UP News :कभीकभी अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि हम समझ तक नहीं पाते कि यह सब कैसे और क्यों हुआ. सच यह है कि यह वक्त की ताकत होती है, जो इंसान के कर्म के हिसाब से अपनी मौजूदगी का अहसास कराती है. भरत दिवाकर ने नमिता को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उस ने बनाते हुए सोचा भी नहीं होगा कि इस का उलटा भी हो सकता है. आखिर यह सब…,
15 जनवरी, 2020. उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट. थाना भरतकूप के थानाप्रभारी संजय उपाध्याय अपने औफिस में बैठे थे. तभी भरतकूप के ही रहने वाले यशवंत सिंह उन के पास आए. यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर थे. यशवंत सिंह ने थानाप्रभारी को अपना परिचय दिया तो उन्होंने उन को सम्मान से कुरसी पर बैठाया. इस के बाद उन्होंने उन से आने का कारण पूछा तो यशवंत सिंह ने कहा, ‘‘सर, एक बहुत बड़ी प्रौब्लम आ गई है.’’
‘‘बताएं, क्या बात है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.
‘‘कल से मेरी बेटी नमिता का कहीं पता नहीं चल रहा है. मुझे आशंका है कि उस के पति पूर्व ब्लौक प्रमुख भरत दिवाकर ने उस की हत्या कर के लाश कहीं गायब कर दी है.’’
‘‘क्या?’’ यह सुनते ही एसओ संजय उपाध्याय चौंके, ‘‘आप की बेटी की हत्या कर के लाश गायब कर दी?’’
‘‘हां सर, भरत भी कल से ही लापता है. उस का भी कहीं पता नहीं है.’’ यशवंत सिंह ने बताया.
‘‘ठीक है, आप एक तहरीर लिख कर दे दें. मैं मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई करता हूं. इस बारे में जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलती है, आप को इत्तला कर दूंगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा.
यशवंत सिंह ने अपने 35 वर्षीय दामाद भरत दिवाकर को नामजद करते हुए लिखित तहरीर दे दी. उस तहरीर के आधार पर पुलिस ने नमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो मामला सही पाया गया. पड़ताल के दौरान एसओ उपाध्याय को पता चला कि 14 जनवरी, 2020 की रात करीब 10 बजे भरत दिवाकर को पत्नी नमिता के साथ गाड़ी में एक मिठाई की दुकान पर देखा गया था. उस के बाद से ही दोनों लापता थे. मामला गंभीर था. एसओ संजय उपाध्याय ने इसे बहुत संजीदगी से लिया. उन्होंने इस की सूचना एसपी अंकित मित्तल, एएसपी बलवंत चौधरी और सीओ (सिटी) रजनीश यादव को दे दी.
मामला समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख व उस की पत्नी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ा था. वैसे भी भरत दिवाकर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह खुद तो पूर्व ब्लौक प्रमुख था ही, उस की दादी दशोदिया देवी भी पूर्व ब्लौक प्रमुख थीं. दशोदिया देवी शहर की जानीमानी हस्ती थीं. इस परिवार का रुतबा था, शान थी, ऐसे में पुलिस का परेशान होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. भरत दिवाकर और उस की पत्नी नमिता का पता लगना जरूरी था. उसी दिन सुबह 11 बजे के करीब भरत दिवाकर की बहन सुमन के मोबाइल पर एक काल आई थी. काल भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद ने की थी. उस ने सुमन को बताया कि भरत भैया रात करीब 2-3 बजे बरुआ सागर बांध पर आए थे. उन की गाड़ी में बोरे में कोई वजनी चीज थी. उन के साथ मैं भी था.
हम दोनों बोरे में भरी चीज को ले कर बांध के किनारे पहुंचे. वहां पहले से एक नाव खड़ी थी. हम दोनों बोरे को ले कर नाव पर सवार हुए और आगे बढ़ गए. बोरा बांध में पलटते वक्त अचानक नाव पानी में पलट गई. अपनी जान बचा कर मैं तो किसी तरह तैर कर पानी से बाहर निकल आया, लेकिन भैया पानी में डूब गए. रामसेवक निषाद की बाद सुन कर सुमन हतप्रभ रह गई. उस ने यह बात अपनी मां चुनबुद्दी देवी से बताई तो मां के भी होश फाख्ता हो गए. बीती रात से मांबेटी भरत के घर लौटने का इंतजार कर रही थीं. लेकिन वह घर नहीं लौटा. उस का फोन भी नहीं लग रहा था.
भरत दिन में भले ही कहीं भी रहता हो, शाम होते ही घर लौट आता था. जब वह रात भर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को चिंता हुई. वे लोग उस की तलाश में जुट गए. उस के सारे यारदोस्तों से फोन कर के पूछ लिया गया, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. जब सुबह 11 बजे रामसेवक ने फोन से सुमन को सूचना दी तो घर वाले समझे कि भरत के साथ अनहोनी हो चुकी है. फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. ऐसे में सुमन ने थोड़े संयम से काम लिया.
उस ने भाई के साथ हुई अनहोनी की जानकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार को दे कर मदद की गुहार लगाई. क्योंकि उस समय सुमन को यही ठीक लगा. भरत के बांध में डूबने की जानकारी होते ही वह भी सकते में आ गया. जिस बरुआ सागर बांध में घटना घटी थी, वह भरतकूप थाना क्षेत्र में पड़ता था. अनूप ने इस की जानकारी भरतकूप थाने के एसओ संजय उपाध्याय को दे दी. एसओ संजय ने शिवराम चौकीप्रभारी अजीत सिंह को सूचित किया और मौके पर पहुंचने के आदेश दिए. अजीत सिंह के मौके पर पहुंचने के कुछ देर बाद एसओ संजय सिंह पुलिस टीम के साथ बरुआ सागर बांध पहुंच गए.
बांध के किनारे भरत दिवाकर की सफेद रंग की कार यूपी26डी 3893 लावारिस खड़ी मिली. कार की तलाशी ली गई तो उस में एक पैर की लेडीज चप्पल मिली. सुमन ने चप्पल पहचान ली. वह चप्पल उस की भाभी की थी. पुलिस ने बरामद चप्पल साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले ली. नमिता और भरत दिवाकर के गायब होने की खबर जिले भर में फैल गई. धीरेधीरे बांध पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. थोड़ी देर में एएसपी बलवंत चौधरी, सीओ रजनीश यादव, कोतवाल अनिल सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार और भरत दिवाकर के घर वाले भी पहुंच गए.
एएसपी बलवंत चौधरी ने एक नाव की व्यवस्था कराई. नाव के साथ ही एक गोताखोर और एक बड़े जाल का इंतजाम भी करवाया गया. पूरा इंतजाम हो जाने के बाद उन्होंने भरत का पता लगाने के लिए नाव में सवार हो कर बांध में उतरने का फैसला किया. पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी. लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी.
वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए. रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था. खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.
अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.
रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया. नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.
उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी. चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी. ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो.
भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी. बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था. आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.
खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों. भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.
प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी. आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.
बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा. जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था. परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.
भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था. भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.
अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ. भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था. कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.
घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था. अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.
नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी. ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.
एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’
दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’
नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा. नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’
उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया. मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.
नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया. दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.
राजनीति के मंझे खिलाड़ी भरत दिवाकर ने पत्नी नमिता से छुटकारा पाने की ऐसी योजना बना रखी थी कि किसी को उस पर शक ही न हो. उस ने ऐसा जाल इसलिए बिछाया था ताकि उस का राजनीतिक कैरियर बचा रहे. इस के बाद उस ने पत्नी को विश्वास में लेना शुरू कर दिया. भरत ने नमिता को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘नमिता, बीते दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ. अब से हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, जहां हमारे अलावा चौथा कोई नहीं होगा. जो हुआ, अब वैसा कभी नहीं होगा. इसीलिए मैं ने घर वालों से दूर हो कर यहां अलग रहने का फैसला किया है.’’
पति की बातें सुन कर नमिता की आंखें भर आईं. दरअसल, भरत चाहता था कि नमिता उस के बिछाए जाल में चारों ओर से घिर जाए. अपने मकसद में वह कामयाब भी हो गया था. भोलीभाली नमिता पति के छलावे को नहीं समझ पाई थी. अपनी योजना के अनुसार भरत ने 14 जनवरी, 2020 को बेटी तान्या को बड़ी साली के घर पहुंचा दिया. रात 8 बजे के करीब भरत नमिता से बोला, ‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी है. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े नामचीन लोग शामिल हो रहे हैं, तुम भी अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ. बहुत दिन से मैं ने तुम्हें कहीं घुमाया भी नहीं है. आज पार्टी में चलते हैं.’’
यह सुन कर नमिता खुश हुई. वह फटाफट तैयार हो गई. रात करीब 9 बजे दोनों अपनी कार से मुलायमनगर की एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे. वहां से भरत ने मिठाई खरीदी. यहीं पर भरत से एक चूक हो गई. मिठाई खरीदते समय उस की और नमिता की एक साथ की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई. यही नहीं, वहां से निकलने के बाद दोनों ने एक होटल में खाना भी खाया. वहां भी खाना खाते समय दोनों सीसीटीवी में कैद हो गए. इसी सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस की जांच को गति मिली थी. बहरहाल, खाना खाने के बाद भरत और नमिता होटल से निकले. भरत ने ड्राइवर रामसेवक को इशारों में संकेत दिया कि कार बरुआ सागर बांध की ओर ले चले.
मालिक का इशारा पा कर उस ने यही किया. रामसेवक कार ले कर सुनसान इलाके में स्थित बांध की ओर चल दिया. भरत और नमिता कार की पिछली सीट पर बैठे थे. गाड़ी जैसे ही शहर से दूर सुनसान इलाके की ओर बढ़ी, तो निर्जन रास्ते को देख नमिता को पति पर शक हुआ क्योंकि उस ने पार्टी में जाने की बात कही थी. नमिता ने जैसे ही सवालिया नजरों से पति की ओर देखा तो वह समझ गया कि नमिता खतरे को भांप चुकी है. आखिर उस ने चलती कार में ही अपने मजबूत हाथों से नमिता का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. योजना के मुताबिक, भरत ने पहले से ही कार की पीछे वाली सीट के नीचे एक प्लास्टिक का बड़ा बोरा रख लिया था. यही नहीं, बरुआ सागर बांध में लाश ठिकाने लगाने के लिए दिन में ही एक नाव की व्यवस्था भी कर ली थी.
इस काम के लिए भरत ने हरिहरपुर निवासी नाव मालिक रामसूरत से एक नाव की व्यवस्था करने के लिए कह दिया था. बदले में उस ने रामसूरत को कुछ रुपए एडवांस में दे दिए थे. रामसूरत ने भरत से नाव के उपयोग के बारे में पूछा तो उस ने डांट कर चुप करा दिया था. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए भरत रात 12 बजे के करीब कार ले कर बरुआ सागर बांध पहुंचा. बांध से कुछ दूर पहले रामसेवक ने कार रोक दी. दोनों ने मिल कर कार में से नमिता की लाश नीचे उतारी और उसे बोरे में भर दिया. फिर बोरे के मुंह को प्लास्टिक की एक रस्सी से कस कर बांध दिया.
उस के बाद बोरे के एक सिरे को भरत ने पकड़ लिया और दूसरा सिरा रामसेवक ने. दोनों बोरे को ले कर नाव के करीब पहुंच गए. वहां दोनों ने एक दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का बड़ा पत्थर भर दिया, जिसे लाश की कमर में बांध दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि लाश उतरा कर पानी के ऊपर न आने पाए और राज हमेशा के लिए पानी में दफन हो कर रह जाए. भरत दिवाकर और रामसेवक ने दोनों बोरों को उठा कर नाव में रख दिया. फिर दोनों नाव में इत्मीनान से बैठ गए. नाव की पतवार रामसेवक ने संभाल रखी थी. कुछ ही देर में दोनों नाव ले कर बीच मंझधार में पहुंच गए, जहां अथाह गहराई थी. भरत ने रामसेवक को इशारा किया कि लाश यहीं ठिकाने लगा दी जाए.
इत्तफाक देखिए, जैसे ही दोनों ने लाश नाव से गिरानी चाही, नाव में एक तरफ अधिक भार हो गया और वह पानी में पलट गई. नाव के पलटते ही लाश सहित वे दोनों भी पानी में जा गिरे. रामसेवक तैरना जानता था, इसलिए वह तैर कर पानी से निकल आया और बांध पर खड़े हो कर मालिक भरत की बाट जोहने लगा. घंटों बीत जाने के बाद जब वह पानी से बाहर नहीं आया तो रामसेवक डर गया कि कहीं मालिक पानी में डूब तो नहीं गए. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने घर लौट आया और इत्मीनान से सो गया. अगली सुबह यानी 15 जनवरी को उस ने भरत की छोटी बहन सुमन को फोन कर के भरत के बरुआ सागर बांध में डूब जाने की जानकारी दी.
इधर बेटी के अचानक लापता होने से परेशान पिता यशवंत सिंह ने भरत दिवाकर को आरोपी मानते हुए भरतकूप थाने में शिकायत दर्ज करा दी. बाद में बरुआ सागर बांध से नमिता की लाश पाए जाने के बाद पुलिस ने भरत दिवाकर और रामसेवक निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. घटना के 9 दिनों बाद उसी बरुआ सागर से भरत दिवाकर की भी सड़ीगली लाश बरामद हुई, जो भोलीभाली पत्नी नमिता की हत्या को राज बनाना चाहता था. प्रकृति में भरत दिवाकर को अपने तरीके से अनोखी मौत दे कर नमिता को हाथोंहाथ इंसाफ दे दिया.
—कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित