Crime News : शहर में अपनी छत, अपना घर हर इंसान का सपना होता है. इसीलिए पिछले 2 दशकों में लोगों के इस सपने को पूरा करने के लिए देश भर में बिल्डरों, रियल एस्टेट ग्रुप्स और डेवलपर्स की बाढ़ आ गई है. इन में कुछ ईमानदारी से काम करते हैं तो कुछ जनता के सपने पूरा करने का सपना दिखा कर उन के खूनपसीने की कमाई पर डाका डालते हैं. कुछ रियल एस्टेट ग्रुप्स ने आशियाने का ख्वाब दिखा कर लोगों की जेब से सैकड़ों करोड़ रुपए इतनी आसानी से निकाल लिए कि…

रियल एस्टेट के ये ग्रुप इतने चतुर होते हैं कि वे जनता के पैसे का ही इस्तेमाल कर उन की अपनी संपत्ति का मालिक बनाने के ऐसे सपने दिखाते हैं, जो कभी पूरा ही नहीं होता. अपनी संपत्ति का सपना दिखाने वाले लोगों को बताते हैं कि वे अगर उन के रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में पैसा लगाएंगे तो कुछ समय बाद उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा. यानी प्रोजेक्ट के लिए एडवांस में एक निश्चित रकम निवेश करने के बाद जब वे अपनी संपत्ति के मालिक बनेंगे तो उस की कीमत कई गुना बढ़ जाएगी. अपनी संपत्ति होने का रंगीन सपना देखने वाले ये लोग भूल जाते हैं कि रियल एस्टेट कई तरह के घोटालों से भरा हुआ उद्योग है.

रियल एस्टेट में जुड़े धोखेबाज कई तरह झूठे वादे कर के खरीदारों, विक्रेताओं और निवेशकों का शोषण करते हैं, जिस से वे अपनी खूनपसीने की कमाई गंवा देते हैं और कानूनी परेशानियों का सामना करने लगते हैं. अपना घर, दुकान या औफिस के लिए निवेश करते समय रियल एस्टेट से जुड़े लोग कई प्रोजेक्ट लांच होने से पहले ही रियल एस्टेट परियोजनाओं में निवेश कर देते हैं, ताकि उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सके. लेकिन ऐसे प्रोजेक्ट्स में डेवलपर या तो समय पर काम पूरा नहीं कर पाते या फिर प्रोजेक्ट को पूरी तरह से छोड़ देते हैं, जिस से खरीदार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं.

कोविड से ठीक पहले की बात है. दिल्लीएनसीआर में ऐसे कई रियल एस्टेट डेवलपर्स थे, जिन्होंने बहुत सारे प्रोजेक्ट लांच किए, लेकिन उन में से कई बहुत देरी से ग्राहकों को डिलीवर हुए तो कई डिलीवर ही नहीं हुए. इस बीच में कुछ रियल एस्टेट कंपनियां ऐसी आईं, जिन्होंने ग्राहकों के इस भरोसे को फिर से जीतने का काम किया. तभी कोविड के बाद रियल एस्टेट की डिमांड भी बढ़ी तो इन का नाम भरोसे की पहचान बन गया. इन्हीं में से 2 नाम वल्र्ड ट्रेड सेंटर्स और भूटानी इंफ्रा थे. लेकिन अचानक ये दोनों रियल एस्टेट ग्रुप और डेवलपर्स ईडी जांच एजेंसी और इनकम टैक्स विभाग के निशाने पर आ गए.

इसी साल मार्च के पहले हफ्ते में देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के शहरों में अपना आशियाना खरीदने की चाहत रखने वाले सैकड़ों लोगों के साथ धोखाधड़ी कर उन के सपनों को तारतार करने वाली कंपनियों के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने ताबड़तोड़ ऐक्शन लिया. ईडी ने रियल एस्टेट सेक्टर की 2 नामी कंपनियों के ठिकानों पर छापेमारी की थी. इस से दिल्ली से ले कर नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद तक में हड़कंप मच गया.

इस काररवाई से हजारों करोड़ की संपत्तियों का पता चला है. इस के अलावा बड़ी संख्या में संवेदनशील दस्तावेज भी बरामद किए गए. ये कंपनियां घर खरीदारों और निवेशकों के पैसों पर कुंडली मार कर बैठ गई थीं. 10 साल से भी ज्यादा का समय होने के बावजूद न तो घर दिए गए और न ही वादे के अनुसार प्लौट ही सौंपे गए.

ईडी ने क्यों की कई ग्रुप्स के खिलाफ काररवाई

ईडी ने रियल्टी फर्म डब्ल्यूटीसी ग्रुप और भूटानी ग्रुप के खिलाफ दिल्लीएनसीआर में छापेमारी के बाद हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति की पहचान की. दरअसल, ईडी ने 27 फरवरी को दिल्ली, नोएडा (उत्तर प्रदेश), फरीदाबाद और गुरुग्राम (दोनों हरियाणा में) में एक दरजन स्थानों पर डब्ल्यूटीसी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भल्ला और भूटानी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भूटानी के खिलाफ मनी लांड्रिंग के मामले के तहत छापेमारी की.

ईडी ने यह काररवाई दिल्ली पुलिस की इकोनौमिक आफेंस विंग (ईओडब्ल्यू) और फरीदाबाद पुलिस द्वारा डब्ल्यूटीसी ग्रुप और उस के प्रमोटर आशीष भल्ला, सुपर्णा भल्ला, अभिजीत भल्ला और भूटानी इंफ्रा और अन्य के खिलाफ दर्ज कथित धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और सैकड़ों घर खरीदारों के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में हुई दरजनों एफआईआर के आधार पर की.

दूसरी बार छापेमारी मार्च के पहले सप्ताह में की गई. छापेमारी की काररवाई और पड़ताल के बाद ईडी ने डब्ल्यूटीसी ग्रुप के प्रमोटर आशीष भल्ला को गिरफ्तार कर लिया. इस पर करोड़ों रुपए के फ्रौड के आरोप हैं. नोएडा में डब्ल्यूटीसी के करीब आधा दरजन प्रोजेक्ट अभी अंडर कंस्ट्रक्शन में हैं. ईडी ने कंपनी के अकाउंट, एफडी को फ्रीज कर लिया.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, रियल्टी फर्म के खिलाफ सैकड़ों घर खरीदारों और इनवेस्टर्स ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उन से पैसे तो ले लिए गए, लेकिन घर, दुकान, औफिस व प्लौट अब तक नहीं दिए गए. इस के आधार पर ही ईडी ने मामला दर्ज किया था. अब आगे की काररवाई की जा रही है. हालांकि भूटानी इंफ्रा ने छापे के बाद कहा था कि उस ने हाल ही में डब्ल्यूटीसी ग्रुप के साथ अपने सभी संबंध तोड़ लिए हैं और अब वह जांच में ईडी के साथ पूरा सहयोग कर रहा है.

पुलिस एफआईआर में साफ लिखा है कि डब्ल्यूटीसी फरीदाबाद इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और उस के प्रमोटरों ने शहर के सेक्टर 111-114 में रेजिडेंशियल प्लौट के लिए अपने प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए आम जनता को प्रलोभन दिया था. इस में कहा गया कि प्रमोटरों/निदेशकों ने एक आपराधिक साजिश रची और निर्धारित समय के भीतर परियोजना को पूरा न कर के और 10 साल से अधिक समय तक भूखंडों की डिलीवरी न कर के प्लौट खरीदारों की गाढ़ी कमाई को हड़प लिया.

निवेशकों की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया कि भूटानी इंफ्रा समूह ने डब्ल्यूटीसी समूह का अधिग्रहण कर लिया और फरीदाबाद सेक्टर 111-114 में प्रोजेक्ट को फिर से शुरू किया, जिस से प्लौट खरीदारों को अंधेरे में रखा गया है और निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की गई है. उन्हें अपनी यूनिट्स सरेंडर करने के लिए लुभाया गया है. ईडी को छापेमारी में दिल्लीएनसीआर में 15 प्रोजेक्ट के खिलाफ विभिन्न निवेशकों से 3,500 करोड़ रुपए से अधिक की वसूली से संबंधित दस्तावेज मिले हैं. हालांकि, ईडी ने यह नहीं बताया कि ये दस्तावेज कहां से बरामद किए गए.

डब्ल्यूटीसी ग्रुप द्वारा शुरू की जा रही 15 प्रमुख परियोजनाओं में से बहुत कम की डिलीवरी दी गई है, जो एक सुनियोजित पोंजी स्कीम और अन्य संस्थाओं के नाम पर संपत्ति बनाने और विदेशों में धन की हेराफेरी का संकेत देती है. सिंगापुर और अमेरिका भी पैसा भेजे जाने के सबूत मिलने के दावे किए गए हैं. ईडी की काररवाई चल ही रही थी कि इनकम टैक्स अधिकारियों ने भी 4 से 10 मार्च के बीच कोलकाता के 2, गुडग़ांव के 2, गाजियाबाद के 5, दिल्ली के 4, नोएडा के 12  बिल्डरों समेत 40 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी कर के रियल एस्टेट वालों की नींद उड़ा दी.

इनकम टैक्स के 100 से अधिक अफसरों ने छापेमारी के बाद बरामद दस्तावेजों के आधार पर पूरा ब्यौरा खंगाला. कई सौ करोड़ के कैश और 50 करोड़ के गलत लेनदेन की जानकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के हाथ लगी है. पता चला कि इन बिल्डरों ने कामर्शियल प्रौपर्टी में 40 फीसदी नकद खपाया था. बड़े स्तर पर टैक्स चोरी के इनपुट के चलते छापेमारी को आगे बढ़ाया गया.

इनकम टैक्स विभाग भी आया हरकत में

इनकम टैक्स अधिकारियों की पूछताछ और दस्तावेजों की छानबीन में भूटानी और 108 ग्रुप के काले कारनामों को भी इनकम टैक्स टीम ने उजागर किया. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की टीम ने इस छापेमारी के दौरान 2 हजार करोड़ लोन में खेल का खुलासा किया. लौजिक्स, एडवेंट और ग्रुप 108 बिल्डर समेत 2 ब्रोकर कंपनियों के यहां भी रेड डाली गई थी. ये ग्रुप कैश में प्रोजेक्ट बेचते थे. लौजिक्स ग्रुप ने इंडिया बुल्स से करीब 2000 करोड़ का लोन लिया. इस लोन के बाद उस ने नोएडा में 5 से 6 प्लौट लिए. ये प्लौट औफिस कामर्शियल स्पेस के लिए थे. यहां निर्माण शुरू किया गया, लेकिन आधेअधूरे निर्माण के बाद लौजिक्स ने काम बंद कर दिया.

उधर लगातार इंडिया बुल्स की ओर से लोन जमा करने का प्रेशर बना, जिस के चलते लौजिक्स ने भूटानी ग्रुप के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया, जिस के तहत भूटानी ग्रुप इन का कामर्शियल स्पेस बनाएगा और बेचेगा. धीरेधीरे लोन के पैसे लौजिक्स को देगा. हुआ भी ऐसा ही. लेकिन यहां अधिकतर खेल टैक्स चोरी कर किया गया. दरअसल, डेढ़ साल पहले फरवरी 2022 में इनकम टैक्स विभाग को पहला इनपुट मिला था. इस के बाद उन्होंने दस्तावेजों को खंगालना शुरू किया. इस दौरान उन्हें जानकारी मिली कि भूटानी ग्रुप 2 भागों में बंट गया.

पहला भूटानी इंफ्रा और दूसरा ग्रुप 108. इन का पैसा भी इस कामर्शियल स्पेस में लगा. इसी तरह एडवंट बिल्डर भी पहले भूटानी के साथ कोलेबोरेशन में काम करता था. उस का पैसा भी इस में लगा है. इसीलिए इन चारों बिल्डरों पर भी एक साथ रेड की गई है. कामर्शियल स्पेस बेचने में टैक्स चोरी का पूरा खेल बेहद दिलचस्प तरीके से अंजाम दिया गया. इस फरजीवाड़े में 40 प्रतिशत कैश लिया जाता था. यह पूरा खेल लौजिक्स ग्रुप के कामर्शियल प्लौट स्पेस को बेचने को ले कर किया गया. लौजिक्स ने इस के लिए भूटानी ग्रुप से इंटरनल एग्रीमेंट किया, जिस के तहत भूटानी ने इस स्पेस को बेचना शुरू किया. यहां अधिकांश पैसा ब्लैक में खपाया गया.

प्लौट को बेचने में 40 प्रतिशत तक की धनराशि कैश में ली गई. इस के न कोई पक्के दस्तावेज होते थे और न ही कोई लीगल डाक्यूमेंट. इसी कामर्शियल स्पेस में नामीगिरामी लोगों ने अपना ब्लैक मनी भूटानी ग्रुप में खपाया.

डब्ल्यूटीसी से हुई घपले की शुरुआत

इस घपले की शुरुआत होती है डब्ल्यूटीसी यानी वल्र्ड ट्रेड सेंटर्स कंपनी से. डब्ल्यूटीसी समूह एक रियल एस्टेट कंपनी है, जो दिल्ली एनसीआर में कई परियोजनाओं पर काम करती थी. इस के कर्ताधर्ता हैं आशीष भल्ला, जो एक आदतन अपराधी है. आशीष भल्ला का काम करने का तरीका यह है कि वह डब्ल्यूटीसी एसोसिएशन यूएसए से फ्रेंचाइजी लेता है. मुख्य रूप से भारत में इनवैस्टर क्लिनिक और विदेशों में स्क्वायर यार्ड और उन के विभिन्न बिक्री एजेंटों के माध्यम से प्रोजेक्ट बेचता है. इन प्रौपर्टी एजेंट्स के माध्यम से डब्ल्यूटीसी नोएडा के प्रोजेक्ट को डब्ल्यूटीसी यूएसए परियोजनाओं का बता कर बेचा जाता है. इस के बाद फिर खरीदारों से भारी प्रीमियम लिया जाता है.

डब्ल्यूटीसी नोएडा प्रोजेक्ट में निवेश करने वाले हजारों बायर्स ने अपनी जीवन भर की जमापूंजी डब्ल्यूटीसी के प्रोजेक्ट में लगाई,  लेकिन अब भी वे अपने निवेश पर ठगे महसूस कर रहे हैं. डब्ल्यूटीसी नोएडा के डायरेक्टर आशीष भल्ला ने लगभग 5 हजार करोड़ रुपए और 20 हजार से अधिक खरीदारों और निवेशकों को धोखा दिया है. बायर्स ने विभिन्न प्रोजेक्ट्स जैसे टेक-1 और 2, 1डी, 1ई, सिग्नेचर टेक जोन, प्लाजा, क्वाड, क्यूबिक और रिवरसाइड रेजिडेंसी में निवेश करने वालों को अब तक उन का हक नहीं मिला है.

बायर्स अब तक 13 से अधिक विरोध प्रदर्शन और प्रैस कौन्फ्रेंस कर चुके हैं. उन्होंने सभी संबंधित अधिकारियों और नेताओं से भी संपर्क किया, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बायर्स ने रेरा, उपभोक्ता अदालतों, हाईकोर्ट और एनसीएलटी सहित कई जगहों पर शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन अब तक कोई ठोस काररवाई नहीं हुई थी. नोएडा प्रशासन और अन्य सरकारी एजेंसियां भी जिम्मेदारी लेने से बचती रहीं. बायर्स को 27 से अधिक मामलों की सुनवाई के बावजूद कोई राहत नहीं मिली.

बायर्स ने डब्ल्यूटीसी नोएडा व आशीष भल्ला के खिलाफ विभिन्न भारतीय अदालतों में कई कानूनी मामले दर्ज कराए थे. दरअसल, इस प्रोजेक्ट में भूटानी ग्रुप द्वारा शेयर खरीद कर एक और बड़े फ्राड को अंजाम देने की भूमिका तैयार की जा रही थी. भूटानी डब्ल्यूटीसी नोएडा परियोजना को भूटानी अल्फातम परियोजना में बदलने की पेशकश करने लगा. डब्ल्यूटीसी नोएडा आशीष भल्ला प्रौपर्टी एजेंटों को भारी कमीशन देता था. हकीकत यह थी कि डब्ल्यूटीसी यूएसए का नोएडा डब्ल्यूटीसी से कोई संबध था ही नहीं. डब्ल्यूटीसी यूएसए ने कभी आशीष भल्ला को अपना नाम इस्तेमाल करने या उन की कंपनी से संबध जोडऩे की अनुमति नहीं दी थी.

जब डब्ल्यूटीसी नोएडा की धोखाधडिय़ों के बारे में उन के बायर्स ने डब्ल्यूटीसी यूएसए के साथ पत्राचार कर उस के कारनामों के बारे में शिकायत की तो यूएसए की कंपनी ने साफ कर दिया कि उन की डब्ल्यूटीसी नोएडा में कोई जिम्मेदारी नहीं है. बायर्स ने जब 2 कदम आगे बढ़ा कर कारपोरेट मामलों के मंत्रालय में छानबीन की तो पता चला कि डब्ल्यूटीसीए यूएसए और डब्ल्यूटीसी नोएडा (वेरिडन रेड) के बीच कोई संबंध नहीं है. इस के बाद साफ हो गया कि आशीष भल्ला आदतन अपराधी होने के कारण ही कभी भी अपना कोई प्रोजेक्ट पूरा नहीं करता है और खरीदारों का सारा पैसा अपनी शेल कंपनियों में जमा कर देता है.

भूटानी ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट में शेयर खरीद कर एक और बड़ा घोटाला किया. भूटानी ग्रुप, डब्ल्यूटीसी नोएडा को भूटानी अल्फातम प्रोजेक्ट में बदलने का प्रयास करने लगी और बाजार दर से अधिक कीमत वसूलने की योजना बनाई. आयकर विभाग की काररवाई से पहले प्रवर्तन निदेशालय ने डब्ल्यूटीसी नोएडा और आशीष भल्ला-भूटानी ग्रुप के 12 ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिस में 3,500 करोड़ रुपए के अवैध दस्तावेज बरामद हुए थे. सिंगापुर में फंड ट्रांसफर का खुलासा हुआ. मनी लांड्रिंग की इसी जांच के लिए ईडी ने आशीष भल्ला को गिरफ्तार कर 7 दिनों के रिमांड पर भी लिया.

आशियाने के लिए दरदर भटक रहे हैं लोग

डब्ल्यूटीसी में इनवैस्ट करने वालों की अपनीअपनी कहानियां है. एक बायर सुजीत सिंह ने साल 2018 में डब्ल्यूटीसी बिल्डर के यहां लाखों रुपए इनवैस्ट किया था. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें अपना पैसा डूबता हुआ नजर आ रहा था, लेकिन भूटानी के आने से अब उन्हें थोड़ी राहत मिलती दिखी. क्योंकि भूटानी ने उन से कहा कि आप हमारी कुछ शर्तों पर फार्म भर दीजिए, जिस के बाद अधिकांश बायर्स ने नई शर्तों के साथ फार्म भर दिए. उन्हें उम्मीद थी कि उन की यूनिट मिल जाएगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका तो बायर्स ने फिर सरकार से गुहार लगाई और भूटानी बिल्डर से भी कहा कि जल्द से जल्द उन के औफिस बना कर पजेशन दिए जाएं.

एक अन्य बायर तरुण रावत का भी यही दर्द है, उन्होंने बताया कि दुबई से उन के भाई ने डब्ल्यूटीसी में लाखों रुपए इनवैस्ट किया था. अब वे काफी लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं. प्रोजेक्ट भूटानी में शिफ्ट होने के बाद उम्मीद थी कि भूटानी जल्द से जल्द उन की यूनिट बना कर देंगे. लेकिन उन्होंने भी धोखा दे दिया. डब्ल्यूटीसी के साथ वित्तीय या परिचालन संबंधों के आरोपों के जवाब में, भूटानी इंफ्रा ने एक बयान जारी कर विवादास्पद रियल एस्टेट समूह से भूमि या फंड ट्रांसफर में किसी भी तरह की संलिप्तता से साफ इनकार किया. कंपनी ने स्पष्ट किया कि डब्ल्यूटीसी के साथ अपने संक्षिप्त जुड़ाव के दौरान भूटानी इंफ्रा को कोई भूमि या फंड ट्रांसफर नहीं किया गया, जिस में भूटानी इंफ्रा या उस के निदेशकों को भूमिधारक कंपनियों में कोई शेयर ट्रांसफर शामिल है.

भूटानी इंफ्रा ने कहा कि उस ने जुलाई, 2024 में समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के 6 महीने बाद फरवरी, 2025 में डब्ल्यूटीसी समूह के साथ अपने संबंध पूरी तरह से तोड़ लिए थे. कंपनी ने इस बात पर जोर दिया कि उस का डब्ल्यूटीसी से कोई वित्तीय या परिचालन संबंध नहीं है और इस के विपरीत कोई भी सुझाव गलत और धोखे से भरे हुए हैं. डब्ल्यूटीसी से संबंधित कोई दायित्व न होने के बावजूद भूटानी इंफ्रा ने कहा कि वह चल रही जांच में ईडी के साथ पूरा सहयोग करते हुए संकटग्रस्त ग्राहकों को सहायता और मार्गदर्शन दे रही है.

इस बीच, वल्र्ड  ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन के तत्त्वावधान में हजारों घर खरीदार और निवेशक आशीष भल्ला और डब्ल्यूटीसी  नोएडा डेवलपमेंट कंपनी प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े भारत के सब से बड़े रियल एस्टेट धोखाधड़ी में तत्काल सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं. 4 राज्यों— उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व गुजरात और 17 परियोजनाओं में फैले इस घोटाले ने 20,000 से अधिक खरीदारों को अधूरे विकास और हजारों करोड़ रुपए के वित्तीय नुकसान के साथ फंसा दिया है.

आखिर निवेशकों को क्यों नहीं मिल रहा न्याय

वल्र्ड ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन का कहना है कि निवेशकों से धोखाधड़ी गतिविधियों के पर्याप्त सबूतों के बावजूद, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण (रेरा) और उपभोक्ता मंचों जैसे नियामक निकाय प्रभावी काररवाई करने में विफल रहे हैं,  जिस से निवेशकों के पास कोई सहारा नहीं बचा है. सब से बड़ी विफलता गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) और राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की है, जहां कंपनी अधिनियम की धारा 241 के तहत एक आपातकालीन आवेदन 28 महीने से अधिक समय से अनसुलझा है.

एसोसिएशन का दावा है कि 24 जुलाई, 2022 को उस ने वल्र्ड ट्रेड कस्टमर एसोसिएशन नोएडा डेवलपमेंट कंपनी के खिलाफ एसएफआईओ को एक व्यापक शिकायत प्रस्तुत की, जिस में धोखाधड़ी वाली सुनिश्चित रिटर्न योजनाओं से जुड़े बड़े पैमाने पर वित्तीय घोटाले का खुलासा हुआ. जवाब में एसएफआईओ ने 29 सितंबर, 2022 को एनसीएलटी के साथ एक आवेदन (सीपी-156/2022) दायर किया, जिस में गंभीर कुप्रबंधन और धोखाधड़ी गतिविधियों के कारण कंपनी के प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप की मांग की गई.

डब्ल्यूटीसीए का आरोप है, ‘हालांकि, एक आपातकालीन प्रावधान होने के बावजूद, मामले में बारबार देरी हुई है. 28 महीनों में 29 सुनवाई के बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हुई है. प्रत्येक सुनवाई एसएफआईओ के कानूनी प्रतिनिधियों या अभियुक्तों के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति के कारण रुकी हुई है, जिस से सिस्टम में हेरफेर करने और जवाबदेही से बचने के लिए धोखेबाजों द्वारा संभावित हस्तक्षेप के बारे में चिंता बढ़ रही है.’

डब्ल्यूटीसीए की अध्यक्ष अलका जैन कहती हैं कि एनसीएलटी का मामला अभी भी अटका हुआ है, न तो एसएफआईओ और न ही किसी अन्य प्राधिकरण ने आरोपियों को गिरफ्तार किया और न ही उन की संपत्ति जब्त की, जिस से वे निवेशकों को धोखा देते रहे हैं. सैकड़ों शिकायतें प्राप्त करने के बावजूद, 4 राज्यों से रेरा ने मामले में फोरैंसिक औडिट शुरू नहीं किया. पंजाब रेरा के समक्ष आधिकारिक फाइलिंग से पता चलता है कि 372 करोड़ रुपए एकत्र किए गए, 284 करोड़ रुपए निकाले गए और जीरो प्रतिशत परियोजना पूरी हुई, फिर भी कोई काररवाई नहीं की गई.

इस के अलावा, डब्ल्यूटीसी समूह के खिलाफ यूपी रेरा में 338 शिकायतें दर्ज की गई हैं, लेकिन कोई सार्थक हस्तक्षेप नहीं हुआ. डब्ल्यूटीसीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कारपोरेट मामलों के मंत्रालय से हस्तक्षेप करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि डब्ल्यूटीसी समूह के घर खरीदारों और निवेशकों को बिना किसी देरी के न्याय मिले.

 

 

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