत दी.

अमिषा भी एक बार सैक्स का स्वाद लगने पर बेचैन रहने लगी. दूसरी तरफ आलोक उस के साथ अंतरंग संबंध बनाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा.

साली की सुंदरता और सैक्स का काकटेल उस के दिमाग में नशे की तरह छा गया था. और फिर उन्होंने अनैतिक संबंध को ही जीवन का एक हिस्सा बना लिया.

दोनों इस रिश्ते को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रख पाए. पहले आलोक की पत्नी विजया ने जीजासाली को अंतरंग रिश्ते बनाते रंगेहाथों पकड़ा. उस ने अपने पति की जम कर झाड़ लगाई. बहन को भी समझाया. फिर भी दोनों अपनी मस्ती में डूबे रहे.

जल्द ही इस की भनक अमिषा की मां और पिता को भी लग गई. उन्होंने अमिषा को तो आडे़ हाथों लिया ही, साथ में आलोक माथुरकर को भी नहीं छोड़ा. हालांकि बेटी की इस हरकत पर उन्हें गहरा धक्का लगा था.

उन्होंने अमिषा को प्यार से समझाया. अपनी रिश्तेदारी, समाज में बदनामी और उस की बहन के घर की बरबादी का वास्ता दिया. मांबाप के समझानेबुझाने का असर अमिषा पर सिर्फ इतना हुआ कि उस ने आलोक से दूरियां बना लीं. यह बात जनवरी, 2021 की थी.

सिर से पांव तक अमिषा के रंग में डूबे आलोक को उस की दूरियां बरदाश्त नहीं हो रही थीं. वह जितना ही अमिषा के पास जाने की कोशिश कर रहा था, वह उस से उतनी दूर होती जा रही थी.

कई बार मौका देख कर अपनी ससुराल भी गया, लेकिन सासससुर के मौजूद रहने के कारण अमिषा से बात तक नहीं कर पाया. वह जब भी ससुराल जाता, उसे नसीहत सुनने को मिलती.

बेटी और दामाद का रिश्ता न खराब हो, इस के लिए उन्होंने अमिषा के योग्य कोई अच्छा सा लड़का ढूंढ कर उस की शादी कर देने में ही भलाई समझी.

इस बात की जानकारी जब आलोक  को लगी तो उस का खून खौल उठा. उस ने मन ही मन यह तय किया कि अगर अमिषा उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. इसी बात को ले कर वह अमिषा को फोन पर तरहतरह की धमकियां भी देने लगा था.

अप्रैल, 2021 के महीने में लौकडाउन के समय तो आलोक ने हद ही कर दी. एक दिन दोपहर को मौका देख कर वह अपनी ससुराल गया. जाते ही अमिषा के साथ जोरजबरदस्ती करने लगा. वह अपनी हरकत में कामयाब होता, इस के पहले वहां अमिषा के मांबाप आ गए.

उन्होंने आलोक को न केवल डांटाफटकारा, बल्कि उस के खिलाफ स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज करवा दी. पुलिस ने परिवारिक मामले को ध्यान में रखते हुए आलोक पर फौरी तौर पर काररवाई की. उस से माफीनामा लिखवाया और चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

बदले की आग

बात आईगई हो गई, किंतु आलोक अमिषा के साथ वासना पूर्ति की आग में तपता रहा. वह मौके की ताक में रहते हुए बदले की भावना से भी भर चुका था.

पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अमिषा के घर वालों को थोड़ी राहत जरूर मिली थी, जबकि आलोक ने पुलिस की काररवाई और माफीनामे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. अब उसे अपनी ससुराल और अमिषा से नफरत हो गई थी. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी.

उस ने मई महीने में औनलाइन कुछ घरेलू सामान मंगाया. उस में उस ने एक लंबा मटन काटने का चाकू भी मंगवा लिया.

23 जून की रात 10 बजे के करीब आलोक अपनी ससुराल जा पहुंचा. घर पर अमिषा अकेली थी. पिता देवीदास अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. मां लक्ष्मीबाई पड़ोस के बच्चे के नामकरण कार्यक्रम में गई हुई थी.

अमिषा अपने कमरे में बैठी अपनी दोस्त के साथ मोबाइल पर चैट कर रही थी. अचानक अपने कमरे में आलोक को देख वह चौंक गई. हड़बड़ाते हुए पूछा, ‘‘जीजाजी आप?’’

उस ने मोबाइल को वैसे ही छोड़ दिया. जिस में उन के बीच की बातें रिकौर्ड होने लगीं.

‘‘हां मैं, तुम किस से बातें कर रही थीं?’’ आलोक ने कहा.

‘‘आप से मतलब, मैं अपने मन की मालकिन हूं, जिस से चाहूंगी बात करूंगी.’’ अमिषा ने कड़क शब्दों में कहा.

आलोक जलभुन गया. वह बोला, ‘‘तुम ने मेरी शिकायत पुलिस में क्यों की थी?’’

‘‘आप की हरकत से घर वाले सब परेशान हो गए थे. बेशर्मी की हद होती है. सब के सामने मुझे जलील कर दिया.’’ अमिषा ने सख्ती से कहा.

इस बात पर आलोक का गुस्सा फूट पड़ा था. उस ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें इस लायक ही नहीं छोड़ूंगा कि तुम पुलिस थाने जा सको.’’

यह कहते हुए आलोक ने अमिषा को पकड़ लिया था. अमिषा खुद को आलोक से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. काफी कोशिशें कीं मगर सफल नहीं हुई. सैक्स का उन्माद उतर जाने के बाद ही अमिषा उस के चंगुल से आजाद हो पाई.

आलोक द्वारा हाथ से मुंह बंद किए जाने के कारण शोर नहीं मचा पाई. घर से बाहर जाने की कोशिश करने लगी. मगर आलोक ने उसे इस का मौका नहीं दिया. छिपा कर लाए चाकू से एक झटके में अमिषा का गला रेत दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी.

खून से लथपथ अमिषा तड़पती रही और आलोक बुत बना उसे देख रहा. इस के पहले कि अमिषा के प्राणपखेरू उड़ते, कमरे में अमिषा की मां लक्ष्मीबाई आ गई. बेटी अमिषा की हालत देख कर चीखते हुए बोली, ‘‘आलोक, यह तुम ने क्या किया?’’

आलोक ने लक्ष्मीबाई के गले पर चाकू फिराते हुए कहा, ‘‘चिल्लाओ मत, पड़ोसी आ जाएंगे.’’

और फिर उस ने लक्ष्मीबाई का गला भी एक झटके में रेत डाला. आधे घंटे तक वहीं रहने के बाद वह अपने घर आ गया था.

बताते हैं कि अपनी ससुराल से वापस घर आने के बाद भी आलोक का क्रोध शांत नहीं हुआ. उसी क्रोध में उस ने पहले अपनी पत्नी की हत्या कर दी. फिर मासूम बेटे साहिल और बाद में बेटी परी को भी मौत की नींद सुला दिया.

अपने पूरे परिवार की हत्या के बाद आलोक का मन शांत हुआ, लेकिन वह विक्षिप्तावस्था में आ चुका था. उस ने कमरे के पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला भी समाप्त कर ली. इस तरह से एक घंटे के भीतर 6 हत्या- आत्महत्या की वारदात की जानकारी अगले रोज हुई.

जून महीने की 24 तारीख को दिन के करीब 11 बज चुके थे, नागपुर में में पाचपावली के रहने वाले आलोक माथुरकर का दरवाजा नहीं खुला था. उन के पड़ोस में रहने वाले भोसले परिवार को हैरानी हुई.

रोज सुबह 8 बजे फ्रैश हो कर अपने काम में लग जाने वाले का घर बंद होने पर भोसले परिवार के लोगों ने मकान की कालबेल दबाई. दरवाजा खटखटाया, आवाज दी.

कई बार ऐसा करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न मकान के भीतर से कोई आवाज आई, तब वह किसी अनहोनी की आशंका से घबरा गए.

मकान के पीछे लगी खिड़की के पास गए. हलके से धक्के के साथ खिड़की खुल गई. भीतर का मंजर देख कर भोसले परिवार के होश उड़ गए. उन की आंखों के सामने आलोक का सब से छोटा बेटा खून से लथपथ जमीन पर पड़ा था.

उन्होंने मामले की खबर पहले मकान मालिक प्रमोद भिभिकर और फिर थानाप्रभारी जयेश भंडारकर को दी.

कई हत्याओं से सहमा शहर

थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई राज राठौर को मामले की डायरी बनाने का आदेश मिला. जबकि इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद एएसआई संदीप बागुल, एसआई राज राठौर, हैडकांस्टेबल रवि पाटिल कुछ समय में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी.

पुलिस टीम ने दरवाजा तोड़ कर मकान में प्रवेश किया. अंदर 3 लाशें जमीन पर खून से सनी हुई थीं, जबकि एक पंखे से झूल रही थी. पंखे से झूलती लाश की पहचान आलोक माथुरकर के रूप में हुई और बाकी लाशें उस की पत्नी विजया और उस के बच्चों परी एवं साहिल की थीं.

थानाप्रभारी जयेश भंडारकर अपने सहायकों के साथ अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार, एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुनील फुलारी के साथ फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

उसी समय उन्हें पास में ही एक दूसरे हत्याकांड की सूचना मिली. थानाप्रभारी ने पुलिस की दूसरी टीम को दूसरे घटनास्थल पर भेज दिया.

दोनों घटनास्थल महज 10 मीटर की दूरी पर ही थे. दूसरा स्थान आलोक की ससुराल था, जहां उस की सास लक्ष्मीबाई और साली अमिषा मृत पड़ी थीं. दोनों घटनाओं में सभी की गरदन भी चाकू से रेती गई थी.

परिवार के मुखिया देवीदास ने पुलिस को बताया कि सभी हत्याओं के पीछे उस के दामाद आलोक का ही हाथ है.

दोनों घटनास्थल की तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. उस के एकमात्र गवाह के तौर पर देवीदास से थाने में पूछताछ की गई.

मौके पर बरामद मोबाइल की रिकौर्डिंग से आलोक और अमिषा के बीच संबंधों का खुलासा हो गया. फिंगरप्रिंट से भी आलोक द्वारा हत्याओं को अंजाम दिए जाने की पुष्टि हो गई.

एक ही दिन में 6 लोगों की हत्या और आत्महत्या के मामले की गुत्थी को कुछ घंटों में ही सुलझा लिया गया और जांच एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुशील फुलारी को सौंप दी गई. 2 परिवारों में अगर कोई बचा था तो वह थे आलोक के ससुर देवीदास. उन की किस्मत थी जो उस रात अपनी ड्यूटी पर थे. किंतु वे उस किस्मत का क्या करते, जब उन्हें कोई अपना कहने वाला ही नहीं रहा.

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