जयकारा लगाते हुए माता के भक्त दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के लिए दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक की ओर बढ़ते जा रहे थे. उस वक्त रात के साढ़े 11 बजे थे. सैकड़ों लोगों के पीछेपीछे सीआईएसएफ के जवान और जिले के कई थानों की फोर्स थी.
माता के भक्तों पर पुलिस का दबाव था कि वे जल्द से जल्द मूर्ति विसर्जित कर शहर को भीड़ से मुक्ति दें, ताकि चल रही चुनाव प्रक्रिया आसानी से कराई जा सके. हालांकि शांतिपूर्वक मूर्ति विसर्जन कराने के लिए पुलिस के पास 2 दिनों का पर्याप्त समय था, इस के बावजूद पुलिस जल्दबाजी में थी.
दरअसल, पुलिस का भारी दबाव लोगों पर इसलिए भी था क्योंकि शहर में चुनाव का दौर चल रहा था, दूसरे कोरोना प्रोटोकाल का चक्कर भी था. इसलिए एसपी लिपि सिंह चाहती थीं कि सब कुछ शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए. लोग माता का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे. लेकिन पुलिस के भारी दबाव से अचानक माहौल गरमा गया और भक्तों की ओर से किसी ने पुलिस पर पत्थर उछाल दिया.
पत्थर एक पुलिस वाले के सिर पर जा गिरा और वह जख्मी हो गया. एक तो पुलिस पहले से ही लोगों से नाराज थी. साथी को चोटिल देख कर पुलिस फोर्स आपे से बाहर हो गई. गुस्साई फोर्स ने भक्तों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. अचानक लाठीचार्ज से लोग मूर्ति को चौक के बीचोंबीच छोड़ जान बचा कर इधरउधर भागने लगे. साथ ही आत्मरक्षा में पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे.
जवाबी काररवाई में पुलिस ने हवाई फायर किए. गोलियों की तड़तड़ाहट से भक्तों की भीड़ बेकाबू हो गई और इधरउधर भागने लगी. इसी भगदड़ में 21 साल के युवक अनुराग कुमार पोद्दार की गोली लगने से मौत हो गई.
एक युवक की मौत से माहौल और बिगड़ गया. शहर में अशांति की आग फैल गई. आग की लपटों पर काबू पाने के लिए रातोंरात शहर भर में चप्पेचप्पे पर भारी फोर्स लगा दी गई. जैसेतैसे रात बीती. पुलिस ने फोर्स के बल पर उपद्रवियों पर काबू तो पा लिया था, लेकिन माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था. बिगडे़ माहौल के लिए शहरवासी पुलिस कप्तान लिपि सिंह को दोषी मान रहे थे. उन का कहना था पुलिस फोर्स के पीछे चल रही एसपी लिपि सिंह के आदेश पर ही पुलिस ने गोली चलाई थी, जिससे एक युवक की मौत हुई थी.
यह घटना बिहार के मुंगेर जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र में 26 अक्तूबर, 2020 की रात में घटी थी. अगले दिन मृतक अनूप पोद्दार के पिता की तहरीर पर कोतवाली थाने में धारा 304 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
इस के अलावा पब्लिक की ओर से 6 और मुकदमे दर्ज किए गए. मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन इस काररवाई से उपजी चिंगारी अभी भी सुलग रही थी.
मुकदमा दर्ज होने के बावजूद आक्रोशित जनता एसपी लिपि सिंह को गिरफ्तार करने की मांग पर अड़ी हुई थी. जिस का खतरनाक नतीजा 29 अक्तूबर को वीभत्स तरीके से सामने आया, जिस के बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. पुलिस काररवाई से असंतुष्ट जनता ने पूरबसराय थाने को आग के हवाले कर दिया. साथ ही एसपी कार्यालय में काम भी अवरुद्ध कर दिया.
जब मामले की जानकारी डीआईजी मनु महाराज को मिली तो वह भारी फोर्स सहित मुंगेर जा पहुंचे और कानूनव्यवस्था अपने हाथों में ले कर दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक तक पैदल फ्लैग मार्च किया.
फ्लैग मार्च के दौरान नागरिकों से अपील की गई कि कानून अपने हाथों में न लें, पुलिस को अपने तरीके से काम करने दें, मृतक के साथ न्याय होगा, कानून पर विश्वास रखें. मनु महाराज की अपील का नागरिकों पर असर पड़ा और वे अपनेअपने घरों को लौट गए. इस पर पुलिस की ओर से उपद्रवियों पर 9 मुकदमे दर्ज किए गए. शहर का माहौल खराब था. घटना के लिए एसपी लिपि सिंह को दोषी ठहराया जा रहा था. यह मामला यहीं नहीं रुका, मगध के डीआईजी मनु महाराज से होते हुए बात चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी.
चुनाव आयोग ने इस पर कड़ा एक्शन लेते हुए जिलाधिकारी राजेश मीणा और एसपी लिपि सिंह को तत्काल प्रभाव से पद से हटा कर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया. इन दोनों पदों पर नई तैनाती कर दी गई.
नई जिलाधिकारी रचना पाटिल बनी तो मानवजीत सिंह ढिल्लो को एसपी की कमान मिली. उधर मगध डिवीजन के कमिश्नर सुशील कुमार को डीआईजी मनु महाराज ने घटना की जांच कर एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया.
काररवाई चल ही रही थी कि पुलिस की पिटाई से घायल बड़ी दुर्गा महारानी के कार्यकर्ता शादीपुर निवासी कालू यादव उर्फ दयानंद कुमार ने मुंगेर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय में परिवाद दायर किया. दायर वाद में कुल 7 आरोपी बनाए गए. आरोपियों के नाम थे लिपि सिंह (एसपी), खगेशचंद्र झा (सीओ), कृष्ण कुमार और धर्मेंद्र कुमार (एसपी के अंगरक्षक), संतोष कुमार सिंह (थानाप्रभारी कोतवाली), शैलेष कुमार (थानाप्रभारी कासिम बाजार) और ब्रजेश कुमार (थानाप्रभारी मुफस्सिल). एसपी लिपि सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गई थीं.
जलियावाला बाग कांड को याद कर के लोगों ने उन्हें जनरल डायर की उपाधि दी. हालांकि एसपी लिपि सिंह ने खुद पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘‘अनुराग की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी, बल्कि जुलूस में शामिल उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग से हुई थी.
जांचपड़ताल में घटनास्थल से 3 देशी कट्टे और 12 खोखे मिले थे. पुलिस जांच चल रही है.’’ इस घटना में जांच का क्या नतीजा सामने क्या आया, कहानी यहीं ब्रेक कर के आइए जानते हैं लिपि सिंह के बारे में. लेडी सिंघम कही जाने वाली आइपीएस लिपि सिंह मूलरूप से बिहार के नालंदा जिले के मुस्तफापुर गांव की रहने वाली हैं. इसी गांव के रहने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी. सिंह) और गिरिजा सिंह की बेटी हैं लिपि सिंह. आर.सी.पी. सिंह की 2 बेटियां हैं, जिन में लिपि सिंह बड़ी हैं और उस से छोटी दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है.
आर.सी.पी. सिंह खुद आईएएस अधिकारी थे. उन का राजनीति में आना महज इत्तफाक था. दरअसल, उन्होंने सर्विस के दौरान यूपी काडर में लंबे समय तक काम किया. नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आर.सी.पी. सिंह दिल्ली में उन के प्राइवेट सेक्रेट्री थे. इस दौरान दोनों ने लंबे समय तक साथ काम किया.
साल 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार में मुख्यमंत्री बने, तब आर.सी.पी. सिंह मुख्य सचिव बन कर आए. कहा जाता है कि आर.सी.पी. सिंह ने नीतीश कुमार के कहने पर नौकरी छोड़ दी और जेडीयू पार्टी जौइन कर ली थी. नीतीश कुमार ने बाद में उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया और फिलहाल वह पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखते हैं.
आर.सी.पी. सिंह का परिवार शिक्षा का महत्त्व जानता था. खुद वह एक काबिल आईएएस अफसर थे और चाहते थे कि उन की बेटियां भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलें. बेटियों की शिक्षा पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहा कर उन्हें काबिल बनाया. लिपि सिंह चाहती थी कि वह भी अपने पिता की ही तरह आईएएस अधिकारी बने. भविष्य संवारने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया. वहां हौस्टल में रह कर आगे की पढ़ाई जारी रखी और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. उन्होंने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा दी.
परीक्षा में लिपि का 114वां रैंक आया और 2016 में वह आईपीएस अफसर बनीं. हालांकि इस से पहले भी लिपि का चयन इंडियन औडिट अकाउंट सर्विस में हुआ था. तब उन्होंने वाणिज्य सेवा में सफलता हासिल की थी और देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान अवकाश ले कर दोबारा यूपीएससी की परीक्षा देनी चाही ताकि आईएएस या आईपीएस बन सकें, लेकिन लिपि को एकेडमी से छुट्टी नहीं मिली तो पक्के इरादों वाली लिपि ने इंडियन औडिट एकाउंट से इस्तीफा दे दिया और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. फलस्वरूप उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की भी शिक्षा ली थी.
सपनों को पूरा करने में पिता आर.सी.पी. सिंह का काफी योगदान रहा. लिपि को बेहतर भविष्य देने वाले उन के पिता गुरु भी थे. गुरुस्वरूप पिता ने बेटी को एक ही शिक्षा दी थी कि अपनी मंजिल पाने के लिए लक्ष्य को मन की आंखों से साधो. मंजिल खुदबखुद मिल जाएगी. पिता का दिया गुरुमंत्र लिपि हमेशा याद रखती थी. लिपि सिंह संघर्षशील और कर्मठी युवती थी.
ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन की पहली पोस्टिंग इन के गृह जनपद नालंदा में हुई थी. यह नालंदा जिले की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी थीं. ट्रेनिंग में अच्छा काम करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन्हें बिहार कैडर अलाट किया था. कहा जाता है यह सब सांसद पिता आर.सी.पी. सिंह की बदौलत हुआ था.
आईपीएस लिपि सिंह ने पुलिस फोर्स जौइन करने के बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. कानून के हिसाब से पुलिस महकमे, बालू माफिया और अपराधियों के खिलाफ उन का डंडा लगातार चलता रहा है. महज कुछ ही साल की सर्विस में इस लेडी अफसर ने ऐसा काम किया कि पुलिसकर्मी, बाहुबली से ले कर अपराधी तक खौफ खाने लगे.
जिस जिले में लिपि की तैनाती होती थी, वहां वह अपने विभाग के सिस्टम की गंदगी अपने तरीके से साफ करने में कोई कोताही नहीं बरतती थीं. नालंदा से लिपि सिंह का पहली बार स्थानांतरण पटना के बाढ़ सर्किल में हुआ.
लिपि सिंह बाढ़ इलाके की एडिशनल एसपी थीं. जिस क्षेत्र में इन का स्थानांतरण हुआ था, वहां बाहुबली विधायक अनंत सिंह का कानून चलता था. लिपि का खौफ इतना था कि कोई इन के खिलाफ अपना मुंह तक नहीं खोलता था. इतना दबदबा कि लोग उन से डरते थे. उन के हुक्म के बिना पत्ता नहीं हिलता था. एक दौर था जब अनंत सिंह नीतीश कुमार की सरकार में छोटे सरकार के नाम से जाने जाते थे. ऐसी जगह पर लिपि सिंह का स्थानांतरण होना दांतों के बीच जीभ के होने की तरह था.
आखिरकार जिस बात का डर था, हुआ वही. लिपि सिंह का कार्यकाल बाहुबली अनंत सिंह से टकराहट के साथ शुरू हुआ. दरअसल, 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने चुनाव आयोग में लिपि सिंह की शिकायत कर दी थी. आरोप था कि लिपि सिंह अनंत सिंह के करीबियों को जानबूझ कर परेशान कर रही थीं.
इस के बाद चुनाव आयोग के आदेश पर लिपि सिंह का ट्रांसफर एंटी टेरेरिज्म स्क्वायड (एटीएस) में कर दिया गया. लेकिन चुनाव के बाद इन्हें एक बार फिर बाढ़ इलाके का सर्किल दे कर उसी पद पर यानी एडिशनल एसपी नियुक्त कर दिया गया.
लिपि सिंह को दोबारा उसी पद पर देख अनंत सिंह का लोहे का मजबूत किला हिल गया. इस के बाद लिपि सिंह ने लोहा लिया बाहुबली कहे जाने वाले विधायक अनंत सिंह से. खुद को बब्बर शेर समझने वाले अनंत सिंह लिपि सिंह के खौफ से डर कर घर छोड़ कर फरार होने पर मजबूर हो गए.
दरअसल, लिपि सिंह को मुखबिर के जरिए सूचना मिली थी कि बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने अपने एक दुश्मन को मौत के घाट उतारने के लिए अपने गांव वाले घर नदवां में एके-47 राइफल, बड़ी मात्रा में कारतूस और देशी बम छिपा रखे हैं. लिपि सिंह ने अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां में उन के घर पर छापेमारी की.
इस छापेमारी के दौरान एक एके-47 राइफल, 22 जिंदा कारतूस और 2 देशी बम बरामद हुए. उस के बाद लिपि सिंह ने अनंत सिंह के खिलाफ यूएपीए यानी अनलाफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.
मुकदमा दर्ज होने के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार किया जाना था. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए पटना स्थित उन के सरकारी आवास पर गई, लेकिन अनंत सिंह फरार हो गए. उन पर काररवाई करने के लिए उन के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लल्लू मुखिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. पर पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची, तो वह भी गायब हो गया. फिर लिपि सिंह कोर्ट गईं और वहां से उन्होंने लल्लू मुखिया की संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया.
इस के लिए काररवाई भी शुरू कर दी गई. चूहेबिल्ली के इस खेल में लिपि सिंह ने अनंत सिंह को जेल भेज कर अपना लोहा मनवा लिया. उन्होंने दिखा दिया कि औरत कमजोर नहीं होती. जब वह कानूनी जामा पहने हो तो और भी नहीं. बिहार में आईपीएस लिपि सिंह अपने कारनामों से सुर्खियों में छाई रहने लगीं.
बहरहाल, लौह इरादों वाली अफसर लिपि सिंह ने चट्टान जैसे भारीभरकम अनंत सिंह को धूल चटा दी थी. अत्याधुनिक और खतरनाक असलहा एके-47, जिंदा कारतूस और बम बरामदगी के जुर्म में अब तक वह जेल में हैं.
इस मामले में अदालत में गवाही चल रही है. लिपि सिंह ने पहली बार अदालत में हाजिर हो कर अपना बयान दिया था. इस मामले में आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मुंगेर गोलीकांड में सीआईएसएफ की ओर से की गई जांच में पुलिस की तरफ से 13 राउंड 5.56 एमएम इंसास राइफल से गोली चलाने का उल्लेख किया गया था और यह रिपोर्ट ईमेल के जरिए डीआईजी को भेज दी गई थी.
इस पूरे प्रकरण के बाद तत्काल आईपीएस लिपि सिंह और डीएम राजेश मीणा को पद से हटा कर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया था. फिलहाल लिपि सिंह को सहरसा जिले की एसपी बना दिया गया है.