Extramarital Affair : आए दिन होने वाले शिकवेशिकायतों के बावजूद बबलू की जिंदगी 2 बीवियों संग राजीखुशी से गुजर रही थी. एक बार उस ने आधी रात में दूसरी बीवी को जब उस के प्रेमी की बांहों में देखा तो घर में ऐसा भूचाल आ गया कि…
रतलाम के दीनदयाल नगर के रहने वाले बबलू उर्फ संजय की दोनों बीवियों को अपनीअपनी सौतन के बारे में मालूम था. उस की पहली बीवी कुआंझागर गांव में बूढ़े सासससुर के साथ रहते हुए गृहस्थ जीवन गुजार रही थी, जबकि दूसरी पास के तेतरी गांव में रहती थी. संयोग से दोनों का नाम माया था. दूसरी बीवी पास में ही हुसैन समोसावाला के कौटेज पर चौकीदारी का काम करती थी, जहां बबलू भी चौकीदार था. दोनों की जानपहचान काम करते हुए करीब ढाई साल पहले हुई थी. बबलू उस की अल्हड़ जवानी और खूबसूरती पर फिदा हो गया था. जबकि दिलफेंक और बातूनी बबलू भी कुछ कम आशिकमिजाज नहीं था.
एक दिन बातोंबातों में उस ने बोल दिया, ”मेरी जिंदगी भी गजब की हसीन और माया से भरी हुई है. इधर भी माया, उधर भी माया.’’
”क्या मतलब हुआ इस का? चौकीदारी के काम में नईनई आई माया ने सवाल किया था.
”एक तुम माया हो और एक वह मोहमाया है…’’ बबलू बोला और वहां से चला गया. थोड़ी देर में ही उस के पास लौट आया… उस के दोनों हाथों में चाय का कप था.
”यह लो अब चाय के मजे लो!’’
”अरेअरे! तुम क्यों लाए, बोल देते मैं थर्मस में ले आती. वैसे एक बात कहूं, तुम हो मजेदार इंसान!’’ माया हंसती हुई बोली.
”वह तो हूं ही, यहां टाइम पास करने के लिए ऐसा बनना पड़ता है. यह लो पहले चाय पीयो…’’
इस तरह दोनों के बीच बातें होने लगीं. इधरउधर की बातें करते और चौकीदारी के उबाऊपन को दूर करते थे. जल्द ही उन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई और एकदूसरे को दिल दे बैठे. बबलू माया की हर बात का खयाल रखने लगा था. बिंदास और बोल्ड स्वभाव की माया को उस के शादीशुदा होने के बारे में पता चल चुका था. यही बात उसे अच्छी लगी कि बबलू ने अपने बारे में कुछ भी उस से नहीं छिपाया था. उस ने प्रेम का इजहार करते हुए पहली बार में ही अपने बारे में सच्चाई बता दी थी. माया को उस में एक सच्चे इंसान की झलक दिखी और फिर भी उसे न जाने क्या सूझी, उस के साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगी.
और फिर बबलू 2 बीवियों वाला एक जिम्मेदार पति बन गया. उस ने पहली बीवी से भी कुछ नहीं छिपाया. उसे भी सब कुछ सचसच बता दिया. बबलू की यही सच्चाई पहली बीवी को भी पसंद आई और इस का कोई विरोध नहीं किया.
2 पत्नियों के साथ खुश था बबलू
उस की दोनों बीवियों की उम्र में काफी अंतर था. दूसरी बीवी उम्र में उस से काफी छोटी, खिली हुई कली जैसी जवानी से भरी हुई थी. कहने को तो पहली पत्नी के मन में सौतन को ले कर तकलीफ नहीं थी, लेकिन किसी ब्याहता स्त्री के लिए यह सहन करना आसान नहीं होता. ऐसा ही बबलू की पहली पत्नी के साथ भी हुआ था. वह जब भी 2-3 दिनों के बाद अपने गांव आता था, तब उस की पहली पत्नी शिकायतों का पिटारा ले कर बैठ जाती थी.
”अरे! तुम गलत टाइम पर आए हो!’’ अचानक घर आए पति बबलू से उस के सामान का थैला ले कर पहली पत्नी माया बोली.
”ऐसा क्यों भला?’’ बबलू आश्चर्य से बोला.
”अब छोड़ो, बाद में बताऊंगी!’’ माया ने कहा.
”अरे परेशान मत करो, तुम तो जानती हो कि माया के साथ रह कर भी मैं तुम्हें कितना याद करता हूं.’’ बबलू बोला.
”अब रहने भी दो. इतना ही मुझ पर मरते तो सौतन ला कर मेरी छाती पर नहीं बिठाते. महीने में 2 दिन के लिए आते हो और बातें करते हो जैसे मेरे बिना सैंयाजी के गले से खाना भी नहीं उतरता हो.’’ पहली पत्नी माया ने शिकायती अंदाज में कहा.
”तुम जलीकटी बातें करना कब छोड़ोगी?’’
”जब तुम मेरी सौतन को छोड़ दोगे.’’
”यह नहीं हो सकता.’’
”तो सुनते रहो मेरी जलीकटी. गनीमत मनाओ कि इस के बाद भी मैं तुम्हें पास आने देती हूं. कोई और होती तो अब तक भाग गई होती किसी के साथ.’’ माया तेवर के साथ बोली.
बात को बदलते हुए बबलू बोला, ”अच्छा ठीक है, अब खाना खिला दो, बहुत भूख लगी है.’’
”सच है, दूसरी भूख पूरी करने वाली माया जो है.’’
”अरे? तुम फिर शुरू हो गई.’’
”अच्छा, गुस्सा न करो, हाथमुंह धो लो… थोड़ा सुस्ता लो… तब तक खाना पक जाएगा.’’ माया बोली.
बबलू ने पत्नी की बात को आज्ञा की तरह मान लिया. हाथमुंह धो कर बाहर कमरे में अपने मातापिता के पास जा कर बैठ गया. उन का हालसमाचार पूछने लगा. उन से बातें करने लगा.
मांबाप की देखभाल उस की पहली पत्नी ही गांव में रहते हुए करती थी, जबकि दूसरी पत्नी माया उस के साथ ही तेतरी में रहती थी. माया की उम्र बबलू से करीब 20 साल कम थी. उस से शादी कर साथ रहने को ले कर पहली पत्नी काफी नाराज हो गई थी, लेकिन उसे माया की कमाई से मिलने वाले पैसे का लालच दे कर मना लिया था. उस के पास महीने में 2-3 बार कुआंझागर आने लगा था.
21 जनवरी के रोज भी वह माया को छोड़ कर पहली पत्नी के पास आया था. वह अपनी मां से बात कर रहा था. तभी पत्नी ने तेज आवाज दी, ”अम्मा!…अरी ओ अम्मा!’’
”अच्छा अभी आती हूं… तू बाबूजी के पास बैठ, मैं तेरे लिए रोटी सेंक कर आती हूं.’’ बोलती हुई मां वहां से उठ कर तुरंत चली गई. मां को इस तरह से अपनी बहू की एक आवाज पर चली जाना बबलू को कुछ अच्छा नहीं लगा. वह सोचने लगा, इस का मतलब पत्नी उस से घर का सारा कामकाज करवाती होगी.
हालांकि उस का ऐसा सोचना गलत तब निकला, जब उसे पत्नी से मालूम हुआ कि वह इन दिनों मासिक धर्म के दौर में है. उसे अपनी सोच पर कुछ समय के लिए पछतावा हुआ, साथ ही अफसोस भी कि वह ऐसे वक्त में बेकार ही आया! उसे यह भी समझने में देरी नहीं लगी कि पत्नी ने आते ही क्यों कहा था कि वह गलत वक्त पर आया है. वह अब क्या करे, क्या नहीं! इसी उधेड़बुन में पड़ गया. इसी बीच मां ने खाना खाने के लिए आवाज लगाई. अचानक उस के दिमाग में बिजली कौंध गई. इसी अपने अधलेटे बाबूजी से बोला, ”मैं दूसरे गांव से तेतरी लौट रहा था, सोचा आप लोगों से मिलता चलूं. खाना खा कर लौट जाऊंगा.’’
बबलू रोमांटिक मूड बना कर आया था, जिस पर पानी फिर चुका था. इसलिए वापस दूसरी पत्नी के पास लौटना ही बेहतर समझा. शाम हो चुकी थी और ठंड भी बढ़ गई थी. पत्नी और अम्माबाबूजी के मना करने के बावजूद वह तेतरी के लिए घंटे भर में ही लौट गया. उस के भीतर वासना हिलोरें मार रही थी. वह शराब का भी शौकीन था और उस ने माया को भी इस का जबरदस्त चस्का लगा दिया था. शराब के नशे में माया और भी कामुक हो जाती थी. वह उसे तृप्त कर देती थी. शराब के नशे में यौनसंबंध बनाना उसे बेहद पसंद था. यही सोचते हुए उस ने शराब की अद्धा बोतल खरीद ली.
बंद कमरे का ऐसा खुला रहस्य
तेतरी पहुंचतेपहुंचते आधी रात के करीब हो गई थी. घर के पास पहुंच कर वह चौंक गया. ठीक दरवाजे के बाहर एक बाइक खड़ी थी. दरवाजे तक जाने का रास्ता भी नहीं बचा था. वह भुनभुनाया, ‘कौन कमबख्त यहां बाइक लगा गया है?’
इधरउधर नजरें दौड़ाईं, कोई नजर नहीं आया. बाइक भी अनजानी लगी. फिर किसी तरह बाइक को थोड़ी टेढ़ी कर कमरे के दरवाजे का पास पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी के पास की दरार से अंदर की थोड़ी रोशनी बाहर आ रही थी. वहां से वह झांक कर देखने लगा. भीतर का नजारा देख कर फिर चौंक गया. माया बैड पर अधनंगी बैठी थी. हाथ में शराब का गिलास लिए घूंट मार रही थी. वह कुंडी खटखटाने को ही था कि उस ने देखा माया के चेहरे पर सिगरेट का गहरा धुंआ भर गया है. वह समझ गया कि उस के साथ कोई मर्द है, जो सिगरेट पी रहा है.
तभी एक मर्द दिखा, उस ने माया के हाथ से शराब का गिलास ले लिया. फिर उस ने माया को बाहों में जकड़ लिया था. जैसे ही उस ने माया को अपनी गोद में बिठाया, उस का चेहरा दिख गया. बबलू ने उसे पहचान लिया. वह भरत भाभोर था. जेतवाड़ा का रहने वाला था और वहीं लोडिंग पिकअप पर काम करता था. माया उसी के साथ अंतरंग स्थिति में बेसुध थी. भाभोर उसे शराब पिला रहा था. चूम रहा था. दोनों कामवासना से भरे खोए हुए थे. बबलू के लिए यह नजारा एक बिजली के झटके के समान था. वह आक्रोश से भर गया था. हालांकि गुस्से में उस ने धैर्य से काम लिया. दरवाजा खटखटाने के बजाय वहां से हट कर उस ने पास के गांव में रहने वाले आपने रिश्तेदारों और दोस्तों को फोन कर दिया. उन्हें तुरंत उस के पास आने के लिए बोला.
थोड़ी देर में ही कोलावाखेड़ी गांव से उस का मौसेरा भाई सुनील, जुलवानिया से दिनेश परमार और आलेनिया गांव से ईश्वर सिंगाड़ा और राहुल, राहुल मालीवाड़ पहुंच गए. कड़ाके की ठंड में घर के बाहर बैठे बबलू ने उन्हें कमरे के भीतर दूसरे मर्द के साथ अय्याशी कर रही माया के बारे में बताया. उन्हें रंगेहाथों पकडऩे के लिए उन से मदद मांगी. इसी बीच कमरे के भीतर माया ने बाहर की हलचल सुन ली. वह चौंकने के साथसाथ अज्ञात आशंका को ले कर चिंतित हो गई. उस ने खिड़की से बाहर देखा. वहां बबलू को कुछ लोगों के साथ देख कर परेशान हो गई. कमरे से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था. वह बेहद डर गई कि आगे क्या होने वाला है. डर कर उस ने कमरे में अंदर से ताला लगा लिया. जबकि बबलू ने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया था.
दूसरी पत्नी का प्यार चढ़ा परवान
बबलू के पास एक ही उपाय था कि किसी तरह से दरवाजे को तोड़ दिया जाए. सभी दरवाजे के किनारे से खुदाई करने लगे. जबकि भीतर कमरे में माया दुबकी रही और भाभोर दरवाजा खुलने के साथ भाग निकलने की ताक में था. जल्द ही बबलू और दूसरे लोगों ने मिल कर दरवाजा बाहर से तोड़ दिया. दरवाजे का आधा भाग खुलते ही भाभोर ने भागने की कोशिश की, लेकिन उसे सभी ने पकड़ लिया. उस ने जान छुड़ा कर भागना चाहा, किंतु तब तक उस पर लाठी, लोहे के सब्बल आदि से मार पडऩे लगी. भाभोर धराशाई हो गया. उस के बाद बबलू ने सभी साथियों के साथ मिल कर वहां शराब पी, जबकि माया पीटे जाने के डर से कमरे में ही दुबकी रही.
सुबह होने से पहले बबलू ने अपने दोस्त दिनेश परमार के साथ मरणासन्न भाभोर को उस की बाइक पर लाद कर कनेरी गांव में हाईस्कूल के पास फेंककर वापस तेतरी गांव लौट आया. सुबह होते ही 22 जनवरी, 2025 को मध्य प्रदेश के रतलाम के डीडी नगर थाने के टीआई रविंद्र दंडोतिया को कनेरी में किसी युवक की लाश होने की सूचना मिली. लाश की शिनाख्त होने पर उस की पहचान भरत भाभोर के रूप में हुई, जो जैतमाड़ी का निवासी था.
इस की जांच के लिए एसपी अमित कुमार ने एएसपी राजेश खाखा और सीएसपी सत्येंद्र घनोरिया के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. जांच के लिए चौतरफा पुलिस के मुखबिर लगा दिए गए. उन की सक्रियता से पता चला कि भरत भाभोर का तेतरी निवासी बबलू की पत्नी माया के साथ महीनों से प्रेम संबंध बनाए हुए था. इस की जानकारी बबलू को जरा भी नहीं थी. जबकि उस ने भी माया से प्रेम किया था और औपचारिक विवाह बंधन में बंध कर उस के साथ रह रहा था.
घटना के बाद से माया भी घर से लापता थी. जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ी. सुनील पुलिस के कब्जे में आ गया. वह कोलवाखेड़ी निवासी रामलाल गणवा का बेटा था. उस ने भाभोर की हत्या की पूरी दास्तान सुना दी. उस के बाद उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. पुलिस को माया और बबलू के प्रेम संबंधों के बारे में अच्छी तरह से मालूम हो गया था. बबलू माया को 2-3 दिनों के लिए छोड़ कर अपनी पहली पत्नी और मातापिता से मिलने के लिए पुश्तैनी गांव कुआंझागर चला जाता था. इसी बीच माया और भरत भाभोर एकदूसरे के करीब आ गए थे. माया अपने पति की गैरमौजूदगी में प्रेमी भाभोर को घर बुला लेती थी और उस के संग बेफिक्र हो कर गुलछर्रे उड़ाती थी.
वारदात के दिन भी बबलू अपनी पहली पत्नी के पास गया था. मगर संयोग से वह उसी रात लौट आया था. उस ने माया को भरत के साथ कमरे में बंद देखा था. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने भरत की जम कर पिटाई की थी. इस बीच मौका देख कर माया फरार हो गई थी. डीडी नगर थाने में धारा 103(1) बीएनएस के तहत केस दर्ज कर लिया गया था. टीआई रविंद्र दंडोदिया और जांच टीम के प्रयास से वारदात के 10 दिन बाद बबलू और उस की पत्नी माया को भी गिरफ्तार कर लिया. बबलू ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. तब उसे भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक 3 आरोपी फरार थे.