America : अमेरिका जा कर भविष्य बनाने और मोटा पैसा कमाने का सपना देखने वालों में अधिकतर पंजाब और हरियाणा के लोग एजेंटों के जरिए ‘डंकी रूट’ अपनाते रहे हैं. जबकि वे वहां के अवैध प्रवासी होते हैं. नई ट्रंप सरकार पहले दिन से ही उन के खिलाफ सख्ती अपनाने लगी, जिस से उन की उम्मीदों पर पानी फिर गया. लाखों रुपया खर्च करने के बावजूद बेडिय़ों में लौटे लोगों की आपबीती दुखद दास्तान बन गई, साथ ही जालसाजी का एक ऐसा कुरूप चेहरा भी सामने आया कि…
कपूरथला जिले के भोलाथ इलाके की रहने वाली 30 वर्षीय लवप्रीत अपने 11 वर्षीय बेटे के भविष्य को ले कर टेंशन में थी. उस ने इलाके के कई लोगों के अमेरिका में अच्छी आमदनी वाली नौकरी और रोजगार मिलने के बारे में सुन रखा था. कुछ साल पहले उस का पति भी अमेरिका जा चुका था. उसे मालूम हुआ था कि वहां डालर में कमाई होती है.
एक डालर करीब 87 रुपए के बराबर होता है. वहां सामान्य काम करने वाले को काम के अनुसार 7 से 15 डालर प्रति घंटे के हिसाब से पैसा मिलता है. अगर कोई व्यक्ति टेक्निकल काम का जानकार है और उसे किसी कंपनी में नौकरी मिल गई तो सालाना 40 से 50 हजार डालर की सैलरी हो सकती है.
लवप्रीत की इच्छा थी कि उस का बेटा भी अमेरिका जा कर कामधंधा सीखे और वहीं काम करे. उस के पति की भी यही मंशा रही कि वह अपने परिवार को जितना जल्द हो सके, अमेरिका बुला ले. इस के लिए उस ने तैयारी की थी. पैसे इकट्ठे कर लिए थे. लवप्रीत भी अपनी पुश्तैनी जमीन बेच कर कुछ पैसे जमा कर चुकी थी. अपने बेटे के साथ अमेरिका जाने की तैयारी तब पूरी हो गई थी, जब उस के पति ने भी उन्हें अमेरिका लाने के लिए एजेंटों को 1.05 करोड़ रुपए दे दिए थे.
इसी साल 2 जनवरी, 2025 को लवप्रीत कौर और उस के किशोर बेटे प्रभुजोत ने बेहतर भविष्य की उम्मीदों के साथ पंजाब से संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा शुरू की थी. एजेंट ने उन्हें सीधे अमेरिका पहुंचाने का वादा किया था, लेकिन उन्हें खतरनाक ‘डंकी रूट’ अपनाने के लिए मजबूर कर दिया, जिस में उन्हें कई देशों से हो कर गुजरना पड़ा.
इस यात्रा के दौरान वे कोलंबिया, अल साल्वाडोर, ग्वाटेमाला और मैक्सिको से होते हुए 27 जनवरी को अमेरिका पहुंच तो गए, लेकिन अमेरिकी सीमा पर अधिकारियों ने उन्हें मैक्सिको के रास्ते अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश करते हुए पकड़ लिया. लवप्रीत 25 दिनों तक जंगलों और खतरों से जूझते हुए अमेरिका पहुंची थी. अमेरिकी सेना ने उन्हें 5 दिन एक कैंप में रखा था. इस के बाद उन्हें हिरासत में ले कर 2 फरवरी को अन्य 104 भारतीयों के साथ भारत वापस भेज दिया गया. उन की जितनी सुखद यात्रा पंजाब से शुरू हुई थी, उतनी ही दुखद और पीड़ादायक यात्रा पंजाब लौटने की थी.
एक महीने से अधिक समय बाद ही उस की सभी उम्मीदें टूट गईं, क्योंकि वह और उस का बेटा उन 104 निर्वासितों में शामिल थे, जो 5 फरवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका वायु सेना की उड़ान से अमृतसर पहुंचा दिए गए. लवप्रीत की आपबीती उन लोगों के लिए भी अब सबक बन चुकी है, जो अमेरिका जाने के लिए एजेंटों की मदद लेते हैं और वे उन के द्वारा डंकी रूट पर धकेल दिए जाते हैं.
उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि डंकी रूट से गुजरते हुए उन्हें बहुत परेशानियां उठानी पड़ीं. उन का सफर बेहद खतरनाक था. यात्रा का खतरनाक सफर कोलंबिया पहुंचने के बाद शुरू हुआ. हमें कोलंबिया के मेडेलिन ले जाया गया और लगभग 2 सप्ताह तक वहां रखा गया, उस के बाद हमें एक फ्लाइट से सैन साल्वाडोर (एल साल्वाडोर की राजधानी) ले जाया गया. वहां से हम 3 घंटे से ज्यादा पैदल चल कर ग्वाटेमाला पहुंचे, फिर टैक्सियों से मैक्सिकन सीमा तक पहुंचे. 2 दिन मैक्सिको में रहने के बाद आखिरकार हम 27 जनवरी, 2025 को अमेरिका पहुंचे.
अमेरिकी सीमा पर 27 जनवरी को पहुंचने के बाद जब उन्होंने अमेरिका में प्रवेश करने की कोशिश की तो सीमा सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया. यह उन के लिए और भी मुश्किल का मोड़ था. अमेरिका पहुंचते ही सेना के सुरक्षा अधिकारियों ने उन से सिम कार्ड और यहां तक कि झुमके और चूडिय़ां जैसे छोटे गहने भी उतारने को कहा. लवप्रीत ने बताया कि वह पहले से ही अपना सामान रास्ते में पडऩे वाले दूसरे देश में गंवा चुकी थी, इसलिए उन के पास जमा करने के लिए कुछ भी नहीं था. उन्हें 5 दिनों तक एक शिविर में रखा गया और 2 फरवरी को उन की कमर से ले कर पैरों तक को जंजीरों से बांध दिया गया. हाथों में हथकडिय़ां लगा दी गईं. केवल बच्चों को बख्शा गया.
उन्हें सेना के विमान में बैठा दिया गया. विमान में उन के अतिरिक्त और लोग भी थे. सैन्य विमान में 40 घंटे की यात्रा के दौरान संचार सुविधा नहीं होने के कारण वह और भी परेशान हो गई. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां ले जाई जा रही है. किसी ने नहीं बताया कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. आसपास बैठे लोगों को भी कुछ जानकारी नहीं थी कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है?
आखिरकार जब वह भारत पहुंची और अमृतसर हवाई अड्ïडे पर उतरी तो यह उन के लिए एक सदमा था. उन्हें अमृतसर हवाई अडïï्डे पर बताया गया कि वे भारत पहुंच गए हैं. तब ऐसा लगा जैसे हमारे सपने एक पल में बिखर गए. लवप्रीत दुखी हो गई, लेकिन उस के वश में कुछ नहीं था. उस की आंखों के सामने सिर्फ बड़े कर्ज का बोझ नजर आ रहा था. साथ ही बेटे के भविष्य की चिंता फिर से सताने लगी. उन्होंने मीडिया को बताया कि हमारे फेमिली वालों ने एजेंट को भुगतान करने के लिए एक बड़ा कर्ज लिया था. उम्मीद थी कि हमारा भविष्य बेहतर होगा. अब सब कुछ बरबाद हो गया है. हमें बताया गया था कि हम जल्द ही कैलिफोर्निया में अपने रिश्तेदारों के पास होंगे, लेकिन अब मेरे पास दर्द के अलावा कुछ नहीं बचा है.
लवप्रीत और उस के परिवार के पास कपूरथला में 1.5 एकड़ जमीन है, जहां वह अपने बुजुर्ग सासससुर के साथ रहते हैं. अमेरिका जा कर उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद में घरपरिवार, संपत्ति लुटाने वाली लवप्रीत कौर की तरह सैकड़ों लोग हैं, जिन में अधिकतर पंजाब और हरियाणा के लोग हैं. फरवरी माह में 3 सप्ताह के भीतर कुल 332 भारतीय नागरिकों को अमेरिका ने अवैध करार देते हुए वापस अपने सेना के विमानों से वापस भेज दिया. सभी एजेंटों के माध्यम से सीधे अमेरिका पहुंच गए थे. उन में ज्यादातर डंकी रूट से भेजे गए.
जसपाल ने सुनाई आपबीती
डंकी रूट से अमेरिका जाने वाले जसपाल सिंह जब अमृतसार के श्री गुरु रामदास इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर पहुंचे, तब बेहद हताश थे. कारण, वह करीब एक महीने पहले ही अमेरिका गए थे. इस से पहले वह एजेंट के माध्यम से करीब 2 साल तक 30 लाख रुपए खर्च कर इंगलैंड में गुजार चुके थे. यहां तक कि वह दुबई में 8 सालों तक रह चुके हैं.
घर में जसपाल की पत्नी गुरप्रीत कौर, बेटा दिलप्रीत सिंह और बेटी अर्शदीप सिंह हैं. उस के पिता नरिंदर सिंह की कुछ समय पहले मौत हो चुकी है. वह परिवार के अच्छे भविष्य के लिए अमेरिका गया था. उस का भाई जिंदर सिंह एसजीपीसी में काम करता है. अमेरिका से लौटे हर भारतीय की कहानी दर्दनाक है. इन में कुछ पीडि़त वैसे लोग भी हैं, जिन की यात्रा ब्राजील से शुरू हुई. उन्हें वहीं 6 महीने तक फंसे रहने के बाद अवैध रूप से अमेरिका में सीमा पार करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्हें 24 जनवरी को अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने गिरफ्तार कर लिया और वहां से निर्वासित कर दिए गए. इस से पहले उन्हें 11 दिनों तक हिरासत में रखा गया था.
इसी सिलसिले में डंकी रूट का नया तरीका भी सामने आया. 3 लोगों का गुजराती परिवार अमेरिका में पकड़ा गया था. उन की जांच में पता चला कि मानव तस्करों के एक अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट में कनाडा के कम से कम 260 कालेज शामिल हैं. इन कालेजों ने कनाडा के रास्ते अमेरिका जाने के लिए ‘अवैध प्रवासियों’ को छात्र वीजा जारी किए थे. उन के लिए यह डंकी रूट की तुलना में ज्यादा सुविधाजनक माना गया. हालांकि, इस के लिए 50-60 लाख रुपए चुकाने होते हैं.
गुजरात पुलिस के अनुसार यात्रियों को अमेरिका की दक्षिणी सीमा तक पहुंचने में मदद करने के लिए एजेंटों को 40 लाख रुपए से ले कर 1.25 करोड़ रुपए तक का भुगतान किया था. तस्करों के नेटवर्क में कई एजेंट मिल कर काम करते हैं. गांव और जिला स्तर पर काम करने वाले एजेंट छोटे खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले एक सरगना संचालित करते हैं.
भारत लौटे एक पीडि़त व्यक्ति को ट्रैवल एजेंट ने धोखा दिया था. एजेंट ने उसे अमेरिका में कानूनी प्रवेश का वादा किया था, लेकिन अवैध तरीके से वहां भेजा. उस ने बताया कि उसे एजेंट ने उचित वीजा के साथ भेजने के लिए कहा था, लेकिन एजेंट ने धोखा दिया. सौदा 30 लाख रुपए में तय हुआ था. विभिन्न राज्यों से 104 अवैध अप्रवासियों को ले कर अमृतसर में उतरी अमेरिकी सैन्य विमान की पहली खेप में में हरियाणा, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के लोग थे. उन में 19 महिलाएं और 13 नाबालिग शामिल थे. एक 4 साल का लड़का तथा 5 और 7 साल की 2 लड़कियां भी थीं.
हरविंदर सिंह की पत्नी कुलजिंदर कौर की शिकायत है कि उन के पास जो कुछ भी था, उसे बेच कर उन्होंने एजेंट को पैसे चुकाए, लेकिन एजेंट ने उन्हें धोखा दिया. अब न केवल उन के पति को निर्वासित कर दिया गया है, बल्कि उन पर बहुत बड़ा कर्ज भी लद गया है. कपूरथला के बहबल बहादु में गुरप्रीत सिंह के परिवार ने उन्हें विदेश भेजने के लिए अपना घर गिरवी रख दिया और पैसे उधार लिए थे. फतेहगढ़ साहिब के रहने वाले जसविंदर सिंह के परिवार ने उन्हें विदेश भेजने के लिए 50 लाख रुपए खर्च किए. अब उन्हें ऊंची ब्याज दरों पर लिए गए कर्ज का भुगतान करना है.
यह भी ध्यान देने की बात है कि पंजाब के जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला और नवांशहर जिले में ‘एनआरआई बेल्ट’ हैं, जहां हर साल बड़ी संख्या में प्रवासी विदेशी देशों में जाते हैं.
डंकी रूट में लाशें
भारत लौटने के बाद ये लोग न केवल अपने मुश्किल जीवन की कहानियां बयां कर रहे हैं, बल्कि डंकी रूट के खतरनाक रास्ते के बारे में भी बता रहे हैं. वे बताते हैं कि अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचने में उन्हें कितनी परेशानी हुई और रास्ते में उन्हें किस तरह के मंजर देखने को मिले. यहां तक कि रास्ते में पड़ी लाशें देख कर तो उन के होश ही उड़ गए. पंजाब के होशियारपुर जिले के तहली गांव के मूल निवासी हरविंदर सिंह ने अपनी दास्तान सुनाई. उन्होंने बताया कि उन को एजेंट ने अमेरिका में वर्क वीजा देने का वादा किया था, जिस के लिए उन्होंने 42 लाख रुपए का भुगतान किया था. आखिरी समय में उन को बताया गया कि वीजा नहीं आया और बाद में उन्हें दिल्ली से कतर और फिर ब्राजील तक लगातार हवाई यात्रा करनी पड़ी.
ब्राजील में बताया गया कि उसे पेरू से एक फ्लाइट में बिठाया जाएगा, लेकिन वहां से ऐसी कोई फ्लाइट नहीं थी. फिर टैक्सियों से उन को कोलंबिया और फिर पनामा की शुरुआत तक पहुंचा दिया गया. वहां बताया गया कि उन्हें एक जहाज ले जाएगा, लेकिन वहां भी कोई जहाज नहीं था. यहीं से उन का डंकी रूट शुरू हो गया, जो 2 दिनों तक चला. पहाड़ी रास्ते से चलने के बाद हरविंदर सिंह और उन के साथ आए प्रवासियों को एक छोटी नाव में मैक्सिको सीमा की ओर गहरे समुद्र में भेज दिया गया. 4 घंटे की समुद्री यात्रा में उन्हें ले जा रही नाव पलट गई, जिस से उन के साथ आए एक व्यक्ति की मौत हो गई. एक अन्य व्यक्ति पनामा के जंगल में मर गया. इस दौरान वे थोड़ा सा चावल खा कर जीवित रहे.
दारापुर गांव के सुखपाल सिंह को भी इसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा. उन्हें समुद्री मार्ग से 15 घंटे की यात्रा करनी पड़ी और गहरी व दुर्गम घाटियों से घिरी पहाडिय़ों से होते हुए 40-45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा. इस यात्रा की दर्दनाक कहानी बताई. उन्होंने कहा, ‘अगर कोई रास्ते में घायल हो जाता तो उसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता. हम ने रास्ते में कई शव देखे.’ उन की यात्रा का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि जालंधर जिले के निवासी को मैक्सिको में गिरफ्तार कर लिया गया. अमेरिकी सीमा पार करने में वह थोड़े फासले से चूक गए.
उन्होंने बताया कि उन्हें 14 दिनों तक एक धुंधली रोशनी वाले सेल में रखा गया था. सेल क्या था, किस्सेकहानियों में सुनी गई गुफा की तरह. वहां रहते हुए कभी सूरज नहीं देखा. हजारों पंजाबी लड़के, परिवार और बच्चे ऐसी ही परिस्थितियों में रहते हैं. अपनी इस दर्दनाक पीड़ा को महसूस कर सुखपाल ने लोगों से गलत रास्तों से विदेश जाने की कोशिश नहीं करने की अपील की है.
अमेरिका से निर्वासित 2 गोवा वासियों के डंकी मार्ग की कहानियां भी कुछ कम दर्दनाक नहीं हैं. ये दोनों उन 119 निर्वासित भारतीयों में शामिल थे और अमृतसर अमेरिकी सेना के विमान से उतरे थे. उस के बाद उन्हें गोवा के डाबोलिम हवाई अड्डे ले जाया गया. वहीं पुलिस और हवाई अड्डे के अधिकारियों के सामने उन्होंने अपने बयान दिए. उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्हें मैक्सिको-अमेरिका सीमा के पास चाकू की नोक पर लूट लिया गया. उन को सीमा की दीवार पर चढऩे और अमेरिका में प्रवेश करने में विफल रहने पर प्रताडि़त किया गया.
दरअसल, उस ने ट्रकों के लिए खुले सीमा द्वार से भागने की कोशिश की थी, तभी वह अमेरिकी अधिकारियों द्वारा पकड़ा गया था. दक्षिण गोवा के 23 और 25 वर्षीय युवकों ने बताया कि उन्हें एक कंसल्टेंट ने बताया था कि वे शरण मांग कर कानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश कर सकते हैं और वह उन्हें कारगो जहाज में मैक्सिको से अमेरिका ले जाएंगे. पूछताछ में गोवा के अधिकारियों ने जांच की गोपनीयता रखते हुए उन के नाम सार्वजनिक नहीं करने का आश्वासन दिया. उन के बयान के अनुसार पिछले साल सितंबर में उन की मुलाकात एक व्यक्ति से तब हुई, जब वह गोवा के एक रिसौर्ट में काम कर रहे थे. उस ने उन्हें वास्को में एक कंसल्टेंसी चलाने की बात बताई और दावा किया कि वह लोगों को काम के लिए वैधानिक रूप से अमेरिका भेजता है.
कंसल्टेंट ने 15 लाख रुपए मांगे और उसे 3 महीने में अमेरिका भेजने और वहां एक होटल में नौकरी दिलाने की पेशकश की. इस पर 25 वर्षीय व्यक्ति ने उसे 10 लाख रुपए दिए और अपना पासपोर्ट समेत अन्य दस्तावेज साझा कर दिए. इस सौदे के अनुसार शेष राशि अमेरिका पहुंचने पर चुकाई जानी थी. गोवा के दूसरे निर्वासित 23 वर्षीय व्यक्ति ने जे-1 वीजा के लिए आवेदन किया था. यह वीजा आमतौर पर काम और अध्ययन आधारित या विजिटिंग कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए स्वीकृत लोगों के लिए होता है. इस के लिए उस ने एजेंट को डेढ़ लाख रुपए का भुगतान किया, लेकिन काम नहीं हो पाया.
इस बीच, मई 2024 में वह उसी कंसल्टेंट से मिला और उसे अमेरिका भेजने के लिए 8 लाख रुपए में बात तय हुई तो उसे आधा नगद भुगतान कर दिया. इस पर कंसल्टेंट ने उसे बताया कि वह शरण मांग कर अमेरिका में प्रवेश कर सकता है, यदि वह वहां अधिकारियों को बता दे कि भारत में उस के दुश्मन हैं, जो उसे मारना चाहते हैं.
20 जनवरी को दोनों गोवा से मुंबई गए और बाद में इस्तांबुल के लिए उड़ान भरी. वे एक विमान की उड़ान में सवार हुए और 22 जनवरी को मैक्सिको पहुंच गए. वहां वे एक दिन के लिए एक होटल में रुके. अगले दिन उन्हें तिजुआना शहर ले जाया गया, जहां कंसल्टेंट के संपर्क में रहने वाला एक ‘चिनो’ और उस के सहयोगी उन्हें सीढ़ी की मदद से दीवार पर चढ़ कर सीमा पार ले गए. इस क्रम में 25 वर्षीय युवक दीवार पर चढ़ नहीं सका तो वह कंसल्टेंट के लोगों द्वारा यातना का शिकार हुआ. इस के बाद सीमा पर उन्हें चाकू की नोंक पर लूट लिया गया. दोनों के फोन, घडिय़ां और पैसे, क्रमश: 300 और 380 डालर उन से छीन लिए गए.
उस के बाद दोनों को 2 अफगान नागरिकों के साथ कंसल्टेंट के लोगों ने सैन डिएगो में सीमा पार कर अमेरिका की ओर भागने को कहा. उन्होंने ट्रकों के गुजरने के लिए सीमा द्वार खोले जाने पर भाग कर ऐसा किया. इसी दरम्यान उन्हें अमेरिकी सीमा गश्ती दल ने पकड़ लिया. सीमा पुलिस ने दोनों को वहां से निर्वासित किए जाने से पहले 20 दिनों तक हिरासत केंद्र में रखा. वापस लौटे आकाशदीप सिंह की कहानी भी कुछ कम दर्दनाक नहीं है. उन्होंने बताया कि अमेरिका में रहने के लिए अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने और अपने परिवार की भलाई के बदले दोनों को जोखिम में डाल दिया है. अब उस के पास कर्ज का भारी बोझ है तो परिवार के सदस्य मानसिक तनाव के दौर से गुजर रहे हैं.
अमृतसर के पास के एक गांव के रहने वाले आकाशदीप ने अपनी अमेरिका की यात्रा के लिए अपनी जमीन बेची और 60 लाख का कर्ज भी लिया. इस से पहले जून, 2024 में वह ट्रक ड्राइवर के तौर पर काम करने की उम्मीद से दुबई गया था. वहां नौकरी नहीं मिली और फिर उस ने एक एजेंट के जरिए अमेरिका जाने का फैसला किया. सिंह ने और अधिक जानकारी देने से इनकार करते हुए कहा कि उसे जनवरी 2025 में गिरफ्तार किया गया था. यह भयानक था और मैं इस के बारे में विस्तार से नहीं बताना चाहता, क्योंकि मुझे शर्मिंदगी उठानी होगी और इसे मैं भूल नहीं सकता.
उन्होंने मायूसी से कहा कि मुझ से यह मत पूछिए कि मुझे ऐसा जोखिम भरा फैसला लेने के लिए किस बात ने प्रेरित किया. अकाशदीप सिंह के 55 वर्षीय पिता स्वर्ण सिंह भारी आर्थिक बोझ का सामना करने के बावजूद इस बात से ही संतुष्ट हैं कि उन का बेटा सुरक्षित घर वापस लौट आया. उन्होंने एजेंट के खिलाफ काररवाई किए जाने की मांग करते हुए बताया कि कैसे एजेंट ने उन से वादा किया था कि उन के बेटे की अमेरिका यात्रा सुरक्षित होगी. उन्होंने बताया कि मैं ने उस पर भरोसा किया, लेकिन अब सब कुछ खो गया है. कम से कम मेरा बेटा वापस आ गया है और यह महत्त्वपूर्ण है. हमारा भविष्य अनिश्चित और चिंताजनक है, क्योंकि हमें भारी कर्ज चुकाना है.
छिप कर रहना, काम करना और फिर छिप जाना, यही थी दिनचर्या
अमेरिका में कोई भी भारतीय अवैध अप्रवासी बड़े ही विकट और विचित्र परिस्थितियों में रहता है. उस की रोजमर्रा की जिंदगी सामान्य रहनसहन से काफी अलग होती है. ऐसे लोगों को न तो कोई रजिस्टर्ड पक्की नौकरी मिलती है और न ही उन का कोई सही ठौरठिकाना रहता है. उन का ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं बन पाता है. अगर वे किसी वजह से अपराध के शिकार हो जाते हैं तो वे कानूनी मदद भी नहीं ले पाते हैं. कारण वे छिपे रहते हैं. सहमे रहते हैं और अमेरिकी पुलिसप्रशासन से बच कर गुजरबसर करते हैं.
उन के बारे में कहा जा सकता है कि उन्हें हमेशा सजग रहना होता है और उन को कई बार चकमा देने की भी जरूरत आ जाती है. एक अंगरेजी साप्ताहिक के डिजिटल एडिशन में छपी रिपोर्ट के अनुसार अमरजीत (बदला हुआ नाम) की जिंदगी अवैध अप्रवासी जैसी गुजरती है. वह सुबह साढ़े 6 बजे क्लीवलैंड, ओहियो में एक गैस स्टेशन पर काम करने के लिए उठ जाता है. वहां तक वह पैदल जाता है, जो उस के घर से कुछ ही मिनटों की दूरी पर है. ड्यूटी पूरी होने के बाद देर रात वापस लौट आता है. रात के खाने के लिए पकापकाया हुआ टेकअवे फूड खा कर सो जाता है.
वैसे तो उस के लिए अमेरिका में एक सामान्य दिन होता है, लेकिन वह वहां रहने वाले स्थायी लोगों से अलग तरीके से रहता है. करीब 2 साल पहले वह पंजाब के एक गांव से किसी तरह अमेरिका के क्लीवलैंड पहुंच तो गया था, लेकिन वहां वह जैसेतैसे जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गया. वह एक तरह से दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करता है. वह जहां काम करता है, वहां की कंपनी का एक रजिस्टर्ड कर्मचारी नहीं होता है. वह अमेरिका का नागरिक नहीं है, इस कारण उसे किसी रजिस्टर्ड कार्यस्थल पर काम नहीं मिल सकता है.
कामधंधा पहले से बसे भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की मदद से चलता है. अप्रवासी उन लोगों के लिए काम करते हैं, जो उन्हें अमेरिका में रहने देते हैं और रडार से दूर कर देते हैं. ये ऐसी नौकरियां होती हैं, जिन्हें अमेरिकी शायद ही करने को तैयार होते हैं. उदाहरण के तौर पर दक्षिण कैलिफोर्निया के खेतों पर काम करने के लिए वहां मूल अमेरिकी तैयार नहीं होते हैं. इस के लिए लंबे समय तक कठिन मेहनत से काम करने की जरूरत होती है. अवैध अप्रवासी, विशेष रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों के लोगों की तरह ऐसी नौकरियां करते हैं.
हालांकि अवैध अप्रवासी ज्यादातर गैस स्टेशन, रेस्तरां या किराने की दुकान के कर्मचारी, निर्माण स्थलों पर काम करने वाले या निजी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते हैं. ये ऐसी नौकरियां होती हैं, जिन में वे कर्मचारियों का रिकौर्ड नहीं रखते हैं. अगर वह अच्छी आमदनी वाली ड्राइविंग आदि का काम करना भी चाहें तो उसे वहां की ट्रैफिक नियमों के मुताबिक औपचारिक प्रशिक्षण या ड्राइविंग लाइसेंस नहीं मिल सकता है. और तो और उस के मन में लगातार एक डर बना रहता है कि वह किसी भी क्षण पकड़ा जा सकता है और वहां से निकाल बाहर किया जा सकता है.
अमरजीत तब तक कुछ हद तक सुरक्षित बना हुआ है, जब तक कि वह अपनी दैनिक दिनचर्या का पालन करता है. वह अपने इलाके के लोगों के साथ रहता है. अपने स्थानीय समुदाय के सदस्यों के पास रहता है. वह अपने रिश्तेदार के तहखाने में रखता है और गैस स्टेशन पर काम करता है. जहां उस के समुदाय के लोग काम करते हैं. वह किसी भारतीय के घर पर डिलीवरी करने वाले या माली के रूप में भी काम कर सकता है, लेकिन वह जो भी करे, उसे रडार से बच कर दूर रहना चाहिए. साथ ही उस की कोशिश होनी चाहिए कि वह कभी भी कानून के निशाने पर नहीं आए.
अमेरिका में दशकों से रह रहे कई लोगों ने अवैध भारतीय प्रवासियों को शरण दे रखी है. इन में से 5 लोगों ने भारत से आए उन अवैध प्रवासियों के जीवन के बारे में हैरान करने वाली कई बातें बताईं. उन्होंने अपना नाम नहीं छापने का अनुरोध किया, जिस से उन की पहचान उजागर नहीं हो. इस के लिए साप्ताहिक डिजिटल ने उन के नाम बदल दिए.
अमरजीत कदमकदम पर डरा रहता है. उस ने अपनी दिनचर्या में जरा सी भी फेरबदल की नहीं कि पकड़ा जा सकता है. कई कारणों से पकड़े जाने का डर बना रहता है. जैसे देर रात को खाना टेकअवे खरीदना, जो उस के ब्लौक के आसपास के स्थानीय रेस्तरां से आता है. लेकिन उस के कार्यस्थल और उस के रहने के तहखाने के पास टेकअवे फूड चेन नहीं होने से मुश्किल आती है. वहां तक जाने से अमरजीत बहुत डरता है. उसे अपनी साइकिल चलाते समय ट्रैफिक के नियमों से डर लगता है. उसे हमेशा पकड़े जाने का डर लगता है. वह ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकता, क्योंकि इस के लिए उस के पास वहां का भी पता और पहचान के लिए दस्तावेज नहीं हैं. उसे अपने अस्तित्व के कानूनी प्रमाण के लिए जाली दस्तावेज बनाने होंगे.
वह चोरी या अपने इलाके में किसी के साथ झगड़े के मामले में पुलिस शिकायत दर्ज करने से भी डरता है. इस में पकड़े जाने का और अधिक जोखिम होता है. जब से उस ने सामुदायिक केंद्रों में छापे और अन्य भारतीय अवैध प्रवासियों को शरण में भेजे जाने की बातें सुनी हैं, तब से और भी सहम गया है. उसे भी हर पल निर्वासित किए जाने का डर रहता है. ऐसे खतरे से बचने के लिए वह समयसमय पर घर भी बदलता रहता है. वह ऐसे खोलीनुमा चाल में रहता है, जो आसानी से खोजा न जा सके.
वह पंजाब के अपने गांव में गरीबी की जिंदगी में वापस नहीं जाना चाहता है. बहुत मुश्किल से वह अमेरिका आया और अपने परिवार के साथ कानूनी निवासी के रूप में रहना चाहता है. उसे इतना पता है कि अमेरिका में उस के जैसे मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले वकील हैं. अमरजीत की तरह हजारों लोग उन से अपनी उम्मीदें टिकाए हुए हैं. फिलहाल, अमरजीत अपने रिश्तेदारों द्वारा दिए गए सिम कार्ड का उपयोग कर पंजाब में अपने फेमिली वालों से बात कर लेता है. कोई पहचान नहीं होने के कारण उसे पंजीकृत सिम कार्ड नहीं मिल सकता है. उस के पास बैंक खाता होने और इस तरह ई भुगतान की सुविधा होने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है. 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद से अमेरिका में बैंकिंग नियम बहुत सख्त कर दिए गए हैं.
उस के समुदाय के सदस्य उसे उस के काम के लिए नकद भुगतान करते हैं. अतिरिक्त आय के लिए वह अकसर उन के बगीचों, दीवारों की पेंटिंग या ऐसे अन्य कार्यों में उन की मदद करता है. यह मदद सिर्फ सामुदायिक संबंधों पर आधारित नहीं है. बदले में उन्हें वह सस्ती दरों पर सेवाएं देता है. अमरजीत को अमेरिका में पैसे के साथसाथ सुरक्षित जीवन की भी जरूरत है. उसे अपने समुदाय के लोगों से मदद मिलती है. वे सभी एक जैसी भाषा बोलते हैं और समझते हैं. वे अमरजीत की भावना और जरूरतों को भी समझते हैं.
वे जानते हैं कि उसे अमेरिका में क्यों रहना चाहिए. उन को पता है कि अमेरिका में वैध रूप से रहने वाले भारतीय अप्रवासी भी अपने परिवारों को भारत में ही छोड़ आए हैं. वहां आने वाले अवैध अप्रवासियों में सामान्य तौर पर 6 लोग 3 बिस्तरों वाले एक कमरे में रहते हैं और बारीबारी से काम करते हैं और सोते हैं. एक व्यक्ति खाना बनाता है या वे बाहर से कुछ खाना खाते हैं. यह तब तक चलता रहता है, जब तक उन्हें नियमित नौकरी नहीं मिल जाती और वे अपने लिए एक बैडरूम किराए पर नहीं ले लेते.
उन से अमरजीत को रोजीरोटी के अलावा बीमारी और स्वास्थ्य संबंधी समसयाओं में भी मदद मिलती है. एक बार जब अमरजीत बहुत बीमार हो गया था, तब उन के इलाके में रहने वाले भारतीय डाक्टर ने उस का इलाज किया और दवाइयां दीं. हालांकि आमतौर पर अमेरिका के सरकारी अस्पताल वैध या अवैध निवासियों को इलाज से मना नहीं करते हैं. फिर भी वहां जाने से उन्हें सरकार की निगाह में आने का खतरा बढ़ जाता है. उन्होंने अपनी जिंदगी की झलक दिखाने के अलावा यह भी बताया कि मौजूदा ट्रंप सरकार में प्रशासन के तहत बिना दस्तावेज वाले भारतीय अप्रवासी होना और भी मुश्किल हो गया है. बिना दस्तावेजों के रहने का मतलब होता है कई चुनौतियों का सामना करना.
पिछले 2 दशकों से फ्लोरिडा के आरलैंडो में रहने वाले 47 वर्षीय एक बैंकिंग प्रोफेशनल के अनुसार दस्तावेज नहीं रहने पर कई तरह से नुकसान उठाना पड़ता है. इस बारे में आरलैंडो में रहने वाली सीमा के लिए एक महिला की कहानी बेहद तकलीफदेह है. पिछले साल सितंबर की शाम को उन के गहने के साथसाथ अन्य कीमती सामान भी लूट लिए गए थे. इस हालत में उन के पास 2 विकल्प थे. पुलिस में रिपोर्ट करें और वहां से निर्वासित हो जाए या फिर सब कुछ छोड़ दे. अमेरिका में रहने की कीमत उसे अपने कीमती सामान को खो कर चुकानी पड़ी.
इस तरह 1995 से टेक्सास में रहने वाले एक तकनीकी विशेषज्ञ ने आशीष की समस्या के बारे में बताया. वह अमेरिका में ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहता था. तकनीकी विशेषज्ञ अमेरिका में रहने वाले कई अवैध भारतीय प्रवासियों से मिल चुके हैं. उन में ही आशीष हैं, जो अपनी याद्ïदाश्त खोने के बाद से अमेरिका में रह रहे हैं. जब उन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना चाहा, तभी उन्हें पता चला कि कुछ गड़बड़ है. अधिकारी ने उन्हें दस्तावेजों के साथ फिर से आने के लिए कहा.
फिर उन्होंने अपने पिता से दस्तावेजों के बारे में पूछा, जिन्होंने उन्हें बताया कि वह एक अवैध प्रवासी हैं और उन्हें बहुत सतर्क रहने की हिदायत दी. अब आशीष के सामने अवैध प्रवासी होने की वास्तविकता को स्वीकार करने की एक कड़वी सच्चाई थी. इसी के साथ उसे सरकारी अधिकारियों को अपने कागजात दिखाने से बचना भी था. उन सभी को हर दिन किसी न किसी तरह से अमेरिकी व्यवस्था को चकमा देना पड़ता है. उन का जीवन भले ही सामान्य तरह का दिखता है, लेकिन उन्हें कई तरह से छिपने की जरूरत होती है. उन को इमिग्रेशन और कस्टम्स इनफोर्समेंट और पुलिस को चकमा देना होता है तो हेल्थकेयर सिस्टम, बैंकिंग और स्थाई निवास के तरीके को ले कर भी सजग रहना पड़ता है.
जो लोग अमेरिका में वर्क वीजा ले कर जाते हैं, उन को पर्याप्त सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करने वालों पर निकाले जाने की तलवार लटकती रहती है. सुखदीप ने 2008 में एक पर्यटक वीजा पर अमेरिका में प्रवेश किया था. निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद भी वह वहां अधिक समय 3 साल तक मैरीलैंड में अपने चचेरे भाई के परिवार के साथ अवैध अप्रवासी के रूप में रहे.
सुखदीप की भाभी ने उन के सब से कठिन दिनों में उन की मदद की. सुखदीप ने 3 साल बाद एक अमेरिकी से शादी कर ली और एक दस्तावेजी अमेरिकी निवासी बन गए. अब उन का एक सुंदर परिवार है. सुखदीप के मैरीलैंड स्थित रिश्तेदार 5 दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं. अमेरिका में भारत के लगभग 7,25,000 अवैध अप्रवासी रह रहे हैं. वर्ष 2024 प्यू रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, वहां बिना किसी दस्तावेज वाले अप्रवासियों का तीसरा सब से बड़ा समूह भारतीय हैं.
अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन में बिना दस्तावेज वाले भारतीय अप्रवासियों को और अधिक चिंता करने की जरूरत है. वहां की सरकार ने उन्हें अपने देश से बाहर निकालने का अभियान चला रखा है. ट्रंप ने 20 जनवरी को अपने शपथ ग्रहण समारोह में ही घोषणा कर दी थी कि सब से पहले अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर सभी अवैध प्रवेश को तुरंत रोकने का कदम जाएगा. करोड़ों अवैध विदेशियों को वापस उन के स्थानों पर भेजने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. मैक्सिको में रहने की अपनी नीति फिर से लागू की जाएगी. ‘पकड़ो और छोड़ो’ की प्रथा समाप्त कर दी जाएगी. अपने देश पर विनाशकारी आक्रमण को रोकने के लिए दक्षिणी सीमा पर सेना भेजी जाएगी.
अमेरिका पहुंचने का तरीका
इस तरह से अमेरिका में दूसरे देशों से आए लोगों के संबंध में 2 बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं. पहला यह कि बिना दस्तावेज वाले भारतीय अप्रवासी अमेरिका में कैसे प्रवेश पा लेते हैं. दूसरा, वे वहां की प्रचलित ‘पकड़ो और छोड़ो’ प्रक्रिया से कैसे बचते रहे हैं. भारतीय अमेरिका में अवैध रूप से प्रवास करने के 2 तरीके अपनाते हैं. या तो वे पर्यटक या अन्य अस्थाई वीजा पर अमेरिका जाते हैं और कभी वापस नहीं आते या वे कुख्यात डंकी रूट अपनाते हैं, जो अमेरिका की जमीनी सीमाओं के माध्यम से अवैध रूप से प्रवेश करने के लिए एक खतरनाक यात्रा होती है.
भारतीय उन एजेंसियों को 1 लाख डालर से ज्यादा का भुगतान करते हैं, जो उन्हें सीमा पार करने में मदद करती हैं. वे यह राशि जमीन बेच कर और भारीभरकम लोन ले कर प्राप्त करते हैं, जिसे वे अमेरिका में अपनी कमाई से कई सालों में चुकाते हैं. यह रास्ता उन भारतीयों के लिए होता है, जो कम शिक्षा और अंगरेजी दक्षता न होने के कारण वीजा नहीं ले पाते हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के स्वांटन सेक्टर, जिस में वर्मोंट राज्य और न्यूयार्क और न्यू हैंपशायर के काउंटी शामिल हैं, में भारतीय अप्रवासियों का आगमन देखा गया है.
इस से पहले, ज्यादातर संदिग्ध भारतीय अप्रवासी एल साल्वाडोर या निकारागुआ के जरिए मैक्सिको के साथ दक्षिणी सीमा से अमेरिका में प्रवेश करते थे. भारतीयों को एल साल्वाडोर में वीजामुक्त यात्रा का फायदा मिला था. उस के बाद ‘कैच ऐंड रिलीज’ यानी पकड़ो और छोड़ो का मामला आता रहा.
अमेरिका में कई सरकारों ने ये तरीके अपना कर पकड़े गए संदिग्ध अप्रवासियों को रिहा कर दिया जाता है या फिर उन के समुदाय में वापस भेज दिया जाता है.