Uttar Pradesh Crime : समाजवादी पार्टी से एमएलसी कमलेश पाठक दबंग नेता थे. उन के पास करोड़ों की अचल संपत्ति थी. इस के बावजूद वह एक मंदिर की बेशकीमती जमीन को कब्जाना चाहते थे. मुनुवां चौबे और इलाके के लोग इस का विरोध कर रहे थे. शहर कोतवाल और चौकी इंचार्ज की मौजूदगी में उन के बीच ऐसा खूनी तांडव…
उत्तर प्रदेश के औरैया शहर के मोहल्ला नारायणपुर में 15 मार्च, 2020 को सुबहसुबह खबर फैली कि पंचमुखी हनुमान मंदिर के पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक ब्रह्मलीन हो गए हैं. जिस ने भी यह खबर सुनी, पुजारी के अंतिम दर्शन के लिए चल पड़ा. देखते ही देखते उन के घर पर भीड़ बढ़ गई. चूंकि पंचमुखी हनुमान मंदिर की देखरेख एमएलसी कमलेश पाठक करते थे और उन्होंने ही अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था, अत: पुजारी के निधन की खबर सुन कर वह भी लावलश्कर के साथ नारायणपुर पहुंच गए. उन के भाई रामू पाठक और संतोष पाठक भी आ गए.
अंतिम दर्शन के बाद एमएलसी कमलेश पाठक और उन के भाइयों ने मोहल्ले वालों के सामने प्रस्ताव रखा कि पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक इस मंदिर के पुजारी थे, इसलिए इन की भू समाधि मंदिर परिसर में ही बना दी जाए. यह प्रस्ताव सुनते ही मोहल्ले के लोग अवाक रह गए और आपस में खुसरफुसर करने लगे. चूंकि कमलेश पाठक बाहुबली पूर्व विधायक, दरजा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में वह समाजवादी पार्टी से एमएलसी थे. औरैया ही नहीं, आसपास के जिलों में भी उन की तूती बोलती थी, सो उन के प्रस्ताव पर कोई भी विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सका. नारायणपुर मोहल्ले में ही शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा चौबे रहते थे.
उन का मकान मंदिर के पास था. कमलेश पाठक व मुनुवा चौबे में खूब पटती थी, सो मंदिर की चाबी उन्हीं के पास रहती थी. पुजारी उन्हीं से चाबी ले कर मंदिर खोलते व बंद करते थे. मोहल्ले के लोगों ने भले ही भय से मंदिर परिसर में पुजारी की समाधि का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था किंतु शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे व उन के अधिवक्ता बेटे मंजुल चौबे को यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था. मंजुल भी दबंग था, मोहल्ले में उस की भी हनक थी. दरअसल, पंचमुखी हनुमान मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती जमीन बाजार से सटी हुई थी. शिवकुमार चौबे व उन के बेटे मंजुल चौबे को लगा कि कमलेश पाठक दबंगई दिखा कर पुजारी की समाधि के बहाने जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. चूंकि इस कीमती भूमि पर मुनुवा व उन के वकील बेटे मंजुल चौबे की भी नजर थी, सो उन्होंने भू समाधि का विरोध किया.
मंजुल चौबे को जब मोहल्ले वालों का सहयोग भी मिल गया तो कमलेश पाठक ने विरोध के कारण भू समाधि का विचार त्याग दिया. इस के बाद उन्होंने धूमधाम से पुजारी वीरेंद्र स्वरूप पाठक की शवयात्रा निकाली और यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया. शाम 3 बजे अंतिम संस्कार के बाद कमलेश पाठक वापस मंदिर परिसर आ गए. उस समय उन के साथ भाई रामू पाठक, संतोष पाठक, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, सरकारी गनर अवनीश प्रताप, कथावाचक राजेश शुक्ल तथा रिश्तेदार आशीष दुबे, कुलदीप अवस्थी, विकास अवस्थी, शुभम अवस्थी और कुछ अन्य लोग थे. इन में से अधिकांश के पास बंदूक और राइफल आदि हथियार थे. कमलेश पाठक ने मंदिर परिसर में पंचायत शुरू कर दी और शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे को पंचायत में बुलाया.
मुनुवा चौबे का दबंग बेटा मंजुल चौबे उस समय घर पर नहीं था. अत: वह बड़े बेटे संजय के साथ पंचायत में आ गए. पंचायत में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे से मंदिर की चाबी देने को कहा, लेकिन मुनुवा ने यह कह कर चाबी देने से इनकार कर दिया कि अभी तक मंदिर में तुम्हारा पुजारी नियुक्त था. अब वह मोहल्ले का पुजारी नियुक्त करेंगे और मंदिर की व्यवस्था भी स्वयं देखेंगे. मुनुवा चौबे की बात सुन कर एमएलसी कमलेश पाठक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दोनों के बीच विवाद होने लगा. इसी विवाद में कमलेश पाठक ने मुनुवा चौबे के गाल पर तमाचा जड़ दिया. मुनुवा का बड़ा बेटा संजय बीचबचाव में आया तो कमलेश ने उसे भी पीट दिया. मार खा कर बापबेटा घर चले गए. इसी बीच कुछ पत्रकार भी आ गए.
मंदिर परिसर में विवाद की जानकारी हुई, तो नारायणपुर चौकी के इंचार्ज नीरज त्रिपाठी भी आ गए. थानाप्रभारी एमएलसी कमलेश पाठक की दबंगई से वाकिफ थे, सो उन्होंने विवाद की सूचना औरैया कोतवाल आलोक दूबे को दे दी. सूचना पाते ही आलोक दूबे 10-12 पुलिसकर्मियों के साथ मंदिर परिसर में आ गए और कमलेश पाठक से विवाद के संबंध में आमनेसामने बैठ कर बात करने लगे. उधर अधिवक्ता मंजुल चौबे को कमलेश पाठक द्वारा पिता और भाई को बेइज्जत करने की बात पता चली तो उस का खून खौल उठा. उस ने अपने समर्थकों को बुलाया फिर भाई संजय,चचेरे भाई आशीष तथा चचेरी बहन सुधा को साथ लिया और मंदिर परिसर पहुंच गया.
पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक और मंजुल चौबे के बीच तीखी बहस होने लगी. इसी बीच मंजुल चौबे के समर्थकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी. एक पत्थर एमएलसी कमलेश पाठक के पैर में आ कर लगा और वह घायल हो गए. कमलेश पाठक के पैर से खून निकलता देख कर उन के भाई रामू पाठक, संतोष पाठक का खून खौल उठा. उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग शुरू कर दी. उन के अन्य समर्थक भी फायरिंग करने लगे. कमलेश पाठक का सरकारी गनर अवनीश प्रताप व ड्राइवर छोटू भी मारपीट व फायरिंग करने लगे. संतोष पाठक की ताबड़तोड़ फायरिंग में एक गोली मंजुल की चचेरी बहन सुधा के सीने में लगी और वह जमीन पर गिर कर छटपटाने लगी. चंद मिनटों बाद ही सुधा ने दम तोड़ दिया.
चचेरी बहन सुधा को खून से लथपथ पड़ा देखा तो मंजुल चौबे उस की ओर लपका. लेकिन वह सुधा तक पहुंच पाता, उस के पहले ही एक गोली उस के माथे को भेदती हुई आरपार हो गई. मंजुल भी धराशाई हो गया. फायरिंग में मंजुल गुट के कई समर्थक भी घायल हो गए थे और जमीन पर पड़े तड़प रहे थे. फिल्मी स्टाइल में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से इतनी दहशत फैल गई कि पुलिसकर्मी अपनी जान बचाने को भाग खड़े हुए. मीडियाकर्मी भी जान बचा कर भागे. जबकि तमाशबीन घरों में दुबक गए. खूनी संघर्ष के बाद एमएलसी कमलेश पाठक अपने भाई रामू, संतोष तथा अन्य समर्थकों के साथ फरार हो गए. खूनी संघर्ष के दौरान घटनास्थल पर कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी मय पुलिस फोर्स के मौजूद थे. लेकिन पुलिस नेअपने हाथ नहीं खोले और न ही किसी को चेतावनी दी.
हमलावरों के जाने के बाद कोतवाल आलोक दूबे ने निरीक्षण किया तो 2 लाशें घटनास्थल पर पड़ी थीं. एक लाश शिवकुमार चौबे के बेटे मंजुल चौबे की थी तथा दूसरी उस की चचेरी बहन सुधा की. घायलों में संजय चौबे, अंशुल चौबे, अंकुर शुक्ला तथा अजीत एडवोकेट थे. सभी घायलों को कानपुर के हैलट अस्पताल भेजा गया. कोतवाल आलोक दूबे ने डबल मर्डर की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित, सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव तथा डीएम अभिषेक सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा कोतवाल आलोक दूबे से जानकारी हासिल की. डीएम अभिषेक सिंह ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया जबकि एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.
चूंकि डबल मर्डर का यह मामला अति संवेदनशील था और कातिल रसूखदार थे. इसलिए एसपी सुश्री सुनीति ने घटना की जानकारी आईजी (कानपुर जोन) मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर आसपास के थानों की पुलिस फोर्स तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए. डबल मर्डर से चौबे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. शिवकुमार चौबे उर्फ मुनुवा मंदिर परिसर में बेटे की लाश के पास गुमसुम बैठे थे. वहीं संजय भाई की लाश के पास बैठा फूटफूट कर रो रहा था. आशीष चौबे भी अपनी बहन सुधा के पास विलाप कर रहा था. संजय चौबे व उन की बहन रागिनी एसपी सुश्री सुनीति के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि हमलावरों को जल्दी गिरफ्तार करो वरना वे लोग इस से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं.
एसपी सुनीति मृतकों के घर वालों को हमलावरों की गिरफ्तारी का भरोसा दे ही रही थीं कि सूचना पा कर एडीजी जयनारायण सिंह तथा आईजी मोहित अग्रवाल घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर एसपी सुनीति ने घटना के संबंध में जानकारी ली. पुलिस अधिकारी इस बात से आश्चर्यचकित थे कि पुलिस की मौजूदगी में फायरिंग हुई और 2 हत्याएं हो गईं. उन्होंने सहज ही अंदाजा लगा लिया कि हमलावर कितने दबंग थे. आईजी मोहित अग्रवाल ने घटनास्थल पर मौजूद मृतकों के घर वालों से बात की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे ने बताया कि बाहुबली कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करना चाहता था. जबकि उन का परिवार व मोहल्ले के लोग विरोध कर रहे थे.
पुजारी की मौत के बाद वह मंदिर की चाबी मांगने आए थे. इसी पर उन से विवाद हुआ और पुलिस की मौजूदगी में कमलेश पाठक, उन के भाइयों तथा सहयोगियों ने फायरिंग शुरू कर दी. मुनुवा चौबे ने आरोप लगाया कि अगर पुलिस चाहती तो फायरिंग रोकी जा सकती थी. लेकिन शहर कोतवाल आलोक दूबे एमएलसी कमलेश पाठक के दबाव में थे. इसलिए उन्होंने न तो हमलावरों को चेतावनी दी और न ही उन के हथियार छीनने की कोशिश की. शिवकुमार उर्फ मुनुवा चौबे का आरोप सत्य था, अत: आईजी मोहित अग्रवाल ने एसपी सुनीति को आदेश दिया कि वह दोषी पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करें.
आदेश पाते ही सुनीति ने कोतवाल आलोक दूबे तथा चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी को निलंबित कर दिया. इस के बाद जरूरी काररवाई पूरी कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. बवाल की आशंका को भांपते हुए पुलिस ने रात में ही पोस्टमार्टम कराने का निश्चय किया. इसी के मद्देनजर पोस्टमार्टम हाउस में भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई थी. इस दुस्साहसिक घटना को आईजी मोहित अग्रवाल तथा एडीजी जयनारायण सिंह ने बेहद गंभीरता से लिया था. दोनों पुलिस अधिकारियों ने औरैया कोतवाली में डेरा डाल दिया. हमलावरों को ले कर औरैया शहर में दहशत का माहौल था और मृतकों के घर वाले भी डरे हुए थे.
दहशत कम करने तथा मृतकों के घर वालों को सुरक्षा देने के लिए पुलिस अधिकारियों ने पुलिस का सख्त पहरा लगा दिया. एक कंपनी पीएसी तथा 4 थानाप्रभारियों को प्रमुख मार्गों पर तैनात किया गया. इस के अलावा 22 एसआई व 48 हेडकांस्टेबलों को हर संदिग्ध व्यक्ति पर निगाह रखने का काम सौंपा गया. घर वालों की सुरक्षा के लिए 3 एसआई और आधा दरजन पुलिसकर्मियों को लगाया गया. तब तक रात के 10 बज चुके थे. तभी एसपी सुनीति की नजर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे 2 वीडियो पर पड़ी. वायरल हो रहे वीडियो संघर्ष के दौरान हो रही फायरिंग के थे, जिसे किसी ने मोबाइल से बनाया था. एक वीडियो में एमएलसी का गनर अवनीश प्रताप सिंह एक युवक की छाती पर सवार था और पीछे खड़ा युवक उसे डंडे से पीटता दिख रहा था.
उसी जगह कमलेश पाठक गनर की कार्बाइन थामे खड़े दिख रहे थे. दूसरे वायरल हो रहे वीडियो में कमलेश पाठक के भाई संतोष पाठक व अन्य फायरिंग करते नजर आ रहे थे. वीडियो देख कर एसपी सुनीति ने गनर अवनीश प्रताप सिंह को निलंबित कर दिया. साथ ही साक्ष्य के तौर पर दोनों वीडियो को सुरक्षित कर लिया. पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर औरैया कोतवाली में हमलावरों के खिलाफ 3 अलगअलग मुकदमे दर्ज किए गए. पहला मुकदमा मृतका सुधा के भाई आशीष चौबे की तहरीर पर भादंवि की धारा 147, 148, 149, 307, 302, 504, 506 के तहत दर्ज किया गया. इस मुकदमे में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष पाठक, रामू पाठक, रिश्तेदार विकल्प अवस्थी, कुलदीप अवस्थी, शुभम अवस्थी, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, कथावाचक राजेश शुक्ला तथा 2 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया.
दूसरी रिपोर्ट चौकी इंचार्ज नीरज त्रिपाठी ने उपरोक्त 9 नामजद तथा 10-15 अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कराई. उन की यह रिपोर्ट 7 क्रिमिनल ला अमेडमेंट एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आरोपियों के खिलाफ तीसरी रिपोर्ट आर्म्स एक्ट की धाराओं में दर्ज की गई. आईजी मोहित अग्रवाल व एडीजी जयनारायण सिंह ने नामजद अभियुक्तों को पकड़ने के लिए एसपी सुनीति, एएसपी कमलेश दीक्षित तथा सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव की अगुवाई में 3 टीमें बनाईं. इन टीमों में तेजतर्रार इंसपेक्टर, दरोगा व कांस्टेबलों को शामिल किया गया. सहयोग के लिए एसओजी तथा क्राइम ब्रांच की टीम को भी लगाया गया. हत्यारोपी बाहुबली एमएलसी कमलेश पाठक औरैया शहर के मोहल्ला बनारसीदास में रहते थे, जबकि उन के भाई संतोष पाठक व रामू पाठक पैतृक गांव भड़ारीपुर में रहते थे जो औरैया से चंद किलोमीटर दूर था.
गठित पुलिस टीमों ने आधी रात को भड़ारीपुर गांव, बनारसीदास मोहल्ला तथा विधिचंद्र मोहल्ला में छापा मारा और 6 नामजद अभियुक्तों को मय असलहों के धर दबोचा. सभी को औरैया कोतवाली लाया गया. पकड़े गए हत्यारोपियों में एमएलसी कमलेश पाठक, उन के भाई संतोष, रामू, गनर अवनीश प्रताप सिंह, ड्राइवर लवकुश उर्फ छोटू तथा कथावाचक राजेश शुक्ला थे. 3 हत्यारोपी शुभम अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा कुलदीप अवस्थी विधिचंद्र मोहल्ले में रहते थे. वे अपनेअपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस के हाथ नहीं आए. पुलिस ने पकड़े गए अभियुक्तों के पास से एक लाइसेंसी रिवौल्वर, 13 कारतूस, 4 तमंचे 315 बोर व 8 कारतूस, सेमी राइफल व 23 कारतूस, गनर अवनीश प्रताप सिंह की सरकारी कार्बाइन व उस के कारतूस बरामद किए.
16 मार्च की सुबह मंजुल चौबे व सुधा चौबे का शव पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस सुरक्षा के बीच उन के नारायणपुर स्थित घर लाया गया. शव पहुंचते ही दोनों घरों में कोहराम मच गया. पति का शव देख कर आरती दहाड़ें मार कर रो पड़ी. आरती की शादी को अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उस का सुहाग उजड़ गया था. उस की गोद में 3 माह की बच्ची थी. मंजुल चौबे की बहनें रश्मि, रागिनी व रुचि भी शव के पास बिलख रही थीं. सुबह 10 बजे मंजुल व सुधा की शवयात्रा कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हुई. सुरक्षा की जिम्मेदारी सीओ (सिटी) सुरेंद्रनाथ यादव को सौंपी गई थी. अंतिम यात्रा में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था,
जिसे संभालना पुलिस के लिए मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद शवयात्रा यमुना नदी के शेरगढ़ घाट पहुंची, वहीं पर दोनों का अंतिम संस्कार हुआ. एसपी सुनीति ने गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ की. इस पूछताछ के आधार पर इस खूनी संघर्ष की जो कहानी प्रकाश में आई, उस का विवरण कुछ इस प्रकार है—
गांव भड़ारीपुर औरैया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र में आता है. ब्राह्मण बहुल इस गांव में राम अवतार पाठक अपने परिवार के साथ रहते थे. सालों पहले भड़ारीपुर इटावा जिले का गांव था. जब विधूना तथा औरैया तहसील को जोड़ कर औरैया को नया जिला बनाया गया, तब से यह भड़ारीपुर गांव औरैया जिले में आ गया. राम अवतार पाठक इसी गांव के संपन्न किसान थे. उन के 3 बेटे रामू, संतोष व कमलेश पाठक थे. चूंकि वह स्वयं पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को भी पढ़ायालिखाया. तीनों भाइयों में कमलेश ज्यादा ही प्रखर था. उस की भाषा शैली भी अच्छी थी, जिस से लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. कमलेश पाठक पढ़ेलिखे योग्य व्यक्ति जरूर थे, लेकिन वह जिद्दी स्वभाव के थे. अपने मन में जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा कर के ही मानते थे. यही कारण था कि 20 वर्ष की कम आयु में ही औरैया कोतवाली में उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया था.
कुछ साल बाद कमलेश और उन के भाई संतोष और रामू की दबंगई का डंका बजने लगा. लोग उन से भय खाने लगे. अपनी फरियाद ले कर भी लोग उन के पास आने लगे थे. जो काम पुलिस डंडे के बल पर न करवा पाती, वह काम कमलेश का नाम सुनते ही हो जाता. जब तक कमलेश गांव में रहे, तब तक गांव में उन की चलती रही. गांव छोड़ कर औरैया में रहने लगे तो यहां भी अपना साम्राज्य कायम करने में जुट गए. उन दिनों औरैया में स्वामीचरण की तूती बोलती थी. वह हिस्ट्रीशीटर था. गांव से आए युवा कमलेश ने एक रोज शहर के प्रमुख चौराहे सुभाष चौक पर हिस्ट्रीशीटर स्वामीचरण को घेर लिया और भरे बाजार में उसे गिरागिरा कर मारा.
इस घटना के बाद कमलेश की औरैया में भी धाक जम गई. अब तक वह स्थायी रूप से औरैया में बस गए थे. बनारसीदास मोहल्ले में उन्होंने अपना निजी मकान बनवा लिया. दबंग व्यक्ति पर हर राजनीतिक पार्टी डोरे डालती है. यही कमलेश के साथ भी हुआ. बसपा, सपा जैसी पार्टियां उन पर डोरे डालने लगीं. कमलेश को पहले से ही राजनीति में रुचि थी, सो वह पार्टियों के प्रमुख नेताओं से मिलने लगे और उन के कार्यक्रमों में शिरकत भी करने लगे. वैसे उन्हें सिर्फ एक ही नेता ज्यादा प्रिय थे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव. सन 1985 के विधानसभा चुनाव में कमलेश पाठक को औरैया सदर से लोकदल से टिकट मिला. इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और 28 वर्ष की उम्र में विधायक बन गए. लेकिन विधायक रहते सन 1989 में उन्होंने लोकदल के विधायकों को तोड़ कर मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी.
इस के बाद से वह मुलायम सिंह के अति करीबी बन गए. लोग उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहने लगे थे. वर्ष 1990 में सपा ने उन्हें एमएलसी बनाया और 1991 में कमलेश दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री बने. सन 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह ने कमलेश पाठक को कानपुर देहात की डेरापुर सीट से मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन के सामने थे भाजपा से भोले सिंह. यह चुनाव बेहद संघर्षपूर्ण रहा. दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में जम कर गोलियां चलीं. इस के बाद ब्राह्मणों ने एक मत से कमलेश पाठक को जीत दिलाई. तब से उन्हें ब्राह्मणों का कद्दावर नेता माना जाने लगा.
चुनाव के बाद मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद मुलायम सिंह ने औरैया को जिला बनाने के नियम को रद्द कर दिया. इस पर कमलेश ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. उन्होंने जिला बचाओ आंदोलन छेड़ कर जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह औरैया में सभा करने आए तो उन्होंने गोलियां बरसा कर उन के हैलीकाप्टर को सभास्थल पर नहीं उतरने दिया. एक घंटा हेलीकाप्टर हवा में उड़ता रहा, तब कहीं जा कर मानमनौव्वल के बाद उतर सका. इस घटना के बाद मुलायम सिंह नाराज हो गए, लेकिन दबंग नेता की छवि बना चुके कमलेश पाठक के आगे उन की नाराजगी ज्यादा दिन टिक न सकी. सन 2007 में नेताजी ने उन्हें पुन: टिकट दे दिया, लेकिन कमलेश दिबियापुर विधानसभा सीट से हार गए.
साल 2009 में कमलेश पाठक ने जेल में रहते सपा के टिकट पर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा पर हार गए. इस के बाद उन्होंने साल 2012 में सिकंदरा विधानसभा से चुनाव लड़ा, पर इस बार भी हार गए. हारने के बावजूद वर्ष 2013 में कमलेश पाठक को राज्यमंत्री का दरजा दे कर उन्हें रेशम विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. इस के बाद 10 जून 2016 को समाजवादी पार्टी से उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना कर भेजा. वर्तमान में वह सपा से एमएलसी थे. सपा सरकार के रहते कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई से अवैध साम्राज्य कायम किया. उन्होंने ग्राम समाज के तालाबों तथा सरकारी जमीनों पर कब्जे किए. उन्होंने पक्का तालाब के पास नगरपालिका की जमीन पर कब्जा कर गेस्टहाउस बनवाया. साथ ही औरैया शहर में 2 आलीशान मकान बनवाए. अन्य जिलों व कस्बों में भी उन्होंने भूमि हथियाई.
जिले का कोई अधिकारी उन के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. कमलेश की राजनीतिक पहुंच से उन के भाई संतोष व रामू भी दबंग बन गए थे. दबंगई के बल पर संतोष पाठक ब्लौक प्रमुख का चुनाव भी जीत चुका था. दोनों भाइयों का भी क्षेत्र में खूब दबदबा था. सभी के पास लाइसैंसी हथियार थे. कमलेश पाठक की दबंगई का फायदा उन के भाई ही नहीं बल्कि शुभम, कुलदीप तथा विकल्प अवस्थी जैसे रिश्तेदार भी उठा रहे थे. ये लोग कमलेश का भय दिखा कर शराब के ठेके, सड़क निर्माण के ठेके तथा तालाबों आदि के ठेके हासिल करते और खूब पैसा कमाते. ये लोग कदम दर कदम कमलेश का साथ देते थे और उन के कहने पर कुछ भी कर गुजरने को तत्पर रहते थे.
कमलेश पाठक ने अपनी दबंगई के चलते धार्मिक स्थलों को ही नहीं छोड़ा और उन पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया. औरैया शहर के नारायणपुर मोहल्ले में स्थित प्राचीन पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी कमलेश पाठक ने अपना कब्जा जमा लिया था. साथ ही वहां अपने रिश्तेदार वीरेंद्र स्वरूप पाठक को पुजारी नियुक्त कर दिया था. कमलेश की नजर इस मंदिर की एक एकड़ बेशकीमती भूमि पर थी. इसी नारायणपुरवा मोहल्ले में पंचमुखी हनुमान मंदिर के पास शिवकुमार उर्फ मुनुवां चौबे का मकान था. इस मकान में वह परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे संजय, मंजुल और
3 बेटियां रश्मि, रुचि तथा रागिनी थीं. तीनों बेटियों तथा संजय की शादी हो चुकी थी. मुनुवां चौबे मोहल्ले के सम्मानित व्यक्ति थे. धर्मकर्म में भी उन की रुचि थी. वह हर रोज पंचमुखी हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते थे. पुजारी वीरेंद्र स्वरूप से उन की खूब पटती थी. पुजारी मंदिर बंद कर चाबी उन्हीं को सौंप देता था. मुनुवां चौबे का छोटा बेटा मंजुल पढ़ाई के साथसाथ राजनीति में भी रुचि रखता था. उन दिनों कमलेश पाठक का राजनीति में दबदबा था. मंजुल ने कमलेश पाठक का दामन थामा और राजनीति का ककहरा पढ़ना शुरू किया. वह समाजवादी पार्टी के हर कार्यक्रम में जाने लगा और कई कद्दावर नेताओं से संपर्क बना लिए. कमलेश पाठक का भी वह चहेता बन गया.
मंजुल औरैया के तिलक महाविद्यालय का छात्र था. वर्ष 2003 में उस ने कमलेश पाठक की मदद से छात्र संघ का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस के बाद मंजुल ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. उस ने अपने दर्जनों समर्थक बना लिए. अब उस की भी गिनती दबंगों में होने लगी. इसी महाविद्यालय से उस ने एलएलबी की डिग्री हासिल की और औरैया में ही वकालत करने लगा. मंजुल के घर के पास ही उस के चाचा अरविंद चौबे रहते थे. उन के बेटे का नाम आशीष तथा बेटी का नाम सुधा था. मंजुल की अपने चचेरे भाईबहन से खूब पटती थी. सुधा पढ़ीलिखी व शिक्षिका थी. पर उसे देश प्रदेश की राजनीति में भी दिलचस्पी थी.
मंजुल की ताकत बढ़ी तो कमलेश पाठक से दूरियां भी बढ़ने लगीं. ये दूरियां तब और बढ़ गईं, जब मंजुल को अपने पिता से पता चला कि कमलेश पाठक मंदिर की बेशकीमती भूमि पर कब्जा करना चाहता है. चूंकि मंदिर मंजुल के घर के पास और उस के मोहल्ले में था, इसलिए मंजुल व उस का परिवार चाहता कि मंदिर किसी बाहरी व्यक्ति के कब्जे में न रहे. वह स्वयं मंदिर पर आधिपत्य जमाने की सोचने लगा. पर दबंग कमलेश के रहते, यह आसान न था. 16 मार्च, 2020 को थाना कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त कमलेश पाठक, रामू पाठक, संतोष पाठक, अवनीश प्रताप, लवकुश उर्फ छोटू तथा राजेश शुक्ला को औरैया कोर्ट में सीजेएम अर्चना तिवारी की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें इटावा जेल भेज दिया गया.
दूसरे रोज बाहुबली कमलेश पाठक को आगरा सेंट्रल जेल भेजा गया. रामू पाठक को उरई तथा संतोष पाठक को फिरोजाबाद जेल भेजा गया. लवकुश, अवनीश प्रताप तथा राजेश शुक्ला को इटावा जेल में ही रखा गया. 18 मार्च को पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप अवस्थी, विकल्प अवस्थी तथा शुभम को भी गिरफ्तार कर लिया. उन्हें औरैया कोर्ट में अर्चना तिवारी की अदालत मे पेश कर जेल भेज दिया गया. म
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित