Love Story : वैलेंटाइंस डे पर हर्ष ने अनुशा को गुलाब का फूल दे कर अपने प्यार का इजहार किया था, लेकन उस ने न ऐतबार किया और न स्वीकार. लेकिन जब हर्ष उस की फ्रैंड रितु से शादी करने लगा तो…

एमबीबीएस की पढ़ाई का पहला साल. प्रवेश प्रक्रिया पूरी होते ही हौस्टल में रहने आए सभी छात्र अपनी नई जीवनशैली के अनुकूल ढलने की कोशिश कर रहे थे. सभी के मन में नए साथियों से मिलने का आनंद था, साथ ही घर से दूर आ कर घर की याद भी सता रही थी. सभी स्टूडेंट घर और हौस्टल में संतुलन साधने का प्रयास कर रहे थे. इसी समिश्रित लगाव को मन में छिपाए हौस्टल से कालेज जा रहे गेट के पास तेजी से चली आ रही एक लड़की हर्ष से टकरा गई. उस लड़की ने झिझकते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं जरा जल्दी में थी. मेरा एडमिशन आज ही हुआ है. क्या आप बता देंगे कि एमबीबीएस फर्स्ट ईयर का लेक्चर हाल कहां है?’’

‘‘इट्स ओके. सेकेंड फ्लोर लेक्चर हाल नंबर 705.’’ हर्ष ने जवाब दिया.

‘‘थैंक्स.’’ कह कर लड़की पलभर में गायब हो गई. जैसेजैसे प्रवेश प्रक्रिया का काम पूरा हो रहा था, वैसेवैसे कालेज में नए चेहरे आते जा रहे थे. उस लड़की के कोमल मुलायम कंधे का स्पर्श और मधुर स्वर में हुआ संवाद हर्ष के हृदय को गति दे रहा था. लेक्चर हाल में दाखिल होते ही हर्ष की निगाहें स्टूडेंट्स के बीच उसी चेहरे को खोज रही थीं. आखिर पहली ही लाइन में वह चेहरा दिखाई दे गया. उस पर नजर पड़ते ही उस के हृदय की गति तेज हो गई. उस दिन के बाद हर्ष रोजाना उस चेहरे को निहारता रहता और मन ही मन तेज गति से धड़कते दिल की धड़कन को काबू करने की कोशिश करता रहता. इस के पहले उस ने किसी के लिए इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

हर्ष किसी भी तरह उस लड़की से बात करना चाहता था. उस की इस चाहत को पूरा करने में मदद की रितु ने. रितु और हर्ष एक शहर के रहने वाले तो थे ही, एक ही कालेज में साथ पढ़े थे. हर्ष ने रितु को पूरी बात बताई तो उस ने खुश हो कर कहा, ‘‘अनुशा मेरी बेस्ट फ्रैंड है. मैं उस से तुम्हारी बात तो करा दूंगी, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘इस के बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘इस के लिए तुम जो कहो, मैं करने को तैयार हूं.’’ हर्ष ने उत्तेजित हो कर कहा.

‘‘तुम्हें मेरी एनाटौमी का जर्नल लिखना होगा. इस के अलावा कैंटीन में रोज एक आइसक्रीम खिलानी पड़ेगी.’’

‘‘ओके डन.’’ हर्ष के हिसाब से सौदा बहुत सस्ते में पट गया था.

और रितु ने कैंटीन में हर्ष की मुलाकात अनुशा से करा दी, ‘‘इट इज नाइस टू मीट यू अगेन.’’ कहते हुए हर्ष की आंखों में अपार खुशी छलक रही थी.

‘‘हम दोनों अपने कालेज के पहले दिन मिले थे.’’ अनुशा ने जवाब दिया.

पता चला अनुशा भी उसी शहर की रहने वाली थी, जिस शहर के वे दोनों थे. थोड़ी बातचीत उस के बाद आइसक्रीम पार्टी कर के तीनों हौस्टल के लिए निकल गए. हर्ष अपने हौस्टल के कमरे की ओर जा तो रहा था, लेकिन उस के मन में अनुशा ही बसी थी. बस, इसी तरह मुलाकातें बढ़ती गईं. कभी कैंटीन में हर्ष और अनुशा के साथ रितु भी होती तो कभी सिर्फ हर्ष और अनुशा ही होते. हर्ष का मन अनुशा के साथ उत्कट प्रणय संबंध में बंध गया था, पर यह प्रणय एकतरफा था. सौदे के अनुसार हर्ष रितु का काम तो करता ही, अनुशा के भी उसे कई काम करने होते थे. कैंटीन में अनुशा और रितु के लिए नाश्ता और कौफी वही लाता था. पर वह चाह कर भी वह दिल की बात अनुशा से नहीं कह सका.

इसी तरह 3 साल बीत गए. चौथे साल के पहले सेमेस्टर की भी परीक्षा हो गई थी. सभी स्टूडेंट्स फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे. फाइनल एग्जाम अप्रैल-मई में होने थे. इसी बीच फरवरी का महीना आ गया. पे्रम करने वालों के लिए इस महीने की 14 तारीख महत्त्वपूर्ण होती है. जिन के वैलेंटाइन होते हैं, वे अपनेअपने वैलेंटाइन को गुलाब का फूल और उपहार देते हैं. यानी एक तरह से प्रेम का इजहार करते हैं. हर्ष ने अनुशा से अपने प्यार का इजहार करने के लिए इसी दिन को चुना, क्योंकि यह उस के लिए अंतिम चांस था. अगर इस बार वह चूक जाता तो फिर जल्दी मौका नहीं मिलता. क्योंकि एग्जाम के दौरान ऐसी बात नहीं की जा सकती थी. एग्जाम खत्म होते ही सब को अपनेअपने घर चले जाना था. हर्ष को पूरी उम्मीद थी कि अनुशा उस के प्यार को अस्वीकार नहीं करेगी.

आखिर 14 फरवरी यानी वैलेंटाइंस डे को कैंटीन में हर्ष ने अनुशा को गुलाब का फूल दे कर सहज रूप से हैप्पी वैलेंटाइंस डे कहा और अपने दिल की बात उस के सामने रखी, ‘‘अनुशा, मैं ने एक सपना देखा है कि शहर की पौश कालोनी में नदी के किनारे एक फ्लैट है. उस फ्लैट की गैलरी में तुम खड़ी हो और मैं शाम को तुम्हारे लिए कौफी बना कर लाता हूं. क्या तुम मुझे ऐसा मौका दोगी कि मैं तुम्हारे लिए रोज कौफी बनाऊं?’’

‘‘मतलब?’’ अनुशा की भौंहें तन गईं.

‘‘आई लव यू अनुशा. कालेज के पहले दिन ही तुम्हें देख कर मेरा दिल धड़कने लगा था. और अब यह हमेशाहमेशा के लिए सिर्फ तुम्हारी खातिर धड़कना चाहता है. तुम्हारे लिए इस में अनहद प्रेम है और सदा इसी तरह अनहद रहेगा.’’ कहते हुए हर्ष ने प्रेमभरी नजरों से अनुशा को देखा और उस के प्रत्युत्तर की राह तकने लगा.

‘‘हर्ष, मैं जो कहने जा रही हूं, तुम उस का बुरा मत मानना. मैं ने कभी भी तुम्हें एक फ्रैंड से ज्यादा नहीं माना. जीवनसाथी को ले कर मेरे मन में बड़ी अपेक्षाएं हैं, जिस में तुम्हारा साधारण और सामान्य रूप फिट नहीं बैठता. मुझे अपनी सुंदरता पर अभिमान तो नहीं है पर चाहती हूं कि मेरा जोड़ीदार ऐसा हो, जिस के साथ मैं खड़ी होऊं तो लोग कहें कितनी सुंदर जोड़ी है.’’ अनुशा ने अपनी बात स्पष्ट कर दी. अनुशा के इन शब्दों ने हर्ष के दिल की गति मंद कर दी थी. अनुशा संभवत: उस के प्रणय की परिभाषा नहीं समझ सकी थी. हर्ष को आघात तो लगा, पर वह दुखी होने का समय नहीं था. जिस के लिए वह अपना घरपरिवार छोड़ कर वहां आया था, वह काम जरूरी था. उसी दिन से हर्ष अपनी पढ़ाई में लग गया और उस ने पूरे मन से परीक्षा दी.

परीक्षा दे कर अनुशा अपने मामा के यहां चली गई, क्योंकि उन का अपना नर्सिंगहोम था. रितु और हर्ष अपने शहर लौट गए. क्योंकि उन के घर वालों की उन्हीं के शहर में जमीजमाई प्रैक्टिस थी. सभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए. एक दिन अचानक रितु ने अनुशा को फोन किया, ‘‘हैलो अनुशा, कैसी हो?’’

‘‘हाय वैनवी, बहुत मजे में तो नहीं हूं, फिर भी चल रहा है. बस, वही रूटीन क्लिनिक वर्क. तुम बताओ, आज सवेरेसवेरे कैसे याद कर लिया. कोई गुड न्यूज है क्या? क्योंकि तुम्हारी बातों में ही खुशी झलक रही है.’’

‘‘बहुत होशियार हो गई हो दिल्ली जा कर. तुम्हें तो बातों से सब पता चल जाता है. सुनो, 16 फरवरी को मेरी शादी है. तुम्हें आज ही यहां आना है. अभी मेरी सारी की सारी शौपिंग बाकी है. तुम्हारे आने के बाद ही शौपिंग शुरू करूंगी.’’

‘‘वाव दैट्स ग्रेट न्यूज. कौन है भाई वह भाग्यशाली, जो मेरी रितु को ले जा रहा है?’’ अनुशा के मन में भी खुशी भर गई थी.

‘‘तुम आ जाओ बस, सब बताऊंगी. तुम्हें लेने मैं एयरपोर्ट पर आऊंगी.’’ वर्षों बाद अनुशा से मिल कर सब कुछ बताने की उत्कंठा और खुशी रितु के चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी.

एयरपोर्ट पर रितु को देखते ही अनुशा उस के गले लग गई. दोनों की आंखों में हर्ष और खुशी टपक रही थी. गले लगेलगे ही अनुशा ने पूछा, ‘‘अब तो बताओ, कौन है वह खुशनसीब, यह सब कब तय हुआ?’’

‘‘धीरज रखो, तुम्हारे जीजाजी यहीं हैं. कार लाने पार्किंग में गए हैं. तुम खुद ही देख लेना मेरी पसंद.’’ रितु ने कहा. उस समय उस की आंखों में एक अजीब चमक थी.

दोनों बातें कर रही थीं, तभी उन के पास एक होंडा सिटी कार आ कर रुकी. अंदर से ब्लैक गोगल्स लगाए एक आकर्षक युवक बाहर निकला. वह आकर्षक युवक दोनों के नजदीक आ कर काला चश्मा उतारते हुए अनुशा की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘कैसी हो मिस अनुशा, पहचाना या नहीं?’’

अनुशा चौंकी. उस ने हैरानी से उस युवक को ताकते हुए कहा, ‘‘हर्ष तुम..? तुम कितने बदल गए हो? बहुत हैंडसम लग रहे हो, यह चमत्कार कैसे हुआ?’’

‘‘थोड़ी एक्सरसाइज, जिम और थोड़ी स्किन ट्रीटमेंट, क्योंकि आजकल लोगों को किसी चीज की गुणवत्ता की अपेक्षा पैकिंग में ज्यादा रुचि होती है.’’ हर्ष ने कहा और खिलखिला कर हंसने लगा. रितु ने भी हंसने में उस का साथ दिया. न चाहते हुए अनुशा को भी उन का साथ देना पड़ा क्योंकि वह समझ गई थी कि यह बात हर्ष ने उसी को लक्ष्य बना कर कही थी. कार में रितु आगे की सीट पर हर्ष के साथ बैठ गई. हर्ष ने उस का सीट बेल्ट बांधा और उस का हाथ पकड़ कर ‘आई लव यू’ कहा तो रितु ने भी उन्हीं शब्दों में जवाब दिया. अनुशा को यह अच्छा नहीं लगा, क्योंकि वह उतनी दूर से उसी के लिए आई थी. वह सोच रही थी कि रितु उस के साथ बैठेगी तो दोनों बातें करेंगी. चूंकि अब उन दोनों की शादी होने जा रही थी, इसलिए अनुशा ने अपने मन को मना लिया.

कार एयरपोर्ट से निकल कर रितु के घर की ओर चल पड़ी. रास्ते में रितु ने अनुशा की ओर देखते हुए कहा, ‘‘शादी तक तुझे मेरे घर पर ही रहना है. मैं ने अंकलआंटी से बात कर ली है.’’

‘‘ओके डियर रितु, जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा. मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी.’’ इस तरह खुशीखुशी अनुशा ने रितु की मांग मान ली. दोनों की बातचीत बंद करा कर हर्ष ने एक मैरिज हाल की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘देखो अनुशा, हमारी शादी यहीं होगी.’’

अनुशा ने उत्कंठा से खिड़की के बाहर देखा. उस के बाद बोली, ‘‘वाव, कितनी सुंदर जगह है. एकदम स्वर्ग जैसी.’’

मैरिज हाल देख कर अनुशा ने तारीफ तो की पर मन में एक अजीब तरह का असमंजस महसूस किया, लेकिन वह समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों हुआ. अनुशा के आते ही रितु शादी की तैयारी में मशगूल हो गई. अनुशा को साथ ले कर रितु शौपिंग के लिए निकल पड़ती. हर्ष भी उन के साथ होता. रितु के सभी शौपिंग बैग ले कर हर्ष उस के पीछेपीछे चलता. कुछ भी लेने से पहले रितु उस से पूछती और हर्ष सहर्ष उस की पसंद को सम्मान देता. सभी शौपिंग करतेकरते थक जाते तो हर्ष सब के लिए नाश्तापानी की व्यवस्था करता.

हर्ष और रितु एक ही प्लेट में नाश्ता करते. तब अनुशा को कालेज के दिनों की याद आ जाती. यहां फर्क बस इतना था कि तब हर्ष की आंखों में उस के लिए प्रेम छलकता था, जबकि अब वही प्रेम रितु के लिए था. शौपिंग कर के शाम को वापस आते तो अपने घर जाते समय हर्ष रितु का हाथ पकड़ कर उसे चूमते हुए ‘आई लव यू’ कहता. थोड़ा शरमाते हुए आंखें झुका कर रितु भी उन्हीं शब्दों को वापस करती. तब अनुशा कहती, ‘‘अरे ओ मेरे लैलामजनूं और रोमियो जूलियट, अब तुम्हारे विरह के कुछ ही दिन बचे हैं.’’

इस के बाद तीनों हंसने लगते. हंसते हुए हर्ष कार में बैठता और खुशीखुशी अपने घर चला जाता. एक दिन सवेरेसवेरे रितु ने कहा, ‘‘अनुशा, आज जल्दी तैयार हो जाना, शादी का जोड़ा पसंद करने चलना है. मैं तुम्हारी पसंद का जोड़ा लूंगी. लहंगाचोली भी एकदम मस्त पहनूंगी. उसे भी तुम्हें ही पसंद करना है. चलो, आज ही खरीद लेते हैं, क्योंकि फिटिंग में भी तो समय लगेगा.’’

रितु के आदेश के बाद अनुशा समय से तैयार हो गई. अनुशा ने रितु के लिए एक बहुत ही सुंदर शादी का जोड़ा पसंद किया. उस के बाद उस जोड़े को खुद ओढ़ कर दुकान में लगे दर्पण में खुद को देखा तो खयालों में खो गई. तभी रितु उस के लिए एक लहंगा चोली ले कर आई, ‘‘देखो अनुशा, मैं ने तुम्हारे लिए इसे पसंद किया है. कैसा लग रही है?’’

रितु के पुकारने से अनुशा का ध्यान भंग हुआ. उस ने लहंगाचोली की ओर निहारते हुए कहा, ‘‘बहुत सुंदर है. और यह जो मैं ने तुम्हारे लिए पसंद किया है, कैसा है?’’

‘‘बहुत सुंदर है अनुशा, तुम न होती तो शौपिंग करना, मेरे लिए कितना मुश्किल होता.’’

रितु की शौपिंग में अनुशा ने काफी मदद की थी. अनुशा रितु की मदद तो पूरे मनोयोग से कर रही थी, पर सहेली की शादी में जिस तरह खुश होना चाहिए, उस तरह खुश नहीं थी. उस के मन में एक टीस सी उठती रहती थी, जिसे वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. शादी के कुछ ही दिन बाकी रह गए थे. हर्ष कभीकभी रात को रितु के घर आ जाता और दोनों बालकनी में देर रात तक शीतल चांदनी में बैठ कर बातें करते. अनुशा बिस्तर पर रितु का इंतजार करते हुए करवटें बदलती रहती, साथ ही किसी तरह मन को समझाती रहती. 13 फरवरी की शाम को रितु ने अचानक कहा, ‘‘अरे अनुशा, मैं ने तुम्हें अपनी शादी का कार्ड तो दिखाया ही नहीं. देखो, यह हर्ष की शादी का कार्ड, जिसे मैं ने पसंद किया है और यह देखो मेरी शादी का कार्ड, जिसे हर्ष ने पसंद किया है.’’

अनुशा दोनों कार्ड हाथ में ले कर देखने लगी. एक कार्ड पर लिखा था—डा. हर्ष वेड्स डा. रितु और दूसरे पर लिखा था डा. रितु वेड्स डा. हर्ष. अनुशा ने डा. हर्ष के नाम पर हाथ फेरा. उस दिन अनुशा को अपने मन में होने वाली टीस का पता चल गया था. रितु के प्रति हर्ष का अनहद प्यार अब उस से देखा नहीं जा रहा था, क्योंकि ऐसा प्यार उस ने अब तक के जीवन में देखा नहीं था. अब शायद उसे अपनी उस बात पर अफसोस हो रहा था, जो उस दिन हर्ष से कही थी. अगर उस ने हर्ष का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो आज उस कार्ड में हर्ष के साथ रितु की जगह उस का नाम होता. अगले दिन 14 फरवरी यानी वैलेंटाइंस डे था. उसे वह दिन याद आ गया, जिस वैलेंटाइन डे को हर्ष ने उसे गुलाब का फूल दे कर अपने दिल की बात कही थी. अपनी कही बात को याद कर के उस का दिल दुखी हो गया.

एकदम से अनुशा के हृदय में हर्ष के लिए प्रेम उमड़ आया. वह रितु की जगह खुद को हर्ष के साथ रख कर सोचने लगी और एकदम से व्यग्र हो उठी. कार्ड देख कर उस की आंखों में आंसू भर आए थे, जिन्हें उस ने रितु से बड़ी होशियारी से छिपा लिया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अगले दिन का सामना कैसे करेगी. उस पूरी रात अनुशा हर्ष के बारे में सोचती रही. आंखों में बस हर्ष की यादें तैर रही थीं. वह पूरी रात उस ने नम आंखों में गुजारी. उस का मन हो रहा कि वह हर्ष से माफी मांग कर उसे ‘आई लव यू टू हर्ष’ कह कर उस के सीने पर सिर रख कर खूब रोए. पर अब यह संभव नहीं था. हर्ष तो अब किसी और की अमानत था.

अनुशा ने रात में ही तय कर लिया कि शादी की तो छोड़ो, वह कल वैलेंटाइंस डे को भी यहां नहीं रहेगी. क्योंकि वह हर्ष को रितु को गुलाब का फूल देते नहीं देख पाएगी. इसलिए उस ने तय कर लिया कि सवेरा होते ही वह मामा के यहां वापस चली जाएगी. अगर वह मम्मीपापा के यहां रही तो उसे शादी में आना पड़ेगा. अब वह हर्ष को किसी और का होता नहीं देख सकती. उठते ही उस ने अपना बैग पैक करना शुरू कर दिया. अनुशा को बैग पैक करते देख रितु ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अनुशा इस तरह अचानक, क्या हुआ? तुम बैग क्यों पैक कर रही हो? कहीं जा रही हो क्या?’’

‘‘मैं मामा के यहां वापस जा रही हूं. कारण मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ अनुशा ने नम आंखों को पोंछते हुए कहा.

‘‘पर कारण तो मैं अभी जानना चाहूंगी. जब तक कारण नहीं बताओगी, मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी. अब 4-5 दिनों की ही तो बात है.’’ रितु की बातों में अनुशा को रोकने की जिद थी.

‘‘रितु, मुझे माफ करना. मैं अब यहां बिलकुल नहीं रुक सकती.’’ अनुशा भी अपने निर्णय पर अडिग लग रही थी.

‘‘जब तक तुम सहीसही कारण नहीं बता देती, मैं तुम्हें यहां से जाने नहीं दे सकती. मैं कारण जानना चाहती हूं.’’ रितु भी इस तरह अचानक अनुशा द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में जानना चाहती थी.

रितु को जिद पर अड़ी देख कर अनुशा ने कहा, ‘‘तो सुनो, मैं भी हर्ष को उतना ही प्रेम करती हूं, जितना तुम. इसलिए मैं हर्ष की शादी तुम्हारे साथ होते देख नहीं सकती. आज वैलेंटाइंस डे है. वह तुम्हें गुलाब दे कर वैलेंटाइन डे मनाएगा, यह भी मुझ से देखा नहीं जाएगा. इसीलिए मैं जा रही हूं.’’

अनुशा की बातें सुन कर रितु जोर से हंसी. उस के बाद अपनी हंसी को रोकते हुए बोली, ‘‘अरे पगली, यही तो मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती थी.’’

‘‘मतलब?’’ अनुशा की भौंहें तन गईं.

‘‘अनुशा, मानव की सहज प्रवृत्ति ऐसी है कि जब अपना प्रेमी या प्रेमिका किसी अन्य से प्रेम न करने लगे, तब तक हम उस के प्रेम की कद्र नहीं करते.’’

रितु के होंठों पर अब खुशी उतर आई थी. उस ने अपनी बात को सरल बनाते हुए आगे कहा, ‘‘जैसे मंदगति से चल रहे हृदय को गति देने के लिए शौक देने की जरूरत पड़ती है, उसी तरह सुषुप्तावस्था में रहे तुम्हारे हर्ष के प्रति प्रेम को चेतना में लाने के लिए हमें यह हाई वोल्टेज ड्रामा करना पड़ा.’’

‘‘तो यह सब ड्रामा था?’’ अनुशा हैरानी से रितु को देखती रह गई.

रितु ने अनुशा को हकीकत बताते हुए कहा, ‘‘जब हर्ष ने तुम्हारे सामने प्यार का प्रस्ताव रखा तब शायद वह इस समय की तरह आकर्षक नहीं था. तुम ने उस के बाह्यरूप को देख कर उस के प्रेम को स्वीकार नहीं किया. तब तुम ने उस के सौम्य रूप और हृदय में अनहद प्रेम को नहीं देखा था. क्या प्रणय की परिभाषा समझाने के लिए किसी का आकर्षक होना जरूरी है. इस पूरी घटना की मैं साक्षी हूं. तुम ने उस के प्रेम को अस्वीकार तो कर दिया, पर हर्ष ने तुम्हारे हृदय में प्रणय का बीज तो रोप ही दिया था, जो तुम्हारे बातव्यवहार से पता चल रहा था. अब मुझे उस बीज को बड़ा वृक्ष बनाना था और मैं उस में कामयाब भी रही.

‘‘अरे वह पागल तो तुम्हारे मामा के यहां जाने के बाद जीवन से ही हार मान बैठा था. उस के लिए जिंदगी सिर्फ तुम थीं. मुझ से उस की दशा देखी नहीं गई इसलिए मेरे दिमाग में इस योजना ने आकार लिया. सब से पहले हर्ष को मनाया. अरे वह बेवकूफ तो इस नाटक में मेरा हाथ तक पकड़ने को तैयार नहीं था. किसी तरह उसे मनाया.

‘‘इस के बाद हम तुम्हारे मम्मीपापा से मिले. हर्ष उन्हें बहुत पसंद आया. उन्होंने इस संबंध के लिए हामी भर दी. उस के बाद हम ने उन्हें अपनी योजना बताई तो उन्होंने पूरा सहयोग करने का वचन दिया. अब तुम पूरा घटनाक्रम याद करो. तुम एयरपोर्ट पर उतरीं तो मैं ने तुम्हें तुम्हारे घर नहीं जाने दिया, क्योंकि तुम्हारे घर भी शादी की तैयारी चल रही है.

‘‘अगर तुम अपने घर जाती तो मेरी योजना पर पानी फिर जाता. शादी का जोड़ा भी तुम्हारी पसंद का खरीदा, क्योंकि उसे तुम्हें ही पहनना था. रही बात निमंत्रण कार्ड की तो मात्र एक कार्ड में मेरा और हर्ष का नाम लिखा है. बाकी के कार्ड तुम्हारे और हर्ष के नाम छपे हैं.’’

इतना कह कर रितु ने निमंत्रण कार्ड का बंडल ला कर अनुशा के सामने रख दिया. अनुशा ने जल्दी से बंडल खोल कर निमंत्रण कार्ड देखे, उन में लिखा था, ‘डा. अनुशा वेड्स डा. हर्ष’.

अनुशा की आंखें मारे खुशी के छलक उठीं.

‘‘और सुनो, तुम्हें बैग पैक करते देख मैं ने हर्ष को मैसेज कर दिया था. तुम्हारा वह फिल्मी हीरो तुम्हारे लिए गुलाब का बुके ले कर आ गया है. उसे हीरो बनाने में मेरा दिमाग है समझी.’’

अनुशा ने नम आंखों से रितु को बांहों में भर लिया. थैंक्स या इस तरह का कोई शब्द कहने की जरूरत नहीं थी. क्योंकि अनुशा की आंखों से ही सब व्यक्त हो रहा था. अनुशा दौड़ती हुई हर्ष के पास पहुंची. वह गुलाब का बुके लिए कार से टेक लगाए खड़ा उसी की राह देख रहा था. अनुशा ने उस के हाथ से बुके छीन कर उस के सीने से लगते हुए कहा, ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे हर्ष. हर्ष मैं ने एक सपना देखा है. शहर के पौश इलाके में नदी के किनारे एक फ्लैट है. उस फ्लैट की गैलरी में शाम को तुम खड़े हो और मैं तुम्हारे लिए कौफी बना रही हूं. क्या तुम रोज उस तरह अपने लिए कौफी बनाने का मौका दोगे? आई लव यू हर्ष.’’

हर्ष के दोनों हाथों ने अनुशा को जकड़ लिया था. अब मुंह से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं रह गई थी.

 

 

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