Murder Stories : मशहूर मौडल संविधा ढोलकिया की मर्डर मिस्ट्री पुलिस को लगातार उलझाती जा रही थी. लोगों में यही चर्चा हो रही थी कि यह हत्या संविधा के पति की आत्मा ने की है. इस बात को नकारते हुए पुलिस ने जब इस हत्या का खुलासा किया तो ऐसी चौंकाने वाली बात सामने आई कि…

कड़कती ठंड महानगर अहमदाबाद को अपने आगोश में समेटे बैठी थी. जनवरी महीने में चलने वाली ठंडी हवा ने उस ठंड में चुभन बढ़ा दी थी. सुबह के 9 बज रहे थे. अहमदाबाद की साबरमती नदी के उस पार पौश इलाके के थाना नवरंगपुरा के इंसपेक्टर केशवभाई गायकवाड अपने औफिस में बैठे रुटीन काम में लगे थे. तभी उन के फोन पर एक काल आई. फोन करने वाले ने कहा, ”सर, नवरंगपुरा की हेमंत सोसायटी के बंगला नंबर 301 में एक महिला की हत्या हुई है. वह महिला गुजराती फिल्मों की प्रसिद्ध नायिका, मौडल और फैशन डिजाइनर है. आप जल्दी वहां पहुंचिए.’’

”आप कौन बोल रहे हैं?’’ इंसपेक्टर गायकवाड़ ने पूछना चाहा. पर जवाब देने से पहले ही काल डिसकनेक्ट हो गई. इंसपेक्टर गायकवाड़ तुरंत घटनास्थल के लिए निकल पड़े. चूंकि घटनास्थल थाने से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए उन्हें घटनास्थल पर पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगी. बंगला नंबर 301 के सामने पुलिस की एक जीप देख कर आसपास के लोग इकट्ठा हो चुके थे. सोसायटी के चेयरमैन रजतभाई जरीवाला भी सूचना पा कर पुलिस जीप के पास आ गए थे. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने कहा, ”हमें इस बंगले में कुछ गड़बड़ होने की सूचना मिली है. कौन रहता है इस बंगले में?’’

बात करते हुए इंसपेक्टर गायकवाड़ ने गेट पर लगी डोरबेल के बटन पर हाथ रख दिया. लगभग 5 मिनट हो गए, लेकिन बंगले का दरवाजा नहीं खुला. उसी बीच सोसायटी के चेयरमैन रजतभाई ने बताया, ”सर, इस बंगले में गुजराती फिल्मों की प्रसिद्ध हीरोइन, मौडल और फैशन डिजाइनर संविधा ढोलकिया और उन का बेटा कशिश रहता है. कशिश की प्रेमिका ऐशप्रिया चटर्जी भी ज्यादातर यहीं रहती है.’’

बातचीत चल ही रही थी कि तभी 23 साल का कशिश वहां आ पहुंचा. उस ने डोरबेल बजाई, पर बंगले का दरवाजा नहीं खुला. आखिर सभी दरवाजा तोड़ कर अंदर पहुंचे. अंदर का नजारा चौंकाने वाला था. ड्राइंगरूम के बीचोबीच संविधा की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरा घाव था. उस के आसपास जमा खून सूख चुका था. मम्मी को मरी पड़ी देख कर कशिश जोरजोर से रोने लगा. यह एक हाईप्रोफाइल मर्डर केस था. इसलिए थोड़ी ही देर में वहां डीसीपी मनोहर सिंह झाला भी आ पहुंचे थे. सूचना पा कर फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने अपना काम निपटा लिया तो इंसपेक्टर गायकवाड़ ने अपना काम शुरू किया. पूरे बंगले का तो निरीक्षण किया ही गया, बाहर लान को भी ध्यान से देखा गया. पीछे का भी निरीक्षण किया गया.

कहीं भी ऐसा कोई निशान नहीं मिला कि लगता कोई बाहर का आदमी आया था. सभी खिड़कियां अंदर से बंद थीं. कुछ टूटाफूटा भी नहीं था. घर की हर चीज अपनी जगह पर सुरक्षित थी.जरूरी दिशानिर्देश दे कर डीसीपी साहब चले गए तो लाश को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया.

कौन था पुलिस को सूचना देने वाला

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि फोन कर के उन्हें लाश की जानकारी देने वाला कौन था? उसे कैसे पता चला कि हेमंत सोसायटी के बंगला नंबर 301 में मौडल की लाश पड़ी है. पुलिस ने जब उस नंबर की जांच कराई तो पता चला कि फोन पब्लिक टेलीफोन बूथ से किया गया था. वह भी रेलवे स्टेशन के पब्लिक टेलीफोन बूथ से. वहां बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से भी पता नहीं चल सका कि उस समय किस ने फोन किया था. इस की वजह यह थी कि उस समय टेलीफोन बूथ के बाहर भीड़ लगी थी. फिर भी पुलिस फोन करने वाले के बारे में पता करती रही.

उसी दिन शाम को पुलिस ने कशिश को थाने बुला कर पूछताछ की. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने पूछा, ”रात को तुम कहां थे?’’

”सर, रात को मैं घर में ही था. सुबह 7 बजे उठ कर मैं मंदिर गया तो मम्मी अपने कमरे में सो रही थीं.’’

”तुम्हें किसी पर शक है?’’

”जी सर, मुझे अपने पापा आशीष की आत्मा पर शक है.’’

कशिश के इस जवाब से सभी हैरान रह गए थे. पर इंसपेक्टर गायकवाड़ धैर्य से कशिश की बातें सुनते रहे. उस ने आगे कहा, ”सर, मेरे पापा का नाम आशीषभाई ढोलकिया था. मेरी मम्मी और वह काफी सालों से अलग रह रहे थे. पापा की मौत हो चुकी है. कभीकभी मम्मी मुझ से कहती थीं कि पापा की आत्मा आ कर उन से बात करती है. कभीकभी पापा की आत्मा उन पर इस तरह हावी हो जाती थी कि वह परेशान हो जाती थीं. उन के कमरे से इस तरह की आवाजें आती थीं, जैसे अंदर कोई मारपीट कर रहा है. मम्मी के सिसकने की भी आवाज आती थी. मम्मी को ड्रग्स और शराब की भी बहुत बुरी तरह से लत लगी हुई थी.

”सर, मुझे कहने में भी संकोच होता है, मम्मी नशे के पीछे एकदम पागल हो गई थीं. कभीकभी वह नशे का इतना अधिक ओवरडोज ले लेती थीं कि मुझ पर शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालती थीं. अकसर वह मुझ से पैसों के लिए लड़तीझगड़ती रहती थीं. कल रात भी उन्होंने काफी मात्रा में ड्रग्स और शराब ली थी. कल रात भी उन के कमरे से विचित्र सी आवाजें आ रही थीं. ऐसा लग रहा था अंदर कोई मम्मी को मार रहा है. वह रो भी रही थीं.’’

”मैं ने सुना है कि तुम्हारी प्रेमिका ऐशप्रिया चटर्जी भी ज्यादातर तुम्हारे साथ ही रहती थी?’’

”हां, वीकएंड में वह हमारे साथ ही होती थी. वह मेरी मंगेतर भी है. कल भी वह हमारे साथ ही थी, पर रात को चली गई थी.’’

कशिश से विस्तारपूर्वक पूछताछ कर के इंसपेक्टर गायकवाड़ ने उसे जाने दिया.

पुलिस तो भूतप्रेतों की बातों में विश्वास करती नहीं, पर कशिश हत्या के इस मामले को उसी ओर ले जा रहा था. दूसरी ओर फोन कर के हत्या की सूचना देने वाले का अभी तक कुछ पता नहीं चला था. इस बीच पुलिस ने मौडल, अभिनेत्री और फैशन डिजाइनर संविधा ढोलकिया की कुंडली खंगालने के लिए एक टीम गठित कर दी थी. गिनती के दिनों में ही संविधा की जिंदगी का एकएक पन्ना खुल गया था. संविधा ढोलकिया अहमदाबाद के गोमतीपुर गांव के हाथीपोल में पलीबढ़ी थी. उस के पिता का नाम रोहितभाई पटेल था. उन की घर के उपयोग में आने वाले सामान बनाने की फैक्ट्री थी. संविधा के अलावा उन का एक बेटा अनिल तथा एक अन्य बेटी सुरक्षा थी. संविधा इन में सब से छोटी थी. संविधा जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढऩे में भी होशियार थी.

वह एक महत्त्वाकांक्षी युवती थी. मायानगरी मुंबई जा कर फैशन डिजाइनर के रूप में करिअर की शुरुआत करने का उस का सपना था. जब भी वह मनीष मल्होत्रा, नीना लुल्ला, रितु कुमार जैसे मशहूर फैशन डिजाइनरों की फोटो पत्रिकाओं और अखबारों में देखती, तब उस का सपना तेजी से चमक उठता था. पर अपना सपना पूरा करने के लिए संविधा कोई कदम उठाती, उस के पहले ही अहमदाबाद के साडिय़ों के एक बहुत बड़े व्यापारी आशीष ढोलकिया के साथ उस का विवाह हो गया. सपने को सीने में दबा कर संविधा ने विवाह कर लिया. वैवाहिक जीवन के 2 ही सालों में संविधा 2 बच्चों की मां बन गई. एक बेटा कशिश और दूसरी बेटी आस्था.

मशहूर मौडल कैसे बनी संविधा

सब कुछ होते हुए संविधा खुश नहीं थी. क्योंकि उस का पति आशीष गुजरात में रहते हुए भी पक्का शराबी था. वह दिनरात नशे में धुत रहता. संविधा ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, पर वह माना नहीं. शराब पीने की ही वजह से न जाने उसे कितनी बार पुलिस पकड़ कर थाने ले गई, जिस के लिए सोसायटी में तमाम थूथू हुई. इस के बावजूद वह नहीं माना. आखिर एक दिन संविधा उसे छोड़ कर मायके आ गई. उस ने भाई से फैशन डिजाइनर बनने की बात की. भाई ने साथ दिया और उस ने फैशन डिजाइनर का कोर्स कर लिया. इस के बाद उसे अहमदाबाद की एक प्रसिद्ध गारमेंट एक्सपोर्ट करने वाली कंपनी में नौकरी मिल गई.

संविधा सुंदर तो थी ही, नौकरी करने के साथ ही वह अपनी कंपनी के रेडीमेड कपड़ों के लिए मौडलिंग भी करने लगी. फिर तो उसे साडिय़ों की भी मौडलिंग का काम मिलने लगा. इस तरह जल्दी ही संविधा को रेडीमेड कपड़ों और साडिय़ों का इतना अधिक काम मिलने लगा कि उसे नौकरी छोडऩी पड़ी. जल्दी ही संविधा कि गिनती गुजरात की प्रसिद्ध मौडलों में होने लगी. प्रसिद्धि मिली तो संविधा को अन्य प्रोडक्ट्स के प्रचार के लिए भी मौडलिंग का काम मिलने लगा. इस तरह वह गुजरातियों के बीच एक लोकप्रिय मौडल बन गई. इस के बाद उसे गुजराती फिल्मों में भी काम मिलने लगा. फिर तो शोहरत के साथ उस के पास पैसा भी आया. बच्चों को उस ने पहले ही बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया था.

संविधा की शोहरत आकाश की बुलंदियों को छू रही थी. इस बीच आशीष सुधर गया था. उस ने संविधा से साथ रहने के लिए बहुत रिक्वेस्ट की, पर संविधा ने उस के साथ रहने के बजाय उस से डिवोर्स ले लिया था. अब तक बच्चे भी जवान हो चुके थे. संविधा ने अपने रहने के लिए अहमदाबाद के पौश इलाके नवरंगपुरा की हेमंत सोसायटी में बंगला नंबर 301 खरीद लिया था. दोनों बच्चों कशिश और आस्था को उस ने अपने पास बुला लिया और तीनों हाईफाई जीवन जीने लगे. एक कहावत है कि बिल्ली को घी हजम नहीं होता. संविधा के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. वह सफलता पचा नहीं सकी. वह शराब और ड्रग्स की आदी हो गई. इतना ही नहीं, उस ने बेटे को भी शराब और ड्रग्स का आदी बना दिया. बेटी को यह सब अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह नानानानी के पास जा कर गोमतीपुर में रहने लगी.

ड्रग्स और शराब के नशे में संविधा इस कदर डूब गई कि उसे काम भी मिलना बंद हो गया. बाद में उस ने कशिश को मौडलिंग में लगाया. जानेमाने लोगों ने सहयोग भी किया, पर नशे की वजह से उस का भी काम ज्यादा नहीं चल सका. मांबेटे की आर्थिक स्थिति बिगडऩे लगी, जिस की वजह से घर में रोजाना झगड़ा होने लगा. उसी दौरान कशिश को ऐशप्रिया से प्यार हो गया और उस के प्यार की गाड़ी चल निकली. इंसपेक्टर गायकवाड़ के सामने संविधा की कुंडली खुली पड़ी थी. वह इसी केस के बारे में सोच रहे थे कि तभी संविधा की कुंडली निकाल कर लाने वाले एसआई चौधरी ने कहा, ”सर, असली जानकारी तो अब देने जा रहा हूं. कशिश से उस की मम्मी संविधा ने कहा था कि उस के पापा एक्सपायर हो गए हैं, पर यह बात झूठ थी.

आशीष ढोलकिया तो जीवित था. शराब के कारण उस की जिंदगी बरबाद हो गई थी. पत्नी ने छोड़ दिया, दोनों बच्चे छूट गए. पर अब वह शराब छोड़ कर अपना साडिय़ों का व्यवसाय संभाल रहा है.’’ इस का मतलब यह था कि मम्मी में पापा की आत्मा आने वाली बात एकदम गलत थी. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि संविधा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, उस के शरीर पर चोट के तमाम निशान थे और रात डेढ़ बजे के आसपास सिर में कोई सख्त चीज लगने से उस की मौत हुई थी यानी कि हत्या.

मौडल और फैशन डिजाइनर संविधा की हत्या का यह केस इंसपेक्टर गायकवाड़ के दिमाग में एक रहस्य बन कर घूम रहा था. क्या कशिश झूठ बोल रहा है? क्या उसी ने अपनी मां की हत्या की है? कहीं आशीष ने तो संविधा की हत्या कर बदला नहीं लिया? उसी ने हत्या की या किसी दूसरे से हत्या करवाई होगी? इसी तरह के सवाल उन के दिलोदिमाग में चल रहे थे.

इंसपेक्टर गायकवाड़ के लिए हत्या का यह मामला काफी पेचीदा बन गया था. अब संविधा का बेटा कशिश और पति दोनों ही शक के घेरे में आ गए थे. साथ ही साथ उन्हें यह सवाल भी परेशान कर रहा था कि फोन कर के पुलिस को हत्या की सूचना किस ने दी थी? उसे कैसे पता चला कि हेमंत सोसायटी की कोठी नंबर 301 में संविधा की लाश पड़ी है.

हत्यारे के बारे में पुलिस लगाती रही कयास

इंसपेक्टर गायकवाड़ ने अब तक की गई जांच की रिपोर्ट डीसीपी मनोहर सिंह झाला के सामने पेश की. रिपोर्ट पर सरसरी नजर डाल कर डीसीपी साहब ने कहा, ”मिस्टर गायकवाड़, हत्या का यह केस हाईप्रोफाइल है. ऐसा लगता है कि संविधा की हत्या उस के पति आशीष ढोलकिया ने की है या फिर उस के बेटे कशिश ढोलकिया ने. यह भी हो सकता है कि दोनों ने साथ मिल कर संविधा की हत्या की हो और दोनों में से किसी एक ने बाहर जा कर पब्लिक टेलीफोन बूथ से पुलिस को सूचना दी हो.’’

थोड़ा रुक कर डीसीपी मनोहर सिंह झाला ने आगे कहा, ”आप एक काम कीजिए, आशीष को ढ़ूंढ कर यहां ले आइए. कशिश की काल रिकौर्ड चैक कीजिए. पूछताछ के लिए उस की प्रेमिका और दोस्तों को बुलाइए. इन लोगों से जो जानकारी मिले, उस के हिसाब से कशिश से फिर से पूछताछ कीजिए. ड्रग एडिक्ट गुनहगारों की रिमांड की एक अलग ही ट्रिक होती है. वे मात्र डंडे या मारनेपीटने से मुंह नहीं खोलते. प्यार से होशियारी से उन से सच उगलवाना पड़ता है.’’

”ओके सर.’’ कह कर इंसपेक्टर गायकवाड़ डीसीपी के औफिस से बाहर आ गए. इस के बाद डीसीपी द्वारा दी गई सलाह के अनुसार, पुलिस की टीम बना कर आशीष की तलाश में लगा दिया. आशीष साडिय़ों का बड़ा व्पापारी था, इसलिए उसे तलाशने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई थी. इस के बाद संविधा की हत्या वाले दिन कशिश के घर में कौनकौन आया था, इस बारे में भी पता किया. हत्या वाले दिन कशिश की प्रेमिका ऐशप्रिया और उस का दोस्त निखिल राना सीसीटीवी कैमरे में कोठी में जाते दिखाई दिए थे. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने सब से पहले ऐशप्रिया को पूछताछ के लिए थाने बुलाया.

”ऐशप्रिया, जिस दिन संविधा की हत्या हुई थी, तुम कहां थी?’’ इंसपेक्टर गायकवाड ने पूछा.

”मैं उन के घर ही थी.’’ ऐशप्रिया ने बिंदास हो कर जवाब दिया.

”दूसरा कौन था?’’

ऐशप्रिया ने कहा, ”निखिल भी था. मैं ने, निखिल ने, कशिश ने और उस की मौम संविधा ने उस दिन ड्रग्स और शराब की पार्टी की थी. पार्टी के दौरान कशिश और उस की मौम के बीच पैसों को ले कर खूब झगड़ा हुआ था. हम लोगों ने किसी तरह दोनों को शांत कराया था.’’

”ड्रग्स और शराब का नशा गुजरात में प्रतिबंधित है यह तो तुम्हें पता ही होगा?’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”जी पता है, सर. पर मैं इसलिए सच बोल रही हूं कि मैं किसी भी तरह की परेशानी में फंसना नहीं चाहती. जो हुआ था, मैं वही बता रही हूं. उस दिन रात 11 बजे मैं और निखिल वहां से चले गए थे. जब हम लोग घर से निकले थे, तब भी मांबेटे के बीच झगड़ा चल रहा था. उस के बाद क्या हुआ, मुझे बिलकुल पता नहीं सर. आप को ड्रग्स और शराब के लिए जो सजा देनी हो, वह दीजिए. पर मैं और कुछ नहीं जानती सर.’’ ऐशप्रिया ने साफ कहा.

इंसपेक्टर गायकवाड़ ने ऐशप्रिया से और भी तमाम सवाल पूछे, जिन के जवाब ऐशप्रिया ने बेझिझक दिए. उस की बातों में सच्चाई देख कर इंसपेक्टर गायकवाड़ ने उसे घर जाने दिया. उस के बाद निखिल से पूछताछ की गई तो वही सब जानकारी मिली, जो ऐशप्रिया ने बताया था. दोनों पर नजर रखने की व्यवस्था कर के इंसपेक्टर गायकवाड़ आगे की जांच में लग गए. इस बीच आशीष ढोलकिया की खोज में लगी पुलिस टीम ने उसे खोज निकाला था. इंसपेक्टर गायकवाड़ की जांच और अनुभव यही कह रहा था कि कशिश ने अपनी मां संविधा की हत्या की है. 2 दिनों से वह उन की कस्टडी में था. लेकिन वह यह बात स्वीकार ही नहीं कर रहा था.

आखिर उन्होंने एक बार उस से फिर से पूछताछ शुरू की. कशिश ड्रग एडिक्ट था, इसलिए उन्होंने बड़ी सावधानी से अपनी बात उस के सामने रखी, ”देखो कशिश, मुझे पता है कि तुम ने गलती से अपनी मम्मी पर वार कर दिया और अनजाने में उन की मौत हो गई है. तुम नशे में थे, इसलिए तुम्हारी कोई गलती नहीं है. जो भी हुआ, वह सब अनजाने में हुआ था.’’

इंटेरोगेशन का यह तरीका आया काम

इंसपेक्टर गायकवाड़ की बातें सुन कर कशिश पल भर के लिए शांत हो कर उन्हें देखता रहा. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने आगे कहा, ”तुम चिंता मत करो, जो भी हुआ है, अनजाने में हुआ है. इस तरह की गलती में बहुत कम सजा होती है. उस में अगर तुम अपनी गलती स्वीकार कर के सब कुछ सचसच बता दोगे तो एकदम सामान्य सजा होगी. हो सकता है, शायद न भी हो. इसलिए सचसच बता दो कि उस दिन क्या हुआ था?’’

इंसपेक्टर गायकवाड़ की इन बातों का कशिश ने कोई जवाब नहीं दिया. पर वह थरथर कांप रहा था. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने दूसरा दांव चला, ”बेटा कशिश, तुम्हारी जिंदगी खराब करने वाली तुम्हारी मां ही थी. उन्होंने ही तुम्हें ड्रग्स की लत लगाई और दूसरी एक भयंकर सच्चाई कहूं? तुम्हारे पापा आशीष मरे नहीं हैं, वह जीवित हैं. तुम्हारी मां तुम से झूठ बोल रही थी. पापा की कोई आत्मा उन में नहीं आती थी. वह सब नाटक था.’’

इंसपेक्टर गायकवाड़ की ये बातें सुन कर कशिश चौंका. उस ने कहा, ”क्या बात कर रहे हैं सर, मेरे पापा जीवित हैं? मेरी मम्मी पूरी जिंदगी मुझ से झूठ बोलती रहीं. मुझे अंधेरे में रखे रही.’’

”हां, वह जीवित हैं और आज शाम तक वह यहां तुम्हारे सामने आ जाएंगे.’’

इंसपेक्टर गायकवाड़ की बातें सुन कर कशिश जोरजोर से रोने लगा. इंसपेक्टर ने उसे रो कर दिल हलका करने दिया. उस के बाद कशिश खुद बोलने लगा, ”आप की बात सच है सर. मुझ से गलती से यह काम हो गया है. मेरा इरादा मम्मी को मारने का नहीं था. उस दिन शाम को 4 बजे मैं, ऐशप्रिया, निखिल और मम्मी ड्रग्स लेने बैठे. उसी बीच पैसे को ले कर हमारे बीच झगड़ा होने लगा. उन का काम बंद हो गया था. इसलिए पैसा खत्म हो रहा था.

”पर मम्मी अपना ऐशोआराम नहीं छोड़ रही थी. वह मुझ से पैसे मांग रही थी. इसी बात को ले कर हमारा झगड़ा हुआ था. देर रात करीब साढ़े 11 बजे निखिल और ऐशप्रिया के जाने के बाद मम्मी मुझ से और ज्यादा झगडऩे लगी. मैं नशे में था. गुस्से में मैं मम्मी को मारने लगा. वह मेरे हाथों में नहीं आ रही थी, इसलिए मैं ने उन्हें धक्का मार कर बाथरूम में बंद कर दिया और बाहर निकल गया. देर रात वापस आ कर अपने बैडरूम में जा कर सो गया.

”सवेरे उठा तो नशा उतर गया था. मुझे मम्मी की याद आई. मैं तुरंत बाथरूम की ओर गया. बाथरूम खोला तो अंदर मम्मी मरी पड़ी थी. जब मैं उन्हें बाथरूम में बंद करने लगा था तो गलती से धक्का लगने से उन का सिर बाथरूम में लगे नल से टकरा गया होगा, जिस से वह मर गई होंगी.

”मैं तुरंत मम्मी को घसीट कर बाहर लाया और ड्राइंगरूम के फर्श पर लेटा दिया. इस के बाद बाथरूम को धो कर साफ किया. इतना सब कर के मैं घर से बाहर निकल गया और अपने एक ज्वैलर दोस्त से मिला.

”उस ने मेरी पूरी बात सुन कर सलाह दी कि जो हुआ है, उसे भूल जाऊं और मैं सीधे घर पहुंच जाऊं. रात की बात के बारे में किसी से बात न करूं. जो भी हो, उसे देखता रहूं. जब मैं घर पहुंचा तो आप अपनी टीम के साथ वहां हाजिर थे. उस के बाद जांच शुरू हुई. मुझे डर लग रहा था, इसलिए मैं सच नहीं बोल पाया.’’

इतना कह कर कशिश रो पड़ा. इंसपेक्टर गायकवाड़ ने कशिश से ज्वैलर का फोन नंबर ले कर उसे फोन कर के थाने बुलाया. पूछताछ में उस ने स्वीकार किया कि उसी ने कालूपुर रेलवे स्टेशन के पब्लिक टेलीफोन बूथ से फोन कर पुलिस को बंगले में लाश पड़ी होने की जानकारी दी थी. इस के बाद इंसपेक्टर गायकवाड़ ने कशिश ढोलकिया को गैरइरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उसी दिन शाम को आशीष ढोलकिया थाने आ पहुंचे. बेटे कशिश ने ही अपनी मम्मी की हत्या की है, यह जान कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. बेटे को लौकअप में देख कर वह रो पड़े.

इंसपेक्टर गायकवाड़ ने बड़ी होशियारी से हत्या के इस मामले का खुलासा किया. अतिमहत्त्वाकांक्षा और आधुनिक जीवनशैली अपराध को जन्म देती है, जिस से अनेक जीवन बरबाद होते हैं, यह मामला इस का एक सार्थक उदाहरण है.

—कहानी सत्य घटना पर आधारित. पहचान छिपाने के लिए कथा में पात्रों के नाम और स्थान बदल दिए गए हैं.

 

 

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