Bihar Crime News : जहां थानेदार रंजीत कुमार जैसे खूंखार पुलिस वाले हों, वहां की पुलिस की बदनामी स्वाभाविक ही है. आश्चर्य की बात यह है कि जहां की पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अपने एक थानेदार को पकड़ने में अक्षम हैं, सारे साधनों के बाद, वहां की जनता का क्या हाल होगा. क्या वाकई रंजीत को पकड़ने की…
बिहार में एक बड़ा जिला है भागलपुर. इसी जिले के बिहपुर इलाके में एक गांव है मड़वा. इस गांव के रहने वाले आशुतोष पाठक सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. इंजीनियरिंग करने के बाद वह बेंगलुरु जा कर नौकरी करने लगे. इसी साल लौकडाउन में वह बेंगलुरु से नौकरी छोड़ आए. बाद में उन्होंने अपने ही जिला मुख्यालय भागलपुर में नौकरी कर ली, लेकिन गांव से उन का मोह नहीं छूटा था. इसलिए जब भी मौका मिलता, परिवार के साथ गांव चले जाते. इसी 24 अक्तूबर की बात है. उस दिन दुर्गाष्टमी थी. वह दुर्गा पूजा के लिए परिवार के साथ भागलपुर से गांव आ गए थे.
दोपहर करीब साढ़े 3 बजे वह अपनी पत्नी स्नेहा और 2 साल की बेटी मारवी के साथ भ्रमरपुर दुर्गा मंदिर में पूजा कर बाइक से गांव जा रहे थे. एनएच 31 पर महंथ चौक के पास आशुतोष की साइड में चलने की बात पर एक आदमी से झड़प हो गई. पढ़ेलिखे आशुतोष बाइक रोक कर उस आदमी को समझा रहे थे, लेकिन वह आदमी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था. झड़प होते देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. उन लोगों ने भी उस आदमी को समझाया. समझाईबुझाई चल रही थी कि बिहपुर के थानेदार रंजीत कुमार पुलिस की जीप से उधर से निकले. उन्होंने भीड़ देख कर गाड़ी रोक ली. रंजीत ने आशुतोष और उन से झगड़ा कर रहे आदमी से झगड़ने का कारण पूछा.
रंजीत कुकर बन कूदा बीच में थानेदार रंजीत कुमार पूरी बात सुन कर आशुतोष की गलती बता कर उसे धमकाने लगे. थानेदार ने आशुतोष से बाइक के कागजात मांगे. उन्होंने कागजात दिखा दिए. इसी दौरान किसी बात पर आशुतोष से थानेदार की बहस हो गई. उन्हें बहस करते देख कर थानेदार रंजीत कुमार आगबबूला हो गए. उन्होंने पत्नी और बेटी के सामने ही सरेआम आशुतोष की पिटाई शुरू कर दी. आशुतोष कहते रहे कि थानेदार साहब, आप यह गलत कर रहे हो. मैं पढ़ालिखा इंसान हूं. सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. आशुतोष की बात पर थानेदार का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उन्होंने अपने जीप चालक और साथ में मौजूद पुलिस वालों से कहा कि इसे जीप में डालो और थाने ले चलो.
थानेदार साहब का हुकम था. पुलिस वालों ने आशुतोष को जबरन जीप में डाला और थाने की ओर चल दिए. आशुतोष की पत्नी स्नेहा पाठक थानेदार और पुलिस वालों के आगे हाथ जोड़ कर अपने पति को छोड़ने की गुहार लगाती रही. आशुतोष की 2 साल की बेटी रोतीबिलखती रही, लेकिन पुलिस वालों का कलेजा नहीं पसीजा. वहां मौजूद लोगों की भी हिम्मत नहीं हुई कि थानेदार का विरोध करें. बिहपुर थाने ले जा कर थानेदार ने आशुतोष के कपड़े उतरवा दिए. उन को डंडों से बेरहमी से पीटा गया. इतने पर भी थानेदार रंजीत का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो पुलिस वालों से जूतों से उन की जम कर पिटाई कराई. फिर शौचालय में बंद कर खूब पिटाई की गई.
आशुतोष खून से लथपथ हो गए. उन की नाक और शरीर से कई जगह खून बहने लगा. इस बीच स्नेहा ने फोन कर मड़वा गांव में अपने घर वालों को सारी बात बता दी. गांव से आशुतोष के घरवाले बिहपुर थाने आ गए. थानेदार ने उन से भी बदसलूकी की और उन्हें आशुतोष से नहीं मिलने दिया. घर वाले थानेदार के सामने गुहार लगाते रहे, लेकिन उस ने किसी की नहीं सुनी. पुलिस वालों की पिटाई से शाम करीब 7 बजे आशुतोष मरणासन्न हो गए, तब उन्हें घर वालों को सौंप दिया गया. सौंपने से पहले एक कागज पर यह भी लिखवा लिया गया कि हम आशुतोष को सहीसलामत थाने से ले जा रहे हैं.
आशुतोष की हालत खराब थी. पुलिस वालों ने उन्हें बुरी तरह पीटा था. डंडों, जूतों और बेल्ट के साथ थप्पड़घूंसों से भी पिटाई की गई थी. जगहजगह चोटें लगने से उन के शरीर से खून रिस रहा था. जिंदगी की जंग हार गए आशुतोष घर वाले उन्हें बिहपुर के ही निजी अस्पताल में ले गए. डाक्टरों ने प्राथमिक इलाज के बाद गंभीर हालत देख कर उन्हें भागलपुर के जवाहर लाल नेहरू मैडिकल कालेज एंड अस्पताल में रैफर कर दिया. अस्पताल में दूसरे दिन इलाज के दौरान उन की मौत हो गई. वे करीब 33 साल के थे. आशुतोष की मौत का पता चलने पर बिहपुर थानेदार और उस के साथी पुलिस वाले थाने से फरार हो गए.
उस दिन दशहरा था. बिहार में विधानसभा के चुनाव भी हो रहे थे. सौफ्टवेयर इंजीनियर आशुतोष पाठक की मौत से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. दोपहर करीब 12 बजे लोगों ने आशुतोष की लाश महंथ चौक पर रख कर एनएच 31 जाम कर दिया और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. पता चलने पर पुलिस और प्रशासन के अफसर मौके पर पहुंचे और उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने डीएम को मौके पर बुलाने, मृतक के आश्रितों को नौकरी, मुआवजा, दोषी पुलिस वालों को गिरफ्तार करने की मांग की. इस दौरान लोगों ने नवगछिया डीएसपी और एसडीपीओ से धक्कामुक्की भी की. कई घंटों की समझाइश और आश्वासन के बाद शाम 5 बजे लोग शांत हुए और शव का पोस्टमार्टम कराने की सहमति दी.
बाद में 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. पोस्टमार्टम कराने के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिया गया. मृतक आशुतोष के चाचा प्रफुल्ल पाठक ने झंडापुर ओपी थाने में बिहपुर थानाप्रभारी रंजीत कुमार, पुलिस जीप के निजी चालक, बिहपुर थाने में मौजूद पुलिस वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस घटना से बिहार पुलिस का अमानवीय चेहरा सामने आ गया था. विधानसभा चुनाव का माहौल था. पूरे इलाके के लोगों में आक्रोश था. इसलिए मुख्यमंत्री ने डीजीपी को घटना की जांच कराने के निर्देश दिए. जिला प्रशासन ने भी मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए.
बिहार के राज्य मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले में शिकायत दर्ज कर ली. घटना की गंभीरता को देखते हुए नवगछिया की एसपी स्वप्नाजी मेश्राम ने आरोपी थानाप्रभारी रंजीत कुमार को निलंबित कर दिया. सिर्फ जांच ही जांच एसपी ने मामले की जांच के लिए एसडीपीओ दिलीप कुमार के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया. एफएसएल टीम ने बिहपुर थाने से घटना के साक्ष्य जुटाए. इस के लिए पिटाई में इस्तेमाल डंडे, हथियारों के बट, शौचालय के दरवाजे का रौड, फर्श, पुलिस थाने की जीप आदि से सैंपल एकत्र किए गए. इंजीनियर आशुतोष की मौत को ले कर सोशल मीडिया पर जस्टिस फौर आशुतोष कैंपेन शुरू हो गया. इस में सांसद, विधायक से ले कर बिहार और झारखंड तक के लोग जुड़ गए.
आशुतोष के ननिहाल गोड्डा से ले कर उन के गांव मड़वा तक के लोग सोशल मीडिया के जरिए बिहपुर के थानेदार और उस की टीम के पुलिस वालों को फांसी देने की मांग करने लगे. लोगों का कहना था कि थानेदार रंजीत कुमार पहले भी बेवजह लोगों की पिटाई करते थे. एसपी से लोगों ने शिकायतें भी की थीं, लेकिन कभी काररवाई नहीं हुई. इस से थानेदार के अत्याचार बढ़ते गए. बिहपुर पुलिस थाने में पहले से ही सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. इन कैमरों में पूरी घटना कैद हो गई थी. इसलिए इन की फुटेज जब्त कर अधिकारियों ने उन की जांच शुरू कर दी.
प्रारंभिक जांच में इंजीनियर आशुतोष की मौत पुलिस की पिटाई से होने की बात ही सामने आई. जांच में एसआईटी को बिहपुर थाने में एक प्रार्थनापत्र और थाने की डायरी में एक एंट्री मिली. प्रार्थनापत्र आशुतोष के रिश्तेदार संजय पाठक की ओर से बिहपुर थानाध्यक्ष के नाम था. इस में लिखा था कि वह आशुतोष को थाने से सहीसलामत ले जा रहे हैं. पुलिस स्टेशन की डायरी में इस प्रार्थनापत्र की एंट्री की गई थी. पुलिस की बर्बर पिटाई से इंजीनियर की मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा था. विभिन्न संगठनों के लोग जिला प्रशासन को आंदोलन की चेतावनी देने लगे. लोगों के गुस्से को देखते हुए डीआईजी सुजीत कुमार ने इस मामले की मौनिटरिंग की कमान संभाल ली.
उन्होंने नवगछिया एसपी को थानेदार सहित अन्य आरोपी पुलिस वालों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी करने को कहा. अधिकारियों के झूठे आश्वासन डीआईजी ने इस मामले में नवगछिया जिला पुलिस की मदद के लिए भागलपुर साइबर सेल के प्रभारी और एक तकनीकी विशेषज्ञ को डेपुटेशन पर अगले आदेश तक बिहपुर लगा दिया. 28 अक्तूबर को मड़वा और भ्रमरपुर गांव के लोगों ने आशुतोष की आत्मा की शांति के लिए कैंडल मार्च निकाला. लोगों ने मामले की न्यायिक जांच कराने, दोषी पुलिस वालों की गिरफ्तारी और उन्हें बर्खास्त करने के अलावा मृतक के परिवार को सरकारी नौकरी देने की मांग की.
आरोपी थानेदार और उस के साथी पुलिस वालों की तलाश में एसआईटी ने कई जगह छापे मारे. साइबर सेल के पुलिस अधिकारियों ने आरोपी पुलिस वालों की मोबाइल लोकेशन की टोह ली, लेकिन सुराग नहीं मिला. लोगों के आक्रोश को देखते हुए नवगछिया एसपी ने भागलपुर के डीएम को पत्र लिख कर मामले की न्यायिक जांच कराने का अनुरोध किया. भागलपुर डीएम प्रवीण कुमार ने इस के लिए जिला एवं सत्र न्यायाधीश को पत्र लिख कर आग्रह किया. एसपी ने इंजीनियर आशुतोष की पिटाई में थानेदार का साथ देने वाले 2 होमगार्ड जवानों की सेवाएं समाप्त करने के लिए भागलपुर डीएम को पत्र लिखा. इस के आधार पर डीएम ने दोनों आरोपी होमगार्ड जवानों की सेवा समाप्त कर दी.
प्रारंभिक जांच में सामने आया था कि आशुतोष की बर्बरता से पिटाई करने में थानेदार के अलावा पुलिस जीप का निजी चालक जहांगीर, एक एएसआई शिवबालक प्रसाद और 2 होमगार्ड जवान राजू पासवान व मनोज कुमार चौधरी आदि शामिल थे. एसआईटी भी कुछ नहीं कर पाई इस मामले में लगातार हो रहे लोगों के प्रदर्शनों को देखते हुए एसआईटी के अधिकारी आरोपी पुलिस वालों की तलाश में रोजाना छापे मार रहे थे, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चल रहा था. इस से लोग यह कहने लगे कि पुलिस अपने साथियों का बचाव कर रही है.
लोगों के दबाव में भागदौड़ के बाद पुलिस ने आशुतोष की मौत के मामले में 30 अक्तूबर को बिहपुर थाने के एएसआई शिवबालक प्रसाद और बर्खास्त किए गए दोनों होमगार्ड जवान राजू पासवान व मनोज कुमार को गिरफ्तार कर लिया. आरोपी एएसआई पटना जिले के पुनपुन थाना इलाके के पोथही गांव का रहने वाला था. इसी दिन मड़वा गांव के लोगों ने नवगछिया एसपी स्वप्नाजी मेश्राम से मुलाकात कर आरोपी थानेदार की गिरफ्तारी नहीं होने पर गुस्सा जताया और ज्ञापन दिया. इस में आरोपी पुलिस वालों पर सख्त काररवाई और पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए मुआवजे के अलावा आश्रित को सरकारी नौकरी दिलाने की मांग की. लोगों के आक्रोश को देखते हुए बिहपुर पुलिस थाने पर अर्धसैनिक बल तैनात कर दिया गया.
31 अक्तूबर को पुलिस को इंजीनियर आशुतोष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. इस में उन्हें अंदरूनी चोटें लगने की बात कही गई थी. इस रिपोर्ट से यह बात तय हो गई कि पुलिस ने आशुतोष की बेरहमी से पिटाई की थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद डीआईजी सुजीत कुमार ने बिहपुर थाने पहुंच कर एकएक बिंदु पर मातहत अफसरों से चर्चा की. इसी दिन पुलिस ने गिरफ्तार एएसआई और बर्खास्त होमगार्ड जवानों को पूछताछ और बयान लेने के बाद अदालत में पेश किया. अदालत ने तीनों को 31 अक्तूबर को जेल भेज दिया.
चूंकि इस दौरान बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. इसलिए पुलिस की पिटाई से इंजीनियर आशुतोष की मौत के मामले को चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया. आयोग ने एक नवंबर को भागलपुर की प्रमंडलीय आयुक्त वंदना किन्नी को इस मामले की जांच करने के आदेश दिए. उन्हें अपनी रिपोर्ट एक सप्ताह में चुनाव आयोग को सौंपने को कहा गया. सिर्फ आश्वासन चुनाव आयोग के निर्देश पर प्रमंडलीय आयुक्त वंदना किन्नी ने 2 नवंबर को ही बिहपुर पहुंच कर मामले की जांच शुरू कर दी. उन्होंने एसपी स्वप्नाजी मेश्राम और एसडीपीओ दिलीप कुमार की मौजूदगी में थाने में पुलिसकर्मियों से आशुतोष के साथ हुई घटना के बारे में पूछताछ की.
उन्होंने कहा कि आरोपी थानाध्यक्ष को जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उस की बर्खास्तगी का प्रस्ताव सरकार को भेजा जाएगा. एसपी ने उन्हें बताया कि फरार आरोपी थानेदार की संपत्ति की कुर्की के लिए अदालत में प्रार्थनापत्र लगाया गया है. वंदना किन्नी ने उसी दिन भागलपुर डीएम के साथ मड़वा गांव जा कर मृतक इंजीनियर आशुतोष के घर वालों को सांत्वना दी और उन से घटना के बारे में जानकारी ली. 3 नवंबर को अदालत के आदेश पर बिहपुर के निलंबित थानेदार रंजीत कुमार के मुंगेर स्थित मकान की कुर्की कर ली गई. एसआईटी ने एसडीपीओ दिलीप कुमार के नेतृत्व में थानेदार के मकान से सारा सामान जब्त कर लिया.
इस के अलावा एक और आरोपी जहांगीर को भी एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया. जहांगीर बिहपुर पुलिस थाने की जीप का निजी चालक था. आरोप है कि थानेदार के कहने पर उस ने भी आशुतोष की बेरहमी से पिटाई की थी. आश्वासनों का अंबार उसी दिन केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने आशुतोष के घर वालों से मुलाकात कर शोक संवेदना जताई. उन्होंने कहा कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा. यह घटना हृदयविदारक है. इस मामले में उन्होंने पीडि़त परिवार को 50 लाख रुपए मुआवजा दिलाने और आशुतोष की पत्नी को सरकारी नौकरी दिलाने की बात भी कही.
प्रमंडलीय आयुक्त वंदना किन्नी मामले की जांच के लिए 6 नवंबर को दोबारा बिहपुर पहुंची. उन्होंने एनएच 31 पर महंथ चौक पर दुकानदारों और प्रत्यक्षदर्शियों से 24 अक्तूबर को आशुतोष के साथ हुई घटना के बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह बिहपुर थाना इलाके के ही कोरचक्का गांव पहुंची. इसी गांव के देवेंद्र सिंह से साइड में चलने की बात पर आशुतोष की उस दिन झड़प हुई थी. इसी झड़प के दौरान बिहपुर थानेदार रंजीत वहां पहुंच गया और आशुतोष को धमकाने के बाद पीटते हुए थाने ले गया था. आयुक्त को देवेंद्र गांव में नहीं मिला. वह नेपाल गया हुआ था. बाद में आयुक्त वंदना किन्नी ने नवगछिया में एसपी से इस मामले की जांचपड़ताल के बारे में पूछा.
भागलपुर के जिलाधिकारी प्रवीण कुमार की अनुशंसा पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अरविंद कुमार पांडेय ने 9 नवंबर को आशुतोष की मौत के मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए. इस मामले की जांच नवगछिया सिविल कोर्ट के एसीजेएम-3 प्रमोद कुमार पांडेय को सौंपी गई. उन्हें एक महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में जिला एवं सत्र न्यायाधीश को सौंपने को कहा गया. नवगछिया एसपी स्वप्नाजी मेश्राम ने बिहपुर के निलंबित थानेदार रंजीत कुमार की बर्खास्तगी की अनुशंसा डीआईजी से की. एसपी की अनुशंसा पर थानेदार की बर्खास्तगी की काररवाई विभागीय स्तर पर शुरू हो गई.
इंजीनियर आशुतोष के पिता अजय पाठक गोड्डा कालेज में प्रोफेसर थे. आशुतोष के दादा प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य और स्वतंत्रता सेनानी थे. उन के मातापिता का निधन हो चुका था. गोड्डा में आशुतोष का ननिहाल है. उन्होंने गोड्डा से ही पढ़ाई की थी. वह अच्छे क्रिकेटर भी थे. सौफ्टवेयर इंजीनियर की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कई शहरों में नौकरी की. कई साल तक वह बेंगलुरु में नौकरी करते रहे. लौकडाउन होने पर वे बेंगलुरु छोड़ कर अपने गांव आ गए और भागलपुर में नौकरी करने लगे थे. अभी तक आंसू बहा रही है स्नेहा आशुतोष की शादी करीब 3 साल पहले स्नेहा से हुई थी. उन के 2 साल की एक बेटी है. उस के ससुर कटिहार पुलिस में दरोगा हैं.
कथा लिखे जाने तक आरोपी थानेदार रंजीत कुमार की गिरफ्तारी नहीं हुई थी. वह पुलिस की पकड़ से बच कर अपने दांवपेच लगाने में जुटा था. माना यह जा रहा था वह पुलिस से कितनी भी आंख मिचौली करे, एक न एक दिन उसे अपने किए की सजा जरूर मिलेगी. नेताओं और अफसरों के वादे के बावजूद मृतक आशुतोष के घर वालों को न तो कोई आर्थिक मदद मिली थी और न ही आश्रित को नौकरी. आशुतोष की मौत से स्नेहा की मांग का सिंदूर उजड़ गया. 2 साल की मासूम बेटी मारवी के सिर से पिता का साया छिन गया. पति की मौत के गम से स्नेहा अभी उबर नहीं पा रही है. वह रात को सोते हुए उठ बैठती है और उस दिन की घटना को याद कर आंसू बहाती है.
बहरहाल, इस घटना से बिहार पुलिस का अमानवीय चेहरा उजागर हुआ है. पुलिस पहले ही बदनाम रही है, इस घटना ने आम लोगों में पुलिस का भरोसा कम किया है. देश में जहां रोजाना नए कानून बन रहे हैं. शिकायतों के लिए सरकार और अफसर हैं. इंसाफ देने के लिए अदालतें है. संविधान ने लोगों को कई तरह की आजादी और अधिकार दिए हैं. फिर भी इस तरह की हो रही घटनाएं देशवासियों का सिर शर्म से झुकाने को मजबूर कर देती हैं.