Uttar Pradesh Crime : समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह सोचते हैं कि वे जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वही सही है. सुभाष बाथम भी इसी सोच का था. इसी के चलते उस ने 24 मासूम बच्चों को घर में कैद कर लिया. लेकिन उसे मिला क्या, मौत. आखिर उस ने…
30 जनवरी, 2020 की शाम 4 बजे फर्रुखाबाद जिले के करथिया गांव में एक दहशतजदा खबर फैली. खबर यह थी कि गांव के ही सुभाष बाथम ने अपने घर में 2 दरजन मासूम बच्चों को बंधक बना लिया है. उस ने बच्चों को अपनी एक साल की बेटी गौरी के जन्मदिन पर खाने की चीजें देने के बहाने बुलाया था, जिस के बाद उन्हें कैद कर लिया. जिस ने भी यह खबर सुनी, सुभाष के घर की ओर दौड़ पड़ा. कुछ ही देर में उस के घर के बाहर भीड़ जुटने लगी. सभी खौफजदा थे, लेकिन उन लोगों का हाल बेहाल था, जिन के जिगर के टुकड़े घर के अंदर कैद थे.
यह खबर तब फैली जब सुभाष बाथम के पड़ोस में रहने वाले आदेश बाथम की पत्नी बबली अपनी बेटी खुशी और बेटे आदित्य को बुलाने उस के घर पहुंची. उस ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उस ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया. उस ने जब ज्यादा जिद की तो सुभाष बोला, ‘‘पहले गांव के लालू को बुला कर ला.’’
बबली ने मना किया तो वह गालीगलौज करने लगा. बदहवास बबली अपने घर आई और अपने पति आदेश तथा अन्य घरवालों को बच्चों को बंधक बनाए जाने की जानकारी दी. उस के बाद यह खबर पूरे गांव में फैल गई. बच्चों को बंधक बनाए जाने की खबर ग्रामप्रधान शशि सिंह और उन के पति हरवीर सिंह को मिली तो उन्होंने तत्काल डायल 112 को सूचना दी. खबर मिलते ही पीआरवी आ गई. पीआरवी के जवान जयवीर तथा अनिल ने सुभाष के घर का दरवाजा खटखटाया और कहा, ‘‘सुभाष, दरवाजा खोलो. तुम्हारी जो भी समस्या होगी, उस का निदान किया जाएगा, बच्चों को छोड़ दो.’’
लेकिन सुभाष बाथम ने दरवाजा नहीं खोला. परेशान हो कर दीवान जयवीर ने कोतवाली मोहम्मदाबाद को सूचना दी. इस पर कोतवाल राकेश कुमार पुलिस बल के साथ करथिया गांव आ गए. सुभाष के घर के बाहर ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. इंसपेक्टर राकेश कुमार ने अपना परिचय दे कर दरवाजा खोलने को कहा तो सुभाष बोला, ‘‘मैं ने बच्चों को बंधक बना लिया है, दरवाजा तभी खुलेगा जब डीएम, एसपी और विधायक यहां आएंगे.’’
इसी के साथ सुभाष ने गोली चलानी शुरू कर दी. इतना ही नहीं, उस ने अंदर से हैंडग्रैनेड भी फेंका, जिस से इंसपेक्टर राकेश कुमार, दरोगा संजय सिंह, दीवान जयवीर और सिपाही अनिल कुमार घायल हो गए. इंसपेक्टर राकेश कुमार को समझते देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. चूंकि घर के अंदर 2 दरजन बच्चे बंधक थे, ऐसे में बिना बड़े अधिकारियों के आदेश से कोई कदम नहीं उठाया जा सकता था. दूसरी बात बच्चों को बंधक बनाने वाला सुभाष खुद भी एसपी, डीएम और विधायक को बुलाने की मांग कर रहा था. राकेश कुमार ने तत्काल पुलिस अधिकारियों, डीएम तथा क्षेत्रीय विधायक को फोन कर के घटना की सूचना दी और तुरंत घटनास्थल पर पहुंचने को अनुरोध किया.
आपात जैसी स्थिति और मासूम बच्चे चूंकि मामला मासूम बच्चों को बंधक बनाने का था, इसलिए सूचना मिलते ही शासनप्रशासन में हड़कंप मच गया. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र, एएसपी त्रिभुवन प्रताप सिंह तथा सीओ (मोहम्मदाबाद) राजवीर सिंह करथिया गांव आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फर्रुखाबाद जिले के कई थानों की फोर्स बुलवा ली. जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह तथा भोजपुर विधायक नागेंद्र राठौर भी सूचना पा कर करथिया गांव आ गए. एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र ने गांव वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला सुभाष के घर एक साल से ले कर 13 साल तक के 24 बच्चे बंधक हैं. सुभाष बाथम की पत्नी रूबी और उस की एक वर्षीया बेटी गौरी भी घर के अंदर थीं.
गांव के जिन मासूमों को बंधक बनाया गया था, उन में आर्बी पुत्री आनंद, रोशनी पुत्री सत्यभान, अरुण, अंजलि, लवी पुत्र नरेंद्र, भानु पुत्र मदनपाल, खुशी, मुसकान, आदित्य पुत्र आदेश विनीत पुत्र रामकिशोर, पायल, प्रिंस पुत्र नीरज, प्रशांत, नैंसी पुत्री राकेश, आकाश, लक्ष्मी पुत्री ब्रजकिशोर, अक्षय पुत्र अरुण, गौरी पुत्री लालजीत, लवकुमार, सोनम, शबनम और गुगा, जमुना पुत्री आशाराम शामिल थे. इन बच्चों में सब से बड़ी नरेंद्र की बेटी अंजलि थी जो 13 वर्ष की थी. जबकि सब से छोटी शबनम 6 महीने की थी. पुलिस अधिकारियों ने सुभाष बाथम को समझाया, साथ ही आश्वासन दिया कि उस की जो भी डिमांड होगी, पूरी की जाएगी. वह बच्चों को रिहा कर दे, वे भूखप्यास से तड़प रहे होंगे.
इस पर सुभाष ने घर के अंदर से धमकी दी कि अगर पुलिस ने उस के घर में घुसने की जुर्रत की तो वह पूरे घर को बारूद से उड़ा देगा. सारे बच्चे मारे जाएंगे, क्योंकि उस के पास 32 किलो बारूद है. इस चेतावनी के बाद पुलिस पीछे हट गई. पुलिस अधिकारी सूझबूझ से काम ले रहे थे ताकि शातिर बाथम कोई खुराफात न कर बैठे. इस बीच विधायक नागेंद्र सिंह राठौर आगे आए. उन्होंने पुलिस अधिकारी से माइक ले कर सुभाष से बात करने का प्रयास किया तो उस ने उन्हें निशाना बना कर फायर झोंक दिया. इस हमले में विधायक बालबाल बचे. उस ने विधायक को वापस चले जाने को कहा. इस के बाद वह पीछे हट गए. इधर पुलिस अधिकारियों को पता चला कि गांव का अनुपम दुबे सुभाष का मित्र है. वह उस के साथ उठताबैठता है. चोरी के एक मामले में उस ने सुभाष को जमानत पर रिहा कराया था.
यह भी पता चला कि सुभाष की पत्नी रूबी की पड़ोसन विनीता से पटरी बैठती है. संभव है कि इन दोनों के समझाने पर सुभाष मान जाए और बच्चों को रिहा कर दे. पुलिस अधिकारियों ने अनुपम दुबे और विनीता को मौके पर बुलवा लिया और सुभाष को समझाने का अनुरोध किया. अनुपम दुबे के आवाज देने पर सुभाष मुख्य दरवाजे पर आ कर उस से बात करने लगा. उस ने कहा कि गांव वालों ने उसे चोरी के झूठे इलजाम में फंसाया था, अब भुगतो. जब अनुपम दुबे उसे समझाने लगा तो सुभाष गुस्से में आ गया. उस ने दरवाजे के नीचे अनुपम पर फायर कर दिया. गोली अनुपम के पैर में लगी और वह तड़पने लगा. उसी समय विनीता हिम्मत जुटा कर आगे बढ़ी और रूबी को ऊंची आवाज में पुकारने लगी.
रूबी तो सामने नहीं आई लेकिन सुभाष ने विनीता पर भी फायर झोंक दिया. वह भी घायल हो कर तड़पने लगी. पुलिस ने तत्काल दोनों को इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल भेजा. अब तक क्यूआरटी और एसओजी टीम भी घटनास्थल पर आ गई थीं. फोर्स ने आते ही सुभाष के घर को चारों ओर से घेर कर मोर्चा संभाल लिया. पुलिस ने कई बार घर के अंदर घुसने का प्रयास किया, लेकिन बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए पीछे हट जाती. सुभाष घर के अंदर से संवाद भी करता जा रहा था और गोली भी चला रहा था. कभी वह बच्चों के लिए बिसकुट की डिमांड करता तो कभी मीडिया वालों को बुलाने की बात करता.
पुलिस अधिकारी बराबर सुभाष के घर की टोह ले रहे थे. लेकिन उन्हें बच्चों के रोनेचिल्लाने या बोलने की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. जबकि घर के अंदर 1-2 नहीं बल्कि 24 बच्चे कैद थे. बच्चों की आवाज न आने से पुलिस अधिकारी परेशान थे. डर के बावजूद तमाशा जारी था बच्चों के बंधक बनाए जाने की खबर पा कर मीडियाकर्मियों का भी जमावड़ा शुरू हो गया था. न्यूज चैनलों ने खबर का सीधा प्रसारण शुरू कर दिया, जिस से उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में खलबली मच गई. चैनलों की बे्रकिंग न्यूज लोगों की धड़कनें बढ़ा रही थीं. सभी के मन में जिज्ञासा थी कि बंधक बनाए गए बच्चों के साथ क्या होने वाला है.
करथिया गांव के अलावा पासपड़ोस के दरजनों गांवों में भी खबर फैल गई थी, सुन कर गांवों के हजारों लोग वहां आ गए. गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका था. पुलिस के लिए भीड़ को संभालना मुश्किल होता जा रहा था. भीड़ के कारण पुलिस के काम में बाधा आ रही थी. भीड़ को रोकने के लिए पुलिस बीचबीच में बल भी प्रयोग कर रही थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रयागराज, गोरखपुर के कार्यक्रमों में शिरकत कर लखनऊ लौटे तो उन्हें फर्रुखाबाद के करथिया गांव में 2 दरजन मासूम बच्चों के बंधक बनाए जाने की जानकारी हुई. उन्होंने फर्रुखाबाद के एसपी व डीएम को फटकार लगाई, फिर औपरेशन मासूम के नाम पर उच्चस्तरीय बैठक की.
इस बैठक में प्रमुख सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी, डीजीपी ओमप्रकाश सिंह और एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने भाग लिया. योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों से बच्चों को सुरक्षित निकालने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों को सुरक्षित बचाना हमारी प्राथमिकता है. किसी के शरीर पर खरोंच भी नहीं आनी चाहिए. मुख्यमंत्री का आदेश पाते ही डीजीपी ओमप्रकाश सिंह ने औपरेशन मासूम की कमान आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल को सौंपी और उन्हें तत्काल करथिया गांव रवाना कर दिया. एडीजी (ला ऐंड और्डर) पी.वी. राम शास्त्री ने एटीएस टीम को तुरंत करथिया गांव भेजा. अधिकारी डीजीपी औफिस से औपरेशन मासूम की मौनिटरिंग करने लगे.
मासूमों की जिंदगी से चिंतित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी दी. योगी ने गृहमंत्री अमित शाह से एनएसजी कमांडो भेजने को कहा. फलस्वरूप एनएसजी कमांडोज को करथिया गांव रवाना कर दिया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. भीषण ठंड के बावजूद हजारों लोग घटनास्थल पर मौजूद थे. पुलिस की टीम तो थी ही. सब की निगाहें सुभाष के घर को ताक रही थीं. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि बच्चों को कैसे मुक्त कराया जाए. पुलिस असहज थी, लोग दहशत में थे. सब से ज्यादा वे महिलाएं बेहाल थीं, आंसू बहा रही थीं, जिन के जिगर के टुकड़े मकान में कैद थे.
जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह और एसपी डा. अनिल कुमार मिश्रा शातिर अपराधी सुभाष की गतिविधियों पर नजर गड़ाए थे. उस का ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने गांव के 4 युवकों को लगा रखा था, जो उसे अच्छी तरह से जानते थे. इन्हीं में से एक युवक ने कहा कि डीएम साहब आ गए हैं, घर के बाहर आ कर अपनी बात कहो. इस पर सुभाष बोला, ‘‘मैं ने कई बार कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए. कालोनी मांगी, शौचालय मांगा, लेकिन कुछ नहीं मिला. अब चाहे कोई भी आ जाए, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगा.’’
थोड़ी देर बाद सुभाष ने दीवार के छेद से एक पत्र बाहर फेंका. जिलाधिकारी को संबोधित उस पत्र में उस ने कई समस्याएं लिखीं. उस ने लिखा कि वह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पालता है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कालोनी आई, लेकिन प्रधान शशि सिंह और उन के पति ने नहीं दी. शौचालय भी नहीं बनवाया. सेक्रेटरी के पास गया, कलेक्ट्रेट के चक्कर लगाए, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. प्रति बच्चा एक करोड़ मांगे सुभाष बाथम ने एसओजी के सिपाही ललित से बात की और तमाम इलजाम लगाए. उस ने कहा कि एसओजी के सिपाही सचेंद्र व अनुज ने उसे चोरी के इलजाम में झूठा फंसाया, उसे मारापीटा, करेंट लगाया. उस ने मोहम्मदाबाद थाने के सिपाही लल्लू पर भी प्रताडि़त करने का आरोप लगाया.
मकान के अंदर से केवल सुभाष ही संवाद नहीं कर रहा था, बल्कि उस की पत्नी रूबी भी बात कर रही थी. गांव के एक युवक अमित ने जब रूबी से बात की तो उस ने धनाढ्य बनने की लालसा जाहिर की. उस ने प्रति बच्चा छोड़ने की कीमत एक करोड़ रुपया रखी. कहा कि यदि अधिकारी 24 करोड़ रुपए देने को राजी हो जाएं तो वह सभी बच्चों को रिहा कर देगी. साथ ही उस ने सुभाष के खिलाफ चल रहे सभी मुकदमों को खत्म करने की भी शर्त रखी. रात 11 बजे पुलिस ने भीड़ को खदेड़ कर सुभाष बाथम के घर की नाकेबंदी कर दी. इसी बीच सुभाष के एक परिचित अंशुल दुबे ने डीएम व एसपी की मौजूदगी में सुभाष से बात की. अंशुल ने सुभाष से कहा कि उस की कैद में 6 महीने की शबनम है. वह भूखीप्यासी होगी, उसे बाहर निकाल दे.
इस पर कुछ देर बाद उस ने मासूम शबनम को पीछे वाले कमरे की दीवार के छेद से अंशुल को थमा दिया. शबनम को उस की मां ने सीने से लगा लिया. उस की बेटी सोनम और बेटा लवकुमार अब भी सुभाष की कैद में थे. लगभग 7 घंटे बाद पहली बच्ची कैद से छूटी तो अधिकारियों को लगा कि शायद सुभाष और उस की पत्नी का रुख नरम पड़ रहा है. इधर आईजी मोहित अग्रवाल लगभग 4 घंटे का सफर तय कर के रात साढ़े 12 बजे करथिया गांव पहुंचे. गांव पहुंचते ही उन्होंने औपरेशन मासूम की पहल शुरू कर दी. मोहित अग्रवाल एसओजी टीम के साथ सुभाष बाथम के मकान की छत पर पहुंचे और वहां का जायजा लिया.
फिर वह पड़ोस के मकान की छत पर पहुंचे और पूरी स्थिति को भांपा. उन्होंने छतों पर अत्याधुनिक हथियारों को लोड करा कर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया और अलर्ट रहने को कहा. फिर उन्होंने सुभाष के घर का एक चक्कर लगा कर जायजा लिया. इसी बीच सुभाष बाथम को महसूस हुआ कि पुलिस की गतिविधियां तेज हो रही हैं. उस ने दहशत फैलाने के लिए लगातार 2 फायर किए. दोनों फायरिंग में लगभग 10 सेकेंड का अंतराल था. आईजी मोहित अग्रवाल ने महसूस किया कि अगर सुभाष पर काबू पाना है तो औपरेशन को 10 सेकेंड में पूरा करना होगा. क्योंकि वह एक बार फायर करने के बाद 10 सेकेंड में हथियार लोड करता है.
उन्होंने यह भी देख लिया कि घर के अंदर जाने के 2 दरवाजे हैं. मुख्य दरवाजा सामने है जो लोहे का बना है, जबकि दूसरा मकान के पीछे था जो लकड़ी का था. तय हुआ कि जब सुभाष गोली चलाएगा, तभी पुलिस पीछे का दरवाजा तोड़ कर घर के अंदर दाखिल होगी और 10 सेकेंड के अंदर उसे पकड़ लेगी. यह भी तय हुआ कि दरवाजा टूटने की भनक सुभाष और उस की पत्नी को न लगे, इसलिए कुछ स्थानीय युवकों को घर के सामने से पत्थरबाजी करने व शोर मचाने को कहा गया. आईजी की रणनीति में फंसा सुभाष सुभाष आईजी की इस रणनीति में फंस गया. कुछ देर बाद सुभाष ने जैसे ही गोली चलाई, पुलिस टीम ने पीछे का दरवाजा तोड़ा और घर के अंदर दाखिल हो गई.
जब तक पुलिस सुभाष के सामने पहुंची, तब तक वह दोबारा गोली लोड कर चुका था. उस ने गोली चलाई जो आईजी मोहित अग्रवाल की बुलेटप्रूफ जैकेट में लगी. वार खाली जाते देख वह पत्नी रूबी के साथ गेट खोल कर बाहर की ओर भागा. भीड़ ने रूबी को घेर लिया और मारोमारो कहते हुए उस पर टूट पड़ी. यह देख कर सुभाष घबरा गया और पीछे उसी कमरे की ओर भागा जहां बच्चे कैद थे. योजना के मुताबिक वहां पहले से ही पुलिस तैनात थी. पुलिस को देखते ही उस ने एसओजी प्रभारी दिनेश कुमार गौतम पर फायर कर दिया. इस बार भी उस की गोली बुलेटप्रूफ जैकेट में फंस गई.
सुभाष दोबारा फायर करने ही वाला था, तभी एसओजी के सिपाही नवनीत कुमार ने एके47 से सुभाष पर फायर झोंक दिया. वह घायल हो कर गिर पड़ा और मौके पर ही दम तोड़ दिया. इधर भीड़ ने सुभाष की पत्नी रूबी को पीटपीट कर बुरी तरह घायल कर दिया. बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रूबी को भीड़ के चंगुल से छुड़ा पाई. उसे इलाज के लिए डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर होने के कारण डाक्टरों ने उसे सैफई रेफर कर दिया. लेकिन उस ने सैफई पहुंचने के पहले ही रास्ते में दम तोड़ दिया. पुलिस उस के शव को वापस ले आई.
सुभाष बाथम ने कमरे के अंदर एक तहखाना बना रखा था, जिस में सभी बच्चे कैद थे. तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद था. पुलिस ने दरवाजा पीटा और पुलिस की मौजूदगी का आभास कराया, इस पर अंजलि नाम की बालिका ने दरवाजा खोला. उस के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने सभी बच्चों को रिहा करा कर उन के मातापिता को सौंप दिया. अपने बच्चों को सहीसलामत पा कर उन की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. पुलिस ने उस कमरे से एक मासूम को भी बरामद किया. यह मासूम औपरेशन के दौरान मारे गए सुभाष बाथम की एक वर्षीय पुत्री गौरी थी. आईजी मोहित अग्रवाल ने उसे गोद में लिया, दुलारा फिर महिला सिपाही रजनी को सौंप दिया.
अब तक एनएसजी टीम दिल्ली से आगरा पहुंच चुकी थी. टीम को औपरेशन मासूम सफल होने की जानकारी मिली तो टीम आगरा से वापस लौट गई. लखनऊ से रवाना एटीएस टीम भी औपरेशन पूरा होने के बाद ही पहुंच पाई. आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल ने सभी बंधक बच्चों को सकुशल मुक्त कराने और अपराधी सुभाष बाथम के मारे जाने की जानकारी डीजीपी ओमप्रकाश सिंह, प्रमुख सचिव (गृह) तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दी, तो सभी के चेहरे खिल उठे. मुख्यमंत्री ने आईजी मोहित अग्रवाल को बधाई दी और उन की टीम को ईनामस्वरूप 10 लाख रुपए देने की घोषणा की.
31 जनवरी, 2020 की सुबह पौ फटते ही बच्चों को बंधक बनाने वाले सुभाष बाथम के मारे जाने तथा बच्चों के सकुशल मुक्त होने की खबर जंगल की आग की तरह फैली तो कई गांवों के लोग सुभाष का शव देखने के लिए उमड़ पड़े. चारों तरफ पुलिस जिंदाबाद के नारे लगने लगे. एडीजी (कानपुर जोन) जे.एन. सिंह तथा कमिश्नर सुधीर एम. बोवडे भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने भी पुलिस पार्टी की प्रशंसा की. इस के बाद सुभाष और उस की पत्नी रूबी के शवों को पोस्टमार्टम हाउस फर्रुखाबाद भेज दिया गया. सुभाष बाथम के घर की तलाशी तथा विस्फोटक बरामदगी हेतु एएसपी त्रिभुवन सिंह की देखरेख में बम निरोधक टीम करथिया गांव पहुंची. बम निरोधक दस्ते ने सुभाष के घर की तलाशी ली तो तहखाने में 5 किलो के गैस सिलेंडर में विस्फोटक भरा मिला. साथ ही 4 बड़े तथा 4 छोटे बम भी मिले.
इस के अलावा भारी मात्रा में बारूद, गंधक, पोटाश, बजरी और तार बरामद हुआ. तेज धमाके वाले 100 पटाखे व 30 अर्धनिर्मित बम भी बरामद हुए. घर में एक .315 बोर का तमंचा, एक राइफल, 20 खोखे और 2 दरजन से अधिक जिंदा कारतूस बरामद हुए. एक मोबाइल फोन भी बरामद हुआ. सुभाष बाथम के घर से विस्फोटक का जो जखीरा मिला, उस से साफ हो गया कि अगर धमाका होता तो 40 मीटर के दायरे में तबाही मच जाती. यह बात भी साफ थी कि सुभाष बम बनाना जानता था. सिलेंडर को सौर ऊर्जा की प्लेट और नीचे बैटरी के तार से जोड़ा गया था. दोनों तारों के कनेक्शन आपस में जुड़ जाते तो बड़ा धमाका हो जाता.
बच्चों ने झेली थी मानसिक यंत्रणा दूसरी तरफ फोरैंसिक टीम ने तमंचा, राइफल तथा कारतूसों को साक्ष्य के तौर पर सील कर दिया. एएसपी त्रिभुवन सिंह ने सुभाष के मोबाइल को जांच हेतु जाब्ते में शामिल कर लिया. पूरे घर को खंगालने के बाद पुलिस ने सुभाष बाथम के मकान को सील कर के बाहर पुलिस का पहरा बिठा दिया. इधर आईजी मोहित अग्रवाल ने डीएम मानवेंद्र सिंह, विधायक नागेंद्र सिंह राठौर, एसपी डा. अनिल कुमार मिश्र और गांव वालों की मौजूदगी में बंधक बनाए गए कुछ बच्चों से बातचीत की. इन में गांव के दिवंगत नरेंद्र की 13 वर्षीय बेटी अंजलि भी थी. अंजलि नौवीं कक्षा की छात्रा थी, समझदार. अंजलि ने कैद के दौरान उन 11 घंटों की खौफनाक दास्तां बताई तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए.
अंजलि ने बताया कि जब वह चाचा (सुभाष) के घर पहुंची तो तहखाने में 12 बच्चे मौजूद थे. इस के बाद धीरेधीरे उस की तरह 24 बच्चे आ गए. बच्चों को एक दरी दी गई, सब उसी पर बैठ गए. वहां जन्मदिन मनाने जैसा कोई इंतजाम नहीं था, जिस से उस के मन में कुछ संशय हुआ. कुछ देर में बच्चे शोर मचाने लगे तो सुभाष चाचा ने उन्हें डांटा और धमकी दी कि शोर मचाया तो बम से उड़ा देंगे. धमकी से बच्चे डर गए. इस के बाद तो बच्चों की सिसकियों पर भी पाबंदी लग गई. भूख और प्यास पर खौफ हावी हो गया. सामने मौत खड़ी थी, लेकिन कोई आवाज भी निकालता तो दूसरा बच्चा उस के मुंह पर हाथ लगा देता.
खौफनाक मंजर का हाल बताते समय अंजलि के चेहरे पर दहशत झलक रही थी. उस ने बताया कि तहखाने के अंदर एक बोरी में बारूद रखा था, जिस में बिजली का तार लगा था. एक 5 किलोग्राम का गैस सिलेंडर भी रखा था. उस में से भी तार निकला था, जो ऊपर कमरे की ओर गया था. सुभाष चाचा बारबार धमकी दे रहे थे कि अगर मुंह से आवाज निकाली तो सब को बम से उड़ा देंगे. धमकी देने के बाद चाचा तहखाने से बाहर गए तो उस ने लपक कर तहखाने का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. फिर चाचा के कहने पर भी नहीं खोला.
अंजलि ने बताया कि जब उस की निगाह बोरी और सिलेंडर पर पड़ी तो उसे लगा कि चाचा बोरी में रखे बारूद से ही उड़ाने की धमकी दे रहा है. उस ने हिम्मत जुटा कर बोरी के बाहर निकला तार दांत से काट दिया, फिर गैस सिलेंडर से निकला तार भी दांत से काट दिया. चाची (रूबी) ने दरवाजे के नीचे से बिसकुट और खाना दिया, लेकिन किसी ने कुछ नहीं खाया और चुप रहे. रात करीब डेढ़ बजे पुलिस के कहने पर उस ने अंदर से दरवाजा खोला. सुभाष और रूबी का शव कोई भी लेने को तैयार नहीं था, उस की मां सुरजा देवी भी इनकार कर चुकी थी. अंतत: पुलिस ने दोनों शवों का अंतिम संस्कार कर दिया. सुभाष कौन था, वह अपराधी कैसे बना, उस ने मासूम बच्चों को बंधक क्यों बनाया, उस की पत्नी रूबी ने उस का साथ क्यों दिया? यह सब जानने के लिए अतीत में लौटना होगा.
फर्रुखाबाद जिले के थाना मोहम्मदाबाद क्षेत्र में एक गांव है करथिया. इटावा बेबर रोड पर बसा यह गांव जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर है. करथिया में 300 परिवार रहते हैं और यहां की आबादी है 1200. ज्यादातर परिवार खेतीकिसानी करते हैं. गरीब परिवार अधिक हैं जो मेहनतमजदूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं. इसी करथिया गांव के जगदीश प्रसाद बाथम का बेटा था सुभाष. वह शुरू से ही क्रोधी और सनकी था. वह आवारा लोगों के साथ घूमता, उन के साथ बैठ कर शराब पीता, शराब पी कर उत्पात मचाता. मात्र 13 साल की उम्र में सुभाष चोरी करने लगा. सन 1998-99 में उस पर चोरी के 2 मुकदमे दर्ज हुए, जिन के इलजाम में थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.
जेल से बाहर आने के बाद वह फिर अपराध करने लगा. वह जबरदस्ती घर का अनाज बेच देता, मां विरोध करती तो उस के साथ मारपीट करता. पति की मौत के बाद दुष्ट बेटे से तंग आ कर सुरजा देवी अपनी बहन के घर अहकारीपुर जा कर रहने लगी. स्वभाव से चिड़चिड़ा और सनकी था सुभाष सुभाष की मौसी सुमन इसी करथिया गांव में मेघनाथ को ब्याही थी. मेघनाथ गांव के स्कूल में चपरासी था. सुभाष का मौसा मेघनाथ सुभाष को इसलिए पसंद नहीं करता था क्योंकि वह चोरी करता था. मेघनाथ उसे सुधर जाने की नसीहत देता था. इस के चलते सुभाष अपने मौसा से खुन्नस खाने लगा था. इसी खुन्नस में उस ने 25 नवंबर, 2001 की सुबह 8 बजे चाकू घोंप कर मौसा मेघनाथ की हत्या कर दी.
सुमन ने पति की हत्या की रिपोर्ट सुभाष के खिलाफ लिखवाई. थाना मोहम्मदाबाद पुलिस ने सुभाष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. सन 2005 में सुभाष को 10 साल की सजा सुनाई गई. सजा की अवधि 2015 में पूरी हुई. उस के बाद वह जेल से घर आ गया और मेहनतमजदूरी कर के अपना भरणपोषण करने लगा. हालांकि उस ने चोरी करना अब भी नहीं छोड़ा था.सुभाष की गांव के वीरपाल कठेरिया से दोस्ती थी. दोनों साथ बैठ कर शराब पीते थे. एक दिन सुभाष की नजर वीरपाल कठेरिया की साली रूबी पर पड़ी. पहली ही नजर में रूबी सुभाष के मन को भा गई. उस ने रूबी के सामने प्यार का इजहार किया और शादी का प्रस्ताव रखा. रूबी राजी हो गई. इस के बाद सुभाष ने रूबी के साथ प्रेम विवाह कर लिया. दलित की बेटी बाथम परिवार में बहू बन कर आई तो बाथम बिरादरी के लोगों ने सुभाष का बहिष्कार कर दिया.
रूबी से शादी करने के बाद सुभाष ने अपनी 4 बीघा जमीन बेच दी. इस पैसे से उस ने बंकरनुमा घर बनाया. घर के भीतर के गोपनीय ठिकानों की किसी को जानकारी न हो, इस के लिए उस ने बाहर से राजमिस्त्री या मजदूर बुलाने के बजाय पत्नी के साथ मिल कर निर्माण किया. कमरे के अंदर ही उस ने तहखाना बनाया. इसी बीच उस ने सरकारी कालोनी तथा शौचालय पाने का प्रयास किया, लेकिन मिला कुछ नहीं. सन 2019 के जनवरी महीने में रूबी ने एक बच्ची को जन्म दिया. बेटी गौरी के जन्म से रूबी सुभाष दोनों खुश थे. गौरी अभी 6 महीने की थी कि एसओजी ने सुभाष को फतेहगढ़ में हुई चोरी के आरोप में पकड़ लिया. पुलिस ने उस को खूब टौर्चर किया और जेल में भेज दिया.
3 महीने पहले वह जमानत पर घर आया तो उस के मन में टीस बनी रही. यह भी खुन्नस थी कि बिरादरी के लोग उस का साथ नहीं देते थे. उस के मन में इस बात की टीस भी थी कि सरकारी सिस्टम से उसे कोई मदद नहीं मिल रही थी. उसे टौर्चर करने वाली पुलिस, ग्रामप्रधान, जो उस के खिलाफ थी, पर भी गुस्सा था. खतरनाक इरादा था इसी सब की वजह से सुभाष ने कुछ ऐसा धमाका करने की सोची, जिस से वह सब से हिसाब बराबर कर सके. सुभाष को मोबाइल फोन चलाना अच्छी तरह आता था. उस ने गूगल व यूट्यूब से सर्च कर के बम बनाना और इस के लिए उपकरण बनाना सीखा. गूगल सर्च में ही उस ने मास्को (रूस) में बंधक बनाए गए बच्चों का वीडियो देखा.
वीडियो को देख कर उस ने भी मासूम बच्चों को बंधक बनाने की योजना तैयार की. इस के बाद वह तैयारी में जुट गया. उस ने अपने घर को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया. उस के पास तमंचा व राइफल पहले से ही थी. सुभाष ने कारतूस भी खरीद कर रख लिए. 30 जनवरी को उस की बेटी का बर्थडे था. उस ने दोपहर बाद से बच्चों को बर्थडे पार्टी में बुलाना शुरू कर दिया. 3 बजे तक 24 बच्चे उस के घर आ गए. इन बच्चों को उस ने तहखाने में बंधक बना लिया और धमकी दी कि शोर मचाया तो वह सब को बम से उड़ा देगा. घटना की जानकारी तब हुई, जब बबली अपने बच्चों को बुलाने गई. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने सर्च औपरेशन कर बंधक बच्चों को छुड़ाया और अपराधी को मार गिराया.
7 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने 5, कालिदास मार्ग स्थित आवास पर सभी 24 बच्चों को सम्मानित किया. योगी ने इस अवसर पर मारे गए सुभाष बाथम की बेटी गौरी की परवरिश सरकार द्वारा किए जाने की घोषणा की. इस के अलावा सिलेंडर बम का तार निकाल कर तहखाने में बंधक बच्चों की जान बचाने वाली 13 वर्षीया अंजलि को बतौर पुरस्कार 51 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की. उसे एक टैबलेट दे कर सम्मानित भी किया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित