Web series in Hindi : ‘जिगरा’ एक इमोशनल ऐक्शन थ्रिलर है. यह फिल्म बहन (आलिया भट्ट) और भाई (वेदांग रैना) के अटूट प्यार को दर्शाती है. फिल्म में अपने भाई को बचाने के लिए आलिया अपनी जान की बाजी तक लगा देती है. फैक्ट के हिसाब से फिल्म की कहानी में कई ऐसे लूपहोल्स हैं कि…
निर्देशक: वासन बाला, निर्माता: करण जौहर, सोमेन मिश्रा, शाहीन भट्ट, सिनेमेटोग्राफर: स्वप्निल एस. सोनवणे, लेखक: वासन बाला, संगीत: वरुण ग्रोवर
कलाकार: आलिया भट्ट, वेदांग रैना, विवेक गोंबर, मनोज पाहवा, राहुल रविंद्रन, आकांक्षा कपूर, ओटीटी: नेटफ्लिक्स
आजकल अधिकांश फिल्में ऐसी आ रही हैं, जिस में लोग कंटेंट देखने आते हैं. वह एक निश्चित फार्मूलों
से भरा कंटेंट होता है. जिसे फिल्म बनाने वाले व दर्शक दोनों ही भलीभांति जानते हैं. क्योंकि फिल्म में क्या है, यह पूरी दास्तान टीजर ट्रेलर में बयां कर दी जाती है. ऐसी एक फिल्म ‘जिगरा’ सिनेमाघरों में 10 अक्तूबर, 2024 को रिलीज हुई. यहां से बुरी तरह फ्लौप हो गई.
वैसे तो यह बौक्स औफिस पर पहले ही फुस्स हो गई थी. इस के बाद 6 दिसंबर, 2024 को ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर भी आ गई है. फिल्म ‘जिगरा’ के डायरेक्टर वासन बाला हैं. वासन बाला बैंक में सर्विस करते थे. बैंक की नौकरी छोड़ कर फिल्मी दुनिया में दाखिल हुए. फिल्मों के निर्माण के चढ़ते सूरज अनुराग कश्यप को गुरु मान कर कार्य सीखने लगे. वासन बाला की फिल्म ‘जिगरा’ की कहानी पर टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार की पत्नी और एक्ट्रैस दिव्या कुमार घोसला ने अपनी फिल्म ‘सावि’ की स्टोरी से चुराए जाने का आरोप लगाया.
फिल्म ‘सावि’ और ‘जिगरा’ की कहानी मिलतीजुलती है. माना जाता है कि यह कहानी आलिया भट्ट के जरिए ही वासन बाला के पास आई होगी. क्योंकि फिल्म ‘सावि’ आलिया भट्ट के चाचा मुकेश भट्ट ने ही दिव्या कुमार को ले कर बनाई है. गलती इस में वासन बाला की कम और आलिया भट्ट की ज्यादा है.
पहले से ही जिस कहानी पर उन के ही घर में एक फिल्म बन रही है, उसी कहानी में भाईबहन के भावुक रिश्तों का तड़का लगा कर उन्हें बतौर निर्माता ऐलान नहीं करनी चाहिए थी. जिगरा की कहानी जैसी और भी फिल्में बन चुकी हैं. इस से पहले एक फ्रेंच फिल्म ‘पोअर ऐलें’ बनी हौलीवुड ने इसी फिल्म की रीमेक ‘द नेक्स्ट थ्री डेज’ बनाई.
इस की कहानी में एक पति अपनी पत्नी को जेल से छुड़ाने का प्रयास करते दिखाया गया है. ‘सावि’ फिल्म में इस का उलटा दिखाया गया है. इसी तरह ‘जिगरा’ फिल्म को ‘गुमराह’ फिल्म का रीमिक्स जैसा भी कहा जा रहा है. ‘गुमराह’ वर्ष 1993 में आलिया भट्ट के पिता महेश भट्ट ने बनाई थी. इस फिल्म की मुख्य भूमिका में श्रीदेवी हीरोइन थी, जबकि संजय दत्त इस फिल्म का हीरो था.
कहानी है वास्तविकता से दूर
‘जिगरा’ फिल्म हिंदी और तेलुगु भाषा में रिलीज हुई है. फिल्म में आलिया भट्ट ने सत्या आनंद का, वेदांग रैना ने अंकुर आनंद का, मनोज पाहवा ने शेखर भाटिया का तथा राहुल रवींद्रन ने मुथु का रोल किया है. फिल्म का निर्माण धर्मा प्रोडक्शंस और इंटरनैशनल सनशाइन प्रोडक्शंस के बैनर पर हुआ है. फिल्म की कहानी में कोई दम नहीं है. वहीं फिल्म का कमजोर पक्ष संगीत भी है. फिल्म के विलेन की भूमिका दमदार नहीं है. जिस तरह विलेन का आतंक होना चाहिए, फिल्म में स्थापित नहीं हो सका.
बड़ी सी सिगरेट पीते हुए दिखाना, जेल में हेडफोन लगा कर घूमने से कोई क्रूर खलनायक नहीं हो जाता. पूरी फिल्म में नायिका और खलनायक की आमनेसामने की कोई भिड़ंत नहीं दिखाई गई, बल्कि नायिका व सहायक कलाकारों से आपस में फाइटिंग दिखा दी गई है. इस तरह अंत तक भी कहानी व फिल्म में जान नहीं पड़ सकी. फिल्मी गानों का तड़का भी लगाया गया है.
फिल्म की शुरुआत 2 बच्चों से होती है. वे स्कूल से आते हुए दिखाए गए हैं. काफी देर तक सीढिय़ों पर चढऩे से पता चलता है कि मकान कई मंजिला है. फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद नहीं है. दरवाजा खोल कर जैसे ही बच्चे अंदर प्रवेश करते हैं. बच्चों के पापा का मुंह उन की तरफ होता है. बच्चों के पापा उल्टे ही बालकनी से नीचे सड़क पर गिर जाते हैं. इस से ऐसा लगता है कि बालकनी में खड़े हो कर आत्महत्या के लिए गिरने का इंतजार बच्चों के स्कूल से आने का कर रहे थे.
बच्चों में बड़ी लड़की है. फिल्म के सीन से लगता है कि लड़की को पहले से ही पता है कि उस के पापा क्या करने जा रहे हैं. वह अपने छोटे भाई को आंखें बंद करने को कहते हुए अपने हाथों से भाई की आंखें बंद कर लेती है. न बच्चे चीखते हैं न चिल्लाते हैं, न उन्हें देखने दौड़ते हैं.
कहानी में आगे बताया गया है कि सत्या की मां की पहले ही मृत्यु हो चुकी है. उस के बाद फिल्म की कहानी में मातापिता का कहीं कोई जिक्र नहीं है. ये दोनों व्यक्ति का किरदार कहानी में एक अनाथ के रूप में चुना गया है, जिन का संसार में कोई भाईबहन ही नहीं है. इस तरह दोनों बच्चों सत्या व अंकुर के मातापिता संसार में दोनों तनहा थे. कहानी के अनुसार बच्चों की मां भी अनाथ थी और पिता भी अनाथ ही थे.
फिल्म की कहानी में दोनों बच्चे सत्या व अंकुर भी अनाथ ही दिखाए गए हैं. अगले सीन में दोनों को युवा दिखाया जाता है. वह एक अमीर फेमिली में रहते हैं. सत्या तो उन का कारोबार भी संभालती है. बाद में बताया जाता है कि दोनों को बचपन में दूर के एक रिश्तेदारों ने अपने पास रख कर पालनपोषण किया है. रिश्तेदार कब, क्यों और कैसे ले गए, यह बात कहानी में शामिल नहीं है.
फिल्म में सत्या उस का पालनपोषण करने वाले दंपति को बड़े पापा (आकाशदीप) और बड़ी मम्मी (शीबा) कहते हैं. सत्या को करोड़ों के कारोबार की इस फेमिली के होटल का मैनेजर दिखाया गया है.
भाई अंकुर ने इंजीनियर की डिग्री हासिल की है. वह पढऩे में बहुत होशियार है. कोडिंग, कंप्यूटर व इलेक्ट्रौनिक्स में माहिर है. बड़े पापा अपने किसी रिश्तेदार के बेटे का विवाह कार्यक्रम अपने होटल में आयोजित करते हैं.
शादी समारोह पूरी तैयारी के बाद आयोजित हो चुका है. दूल्हा वहां मौजूद नहीं है. हीरोइन आलिया भट्ट अपने बड़े पापा के कहने से अपने कजिन दूल्हा यानी नकुल के पास जाती है. कजिन कहता है कि वह जिस लड़की से प्यार करता है, उस के साथ ही भाग रहा है.
इस सीन को फिल्माने में भी डायरेक्टर ने बड़ी चूक कर दी. नकुल आराम से कमरे में बैठा है. हीरोइन को देख कर कहता है कि भाग रहा हूं और भागने की कोशिश करता है. उस से पहले आराम से बैठा था. भागना होता तो प्रेमिका को ले कर भाग गया होता.
भले ही बाद में हीरोइन पकड़ कर ले आती. पूरी जानकारी होते हुए भी वह यहां पर भूमिका खलनायक की निभा रही है. वह पहले तो दूल्हे की थप्पडय़ाई करती है. फिर कहती है वह जो तेरी प्रेमिका कविता गर्भवती है, तेरा होने वाला ससुर उस को व होने वाले बच्चे को जान से मार देगा.
इस दौरान हीरोइन चेहरे से और भूमिका से भी खलनायिका ही नजर आ रही है. एक गरीब लड़की एक रईसजादे से मोहब्बत कर के गर्भवती हुई है. गरीब लड़की का साथ देना नायिका की भूमिका होनी चाहिए थी. क्या खलनायक की भूमिका हीरोइन अपने बड़े मम्मीपापा के पालनपोषण का एहसान चुकाने के लिए कर रही है?
फिल्म में एक ऐसे अपराधी जिस पर 24 केस दर्ज हैं, उस की बेटी से विवाह करने के लिए हीरोइन अपने कजिन को शादी के लिए रजामंद करती है, यह फिल्म में दिखाया गया है. जबकि ये बातें शादी समारोह के आयोजन से पहले फिल्माने की थीं.
अंकुर दोस्त के साथ क्यों करना चाहता था बिजनैस
अपने कजिन के विवाह समारोह में फिल्म का हीरो शामिल नहीं होता है. हीरोइन अपने भाई के पास जाती है. थोड़ी देर में ही अंकुर के मोबाइल पर बड़े पापा के बेटे कबीर मेहता का फोन आता है. सत्या फोन देख लेती है. सत्या नहीं चाहती कि कबीर से उस के भाई का मेलजोल बढ़े.
फिल्म के अगले सीन में कबीर सीधा अंकुर के कमरे में आता है. यहां पर वह एक गाली ‘साले’ का प्रयोग करता है. जिसे अपनापन दर्शाने के लिए फिल्माया गया है. आगे सीन में दिखाया गया है कि खलनायक की भूमिका निभा रही हीरोइन अपने बड़े पापा के कहने पर रिश्तेदार के भाई की गर्भवती प्रेमिका कविता के पास जाती है. उसे भरपूर रकम दे कर देश छोड़ कर इंग्लैंड भेजने की तैयारी कर देती है.
हीरोइन का काम पीडि़ता के लिए मांबाप तो क्या किसी से भी बगावत कर के उसे न्याय दिलाना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं दिखाया गया. फिल्म की कहानी में अब नया मोड़ आता है. कबीर अपने पिता मेहतानी के पास अंकुर को ले कर जाता है.
अंकुर कोडिंग वगैरह करता है. अंकुर चाहता है कि उस के बड़े पापा इस में कुछ इन्वेस्ट करें पर उस को पता था कि बड़े पापा उस के ऊपर तो कुछ इन्वेस्ट नहीं करेंगे. कबीर यानी कि बड़े पापा का बेटा, जोकि बहुत ही तेज था, अंकुर से दोस्ती उस ने इसीलिए कर रखी थी कि उस के फायदे में वह खुद का फायदा ढूंढ पाए. इसीलिए उस ने भी अपने पापा से अंकुर के साथ कारोबार करने के लिए प्रस्ताव रखा. उस के पापा मान भी गए.
इस कोडिंग प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करने के लिए सत्या कबीर को बिलकुल पसंद नहीं करती थी. वह नहीं चाहती है कि ये दोनों एक साथ रहें. मतलब कबीर अंकुर को अपना भाई ही नहीं, एक पक्का दोस्त होना भी दर्शाता है. मानो एक भाई की तरह एक परिवार की तरह.
अंकुर के प्रोजेक्ट को उस के बड़े पापा सहमति दे देते हैं और यह भी बोलते हैं कि तुम दोनों को एक कंट्री जाना पड़ेगा, जिस का नाम है हंसी दाओ, जहां पर हमारे प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं. तुम उधर जा कर अच्छे से काम कर सकते हो. प्रोजेक्ट अगर सक्सेसफुल बनता है तो तुम दोनों बच्चों का ही फ्यूचर सुधरेगा.
कबीर का पिता बहुत शातिर है. उसे पता था कि अंकुर जिस प्रोजेक्ट में काम कर रहा है, अगर वह सक्सेसफुल बना तो ये लोग बहुत पैसे छापेंगे. वह चाहता है कि उस के साथ मिल कर सारा क्रेडिट उस के बेटे यानी कबीर को मिल जाए.
खैर, सत्या नहीं चाहती थी कि उस का भाई अपने देश को छोड़ के किसी दूसरी कंट्री में जाए. वह अपने भाई को रोकना चाहती है, पर दिल से वह यह भी चाहती है कि वह बड़ा आदमी बने. उस का फ्यूचर अच्छा बने.
अंकुर के करिअर की बात थी, इसीलिए वह मान भी जाती है और बोलती है अच्छे से रहना. कोई भी प्राब्लम हो, तुम्हारी बहन तुम्हारे साथ हमेशा खड़ी मिलेगी.
इस से पहले दिखाया जाता है कि फिल्म की हीरोइन एक शर्त रखती है. वह अंकुर से कहती है कि बास्केटबाल खेलते हैं. अगर तू जीत जाए तो विदेश चले जाना और हार जाए तो मत जाना. अंकुर राजी हो जाता है. अंकुर गेम हार जाता है, परंतु वह शर्त को नहीं मानता और झुंझला कर खेल के मैदान से बाहर चला जाता है.
यहां पर खेल का सीन भी दमदार नहीं है. खेलने के दौरान हीरोइन की पोशाक फटने का सीन है. उस का किसी को कोई कारण नजर नहीं आया. इस गेम के बदले टौस उछालना भी दिखाया जा सकता था.
अंकुर बड़े पापा और मम्मी से कोई विशेष रूप से घुलामिला नहीं था. दोनों के सामने वह डरासहमा रहता है. पर उस की एक ढाल बन कर सत्या हमेशा आगे रहती. उस की बहन सत्या समाज की हर बुराई से अपने भाई को बचाती है. सत्या जब छोटी थी तो वह भी कमजोर थी. पर उसे मजबूत बनना पड़ा. इन के फादर के मरने के बाद ये लोग उन के बड़े पापा के साथ रहने लगते हैं. बड़े पापा की फेमिली ने इन को कभी नहीं अपनाया. मानो सोशल स्टेटस मेंटेन करने के लिए या समाज में टिके रहने के लिए उस के भाई के बच्चों को ही अपने पास रखते हैं. लेकिन इस के साथ ही दोनों से भेदभाव भी करते हैं. अपने बच्चों के साथ कभी भी इन बच्चों को नहीं बिठाया. अच्छे से बात नहीं की.
मनगढंत कहानी ने किया बोर
सत्या यह सब समझती है और हमेशा अंकुर के साथ बनी रहती है. उस को अपने काम से काम रखने की हिदायत देते हुए न चाहते हुए भी विदेश जाने के लिए विदा करती है. यह सीन भी ज्यादा भावनात्मक नहीं बन सका. यूं तो अंकुर अपनी बहन सत्या के गले लग जाता है, लेकिन सीन में भावनाएं अच्छे तरीके से उजागर नहीं हो सकीं. उस के बाद कबीर व अंकुर दक्षिणपूर्व एशियाई देश हंसी दाओ चले जाते हैं. कहानी में यह एक काल्पनिक देश है.
कबीर विदेश में अंकुर को ले कर काम के साथसाथ मस्ती भी करता है. एक दिन कबीर ने वहां पर किसी से कांटैक्ट कर के नशीले पदार्थ की एक छोटी सी पुडिय़ा मंगवा ली थी. यह बात अंकुर को पता नहीं थी. अंकुर और कबीर दोनों कार में बैठ कर घर जा रहे थे, तभी कबीर को सिग्नल पर दूसरी कार में एक लड़की दिखाई देती है. कबीर उस को हाय करता है. लेकिन वह लड़की उसे अंगुली का इशारा कर के बहुत तेज स्पीड में निकल जाती है. जिस के बाद कबीर उस का पीछा करने के चक्कर में गाड़ी बहुत तेज स्पीड से चलाने लगता है.
ओवर स्पीडिंग की वजह से पुलिस कबीर और अंकुर को पकड़ लेती है. पुलिस उन की तलाशी लेती है. तब कबीर की जेब से ड्रग की एक पुडिय़ा मिलती है. पुलिस द्वारा दोनों को हिरासत में ले लिया जाता है. पुलिस कबीर और अंकुर दोनों को थाने ले जाती है. यहां पर कहानी में यह बताया गया है कि पुडिय़ा एक पर बरामद हुई है और गिरफ्तार दोनों को किया गया है.
अंकुर यह कुबूल लेता है कि पुडिय़ा उस की थी, उस ने कबीर को दे दी थी. इस बयान पर पुलिस कबीर को छोड़ देती है और अंकुर को जेल भेज देती है. इसी बात पर अदालत अंकुर को सजा भी दे देती है. फिल्मकार की मनगढ़ंत कहानी में चूल से चूल नहीं मिली. इतना बेतुका कानून दिखाया गया है.
जब यह बात कबीर के पिता और अंकुर की बहन को मालूम होती है तो कबीर के पिता महतानी अपने वकील जसवंत को भेजता है और कहता है कि किसी भी तरह से दोनों को छुड़ा कर लाया जाए. वहां की स्थिति देख कर जसवंत कहता है कि वह दोनों में से एक को ही छुड़ा सकता है. तब मेहतानी कहता है कि किसी भी तरह से कबीर को छुड़ा लो अंकुर जाए भाड़ में.
वहां के कानून के अनुसार जसवंत, कबीर को समझता है कि उसे यह कहना है कि यह पुडिय़ा अंकुर की थी, तभी वह इस केस से बच सकता है. थोड़ी नानुकुर के बाद कबीर राजी हो जाता है. जसवंत अंकुर को समझाता है कि वह कबूल कर ले कि यह पुडिय़ा उस की थी. उस ने पुलिस से बचने के लिए कबीर की जेब में डाल दी थी. अंकुर मना कर देता है.
इस के बाद जसवंत इमोशनल कार्ड खेलता है. वह कहता है कि अपने भाई को बचाने के लिए तुम इतना सा काम भी नहीं कर सकते. तुम अगर एक्सेप्ट कर लोगे कि वह पुडिय़ा तुम्हारी ही थी तो तुम्हें सिर्फ 3 महीने की सजा होगी. जिस के बाद तुम्हें भी यहां से वापस इंडिया ले जाएंगे.
कबीर के ऊपर पहले भी भारत में ड्रग्स के केस लगे हैं, इसलिए यदि अंकुर ने सच बोला तो वह नहीं छूटेगा. वकील जसवंत कानून के जरिए नहीं, बल्कि धोखाधड़ी से अंकुर को फंसा कर कबीर को छुड़ा लाता है. कबीर और वकील चार्टर्ड फ्लाइट से उतर रहे होते हैं. कबीर अपनी कजिन सत्या को गले लगा कर अफसोस जाहिर कर रहा है लेकिन वकील जसवंत उसे इस तरह ले जाता है जैसे कि सत्या से कोई रंजिश हो गई हो.
उधर सत्या उसी हवाई जहाज में अपने भाई अंकुर के पास जाने के लिए बैठ रही है. यहां हवाई जहाज का सीन भी दिलचस्प नहीं है. न हवाई जहाज को उड़ते हुए दिखाया गया है, न उतारते हुए. इतने बड़े जहाज में 2 ही लोग आते हुए दिखाई दिए हैं और एक ही हीरोइन जाती हुई. हीरोइन जाने से पहले अपने बड़े पापा के औफिस में आग लगा कर उसे स्वाहा कर देती है.
यहां आग एक बच्चे को लगाते हुए दिखाया गया है. वह बच्चा कौन था और आग क्यों लगवाई गई, इस बात का जिक्र फिल्म की कहानी में कहीं नहीं है. जबकि हीरोइन अपने बड़े पापा से 2 करोड रुपए ले कर अपने भाई के पास जाने के लिए निकली थी. फिर उस ने अपने बड़े पापा के औफिस में आग क्यों लगवाई?
भाई को जेल से निकालने की रची साजिश
सत्या अपने भाई से जेल में मुलाकात करती है. मिलाई की प्रक्रिया बड़ी जटिल दिखाई गई है. मिलाई के समय चेहरे पर जो भावनात्मक उतारचढ़ाव होने चाहिए, डायरेक्टर को इस में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली. मिलाई के बाद वहां वकीलों से मानवाधिकार से संबंधित लोगों से मिलती है. वह कहते हैं कि अंकुर को जेल से नहीं छुड़ाया जा सकता. सत्या के इस देश में आने के बाद इस देश की भाषा और अंगरेजी में संवाद दिखाए गए हैं, जो समझ से परे हैं.
एक सीन उस के बाद एक प्रार्थना सभा का दिखाया जाता है. उस सभा में भाटिया भी शामिल है. सत्या भी उन के पास जा कर खड़ी होती है और उन से जो बात होती है, वह हिंदी में होती है. सत्या को कैसे पता कि यह आदमी हिंदुस्तानी है. इस से पहले जो भी बातें हो रही थीं, वह अंगरेजी में हो रही थीं. यहां भी डायरेक्टर की चूक हो गई.
इस सभा में बदमाश आ जाते हैं. तोडफ़ोड़ करते हैं. सत्या उन से नहीं डरती और एक बदमाश जो सत्या को उस्तरा दिखा कर धमका रहा था. सत्या उस के हाथ में उसी के उस्तरे को दबा देती है, जिस से वह घायल हो जाता है. यहां पर राहुल रविंद्रन यानी मुथु की एंट्री होती है. वह भी समझ जाता है कि दोनों हिंदुस्तानी हैं. बाद में पता चलता है कि मुथु की पैदाइश भी हिंदुस्तान की ही है. भाटिया गैंगस्टर है. उस का बेटा किसी केस में यहां जेल में बंद है. वह उसे छुड़ाने के लिए प्रयासरत है.
अगले सीन में एक होटल में सत्या और भाटिया की बातचीत के बीच मुथु भी शामिल हो जाता है. पता चलता है कि मुथु पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी करता था. उस ने एक नौजवान को पकड़ कर बंद किया. बाद में पता चला कि वह बेकुसूर है तो वह नौकरी से इस्तीफा दे कर उस नौजवान को छुड़ाने में लगा है.
फिल्म का यहां तक का पहला भाग तो ठीक चलता है, लेकिन दूसरे भाग में बड़ी बोरियत महसूस होती है, क्योंकि आलिया के विदेश पहुंचते ही फिल्म थोड़ी धीमी हो जाती है. ऐसा लगता है जैसे फिल्म को जबरदस्ती खींचा जा रहा है. अगर फिल्म की अवधि थोड़ी कम कर दी जाती तो यह परफेक्ट होती. फिल्म शुरू से ले कर आखिर तक गंभीर मोड़ में रहती है, जहां थोड़ा ब्रेक लिया जाना चाहिए था. बस एक चीज है जो फिल्म में अखर रही है, वो शुरू से ले कर आखिरी तक फिल्म काफी सीरियस रही. अगर बीच में इसे थोड़ा लाइट कर दिया जाता तो शायद यह और भी ज्यादा अच्छा होता.
जब भाटिया सत्या से मिला तो उसे मालूम हुआ कि उस से बड़ी गुंडी तो सत्या है. क्योंकि वो किसी से भी नहीं डरती है. सत्या यहां पर भाटिया से कहती है कि उसे अपने भाई को बाहर निकालना है. भाटिया उसे समझाने की कोशिश करता है कि एक बार नारकोटिक्स में कोई फंस जाता है तो वह जेल से वापस नहीं आता है. सत्या, मुथु और भाटिया तीनों का गठजोड़ हो जाता है.
तीनों मिल कर अंकुर, टोनी और चंदन को जेल से बचाने के लिए एक प्लान बनाने लगते हैं. इस से पहले सत्या और मुथु की फाइट दिखाई जाती है. हीरोइन के नाजुक हाथों से सहायक कलाकार की गरदन दबा कर बेहोश करने का सीन दिखाया गया है. आलिया भट्ट ऐक्शन अवतार में अपना दम दिखा नहीं पाई हैं. उस की कदकाठी उन के ऐक्शन को रियल और विश्वसनीय नहीं लगने देती. मुथु ने फाइट में हार मान ली और वह सत्या के साथ जेल में बंद लोगों को निकालने की प्लानिंग में शामिल हो जाता है.
दूसरी तरफ जेल में अंकुर बहुत ज्यादा उदास रहने लगा था. ऐसे ही एक दिन जब सभी कैदी वहां पर टेबल टेनिस खेल रहे थे, तभी एक कैदी के हैलो का जवाब न देने पर वह अंकुर का गिरेबान पकड़ लेता है. यह होते हुए वहां का जेलर यानी इस फिल्म का विलेन लांडा देख लेता है. लांडा के औफीसर्स उन दोनों को अलग करते हैं. वो उन औफीसर्स को बोलता है कि रयान को इस गुस्ताखी के लिए 10 कोड़े मारे जाएं.
सुरंग कर के जेल से भाग तो गए लेकिन…
तभी अंकुर कहता है कि यह गलत है. पहले समझाना चाहिए, न कि डायरेक्ट कोड़े मारना चाहिए. ऐसा रूल बुक में लिखा है. रूल बुक कब और कहां अंकुर ने पढ़ी और किस भाषा में थी, यह नहीं दिखाया गया. जैसे ही लांडा यह बात सुनता है वो औफीसर से कहता है कि रयान को छोड़ दो. तभी से वह अंकुर को आंट पर ले लेता है. वहीं रयान अंकुर को थैंक्स बोलता है. उस को बचाने से उन दोनों में अच्छी दोस्ती हो जाती है.
इसी दोस्ती के चलते वह अंकुर को यह भी बताता है कि वह, टोनी और चंदन बहुत दिनों से इस जेल से भागने का प्लान बना रहे हैं. अब वह उस को भी इस प्लान में शामिल करता है. वह बताता है कि मैडिकल वार्ड में एक बाथरूम है, जिस में कोई भी नहीं जाता. लोगों का ऐसा मानना है कि वहां पर भूत रहते हैं. इसलिए उन्होंने वहीं से एक सुरंग खोद रखी है, जोकि सीधे सिटी में बाहर निकलती है. अब उन का मिशन यह था कि वो चारों एक साथ मैडिकल वार्ड में पहुंचें और उस टनल के द्वारा बाहर निकल कर जेल से भाग जाएं.
लेकिन जेल प्रशासन किन्हीं कारणों से उन्हें एक साथ वहां जाने नहीं देता है. रयान ने यहां पर एक प्लान बनाया. वह अंकुर और टोनी के खाने में कुछ मिलवा देता है, जिस वजह से खाना खाने पर उन्हें फूड पौइजनिंग हो जाती है और उन की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ चुकी थी. यह जिस से औफीसर्स खुद ही उन्हें मैडिकल वार्ड में ले जाते हैं. देश में बहुत बड़ा त्यौहार था. सारे औफिसर्स छुट्टी पर थे. उन्हें वहां से बाहर निकलने में कोई दिक्कत नहीं हुई.
उधर जेल के बाहर सत्या मिस्टर भाटिया और मुथु ने भी प्लान बना लिया था. क्योंकि मुथु पहले जेल में एक औफीसर के रूप में काम कर चुका है. उसे जेल का नक्शा पूरी तरह से पता था कि कहां पर कैदियों को रखा जाता है. कहां जेल का मैडिकल वार्ड है और कहां जेल का किचन है. योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए एक चिट्ठी के माध्यम से जेल के अंदर अंकुर और बाकी सब से संपर्क करना था.
उन का प्लान भी उसी दिन का था, जब सारे औफीसर्स की छुट्टी थी. यानी कि अब दोनों की योजना सेम ही दिन थी. अब जब वह चिट्ठी वाला भोजन टोनी के पास पहुंचता है तो वह उसे तुरंत खा लेता है. उन्हें तो कुछ पता ही नहीं था कि बाहर उन के रिलेटिव्स ने भी उन को बचाने का प्लान बनाया है. अब क्योंकि टोनी ने वह चिट्ठी पढ़ी ही नहीं थी, बल्कि खा ली थी तो सत्या, भाटिया और मुथु का प्लान फेल हो जाता है. लेकिन रयान का प्लान सफल हो जाता है. वे लोग सुरंग से होते हुए सिटी के बाहर निकल जाते हैं.
चारों बहुत ज्यादा खुश होते हैं. वे सोचते हैं कि अब हमें रिहाई मिल गई है. मगर इंसपेक्टर लांडा को थोड़ाथोड़ा शक हो गया था. उसे पता चल जाता है कि वे लोग वहां से भाग चुके हैं. वह सारी जगह खबर कर देता है कि उन्हें जल्दी से जल्दी पकड़ा जाए. चारों लोग बाहर निकलने की खुशी मना ही रहे थे कि तभी पुलिस पहुंच जाती है. रयान वहां खड़े एक सिविलियन को पकड़ लेता है. उस के कनपटी पर एक औफीसर की गन तान देता है. सारे औफीसर्स पीछे हटने लगते हैं. तभी वहां लांडा आ जाता है. वह सीधे रयान के सर में गोली मार देता है. बचे हुए टोनी, अंकुर और चंदन को पुलिस फिर से जेल में डाल देती है.
जेल से भागने का उस देश में इतना बड़ा जुर्म कि इलैक्ट्रिक डेथ की सजा अगले दिन ही शाम को घोषित कर दी जाती है. जेल के नियम के अनुसार अगली सुबह सत्या के रूम पर 2 पुलिस वाले आते हैं. बताते हैं कि भगाने के आरोप में उन को सजा आज ही दी जाएगी. यह सुन कर भाटिया और मुथु बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं. सत्या कहती है कि आज शाम से पहले ही उस के भाई को कैसे भी बचा लेगी. वह मुथु से पूछती है कि पूरे देश की बिजली कहां से आती है तथा जेल की बिजली कहां से आती है. मुथु पूरी जानकारी दे देता है.
वह सत्या से यह पता नहीं करता कि यह बिजली संबंधी जानकारी वह क्यों कर रही है. सत्या तय करती है कि वह देश की और जेल के जेनरेटर दोनों की बिजली काट देगी. उस के बाद वह खुद एक ट्रक के जरिए जेल की ओर जाएगी. वहां पर एक बहुत बड़ा ब्लास्ट करेगी. भाटिया इस प्लान के लिए तैयार हो जाता है. मुथु इस प्लान के लिए राजी नहीं होता. वह कहता है कि इस तरह से तो 3 लोगों को बचाने के लिए वह जेल के 6 हजार क्रिमिनल्स को भी रिहा करवा देगी.
वह कहती है, हां उस को बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ता. उसे सिर्फ अपने भाई को बचाना है और इस के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है. वह मुथु से यह भी कहती है कि अगर उस ने उस के बीच में आने की कोशिश की तो वह उसे भी नहीं छोड़ेगी. यह सुन कर मुथु वहां से चला जाता है. इस प्लान की सारी तैयारियां हो जाती हैं. जब सत्या जेल पर अटैक करने के लिए फ्यूल के टैंकर को ठिकाने लगाने वाली थी तभी वहां पर मुथु आ जाता है. वह पुलिस वालों को यह बताने के लिए जाने लगता है कि अंकुर की बहन जेल पर अटैक करने जा रही है. सत्या उसे बीच में रोकती है. उस के साथ फाइट करने लगती है.
मुथु का कैरेक्टर यहां से कहानी में बदल जाता है. अब भारतीय लोगों की राष्ट्रभक्ति छोड़ कर अपने देश के लिए हीरो के रोल भारतीयों के लिए खलनायक की भूमिका में आ जाता है. मुथु भी यहां सत्या को बुरी तरह से मार रहा था. आखिर में सत्या उसे पहाड़ से नीचे फेंक देती है. दोनों ही नीचे गिर जाते हैं. यहां मुथु की जान चली जाती है. इन दोनों की फाइटिंग में कोई नयापन नहीं है. हीरोइन को तो बचाना ही था. अब यहां से जख्मी हालत के बाद सत्या भाटिया के पास पहुंची. दर्शकों के गले यह बात नहीं उतर रही कि निर्देशक वासन बाला ने इस फिल्म में 6 हजार खूंखार कैदियों वाली आधुनिक कड़ी सुरक्षा वाली जेल को तोडऩे के लिए नायक नहीं, बल्कि नायिका को क्यों चुना?
जेल में इस तरह किया ब्लास्ट
सत्या मिनटों सेकेंडों में दवाई खा कर और बैंडेड लगाने के बाद अपने मिशन के लिए पूरी तरह से रेडी थी. अब पूरे शहर की बिजली सप्लाई बंद कर दी गई थी. जेल को जो बिजली मिल रही है, वह जेनरेटर से मिल रही थी. फ्यूल भी जल्द खत्म होने वाला था. इतनी भी देर वह नहीं कर सकती थी, क्योंकि उधर दूसरी तरफ अंकुर को मौत की सजा सुनाई जा रही थी. इलैक्ट्रिक शौक दे कर उसे जान से मारने वाले थे.
सत्या ने 3 टैंकरों को जेल की तरफ छोड़ दिया था, जिस के अंदर बहुत सारे गैस के सिलेंडर रखे हुए थे. इस से पहले कि औफीसर लांडा इलैक्ट्रिक शौक वाली बटन दबा पाता, उस से पहले ही सारे ट्रक जेल में घुस जाते हैं. वहां पर एक बहुत बड़ा धमाका होता है. पूरी की पूरी बिजली चली जाती है और सारे कैदी भी अब जेल से बाहर आ जाते हैं.
वे पुलिस पर हमला कर देते हैं. यहां पर सत्या भी पहुंच चुकी है. दूसरी तरफ औफिसर लांडा तीनों को अलग सुरक्षित जगह ले जाता है. अंकुर को शूट कर के मारने वाला था, यहीं पर चंदन और टोनी औफीसर लांडा को रोक लेते हैं. फिर फाइट शुरू होती है. यहां फाइट अलग तरह की है. फिल्मों में हीरो को दिखाते हैं, कईकई लोगों से फाइट करते हुए. यहां खलनायक 3-3 हीरो से फाइट कर रहा है. तीनों को पीट रहा है.
सत्या अपने भाई अंकुर को ढूंढते हुए फाइटिंग वाले स्थान तक पहुंच जाती है. लांडा के ऊपर एक स्मोक ग्रेनेड मारती है. वह मरता नहीं, वहीं पर बेहोश हो जाता है. अंदर ये चारों लोग एक जगह पर फंस चुके थे. तभी भाटिया एक वैन को अंदर ले कर आता है. इन चारों को बिठा कर बाहर जाने लगता है. पुलिस वाले अभी भी गोलियां बरसा रहे थे. उन्हीं में से एक गोली भाटिया को लग जाती है.
गंभीर रूप से घायल भाटिया सत्या से कहता है कि वह बस टोनी का खयाल रखे. मेरी चिंता न करे. मैं सभी को संभाल लूंगा. आगे जा कर वह इन सभी को उतार देता है. भाटिया का भी यही अंत हो जाता है. यहां पानी का जहाज इन्हें तैयार मिलता है. यह समुद्र के रास्ते से मलेशिया जाने लगते हैं. मुथु का एक दोस्त नेवी में था. वह समुद्र में अपना जहाज ले कर तैयार मिलता है.
मलेशिया बौर्डर के पास वे पहुंच भी चुके थे, तभी पीछे से औफीसर लांडा बहुत सारे फोर्स को ले कर इन की तरफ बढ़ रहा था. इन के ऊपर गोलियां भी बरसा रहा था. ऐसा लग रहा था कि औफीसर लांडा इन चारों को मार डालेगा, लेकिन तभी यहां पर मलेशियन नेवी के सोल्जर आ जाते हैं. वे लांडा व उस के सारे साथियों को मार डालते हैं. मुथु ने अपने नेवी वाले दोस्त से पहले ही बात कर ली थी.
भारतीयों के खिलाफ खलनायक की भूमिका में आते ही वह मारा गया था, इसलिए वह मलेशिया के फौजी औफीसर अपने दोस्त से सत्या की मदद करने को मना नहीं कर पाया. यहां पर सत्या और उस के साथियों को बचा लेता है. इस तरह से ये चारों ही आजाद हो चुके थे. अपने घर इंडिया पहुंच चुके थे. अब ये तीनों सत्या के साथ ही रहते हैं. बड़े पापा, बड़ी मम्मी और उन के बेटे का रोल फिल्म में सत्या के इंडिया से बाहर विदेश चले जाने पर ही खत्म कर दिया गया था.
आलिया भट्ट
महिला प्रधान फिल्म ‘जिगरा’ में आलिया भट्ट ने हीरोइन की भूमिका निभाई है. 1993 में मुंबई में जन्मी आलिया खानदानी ऐक्टर है. उस के पिता महेश भट्ट दिग्गज फिल्म निर्मातानिर्देशक हैं. उस की पहली पत्नी के 2 बच्चे हुए थे. पूजा भट्ट और राहुल भट्ट. 1978 में महेश भट्ट के पहली पत्नी से संबंध विच्छेद हो गए. फिर उस ने साल 1986 में सोनी राजदान से शादी की. जो ब्रिटिश एक्ट्रैस और फिल्म डायरेक्टर है. इस से 2 बेटियां शाहीन भट्ट और आलिया भट्ट हैं.
पूजा भट्ट ने भी कई फिल्मों में काम किया, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सकी. आलिया के पास भारत की नागरिकता नहीं है, क्योंकि उस की मां भारत की नागरिक नहीं है. इसलिए आलिया भट्ट को भी यूके की नागरिकता मिली है. आलिया बचपन में मोटी हुआ करती थी. एकदम गोलमटोल होने की वजह से घर वालों ने उसे आलू बुलाना शुरू कर दिया था. आलिया बचपन में लड़कों जैसी ही दिखा करती थी.
आलिया ने अपनी स्कूली पढ़ाई जमनाबाई नरसी स्कूल से शुरू की. वह शुरू से ही क्लास मे औसत दरजे की छात्रा थी. उसे पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन स्कूल में होने वाले खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वह हिस्सा लिया करती थी, जिस में वह हर बार सफल होती थी.
आलिया को बचपन से ही ऐक्टिंग का बहुत शौक था. ऐश्वर्या राय, करीना कपूर और करिश्मा कपूर उस की आदर्श थीं. उन की फिल्में देख कर उसे ऐक्ट्रैस बनने की सीख मिलती थी. आलिया जब 9 साल की थी, तब उस ने संजय लीला भंसाली की एक मूवी में चाइल्ड आर्टिस्ट का रोल करने के लिए औडिशन दिया था, जिस में उसे रिजेक्ट कर दिया गया था.
फिल्मों में करिअर बनाने के लिए आलिया ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. वह 12वीं क्लास में थी, तभी उसे करण जौहर के डायरेक्शन में बनने वाली स्टूडेंट औफ द ईयर मूवी में लीड ऐक्ट्रैस का रोल करने के लिए औडिशन देने का औफर आ गया. इस मूवी में सिर्फ आलिया का ही नहीं, बल्कि 500 और कलाकारों का औडिशन लिया गया था. जिन में से आलिया को सिलेक्ट किया गया. उस वक्त आलिया की उम्र 17 साल थी.
आलिया का चयन करने के बाद करण जौहर ने आलिया से कहा कि तुम्हें अपना वजन कम करना होगा. तब आलिया ने 3 महीने में 16-17 किलोग्राम वजन कम किया. उस की पहली फिल्म साल 2012 में ‘स्टूडेंट औफ द ईयर’ आई थी, जो बौक्स औफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई थी. इस के बाद उस ने ‘हाईवे’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ आदि फिल्मों में अलगअलग तरह की भूमिकाएं निभाईं.
आलिया ने कभी इश्क छिपाने की कोशिश नहीं की. उस ने साल 2013 में खुलासा किया कि जब वह 11 साल की थी, तब वह ‘ब्लैक’ फिल्म के सेट पर औडिशन देने पहुंची थी. उस वक्त रणबीर कपूर संजय लीला भंसाली के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर रहा था. रणबीर को देखते ही आलिया का उस पर दिल आ गया था. उस ने उसी दिन रणबीर से शादी करने की बात तय कर ली थी.
उस के बाद जब उस ने ‘बर्फी’ फिल्म देखी तो उसे रणबीर से प्यार हो गया था. वहीं, ‘ब्रह्मास्त्र’ के सेट पर उस का इश्क परवान चढऩे लगा और आखिरकार मुकम्मल भी हो गया. उसे नहीं पता था कि उस का यह सपना एक दिन हकीकत में बदल जाएगा. आखिरकार आलिया भट्ट ने 14 अप्रैल, 2022 को रणबीर कपूर से शादी कर ली. नवंबर 2022 में इस कपल की एक बेटी हुई, जिस का नाम राहा है.
मनोज पाहवा
मनोज पाहवा जिगरा फिल्म में मुख्य भूमिका में है. उस का जन्म 8 दिसंबर, 1963 को हुआ था. मनोज पाहवा का पालनपोषण दिल्ली के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उन के पिता विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) से भारत आ गए थे. उन की शिक्षा दरियागंज, नई दिल्ली में नैशनल पब्लिक स्कूल में हुई. वह अपना घर बनवाने के बाद पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में रहता था. मनोज के पिता का आटोमोबाइल बैटरी का व्यवसाय था. वह चाहते थे कि वह पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो. लेकिन वह मुंबई चले गए. उस ने अभिनेत्री सीमा भार्गव से शादी की है, जो टीवी सीरीज ‘हम लोग’ में उन की सहकलाकार थी.
इन दोनों के प्यार और शादी की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. ‘हम लोग’ इन दोनों का ही पहला टीवी शो था. सीमा का बड़की का कैरेक्टर तो बहुत ज्यादा लोकप्रिय था. ‘हम लोग’ के बाद भी सीमा और मनोज थिएटर करते रहे. एक दिन आधेअधूरे नाटक की एक तसवीर खींची. तसवीर में 2 बच्चे भी थे, जो उस नाटक में इन के बच्चे बने थे.
चूंकि वह तसवीर बहुत अच्छी आई थी. इसलिए दोनों ही उस तसवीर की एकएक कौपी अपनेअपने घर ले गए. सीमा का परिवार तो नाटकों की दुनिया से अच्छी तरह से वाकिफ था. वहां इस तसवीर को देख कर कोई हैरान नहीं हुआ, लेकिन मनोज के घर में यह तसवीर पहुंचना बड़ी बात हो गई. वैसे मनोज ने वह तसवीर अपनी तरफ से अपने घर वालों को नहीं दिखाई. उन्होंने तो उस तसवीर को अपने कमरे में रख दिया था.
मगर एक दिन जब मनोज के पिता किसी काम से उस के कमरे में गए तो उन की नजर उस तसवीर पर पड़ी. उन्हें लगा कि मनोज ने शादी कर ली है. वह भी ‘हम लोग’ नाटक की कलाकार ‘बड़की’ से और उस के 2 बच्चे भी हो गए हैं. उन्होंने मनोज से कहा कि चलो जब शादी कर ही ली है तो अपने बीवीबच्चों को हम से मिलाने भी ले आओ. शुरुआत में तो मनोज को समझ ही नहीं आया कि यह किन बीवीबच्चों की बात कर रहे हैं. बाद में पता चला कि पिताजी उस तसवीर को देख कर मान बैठे हैं कि इन्होंने और सीमा ने शादी कर ली है. इन के 2 बच्चे भी हो गए हैं. घर में सभी ने यही मान लिया.
मनोज की छोटी बहन ने स्कूल में ले जा कर अपनी सहेलियों को तसवीर दिखा दी. उस ने गर्व प्रदर्शित करते हुए कहा कि मेरे भैया ने बड़की से शादी कर ली है. दोनों के 2 बच्चे भी हैं. उसी दौरान मनोज के पिता की अचानक मृत्यु हो गई. मनोज के नाटक ग्रुप के सभी लोग भी शोक मनाने उस के घर पहुंचे. उन में सीमा भी शामिल थी. मनोज ने अपनी बहन से चाय बनाने को कहा. शोकाकुल परिवार की हमदर्दी में सीमा (बड़की) चाय बनाने चली गई. इत्तफाक से तभी मनोज की बहन की स्कूल की कुछ सहेलियां भी घर आईं. उन्होंने सीमा को चाय बनाते हुए देखा. बहन की सहेलियों ने मान लिया कि यह बड़की तो वाकई में इस घर की बहू बन गई है.
लड़कियां जब अपनेअपने घर पहुंचीं तो उन्होंने यह पूरा माजरा अपने घर पर भी बताया. उन में से एक लड़की की मां सीमा की एक कजिन के साथ किसी स्कूल में पढ़ाया करती थी. अगले दिन स्कूल में उस लड़की की मां ने सीमा की कजिन से पूछा कि क्या ‘बड़की’ ने शादी कर ली है. उन्होंने कहा नहीं. बड़की की शादी होती तो क्या हमें नहीं पता होता. तब उस लड़की की मां बोली, ”तुम्हें कुछ नहीं पता है. बड़की ने ‘हम लोग’ के कलाकार टोनी से शादी कर ली है. मेरी बेटी ने उसे टोनी के घर में चाय बनाते देखा है.’’
यह बात सुन कर सीमा की कजिन को लगा कि हो सकता है, सच में सीमा ने शादी कर ली हो. हमें न बताया हो. वह सीमा की मां सरोज भार्गव के पास पहुंचीं. शिकायती लहजे में बोली कि सीमा की शादी हो गई और आप ने हमें बताया भी नहीं. तब सरोज भार्गव को पूरी बात बताई तो सरोज भार्गव भी सीमा पर शक होने लगा.
इस पूरी चर्चा से सीमा और मनोज एकदम बेखबर थे. इन दोनों को पता ही नहीं था कि उस नाटक वाले फोटो की वजह से इन के बारे में ऐसी बातें फैल रही हैं. मगर जब इन्हें पता चला कि उस फोटो की वजह से लोगों ने बड़ी गलतफहमी पाल ली है तो दोनों खूब हंसे. दोनों ने किसी तरह अपने फेमिली वालों को समझाया कि आप लोग जो समझ रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. मगर इस घटना के बाद दोनों के बीच प्यार का बीज पड़ गया. बीज अंकुरित हुआ. दोनों में दोस्ती हुई. फिर प्यार का पौधा फलनेफूलने लगा. बढिय़ा दोस्ती हो गई. फिर 3 साल तक रिलेशन में रहने के बाद दोनों ने आखिरकार शादी कर ली.
पाहवा ने टेलीविजन हास्य शृंखला की शुरुआत ‘जस्ट मोहब्बत’ और ‘औफिस औफिस’ टीवी धारावाहिकों से की. फिल्मों में अपने अभिनय करिअर की शुरुआत फिल्म ‘तेरे मेरे सपने’ से की थी. उस ने दरजनों टीवी सीरियल्स और फिल्मों में काम किया. मनोज पाहवा ने कामेडियन के साथसाथ खलनायक और संवेदनशील किरदार भी निभाए हैं.