Agra Crime : जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…
ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर. 2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.
2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी. अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा. दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई. राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए.
8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा. सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी. सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया. आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.
आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की. शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था. आनंद की तलाश में घर में घुसा आनंद आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था. सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.
25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था. अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था. आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.
जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था. दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई. दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था.
चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की. आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके. उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.
पहलापहला प्यार किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया. जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया. एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’
‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’
‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है. जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’
आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’
किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’
‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.
उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’
आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’
‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.
‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए. प्यार का जादू इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया.
दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा. 2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही. एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही. किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है. इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.
उस परिवार का लड़का दिल्ली में रह कर सोफे बनाने का काम करता था. उस लड़के व उस के परिवार को कविता पसंद आ गई. परिवार अच्छा होने की वजह से सरोज ने उस युवक से अपनी बेटी कविता की कोर्ट मैरिज करा दी. यह पिछले साल नवंबर की बात है. इधर किरन अब जब भी आनंद से मिलती तो विवाह करने की जिद करती. अब आनंद के लिए किरन को समझाना मुश्किल होने लगा. इसे ले कर वह तनाव में रहने लगा. कोराना वायरस का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ था. उस से बचाने के लिए भारत सरकार ने देश में लौकडाउन कर रखा था. उत्तर प्रदेश की बात करें तो ताज नगरी आगरा में कोरोना संक्रमितों की संख्या सब से अधिक थी. 21 अप्रैल की रात 9 बजे आगरा के थाना लोहामंडी क्षेत्र के हसनपुरा में रहने वाले वरुण प्रजापति ने गजानन नगर में रहने वाली डाक्टर गरिमा बंसल के घर के पास एक कार्टन बौक्स पड़ा देखा. आश्चर्य की बात यह थी कि वह बौक्स सफेद चादर में बंधा हुआ था.
वरूण ने आसपास के लोगों को बुलाया. लोगों के आने पर तरहतरह की बातें होने लगीं. यह रहस्य जानने को सभी बेकरार थे कि बौक्स में है क्या. पता चला कि वह कार्टन बौक्स दोपहर में वहां नहीं था, शाम को अंधेरा घिरने पर किसी ने उसे वहां डाला होगा. मामला संदिग्ध होने पर वरुण ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसपी सिटी रोत्रे बोहन प्रसाद व शाहगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. जहां बाक्स मिला था, वहां से महज एक किलोमीटर की दूरी पर थाना शाहगंज था. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने वहां पहुंचने के बाद एक पुलिसकर्मी को पीपीई किट पहना कर 2 फुट का वह कार्टन बौक्स खुलवाया. बौक्स खुलने पर उस में एक युवती की लाश मिली. मृतका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष रही होगी. उस के गले पर दबाने के निशान थे. मृतका ने नीले रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे. दाएं हाथ पर किरन लिखा था.
बौक्स पर जो चादर बंधी थी, और वह बौक्स किसी अस्पताल के लग रहे थे. बौक्स दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला था. चादर भी अस्पतालों में बिछाई जाने वाली थी. इस से लगा कि हत्यारे का कनेक्शन किसी हौस्पिटल से है. एक किलोमीटर तक के अस्पतालों की जानकारी एकत्र की गई तो ऐसा कोई हौस्पिटल नहीं मिला. मृतका की लाश के फोटो भी कोई नहीं पहचान पाया. मृतका की शिनाख्त नहीं हो पाई तो इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने लाश को मार्चरी में रखवा दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने वरुण प्रजापति से लिखित तहरीर ली और अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.
वह अभागी किरन ही थी अगले दिन एक महिला अपने बेटे के साथ शाहगंज थाने पहुंची और अपना नाम सरोज व बेटे का नाम सागर बताया. उन दोनों के अनुसार वे लाश मिलने की बात सुन कर थाने पहुंचे थे. सरोज की बेटी किरन घटना वाले दिन सुबह 10 बजे घर से निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी थी. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने उन्हें लाश का फोटो दिखाया तो सरोज रो पड़ी, वह लाश उस की बेटी किरन की ही थी. शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर राघव ने उन से किरन के बारे में पूछताछ की. लेकिन सरोज ने कुछ भी ऐसा नहीं बताया जो पुलिस के काम का होता. वह किरन के प्रेमसंबंधों को बदनामी के डर से छिपा गईं.
इंसपेक्टर राघव ने बौक्स मिलने के स्थान की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बाइक पर पीछे बौक्स रखे आता दिखाई दिया. उस इलाके की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखते हुए इंसपेक्टर राघव खुशी नेत्रालय तक पहुंच गए. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद चल था, लेकिन उन्हें यह जानकारी मिल गई कि उस नेत्रालय में कोई रहता है. वह नेत्रालय पहुंचे तो आनंद ने गेट खोला. पुलिस को वहां आया देख कर वह चौंका और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस से बच कर भाग नहीं पाया. पुलिस को उस की हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक भी वहीं खड़ी मिल गई. यह वही बाइक थी, जिस पर आनंद बौक्स रख कर फेेंकने ले गया था. उस के पास से किरन की पासबुक और आधार कार्ड भी बरामद हो गए.
थाने ला कर जब आनंद से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और हत्या की वजह बता दी. किरन ने शादी करने की बात को ले कर आनंद का जीना हराम कर दिया था. दिन रात बस एक ही रट कि शादी कर लो. जबकि आनंद पहले से ही शादीशुदा था, वह तो उस के साथ खेल रहा था. ऐसे में शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. 21 अप्रैल की सुबह 10 बजे किरन घर से अपनी मां से कह कर निकली कि वह आनंद से मिलने जा रही है. किरन सीधे वहां से खुशी नेत्रालय पहुंची. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद था. लेकिन आनंद अंदर अपने कमरे में मौजूद था. आनंद और किरन बैठ कर बात करने लगे. बात बात में ही शादी को ले कर दोनों में विवाद होने लगा.
दोपहर साढ़े 12 बजे आनंद ने प्लास्टिक की रस्सी से किरन का गला घोंट दिया, जिस से किरन की मौत हो गई. आनंद ने किरन के पैरों को उस के दुपट्टे से बांध दिया. फिर नेत्रालय में रखे एक 2 फुट के कार्टन बौक्स और सफेद चादर को उठा लाया. कार्टन बौक्स में आंखों के लेंस आते थे. उस बौक्स में उस ने किसी तरह किरन की लाश को ठूंसा और कार्टन बंद कर के उसे उसी प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया, जिस से उस ने किरन का गला घोंटा था. इस के बाद कार्टन बौक्स को सफेद चादर से बांध कर रख दिया और रात होने का इंतजार करने लगा. वह साढ़े 7 घंटे लाश को अपने कमरे में रखे रहा. रात 8 बजे उस ने बौक्स को अपनी हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक पर रखा और गजानन नगर में डा. गरिमा बंसल के घर के पास डाल दिया. फिर वहां से चला आया.
लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और पकड़ा गया. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद अतुल कुमार उर्फ आनंद को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.
(कथा पुलिस सूत्रों पर आधा