राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी.
राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी.
इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.
मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था.
विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.
जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया.
विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया.
घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.
कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे. इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया.
सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली.
सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.
जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी.
राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था.
मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.
राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’
‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.
‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.
संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’
राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था.
संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही.
दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.
अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’
‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’
राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी.
संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो.
फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’
‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.
‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.
संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा.
उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी.
लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी.
देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’
‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’
‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’
‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.
‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.
जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’
‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.
‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’
‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’
‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’
‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की.
आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली.
अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’
उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं.
तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया.
तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.
राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी.
इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.
संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए.
सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.
परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी.
23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी.
संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’
जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी.
अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’
सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’
उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी.
19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’
कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?
ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई.
उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी.
इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया.
राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.
इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था.
ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’
लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया.
इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.
राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.
23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है.
यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई.
उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.
केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया.
घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा.
घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.
संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी.
राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी.
घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.
राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी.
राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई.
पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया.
8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’
सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है.
अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.
अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए.
आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी.
जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.
बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है.
जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.
राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.